Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE FREE INDOLOGICAL COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC FAIR USE DECLARATION This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. 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We shall work with you immediately. -The TFIC Team. Page #2 --------------------------------------------------------------------------  Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया - जैन ग्रन्थमाला पुष्प न १०८ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह आठवाँ भाग ( सात भागों का विस्तृत विषयकोष ) संयोजक भैरोंदान सेठिया प्रकाशक मन्त्री अगरचन्द भैरोंदान सेठिया जैन पारमार्थिक संस्था बीकानेर ( राजपूताना ) न्योछावर २) (ज्ञान खाते में लगेगा ) पोस्टेज पर रजिस्ट्री खर्च ||-|| सेठिया प्रिंटिंग प्रेस, बीकानेर ता० २२-३-१६४५ ई० रामनवमी सं. २००२ वीर संवत् २४७१ सा. २२-३-१९४५ ई. प्रथमावृत्ति ६०० Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३७) श्रीजैन सिद्धान्त बोल संग्रह आठवें भाग के खर्च का ब्यौरा कागज २९॥ रीम, फी रीम ४३) १२६८) छपाई फार्म ४९ की, प्रति फार्म १३) जिल्द बधाई ।।) एक प्रति ३००) . २२०५ विषयसूची बनाने, प्रमाण ग्रन्थों से मिलान करने तथा प्रेस कॉपी, प्रूफ सशोधन आदि का खर्च २७००) ४९०५॥ कागज,वाइन्डिंग क्लाथ, कार्डबोर्ड, रोलर कम्पोजिशन तथा प्रेस की अन्य वस्तुओं के भाव बढ़ जाने और कम्पोज एवं छपाई खर्च कुछ अधिक लगने के कारण ऊपर लिखे हिसाब से एक प्रति की लागत कीमत ८) रूपये से अधिक पड़ी है। फिर भी ज्ञानप्रचार की दृष्टि से पुस्तक को कीमत फेवल २) दोरूपया हीरखी गई है। शेष सारा खर्च भी अगरचन्द भैरोंदान सेठिया जैन पारमार्थिक संस्था, बीकानेर ने अपनी ओर से लगाया है। नोट-श्री जैन सिद्धान्त घोल सग्रह के सभी भागों की कीमत लागत से बहुत ही कम रखोगई है । इसलिए इन पर कमीशन नहीं दिया जाता। श्री सेठिया जैन पारमार्थिक सस्था की तरफ से जैन धर्म संबंधी अन्य पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं । विशेष जानकारी के लिए सूचीपत्र मँगाकर देखिये । पुस्तक मँगाने वाले सज्जनो को अपना पता, पोष्ट आफिस और रेल्वे स्टेशन का नाम साफ साफ लिखना चाहिए । पुस्तक पी. पी. से भेजी जाती है। पुस्तक मिलने का पता:--- (१) पुस्तक प्रकाशन समिति (२) अगरचन्द भैरोदान सेठिया वूलन प्रेस विल्डिग्स जैन पारमार्थिक संस्था बोकानेर ( राजबूताना Agaichand Blairodan Sethia Jain Charitable Institution, Bikaner. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दो शब्द श्री जैन सिद्धान्त वोल सग्रह के सातो भाग के प्रकाशित होने के करीब तेरह महीनों के पश्चात् यह पाठवा भाग पाठकों की सेवा में उपस्थित करते हुए हमें बढे हर्ष और सन्तोष का अनुभव हो रहा है । पाठवें भाग के साथ यह ग्रन्थ समाप्त हो रहा है। निरंतर छ वर्ष क परिश्रम से श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह के ये पाठ भाग तैयार हुए है। छः वर्ष पूर्व सोचे एव स्वीकार किये हुए कार्य को पूरा कर अाज हम अपने को भारमुक्त मत एव हल्का अनुभव कर रहे हैं। यह पाटवाँ भाग पहले के सात भागों का विषय कोप है । इस भाग में सातों भागो में थाये हुए विषयों की विस्तृत सूची अकारादिक्रम से दी गई है। सात भागों के बोल जिन पागम एव सिद्धान्त ग्रन्थों से उद्धृत किये गये हैं उन प्रमाणभूत ग्रन्थों का उल्लेख भी इस सूची में किया गया है । प्रमाणभूत ग्रन्थों का पूरा नाम देने से इमका बहुत अधिक विस्तार हो जाता अतएव यहाँ उनका निर्देश सकेत रूप से किया गया है । सकतों के खुलासे के लिये प्रमाण ग्रन्थों की सकेत सूची पृथक् दी गई है और उसमें अन्यों के पूरे नाम तया प्रत्य कर्ताओं के नाम, प्रकाशन का स्थान और समय आदि दिये गये हैं। इस अनुक्रमणिका में पाठकों की जिज्ञासा का ख्याल कर एक ही बोल दो चार तरह से बदल कर दिया गया है एव बोल के अन्तर्गत भेद प्रभेदों का भी इसमें समावेश किया गया है । सूची तैयार करते समय यह भी ख्याल रखा गया है कि सख्या विशेष एवं विषय विशेष के वोल लगातार एक साथ प्रा जाये। इसी तरह गाथाए और कथाए भी पास पास रखी गई है। शास्त्र विशेष के जितने मव्ययनों क यर्थ इन भागों में पाये हैं वे भी एक साथ दिय गये हैं । इस प्रकार पाठकों की सुविधा का ख्याल कर हमने यह अनुक्रमगिएका बहुत विस्तृत वनाई है । इस अनुक्रमणिका को तैयार करते समय सातों भागों का प्रमाण अन्यों से, जिनसे कि इन भागों में बोल लिये गये हैं, भी मिलान किया गया है और सातों भागों के बोलों के प्रमाणों में जहाँ कहीं कमी या त्रुटि थी वह इस अनुक्रमणिका में यधासभव ठीक कर दी गई है। यही कारण है कि इसे तैयार करने में इतना समय लगा है और समिति को इसके लिये पर्याप्त परिश्रम उठाना पड़ा है । सहृदय पाठकों से यह भी निवेदन है कि इस विषय सूची से सात भागो में दिये हुए प्रमाण में कुछ भिन्नता हो तो वे विषयसूची के अनुसार भागों में सुधार कर लेवें। जैन सिद्धान्त बोल सग्रह के सात भागों में कौनसा विषय किम भाग में कहाँ पर है ? पाठकगण इस विषय सूची की सहायता से सुगमतापूर्वक इसका पता लगा सकेंगे तथा साथ में प्रमाण ग्रन्थ होने से शका अथवा विशेष जिज्ञासा होने पर पाठक उन ग्रन्थों को देखकर प्रात्मसन्तोष कर सकेंगे। इसके अतिरिक्त यह विषयकोष जैन पारिभाषिक Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दों के लिये जैन कोष का काम भी देगा और पाठक केवल इसी की सहायता से कौनसा विषय क्रिस ग्रन्थ में कहाँ पर है? सहज ही जान सकेंगे। जैन सिद्धान्त वोल सग्रह कोई मौलिक रचना नहीं है। प्राकृत, संस्कृत भाषा के सिद्धान्त ग्रन्थों में से चुने हुए विषय सरल हिन्दी भाषा में प्रावश्यक व्याख्या एव विवेचन के साथ इन भागों में दिये गये हैं । अतएव हम उन सभी ग्रन्धकारों के, जिनके ग्रन्थों से हमने बोलसग्राह में वोल लिये हैं, अत्यन्त ऋणी हैं । यदि हमारे अनुवाद, व्याख्या अथवा विवेचन में उन ग्रन्थकारों के भाशय से कहीं स्खलना हुई हो तो हम उनसे नमा याचना करते हैं। पाठकगण से भी हमारा यह निवेदन है कि यदि उन्हें हमारे इस प्रकाशन में कोई त्रुटि या कमी प्रतीत हो तो हमें अवश्य सूचित करें ताकि हम अागामी संस्करण में उचित सुधार कर सकें। उनकी इस कृपा के लिए हम उनके कृतज्ञ रहेंगे। इस आठवें भाग के छपाने में श्री प०हनुमानप्रसादजी शर्मा शास्त्री ने अध्यवसायपूर्वक बड़ा परिश्रम उठाया है अतएव हम उन्हें धन्यवाद देते हैं । अन्त में इस ग्रान्य के लेखन, सकलन, सशोधन प्रकाशन प्रादि में हमें प्रत्यक्ष एव परोक्ष रूप से जिन जिन महानुभावों की सहायता प्राप्त हुई है उन सभी के प्रति भाभार प्रदर्शित हुए हम अपना यह वक्तव्य समाप्त करते हैं। पुस्तक प्रकाशन समिति ऊन प्रेस बिलिंग्स, बीकानेर । श्री सेठिया जैन पारमार्थिक संस्था, बीकानेर पुस्तक प्रकाशन समिति मध्यक्ष-श्री दानवीर सेठ भैरोदानजी सेठिया । मंत्री-- श्री जेठमलजी सेठिया। उपमंत्री-श्री माणकचन्दजी सेठिया । लेखक मण्डल श्री इन्द्रचन्द्र शास्त्री एम.ए., शास्त्राचार्य,न्यायतीर्थ, वेदान्तवारिधि । श्री रोशनलाल जैन वी. ए., एलएल.बी., न्यायतीर्थ, काव्यतीर्थ, सिद्धान्ततीर्थ, विशारद। श्रीश्यामलाल जैन एम.ए., न्यायतीर्थ, विशारद । श्री घेवरचन्द्र बाँठिया 'वीरपुत्र' न्यायतीर्थ, व्याकरणतीर्थ, सिद्धान्तशास्त्री। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 八八八八八八八八八八八八 - - ---- - - -- -- -- | ii . :: : : : iFi, ; · 、 11: teamx 事中事。 然而, 论排 .... 就在 4 . 是我 我就是 , 本書是一个 :: 五 、 八八八八八八八八八八八八八八个小 名八八八八八八八八八八八八八八八八八八八八八八八 ; , 1 4 . ** , , , { 了 z! ,。 、 LEA 1 भैरोंदान सेठिया जन्म सं० १९२३ विजया दशमी फोटो सं० १६६३ अक्षय तृतीया Page #8 --------------------------------------------------------------------------  Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mome श्रीमान् धर्मभूषण दानवीर सेठ भैरोंदानजी सेठिया की संक्षिप्त जीवनी दानवीर सेठ भैरोंदानजी सेठिया का जन्म जैन वीसा ओसवाल कुल में विक्रम संवत् ११३३ विजयादशमी के दिन हुमा माप के पिता का नाम श्री धर्मचन्दजी था । आप चार भाई थे। श्री प्रतापमलजी और अगरचन्दजी आप से बड़े और हजारीमलजी आप से छोटे थे। आप दो वर्ष के ही थे कि आपके पिता का स्वर्गवास हो गया। सात वर्ष की अवस्था में बीकानेर में बड़े उपाश्रय में साधुजी नामक यति के समीप आपकी शिक्षा का प्रारम्भ हुआ। दो वर्ष यहॉ पढ़ कर विक्रम सं०१६३२ में आपने कलकत्ते की यात्रा की। वहाँ से लौटकर आप बीकानेर के समीप शिववाड़ी गांव में Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रहे । मन्दिर,उद्यान और सरोवर से यह गॉव सुहावना है। उस समय राज्य की विशेष कृपादृष्टि होने से यहाँ का व्यापार बढा चढ़ा था । यहाँ सदा बाजार में मेला सा लगा रहता था । यहाँ आप अपने ज्येष्ठ भ्राता श्री प्रतापमलजी के पास व्यापार का काम सीखने लगे । स० १६३६ में आपने वम्बई की यात्रा की। वहाँ अपने बड़े भाई श्री अगरचन्दजी के पास रह कर आपने वहीखाता जमा खर्च आदि व्यापारिक शिक्षा के साथ अंग्रेजी,गुजराती,आदि भाषाएं सीखीं। शिक्षा के साथ आपने यहाँ व्यावहारिक अनुभव भी प्राप्त किया । यहीं आपकी शिक्षा समाप्त नहीं होती ।नवीन ज्ञान सीखने की लगन श्रापको जीवन भर रही और आज भी है। ज्ञान सीखने के प्रत्येक अवसर से आपने सदा लाभ उठाया है । दसरे को पढ़ाने और सिखाने में भी पाप सदा दिलचस्पी लेते रहे हैं। कई व्यक्तियों को व्यापार व्यवसाय का काम सिखा कर आपने उन्हें सफल व्यापारी बनाया है । आपने अपनी संस्था से भी कई सुयोग्य व्यक्ति तैयार किये हैं एवं उन्हें ऊँची से ऊँची शिक्षा दिलाई है। संवत् १६४० में आप देश आये। इसी वर्ष आप का विवाह हुमा। कुछ समय देश में ठहर कर संवत् १६४१ में आप पुनः वम्बई पधारे। यहाँ आकर आप एक फर्म में, जिसमें चालानी का काम होता था, मुनीम के पद पर नियुक्त हुए । आपके बड़े भाई श्री अगरचन्दजी इस फर्म के साझीदार थे। ___ बम्बई में सात वर्ष रहकर सं० १९४८ में आप कलकत्ते गये और वहाँ आपने अपनी संचित पूंजी से मनिहारी और रंग की दुकान खोली और गोली सूता का कारखाना शुरू किया। सफल व्यापारी में व्यापारिक ज्ञान, अनुभव, समय की सूझ, साहस, अध्यवसाय, परिश्रमशीलता, ईमानदारी, वचन की दृढ़ता,नम्नता Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) तथा स्वभाव की मधुरता आदि जो गुण होने चाहिये वे सभी आप में विद्यमान थे। इसलिये थोड़े ही समय में आपका व्यापार चमक उठा। धीरे धीरे आपने प्रयत्न करके भारत से वाहर बेल्जियम,स्विजरलैंड और वर्लिन आदि के रंग के कारखानों की तथा गवलंज ( Gablonz )आष्ट्रिया के मनिहारी के कारखानों की सोल एजे. सियाँ प्राप्त कर ली । फलतः आपको अधिक लाभ होने लगा और काम भी विस्तृत हो गया। इसी समय आपके बड़े भाई श्री अगरचन्दजी भी आपकी फर्म में सम्मिलित हो गये । अव फर्म का नाम 'ए.