Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय वक्षस्कार]
चक्करयणे समुप्पण्णे, तं एयण्णं देवाणुप्पियाणं पियट्टयाए पियं णिवेएमि, पियं भे भयउ।"
तएणं से भरहे राया तस्स आउहघरियस्य अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म हट्ठ-(तुट्ठचित्तमाणंदिए, णदिए, पीइमणे, परम-) सोमणस्सिए, वियसियवरकमलणयणवयणे, पयलिअवर-कडगतुडिअकेऊरमउडकुण्डलहारविरायंतरइअवच्छे, पालंबपलंबमाणघोलंतभूसणधरे, ससंभमं, तुरिअं, चवलंणरिंदे सीहासणाओअब्भुटेइ, अब्भुट्ठित्ता, पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पाउआओ ओमुअइ, अमुइत्ता एगसाडिअंउत्तरासंगं करेइ, करेत्ता, अंजलिमउलिअग्गहत्थे चक्करयणाभिमुहे सत्तट्ठपयाइं अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचित्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि णिहट्ट करयल-जाव १-अंजलिं कटु चक्करयणस्स पणामं करेइ, करेत्ता तस्स आउहयरियस्स अहामालियं मउडवज्जं ओमोयं दलयइ, दलिइत्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयइ, दलइत्ता सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ, पडिविसज्जेइत्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे।
[५३] एक दिन राजा भरत की आयुधशाला में दिव्य चक्ररत्न उत्पन्न हुआ।
आयुधशाला के अधिकारी ने राजा भरत की आयुधशाला में समुत्पन्न दिव्य चक्ररत्न को देखा। देखकर वह हर्षित एवं परितुष्ट हुआ, चित्त में आनन्द तथा प्रसन्नता का अनुभव करता हुआ अत्यन्त सौम्य मानसिक भाव और हर्षातिरेक से विकसितहृदय हो उठा। जहाँ दिव्य चक्र-रत्न था, वहाँ आया, तीन बार आदक्षिणा-प्रदक्षिणा की, हाथ जोड़ते हुए (उन्हें मस्तक के चारों ओर घुमाते हुए अंजलि बाँधे) चक्ररत्न को प्रणाम किया, प्रणाम कर आयुधशाला से निकला, निकलकर जहाँ बाहरी उपस्थानशाला में राजा भरत था, आया। आकर उसने हाथ जोड़ते हुए राजा को 'आपकी जय हो, आपकी विजय हो'-इन शब्दों द्वारा वर्धापित किया। वर्धापित कर वह बोला-देवानुप्रिय की आपकी आयुधशाला में दिव्य चक्ररत्न उत्पन्न हुआ है, आपकी प्रियतार्थ यह प्रिय संवाद निवेदित करता हूँ। आपको प्रिय-शुभ हो। '
तब राज भरत आयुधशाला के अधिकारी से यह सुनकर हर्षित हुआ, (परितुष्ट हुआ, मन में आनन्द एवं प्रसन्नता का अनुभव किया,) अत्यन्त सौम्य मनोभाव तथा हर्षातिरेक से उसका हृदय खिल उठा। उसके श्रेष्ठ कमल जैसे नेत्र एवं मुख विकसित हो गये। उसके हाथों में पहने हुए उत्तम कटक, त्रुटित, केयूर, मस्तक पर धारण किया हुआ मुकुट, कानों के कुंडल चंचल हो उठे, हिल उठे, हर्षातिरेकवश हिलते हुए हार से उनका वक्षःस्थल अत्यन्त शोभित प्रतीत होने लगा। उसके गले में लटकती हुई लम्बी पुष्पमालाएँ चंचल हो उठीं। राजा उत्कण्ठित होता हुआ बड़ी त्वरा से, शीघ्रता से सिंहासन से उठा, उठकर पादपीठ पर पैर रखकर नीचे उतरा, नीचे उतरकर पादुकाएँ उतारी एक वस्त्र का उत्तरासंग किया, हाथों को अंजलिबद्ध किये हुए चक्ररत्न के सम्मुख सात-आठ कदम चला, चलकर बायें घुटने को ऊँचा किया, ऊँचा कर दायें घुटने को भूमि पर टिकाया, हाथ जोड़ते हुए, उन्हें मस्तक के चारों ओर घुमाते हुए अंजलि बाँध चक्ररत्न को
१. देखें सूत्र यही