Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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२०२]
[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत हैमवत नामक क्षेत्र कहा गया है। वह पूर्व-पश्चिम लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ा है, पलंग के आकार में अवस्थित है। वह दो ओर से लवणसमुद्र का स्पर्श करता है। अपने पूर्वी किनारे से पूर्वी लवणसमुद्र का तथा पश्चिमी किनारे से पश्चिमी लवणसमुद्र का स्पर्श करता है। वह २१०५५. योजन चौड़ा है।
उसकी बाहा पूर्व पश्चिम में ६७५५३). योजन लम्बी है। उत्तर दिशा में उसकी जीवा पूर्व तथा पश्चिम दोनों ओर लवणसमुद्र का स्पर्श करती है। अपने पूर्वी किनारे से वह पूर्वी लवणसमुद्र का स्पर्श करती है, पश्चिमी किनारे से पश्चिमी लवणसमुद्र का स्पर्श करती है। उसकी लम्बाई कुछ कम ३७६७४१६/..योजन है। दक्षिण में उसका धनुपृष्ठ परिधि की अपेक्षा से ३८७४०१०), योजन है।
भगवन् ! हैमवत क्षेत्र का आकार-स्वरूप, भाव-तदन्तर्गत पदार्थ, प्रत्यवतार-तत्सम्बद्ध प्राकट्यअवस्थिति कैसी है ?
___ गौतम ! उसका भूमिभाग बहुत समतल एवं रमणीय है। उसका स्वरूप आदि तृतीय आरक-सुषमदुःषमा काल के सदृश है। शब्दापाती वृत्तवैताढ्यपर्वत
९४. कहि णं भंते ! हेमवए वासे सद्दावई णामं वट्टवेअद्धपव्वए पण्णत्ते ?
गोयमा ! रोहिआए महाणईए पच्चत्थिमेणं, रोहिअंसाए महाणईए पुरथिमेणं, हेमवयवासस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थणंसद्दावई णामं वट्टवेअद्धपव्वए पण्णत्ते।एगंजोअणसहस्सं उद्धं उच्चत्तेणं, अद्धाइज्जाइं जोअणसयाइं उव्वेहणं, सव्वत्थसमे, पल्लंगसंठाणसंठिए, एगंजोअणसहस्सं आयामविक्खंभेणं, तिण्णि जोअणसहस्साइं एगंच बावटुंजोअणसयं किंचिविसेसाहिअंपरिक्खेवेणं पण्णत्ते, सव्वरयणामए अच्छे।से णं एगाए पउमवरवेइआए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, वेइआवणसंडवण्णओ भाणिअव्वो।।
सद्दावइस्स णं वट्टवेअद्धपव्वयस्स उवरि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते। तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगे पासायवडेंसए पण्णत्ते। बावडिं जोअणाई अद्धजोयणंच उद्धं उच्चत्तेणं, इक्कतीसंजोअणाई कोसंच आयामविक्खंभेणंजाव सीहासणं सपरिवारं।
से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ सद्दावई वट्टवेयद्धपव्वए सद्दावई वट्टवेयद्धपव्वए ?
गोयमा ! सद्दावई वट्टवेअद्धपव्वएणंखुद्दा खुद्दिआसु वावीसु,(पोक्खरिणीसु, दीहिआसु, गुंजालिआसु, सरपंतिआसु, सरसरपंतिआसु, बिलपंतिआसु बहवे उप्पलाइं, पउमाई, सद्दावइप्पभाई सद्दावइवण्णाइंसद्दावइवण्णाभाई, सद्दावई अइत्थ देवे महीडीए जाव' महाणुभावे पलिओवमटिइए
१. देखें सूत्र संख्या १४