सी.बी सेठिया एन्ड कम्पनी' रखा गया। कार्य के विस्तृत हो जाने से आपने कर्मचारियों को बढ़ाया। फर्म की मुव्यवस्था के लिये आपने एक अंग्रेज को असिस्टेन्ट मैनेजर के पद पर नियुक्त किया और पत्र व्यवहार के लिये एक वकील को रकवा । कर्मचारियों के साथ आपका व्यवहार स्वामी-सेवक का नहीं किन्तु परिवार के सदस्य का सा रहा है। आपकर्मचारियों से काम लेना खुब जानते हैं और उन्हें सब तरह निभाते भी हैं । उक्त अंग्रेज आपके पास २७ वर्ष रहा और वकील बाबू आज भी आपके सुपुत्रश्री जेठमलजी साहब कीफर्म में हैं। आप स्वभाव से ही कर्मठ और लगन वाले हैं। आपने कार्य करना ही सीखा है, विश्राम तो आपने जाना ही नहीं। जिस कार्य फो आपने हाथ में लिया, उसे पूरा किये बिना आपने कभी नहीं छोड़ा। व्यापारिक जीवन में ऐसी सफलता पाकर भी आपने विश्राम नहीं लिया । आप और आगे बढ़ना चाहते थे। फलस्वरूप मापने हावड़ा में 'दी सेठिया कलर एन्ड केमिकल वर्कस लिमिटेड' नामक रंग का कारखाना खोला। यह कारखाना भारतवर्ष में रंग का सर्वप्रथम कारखाना था। कारखाने से तैयार होने वाले सामान की खपत के लिये आपने भारत के प्रमुख नगरों-कल Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) कत्ता, वम्बई, मद्रास, कराची, कानपुर, देहली, अमृतसर और अहमदावाद में अपनी फर्म की शाखाएं खोलीं । इसके सिवा जापान के ओसाका नगर में भी आपने ऑफिस खोला । यहाँ यह बता देना भी अप्रासंगिक न होगा कि कारखाने और ऑफिस में विभिन्न कार्यों पर कुशल व्यक्तियों के नियुक्त होने पर भी आप आवश्यकता पर छोटे से बड़े सभी काम निस्संकोच भाव से कर लेते थे । शुरू से अन्त तक सभी कामों की जानकारी आप रखते थे । सर्वथा लोगों पर आपका कार्य निर्भर रहे यह आपको कतई पसन्द न था । यही कारण है कि रंगों के विश्लेषण के फॉर्मुले सीखने के लिये आपने एक जर्मन विशेषज्ञ को केवल दैनिक पाँच मिनिट के लिये ३००) मासिक पर नियुक्त किया एवं उसके लिये आपने निजी प्रयोगशाला स्थापित की । संवत् १६५७ में एक पुत्री ( वसन्तकंवर ) और दो पुत्रों ( श्री जेठमलजी और पानमलजी ) को छोड़कर आपकी धर्मपत्नी. का स्वर्गवास होगया। आपकी पत्नी धर्मात्मा और गृहकार्य में बड़ी दक्ष थीं। इसी कारण आप गृह-व्यवस्था की चिन्ता से सदा मुक्त रहे एवं अपनी सभी शक्तियाँ व्यापार व्यवसाय में लगा सके थे । पहली धर्मपत्नी के स्वर्गवास होने पर आपका दूसरा विवाह हुआ । कर्त्तव्यनिष्ठ सेठियाजी का उस समय व्यापार-व्यवसाय की ओर ही विशेष ध्यान था। आप कुशलतापूर्वक व्यापार व्यवसाय में लगे रहे औरउत्तरोत्तर उन्नति करने लगे। सं० १६७१ (सन् १६१४) के गत महायुद्ध में आपको रंग के कारखाने से आशातीत लाभ हुआ । संवत् १६६५ में आप एक भयंकर बीमारी से ग्रस्त हो गये । इस समय आप कलकत्ते थे । वहाँ के प्रसिद्ध डॉक्टर और वैद्यों का इलाज हुआ पर भापको कोई लाभ न पहुँचा । अन्त में आपने Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ܀ ܙ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Agarchand Bhairodan Sethia Jain Charitable Institution,Žikaner श्री अगरचंद भरोदान सेठिया जैन पारमार्थिक संस्था, संस्था-भवन, बीकानेर - 4 mta--- RE ERH HALA act 11 THEATMEE Pron 2 .' • . .... . . . Ko.. .. एन mom RE . ALIK MITRA 4 JORE r-WANA TIMN RM . CHATNEYPRO - - . -AVA भा CHANNEL ERCE -AVASCRIBRARRISesh ... - A - -22 thatantr अज्ञानं तमसा पति विदलयन् सत्यार्थमुद्भासयन् । भ्रान्तान् सत्पथ दर्शनेन सुखदेमार्गे सदा स्थापयन् ॥ ज्ञानालोकविकासनेन सततं भूलोकमालोकयन् । श्रीमद्भरवदानमान पदवी पीठः सदा राजताम् ॥ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) कलकत्ता के प्रसिद्ध होमियोपैथिक डॉक्टर प्रतापचन्द्र मजूमदार से इलाज करवाया और आप स्वस्थ हुए। इसी समय से आपको होमियोपेथी चिकित्सा पद्धति में अपूर्व विश्वास हो गया । आपकी जिज्ञासा बढ़ी और उक्त डॉक्टर के सुयोग्य पुत्र डॉक्टर जतीन्द्रनाथ के पास आपने होमियोपेथी का अभ्यास किया एवं इसमें प्रवीणता प्राप्त की। तभी से प्राप होमियोपेथी साहित्य देखते रहे है एवं जनता में अमूल्य दवा वितरण करते रहे हैं। वर्षों के अनुभव ने आपको इस प्रणाली का विशेषज्ञ बना दिया है। सेठ साहेव ने केवल धन कमाना ही नहीं सीखा पर प्राप So א विक्रम संवत् १६६६ तदनुसार सन् १६१३ ई. में सेठ साहेब ने aaarनेर नगर में किंग एडवर्ड मेमोरियल रोड़ पर एक दूकान बी. सेठिया एन्ड सन्स के नाम से खोली । नाना प्रकार के फैन्सी बढ़िया सामान और नई नई फैशन की चीज़ों के लिये यह बीकानेर की प्रसिद्ध दूकान है। यहाँ से सेउ, साहूकार, रईस और ऑफिसर लोग सामान खरीदते हैं। इसे सफलता पूर्वक चला कर सेठ साहेव ने यह दूकान अपने द्वितीय पुत्र श्री पानमलजी को दे दी । दूकान के पीछे उससे जुड़ी हुई हवेली है । सेठ साहेव ने पानमलजी को दूकान और हवेली का पूरा मालिक बना दिया है और तारीख १४-१०-१६३० ई. को इन्हों के नाम पर राज्य से इस जायदाद का पट्टा बनवा दिया है। पानपलजी ने आसपास और जमीन खरीद कर इस जायदाद को बढ़ाया है और काफी लागत लगा कर दूकान को दुबारा बनाया है जो कि नई फैशन का दुमंजिला विशाल भवन है । अभी पानमलजी और उनके पुत्र कुन्दनमलजी इस दुकान को बी. सेठिया एन्ड सन्स के नाम से ही चला रहे हैं । 1 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठिया जैन पारमार्थिक संस्थाओं के विभिन्न विभागों द्वारा पिछले वाईस वर्षों में, समाज में शिक्षा एवं धर्म प्रचार के जो महत्वपूर्ण कार्य हुए वे समाज के सामने हैं। सं०१९७६ में आपके पुत्र उदयचन्दजी का असामयिक देहान्त होगया। इस घटना से आप अत्यन्त प्रभावित हुए ।व्यापार व्यवसाय से आपका मन हट गया। श्रतएव कलकत्ते का विस्तृत व्यापार समेंट कर आप बीकानेर पधार गये। आपने पारमार्थिक संस्थाओं का कार्य हाथ में लिया और अपनी सारी शक्तियाँ संस्थाओं की उन्नति में लगा दीं। धार्मिक ज्ञानवृद्धि का भी आपने यह अच्छा सुयोग समझा।आपने थोकडे,वोल और स्तवनों का स्वयं संग्रह किया और उन्हें प्रकाशित कराया। इसके सिवा आपने संस्कृत,प्राकृत,प्रद्धेमागधी,आगम,न्याय,धर्मशास्त्र,हिन्दी,नीति और कानून विषयक पुस्त. के भी प्रकाशित की। इस वृद्धावस्था में भी आपने निरन्तर मं०१६६६ से पाँच वर्ष तक अथक परिश्रम कर अपूर्व लगन के साथ जैनसिद्धान्त बोल संग्रह के आठ भाग, सोलह सती और आईत प्रवचन ग्रन्थ तैयार करा प्रकाशित कराये हैं। आपकी ज्ञानपिपासा एवं ज्ञान प्रचार की भावना के फलस्वरूप संस्था से १०७ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। आपकी दानवीरता एवं समाज तथा धर्म की सेवा का सम्मान कर सन् १९२६ में अखिल भारतवपीय श्रीश्वताम्बर स्थानकवासी जैन कॉन्फरन्स के कार्यकर्ताओं नेआपको कॉन्फरन्स के बम्बई में होने वाले सप्तम अधिवेशन का सभापति चुना। कॉन्फरन्स का यह अधिवेशन वड़ाशानदार और सफल हुआ । आपकी दानशीलता के प्रभाव से उस अधिवेशन में एक लाख से अधिक फंड इकट्ठा हुआ। समाज और धर्म की सेवा के साथ मापने बीकानेर नगर और राज्य की भी सेवा की लगभग दश वर्ष तक आप बीकानेर म्यूनिसि Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ “पल बोर्ड के कमिश्नर रहे । सन् १९२६ में सबसे पहले जनता में से आप ही सर्व सम्मति से बोर्ड के वाइस प्रेसिडेन्ट चुने गये। सन् १९३१ में राज्य ने भापको ऑनरेरी मजिस्ट्रेट बनाया ।लगभग सवादो वर्ष तक आप बेंच ऑफ ऑनरेरी मजिस्ट्रेट्स में कार्य करते रहे। आपके फैसल किये हुए मामलों की प्रायः अपीलें हुई ही नहीं, यदि दो एक हुई भी तो अपीलेट कोर्ट में भी आप ही की राय बहाल रही । इससे आपकी नीर-क्षीर विवेकिनी न्यायबुद्धि का सहज ही अन्दाज हो जाता है। । सन् १९३८ में म्यूनिसिपल बोर्ड की ओर से श्राप बीकानेर लेजिस्लेटिव एसेम्बली के सदस्य चुने गये । निस्स्वार्थभाव से बीकानेर की जनता की सेवा कर आप उसके कितने विश्वस्त एवं प्रिय बन गये, यह इससे स्पष्ट है ।। सन् १९३० में संयोगवश सेठियाजीको पुनः व्यवसायक्षेत्र में प्रवेश करनापड़ा। बीकानेर में बिजली की शक्ति से चलने वाला ऊन की गाँठें बाँधने का एक प्रेस विकाउ था। योग्य कार्यकर्ताओं के अभाव से वह वन्द पड़ा था । प्रेस के मालिक उसे चला न सके थे। क्रियात्मक शिक्षा देकर अपने पुत्रों को व्यापार-व्यवसायमें कुशल बनाने के उद्देश्य से आपने उक्त प्रेस खरीद लिया। राज्य ने आपको रियासत भर के लिये प्रेस की मोनोपोली दी । आपने प्रेस को एवं बीकानेर के ऊन के व्यापार को उन्नति देने का निश्चय किया । प्रेस के अहाते में आपने इमारतें,गोदाम और मकानात बनवाये और व्यापारियों के लिये सभी सहूलियतें प्रस्तुत की। आपने कमीशन पर व्यापारियों का खरीद फरोख्त का काम भुगताना, आर्डर सप्लाई एवं यहाँ से सीधा विलायत में माल चढ़ाने का काम शुरू किया। माल पर पेशगी रकम देकर भी आपने व्यापारियों को प्रोत्साहित किया। आपने प्रयत्न करके व्यापारियों के हक में राज्य एवं बीकानेर स्टेट रेल्वे से मुविधाएँ प्राप्त की। सभी प्रकार की मवि Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाओं के होने से बीकानेर राज्य एवं बाहर के व्यापारी यहाँ काफी तादाद में आने लगे। ऊन का कारबार करने वाली बड़ी बड़ी कम्पनियाँ भी यहाँ अपने कर्मचारी रखने लगीं। इस प्रकार उत्तरोत्तर प्रेस का काम बढ़ने लगा । सन् १९३४ में आपने ऊन के फॉटों से ऊन निकालने के लिये ऊन बरिंग फेक्टरी ( Wool Burring Factory ) खरीदी। राज्य ने इसके लिये भी भापके हक में मोनोपोली स्वीकृत की। इस प्रकार कुछ ही वर्षों में आपकी लगन और परिश्रम ने आपके संकल्प को कार्य रूप में परिणत कर दिया। आज ऊन प्रेस सन् १९३० के ऊन प्रेस से कुछ और ही है। यहाँ सैंकड़ों मजदर लगते हैं और हजारों मन ऊन का व्यापार होता है। हजारों गाँठे बंधती हैं और विलायत भेजी जाती हैं। प्रेस की साख ने लिवरपूल के मार्केट को भी प्रभावित कर रखा है । प्रेस के मार्के वाली गॉठे वहाँ अपेक्षाकृत ऊँचे भाव में विफती हैं। सेठ साल की धार्मिकता एवं परोपकार-भावना के फलस्वरूप ऊनप्रेस में भी गाय गोधों के घास एवं कबूतरों के चुगे के लिये होमि. योपेथिक एवं आयुर्वेदिक औषधियों के लिये तथा साधारण सहायता आदि के लिये पृथक् पृथक् फंड कायम किये हुए हैं और सभी में अलग अलग रकम जमा कराई हुई है । रकम के व्याज की आय से उपरोक्त सभी कार्य नियमित रूप से चल रहे हैं। उनप्रस के आदतिये भी गाय गोधों के घास एवं कबूतरों के चुगे के लिये लागा देते हैं। इस प्रकार ऊन प्रेस को सब भॉति समुन्नत कर सेठ साहेव ने उसे अपने सुयोग्य पुत्र श्री लहरचंदजी, जुगराजजी, और ज्ञानपालजी के हाथ सौंप दिया है एवं आपव्यापार व्यवसाय से सर्वथा निवृत्त हो धर्मध्यान में संलग्न हैं। पिछले पाँच वर्षों से धार्मिक साहित्य, पढ़ना, सुनना और तैयार करवाना ही आपका कार्यक्रम रहा है। