Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
२. पाण्डुक निधि-गिने जाने योग्य-दीनार, नारिकेल आदि, मापे जाने वाले धान्य आदि, तोले जाने वाले चीनी, गुड़ आदि, कमल जाति के उत्तम चावल आदि धान्यों के बीजों को उत्पन्न करने में समर्थ होती है।
३. पिंगलक निधि–पुरुषों, नारियों, घोड़ों तथा हाथियों के आभूषणों को उत्पन्न करने की विशेषता लिये होती है।
४. सर्वरत्न निधि-चक्रवर्ती के चौदह उत्तम रत्नों को उत्पन्न करती है। उनमें चक्ररत्न, दण्डरत्न, असिरत्न, छत्ररत्न, चर्मरत्न, मणिरत्न तथा काकणीरत्न-ये सात एकेन्द्रिय होते हैं। सेनापतिरत्न, गाथापतिरत्न, वर्धकिरत्न, पुरोहितरत्न, अश्वरत्न, हस्तिरत्न तथा स्त्रीरत्न-ये सात पंचेन्द्रिय होते हैं।
५. महापद्म निधि-सब प्रकार के वस्त्रों को उत्पन्न करती है। वस्त्रों के रंगने, धोने आदि समग्र सज्जा के निष्पादन की वह विशेषता लिये होती है।
६. काल निधि-समस्त ज्योतिषशास्त्र के ज्ञान, तीर्थंकर-वंश, चक्रवर्ति-वंश तथा बलदेव-वासुदेववंश-इन तीनों में जो शुभ, अशुभ घटित हुआ, घटित होगा, घटित हो रहा है, उन सबके ज्ञान, सौ प्रकार के शिल्पों के ज्ञान, उत्तम, मध्यम तथा अधम कर्मों के ज्ञान को उत्पन्न करने की विशेषता लिये होती है।
७. महाकाल निधि-विविध प्रकार के लोह, रजत, स्वर्ण, मणि, मोती, स्फटिक तथा प्रवाल-मूंगे आदि के आकरों-खानों को उत्पन्न करने की विशेषतायुक्त होती है।
८. माणवक निधि-योद्धाओं, आवरणों-शरीर को आवृत करने वाले, सुरक्षित रखने वाले कवच आदि के प्रहरणों-शस्त्रों के, सब प्रकार की युद्ध-नीति के-चक्रव्यूह, शकटव्यूह, गरुडव्यूह आदि की रचना से सम्बद्ध विधिक्रम के तथा साम, दाम, दण्ड एवं भेदमूलक राजनीति के उद्भव की विशेषता युक्त होती है।
९. शंख निधि-सब प्रकार की नृत्य विधि, नाटक-विधि-अभिनय, अंग-संचालन, मुद्राप्रदर्शन आदि की, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-इन चार पुरुषार्थों के प्रतिपादक काव्यों की अथवा संस्कृत, अपभ्रंश एवं संकीर्ण-मिली-जुली भाषाओं में निबद्ध काव्यों की अथवा गद्य-अच्छन्दोबद्ध, पद्य-छन्दोबद्ध, गेय-गाये जा सकने योग्य, गीतिबद्ध, चौर्ण-निपात एवं अव्यय बहुल रचनायुक्त काव्यों की उत्पत्ति की विशेषता लिये होती है, सब प्रकार के वाद्यों को उत्पन्न करने की विशेषतायुक्त होती है।
उनमें से प्रत्येक निधि का अवस्थान आठ-आठ चक्रों के ऊपर होता है-जहाँ-जहाँ ये ले जाई जाती हैं, वहाँ-वहाँ ये आठ चक्रों पर प्रतिष्ठित होकर जाती हैं। उनकी ऊँचाई आठ-आठ योजन की, चौड़ाई नौ-नौ योजन की तथा लम्बाई बारह-बारह योजन की होती है। उनका आकार मंजूषा-पेटी जैसा होता है। गंगा जहाँ समुद्र में मिलती है, वहाँ उनका निवास है। उनके कपाट वैडूर्य मणिमय होते हैं। वे स्वर्णघटित होती हैं। विविध प्रकार के रत्नों से परिपूर्ण-संभृत होती हैं। उन पर चन्द्र, सूर्य तथा चक्र के आकार के चिह्न होते हैं। उनके द्वारों की रचना अनुसम-अपनी रचना के अनरूप संगत, अविषम होती है। निधियों