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जिनागमरहस्यवेदी सुविहितनामधेय पूज्यपाद, आचार्यश्री विजयहर्षसरीश्वरजी महाराजकी संक्षिप्त
. .. जीवनप्रभा. मरुधर देशमें जोधपुर राज्यान्तर्गत जालोर प्रान्तमें थावला नामक एक प्राचीन ग्राम है । ग्रामके ईदगीर्द खुदाइका काम करते समय भूगर्भसे निकली हुई कई प्राचीन भव्य जैन-प्रतिमायें एवं जैन-मन्दिरके अवशिष्ट भाग दृष्टिगोचर होते हैं । इस ग्राममें पंचपरमेष्ठी महामंत्रस्मारक औस्वालवंशभूषण असलाजी नामक एक सद्गृहस्थ रहते थे। उनके शीलवती जैनधर्मपरायण पतिव्रता भूरादेवी नामक सद्गुणी भार्या थी। यथाशक्ति देवगुरुधर्मके आराधना करते भूरादेवीकी कुक्षीसे वि. सं. १९४१ का फाल्गुन शुक्ला पंचमी को एक पुत्ररत्न प्राप्त हुआ । नवजातशिशुका नाम हुक्माजी रक्खा गया । हुक्माजी पर उनके माता-पिताका प्रगाढ़ प्रेम था, किन्तु क्रूर कालसे यह प्रेम न देखा गया और उसने जब हुक्माजी केवल दस ही वर्षके थे कि उनके पिताको उनसे सदाके लिये पृथक कर उन्हें पितृ-स्नेहसे वंचित कर दिया । हुक्माजीके तीन भाई एवं दो बहिने और थी । दल्लाजी व भूताजी दो बड़े भाई थे जो कुंकणदेशमें रत्नागिरीमें ताम्बे-पितलके बर्तनोंकी दुकान चलाते थे, तथा सच्चे मोतियोंका व्यौपार भी करते थे। तीसरे छोटे भाईका नाम कपुरजी था। .... थावलामें विद्याभ्यासके प्रर्याप्त माधनके अभावमें हुक्माजीकी शिक्षा रत्नागिरीमें (जो श्रीपालचरित्रमें रत्नद्वीपके नामसे प्रसिद्ध है) होने लगी। वहां उन्होंने एक मराठी स्कुलमें शिक्षा प्राप्त की व