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिवार की दृष्टि से सेठ सा० जैसे भाग्यशाली विरले ही मिलते हैं। आप के पाँच पुत्र हैं। सभी शिक्षित, संस्कृत एवं व्यापारकुशल हैं। सभी जुदे किये हुए हैं एवं जुदे २ व्यापार व्यवसाय में लगे हुए हैं। पाँचों पुत्र सेठजी के श्राज्ञानुवर्ती हैं एवं सभी भाइयों में परस्पर सराहनीय प्रेम है। यही नहीं आपके छः पौत्र,दो प्रपौत्र, दो पौत्री भौर दो प्रपौत्री हैं। सेठजी के दो पुत्रियों में से चोटी पुत्री मौजूद है एवं तीन दोहिते और पाँच दोहितियाँ हैं। सेठजी सफल व्यापारी, समाज और राज्य में प्रतिष्ठा प्राप्त,बड़े परिवार के नेता एवं सम्पन्न व्यक्ति हैं। आप दानवीर और परोपकारपरायण हैं। धर्म और परोपकार के कार्यों में आपने उदारता के साथ धन ही नहीं बहाया किन्तु तन और मन का योग भी भापने दिया है। बचपन में माता और बड़ी बहिनों से धार्मिक संस्कार प्राप्त करने वाले एवं धर्मस्थान में शिक्षा का श्रीगणेश करने वाले सेठ साहेव की प्रवृत्ति सांसारिक कार्यों के बीच रहते हुए भी सदा धार्मिक रही है। सांसारिक वैभव में जलकमलवत् निर्लिप्त रह कर आपने नाम से ही नहीं,कर्म से भी धर्मचन्द का पुत्र होना सिद्ध किया है। मापने बचपन में ही श्री हुक्मीचन्द जी महाराज की सम्प-, दाय के मुनि श्री केवलचन्दजी महाराज से धर्म श्रद्धा ग्रहण की थी। आप गुणों के ही पुजारी हैं। पंच महाव्रतधारी निर्मल आचारवाले सभी साधु आपके लिये पूज्य हैं । आपने अपने जीवन में कभी चाय,भंग,तमाखू या अफीम का सेवन नहीं किया । सात व्यसनों का आपके त्याग है तथा रात्रिभोजन का भी आपके नियम है। मापने श्रावक के वारद व्रत धारण किये हैं और जीवन के पिछले वर्षों में आपने शीलवत भी धारण किया है। ग्रहण किये हुए त्याग प्रत्याख्यान आप दृढता के साथ पालन करते रहे हैं। Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) ___आपकी सब से बड़ी विशेषता यह है कि आप स्वनिर्मित हैं। श्राप सदा स्वावलम्बी, साहसी, अध्यवसायशील एवं कर्मठ रहे हैं। सभी प्रकार से सम्पन्न होकर भी आप सर्वथा निरभिमान हैं। सादा जीवन और उच्च विचार' इस महान् सिद्धान्त को आपने जीवन में कार्य रूप दिया है। आपका चरित्र पवित्र एवं अनुकरणीय है। आप में परमहंसों का सा त्याग, साधुओं का सा कर्मसंन्यास और चीरों की सी कर्मनिष्ठा है। आपने क्या नहीं किया और क्या नहीं पाया परन्तु सांसारिक विभूति के मोह बन्धन में आपने अपने को कभी नहीं बाँधा । भापके इन्हीं गुणों से प्रभावित होकर जैन गुरुकुल शिक्षण संघ, ब्यावर ने आपको 'धर्य भूपण' की उपाधि से विभूपित किया है। यह उपाधि सब तरह से आप जैसे महापुरुष को शोभा देती है। हमारी परमात्मा से यही प्रार्थना है कि भापचिरायु हो। है बीकानेर (राजपूताना) । भादवा सुद ७ वि० सं० २०.१ । ता० २६-७-४४ ई० रोशनलाल जैन बी.ए., एल एल.वी., न्याय-फाव्य-सिद्धान्ततीर्थ, विशारद, Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) श्रीमान् सेठ धर्मचन्दजी का वंश श्रीमान् सेठ धर्मचन्दनी के चार पुत्र और पाँच पुत्रियाँ हुई। उनके नाम-श्रीप्रतापचन्दजी, श्रीअगरचन्दनी, श्रीभैरोंदानजी, श्री हजारीमलजी, चॉदाबाई, घमावाई, पन्नीबाई, मीराबाई ओर टुगीबाई । श्रीमान् प्रतापचन्दजी के तीन पुत्रियाँ और तीन पुत्र हुए। उनके नाम-तख्खुवाई, सुगनीबाई, मानबाई । सुगनचन्दजी, हीरालालजी, चनणमलजी । इन तीनों के कोई सतान न हुई। इन तीनों का तरुणावस्था में ही स्वर्गवास होगया । श्रीमान् चनणमलजो की धर्मपत्नी अभी मौजद है। उन्होंने श्रीमान् जेठमलजी सेठिया के ज्येष्ठ पुत्र श्री माणकचन्दजी को गोद लिया। श्रीमान् अगरचन्दजी के कोई सन्तान न हुई । उन्होंने अपने लघुभ्राता श्रीमान् भैरोदानजी के ज्येष्ठ पुत्र श्री जेठमलजी को गोद लिया। श्रीमान् भैरोंदानजी के ६ पुत्र और दो पुत्रियाँ हुई। वे इस प्रकार हैं-१वसंतकुंवर, २जेठमलजी, ३पानमलजी,४ लहरचन्दजी, ५उदयचन्दजी, ६जुगराजजी, ज्ञानपालजी, ८और मोहिनीबाई। संवत् १६६६ मिति काती मुदह को वसन्तकुंवर बाई का स्वर्गवास हो गया। उनके दो पुत्र और तीन पुत्रियाँ हैं। श्रीमान् जेठमलनी के चार पुत्र और एक पुत्री हुई। उनके नाम-माणक चन्दजी, केशरीचन्दजी, मोहनलाल, जसकरण और स्वर्णलता । १९६४ में केवल आठ वर्ष की अवस्था में ही जसकरण का स्वर्गवास हो गया। भी माणकचन्दजो के इस समय एक पुत्र कुसुमकुमार भोर एक पुत्री आशालता है। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) श्रीमान् पानमलजी के इस समय एक पुत्र श्री कुन्दनमलजी (भवरलालजी) है । कुन्दनमलजी के एक पुत्र रविकुमार ओर एक पुत्री लीला है। श्रीमान् लहरचन्दजी के इस समय एक पुत्र श्री खेमचन्दजी और एक पुत्री चित्ररेखा है। ____ संवत् १६७६ में श्रीमान् उदयचन्दजी का केवल १५ वर्ष की अवस्था में ही स्वर्गवास हो याग । उनके स्वर्गवास के पश्चात् करीब १६ महीनों के बाद उनकी धर्मपत्नी का भी स्वर्गवास होगया श्रीमान् जुगराजजी के इस समय एक पुत्र श्रीचेतनकुमार है। बाबू ज्ञानपालजी अभी अविवाहित है। मोहिनीबाई के इस समय एक पुत्र और दो पुत्रियाँ हैं । श्रीमान् भैरोंदानजी से छोटे भाई श्रीमान् हजारीमलजी थे। उनका स्वर्गवास युवावस्था में ही हो गया। उनकी धर्मपत्नी श्री रत्न कंवरजी को वचपन से ही धर्म के प्रति विशेष रुचि एवं प्रेम था।सवत् १९३६ में केवल छः वर्ष की अवस्था में आपने रतलाम में पूज्यश्री उदयसागरजी महाराज के पास सम्यक्त्व ग्रहण की थी। पतिका स्वर्गवास हो जाने पर धर्म के प्रति आपकी रुचि और भी तीव्र होगई । आपको संसार की असारता का अनुभव हुश्रा और वैराग्य भावना जागृत होगई । संवत् १६६५ में समस्त सांसारिक वैभवों का त्याग कर श्रीमज्जैनाचार्य पूज्यश्री श्रीलालजी महाराज के पास श्रीरंगूजी महाराज की सम्प्रदाय में श्री मैनाजी महाराज की नेत्राय में पूर्ण वैराग्य के साथ दीक्षा अंगीकार की। ३६ साल हुए आप पूर्ण उत्साह के साथ संयम का पालन करती हुई आत्म कल्याण की साधना में अग्रसर हो रही है । भादवा सुदुखवि. संवत्२००१ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ rs. hiji 更是 “出 fire 曲曲的山山山山山山山山山 ISE . -- माणकचन्द, केशरीचन्द, जुगराज, कुनणमल लहरचन्द,जेठमल, भैरोंदानजी, पानमल ज्ञानपाल Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) की पढ़ाई चलती रही है। एफ. ए. परीक्षा में कुल १२ छात्र प्रविष्ट हुए थे जिनमें ८ उत्तीर्ण हुए । मैट्रिक परीक्षा में ३० छात्रों में २७ पास हुए। इस वर्ष कालेज में वी ए. कक्षा नहीं रखी गई किन्तु अागामी सेशन से पुन बी ए. कक्षा खोल दी जायगी। कन्या पाठशाला इस पाठशाला में पूर्ववत् पहली से लेकर चौथी तक चार कक्षाएं चलती रही हैं । इन कक्षाओं में कन्याओं को हिन्दी, गणित, स्वास्थ्य, धर्म, भूगोल, वाणिका, सिलाई और कशीदा आदि विषयों का ज्ञान कराया जाता रहा है। छात्राओं की साल भर में सख्या ७० और ८० के बीच में रही। समाज सेवा विभाग इस विभाग द्वारा समाज मेवा सवधी सभी प्रकार के कार्य किये जाते रहे हैं। इन में श्री श्वेताम्बर साधुमार्गी जैन हितकारिणी संस्था के अाय व्यय का हिसाब रखना तथा ग्राम्य पाठशालाओं के संचालन की देखरेख एवं प्रबंध का कार्य होता रहा है। ___इस विभाग द्वारा संत मुनिराजों एवं महापतियों के विहारादि सबधी पत्रव्यवहार और दीक्षार्थी भाई बहनों के लिये भण्डोपकरण का प्रबंध भी होता रहा है। इस विभाग द्वारा इस वर्ष ४२३ मूल्य की सम्था द्वारा प्रकाशित पुस्तकें भिन्न भिन्न संस्थाओं और व्यक्तियो को भेंट स्वरूप दी गई हैं इसके अतिरिक्त बिना मूल्य की १.२ पुस्तकें भी इस विभाग द्वारा भेंट दी गई। प्रिन्टिग प्रेस (छापाग्वाना) इस विभाग में डम वर्ष मेठिया ग्रन्थमाला की १०५ से १०७ तक की नवीन पुस्तकों का मुद्रण हुमा । युद्ध जन्य कठिनाइयों के कारगा इस साल प्रेस का काम मद गति से चला । कर्मचारियों तथा कागज की कमी के कारण केवल नीचे लिखी पुस्तकें छप सकी। समय को देखते हुए यह भी सतोषजनक ही है । (१) पाहतप्रवचन (२) श्रीप्रतिकमणसूत्र मूल ७ वीं श्रावृत्ति (३) श्री सामायिकसूत्र मार्थ ५वीं प्रावृत्ति (४) श्री जनसिद्धान्त बोल सग्रह सातवाँ भाग (५) श्रीमान् सेठ भैरोंदानजी सा सेठिया की सक्षिप्त जीवनी (६) हिन्दी वाल शिक्षा दुसरी प्राइमर । प्रमी श्री जैन सिद्धान्त वोल सग्रह के पाठचे भाग की छपाई हो रही है। ग्रन्थालय और वाचनालय इस वर्ष भिन्न भिन्न भाषाओं की कुल ३१० नई पुस्तकें ग्रन्थालय में पाई । दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक भौर त्रैमासिक पत्र पत्रिकाएँइस वर्ष भी पाती रही हैं और उन्हें वाचनालय में रखा जाता रहा है । इस वर्ष १२७ सदस्यों ने ३३६३ पुस्तकें पढ़ने के लिए पुस्तकालय से ली तथा वाचनालय से लाभ उठाया । