Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय वक्षस्कार]
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जाने पर स्वस्तिक, श्रीवत्स (नन्द्यावर्त-वर्धमानक, भद्रासन, मत्स्य कलश,) दर्पण-ये आठ मंगल-प्रतीक राजा के आगे चले रवाना किये गये।
___ उनके बाद जल से परिपूर्ण कलश, भंगार-झारियाँ, दिव्य छत्र, पताका, चंवर तथा दर्शन रचितराजा के दृष्टिपथ में अवस्थित-राजा को दिखाई देने वाली, आलोक-दर्शनीय-देखने में सुन्दर प्रतीत होने वाली, हवा में फहराती, उच्छ्रित-ऊँची उठी हुई, मानो आकाश को छूती हुई-सी विजय-वैजयन्तीविजयध्वजा लिये राजपुरुष चले।
तदनन्तर वैडूर्य-नीलम की प्रभा से देदीप्यमान उज्ज्वल दंडयुक्त, लटकती हुई कोरंट पुष्पों की मालाओं से सुशोभित, चन्द्रमंडल के सदृश आभामय, समुच्छ्रित-ऊँचा फैलाया हुआ निर्मल आतपत्र-धूप से बचाने -वाला छत्र, अति उत्तम सिंहासन, श्रेष्ठ मणि-रत्नों से विभूषित-जिसमें मणियां तथा रत्न जड़े थे, जिस पर राजा की पादुकाओं की जोड़ी रखी थी, वह पादपीठ-राजा के पैर रखने का पीढ़ा, चौकी, जो (उक्त वस्तु-समवाय) किङ्करों-आज्ञा कीजिए, क्या करें-हरदम यों आज्ञा पालन में तत्पर सेवकों, विभिन्न कार्यों में नियुक्त भृत्यों तथा पदातियों-पैदल चलने वाले लोगों से घिरे थे, क्रमशः आगे रवाना किये गये।
तत्पश्चात् चक्ररत्न, छत्ररत्न, दण्डरत्न, असिरत्न, मणिरत्न, काकणीरत्न-ये सात एकेन्द्रिय रत्न यथाक्रम से चले। उनके पीछे क्रमशः नैसर्प, पाण्डुक, (पिंगलक, सर्वरत्न,महापद्म, काल, महाकाल, माणवक) तथा शंख-ये नौ निधियाँ चलीं। उनके बाद सोलह हजार देव चले। उनके पीछे बत्तीस हजार राजा चले। उनके पीछे सेनापतिरत्न, गाथापतिरत्न, वर्धकिरत्न तथा पुरोहितरत्न ने प्रस्थान किया। तत्पश्चात् स्त्रीरत्न-परम सुन्दरी सुभद्रा, बत्तीस हजार ऋतुकल्याणिकाएँ -जिनका स्पर्श ऋतु के प्रतिकूल रहता है-शीतकाल में उष्ण तथा ग्रीष्मकाल में शीतल रहता है, ऐसी राजकुलोत्पन्न कन्याएँ तथा बत्तीस हजार जनपदकल्याणिकाएँजनपद के अग्रगण्य पुरुषों की कन्याएँ यथाक्रम चलीं। उनके पीछे बत्तीस-बत्तीस अभिनेतव्य प्रकारों से परिबद्ध-संयुक्त बत्तीस हजार नाटक-नाटकमंडलियाँ प्रस्थित हुई। तदनन्तर तीन सौ साठ सूपकार-रसोइये, अठारह श्रेणि-प्रश्रेणि जन-१. कुंभकार, २. पटेल-ग्रामप्रधान, ३. स्वर्णकार, ४. सूपकार, ५. गन्धर्वसंगीतकार-गायक, ६. काश्यपक-नापित, ७. मालाकार-माली, ८. कक्षकर, ९. ताम्बूलिक-ताम्बूल लगाने वाले तमोली-ये नौ नारुक तथा १. चर्मकार-चमार-जूते बनाने वाले, २. यंत्रपीलक-तेली, ३. ग्रन्थिक, ४. छिपक-छीपे, ५. कांस्यक-कसेरे, ६.सीवक-दर्जी, ७. गोपाल-ग्वाले, ८. भिल्ल-भील तथा ९. धीवर-ये नौ कारुक-इस प्रकार कुल अठारह श्रेणि-प्रश्रेणि जन चले।
उनके पीछे क्रमशः चौरासी लाख घोड़े, चौरासी लाख हाथी, छियानवै करोड़ मनुष्य-पदाति जन चले। तत्पश्चात् अनेक राजा-माण्डलिक नरपति, ईश्वर-ऐश्वर्यशाली या प्रभावशाली पुरुष, तलवरराजसम्मानित विशिष्ट नागरिक, सार्थवाह आदि यथाक्रम चले।
तत्पश्चात् असिग्राह-तलवारधारी, लष्टिग्राह-लट्ठधारी, कुन्तग्राह-भालाधारी, चापग्राह-धनुर्धारी,