Book Title: Adhyatma Pravachana Part 1
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 313
________________ ३२० | अध्यात्म प्रवचन संयोग की बात कि कुछ वर्षों बाद वही पठान फिर उसी नगर में किसी कार्यवश आया । एक दिन पठान नगर के बाजार में इधर से उधर घूम रहा था, कि उसने एक दुकान पर सोहन हलुवे के आकार की और खा-रूप की बहुत सी साबुन की टिकियाँ रक्खी देखीं । पठान सोहन हलुवा खाने की इच्छा का संवरण नहीं कर सका। साबुन की टिकिया को सोहन हलुवा समझकर दुकानदार से टिकिया तोल देने को कहा, दुकानदार से टिकिया खरीदकर पठान ने झोले में डाली और चल दिया। कुछ दूर चलकर एक वृक्ष की शीतल छाया में बैठ गया और खाने लगा । पठान ने ज्योंही एक डली मुँह में रखी, तो उसे बहुत खारापन प्रतीत हुआ, वह अपने मन में सोचने लगा, शायद सोहन हलुवा दो प्रकार का होता हो, मीठा भी और खारा भी । वह साबुन को सोहन हलुवा समझकर खाता रहा, आखिर उसके मुँह में आग सी लगने लगी, पेट कटने लगा और उसकी हालत बुरी हो गई । एक सज्जन व्यक्ति ने पठान की इस बुरी हालत को देखकर कहा, "पठान ! यह क्या खा रहे हो ?" पठान बोला- “ दीखता नहीं है तुम्हें, सोहन हलुवा खा रहा हूँ ।" आगन्तुक सज्जन ने पठान को समझाते हुए कहा -- " भले आदमी ! यह सोहन हलुवा नहीं है, यह तो साबुन की टिकिया है । यह खाने के काम की नहीं है, कपड़े धोने के काम आती है । इसे फेंक दो, मत खाओ, नहीं तो इसे खाकर तुम मर जाओगे ।" पठान बोला, "मरू या जीऊँ, इससे तुम्हें क्या मतलब ? मैंने मुफ्त में नहीं, अपनी जेब से पैसा खर्च करके खरीदा है और जब खरीदा है तो खाना ही है, फिर चाहे वह मीठा हो, चाहे खारा हो ।" संसारी मोहबद्ध आत्मा की स्थिति भी उस काबुली पठान - जैसी ही है ? संसार का प्रत्येक मोह-मुग्ध आत्मा वैसा ही कार्य करता है, जैसा कि पठान ने किया था। आप भी जब संसार के बाजार से वस्तुओं के प्रति राग एवं द्वेष का कुछ सौदा खरीद लाते हैं तो बन्धन में बद्ध होकर उसका फल भोगने के लिए विवश हो जाते हैं । जब कोई ज्ञानी आपसे उसे छोड़ने की वा कहता है, तब आप उसकी बात पर विश्वास नहीं करते । ज्ञानी कहता है, कि संसार के बाजार में से शुभाशुभ विकल्पों से तटस्थ होकर निकलो । न पाप का सौदा खरीदो, और न पुण्य का । पुण्य भी अन्ततः दुःखरूप ही है, सुखरूप नहीं । वह भी वस्तुतः साबुन के तुल्य है, उसे धर्मरूप सोहनहलुवा समझकर अपनाने की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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