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२७० | अध्यात्म-प्रवचन निष्फल नहीं होते। आज मैं कृतकृत्य हो गया है और आज मेरा जीबन सफल हो गया है।" योगी ने दरिद्र ब्राह्मण की दुर्दशा को देख कर दयाभाव से पूछा-"आखिर, तुम चाहते क्या हो ?" "मंत्र, केवल धन प्राप्ति का मंत्र, अन्य कुछ नहीं"-दरिद्र ब्राह्मण ने कहा। योगी ने दयार्द्र होकर धनाभिलाषी ब्राह्मण से कहा-“लो, यह इन्द्र का मंत्र है । इन्द्र देवताओं का राजा है, इस मंत्र से वह प्रसन्न हो जाएगा और फिर जो तुम मांगोगे, वह तुम्हें दे देगा। किन्तु देखो, इस मंत्र का जप हिमगिरि की किसी एकान्त गुफा में जाकर करना।" ब्राह्मण तत्काल हिमगिरि की ओर चल पड़ा और वहाँ पहुँचकर अपनी साधना प्रारम्भ कर दी । वर्षानुवर्ष व्यतीत हो गए । बारह वर्ष के बाद उसके समक्ष इन्द्र प्रकट हुआ और बोला-“सौम्य, तुम्हें क्या चाहिए ? किस उद्देश्य से तुमने मेरी उपासना की है ?" ब्राह्मण, बहुत दिनों की साधना से बलहीन एवं कमजोर हो गया था, इन्द्र के आने पर उसने खड़े होने की कोशिश की और बोलने का प्रयत्न किया, किन्तु शरीर की अशक्ति के कारण न वह खड़ा हो सका, न वह बोल सका । इन्द्र ने फिर शान्त और मधुर स्वर से पूछा-“बोलो, तुम्हें क्या चाहिए?" ब्राह्मण के मन में, बहुत दिनों से भूखा-प्यासा रहने के कारण, रोटी चक्कर काट रही थी। हड़बड़ा कर बोला-"मुझे और कुछ नहीं चाहिए, बस रोटी मिल जाए।" ब्राह्मण की इस बात को सुनकर इन्द्र ने मुस्कान के साथ कहा-"बस, इतनी सी बात के लिए मुझे बुलाया। बस, रोटी के एक टुकड़े के लिए तूने मुझे याद किया। जब तेरे अन्दर इतनी शक्ति है, कि तू स्वर्ग से मुझे यहाँ बुला सकता है; तो क्या तेरे अन्दर इतनी शक्ति नहीं है, कि तू अपनी भूख को मिटाने के लिए, अपनी रोटी का प्रश्न स्वयं हल कर सके ?" ___मैं समझता हूँ, आप सबको उक्त कहानी के ब्राह्मण की बुद्धि पर विस्मय हो रहा है । आप सब विचार करते हैं, कि यह भी कैसा पागल व्यक्ति है, जो रोटी के टुकड़े के लिए स्वर्ग से इन्द्र को बुलाता है, परन्तु मेरे विचार में इसमें कोई बिस्मय की बात नहीं है। जिन लोगों के बुद्धि के द्वार नहीं खुले हैं, वे लोग इसी प्रकार सोचा करते है । इससे भिन्न प्रकार से वे कुछ सोच ही नहीं सकते। और एक ब्राह्मण की क्या बाता संसार के हजारों, लाखों, करोड़ों मनुष्यों की यही स्थिति है और यही दशा है । जिनके मन और मस्तिष्क में सदा धन का रंगीन चित्र रहता है, वे उस ब्राह्मण से अधिक अन्य कुछ
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