Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जम्बूद्वापप्रज्ञाप्तसूत्र
के समान सुन्दर-टेढ़ी, काले बादल की रेखा के समान कृश-पतली, काली एवं स्निग्ध थीं। उनके कान मुख के साथ सुन्दर रूप में संयुक्त और प्रमाणोपेत-समुचित आकृति के थे, इसलिए वे बड़े सुन्दर लगते थे। उनके कपोल मांसल और परिपुष्ट थे। उनके ललाट निव्रण-फोड़े, फुन्सी आदि के घाव के चिह्न से रहित, समतल, सुन्दर एवं निष्कलंक अर्धचन्द्र-अष्टमी के चन्द्रमा के सदृश भव्य थे। उनके मुख पूर्ण चन्द्र के समान सौम्य थे। अत्यधिक सघन, सुबद्ध स्नायुबंध सहित, उत्तम लक्षण युक्त, पर्वत के शिखर के समान उन्नत उनके मस्तक थे। उनके उत्तमांग-मस्तक के ऊपरी भाग छत्राकार थे। उनकी केशान्तभूमि-त्वचा, जिस पर उनके बाल उगे हुए थे, अनार के फूल तथा सोने के समान दीप्तिमय-लाल, निर्मल और चिकनी थी। उनके मस्तक के केश बारीक रेशों से भरे सेमल के फल के फटने से निकलते हुए रेशों जैसे कोमल, विशद, प्रशस्त, सूक्ष्म, श्लक्ष्ण-मुलायम, सुरभित, सुन्दर, भुजमोचक, नीलम, भंग, नील, कज्जल तथा प्रहृष्ट-सुपुष्ट भ्रमरवृन्द जैसे चमकीले, काले घने, धुंघराले, छल्लेदार थे।) वे मनुष्य सुन्दर, (दर्शनीय, अभिरूप-मनोज्ञ) तथा प्रतिरूप थे-मन को आकृष्ट करने वाले थे।
भगवन् ! उस समय भरतक्षेत्र में स्त्रियों का आकार-स्वरूप कैसा था ?
गौतम! वे स्त्रियां-उस काल की स्त्रियाँ श्रेष्ठ तथा सर्वांगसुन्दरियाँ थीं। वे उत्तम महिलोचित गुणों से युक्त थीं। उनके पैर अत्यन्त सुन्दर, विशिष्ट प्रमाणोपेत, मृदुल, सुकुमार तथा कच्छप-संस्थान-संस्थितकछुए के आकार के थे। उनके पैरों की अंगुलियाँ सरल, कोमल, परिपुष्ट-मांसल एवं सुसंगत-परस्पर मिली हुई थीं। अंगुलियों के नख समुन्नत, रतिद-देखने वालों के लिए आनन्दप्रद, तलिन-पतले, ताम्रतांबे के वर्ण के हलके लाल, शुचि-मलरहित, स्निग्ध-चिकने थे। उनके जंघा-युगल रोम रहित, वृत्तवर्तुल या गोल, रम्य-संस्थान युक्त, उत्कृष्ट, प्रशस्त लक्षण युक्त, अत्यन्त सुभगता के कारण अकोप्य- अद्वेष्य थे। उनके जानु-मंडल सुनिर्मित-सर्वथा प्रमाणोपेत, सुगूढ तथा मांसलता के कारण अनुपलक्ष्य थे, सुदृढ स्नायु-बंधनों से युक्त थे। उनके ऊरु केले के स्तंभ जैसे आकार से भी अधिक सुन्दर, फोड़े, फुन्सी आदि के घावों के चिह्नों से रहित, सुकुमार, सुकोमल, मांसल, अविरल-परस्पर सटे हुए जैसे, सम, सदृश-परिमाण युक्त, सुगठित, सुजात-सुन्दर रूप में समुत्पन्न, वृत्त-वर्तुल-गोल, पीवर-मांसल, निरंतर-अंतर रहित थे। उनके श्रोणिप्रदेश घुण आदि कीड़ों के उपद्रवों से रहित-उन द्वारा नहीं खाए हुए-अखंडित द्यूतफलक जैसे आकार युक्त प्रशस्त, विस्तीर्ण, तथा पृयुथ-स्थूल-मोटे या भारी थे। विशाल, मांसल, सुगठित
और अत्यन्त सुन्दर थे। उनकी देह के मध्यभाग वज्ररत्न-हीरे जैसे सुहावने, उत्तम लक्षण युक्त, विकृत उदर रहित, त्रिवली-तीन रेखाओं से युक्त, बलित-सशक्त अथवा वलित-गोलाकार एवं पतले थे। उनकी रोमराजियाँ-रोमावलियाँ सरल, सम-बराबर, संहित-परस्पर मिली हुई, उत्तम, पतली, कृष्णवर्ण युक्तकाली, चिकनी, आदेय-स्पृहणीय, लालित्यपूर्ण-सुन्दरता से युक्त तथा सुरचित-स्वभावतः सुन्दर, सुविभक्त, कान्त-कमनीय, शोभित और रुचिकर थीं। उनकी नाभि गंगा के भंवर की तरह गोल, दाहिनी ओर चक्कर काटती हुई तरंगों की ज्यों घुमावदार, सुन्दर, उदित होते हुए सूर्य की किरणों से विकसित होते कमलों के समान विकट-गढ तथा गंभीर थीं। उनके कुक्षिप्रदेश-उदर के नीचे के दोनों पार्श्व अनुद्भट-अस्पष्ट