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३६२ | अध्यात्म प्रवचन बाहर की नहीं है, हमारे अन्दर की ही है ? यह अन्तर की चेतना ही कर्म चेतना है, भले ही बाहर में तद्नुरूप कोई क्रिया हो या न हो। अध्यात्म जगत में कर्मबन्ध-सम्बन्धी मूल प्रश्न कर्म का नहीं है, बल्कि कर्म-चेतना का है। बाहर की क्रिया की कोई बात नहीं है । अन्तर में जब भी करने एवं न करने का विकल्प होता है, चेतना में जो कर्म मूलक विधि निषेध के विविध विकल्पों की लहरें उठती हैं, चेतना के महासागर में एक प्रकार का तूफान सा आ जाता है, तब आत्मा स्व-स्वरूप में स्थिर नहीं रहने पाता । और जब आत्मा स्व-स्वरूप में स्थिर नहीं होता, तब कर्म बन्ध के चक्र में उलझ जाता है। यद्यपि आत्म-चेतना अपने सहज स्वरूप से शान्त सरोवर के समान है, किन्तु जब उसमें कर्म कर्तृत्व-सम्बन्धी विविध विकल्पों की उर्मियां उठने लगती हैं, तब वह अशान्त बन जाती है। विकल्पों को ये लहरें ही कर्म-चेतना है जो बन्ध का मूल कारण बनती हैं। इस दृष्टि से मैं आपसे कह रहा था, कि कर्म-चेतना ही बन्ध है। शास्त्रकारों ने इसी को चेतन-बन्ध कहा है। बन्ध के दो भेद हैं-चेतन-बन्ध और जड़बन्ध । जैन दर्शन के अनुसार इस विशाल और विराट, विश्व में सर्वत्र कर्मणा बर्गणाओं का अक्षय भण्डार भरा पड़ा है । लोकाकाश का एक भी प्रदेश ऐसा नहीं है, जहाँ पर अनन्त-अनन्त कार्मण वर्गणाओं की सत्ता न हो। जब चेतना में विविध विकल्पों का तूफान उठता है, तब यही कार्मण वर्गणाएं कर्म का रूप धारण कर लेती हैं और आत्मा से बद्ध हो जाती है । अनन्तकाल से कार्मण वर्गणाएँ कर्म का रूप ले रही हैं और भविष्य में भी लेती ही रहेंगी। प्रत्येक आत्मा प्रतिक्षण नवीन कर्मों का बन्ध कर रहा है और पुरातन कर्मों का क्षय भी करता जा रहा है । जब पुरातन कर्म के साथ नवीन कर्म का बन्ध हो जाता है, तब इसको जड़-बन्ध कहा जाता है । यह बन्ध जड़ का जड़ के साथ होने वाला बन्ध है। परन्तु याद रखिए, भले ही यह जड़ बन्ध है, पर यह जड़ बन्ध बिना कारण के स्वयं नहीं होता है। प्रत्येक कार्य के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है। आत्मप्रदेशों के साथ कर्म परमाणुओं का संश्लेष बन्ध कहा जाता है, किन्तु यह बन्ध बिना कारण के नहीं हो सकता, उसका कोई कारण अवश्य हो होता है। प्रत्येक जड़ बन्ध के पीछे चेतन की विकल्प-शक्ति होती है । कोई काम अपने आप हो जाता है, यह सत्य नहीं है । किसी कार्य के कारण का पता लमे अथवा न लगे, किन्तु वह अकारण नहीं होता है। मेरे कहने का तात्पर्य इतना ही है, कि प्रत्येक कार्य का कारण
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