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२०४ | अध्यात्म-प्रवचन
दूसरा एक जीवन चेलनाका है । चेलना के सम्बन्ध में आप सभी लोग भली भाँति यह जानते हैं कि वह वैशाली के अधिपति सम्राट चेटक की पुत्री थी। रूप और यौवन का अपार धन चेलना को प्रकृति की ओर से सहज ही मिला था । चेलना के अपार रूप ने, चेलना की अद्भुत सौन्दर्य-सुषमा ने और चेलना के अनुपम लावण्य ने उस युग में बहुत प्रसिद्धि प्राप्त कर ली थी। चेलना के रूप शमा पर हजारों हजार राजकुमार पतंगे बनकर जल मरने के लिए तैयार थे। मगध के सम्राट राजा श्रेणिक ने चेलना के रूप एवं सौन्दर्य की चर्चा सुनी और वह उसे पाने के लिए व्याकुल हो गया। चेलना भी श्रेणिक के रूप पर मुग्ध थी। चेलना अपनो वासना के तूफान में, अपने जीवन की मर्यादा तथा अपने कुल की मर्यादा को भूलकर राजा श्रेणिक के साथ भाग गई । चेलना के जीवन की इससे बढ़कर और क्या बिडम्बना हो सकती है ? मैं समझता है, कुन्ती और चेलना के जीवन का यह अधः पतन किसी भी विवेकशील आत्मा को चौंका देने वाला है।
परन्तु यदि हम जीवन की गहराई में उतर कर जब मनुष्य के अन्तराल का निरीक्षण करते हैं, तब हमें ज्ञात होता है कि मनुष्य को जिस मनोभूमि में पतन के कारण हैं, उसी मनोभूमि में उत्थान के सुन्दर बीज भी विद्यमान रहते हैं। इसी आधार पर जैन दर्शन कहता है, कि-एक आत्मा अपने अज्ञान-भाव में चाहे कितनी भी भयंकर भूल क्यों न कर ले, किन्तु सम्यक् दर्शन का प्रकाश आते ही, उसकी आत्मा का समग्र अन्धकार क्षण भर में ही विलुप्त हो जाता है। जैन दर्शन कहता है, कि आत्मन् ! यदि मुझसे भूल हो गई है, तो रोने की आवश्यकता नहीं है, तू विलाप क्यों करता है ? अपनी भूल पर विलाप करने का अर्थ है-अपनी भूल को और भी भयंकर बना देना। रोने की आवश्यकता ही क्या? रोने से कुछ काम बनता नही है । उठ, जाग और अपनी भूलों का परिमार्जन करके अपने विशुद्ध स्वरूप को प्राप्त करने का प्रयत्न कर। यही जीवन के उत्थान का मार्ग है और यही जीवन के कल्याण का मार्ग है। कून्ती और चेलना के जीवन में आत्म-भाव की जागृति होते ही उनका जीवन पतितावस्था से ऊपर उठकर सतियों की श्रेणी में आ गया, यही उनके जीवन का सबसे बड़ा चमत्कार है।
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