Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय वक्षस्कार
विनीता राजधानी
५१. से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ-भरहे वासे भरहे वासे?
गोयमा ! भरहे णं वासे वेअड्डस्स पव्वयस्स दाहिणेणं चोद्दसुत्तरं जोअणसयं एक्कारस य एगूणवीसइभाए जोअणस्स,अबाहाए लवणसमुदस्स उत्तरेणं, चोद्दसुत्तरंजोअणसयं एक्कारस य एगूणबीसइभाए जोअणस्स, अबाहाए गंगाए महाणईए पच्चत्थिमेणं, सिंधूए महाणईए पुरस्थिमेणं, दाहिणद्धभरहमज्झिल्लतिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं विणीआणामं रायहाणी पण्णत्ता-पाईणपडीणायया, उदीणदाहिणवित्थिण्णा, दुवालसजोअणायामा, णवजोअणवित्थिण्णा,धणवइमतिणिम्माया, चामीयरपागार-णाणामणि-पञ्चवण्णकविसीसग-परिमंडि
आभिरामा, अलकापुरीसंकासा, पमुइयपक्कीलिआ, पच्चक्खं देवलोगभूआ, रिद्धिस्थिमिअसमिद्धा, पमुइअजणजाणवया जाव' पडिरूवा।
[५१] भगवन् ! भरतक्षेत्र का 'भरतक्षेत्र' यह नाम किस कारण पड़ा ?
गौतम ! भरतक्षेत्र-स्थित वैताढ्य पर्वत के दक्षिण के ११४११) योजन तथा लवणसमुद्र के उत्तर में ११४११) योजन की दूरी पर, गंगा महानदी के पश्चिम में और सिन्धू महानदी के पूर्व में दक्षिणार्ध भरत के मध्यवर्ती तीसरे भाग के ठीक बीच में विनीता नामक राजधानी है।
वह पूर्व-पश्चिन लम्बी एवं उत्तर-दक्षिण चौड़ी है। वह लम्बाई में बारह योजन तथा चौड़ाई में नौ योजन है। वह ऐसी है, मानो धनपति-कुबेर ने अपने बुद्धि-कौशल से उसकी रचना की हो। स्वर्णमय प्राकार-परकोटों, तद्गत विविध प्रकार के मणिमय पंचरंगे कपि-शीर्षकों-कंगूरों-भीतर से शत्रु-सेना को देखने आदि हेतु निर्मित बन्दर के मस्तक के आकार के छेदों से सुशोभित एवं रमणीय है। वह अलकापुरीसदृश है। वह प्रमोद और प्रक्रीडामय है-वहाँ अनेक प्रकार के आनन्दोत्सव. खेल आदि चलते रहते हैं. मानो प्रत्यक्ष स्वर्ग का ही रूप हो, ऐसी लगती है। वह वैभव, सुरक्षा तथा समृद्धि से युक्त है। वहाँ के नागरिक एवं जनपद के अन्य भागों से आये हुए व्यक्ति आमोद-प्रमोद के प्रचुर साधन होने से बड़े प्रमुदित रहते हैं। वह प्रतिरूप-मन में बस जाने वाली-अत्यधिक सुन्दर है। चक्रवर्ती भरत
५२. तत्थ णं विणीआए रायहाणीए भरहे णामं राया चाउरंतचक्कवट्टी समुप्पज्जित्था, महयाहिमवंत-महंतमलय-मंदर- (महिंदसारे, अच्चंतविसुद्धदीहरायकुलवंससुप्पसूए, णिरंतरं
१. देखें सूत्र संख्या १२