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध Pr १४६ २५६ ३८४ १६७ प्रन्थालय में इस समय हिन्दी, संस्कृत, गुजराती, अंग्रेजी, पत्राकार, हस्तलिखित श्रादि कुल मिलाकर 8 ०६ पुस्तकें संगृहीत हैं । विवरण नीचे लिखे अनुसार है - हिन्दी ३६८१ | आयुर्वेद (वैद्यक) कोष और व्याकरण १२७ ज्योतिष शास्त्र इतिहास और पुरातत्त्व १४५ दर्शन और विज्ञान अंग्रेजी धर्म और नीति १३७३ Works of reference 170 साहित्य और समालोचना History and काव्य और नाटक ४४२ ___Geography 213 उपन्यास और कहानी | Theology, Philosophy जीवन चरित्र १२२ and Logic 287 राजनीति और अर्थशास्त्र 930 Law & Jurisprudence 83 ज्योतिष और गणित Literature 264 स्वास्थ्य और चिकित्सा Fiction 225 भूगोल और यात्राविवरण Politics & Civics 8 कानून Business & Economics 45 बाल साहित्य Science and art of २६४ medicine 157 सस्कृत Science &mathematics 56 कोष और व्याकरण Biography&autoसाहित्य,काव्य,नाटक, चरित्र । २३५ ___biography 109 __ और कथा ) Industrial science 50 आर्ष ग्रन्थ Art of teaching 13 १३४ दर्शन शास्त्र जर्मन, फ्रेंच आदि १०३ धर्म शास्त्र और नीति पत्राकारशास्त्र एवं ग्रन्थ ५३० स्तुति स्तोत्रादि हस्तलिखित ग्रन्थ iiin 119 ग्रंथ निर्माण विभाग इस साल छापाखाना विभाग में छपने वाले समस्त ग्रन्धों का संशोधन इसी विभाग के कर्मचारियों द्वारा हुआ । श्रीश्वेताम्बर साधुमार्गी जैन हितकारिणी सस्था की दश वर्षीय ८४ २१३ विविध १८२ करण १३४ ६६ १८४ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) रिपोर्ट लिखी तथा सशोधित की गई । श्रीजैनसिद्धान्त वोल संग्रह के आठवें भाग की पांडुलिपि तैयार की गई और अावश्यक सशोधन परिवर्तन कर प्रेस कापी तैयार की गई। सन् १९४४ के आय-व्यय का संक्षिप्त विवरण १६६०३।।-)। कलकते के मकानों के किराये ११६८५||-) श्री सेठिया जैन पारमार्थिक के मास वारह के संस्था में खर्च हुए १७८२ व्याज , ६३७॥॥मेठिया प्रिंटिग प्रेस में २०१। श्रीमान् लहरचदजी सेठिया से ४५) 'बोर्डिंग खाते 'खर्च हुए प्राप्त हुए शास्त्र तथा दीनो- १००१)महायता में दिये श्री करणादिमें खर्च करने के लिये स्थानकवासी जैन लाय१०१) श्रीमगनवाई स्वर्गीय धर्मपत्नी वेरी श्रीनगर काश्मीरको जेठमलजी मेठिया से प्राप्त हुए ५१) श्रीमहावीर जैन लायवेरी शास्त्रतथा दीक्षोपकरणादिमें श्रीरायसिंहनगर में दिये खर्च करने के लिये १२८||l-J॥ विविध खुदरा ५२००) श्रीमान् सेठ भैरोंदानजी सा सहायता में दिये सेठिया से प्राप्त हुए ३४४६) विद्यालय में वेतन के २००० छात्रवृत्तिदेने केलिये १७३५॥ वाल पाठशाला में २०००) बोर्डिंग के लिये ८८८। कन्या पाठशाला में १२००) सहायता मे देने के लिये १२७५||| ।। सेठिया नाइट कालेज ५५२||३॥ हे बॉफिस में खर्च हुए .७४७०J मेठिया लायबेरी में पुस्तक व समाचारपत्र आदि में ७४]]खर्च विजली तथा पखे का १२६७) कर्मचारियों को महगाई भत्ते के दिये ५०॥ परचुरगा खर्च ८४) मकानों की मरम्मत में ७०७४) कलकते के मकानों का ता० २१ सितम्बर १६४४ को नयादीड श्रॉफ ट्रस्ट वनवायाउममें स्टाम्प,रजिस्ट्री व एटर्नी की फीस के खर्च हुए Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) संस्था की कलकत्ता स्थित स्थावर संपत्ति का नबीन ट्रस्ट नामा श्री सेठिया जैन पारमार्थिक सस्था के संस्थापक महोदयों ने संस्था के स्थायित्व के लिये कलकते भौर बीकानेर में स्थावर सपत्ति प्रदान कर कलकत्ता और बीकानेर में उसकी लिखापढ़ी कर दी थी। कलकते की संपत्तिके अलग अलग तीन डीड्स आफ सेटलमेन्ट रजिस्टर्ड कराये गये थे। किन्तु उनमें कुछ कमी महसूस कर संस्थापक महोदयों ने उन्हें रद्द कर दिया एव सस्था के स्थायित्व के लिये उनके बदले ता० २१ सितम्बर १६४४ तदनुमार मिति प्रासोज सुदी ६ स. २००१ शनिवार को नीचे लिखी सपत्ति का नया डीड अॉफ ट्रस्ट बनाकर उसकी सवरजिस्ट्रार कलकत्ता के दफ्तर में रजिस्ट्री करा दी। उक्त नवीन डीड ग्राफ ट्रस्ट के अनुसार सेठिया जैन पारमार्थिक मस्था के वर्तमान में निम्नलिखित तीन ट्रस्टी है - १ श्रीमान् दानवीर सेठ भैरोंदानजी मेठिया २ , बावू जेठमलजी सेठिया ३ , , माणकचदजी सेठिया उक्त डीड के अनुसार ट्रस्टियों की संख्या ६ तक हो सकेगी। ट्रस्ट कमेटी के अधीन संस्था की व्यवस्था के लिये जनरल कमेटी,प्रवन्धकारिणी कमेटी तथा आवश्यकतानुसार अन्य सब कमेटियां स्थापित की जायेगी एव यथासमय उनके लिये नियम उपनियम निर्धारित किये जायेंगे। कलकत्ते की स्थायी संपत्ति १. मकान न १६०-१६० 11 पुराना चीना वाजार २ मकान न. ३,५,७,९,११ और १३ कोस स्ट्रीट (मूंगापट्टी) तथा न १२३ भौर १२५ मनोहरदास स्ट्रीट ३. मकान न ६ जेक्शनलेन तथा १११, ११२, ११३, ११४और ११५ केनिंग स्ट्रीट का दो तिहाई हिस्सा नोट-उक्त जेक्सनलेन और केनिग स्ट्रीट का एक तिहाई हिस्सा श्रीमान् वाबू जेठमलजी सा सेठिया ने सस्या को दिया वह नवीन ट्रस्ट डीड में है और एक तिहाई हिस्सा ता १६ ७-४० को संस्था ने खरीदा है । इस प्रकार इस मकान में संस्थाका दो तिहाई हिस्सा है और एक तिहाई हिस्साश्रीमान् गोविन्दरामजी भीखणचन्दजी भनसाली का है। कलकते की उक्त स्थावर संपत्ति के सिवा बीकानेर नगर में सध्या की नीचे लिखी स्थावर संपत्ति है Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८) बीकानेर की स्थावर संपत्ति १--मोहल्ला मरोटियों का विशाल भवन (जिसमें पागे तीन मंजिला मकान है और पीछे की तरफ दो मजिला मकान है ) भागे पीछे के चौक, छप्परे और वाड़ा सहित । यह भवन कोटडी के नाम से प्रसिद्ध है। यह मकान सस्था के संस्थापकोंने, सवर, सामायिक, प्रतिक्रमगा, पौषध, दया करने और साधु साध्वियों के ठहरने के लिये ( यदि वे ठहरना चाहें तो ) तथा मुनि महाराज एव महासतियों के व्याख्यान के लिये एवं इसी प्रकार के अन्य धार्मिक कार्यों के लिये दिया है । इसकी रजिस्ट्री स. १९८० में ता ३० नवम्बर १९२३ को हुई। तभी मे इस कोटही की सार सभाल सस्था कर रही है । सस्था ने इसकी मरम्मत कराई है, इसमें छप्पर वगैरह वनवाने में लागत लगाई है और सस्थापकों ने इस मकान का नया खत बीकानेर राज्य में श्री प्रगरचन्द भैरोदान सेठिया जैन पारमार्थिक सस्था के नाम करा दिया है । यह खत ता २६-४-४१ का है । नम्बर मिसल १७ तारीत्र मरजुया १३-१२-३८ई० नाम नहसील मालमडी नम्बर ३०३ है। इस खत के अनुसार इस मकान की कुल दरगज ३००५॥३॥ है। नोट-इस भवन में पहली मजिल में दरवाजे के दोनों तरफ के दोनों दीवानखाने और उनके नीचे के दोनों तनवा पस्या में नहीं दिये हुए है । ये दोनों अगरचन्दजी भैरोंदानजी मेठिया के निजी है और इनका खत उनके नाम का अलग बना हुआ है । दीवानखानों की कुन दरगज २२८॥ है । दीवानखानों के ऊपर की मंजिल सस्था की है। २-मोहल्ला मरोटियों का दूसरा दो मंजिला विशाल भवन (चौक औरवाड़ा सहित)। यह भवन मेठिया लायवेरी के नाम से प्रसिद्ध है। सस्थापक महोदयों ने यह भवन मेठिया जैन पारमार्थिक मस्या के लिये दिया है। अभी इस भवन में सेठिया प्रन्थालय, कन्यापाठशाला, वालपाठगाला, नाइट कॉलेज मादि मस्या के विभाग हैं। इसकी रजिस्ट्री वीकानेर में स १६८० में ता २८ नम्बर १६२३ को हुई । सस्थापकों ने इस मकान का नया खत बीकानेर राज्य से श्री अगरवन्द भरोंदान मठिया जैन पारमार्थिक सस्था के नाम करा दिया है। यह ग्वत ता २६-४-४१ का है । नम्बर मिसल १७ तारीख मरजुमा १३-१२-३८ ई नाम तहसील मालनडी नबर ३०५ है। इस खत के अनुसार इस मकान की दरगज १३६३॥ है । ता २८ नवम्वर १६२३ की रजिस्ट्री के बाद सस्या को प्राप्त जनीन तथा एक बाड़ा भी नये ग्वज्ञ में शामिल है। __ नोट-इस भवन में कन्यापाठगाना के वर्तमान मकान के नीचे का तहखाना (जिसकी दरगज १३६- है ) तथा तोन वाडों में से दो बाड़े १६ 91- दरगज के संस्था में नहीं दिये हुए है । यह तहखाना तथा दोनों वार्ड यगरचन्दजी भैरोंदानजी सेठिया के निजी है । तहखाने और दोनों वाहों के दो खत उनके नाम भलग बने हुए हैं । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३-मकान एक उगृण दरवाजे का चौकी समेत, जिसकी दरगज ३३६॥ है और ओ ठठारों की गली में वाके है, मोती, भोलु व गोलु टठारा से स १६७६ माह वदी ६ ता १५ जनवरी सन् १६२० ई को खरीदा और उस पर लागत लगाकर दो मजिले प्रासरे इमारत बनवाये इसके बाद वि स २००१ मिति प्रथम चैतवदी ६ ता ५ मार्च १६४५ को संस्थापक महोदय ने संस्था के हक में दानपत्र लिख दिया और तहसील मालमडी में रजिस्ट्री करादी । संस्था के नाम इस मकान का पट्टा बनाने के लिये भी राज्य में दरखास्त कर दी गई है । इस मकान के पासे पाम इस प्रकार है- मकान में प्रवेश करते ही दाहिनी ओर धन्ना ठठारा (फिलहाल जीवणजी महाराज) का घर है, बाई मोर हजारी ठारे का घर है, पीछे के तरफ आशुनाई का मकान है और सामने गली है। नोट - उक्त कलकत्ता एव बीकानेर दोनों जगह की स्थावर सपत्ति एक ही सस्था (सेठियाजेन पारमार्थिक सस्था) की है। प्रत. उनकी सुव्यवस्था क लिये यह आवश्यक है कि कलकते और बीकानेर की उक्त सपत्ति की देखभाल एक ही ट्रस्ट कमेटी के अधीन हो और एक से नियमों के अधीन उनका नियन्त्रण हो । अतएव सस्थापक महोदयों का विचार है कि कोटही और सेठिया लायबेरी के मकान की, बीकानेर राज्य में कराई हुई ता २८व ३० नवम्बर १९२३ की रजिस्ट्रियों को अपने सुरक्षित अधिकार के अनुसार रहकर संस्था की वीकानेर की सपत्ति के नये ट्रस्टडीड बनाये जायें पोर उनकी बीकानेर राज्य में रजिस्ट्री करा दी जाय । सेठिया जैन ग्रन्थमाला का प्रकाशन मेठिया जैन ग्रन्थमाला से श्री जैन सिद्धान्त वोल सग्रह के पाठभाग,सोलह सती, आर्हत प्रवचन, जैन सिद्धान्त कौमुदी, अर्द्धमागधी धातु रूपावली, कर्तव्यकौमुदी, सक्तिसग्रह,उपदेशशतक,सुखविपाक सार्थ,मागलिक स्तवन सग्रह प्रथम द्वितीय भाग, गुणविलास, गणधरवाद के तीन भाग, सक्षिप्त कानून संग्रह, प्रकरगा थोकड़ा सग्रह, प्रस्ताररत्नावली, पचीस वोल का थोकड़ा ,लघुदडक का योकड़ा, सामायिक तथा प्रतिक्रमगा सूत्र मूल और सार्थ इत्यादि कुल १०८ पुस्तकें प्रकाशित हुई है । विशंप विवरण के लिय सस्था का सूचीपत्र मगाकर देखिये । आर्डर भान पर पुस्तके वी पी द्वाग भेजी जायेगी। पता:- अगरचन्द भैरोंदान सेठिया जैन पारमार्थिक संस्था वीकानेर (राजपूताना) A garchand Bhairodan Setha Jain Charitable Institution, Bikaner Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रमाण ग्रन्थों को संकेत सूची ग्रन्थ नाम, भाषाव काल ग्रन्थकर्ता और उसका काल संकेत प्रकाशन का स्थान और समय अत. टीकाकार-प्रभयदेवसूरि वि स १०७२-११३५ टीकाकार-अभयदेव सुरि वि स १०७२-११३५ पागमोदय समिति वीर स २४४६ भागमोदय समिति १. वीर स २४४६ अतगडदसा-प्रतकृद्दशा सूत्र सटीक मुल प्राकृत, टीका सस्कृत अणुत्तरोवाई-अनुत्तरोपपातिक सूत्र सटीक, मूल प्राकृत, टीका सस्कृत अनुयोगद्वार सूत्र सटीक मूल प्राकृत, टीका सस्कृत अभिधान चिन्तामगिग सस्कृत-कोष अनु टीकाकार-मलधार गच्छीय श्री हेमचन्द्र सूरि श्री हेमचन्द्राचार्य वि. स ११४५-१२२६ अभि. चि प्रागमोदय समिति वीर स २४५० लालचन्द्र नदलाल वकील, श्री मुक्तिकमल जैन मोहनमाला कोठीपोल, बडोदा,वीर स २४५१ श्री जैन प्रभाकर प्रिंटिग प्रेस रतलाम,वीर स २४४०-२४५१ श्री श्वे स्थानकवासी जैन कॉन्फरन्स वम्बई,वीर स २४४६-२४६४ अभि रा अर्द्ध मा अभिधान राजेन्द्र कोष (सात भाग) प्राकृत से सस्कृत भर्द्धमागधी कोष (पाँच भाग) प्राकृत से हिन्दी, गुजराती और अंग्रेजी श्री विजय राजेन्द्र सूरि वि. स १८८३-१९६३ शतावधानी श्री रत्नचन्द्रजी महाराज,वि स १६३६-६८ वैशाख Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशन का स्थान व समय __ श्री मनसुखभाई पोखाड़, अहमदाबाद (२१) ग्रन्थ को भौर उसका काल हरिभद्रसूरि (छठी शतान्दी) वृत्तिकार-जिनेश्वरसूरि श्रीमद्देवचन्द्रजी महाराज वि १८वीं ११ वीं शताब्दी टीकाकार-शीताकाचार्य ग्रन्थ नाम, भाषा व काल अष्टक प्रकरण, सस्कृत वृत्ति (वि.