Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
भगवन्! उस आरक के अंतिम तीसरे भाग में भरतक्षेत्र में मनुष्यों का आकार - स्वरूप कैसा होता
गौतम ! उन मनुष्यों के छहों प्रकार के संहनन होते हैं, छहों प्रकार के संस्थान होते हैं। उनके शरीर की ऊँचाई सैकड़ों धनुष - परिमाण होती है। उनका आयुष्य जघन्यतः संख्यात वर्षों का तथा उत्कृष्टतः असंख्यात वर्षों का होता है। अपना आयुष्य पूर्ण कर उनमें से कई नरक -गति में, कई तिर्यंच-गति में, कई मनुष्य-गति में, कई देव-गति में उत्पन्न होते हैं और सिद्ध होते हैं, (बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, परिनिर्वृत्त होते हैं,) समग्र दुःखों का अन्त करते हैं ।
कुलकर-व्यवस्था
३५. तीसे णं समाए पच्छिमे तिभाए पलिओवमट्ठभागावसेसे एत्थ णं इमे पण्णरस कुलगरा समुपिज्जित्था, तंजहा - सुमई १, पडिस्सुई २, सीमंकरे ३, सीमंधरे ४, खेमंकरे ५, , खेमंधरे ६, विमलवाहणे ७, चक्खुमं ८, जसमं ९, अभिचंदे १०, चंदाभे ११, पसेणई १२, मरुदेवे १३, णाभी १४, उस १५, त्ति ।
[३५] उस आरक के अंतिम तीसरे भाग के समाप्त होने में जब एक पल्योपम का आठवां भाग अवशिष्ट रहता है तो ये पन्द्रह कुलकर - विशिष्ट बुद्धिशाली पुरुष उत्पन्न होते हैं - १. सुमति, २. प्रतिश्रुति, ३. सीमंकर, ४. सीमंधर, ५. क्षेमंकर, ६. क्षेमंधर, ७. विमलवाहन, ८. चक्षुष्मान्, ९. यशस्वान्, १०. अभिचन्द्र, ११. चन्द्राभ, १२. प्रसेनजित्, १३. मरुदेव, १४. नाभि, १५. ऋषभ।
३६. तत्थ णं सुमई १, पडिस्सुई २, सीमंकरे ३, सीमंधरे ४, खेमंकरे ५ - णं एतेसिं पंचण्हं कुलगराणं हक्कारे णामं दंडणीई होत्था ।
हक्कदंडेणं हया समाणा लज्जिआ, विलज्जिआ, वेड्ढा, भीआ, तुसिणी, विणओणया चिट्ठति ।
तत्थ णं खेमंधरे ६, विमलवाहणे ७, चक्खुमं ८, जसमं ९, अभिचंदे १०, - एतेसिं पंचण्हं कुलगराणं मक्कारे णामं दंडणीई होत्था ।
आमक्कारेणं दंडेणं हया समाणा लज्जिआ, विलज्जिआ, वेड्ढा, भीआ, सिणी, विणओणया चिट्ठति ।
तत्थ णं चंदाभे ११, पसेणई १२, मरुदेवे १३, णाभि १४, उसभाणं १५, - एतेसिं पंचण्हं कुलगराणं धिक्कारे णामं दंडणीई होत्था ।
ते णं मणुआ धिक्कारेणं दंडेणं हया समाणा जाव ' चिट्ठति ।
[३६] उन पन्द्रह कुलकरों में से सुमति, प्रतिश्रुति, सीमंकर, सीमन्धर तथा क्षेमंकर- इन पांच कुलकरों १. देखें सूत्र यही