Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय वक्षस्कार]
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समुद्र से, दक्षिण में वैताढ्य पर्वत से एवं उत्तर में लघु हिमवान पर्वत से मर्यादित था, तथा सम-विषम अवान्तरक्षेत्रीय कोणवर्ती भागों को साधा। श्रेष्ठ, उत्तम रत्न भेंट में प्राप्त किये। वैसा कर सेनापति सुषेण जहाँ गंगा महानदी थी, वहाँ आया। वहाँ आकर उसने निर्मल जल की ऊँची उछलती लहरों से युक्त गंगा महानदी को नौका के रूप में परिणत चर्मरत्न द्वारा सेनासहित पार किया। पार कर जहाँ राजा भरत था, सेना का पड़ाव था, जहाँ बाह्य उपस्थानशाला थी, वहाँ आया। आकर आभिषेक्य हस्तिरत्न से नीचे उतरा। नीचे उतरकर उसने उत्तम, श्रेष्ठ रत्न लिये, जहाँ राजा भरत था, वह वहाँ आया। वहाँ आकर दोनों हाथ जोड़े, अंजलिं बाँधे राजा भरत को जय-विजय शब्दों द्वारा वर्धापित किया। वर्धापित कर उत्तम, श्रेष्ठ रत्न, जो भेंट में प्राप्त हुए थे, राजा को समर्पित किये। राजा भरत ने सेनापति सुषेण द्वारा समर्पित उत्तम, श्रेष्ठ रत्न स्वीकार किये। रत्न स्वीकार कर सेनापति सुषेण का सत्कार किया, सम्मान किया। उसे सत्कृत, सम्मानित कर वहाँ से विदा किया।
आगे का प्रसंग पहले आये वर्णन की ज्यों है। . तत्पश्चात् एक समय राजा भरत ने सेनापतिरत्न सुषेण को बुलाया। बुलाकर उससे कहा-देवानुप्रिय! जाओ, खण्डप्रपात गुफा के उत्तरी द्वार के कपाट उद्घाटित करो।
आगे का वर्णन तमिस्रा गुफा की ज्यों संग्राह्य है।
फिर राजा भरत उत्तरी द्वार से गया। सघन अन्धकार को चीर कर जैसे चन्द्रमा आगे बढ़ता है, उसी - तरह खण्डप्रपात गुफा में प्रविष्ट हुआ, मण्डलों का आलेखन किया। खण्डप्रपात गुफा के ठीक बीच के भाग से उन्मग्नजला तथा निमग्नजला नामक दो बड़ी नदियाँ निकलती हैं।
इनका वर्णन पूर्ववत् है। केवल इतना अन्तर है, ये नदियां खण्डप्रपात गुफा के पश्चिमी भाग से निकलती हुई, निकलकर आगे बढ़ती हुई पूर्वी भाग में गंगा महानदी में मिल जाती हैं।
शेष वर्णन पूर्ववत् संग्राह्य है। केवल इतना अन्तर हैं, पुल गंगा के पश्चिमी किनारे पर बनाया।
तत्पश्चात् खण्डप्रपात गुफा के दक्षिणी द्वार के कपाट क्रौञ्चपक्षी की ज्यों जोर से आवाज करते हुए सरसराहट के साथ स्वयमेव अपने स्थान से सरक गये। खुल गये। चक्ररत्न द्वारा निर्देशित मार्ग का अनुसरण करता हुआ, (समुद्र के गर्जन की ज्यों सिंहनाद करता हुआ, अनेक राजाओं से संपरिवृत) राजा भरत निविड अन्धकार को चीर कर आगे बढ़ते हुए चन्द्रमा की ज्यों खण्डप्रपात गुफा के दक्षिणी द्वार से निकला। नवनिधि-प्राकट्य
८२. तए णं से भरहे राया गंगाए महाणईए पच्चथिमिल्ले कूले दुवालसजोअणायाम णवजोअणविच्छिण्णं (वरणगरसरिच्छं)विजयक्खंधावारणिवेसं करेइ।अवसिटुंतंचेव जाव निहिरयणाणं अट्ठमभत्तं पगिण्हइ। तए णं से भरहे राया पोसहसाला जाव णिहिरयणे मणसि