सं. १०८.) मागमसार,मूल गुजराती, हिन्दी अनुवाद, वि स १७७६ प्राचाराग सूत्र सटीक, मूल प्राकृत टीका संस्कृत वि सं १३३ प्रातुर प्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्राकृत,दस पइपणा में दूसरी पइण्णा भालापपद्धति, सस्कृत श्री अभयदेवसूरि ग्रन्थमाला, बड़ा उपाश्रय बीकानेर,वीर स २४४८ मागमोदय समिति, वीरस २४४२ मागमोदय समिति,वीर स २४५३ श्री देवसेनसरि, वि १०वीं शताब्दी माणिकचद् दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला वम्बई, पीर स २४४६ भागमोदय समिति वीर स २४५४ प्रावश्यक सूत्र पूर्वभाग सटीक नियुक्तिकार-भद्रवाहुस्वामी मूल और नियुक्ति-प्राकृत, ( वीर की पहली दूसरी शताब्दी) टीका सस्कृत टीकाकार-मलयगिरि आवश्यक सूत्र पूर्व और उत्तर भाग सटीक नियुक्तिकार-श्रीभद्रबाहुस्वामी मूल और नियुक्ति-प्राकृत, ( वीर की पहली दूसरी शतान्दी) टीका संस्कृत टीकाकार-इरिभद्रसरि ( छठी शताब्दी) भागमोदय समिति धीर स २४४३-२४४४ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार. ह. टि. (२२) भावश्यक हरिभद्रीय टिप्पण, सस्कृत मलधार गच्छीय श्री हेमचन्द्रसूरि उत मा.वि. आभ्यात्मिक विकासक्रम, गुजराती प सुखलालजी सघवी ( विद्यमान) उत्त. उत्तराध्ययन सूत्र (दो विभाग) सटीक नियुक्तिकार-श्रीमद्रबाहुस्वामी । ' मूल और नियुक्ति-प्राकृत,टीका संस्कृत टीकाकार श्री शन्त्यिाचार्य (११वीं शताब्दी) उत्त. (क) उत्तराध्ययन सूत्र सटीक,मूल प्राकृत, टीका कार-श्रीकमल सयमोपाध्याय ' टीका संस्कृत वि स.१५४४ ( सोलहवीं शताब्दी ) सर्वार्थ सिद्धि टीकार । - 'उत्त (ह) उत्तराध्ययन सूत्र हस्तलिखित उपा. उपासकेंदशांग सूत्र सटीक टीकाकार-अभयदेवमूरि ! " मूल प्राकृत,टीका संस्कृत । (वि स. १०७२११३५ ) , उपा. (म.) : उपासकदशाग सूत्र अंग्रेजी अनुवाद) अनुवादक- ए एफ. रुडोल्फ हार्नले उपा ह 'उपासकदशाग सूत्र हस्तलिखित देवचद लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फड बम्बई, वीर सं २४४६ एस जे शाह,मादलपुर अहमदाबाद,वि. स. १९८५ देवचद लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फड, बम्बई, वीर स २४४२ विजय धर्म लक्ष्मी ज्ञान मदिर बेलनगज, आगरा वीर स २४४६-२४५१ श्री सेठिया जेन ग्रन्थालय बीकानेर आगमोदय समिति , पीर स. २४४६ बिब्लोथिका इन्डिका कलकत्ता, सन् १९८० ई. अनूप सस्कृत लायरी, (बीशनर का प्राचीन पुस्तक भंडार ) बीकानेर मागमोदय समिति, वीर सं २४४२ उव. पि उववाई (भोपपातिक) सूत्र __ मूल प्राकृत,टीका, सस्कृत, मृपि मडल वृत्ति मूल-पाकृत, टीका-सस्त, अनुवाद-गुजराती दीकाकार-अभयदेवसूरि ...(वि. स १०७२-११३५) धर्मघोपसूरि, टीकाकार-शुभवर्द्धनगी " अनुवादक-शास्त्री हरिशकर कालीदास श्री जैन विद्याशाला डोशीवाड़ानी पोल अमदावाद, वि सं. १६५८ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त (२३) ग्रन्थ नाम, भापा व काल ग्रन्थकता और उसका काल प्रकाशन का स्थान और समय , प्रोनियुक्ति, मून-प्राकृत, नियुक्तिकार श्री भद्रवाहुस्वामी श्रागमोदय समिति 1 टीका सस्कत। ।। " (वीर. की पहली दूसरी शताब्दी) वीर स २४४५ टीकाकार श्री द्रोणाचार्य(ग्यारहवीं शताब्दी) '!' कर्तव्यकोमुंदी दूसरा भाग सस्कृत, शतावधानी श्री रत्नचंद्रजी स्वामी श्री भैरोंदानजी जेठमलजी सेठिया वीकानेर भाषानुवाद सहित (विम '८०) (वि स १६३६- १६६८ वैशाख) वीर स २४५१ ---- (१) कम्मपछि (फर्म प्रकृति) मटीक, मूल-शिवशर्माचार्य .श्री जैन.धर्भ प्रसारक सभा भावनगर टीकाकार उपाध्याय श्रीयशोविजयजी ।' वीर स २४४३ ' '(२) कम्मपयडि, मलयनिरिकी टीका अनुवादक पं. चदुलाल नानचद श्री अध्यात्म ज्ञान प्रसारक मडल " ' को गुजराती अनुवाद पादरा (गुजरात), वीर स १९७६ (१) कर्म ग्रन्य भाग काप्राकृत मूल और टीकाकार श्रीदेवेन्द्रसूरि .' श्रीवात्मानन्द जैन पुस्तक प्रचारक मडल टीका-संस्कृत,हिन्दी अनुवाद सहित (तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी ) रोशन मोहल्ला आगरा, वीर स २४४४-२४४८ (२) कर्म ग्रन्थ भाग ५-६ । पाँचवें भाग के मूल प्रौर टीकाकार-श्रीदेवेन्द्रसूरि प्रात्मानन्द सभा,भावनगर मून प्राकृत-टीका 'सस्कृत छठा भागमूल-श्रीचन्द्रर्षिमहत्तर,टीकाकार-मलयगिरि वीर स २४६६ कल्प सूत्र मटीक,मूल प्राकृत,सुबोधिका मूल भद्रबाहुस्वामी(वीर की पहली दूसरी शताव्दी) देवचद लालभाई जैन * टीका सस्कृत • - -टीका विनय विजयजी उपाध्याय पुस्तकोद्धार फड, बम्बई (१७ वी १८ वीं शताब्दी) वीर स २४४६. __ प 11 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कारगा. क्षेत्र. गच्छा . गीता (२४) कारगा सवाद,हिन्दी शतावधानी श्री रत्नचन्द्रजी स्वामी - हीरालाल सुगनचद जैन नया बाजार अजमेर वीर स २४६५ (वि. स १६३६-१९६८ वैशाख) वीर स २४१५ क्षेत्रलोक प्रकाश, सस्कृत उपाध्याय श्रीविनयविजयजी[१७वीं १८वीं शताब्दी] श्रावक हीरालाल हंसराज जामनगर गुजराती अनुवाद सहित अनुवादक-श्रावक हीरालाल हसराज ' वीर स २४४२ गच्छाचार पयना प्राकृत भागमोदय समिति, वीर स २४५३ श्रीमद्भगवद्गीता (संस्कृत) साधारण गीता प्रेस, गोरखपुर भाषा टीका सहित वि सं २००१ गुणस्थान क्रमारोह (संस्कृत का हिन्दी मूल-रत्नशेखरसूरि मात्म तिलक ग्रन्थ सोसायटी मनुवाद) वि सं १४४७ अनुवादक-श्री तिलकविजयजी पजाबी रतनपोल, महमदाबाद, वीर स २४४५ चौदह गुणस्थान का थोकड़ा, हिन्दी भैरोंदानजी जेठमलजी सेठिया बीकानेर वीर स २४५५ गौतम कुलक-प्राकृत गौतम मुनि श्री जैन धर्म प्रसारक सभा, भावनगर, वीर सं २४५४ चतुर्भावना पाठमाला मूल संस्कृत, मूल-शतावधानी श्रीरत्नचद्रजी स्वामी रत्नलाल अहदास जैन सोनीपत व्याख्या-हिन्दी (वि स १६३६-१९६८ वैशाख ) वीर सं २४५५ व्याख्या धर्मोपदेष्टा श्री फूलचंदजी महाराज चन्दनवाला (मती वसुमती) हिन्दी पूज्य श्रीजवाहरलालजी महाराज के व्याख्यान - श्री हितेच्छु श्रावक मडल रतलाम . . (वि स १६३२.२००० माषाढ शुक्ला ८) चीर स २४६२ a. चन्दन Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकत चन्द्र, प्रकाशन का स्थान ओर समय राजा बहादुर लाला सुखदेवसहाय ज्वालाप्रसाद जौहरी महेन्द्रगढ़, वीर स २४४५ श्री जानकीनाथ काव्यतीर्थ, सस्कृत विद्यालय निवेदितालेन कलकत्ता, १३३२ वशाब्द ग्रन्थ नाम, भाषाव काल ग्रन्थकत्ता आर उसका काल ग्रन्थकर्ता और उसका काल चन्द्रप्रज्ञप्ति मूल-प्राकृत हिन्दी अनुवादक मुनि श्री अमोलखऋषिजी महाराज अनुवाद सहित ( वि स १६३४- ) छन्दोमजरी, सस्कृत टीकातया वैद्य महामहोपाध्याय श्रीमद् गगादास अनुवाद सहित टीकाकार और श्रीगुरुनाथ विद्यानिधि भनुवादक । भट्टाचार्य जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति (दो भाग) मूल-प्राकृत, टीकाकार-उपाध्याय श्रीशान्तिचद्रगगणी टीका सस्कृत (विक्रम स १६५०) जीवाजीवाभिगम सूत्र मूल-प्राकृत, टीकाकार- श्रीमलयगिरि टीका-सस्कृत जैन तत्त्वादर्श, हिन्दी श्री विजयानन्दसूरीश्वर पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध (श्री प्रात्मारामजी महाराज) जैन ग्रन्यावली, हिन्दी जैन सिद्धान्त प्रवेशिका-हिन्दी पं. गोपालदासजी वरैया ज्ञाताधर्म कथा(गणायाधम्मकहा) टीकाकार-श्रीअभयदेवसूरि मूल-प्राकृत टीका सस्कृत(विस ११२०) (वि स १०७२-११३५) ज्ञानार्णव,सस्कृत हिन्दी अनुवाद मूलकर्ता-श्रीशुभचन्द्राचार्य [नवीं शताब्दी] सहित अनुवादक प पन्नालालजी बाकलीवाल देवचद लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फड बम्बई, पीर सं २४४६ देवचद लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फड बम्बई, वीर स २४४५ श्री आत्मानन्द जैनें महासभा अम्वाला, वीर सं २४६२ श्रीश्वेताम्बर जैन कॉन्फरन्स वम्बई, वीर स २४५३ जैन प्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, वि. स १९८१ श्री भागमोदय समिति वीर स २४४५ परमश्रुत प्रभावक मडल, बम्बई वीर सं.२४३३ जै. ज्ञा. ज्ञान. Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकेत ठा. तत्त्वार्थ तत्त्वार्थ[सु] तन्दुल. त्रिलोक. (२६) ग्रन्थ नाम, भाषा व काल ग्रन्थ कत्तों और उसका काल प्रकाशन का स्थान व समय ठागणाग सूत्र [स्थानाग सूत्र] दो भाग टीकाकार श्री अभयदेवसरि प्रागमोदय समिति मूल-प्राकृत,टीका सस्कृत वि स.११२० [वि स. १०७२-११३५ ] वीर सं २४४५-४६ सभाष्य तत्त्वार्थाधिगम सूत्र,संस्कृत वाचकमुख्य श्रीउमास्वाति मोतीलाल लाधाजी पूना, वीर स २४५२ तत्त्वार्थ सूत्र,गुजराती [दो भाग विवेचक-पं. सुखलालजी [विद्यमान गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद, वि सं १९८५ तन्दुलवेयालिय पइगणा,प्राकृत देवचंद लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फड (दम पइगगणा में से पाचवीं पइराणा) वम्बई, वीर स. २४५३ त्रिलोकसार, प्राकृत, टीका सहित श्रीनेमिचद्र सिद्धान्त चक्रवर्ती माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला समिति टीकाकार-श्री माधवचन्द्र हीरावाग गिरगाव घम्बई, वीर स. २४४४ त्रिपरि शलाका पुरुष चरित्र हेमचद्राचार्य जैनधर्म प्रमारक सभा भावनगर गुजराती अनुवाद भाग ४ वि स ११४५ -१२२६ ] दस पइगगा [प्रकीर्णक] प्राकृत देवचद लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फड बम्बई दशवकालिक सुत्र, मूल मौर मुलकर्ता-शय्यभवस्वामी [वीर की प्रथम शताब्दी) देवचद लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फड बम्बई, नियुक्ति-प्राकृत, टीका संस्कृत नियुक्तिकार-भद्रबाहुम्वामी [वीर की पहली दूसरी वीर सं २४४४ शताब्दी]टीकाकार-हरिभद्रसूरि [छठी शताब्दी] दशाश्रुतस्कध दशाभाषान्तर मनुवादक-उपाध्याय श्री प्रात्मारामजी महाराज जैन शास्त्रमाला कार्यालय, सैदमिठा बाजार लाहोर, सहित मून प्राकृत [ विद्यमान ] वीर स. २४६२ विप . द.