Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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७० ]
भगवान् अभिजित् नक्षत्र में परिनिर्वृत्त - सिद्ध, मुक्त हुए ।
परिनिर्वाण : देवकृत महामहिमा : महोत्सव
[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
४०. उसमे णं अरहा कोसलिए वज्ज-रिसह - नाराय - संघयणे समचउरंस-संठाण - संठिए, पंचणुसयाई उद्धं उच्चत्तेणं होत्था ।
उसभे णं अरहा वीसं पुव्वसयसहस्साइं कुमारवासमज्झे वसित्ता, तेवट्ठि पुव्वसयसहस्साइं महारज्जवासमज्झे वसित्ता, तेसीइं पुव्वसयसहस्साइं अगारवासमज्झे वसित्ता, मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए। उसभे णं अरहा एगं वाससहस्सं छउमत्थपरिआयं पाउणित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं वाससहस्सूणं केवलिपरिआयं पाउणित्ता, एगं पुव्वसहस्सं बहुपडिपुण्णं सामण्णपरिआयं पाउणित्ता, चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं सव्वाउअं पालइत्ता जे से हेमंताणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे माहबहुले, तस्स णं माहबहुलस्स तेरसीपक्खेणं दसहिं अणगारसहस्सेहिं सद्धिं संपरिवुडे अट्ठावय-सेल-सिहरंसि चोद्दसमेणं भत्तेणं अपाणएणं संपलिअंकणिसण्णे पुव्वण्हकालसमसि अभीइणा णक्खत्तेणं जोगमुवागएगं सुसमदूसमाए समाए एगूणणवउईहिं पक्खेहिं सेसेहिं कालगए वीइक्कंते, समुज्जाए छिण्ण-जाइ - जरा - मरण - बंधणे, सिद्धे, बुद्धे, मुत्ते, अंतगडे, परिणिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे।
[४०] कौशलिक भगवान् ऋषभ वज्र - ऋषभ नाराच संहनन युक्त, सम-चौरस, संस्थान - संस्थित तथा पाँच सौ धनुष दैहिक ऊँचाई युक्त थे ।
वे बीस लाख पूर्व तक कुमारावस्था में तथा तिरेसठ लाख पूर्व महाराजावस्था में रहे । यतिरासी लाख पूर्व गृहवास में रहे। तत्पश्चात् मुंडित होकर अगार - वास से अनगार - धर्म में प्रव्रजित हुए। वे हजार वर्ष छद्मस्थ-पर्याय- असर्वज्ञावस्था में रहे। एक हजार वर्ष कम एक लाख पूर्व वे केवलि-पर्यायसर्वज्ञावस्था में रहे । इस प्रकार परिपूर्ण एक लाख पूर्व तक श्रामण्य - पर्याय - साधुत्व का पालन कर - चौरासी लाख पूर्व का परिपूर्ण आयुष्य भोगकर हेमन्त के तीसरे मास में, पांचवें पक्ष में- माघ मास कृष्ण पक्ष में तेरस के दिन दस हजार साधुओं से संपरिवृत्त अष्टापद पर्वत के शिखर पर छह दिनों के निर्जल उपवास में पूर्वाह्न-काल में पर्यंकासन में अवस्थित, चन्द्र योग युक्त अभिजित् नक्षत्र में, जब सुषमा - दुःषमा आरक में नवासी पक्ष-तीन वर्ष साढ़े आठ मास बाकी थे, वे (जन्म, जरा एवं मृत्यु के बन्धन छिन्न कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अंतकृत, परिनिर्वृत्त) सर्व - दु:ख रहित हुए ।
४१. जं समयं च णं उसभे अरहा कोसलिए कालगए वीइक्कंते, सुमुज्जाए छिण्णजाइजरा-मरण-बंधणे, सिद्धे, बुद्धे (मुत्ते, अंतगडे, परिणिव्वुडे, ) सव्व- दुक्खप्पहीणे, तं समयं च णं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो आसणे चलिए । तए णं से सक्के देविंदे, देवराया, आसणं चलिअं पासइ, पासित्ता ओहिं पउंजइ, परंजित्ता भयवं तित्थयरं ओहिणा आभोएइ, आभोत्ता एवं वयासी - परिणिव्वुए खलु जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे उसके अरहा कोसलिए, तं जीअमेअं तीअपच्चुप्पण्णमणागयाणं सक्काणं देविंदाणं, देवराईणं तित्थगराणं परिनिव्वाणमहिमं करेत्तए ।