Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम वक्षस्कार]
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___ [१३] वैताढ्य पर्वत के पूर्व-पश्चिम में दो गुफाएं कही गई हैं। वे उत्तर-दक्षिण लम्बी हैं तथा पूर्व-पश्चिम चौड़ी हैं। उनकी लम्बाई पचास योजन, चौड़ाई बारह योजन तथा ऊँचाई आठ योजन है। उनके वज्ररत्नमय-हीरकमय कपाट हैं, दो-दो भागों के रूप में निर्मित, समस्थित कपाट इतने सघन-निश्छिद्र या निविड हैं, जिससे गुफाओं में प्रवेश करना दुःशक्य है। उन दोनों गुफाओं में सदा अंधेरा रहता है। वे ग्रह, चन्द्र, सूर्य तथा नक्षत्रों के प्रकाश से रहित हैं, अभिरूप एवं प्रतिरूप हैं। उन गुफाओं के नाम तमिस्रगुफा तथा खंडप्रपातगुफा हैं।
वहाँ कृतमालक तथा नृत्यमालक-दो देव निवास करते हैं। वे महान् ऐश्वर्यशाली, द्युतिमान, बलवान्, यशस्वी, सुखी तथा भाग्यशाली हैं। पल्योपमस्थितिक हैं-एक पल्योपम की स्थिति या आयुष्य वाले हैं।
उन वनखंडों के भूमिभाग बहुत समतल और सुन्दर हैं। वैताढ्य पर्वत के दोनों पार्श्व में-दोनों ओर दश-दश योजन की ऊँचाई पर दो विद्याधर श्रेणियाँ-आवास-पंक्तियाँ हैं । वे पूर्व-पश्चिम लम्बी तथा उत्तरदक्षिण चौड़ी हैं। उनकी चौड़ाई दश-दश योजन तथा लम्बाई पर्वत जितनी ही है। वे दोनों पार्श्व में दोदो पद्मवरवेदिकाओं तथा दो-दो वनखंडों से परिवेष्टित हैं। वे पद्मवरवेदिकाएं ऊँचाई में आधा योजन, चौड़ाई में पाँच सौ धनुष तथा लम्बाई में पर्वत जितनी ही हैं। वनखंड भी लम्बाई में वेदिकाओं जितने ही हैं । उनका वर्णन पूर्ववत् समझ लेना चाहिए।
१४. विज्जाहरसेढीणं भंते ! भूमीणं केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते ?
गोयमा ! बहसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव' णाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहि, तणेहिं उवसोभिए, तं जहा-कित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहिं चेव। तत्थ णं दाहिणिल्लाए विज्जाहरसेढीए गगणवल्लभपामोक्खा पण्णासं विज्ञाहरणगरावासा पण्णत्ता, उत्तरिल्लाए विज्जाहरसेढीए रहनेउरचक्कवालपामोक्खा सटुिं विज्जाहरणगरावासा पण्णत्ता, एवामेव सपुव्वावरेणंदाहिणिल्लाए, उत्तरिल्लाए विज्जाहरसेढीए एगंदसुत्तरं विज्जाहरणगरावाससयं भवतीतिमक्खायं, ते विज्जाहरणगरा रिद्धस्थिमियसमिद्धा, पमुइयजणजाणवया, (आइण्णजणमणूसा, हलसयसहस्ससंकिट्ठविकिट्ठलट्ठपण्णत्तसेउसीमा, कुक्कडसंडेयगामपउरा, उच्छुजवसालिकलिया, गोमहिसगवेलगप्पभूया, आयारवंतचेइयजुवइविविहसण्णिविट्ठबहुला, उक्कोडियगायगंठिभेयगभडतक्करखंडरक्खरहिया, खेमा,णिरुवद्दवा, सुभिक्खा, वीसत्थसुहावासा,अणेगकोडिकुडुबियाइण्णणिव्वुयसुहा, णडणट्टगजल्लमल्लमुट्ठियवेलंबगकहगपवगलासग आइक्खगमंखलंखतूणइल्लतुंबवीणिय-अणेगतालायराणुचरिया, आरामुज्जाणअगडतलागदीहियवप्पिणगुणोववेया, नंदणवणसन्निभप्पगासा, उव्विद्धविउलगंभीरखायफलिहा, चक्कगयभुसुंढिओरोहसयग्घिजमलकवाडघणदुप्पवेसा, धणुकुडिलवंकपागारपरिक्खित्ता, कविसीसगवट्टरइयसंठियविरायमाणा, अट्टालयचरियदारगोपुरतोरणसमुण्णयसुविभत्तरायमग्गा, छेयायरियरइयदढफ
१. देखें सूत्र संख्या ६