Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पर आक्षेप किया है। भगवान् के वचनों पर इसे श्रद्धा नहीं है। मुझे ऐसा उपाय करना चाहिये जिससे यह भगवान् के वचनों के प्रति श्रद्धालु बने ।
दूसरे दिन तेल का कटोरा उस प्रश्नकर्ता के हाथ में थमाते हुए भरत ने कहा- तुम विनीता के सभी बाजारों में परिभ्रमण करो पर एक बूंद भी नीचे न गिरने पाए। बूंद नीचे गिरने पर तुम्हें फांसी के फन्दे पर झूलना पड़ेगा। उस दिन विशेष रूप से बाजारों को सजाया गया था। स्थान-स्थान पर नृत्य, संगीत और नाटकों का आयोजन था। जब वह पुनः लौटकर भरत के पास पहुँचा तो भरत ने पूछा- तुमने क्या-क्या वस्तुएं देखी हैं ? तुम्हें संगीत की स्वरलहरियाँ कैसी लगीं ? उसने निवेदन किया कि वहाँ मैं नृत्य, संगीत, नाटक कैसे देख सकता था ? भरत ने कहा-आँखों के सामने नृत्य हो रहे थे पर तुम देख न सके। कानों में स्वरलहरियां गिर रहीं थीं पर तुम न सुन सके । क्योंकि तुम्हारे अन्तर्मानस में मृत्यु का भय लगा हुआ था। वैसे ही मैं राज्यश्री का उपभोग करते हुए भी अनासक्त हूँ। मेरा मन सभी से उपरत है। वह समझ गया कि यह उपक्रम सम्राट् भरत ने क्यों किया ? उसे भगवान् ऋषभदेव के वचन पर पूर्ण श्रद्धा हो गई। यह थी भरत के जीवन में अनासक्ति जिससे उन्होंने 'राजेश्वरी सो नरकेश्वरी' की उक्ति को मिथ्या सिद्ध कर दिया।
बाहुबली से युद्ध
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में सम्राट् भरत षट्खण्ड पर अपनी विजयश्री लहराकर विनीता लौटे और वहाँ वे आनन्द राज्यश्री का उपभोग करने लगे। बाहुबली के साथ युद्ध का वर्णन नहीं है पर आवश्यकनिर्युक्ति, ' आवश्यकचूर्णि, त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित र प्रभृति ग्रन्थों में भरत के द्वारा बाहुबली को यह संदेश प्रेषित किया गया कि या तो तुम मेरी अधीनता स्वीकार करो, नहीं तो युद्ध के लिये सन्नद्ध हो जाओ। क्योंकि जब तक बाहुली उनकी अघीनता स्वीकार नहीं करते तब तक पूर्ण विजय नहीं थी । ९८ भ्राता तो प्रथम संदेश से ही राज्य छोड़कर प्रव्रजित हो चुके थे, उन्होंने भरत की अधीनता स्वीकार करने के स्थान पर धर्म की शरण लेना अधिक उचित समझा था । पर बाहुबली भरत के संदेश से तिलमिला उठे और उन्होंने दूत को यह संदेश दिय कि मेरे ९८ भ्राताओं का राज्य छीन कर भी भरत संतुष्ट नहीं हुए ? वह मेरे राज्य को भी पाने के लिये ललक रहे है ! उन्हें अपनी शक्ति का गर्व है। वह सभी को दबाकर अपने अधीन रखना चाहते हैं। यह शक्ति का सदुपयोग नहीं, दुरुपयोग है। हमारे पूज्य पिताजी ने जो सुव्यवस्था स्थापित की थी, उसका यह स्पष्ट अतिक्रमण है। मैं इस अन्याय को सहन नहीं कर सकता। मैं बता दूँगा कि आक्रमण करना कितना अहितकर है।
दूत ने जब बाहुबली का संदेश सम्राट् भरत को दिया तो वे असमंजस में पड़ गये, क्योंकि चक्ररत्न नगर में प्रवेस नहीं कर रहा था और जब तक चक्ररत्न नगर में प्रवेश नहीं करता है तब तक चक्रवर्तित्व के लिये जो इतना कठिन श्रम किया था, वह सब निष्फल हो जाता। दूसरी ओर लोकापवाद और भाई का प्रेम भी युद्ध न करने के लिये उत्प्रेरित कर रहा था । चक्रवर्तित्व के लिये मन मार कर भाई से युद्ध करने के लिये भरत प्रस्थित हुए ।
आवश्यकनिर्युक्ति, गाधा ३२-३५
१.
२. आवश्यकचूर्ण, पृ. २१०
३.
त्रिषष्टिशलाका पु. च. पर्व १, सर्ग ५, श्लोक ७२३-७२४
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