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जैन-दर्शन का मूल :
सम्यक् दर्शन
सम्यक् वर्शन की व्याख्या और सम्यक् दर्शन को परिभाषा कर सकना, सरल नहीं है। वस्तुतः सम्यक् दर्शन शब्द-स्पर्शी व्याख्या एवं परिभाषा का विषय नहीं है, यह तो मात्र अनुभूति का विषय है । अध्यात्मवादी दर्शन जीवन के दो आधार मानकर चलता हैचिन्तन के साथ अनुभव और अनुभव के साथ चिन्तन । प्रश्न है, कि चिन्तन किसका किया जाए और अनुभव किसका किया जाए ? मेरे विचार में भारतीय दर्शन का और विशेषतः अध्यात्मवादी दर्शन का एक ही लक्ष्य है और वह यही है, कि चिन्तन भी आत्मा का करो और अनुभव भी आत्मा का ही करो । आत्मा के अतिरिक्त जो भी कुछ है, उसका चिन्तन करने की आवश्यकता नहीं है और उसका अनुभव करने की भी आवश्यकता नहीं है। क्योंकि आत्मा के अतिरिक्त जो भी कुछ है, वह अपना नहीं है और जो कुछ अपना नहीं है, उसका चिन्तन करने से क्या लाभ, और उसका अनुभव करने से भी क्या लाभ ? इसलिए अपने से अपने आपको ही जानने का प्रयत्न करो, यही सम्यक् दर्शन की साधना और यही सम्यक् दर्शन की
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