Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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द्वितीय वक्षस्कार]
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यों पालन तथा संगोपन कर वे खांस कर, छींक कर, जम्हाई लेकर शारीरिक कष्ट, व्यथा तथा परिताप का अनुभव नहीं करते हुए, काल-धर्म को प्राप्त होकर-मर कर स्वर्ग में उत्पन्न होते हैं। उन मनुष्यों का जन्म स्वर्ग में ही होता है, अन्यत्र नहीं।
(६) तीसे णं भंते! समाए भारहे वासे कइविहा मणुस्सा अणुसज्जित्था ?
गोयमा! छव्विहा पण्णत्ता, तंजहा-पम्हगंधा १, मिअगंधा २, अममा ३, तेअतली ४, सहा ५, सणिचरी ६।
(६) भगवन् ! उस समय भरतक्षेत्र में कितने प्रकार के मनुष्य होते हैं।
गौतम! छह प्रकार के मनुष्य कहे गए हैं-१. पद्मगन्ध-कमल के समान गंध वाले, २. मृगगंधकस्तूरी सदृश गंध वाले, ३. अमम-ममत्वरहित, ४. तेजस्वी, ५. सह-सहनशील तथा ६. शनैश्चारीउत्सुकता न होने से धीरे-धीरे चलने वाले।
विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में यौगलिकों की आयु जघन्य कुछ कम तीन पल्योपम तथा उत्कृष्ट-तीन पल्योपम जो कही गई है, वहाँ यह ज्ञातव्य है कि जघन्य कुछ कम तीन पल्योपम आयुष्य-परिमाण यौगलिक स्त्रियों से सम्बद्ध है।
___ यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि यौगलिक के आगे के भव का आयुष्य-बन्ध उनकी मृत्यु से छ: मास पूर्व होता है, जब वे युगल को जन्म देते हैं। अवसर्पिणी : सुषमा आरक
३३. तीसे णं समाए चउहिं सागरोवम-कोडाकोडीहिंकाले वीइक्कंतेहिं अणंते वण्णपज्जवेहिं अणंतेहिं गंधपज्जवेहिं, अणंतेहिं रसपज्जवेहिं, अणंतेहिं, फासपज्जवेहिं, अणंतेहिं संघयणपज्जवेहि, अणंतेहिं संठाणपज्जवेहिं, अणंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अणंतेहिं, आउपज्जवेहिं, अणंतेहिं गुरुलहुपज्जवेहिं, अणंतेहिं अगुरुलहुपज्जवेहिं , अणंतेहिं उट्ठाणकम्मबलवीरिअपुरसक्कारपरक्कमपज्जवेहिं, अणंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे परिहायमाणे एत्थ णं सुसमा णाम समाकाले पडिवजिंसु समणाउसो !
जंबूद्दीवेणं भंते ! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमाए समाए उत्तम-कट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोयारे होत्था ? '
गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा तं चेव जं सुसमसुसमाए पुव्ववण्णिअं, णवरं णाणत्तं चउधणुसहस्समूसिआ, एगे अट्ठावीसे पिट्ठकरंडकसए, छट्ठभत्तस्स आहारढे, चउसट्टि राइंदिआईसारक्खंति, दो पलिओवमाई
आऊ सेसंतंचेव।तीसे णं समाए चउव्विहा मणुस्सा अणुसज्जित्था, तंजहा-एक १, पउरजंघा २, कुसुमा ३, सुसमणा ४।
[३३] आयुष्मन् श्रमण गौतम! उस समय का-उस आरक का-प्रथम आरक का जब चार सागर