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सम्यक् दर्शन की महिमा | १८५ कभी बड़े विचित्र स्वप्न देख लेता है । वह अपने स्वप्न में देखता है कि मेरे सामने एक भयंकर सर्प है और वह मुझे डसने के लिए मेरी ओर बढ़ा चला आ रहा है । कभी स्वप्न में वह देखता है, कि वह एक भयंकर जंगल के गुजर रहा है, और उसके सामने एक शेर आ गया है, जिसकी भीषण गर्जना से समस्त वन प्रतिध्वनित हो उठा है | जगल में रहने वाले क्षुद्र जन्तु उसके भय से भयभीत होकर इधरउधर अपने प्राणों की रक्षा के लिए भाग रहे हैं और वह स्वयं भी अपने प्राणों की रक्षा की चिन्ता में इधर-उधर दौड़ रहा है । कभी वह देखता है, कि उसको चारों ओर से डाकुओं ने घेर लिया है और वह उनसे बचने के लिए इधर-उधर की दौड़-धूप कर रहा है । यद्यपि वास्तव में इनमें से एक भी उस समय उसके पास नहीं है । न सर्प है, न सिंह है और न कोई डाकू है, तथापि वह अपनी स्वप्न दशा में इन भयंकर दृश्यों को देखकर भयभीत हो जाता है और चिल्लाने लगता है | स्वप्नावस्था के इस भय एवं आतंक को दूर करने के लिए यह आवश्यक है, कि आप जाग उठें। आप ज्योंही जागृत हो जाएँगे, त्योंही वह भय एवं आतंक स्वतः ही विलुप्त हो जाएगा । उस भय एवं आतंक का कहीं अता-पता ही नहीं रहेगा । परन्तु याद रखिए, स्वप्न के भय एवं आतंक से विमुक्त होने के लिए जागरण की सबसे बड़ी आवश्यकता है । इसके अतिरिक्त दूसरा कोई उपाय नहीं है, जिससे आप अपने स्वप्न के भय से विमुक्त हो सकें ।
आत्मस्वरूप की अज्ञानता और मिथ्यात्व के कारण क्रोध, मान, माया, लोभ और वासना आदि असंख्य विकार एवं विकल्प अनादि काल से आत्मा को उसकी अपनी मोह-निद्रा में परेशान कर रहे हैं । अनन्त अनन्त विकल्प तो ऐसे हैं, जिनके नाम का भी हमें पता नहीं है । आत्मा के अनन्त विकल्पों में से कितने विकल्पों को हम तुम जानते हैं ? आत्मा में कवल अन्तर्मुहूर्त में ही असंख्य प्रकार के परिणाम उत्पन्न एवं विलुप्त होते रहते हैं । आत्मा अपनी उन सब परिगतियों में से निरन्तर गुजरती रहती है और इसके फलस्वरूप आकुलव्याकुल बनी रहती है । परन्तु यह विकल्प और विकार आत्मा में कब तक हैं, जब तक कि सम्यक् दर्शन की ज्योति आत्मा में प्रकट नहीं हो जाती हैं । आत्मा में सम्यक् दर्शन के प्रकट हो जाने पर कभीकभी तो केवल एक अन्तर्मुहूर्त में ही वे विकल्प और विकार विलुप्त हो जाते हैं ।
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