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विवेक-दृष्टि | ६५ उसका अनिश्चय निश्चय में बदल गया, तभी उसे वह आध्यात्मिक गौरव एवं आध्यात्मिक वैभव प्राप्त हो गया, जो शाश्वत और अजर अमर रहता है। माता मरुदेवी का विकास आज्ञा के मूल में नहीं, चिन्तन के मूल में है।
मैं आपसे कह रहा था कि जब तक साधक के घट में विवेकज्योति का प्रकाश नहीं जगमगाएगा, तब तक कोई भी शास्त्र, कोई भी गुरु और कोई भी महापुरुष उसके जीवन का विकास और कल्याण नहीं कर सकेगा। जीवन का सबसे बड़ा सिद्धान्त यह विवेक और विचार ही है, जिसके उदय होने पर अज्ञान का अन्धकार और मिथ्यात्व का अन्धतमस् दूर भाग जाता है। आत्म-ज्योति के प्रकट होने पर, फिर अन्य किसी प्रकाश की आवश्यकता नहीं रहती। इस प्रकाश के सामने अन्य सब प्रकाश फीके पड़ जाते हैं।
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