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२८२ | अध्यात्म प्रवचन विपरीत यदि आप किसी को रूखा-सूखा भोजन परोसते हैं, किन्तु आदर के साथ एवं प्रेम के साथ देते हैं, तो वह भोजन भी सरस एवं मधुर प्रतीत होता है। राम को भीलनी के जूठे बेर खाने में जो आनन्द आया, वह अयोध्या के राज महलों के मोहनभोग में नहीं आया। श्रीकृष्ण को जो आनन्द, जो स्वाद और जो माधुर्य, विदुर के घर केले के छिलके खाने में आया, वह दुर्योधन के छत्तीस प्रकार के राजभोग में नहीं आया । मैं आपसे कह रहा था, कि माधुर्य किसी वस्तु में नहीं रहता, वह मनुष्य के मन की भावना में रहता है । यही कारण है, कि चन्दना के उबले हुए उड़दों में जो शक्ति एवं जो प्रभाव था, वह किसी राजा-महाराजा के खीर-खाँड़ के भोजन में भी नहीं था। ___ मैं आपसे नामदेव की बात कह रहा था । नामदेव की भक्ति को देख कर, देखने वाले लोग उसका उपहास कर रहे थे और कह रहे थे, कि यह कैसा पागल है ? एक तो कुत्ता रोटी लेकर भागा और दूसरी ओर यह घी का पात्र लेकर उसके पीछे दौड रहा है। किन्तु लोग नामदेव के मन की बात को क्या जाने ? नामदेव कुत्ते को कुत्ता नहीं समझ रहा था, वह तो उसे भगवान ही समझ रहा था । कुत्ते को भगवान समझना कुछ अटपटा सा अवश्य लगता है, किन्तु अन्दर गहराई में पैठकर देखा जाए, तो वस्तुतः विश्व की हर आत्मा परमात्मा ही है । नामदेव इसी भावना को लेकर कुत्ते के पीछे दौड़ रहा था। जो तत्व-ज्ञान नामदेव के पास था, वह उसका मजाक उड़ाने वाले अन्य वेदान्तियों के पास कहाँ था ? वेदान्त का अध्ययन कर लेना अलग वस्तु है और वेदान्त की भावना को अपने जीवन के धरातल पर प्रयुक्त करना अलग बात है। आत्मा-परमात्मा की चर्चा करना आसान है, किन्तु हर आत्मा को परमात्मा समझना आसान नहीं है। जिस व्यक्ति के जीवन में तत्वज्ञान साकार हो जाता है, वह व्यक्ति ही वैसा कर सकता है, जैसा कि नामदेव ने किया, जैसा कि चन्दन बाला ने किया, जैसा कि विदुर ने किया और जैसा कि एक भोलनी ने किया । तत्व-ज्ञान यदि आचार का रूप नहीं लेता, तो वह व्यर्थ है और बुद्धि का केवल एक बोझ ही है। __ मैं आपसे यह चर्चा कर रहा था, कि एक साधक के जीवन में अमृत क्या है और विष क्या है ? संसार का एक साधारण व्यक्ति जिस को अमृत समझता है, ज्ञानी की दृष्टि में वह विष क्यों है ? इसके
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