Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
७. वावि ८.सोत्थिअ ९. पडाग १०. जव ११. मज्छ १२. कुम्म १३. रहवर १४. मगरज्झय १५. अंक १६. थाल १७. अंकुस १८. अट्ठावय १९. सुपइट्ठग २०. मयूर २१. सिरिअभिसेअ २२. तोरण २३. मेइणि २४. उदहि २५. गिरि २६. वरभवण २७. वरआयंस २८. सलीलगय २९. उसभ ३०. सीह ३१. चामर ३२. उत्तमपसस्थबत्तीसलक्खणधराओ, हंससरिसगईओ,कोइलमहुरगिरसुस्सराओ, कंताओ, सव्वस्स अणुमयाओ, ववगयवलिपलिअवंगदुव्वण्णवाहिदोहग्गसोग मुक्काओ, उच्चत्तेण यणराण थोबणमस्सिआओ, सभावसिंगारचारुबेसाओ, संगयगयहसियभणिअचिट्ठिअविलाससंलावणिउणजुत्तोवयारकुसलाओ, सुंदरथणजहण वयणकर-चलणणयणलावण्णवण्णरूपजोव्वणविलासकलिआओ, णंदणवणविवरचारिणीउव्व अच्छाओ, भरहवासमाणुसच्छराओ,अच्छेरगपेच्छणिज्जाओ, पासाईआओ जाव' पडिरूवाओ।
३. ते णं मणुआ ओहस्सरा हंसस्सरा, कोंचस्सरा, णंदिस्सरा, णंदिघोसा, सीहस्सरा, सीहघोसा, सुसरा, सुसरणिग्योसा, छायायवोजोविअंगमंगा, वन्जरिसहनारायसंघयणा, समचउरसंठाण संठिआ, छविणिरातंका, अणुलोमवाउवेगा, कंकग्गहणी, कवोयपरिणामा, सउणिपोसपिटुंतरोरुपरिणया, छद्धणुसहस्समूसिआ।
तेसि णं मणुआणं वे छप्पणा पिट्ठकरंडकसया पण्णत्ता समणाउसो! पउमुप्पलगंधसरिसणीसाससुरभिवयणा, ते णं मणुआ पगईउवसंता, पगईपयणुकोहमाणमायालोभा, मिउमद्दवसंपन्ना, अल्लीणा, भद्दगा,विणीआ,अप्पिच्छा, असण्णिहिसंचया,विडिमंतरपरिवसणा, जहिच्छिअकामकामिणो।
[२८] उस समय भरतक्षेत्र में मनुष्यों का आकार-स्वरूप कैसा था ?
गौतम ! उस समय वहाँ के मनुष्य बड़े सुन्दर, दर्शनीय, अभिरूप एवं प्रतिरूप थे। उनके चरणपैर सुप्रतिष्ठित-सुन्दर रचना युक्त तथा कछुए की तरह उठे हुए होने से मनोज्ञ प्रतीत होते थे। उनकी पगथलियाँ लाल कमल के पत्ते के समान मृदुल सुकुमार और कोमल थीं। उनके चरण पर्वत, नगर, मगर, सागर एवं चक्ररूप उत्तम मंगलचिह्नों से अंकित थे। उनके पैरों की अंगुलियां क्रमशः आनुपातिक रूप में छोटी-बड़ी एवं सुसंहत-सुन्दर रूप में एक दूसरी से सटी हुई थीं। पैरों के नख उन्नत, पतले, तांबे की तरह कुछ कुछ लाल तथा स्निग्ध-चिकने थे। उनके टखने सुन्दर, सुगठित एवं निगूढ थे-मांसलता के कारण बाहर नहीं निकले हुए थे। उनकी पिंडलियां हरिणी की पिंडलियों, कुरुविन्द घास तथा कते हुए सूत की गेडी की तरह क्रमशः उतार सहित गोल थीं। उनके घुटने डिब्बे के ढक्कन की तरह निगूढ थे। हाथी की सूंड की तरह जंघाएँ सुगठित थीं। श्रेष्ठ हाथी के तुल्य पराक्रम, गंभीरता और मस्ती लिये उनकी चाल थी। प्रमुदित-रोग, शोक आदि रहित-स्वस्थ, उत्तम घोड़े तथा उत्तम सिंह की कमर के समान उनकी कमर गोल घेराव लिए थी। उत्तम घोड़े के सुनिष्पन्न गुप्तांग की तरह उनके गुह्य भाग थे। उत्तम जाति के घोड़े की तरह उनका शरीर मलमूत्र विसर्जन की अपेक्षा से निर्लेप था। उनकी देह के मध्यभाग त्रिकाष्ठिका, मूसल तथा दर्पण के हत्थे १. देखें सूत्र यही