Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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द्वितीय वक्षस्कार]
[४७
मित्र होकर बाद में अमित्र-भाव-शत्रु-भाव रखने वाले होते हैं ?
गौतम! ऐसा नहीं होता। वे मनुष्य वैरानुबन्ध-रहित होते हैं-वैर करना, उसके फल पर पश्चात्ताप करना इत्यादि भाव उनमें नहीं होते।
___(९) अत्थिं णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे मित्ताइ वा, वयंसाइ वा, णायएइ वा, संघाडिएइ वा, सहाइ वा, सुहीइ वा, संगएइ वा य
हंता अत्थि, णो चेव णं तेसिं मणुआणं तिव्वे राग-बंधणे समुप्पज्जइ।
(९) भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में मित्र-स्नेहास्पद व्यक्ति, वयस्य-समवयस्क साथी, ज्ञातक-प्रगाढतर स्नेहयुक्त स्वजातीय जन अथवा सहज परिचित व्यक्ति, संघाटिक-सहचर, सखा-एक साथ खाने-पीने वाले प्रगाढतम स्नेहयुक्त मित्र, सुहृद्-सब समय साथ देने वाले, हित चाहने वाले, हितकर शिक्षा देने वाले साथी, सांगतिक-साथ रहने वाले मित्र होते हैं ?
गौतम ! ये सब वहाँ होते हैं, परन्तु उन मनुष्यों का उनमें तीव्र राग-बन्धन उत्पन्न नहीं होता।
(१०) अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे आवाहाइ वा, बिवाहाइ वा, जण्णाइ वा, सद्धाइ वा, थालीपगाइ वा, मियपिंड-निवेदणाइ वा ?
णो इणढे समढे, ववगय-आवाह-विवाह-जण्णं-सद्ध-थालीपाक-मियपिंड-निवेदणाइ वा णं ते मणुआ पण्णत्ता समणाउसो !
(१०) भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्रमें आवाह-विवाह से पूर्व ताम्बूल-दानोत्सव अथवा वाग्दान रूप उत्सव, विवाह-परिणयोत्सव, यज्ञ-प्रतिदिन अपने-अपने इष्टदेव की पूजा, श्राद्ध-पितृ-क्रिया, स्थालीपाक-लोकानुपात मृतक-क्रिया-विशेष तथा मृत-पिण्ड-निवेदन-मृत पुरुषों के लिए श्मशानभूमि में तीसरे दिन, नौवें दिन आदि पिंड-समर्पण-ये सब होते हैं ?
' आयुष्मन् श्रमण गौतम! ये सब नहीं होते। वे मनुष्य आवाह, विवाह, यज्ञ, श्राद्ध, स्थालीपाक तथा मृत-पिण्ड निवेदन से निरपेक्ष होते हैं। - (११) अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे इंदमहाइ वा, खंदमहाइ वा, णागमहाइ वा, जक्खमहाइ वा, भूअमहाइवा, अगडमहाइ वा, तडागमहाइ वा, दहमहाइ वा, णदीमहाइ वा, रुक्खमहाइ वा, पव्वयमहाइ वा, थूभमहाइ वा, चेइयमहाइ वा ?
णो इणढे समढे, ववगय-महिमा णं ते मणुआ पण्णत्ता।
[११] भगवन् ! क्य उस समय भरतक्षेत्र में इन्द्रोत्सव, स्कन्दोत्सव-कार्तिकेयोत्सव, नगोत्सव, । यक्षोत्सव, कूपोत्सव, तडागोत्सव, द्रहोत्सव, नद्युत्सव, वृक्षोत्सव, पर्वतोत्सव, स्तूपोत्सव, तथा चैत्योत्सवये सब होते हैं ?
गौतम! ये नहीं होते वे मनुष्य उत्सवों से निरपेक्ष होते हैं। (१२) अस्थि णं भंते ! तीसे समाए णड-पेच्छाइ वा, णट्ट-पेच्छाइ वा, जल्ल-पेच्छाइ