Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[१३५
तृतीय वक्षस्कार ]
मन्ने उवद्दवे भविस्सइत्ति कट्टु ओहयमणसंकप्पा चिंतासोगसागरं पविट्ठा करयलपल्हत्थमुहा अट्टज्झाणोवगया भूमिगयदिट्ठिआ झिआयंति ।
तणं से भरहे राया चक्करयणदेसिअमग्गे (अणेगरायसहस्साणुआयमग्गे महयाउक्किट्ठसीहणायबोलकलकलरवेणं) समुद्दरवभूअं पिव करेमाणे २ तिमिसगुहाओ उत्तरिल्लेणं दारेणं णीति ससिंव्व मेहंधयारणिवहा ।
तणं ते आवाडचिलाया भरहस्स रण्णो अग्गाणीअं एज्जमाणं पासंति रत्ता आसुरुत्ता रुट्ठा चंडिक्किआ कुविआ मिसिमिसेमाणा अण्णमण्णं सद्दार्वेति २त्ता एवं वयासी - 'एस णं देवाप्पि ! केइ अप्पत्थिअपत्थए दुरंतपंतलक्खणे हीणपुण्णचाउद्दसे हिरिसिरिपरिवज्जिए, जेणं अहं विसयस्स उवरिं विरिएणं हव्वमागच्छइ तं तहा णं घत्तामो देवाणुप्पिआ ! जहा णं एस अम्हं विसयस्स उवरिं विरिएणं णो हव्वमागच्छइत्तिकट्टु अण्णमण्णस्स अंतिए एअमट्ठे पडिसुर्णेति २त्ता सण्णद्धबद्धवम्मियकवआ उप्पीलिअसरासणपट्टिआ पिणद्धगेविज्जा बद्धआविद्धविमलवरचिंधपट्टा गहिआउहप्पहरणा जेणेव भरहस्स रण्णो अग्गाणीअं तेणेव उवागच्छंति २त्ता भरहस्स रण्णो अग्गाणीएण सद्धिं संपलग्गा यावि होत्था । तए णं ते आवाsचिलाया भरहस्स रण्णो अग्गाणीअं हयमहिअपवरवीरघाइअविवडिअचिंधद्धयपडागं किच्छप्पाणोवगयं दिसोदिसिं पडिसेहिंति ।
[७२] उस समय उत्तरार्ध भरतक्षेत्र में आवाड - आपात संज्ञक किरात निवास करते थे । वे आढ्यसम्पत्तिशाली, दीप्त - दीप्तिमान् - प्रभावशाली, वित्त- अपने जातीय जनों में विख्यात, भवन - रहने के मकान, शयन - ओढने - बिछाने के वस्त्र, आसन - बैठने के उपकरण, यान - माल असबाब ढोने की गाडियां, वाहनसवारियाँ आदि विपुल साधन सामग्री तथा स्वर्ण, रजत आदि प्रचुर धन के स्वामी थे । आयोग-प्रयोगसंप्रवृत्त - व्यावसायिक दृष्टि से धन के सम्यक् विनियोग और प्रयोग में निरत- कुशलतापूर्वक द्रव्योपार्जन में संलग्न थे। उनके यहाँ भोजन कर चुकने का बाद भी खाने-पीने के बहुत पदार्थ बचते थे । उनके घरों में बहुत से नौकर-नौकरानियाँ, गायें, भैंसें, बैल, पाडे, भेड़ें, बकरियाँ आदि थीं। वे लोगों द्वारा अपरिभूतअतिरस्कृत थे— इतने रौबीले थे कि उनका कोई तिरस्कार या अपमान करने का साहस नहीं कर पाते थे ।
शूर थे - अपनी प्रतिज्ञा का निर्वाह करनें में, दान देने में शौर्यशाली थे, युद्ध में वीर थे, विक्रांत - भूमण्डल को अक्रान्त करने में समर्थ थे। उनके पास सेना और सवारियों की प्रचुरता एवं विपुलता थी । अनेक ऐसे युद्धों में, जिसमें मुकाबले की टक्करें थीं, उन्होंने अपना पराक्रम दिखाया था ।
उन आपात संज्ञक किरातों के देश में अकस्मात् सैकड़ों उत्पात - - अनिष्टसूचक निमित्त उत्पन्न हुए। असमय में बादल गरजने लगे, असमय में बिजली चमकने लगी, फूलों के खिलने का समय न आने पर भी पेड़ों पर फूल आते दिखाई देने लगे। आकाश में भूत-प्रेत पुनः पुनः नाचने लगे । आपात किरातों ने अपने देश में इन सैकड़ों उत्पातों को आविर्भूत होते देखा । वैसा देखकर वे आपस में कहने लगे - देवानुप्रियो ! हमारे देश में असमय में बादलों का गरजना, असमय में बिजली का चमकना, असमय में वृक्षों पर फूल