प दश. दशा Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दव्य त. दन्यलो दव्य स १. वि घर नय. जय प्र. नयो. ( २७ ) मुनि भोजसागरजी [ सोलहवीं शताब्दी ] अनुवादक-प ठाकुरदत्त शर्मा व्याकरणाचार्य विनयविजयजीमहाराज (१७वीं १८वीं शताब्दी) अनुवादक - प हीरालाल हसराज द्रव्यानुयोग तर्कणा-संस्कृत, हिन्दी अनुवाद सहित द्रव्यलोक प्रकाश, सस्कृत गुजराती अनुवाद सहित द्रव्यसग्रह, प्राकृत, हिन्दी टीका सहित धर्मसग्रह,सस्कृत[वि स १७३१] उपाध्याय श्री मानविजयजी धर्म विन्दुप्रकरण, संस्कृत धर्मरत्नप्रकरण [विस १२७१] श्री शान्तिसूरि नदीसूत्र सटीक मूल - प्राकृत, टीका संस्कृत नयचक्र, प्राकृत नयप्रदीप, संस्कृत नयोपदेश संस्कृत श्री नेमिचंद्र सिद्धान्त चक्रवर्ती हिन्दी टीकाकार- बाबू सूरजभानु वकील हरिभद्रसूरि ( छठी शताब्दी ) वृत्तिकार - मुनि चद्राचार्य (वि. १२वीं शताब्दी) परमश्रुत प्रभावक मंडल बम्बई, वीरस २४३२ श्री यशोविजय गणी [ १७वीं १८वीं शताब्दी ] श्री यशोविजय गयी [१७६ १ ८वीं शताब्दी ] पं हीरालाल इसराज, जामनगर वीर स २४४५ श्री जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय हीराबाग गिरगाव बम्बई, वीर स २४५३ देवचंद लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फड, बम्बई वीरस २४५१ आगमोदय समिति वीर स २४५० श्रात्मानन्द जैन सभा भावनगर, वीर स २४५२ देववाचक- क्षमाश्रमण [वीर की १० वीं शताब्दी] श्रागमोदय समिति, वि. स. १६८० टीकाकार - प्राचार्य श्रीमलयगिरि श्री देवसेनसूरि (वि दसवीं शताब्दी) माणिकचद्र दिर्गम्बर जैन ग्रन्थमाला समिति बम्बई, वीर स. २४४६ आत्मवीर सभा भावनगर, वीर से २४४५ श्रात्मवीर सभा भावनगर, वीर स. २४४५ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकेत नत्र नवपद. निर निशी (२८) ग्रन्थ नाम,भाषा व काल ग्रन्यकता और उसका काल प्रकाशन का स्थान भौर समय नवतत्व,मूल-प्राकृत हिन्दी श्री आत्मानद जैन पुस्तक प्रचारक मडल देहट भाषानुवाद सहित वीर स. २४४२ नवपद प्रकरणा बृहद्वृत्ति मूलक -देवगुप्तसूरि देवचंद्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फड वम्बई मूल-प्राकृत [विस १०७३] टीकाकार-यशोदेव उपाध्याय वीर सं. २४५३ टीका सस्कृत वि स ११६५] निरयावलिकासूत्र, मूल-प्राकृत टीकाकार-श्रीचन्द्रसूरि भागमोदय समिति टीका संस्कृत वीर सं २४४८ निशीय सूत्र, मूल प्राकृत अनुवादक-श्रीअमोलखऋषिजी महाराज राजा बहादुर लालासुखदेव सहायजीज्वालाप्रसादर्ज हिन्दी अनुवाद सहित [विसं १९३४ महेन्द्रगढ़,वीर स २४४५ न्यायसूत्र वात्स्यायनभाष्य सूत्रकार-महर्षिगौतम,भाष्यकर-वात्स्यायनमुनि जयकृष्णदास गुप्ता विद्या विलास प्रेस तथा वृत्ति सहित सस्कृत वृत्तिकार-विश्वनाथ न्याय पचानन भट्टाचार्य वनारस ,सन् १६२• ई महामहोपाध्याय भीमाचार्य न्यायदर्शनम ( ग गवर्नमेन्ट सेन्ट्रल वुकडिपो बम्बई, सन् १८९३ ई. न्यायदर्शनम् (न्यायसूत्रम्) सूत्रकार-महर्षि गौतम,भाष्यकर-वात्स्यायनमुनि जयकृष्णदास गुप्ता विद्या विलाम प्रेस संस्कृतभाष्य तथात्तिसहित वृत्तिकार-विश्वनाथ न्याय पंचानन भट्टाचार्य. वनारस, सन् १९२० ई. न्यायदीपिका,सस्कृत हिन्दी श्रीधर्मभूषण यति ( सन् १६००ई) श्रीजैन ग्रन्धरत्नाकर कार्यालय बम्बई, अनुवाद सहित अनुवादक-पं खूबचद्रजी वीर सं. २४३६ न्याय न्याय को न्याय द न्याय दी. Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२९) साहित्यरत्न दरबारीलाल न्यायतीर्थ(विद्यमान) न्यायप्रदीप, हिन्दी टीकाकार-आचार्य श्रीमलयगिरि पनवगा (प्रज्ञापना) मुल-प्राकृत- टीका मस्कृत पंच सग्रह ( चार भाग) मुल-प्राकृत,टीका सस्कृत पच प्रतिक्रमगा मुलकर्ता-श्रीचन्द्रर्पि महत्तर टीकाकार-प्राचार्य श्री मलयगिरि श्रीहरिभद्रसूरि [वि की शताब्दी] साहित्यरत्न कार्यालय जुबिलीवाग तारदेव बम्बई, वि स १९८६ प्रागमोदय समिति वीर सं २४४४ श्रावक हीरालाल हसराज जामनगर, वि स १९६६ श्री जैन श्वेताम्बर मित्र मडल लायवेरी,घी वालों का रास्ता जयपुर, वीर स २४५४ देवचद्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फड यम्बई, वीर स २४५३ श्री जैन धर्म प्रसारक सभा भावनगर, वीर स २४३४ श्रीभैरोंदान जेठमल सेठियावीकानेर,वीरस.२४६६ श्री परमश्रुतप्रभावक मडल झवेरी बाजार बम्बई, वीर स. २४४२ श्री जानकीनाथ शर्मा सस्कृत विद्यालय निवेदिता लेन कलकत्ता पच वस्तुक स्वोपज्ञवृत्ति सस्कृत,मूल-प्राकृत पचाशक, मूल प्राकृत, टीका-सस्कृत पचीस वोल का थोकड़ा। परमात्म प्रकाश, मूल-प्राकृत,टीका संस्कृत भाषा अनुवाद सहित पिगलसूत्र(पिगलच्छन्द सुत्रम्)सस्कृत(पचमावृत्ति) श्री हरिभद्रसरि [वि छठी शताव्दी] टीका-श्रीअभयदेवसूरि[वि १०७२-११३५] मूलकार-योगीन्द्रदेव, टीकाकार-ब्रह्मदेव[सोलहवीं शताब्दी) भाषा टीकाकार-पडित दौलतरामजी श्री पिगलाचार्य Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकेत पिंनि. पिंवि. पीप पुरुषा. प्र. प्रतिमा. प्रमी. प्रर ग्रन्थ नाम, भाषा व काल पिण्डनिर्युक्ति, मूल प्राकृत, टीका संस्कृत पिण्डविशुद्धि, मूल- प्राकृत, टीका संस्कृत [ वि स ११५८ ] पीस एगढ परसनेलिटी पुरुषार्थ दिग्दर्शन (हिन्दी) प्रमाणनयतत्वालोकालंकार, संस्कृत रत्नाकरावतारिका टीका सहित प्रतिमाशतक लघुवृत्ति सहित मूल प्राकृत प्रमाणमीमांसा, संस्कृत स्वोपज्ञ वृत्ति सहित प्रकरण रत्नाकर (चार भाग ) संस्कृत, प्राकृत तथा भाषा के अनेक ग्रन्थो का संग्रह ( ३० ) ग्रन्थकर्त्ता और उसका काल श्री भद्रवाहस्वामी टीकाकार - प्राचार्य श्रीमलयगिरि मूल श्रीजिनवादभसूरि टीकाकार - श्री चन्द्रसूरि प्रोफेसर जगदीश मित्र श्रीविजय धर्मसूरि श्रीवादिदेवसूरि (विस ११४३ - १२२६) टीकाकार - रत्नप्रभसूरि (वि १३ वीं शताब्दी) न्यायविशारद न्यायाचार्य श्रीयशोविजयजी (वि १७वीं १८वीं शताब्दी), वृत्तिकार - श्री भावसुरि श्री हेमचन्द्राचार्य [चि म ११४५- १२२६] प्रकाशन का स्थान और समय श्री देवचद्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फड बम्बई, वीर स २४४४ आचार्य श्रीमद् विजयदानसूरीश्वरजी जैन ग्रन्थमाला सुरत, वीर स २४६५ लाहोर अनोपचद नरसिहदास, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला हेरिसरोड भावनगर, सन् १६२२ हर्षचन्द्र भूराभाई धर्माभ्युदय प्रेस बनारस, वीर सं २४३७ श्री जैन श्रात्मानन्द सभा भावनगर, वीरस २४४१ मोतीलाल लाभाजी १६६ भवानी पेठ पूना, 1 वीर सं २४५२ भीमशी माणेक चम् [विम१६३२१६६८] Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रव प्रशस्त प्रश्न प्रश्नो प्रस, प्रवचन सारोद्धार, मूल-प्राकृत, मुलकर्ता-श्रीनेमिचद्रसूरी(वि बारहवीं शताब्दी) श्रीदेवचद्र लालभाई मैन पुस्तकोद्धार फंड बम्बई, टीका-संस्कृत(वि स.१२४८) टीकाकार-सिद्धसेनसूरीश्वर (वि तेरहवीं शताब्दी) वीर स २४४८ प्रशस्तपाद भाष्य प्रश्नव्याकरण सूत्र,मूल प्राकृत, टीकाकार-श्री अभय देवसूरि प्रागमोदय समिति, टीका-सस्कृत (वि स १०७२-११३५) वीर स २४४५ प्रश्नोत्तर सार्धशतक उपाध्याय श्री क्षमाकल्याण गणी सेठ फकीरचन्द घेलाभाई सूरत, ( वि स १८५१) (वि स १६७३ ) प्रकरण सग्रह दूसरा भाग हिन्दी सग्रहकार-मुनिश्रीउत्तमचद्रजी स्वामी सेठ भैरोंदानजी जेठमलजी सेठियाबीकानेर, ( २७ थोकडों का संग्रह ) (वि स १९१०-१९७६) वीर स २४५० प्राकृत व्याकरगा,सस्कृत श्री हेमचन्द्राचार्य श्री मोतीलाल लाधाजी १६६ भवानी पेठ (वि सं. ११४५-१२२६) पूना, सन् १९२८ई. पहत्कल्पसूत्रनियुक्तिभाष्य वृत्ति मूल एव नियुक्तिकर्ता-भद्रबाहुस्वामी (वीर की श्री जैन प्रात्मानन्द सभा भावनगर, सहित,मूल, नियुक्ति और भाष्य पहली दूसरी शताब्दी),भाष्यकार-सघदास गणी वीर स २४५९-२४६५ प्राकृत, वृत्ति-संस्कृत क्षमाश्रमण,वृत्तिकार-मलय गिरितथा क्षेमकीर्ति [ पाच भाग प्रकाशित ] प्राचार्य सम्पादक मुनि चतुरविजयजी पुगय विजयजी श्रीबृहत्कल्प सूत्र,मूल-प्राकृत भाषाकर्ता- डा जीवराज घेलाभाई दोशी. डा जीवराज घेलाभाई दोशी अहमदावाद, गुजराती शब्दार्थ भावार्थसहित वि स १९७१ बृहत्होड़ा चक्र गर्ग एन्ड कम्पनी खारी बावली देहली वृ पू (जी) धु हो. Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकेत ब्राह्म. भरत (३२) ग्रन्थ नाम, भापा व काल ग्रन्थ कता और उसका काल प्रकाशन का स्थान व समय ब्रह्मसूत्र शाकरभाष्य, भामती, भाष्यकार-श्रीशंकराचार्य भामतीटीका-वाचस्पतिमिश्र तुकारामजावजी सेठ बम्बई, वेदान्त कल्पतरु और कल्पतरु वेदान्त कल्पतरु श्री अमलानन्द सरस्वती सन् १९१७ ई परिमल सहित,सस्कृत कल्पतरु परिमल श्री भप्पय दीक्षित भगवती (व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र टीकाकार-श्रीमभयदेवसूरि श्री भागमोदय समिति, सटीक, मूल प्राकृत-टीका (वि स १०७२-११३५) वीर सं २४४४-२४४७ सस्कृत(वि स ११२८) भाग३ भरतेश्वरवाहुबलि वृत्ति(दोभाग) वृत्तिकार शुभशील गणी देवचद लालभाई जैन पुस्तकोद्धारफंड बम्बई, मूल-प्राकृत, वृत्ति-सस्कृत (१५वीं १६ वीं शताब्दी) वीर सं. २४५८-२४६२ भावनाशतरू,मूल भावार्थ मौर शतावधानी श्री रत्नचर्द्रजी महाराज वद्रावनदास दयाल कोट वाजार गेट बम्बई, विवेचन सहित,मुल-संस्कृत वि.