Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
चलते हुए वे जहाँ सिद्धार्थवन उद्यान था, जहाँ उत्तम अशोक वृक्ष था, वहां आये। आकर उस उत्तम वृक्ष के नीचे शिविका को रखवाया, उससे नीचे उतरे। नीचे उतरकर स्वयं अपने गहने उतारे। गहने उतारकर उन्होंने स्वयं आस्थापूर्वक चार मुष्टियों द्वारा अपने केशों का लोच किया। वैसा कर निर्जल बेला किया। फिर उत्तराषाढा नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर अपने चार हजार उग्र-आरक्षक अधिकारी, भोगविशेष रूप से समादृत राजपुरुष या अपने मन्त्रिमंडल के सदस्य, राजन्य-राजा द्वारा वयस्य रूप में-मित्र रूप में स्वीकृत विशिष्ट जन या राजा के परामर्शक मंडल के सदस्य, क्षत्रिय-क्षत्रिय वंश के राजकर्मचारीवृन्द के साथ एक देव-दूष्य-दिव्य वस्त्र ग्रहण कर मुण्डित होकर अगार से-गृहस्थावस्था से अनगारितासाधुत्व, जहाँ अपना कोई घर नहीं होता, सारा विश्व ही घर होता है, में प्रव्रजित हो गये।
विवेचन-पुरष की बहत्तर कलाओं का इस सूत्र में उल्लेख हुआ है। कलाओं का राजप्रश्नीय सूत्र आदि में वर्णन आया है। तदनुसार वे निम्नांकित हैं
१. लेख-लेखन, २. गणित, ३. रूप, ४. नाट्य-अभिनय युक्त, अभिनय रहित तांडव आदि नृत्य, ५. गीत-गन्धर्व-कला या संगीत-विद्या, ६. वादित-वाद्य बजाने की कला, ७. स्वरगत-संगीत के मूलभूत षड्ज, ऋषभ आदि स्वरों का ज्ञान, ८. पुष्करगत-मृदंग आदि बजाने का ज्ञान, ९. समताल-संगीत में गीत तथा वाद्यों के सुर एवं ताल-समन्वय या संगति का ज्ञान, १०. द्यूत-जूआ खेलना, ११. जनवाद-चूत-विशेष, १२. पाशक-पासे खेलना, १३. अष्टापद-चौपड़ द्वारा जुआ खेलने की कला, १४. पुर:काव्य-शीघ्रकवित्व-किसी भी विषय पर तत्काल-काव्य रचना करना, आशुकविता
करना, १५. दकमृतिका-पानी तथा मिट्टी को मिलाकर विविध वस्तुएँ निर्मित करने की कला, अथवा पानी
तथा मिट्टी के गुणों का परीक्षण करने की कला, १६. अन्नविधि-भोजन पकाने की कला, . १७. पानविधि-पानी पीने आदि विषय में गुण-दोष का विज्ञान, १८. वस्त्रविधि-वस्त्र पहनने आदि का विशिष्ट ज्ञान, १९. विलेपनविधि-देह पर सुरभित, स्निग्ध पदार्थों का, औषधि विशेष का लेप करने की विधि,
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