Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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७८ ]
[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र तीसेणं समाए तेवीसं तित्थयरा, इक्कारस चक्कवट्टी,णव बलदेवा, णव वासुदेवा समुप्पजित्था।
[४४] आयुष्मन् श्रमण गौतम ! उस समय का-तीसरे आरक का दो सागरोपम कोडाकोडी काल व्यतीत हो जाने पर अवसर्पिणी काल का दुःषम-सुषमा नामक चौथा आरक प्रारम्भ होता है। उसमें अनन्त वर्ण-पर्याय आदि का क्रमशः ह्रास होता जाता है।
भगवन् ! उस समय भरतक्षेत्र का आकार-स्वरूप कैसा होता है ?
गौतम! उस समय भरतक्षेत्र का भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय होता है। मुरज के ऊपरी भागचर्मपुट जैसा समतल होता है, कृत्रिम तथा अकृत्रिम मणियों से उपशोभित होता है।
भगवन् ! उस समय मनुष्यों का आकार-स्वरूप कैसा होता है ?
गौतम ! उन मनुष्यों के छह प्रकार के संहनन होते हैं, छह प्रकार के संस्थान होते हैं। उनकी ऊँचाई अनेक धनुष-प्रमाण होती है। जघन्य अन्तर्मुहूर्त का तथा उत्कृष्ट पूर्वकोटि का आयुष्य भोगकर उनमें से कई नरक-गति में, (कई तिर्यञ्च-गति में, कई मनुष्य गति में) तथा कई देव-गति में जाते हैं, कई सिद्ध, बुद्ध, (मुक्त एवं परिनिर्वृत्त होते हैं,) समस्त दुःखों का अन्त करते हैं।
उस काल में तीन वंश उत्पन्न होते हैं-अर्हत् वंश, चक्रवर्ती-वंश तथा दशारवंश-बलदेव-वासुदेववंश। उस काल में तेवीस तीर्थंकर ग्यारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव तथा नौ वासुदेव उत्पन्न होते हैं। अवसर्पिणी : दुःषमा आरक
४५. तीसेणं समाए एक्काए सागरोवमकोडाकोडीए बायलीसाए वाससहस्सेहिं ऊणिआए काले वीइक्कंते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं तहेव जाव ' परिहाणीए परिहायमाणे २ एत्थ णं दूसमाणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो !
तीस णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोआरे भविस्सइ ?
गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भविस्सइ, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा मुइंगपुक्खरेइ वा जाव णाणामणिपंचवण्णेहिं कित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहिं चेव।
तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स मणुआणं केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते?
गोयमा ! तेसिं मणुआणं छव्विहे संघयणे, छविहे संठाणे, बहुइओ रयणीओ उद्धं उच्चत्तेणं, जहण्णेणंअंतोमुहत्तं, उक्कोसेणंसाइरेगंवाससयंआउअंपालेंति, पालेत्ताअप्पेगइआणिरयगामी, जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।
तीसे णं समाए पच्छिमे तिभागे गणधम्मे, पासंडधम्मे, रायधम्मे, जायतेए, धम्मचरणे अ वोच्छिज्जिस्सइ।
[४५] आयुष्मन् श्रमण गौतम ! उस समय के-चतुर्थ आरक के बयालीस हजार वर्ष कम एक १. देखें सूत्र संख्या २८ २. देखें सूत्र संख्या ६ ३. देखें सूत्र संख्या १२