Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
१२ ]
[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
गौतम ! उत्तरार्ध भरतक्षेत्र के दक्षिण में, दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र के उत्तर में, पूर्व- लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिम - लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरतक्षेत्र में वैताढ्य पर्वत कहा गया है। वह पूर्व - पश्चिम में लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण में चौड़ा है। वह दो ओर से लवणसमुद्र का स्पर्श किये हुए है । अपने पूर्वी किनारे से पूर्व - लवणसमुद्र का तथा पश्चिमी किनारे से पश्चिमी लवणसमुद्र का स्पर्श किये हुए है । वह पच्चीस योजन ऊँचा है और सवा छह योजन जमीन में गहरा है। वह पचास योजन लम्बा है। इसकी बाहा-दक्षिणोत्तरायत वक्र आकाश-प्रदेशपंक्ति पूर्व-पश्चिम में ४८८ १६ / योजन की है। उत्तर में वैताढ्य पर्वत की जीवा पूर्व तथा पश्चिम- दो ओर से लवणसमुद्र का स्पर्श किये हुए है। जीवा १०७२०१२/ योजन लम्बी है। दक्षिण में उसकी धनुष्यपीठिका की परिधि १०७४३१५ / योजन की है।
१९
१९
वैताढ्य पर्वत रुचक-संस्थान - संस्थित है - उसका आकार रुचक- ग्रीवा के आभरण- विशेष जैसा है । वह सर्वथा रजतमय है। वह स्वच्छ, सुकोमल, चिकना, घुटा हुआ-सा - घिसा हुआ-सा, तराशा हुआ-सा, रज-रहित, मैल-रहित, कर्दम-रहित तथा कंकड़- रहित है । वह प्रभा, कान्ति एवं उद्योत से युक्त है, चित्त को प्रसन्न करने वाला, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप है।
वह अपने दोनों पार्श्वभागों में दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाओं-मणिमय पद्म-रचित उत्तम वेदिकाओं तथा वन- खंडों से सम्पूर्णत: घिरा है। वे पद्मवरवेदिकाएँ आधा योजन ऊँची तथा पाँच सौ धनुष चौड़ी हैं, पर्वत जितनी ही लम्बी हैं। पूर्वोक्त के अनुसार उनका वर्णन समझ लेना चाहिए। वे वन- खंड कुछ कम दो योजन चौड़े हैं, कृष्ण वर्ण तथा कृष्ण आभा से युक्त है । इनका वर्णन पूर्ववत् जान लेना चाहिए।
१३. वेयड्डूस्स णं पव्वयस्स पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं दो गुहाओ पण्णत्ताओ- उत्तरदाहिणाययाओ, पाईणपडीणवित्थिण्णाओ, पण्णासं जोअणाई आयामेणं, दुवालस जोअणाई विक्खंभेणं, अट्ठ जोयणाई उड्डुं उच्चत्तेणं, वइरामयकवाडोहाडिआओ, जमलजुअलकवाडघणदुप्पवेसाओ, णिच्चंधयारतिमिस्साओ, ववगयगहचंदसूरणक्खत्तजोइसपहाओ जाव' पडिरूवाओ, तं जहातमिसगुहा चेव खंडप्पवायगुहा चेव । तत्थ णं दो देवा महिड्डीया, महज्जुईआ, महाबला, महायसा, महासोक्खा महाणुभागा, पलिओवमट्ठिईया परिवसंति, तं जहा- कयमालए चेव णट्टमालए चेव ।
तेसिणं वणसंडाणं बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ। वेअड्डस्स पव्वयस्स उभओ पासिं दस दस जोअणाई उड्डुं उप्पइत्ता एत्थ णं दुवे विज्जाहरसेढीओ पण्णत्ताओ-पाईणपडीणाययाओ, उदीणदाहिणवित्थिण्णाओ, दस दस जोअणाइं विक्खंभेणं, पव्वयसमियाओ आयामेणं, उभयो पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं, दोहिं वणसंडेहिं संपरिक्खित्ताओ, ताओ णं पउमवरवेइयाओ अद्धजोअणं उडूं उच्चत्तेणं, पञ्च धणुसयाइं विक्खंभेणं, पव्वयसमियाओ आयामेणं, वण्णओ णेयव्वो, वणसंडावि पउमवरवेइयासमगा आयामेणं, वण्णओ।
१. समयक्षेत्रवर्ती जो भी पर्वत हैं, मेरु के अतिरिक्त उन सबकी जमीन में गहराई अपनी ऊंचाई से चतुर्थांश है। २. देखें सूत्र संख्या ४