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साध्य और साधन | ११३ दोनों को आचार में परिणत किया जा सके । जिस प्रकार अन्धा मार्ग को नहीं देख सकता, उसी प्रकार विचार और विवेकहीन व्यक्ति भी मुक्ति-मार्ग को नहीं देख सकता । कल्पना कीजिए, नदी में नाव पडी हो किन्तु चलाने वाला मल्लाह न हो, तो नाव इस किनारे से उस किनारे पर कैसे पहुँच सकती है ? स्वस्वरूप साध्य की सिद्धि के लिए सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यक् चारित्र का समन्वय आवश्यक है । अतएव अपने पर विश्वास करो, अपने को समझो और अपने को सुधारो, यही अध्यात्म-शास्त्र का दिव्य सन्देश है।
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