Book Title: Adhyatma Pravachana Part 1
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 331
________________ ३३८ | अध्यात्म प्रवचन को अधिगत कर लेता है। सम्यक् दर्शन की उपलब्धि में दया और करुणा एक अनिवार्य कारण है। सम्यक् दर्शन के लक्षणों में पांचवा लक्षण है-आस्तिक्य । आस्तिक्य का अर्थ है-आस्था अर्थात विश्वास । परन्तु किसमें विश्वास ? पुदगल में नहीं, आत्मा में ही विश्वास होना चाहिए । जिस व्यक्ति की आस्था अपनी आत्मा में है, उसका विश्वास कर्म में भी होगा और परलोक में भी होगा और मुक्ति में भी होगा। जो आत्मा जैसे अतीन्द्रिय पदार्थ हैं, उन पर विश्वास करना ही, आस्था एवं आस्तिक्य कहा जाता है । जो व्यक्ति वीतराग साधना पर श्रद्धा रखता है, वह सम्यक दृष्टि कहा जाता है। सम्यक् दृष्टि आत्मा मेरे विचार में वही हो सकता है, जो कम से कम अपनी आत्मा पर आस्था अवश्य ही रखता है। आत्मविश्वास ही, सबसे बड़ा सम्यक् दर्शन है । यदि आपको अपनी आत्मा पर आस्था नहीं है, और शेष संसारी पदार्थों पर आप विश्वास रखते हैं, तब उस स्थिति में आप सम्यक दृष्टि नहीं हो सकते । इसके विपरीत यदि आपको भले ही संसार के किसी अन्य पदार्थ पर विश्वास न हो, किन्तु आपको अपनी आत्मा पर अटल विश्वास है, तो आप निश्चय ही सम्यक् दृष्टि हैं। मैं आपसे सम्यक् दर्शनों के लक्षणों के विषय में चर्चा कर रहा था और यह बता रहा था, कि उक्त पाँच लक्षणों में से यदि आत्मा में पाँचों लक्षण अथवा कोई भी एक लक्षण विद्यमान है, तो वह आत्मा सम्यक् दृष्टि कहा जाता है । सम्यक् दृष्टि उसे कहा जाता है, जिसने सम्यक् दर्शन की ज्योति को प्राप्त कर लिया है। प्रशम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा और आस्तिक्य-ये पाँचों लक्षण इस बात के प्रतीक हैं, कि जिस आत्मा में इनकी अभिव्यक्ति होती है, उस आत्मा ने सम्यक् दर्शन के प्रकाश को प्राप्त कर लिया है। किन्तु यह सब व्यवहार-मार्ग है, निश्चय-मार्ग नहीं । निश्चय की स्थिति तो बड़ी ही विलक्षण है। ऐसी भी स्थिति भी होती है कि व्यवहार में उक्त लक्षणों की प्रतीति न हो, परन्तु अन्तरंग में सम्यक दर्शन की ज्योति प्रदीप्त हो जाए। निश्चय में शब्द मुख्य नहीं, अनुभुति मुख्य है। सम्यक् दर्शन के सम्बन्ध में एक बात और विचारणीय है । यदि किसी व्यक्ति ने सम्यक् दर्शन के प्रकाश को प्राप्त कर लिया है, तो उसके सामने सबसे बड़ा प्रश्न यह रहता है, कि उस प्रकाश को स्थायी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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