स 18३६-१६४८] वीर सं २४४७ भावार्थ और विवेचन-गुजराती योगशास्त्र स्वोपज्ञ विवरण श्री हेमचन्द्राचार्य श्री जैन धर्म प्रसारक सभा भावनगर, सहित,सस्कृत (वि स ११४५-१२२६) वीर सं २४५२ योगदर्शन, सस्कृत,भाष्य तथा सूत्रकार-महामुनि पातजलि, भाष्यकार-महर्षि कृष्ण एचडी गुप्ता एन्ड सन्स, चौखम्बा संस्कृत व्याख्या सहित द्वैपायन, व्याख्याकार-श्रीमद् वाचस्पति मिश्र बुकडिपो वनारस, सन् 1817 ई । रत्नाकरावतारिका(प्रमाण नय श्री रत्नप्रभसूरि हर्षचन्द्र भुराभाई धर्माभ्युदय प्रेस वनारस, तत्त्वालोकालंकारकोटीका)मम्कृत (वि तेरहवीं शताब्दी) वीर सं. २४३७ भावना रत्ना Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजप्रश्नीय सूत्र सटीक मूल-प्राकृत,टीका-सस्कृत सती राजमती,हिन्दी राज. राजयोग, गुजराती (दो भाग) टीकाकार-श्रीमलयगिरि भागमोदय समिति वीर स २४५१ पूज्यश्री जवाहरलाल जी महाराज साहब के श्री हितेच्छु श्रावक मडल रतलाम, व्याख्यानों में से धीर स २४६३ स्वामी विवेकानन्द डाह्याभाई रामचन्द्र महेता अहमदावाद, (सन् १८६३-१९०२ ई ) सन् १६२१ ई उपाध्याय विनयविजयजी[१७वीं १८वींशताब्दी] प श्रावक हीरालाल हसराज जामनगर, अनुवादक श्रावक हीरालाल हसराज वि स १९६७ टीकाकार-श्रीअभयदेवसरि भागमोदय समिति [ वि स १०७२-११३५] पीर स २४४६ भाष्यकर्ता श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमण हर्षचद्र भूराभाई बनारस, टीकाकार-मलधारि श्री हेमचन्द्रसूरि वीर स. २४४१ लोक प्रकाश,सस्कृत गुजराती अनुवाद विपाकसूत्र सटीक मूल-प्राकृत,टीका-सस्कृत विशेषावश्यकभाष्य,प्राकृत टीका-सस्कृत,(विस ११७५) विहरमान एकविंशति वेदान्त परिभाषा व्यवहार सूत्र,मुल-प्राकृत हिन्दी अनुवाद सहित वेदान्त व्यव हिन्दी अनुवादक-श्रीअमोलखऋषिजी (विस १६३४-- राजाबहादुर लालासुस्त्रदेवसहाय ज्वालाप्रसाद जौहरी महेन्द्रगढ़, वीर स. २४४५ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकेत व्यव. चु. प्रकाशन का स्थान मौरसमय । श्री सेठिया जैन शास्त्र भडार बीकानेर व्यव. भा. वकील केशवलाल प्रेमचंद अहमदावाद, विस १९८२-८४ शा. (३४) ग्रन्थ नाम,भाषा व काल ग्रन्थकत्तो और उसका काल व्यवहार चुलिका(हस्तलिखित) टवार्थ (विस.१६४४ पौष सुदी १५ शनिवार की लिसी हुई) व्यवहार भाष्य नियुक्ति विवरण नियुक्तिकार श्रीभद्रबाहुस्वामी सहित,मुल,नियुक्ति और भाष्य-प्राकृत, टीकाकार-श्रीमलयगिरि टीका-संस्कृत (दस भाग) शान्तमुधारस, प्रथम द्वितीय भाग मूलफर्ता-उपाध्याय श्रीविनयविजयजी मूल-सस्कृत, विवेचन गुजराती विवेचक-मोतीचद गिरधरलाल कापडिया [वि स १७२३] शास्त्र दीपिका,व्याख्या सहित सर्वतत्र स्वतन्त्र श्रीमत्पार्थ सारथि मिश्रा सस्कृत व्याख्याकार-श्री रामकृष्ण,श्रीसोमनाथ श्रावक के चार शिक्षानत पूज्यश्री जवाहरलालजी महाराज साहब के व्याख्यानों के माधार पर श्राद्धविधि प्रकरण स्वोपज्ञवृत्ति युक्त श्री रत्नशेखरसूरि [विस.१५०६] (वि स. १४५७-१५१५) श्राद्ध प्रतिक्रमण(वन्दित्तु सूत्र) टीकाकार-श्रीरत्नशेखरसूरि मूल-प्राकृत,टीका-संस्कृत (वि. स १४५७- १५१७ ) श्री जैन धर्म प्रसारके सभा मावनगर, विस.१६६४-६५ शान . शिक्षा. ___ तुकाराम जावजी मिश्र निर्णयसागर प्रेस २३ कोल भाटलेन बम्बई,सन् १९१५ ई. श्री हितेच्छु श्रावक मंडल रतलाम, वीर स २४४३ श्रावक हीरालाल हंसराज जामनगर वीर स २४४३ देवचद्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फ्ड झवेरी वाज बम्बई, वीर स २४४५ श्राद्ध. श्राद्ध प्रति. Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रा. प्र. श्रा प्रति षड्भाषा. संगीत. सप्त. सम समय. सम्मति. सरल पिं "" श्रावक प्रज्ञप्ति, मूल- प्राकृत टीका-संस्कृत श्रावक प्रतिक्रमण[हिन्दी भौर प्राकृत ] षड्भाषाचन्द्रिका, संस्कृत संगीतशास्त्र सप्तभगीतरंगिणी, सस्कृत हिन्दी अनुवाद सहित समवायाग सूत्र सटीक, मूत्र प्राकृत टीका संस्कृत [ वि.स. ११२० ] समयसार, मात्मख्याति टीका तथा गुजराती अनुवाद सहित सम्मति तर्क प्रकरण, मूल- प्राकृत टीका-संस्कृत [पांच भाग] सरल पिंगल, हिन्दी वि.सं १६७४ ( ३५ ) मूलकत्र्ता - वाचकमुख्य श्री उमास्वाति टीकाकार श्री हरिभद्रसूरि [छठी शताब्दी] " सम्पादक-प, सुखलाल बेचरदास (विद्यमान ) श्री पुतनलाल विद्यार्थी, विशारद, श्री लक्ष्मीधर शुक्ल, विशारद di पलक्ष्मीधर मूलकर्ता श्री विमलदास अनुवादक - ठाकुरप्रसाद शर्मा टीकाकार श्री अभयदेवसूरि ( वि. स. १०७२ - ११३५) श्री कुन्दकुन्दाचार्य [वि पहली शताब्दी ] टीकाकार-अमृतचन्द्राचार्य(वि. १०वीं शताब्दी) अनुवादक - हिम्मतलाल जेठालाल शाह मुलकर्त्ता - प्राचार्य श्री सिद्धसेन दिवाकर [ पहली शताब्दी ] गुजरात पुरातत्त्व मंदिर अहमदाबाद, टीकाकार श्री अभयदेवसूरि वि. स. १९८० ܬ ܐ ܐ ܝ ज्ञान प्रसारक मंडल - बम्बई, वि.स. १९६१ श्री भैरोंदानजी जेठमलजी सेठिया बीकानेर, वीरस २४६५ राजकीय ग्रन्थमाला बम्बई, सन् १९१६ ई. श्री परमश्रुत प्रभावक मंडल बम्बई, वीर सं २४४२ भागमोदय समिति, वीर स. २४४४ श्री जैन मतिथि सेवा समिति सोनगढ काठियावाड़, [ वि. सं १६६७ ] हिन्दी साहित्य संम्मेलन प्रयाग, विसं. १६८४ ג Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकेत सर्व द स.श. (३६) ग्रन्थ नाम, भाषा वकाल ग्रन्थ कत्तो और उसका काल सर्व दर्शन सप्रह, सस्कृत श्री माधवाचार्य सप्ततिशत स्थान प्रकरण मूल कर्ता श्री सोमतिलकसरि [ सत्तरिसय ठाणावृत्ति] मूल-प्राकृत (वि स १३८५) टीकाकार-श्री देव विजय टीका-सस्कृत (वि स १६७०) सांख्यसत्त्व कौमुदी, सस्कृत श्री ईश्वरकृष्ण हिन्दी अनुवाद सहित साधु प्रतिकमा सूत्र प्रकाशन का स्थान व समय जीवानन्द विद्यासागरभट्टाचार्य कलकत्ता,सन् १८८६ श्री जैन आत्मानन्द सभा भावनगर वीर स. २४४५ सांख्य. साधु प्र. सि सि. मु. सिद्धान्त कौमुदी सिद्धान्त मुक्तावलि भट्टोजी दीक्षित श्री विश्वनाथ पंचानन भट्टाचार्य नवलकिशोर प्रेस लखनऊ, सन् १८८८ ई श्री भैरोदानजी जेठमलजी सेठिया बीकानेर, वीर सं. २४४६ तुकाराम जावजी बम्बई पाण्डुरग जावजी निर्णयसागर प्रेस कोलभाट लेन वम्बई, सन् १२६४ ई. श्री आगमोदय समिति, वीर स २४४३ श्री भागमोदय समिति, वीर स. २४४५ सूयगडाग(सूत्रकृताग)सूत्र,मूल- टीकाकार-श्री शीलाकाचार्य प्राकृत,टीका सस्कृत वि सं.६३३ (वि दसवीं शताब्दी) . सूर्यप्रज्ञप्तिसरीक, मूल-प्राकृत टीकाकार-प्राचार्य श्री मलयगिरि टीका-सस्कृत Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकेत सेम. स्या हि. फि. हीर ग्रन्थ नाम, भाषा व काल सेनप्रश्न ( प्रश्न रत्नाकराभिष श्री सेन प्रश्न ) संस्कृत ( वि. १७वीं शताब्दी ) स्याद्वादमञ्जरी, संस्कृत (विस १३४६ ) हठयोगदीपिका, गुजराती (हिस्ट्री ऑॉफ) इडियन फिलॉसोफी, दो भाग, भग्रेजी हीर प्रश्न ( प्रश्नोत्तर समुच्चय ) संस्कृत ( ३७ ) ग्रन्थकर्त्ता और उसका काल सग्रहकर्ता - श्रीशुभ विजय गणी (विजय सेन सूरि को पूछे हुए प्रश्नों के उत्तरों का सग्रह ) श्री मल्लिसेनसूरि मूल - स्वात्माराम योगीन्द्र, भाषा टीका - वेदान्त कवि हीरालाल जादवराय बुच डा एस राधाकृष्णन सग्रहकर्ता - कीर्तिविजय गणी (वि १७वीं शताब्दी) (श्री हीरविजयसूरि को पूछे गये प्रश्नों के उत्तरो का संग्रह ) प्रकाशन का स्थान और समय श्रीदेवचद लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फंड बम्बई, वीर स २४४५ श्री मोतीलाल लाघाजी १६६ भवानी पेठ पूना, वीर स २४५२ महादेव रामचंद्र जागुष्टे बुकसेलर श्रण दरवाजा अहमदाबा वि स १६७१ मेक्मिलिन कम्पनी, सन् १९३१ई जेसंगलाल छोटालाल सुतरीया महमदाबाद, (श्रीहस विजय जैन लायब्रेरी) वीर स २४४६ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकेत पूरा नाम अध्ययन म. अधि मध्या (३८) अध्ययनादि के संकेत . किस किस ग्रन्थ में है: प्रावश्यक, पाचाराग, उत्तराध्ययन, उपासकदशा, ज्ञाताधर्मकथा, दशवैकालिक, विपाकसूत्र, सूयगडाग, अन्तगडदशासूत्र, अणुत्तरोववाई प्रादि धर्मसग्रह तत्त्वार्यसूत्र, द्रव्यानुयोग तर्कणा प्रमाणमीमासा, न्यायसूत्र सूयगडाग, भगवती, निशीथसूत्र, बृहत्कल्पसूत्र, व्यवहारसूत्र, ठाणागसूत्र, प्राचारांग सुत्र सनप्रश्न स्याद्वादमअरी सम्मति तर्क प्राचारागसूत्र, दशवैकालिकसूत्र प्रागमों में तथा ठयवहारभाष्य, विशेषावश्यकभाष्य हरिभद्रीयावश्यक, मलयगिरि श्रावश्यक, परमात्मप्रकाश मा. उन्त्रा अधिकार मध्याय माह्निक उद्देशा उल्लास कारिका कागद गाथा चूलिका टीका दशा द्वार का. काड. portant thing this दशाभ्रुतस्कन्धदशा प्रवचनमारोद्धार पचसग्रह, पचवस्तुक, प्रश्रव्याकरगासूत्र (माश्रावद्वार और संवरद्वार ), नवपद प्रकरण Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नियुक्ति पद पर्व परिच्छेद प्रक. प्रकरण प्रका. प्रकाश प्रति. प्रतिपत्ति प्राचारांग, सूयगडाग, दशवेकाक्षिक, उत्तराध्ययन, आवश्यक, व्यवहारसूत्र, मोघनियुकि, पिण्डनियुक्ति पनवणास्त्र त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र रत्नाकरावतारिका ज्ञानार्णव योगशास्त्र, हीरप्रश्न, श्राद्धविधिप्रकरण जीवाजीवाभिगम चन्द्रप्राप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति कर्मग्रन्थ, कर्तव्यकौमुदी निरयावलिका, अणुत्तरोषवाई, अन्तगडदशा जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति पंचाशक भगवती प्रा. प्रामृत प्रा.प्रा. भा. प. वन. प्रामृतप्राभूत भाग वर्ग वक्षस्कार विवरण शतक 'लोक श्रुतस्कन्ध श्राचारागसूत्र, सूयगडागसूत्र सर्ग सूत्र ठाणांगसूत्र, समवायांगसूत्र, तत्वार्थसूत्र, एस्नाकरापतारिका Page #50 --------------------------------------------------------------------------  Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह आठवाँ भाग जैन सिद्धान्त बोल संग्रह के सात भागों का विषय कोष मंगलाचरण आसाढे धवलाइ छुट्टि चवणं चित्तस्स तेरस्सिए । सुद्धा जगणं सुकिएह दसमी, दिक्खा य मग्गस्सिरे ॥ जस्सासी वइसाह सुद्ध दसमी, गाणं जणांदणं । सुक्खो कत्ति अमावसाइ तमहं वंदामि वीरं जिए || भावार्थ - आषाढ़ सुदी छठ को देवलोक से चव कर चैत सुदी त्रयोदशी को जिसने जन्म धारण किया, मगसिर वदी दशमी को जिसने लोक-कल्याण के लिये दीक्षा अङ्गीकार की, वैशाख सुदी दशमी को जिसे लोक को आनन्द देने वाला पूर्ण ज्ञान का प्रकाश प्राप्त हुआ एवं अन्त में कार्तिक मास की अमावस्या के दिन जिस का निर्वाण हुआ ऐसे श्री वीर भगवान् को मैं वन्दना करता हूँ । Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग .....~~~~~~ mmmmmun बोल भाग पृष्ठ पाल ना प्रमाण अंक की कथा प्रोत्प- ६४६ ६ २७४ न० स० २७ गा० ६४ टी. त्तिकी बुद्धि पर अंग पन्द्रह मोक्ष के ८५० ५ १२१ पंच व० गा० १४६ १६३ १ अंग प्रविष्ट श्रत ८२२ ५ १० न.स ४५,विशे गा ५५०.५२ अंग प्रविष्ट श्रुतज्ञान १६ १ १३ न सू ४५,टा.२ उ १ स ७१ अंग वाह्य श्रुत ८२२ ५ १० न स ४४ विशे गा ५५० ५२ अंग वाह्य श्रुतज्ञान १६ १ १३ न स ४४, ठा. २ ३ १ सु . अंग सूत्र ग्यारह ७७६ ४ ६६ २अंगार दोष ३३० १ ३३६ ध अधि.३श्लो.२३ टी पृ.५५, पिनि गा ६५५-६०, उत्त घ २४ गा १२ टी. अंगुल के तीन भेद ११८ १ ८३ अनु सृ. १३३ अंगुष्ठ संकेत पञ्चक्रवाण ५८६ ३ ४३ प्राव ह भ नि गा १४७८, प्रव द्वा ४ गा २०० अंजकुमारी की कथा ६१० ६ ५० वि अ. १० ३ भकण्डूयक ३५६ १ ३७३ ठा ५ उ १ सू.३६६ अकम्पितस्वामी गणधर ७७५ ४ ५२ विशे.गा, १८८५ से १६०४ कीनरक विषयक शंका और समाधान अकर्मभूमि के तीस भेद ६५७ ६३०७ पन्न. प १ स. ३७ अकर्मभूमिज ७१ १ ५१ ठा.३ उ. १ सू. १३०, पन्न प.१ स ३५,जी. प्रति ३ स १०५ अकर्मभूमि छः जम्बु. ४३५ २ ४१ ठा.