Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र ( आहेवच्चं, पोरेवच्चं, सामित्तं, भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणाईसरसेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहयनट्टगीयवाइयतंतीतलतालतुडियघणमुअंगपडुप्पवाइयरवेणं विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणे) विहराहित्ति कट्ट जयजयसदं पउंजंति। तए णं से भरहे राया णयणमालासहस्सेहिं पिच्छिज्जमाणे २ वयणमालासहस्सेहिं अभिथुव्वमाणे २ हिअयमालासहस्सेहिं उण्णं दिज्जमाणे २ मणोरहमालासहस्सेहिं विच्छिप्पमाणे २ कंतिरूवसोहग्गगुणेहिं पिच्छिज्जमाणे २ अंगुलिमालासहस्सेहिं दाइज्जमाणे २ दाहिणहत्थेणं बहूणंणरणारीसहस्साहिं अंजलिमालासहस्साइं पडिच्छेमाणे २ भवणपंतीसहस्साइंसमइच्छमाणे २ तंतीतलतुडिअगीअवाइअरवेणंमधुरेणं मणहरेणं मंजुमंजुणा घोसेणं अपडिबुज्झमाणे २ जेणेव सए गिहे जेणेव सए भवणवरवडिंसयदुवारे तेणेव उवागच्छइ २त्ता आभिसेक्कं हत्थिरयणं ठवइ २त्ता आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ २त्ता सोलस देव सहस्से सक्कारेइ सम्माणेइ २त्ता बत्तीसं रायसहस्से सक्कारेइ सम्माणेइ २ त्ता सेणावइरयणं सक्कारेइ सम्माणेइ २त्ता एवं गाहावइरयणं वद्धइयणं पुरोहियरयणं सक्कारेइ सम्माणेइ २त्ता तिण्णि सढे सूअसए सक्कारेइ सम्माणेइ २त्ता अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ सक्कारेइ सम्माणेइ २त्ता अण्णेवि बहवे राईसर, जाव ' सत्थवाहप्पभिइओ सक्कारेइ सम्माणेइ रत्ता पडिविसज्जेइ, इत्थीरयणेणं बत्तीसाए उडुकल्लाणिआसहस्सेहिं बत्तीसाए जणवयकल्लाणिआसहस्सेहिं बत्तीसाए बत्तीसइबद्धेहिं णाडयसहस्सेहिं सद्धिं संपरिवुडे भवणवरवडिंसगं अईइ जहा कुबेरो ब्व देवराया कैलाससिहरिसिंगभूअंति, तए णं से भरहे राया मित्तणाइणिअगसयणसंबंधिपरिअणं पच्चुवेक्खइ २ त्ता जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता जाव २ मजणघराओ पडिणिक्खमइ २त्ता जेणेव भोअणमंडवे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता भोअणमंडवंसि सुहासणवरग़ए अट्ठमभत्तं पारेइ २त्ता उप्पिं पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं बत्तीसइबद्धेहिं णाडएहिं उवलालिज्जमाणे २ उवणच्चिज्जमाणे २ उवगिज्जमाणे २ महया जाव भुंजमाणे विहरइ।
[८३] राजा भरत ने इस प्रकार राज्य अर्जित किया-अधिकृत किया। शत्रुओं को जीता। उसके यहाँ समग्र रत्न उद्भूत हुए। चक्ररत्न उनमें मुख्य था। राजा बरत को नौ निधियाँ प्राप्त हुई। उसका कोशखजाना समृद्ध था-धन वैभवपूर्ण था। बत्तीस हजार राजाओं से वह अनुगत था। उसने साठ हजार वर्षों में समस्त भरतक्षेत्र पर अधिकार कर लिया-भरतक्षेत्र को साध लिया।
तदनन्तर राजा भरत ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर उन्हें कहा-'देवानुप्रियो ! शीघ्र ही आभिषेक्य हस्तिरत्न को तैयार करो, हाथी, घोड़े, रथ तथा पदातियों से युक्त चातुरंगिणी सेना सजाओ। कौटुम्बिक पुरुषों ने वैसा किया, राजा को अवगत कराया। राजा स्नान आदि नित्य-नैमित्तिक कृत्यों से निवृत्त होकर अंजनगिरि के शिखर के समान उन्नत गजराज पर आरूढ हुआ। राजा के हस्तिरत्न पर आरूढ हो
१. देखें सूत्र ४४ २. देखें सूत्र ४५ ३. देखें सूत्र संख्या ४५