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६० | अध्यात्म-प्रवचन सुन्दर है, उसमें उसके मुख का प्रतिबिम्ब भी पड़ रहा है, फिर भी उसे देखने की शक्ति न होने के कारण उसके जीवन में दर्पण का उपयोग एवं प्रयोग निरर्थक है। दर्पण का उपयोग और प्रयोग वही कर सकता है, जिसके पास देखने की शक्ति है। शास्त्र भी दर्पण के तुल्य है। तुल्य क्या, वास्तव में दर्पण ही है। परन्तु इस शास्त्र रूप दर्पण का प्रयोग एवं उपयोग किसके लिए है, जिसके पास विवेक का निर्मल नेत्र हो, जिसके पास बुद्धि एवं ज्ञान की ज्योतिर्मय आँख हो । शास्त्र रूपी दर्पण में स्वच्छता और पवित्रता सब कुछ होने पर भी, साधक में विवेक शक्ति न होने के कारण, उसका उपयोग उसके लिए कुछ भी नहीं हो सकता। जीवन में विवेक हो, तभी शास्त्र उपयोगी हो सकता है, अन्यथा नहीं। अनन्त गगन में चन्द्रमा का उदय हो चुका हो, उसको स्वच्छ एवं उज्ज्वल ज्योत्सना से सारा भू-मण्डल आप्लावित हो रहा हो । परन्तु उस चन्द्रमा का और उसकी ज्योत्स्ना का प्रत्यक्ष उसी को हो सकता है, जिसमें देखने की शक्ति हो । जो व्यक्ति अन्धा है अथवा जो अन्धा तो नहीं, किन्तु जिसकी दृष्टि धंधली है, वह व्यक्ति चन्द्रमा के उज्ज्वल स्वरूप का आनन्द नहीं ले सकता। यदि कोई दिव्य दृष्टि वाला व्यक्ति धुंधली दृष्टि वाले व्यक्ति को अपने हाथ की उँगली के संकेत से आकाश-स्थित उज्ज्वल चन्द्र का ज्ञान कराए, तब भी उसे चन्द्र-ज्ञान से क्या लाभ होगा? जो व्यक्ति अपनी स्वयं की आँखों से चन्द्र को देख रहा है, वस्तुतः उसी का ज्ञान असली ज्ञान कहलाता है। महापुरुष, आचार्य और गुरु हमें कितना भी शास्त्र ज्ञान दें, किन्तु जब तक स्वयं हमारे अन्दर विवेक-शक्ति का उदय नहीं होगा, तब तक हमें उस ज्ञान का सच्चा आनन्द प्राप्त नहीं हो सकता । साधक के जीवन-विकास का आधार विवेक-दृष्टि ही है। जिसके पास विवेक-दृष्टि है उसके लिए शास्त्र में भी सब कुछ है
और शास्त्र से बाहर भी सब कुछ है। इसके विपरीत जिसको विवेकदृष्टि की उपलब्धि नहीं हुई है, उसके लिए शास्त्र में भी कुछ नहीं और शास्त्र से बाहर भी कुछ नहीं। गोशालक भगवान की सेवा में लगभग छह वर्ष तक रहा, परन्तु उसने भगवान से क्या कुछ प्राप्त किया ? ज्ञान के महासिन्धु के तट पर रहकर भी वह अपने जीवन में ज्ञान का एक बिन्दु भी प्राप्त न कर सका, जबकि इन्द्रभूति गौतम ने मिलन के प्रथम क्षण में ही त्रिपदी का परिबोध प्राप्त कर उसके आधार पर चतुर्दश पूर्वो की रचना कर डाली। एक सिन्धु में से बिन्दु लेकर श्रुत-सिन्धु की सृष्टि कर दी। यह सब कुछ क्या है
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