६ ३ ३ सू. ४२१ दीप की १ श्रुतज्ञान का भेद । २ माहार का दोप । ३ शरीर को न खुजलाने घाला साधु। Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेलिया जै। ग्रन्थमाला विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण १ अकर्माशस्नातक ३७१ १ ३८६ ठा ५ उ ३ मू ४४५, भ श २५उ ६ सू ७५१ २ अकस्माद्भय ५३३ २ २६८ ठा ७ उ ३ सू ५४६,सम " श्रकाममरण ५३ १३१ उत्त अ५ मा २ अकाममरणीय अध्ययन 8७२ ७ ४६ उत्त अ.५ की बत्तीस गाथाएं अकारण दोष (आहार ३३० १ ३४० उत्त अ २४ गा १२ टी, का दोष) उत्त म २६ गा ३२, ध अधि. ३ श्लो २३ टी., पि नि गा. ६६१ से ६६८ अकाल (काल का भेद) ४३१ २ ३८ . विशे. गा २७०८ से २७१० अकिंचनत्व (परिग्रह ६६१ ३ २३४ नव. गा.२३, सम. १०,शा. त्याग भा.१ प्रक ८(सवरभावना) ३ अकृत्स्ना आरोपणा ३२६ १ ३३५ ठा. उ. २ सू ४३३, सम २८ अक्रियावादी पाठ ५६१ ३ ६० ठा. ८ उ.३ सू ६०५ अक्रियावादी की व्याख्या १६१ १ १४५ भ.श ३० उ.. सू. ८२४ और उसके चौरासी भेद टी,याचा अ. १ उ.१ स. ३ टी , सूय० म०१२ अक्षर का क्या अर्थ है ? ६१८६ १३८ वृ गा. ७२ से ७५,न.सू. १, ४३ टी. पृ. ६३,२०१ अक्षर श्रुत ८२२ ५ ३ न सू० ३६, विशे० गा. ४५५-५०० कर्म भा.१ गाई अक्षर श्रुत ६.१ ६३ कर्म भा. १ गा० ५ १ निर्गन्थ का भेद । २ यकायक होने वाला भय । ३ प्रायश्चित्त विशेष । Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठयॉ भाग ४ विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण अक्षरश्रत के तीन भेद ८२२ ५ ६ न सू. ३६, विशेगा ४६४. ४६६, कर्म भा १ गा! अक्षरसमास श्रुत ६.१ ६ ३ कर्म० भा० १ गा० ५ अक्षीण महानसी लब्धि ६५४ ६ २६७ प्रव० द्वा० २७० गा १४६५ १ अगमिक श्रुत ८ २२ ५ १० न. सू. ४४, विशे,गा १४६ अगार चारित्र धर्म २० १ १५ ठा० २ उ० १ सू० ७२ अगुरुलघुत्वगुण ४२५ २ १६,२४ भागम, द्रव्य. त.मध्या ११ श्लो. ४ २ अगुरुलघु परिणाम ७५० ३ ४३४ ठा १० उ ३ सू ७१३,पन्न प १३ सू १८४ अग्निकुमार देवों के दस ७३५ ३ ४१८ भ श ३ उ ८ सू १६६ अधिपति अग्निभूति गणधर की कर्म ७७५ ४ ३१ विशे गा १६०६ १६४४ विषयक शंका समाधान ३ अग्रवीज ४६६२६६ दश० १० ४ सू.१ अघाती कर्म २७ ११४ कम्म. गा. १ टी. पृ. अघाती प्रकृतियाँ ८०६ ४ ३५० कर्म० मा० । गा• १४ अचक्षुदर्शन १६६ १ १५७ ठा० ४ उ० ४ सू० ३६५, कर्म• भा• ४ गा० १२ अचक्षुदर्शन अनाकारो- ७८६ ४ २६६ पन्न० ५० १६ सू० ३१२ पयोग ४ अचरम समय निग्रन्थ ३७० १ ३८५ ठा• । उ• ३ सू० ४४५ १ श्रुतज्ञान का भेद । २ अजीवपरिणाम का भेद । ३ बादर वनस्पतिकाय का भेद । ४ निर्मन्य का भेद । Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण अचलभ्राता गणधर की ७७५ ४ ५४ विशेगा० १६०५ से १९४८ पुण्य पाप विषयक शङ्का और उसका समाधान अचित्त योनि ६७ १४८ तत्त्वार्थ अध्या २ सू ३३, ठा० ३ उ०१ सू० १४० अचित्त वायु के पाँच प्रकार ४१३ १ ४३८ ठा० ५ उ०३ सू० ४४४ १ श्रचियत्तोपघान ६६८ ३ २५७ ठा०१० उ० ३ सू० ७३८ २ अचेल कल्प ६६२ ३ २३४ पचा० १७ गा० ११,१२,१३ अचौर्य पर पाँच गाथाएं ६६४ ७ १७६ अचौर्य महाव्रत की पाँच ३१६ १ ३२६ प्राव ह अ४ पृ ६५८,प्रव भावनाएं द्वा ७२ गा.६३८,सम २५ थाचा श्रु २.चू. ३ अ० २४ सू १७६, ध अधि ३ श्लो. ४५ टी. पृ० १२५ अचौर्याणुव्रत ३०० १ २८६ प्राव है. अ. ६ पृ ८२१ ठा ५. उ. १ सू ३८६, उपा असू ६, ध. अधि. २ श्लो० २७ १६० अचौयोणुव्रत (स्थूल अद-३०३ १ २६६ उपा. अ० १ सू ७, प्राव त्तादान विरमण व्रत) के ह अ. ६, पृ.८२१ ध. अधि । पाँच अतिचार श्लो० ४५ पृ १०२ ३ अच्छविस्नातक ३७१ १ ३८६ ठा ५. उ ३ सू. ४४५, भ, श २५ उ. ६ सू ७५१ १ सयम की घात करने वाला एक दोष । • साधु के कल्प का एक भेद । ३ स्नातक निर्ग्रन्थ का एक भेद । Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धा त छोन संह,पाठवा माग rrrrrrrrrrrr xnn ~ rrrrrrrrविषय चोल भाग पृष्ठ प्रमाण अच्छेद्य तीन ७३ १५३ टा० ० २ सू० १:६ अच्छेरे (आश्चर्य) दस ६८१ ३ २७६ ठा १० उ. ३ सू.७७७, प्रव. द्वा०१३८ गा. ८८५.SEE अजीरो कितने प्रकार का है।१८ ६ १५७ प्रश्नो० । अजीव मरूपी के दस भेद ७५१ ३ ४३४ पन्न० ५० १ सू० ३, जी० प्रति० १ ० ४ अजीव के चौदह भेद ८२७ ५ १६ पन्न० ५० १ सृ०३,४ श्रजीव के छः संस्थान ४६६ २६६ मग २४ ३ ३ सू ७२४, पन्न ५ १ सू १, जी प्रति । अजीव तत्त्व के पाँच सौ ६३३ ३ १८१ पन्न० ५० १ सू०३,४, उन० साठ भेद १० ३६ गा० ४-४६ अजीव परिणाम दस ७५० ३ ४२६ पन्न. १ १३ सू १८४,टा १० उ ३ सू७१३ अजीव मिश्रिता सत्यापा६४ ३ ३७१ ठा १० 3 : सू ७४ १,पन ५ ११ सृ १६५, ध प्रधि ३ श्लो० ४१ टी०१ ११२ अजीवाधिकरण ५० १३० तत्त्वार्थ० अध्या० ६ सृ०८ १ अज्ञात चरक ३५३ १ ३६८ ठा । उ १ सू ३६६ अज्ञानवादी की व्याख्या १११ १ १४६ भ श ३० उ ११०.४ टी, और उसके ६७ भेद भाचा. म १७ १ सृ. ३ टी, स्य म १२ अठाईस गुण अनुयोग ५२ ६ २८६ वृ नि गा. •४१ से २४४ देने वाले के अठाईस नक्षत्र ६५३ ६ २८८ ज वज्ञ.७ सू १४४, सम २७ १ भज्ञात घरों में गोचरी करने वाला साधु । भाषा Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय चोल भाग पृष्ठ प्रमाण अठाईस प्रकृतियाँ मोह- ६५१ ६ २८४ वर्म. भा १ गा. १३-२२, नीय कर्म की अठाईस भेद पतिज्ञान के १५०६ २८३ सम २८,कर्म भा १ गा ४-५ अटाईस लब्धियाँ ६५४ ६ २८६ प्र. द्वा २५० गा. १४६२ सम. २८ १५०५ द्रागा १६१-१६२ अठारह कल्प साधु के ८६०५ ४०२ दश घ ६ गा. ७ से ६८, सम० १८ अठारह गाथा क्षुल्लक निम्र-८६७ ५ ४१६ उत्त न । थीय अध्ययन की अठारह गाथा दशवका ८६८ ५ ४२० दश च । लिक प्रथम चूलिका की अठारह दोष दो प्रकार से ८८७ ५ ३६७ प्रव द्वा ४१ गा ४५१ ५२, जो अरिदन्त में नहीं होते अठारह दोष पोपध के ८६४ ५ ४१० शिक्षा० अगरह द्वार गतागत के ८८८ ५ ३६८ पन प ६ के आधार से अठारह पापस्थानक ८६५ ५ ४१२ ठा १ सू ४८, प्रव द्वा.२३७ गा. १३५१-१३५३, भ श. १ उ ६, भ. श १२ उ ५, सू ४५०,दशा.द. ६ अठारह पुरुप दीक्षा के ८६१ ५ ४०६ प्रव द्वा १०७ गा. ७६ ०.६१ अयोग्य ध अधि ३ श्लो ७८ टी पृ.३ अठारह प्रकार का ब्रह्मचये८६२ ५ ४१० सम १८,प्रव द्वा १६८ गा. १०६१ अठारह प्रकार की चोर ८६६ ५ ४१५ प्रश्न. अधर्मद्वार ३ सू १२टी. की प्रमूति Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्वान्त वोन संग्रह, श्राठॉ भाग ~~~~~~~~~ ~ ~ ~~~~~~~ ~~~ ~~~~~~~~~ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण अठारह भेद अब्रह्मचर्य के ८६३ ५ ४१० भाव ह य ४ ५ ६५२ भठारह लिपियाँ ८८६ ५ ४०१ पन प १ सू ३७, सम १८ १ अड़तालीस ग्लान प्रति ७६७ ४ २६७ प्रब द्वा ५१ गा ६२६, चारी नवपद सले राना अधिकार गा० १२६ अड़तालीस भेद तियश्च के१००१७ २६५ पन्न प १ सू १०-३६ अड़तालीस भेद ध्यान के १००२ ७ २६६ उव सू २० अड़तीस गाथाएँ सूयगडांग ह८५ ७ १३६ सूय श्र ११ सूत्र के ग्यारहवें अध्य की अढाई द्वीप में चन्द्र सूर्यादि ७६६ ४ ३०२ सूर्य प्रा १६ सू १०० ज्योतिपी देवों की संख्या भणुत्तरोववाई सूत्र का ७७६ ४ २०२ संक्षिप्त विषय वर्णन अणुव्रत पाँच ३.० १ २८८ माव ह या ६ ८१७ मे ८.६, ठा ५ सू ३८६,उपा. श्र.1,ध अधि २ ग्लो २३-२६ अणुव्रत पाँच ४६७ २ २०० २ अतथाज्ञानानुयोग ७१८ ३ ३६५ ठा. १० उ ३ स ७२७ अतिक्रम २४४ १ २२१ पि नि गा १८२, ध अधि ३ ग्लो ५३ टी. पृ. १३६ अतिचार २४४ १ २२१ पि नि गा. १८२,ध. प्रधि ३. श्लो ५३ टी पृ १३६ १ रोगी साधु की सेवा करने वाला साधु । २ द्रव्यानुयोग का भेद-वस्तु के अयथार्थ स्वरूप का व्याख्यान । Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण अतिचार चौदह ज्ञान के ८२४ ५ १४ प्राव. ह. अ ४ पृ ७३० अतिचार निन्नाणवे ४६७ २ २०१ अतिचार पाँच समकित के २८५ १ २६५ उपा अ १ सू ७, प्राव ह अ६ पृ.८१० अतिचार श्रावक के बारह ३०१- १ २६० - उपा अ.। सू ७, प्राव ह. व्रतों के ३१२ ३१४ ५ ६ पृ ८१७.८३६, ध, __ अधि २श्लो ४३.५८पृ.१०. १ अतिथिवनीपक ३७३ १ ३८८ ठा ५ उ ३ सू. ४५४ अतिथि संविभाग व्रत १८६ १ १४१ पचा १ गा. ३१ ३२, प्राव. ह अ. ६ पृ८३६ अतिथि संविभाग व्रत के ३१२ १ ३१३ उपा अ. १ सू ७,भाव. ह पाँच अतिचार अ६ पृ ८३६ अतिथि संविभागवत ७६४ ४ २८४ भागम. निश्चय और व्यवहार से अतिमुक्त एवंता) कुमार ७७६ ४ १६८ अत् व ६ अ. १५ को कथा अनिव्याप्ति १२० १ ८५ न्याय दी प्रका १ अतिव्याप्ति दोप ७२२ ३ ४०८ ठा १० उ ३ सू ४४ टी. अतिशय चौतीस अरिहंत ४७७ ७६८ सम ३४, स श द्वा. ६५ देव के अतिशय पाँच आचार्य ३४२ १ ३५३ ठा ५ उ. २ सू ४३८ उपाध्याय के १. अतिथिदान की प्रशसा करके भिक्षा चाहने वाला Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग __... wwwwwwwr विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण अतिशय पैंतीस अरिहन्त ६७६ ७ ७१ सम.३५ टी , रा सू.४ टी., देव की वाणी के उव सू १० टी. अतीर्थङ्कर सिद्ध ८४६ ५ ११७ पन्न ५ १ सू ७ अतीर्थ सिद्ध ८४६ ५ ११७ पन्न प. १ सू ५ अदत्तादान(चोरी)विरतिह६४ ७ १७६ पर पाँच गाथाएं अदत्तादान विरमण रूप ३१६ १ ३२६ श्राव ह म ४ पृ.६५८,प्रव. तीसरे महाव्रत की पाँच द्वा. ७२ गा.६३८,सम २५, भावनाएं आचा.श्रु.२.३म. २४,ध. अधि ३ श्लो ४५ टी. १२५ अदत्तादान विरमण व्रत ७६४ ४ २८१ भागम. निश्चय और व्यवहार से श्रद्धाद्धामिश्रिता ६९६ ३ ३७१ ठा. १० उ ३ सू. ७४१,पन्न. सत्यामृषा प ११ सू.१६५, ध. अधि.३ श्लो. ४१ टी. पृ १२२ अदा पञ्चक्रवाण के दस ७०५ ३ ३७६ प्रव द्वा.४ गा. २०१-२०२, पचा ५ गा ८.११,भाव में नि. गा.१५६७ श्रद्धा पल्योपम (सूक्ष्म, १०८ १ ७६ अनुसू. १३८, प्रवदा १५८ व्यवहारिक) गा. १०२४-१०२५ भदामिश्रिता सत्यामृषा ६६६ ३ ३७१ ठा. १० उ. ३ सू. ७४१,पन. प.१११६५, ध. अधि ३ लो. ४१ टी पृ १२२ श्रद्धा सागरोपम १०६ १ ७८ अनु सू. १३८,प्रव द्वा. १५६ गा, १०२६-१०३० भेद Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला अद्भुत रस अधर माणायाम अधर्मदान श्रधर्म, द्रव्य धर्मास्तिकाय के भेद अधिक तिथि वाले पर्व अधिक दोष अधिकरण के भेद अधोलोक बोल भाग पृष्ठ ६३६ ३ २०८ अनु सू. ५५६ २ ३०३ यो प्रका ७६८ ३ ४५२ ठा १० उ ३ सू ७४५ अध्ययन तेईस सूयगडांगके६२४ ६ १ श्रध्यवपूरक दोष ४२४ २ ३ आगम उत्त, अ ३६ गा. ५ २७७ १ २५५ वा ५ उ ३ सू. ४४१ ४३४ २४१ ठाउ ३५२४,चन्द्र. प्रा १२ ७२३ ३४१२ ठा १० उ ३ सू ७४३ પ્。 १ २६ तत्त्वार्थ अध्या ६ सू ६५ १४६ लोक भा. २ स १२, भ श ११ ८६५ ५ १६४ अध्रुवबन्धिनी प्रकृतियाँ ८०६ ४ अध्रुवसत्ताक प्रकृतियाँ ८०६ ४ अध्रुवोदया प्रकृतियाँ २ अनक्षर श्रुत अनगार चारित्र धर्म ८०६ ४ • अनध्यवसाय प्रमाण उ १० सू ४२० १७३ सूय, सम २३ ८२२५ ४ २० १ १५ १२१ १८६ ११ १२६ गा. ६८-६६ ५ श्लो ६, ३३७ कर्म भा. ५ गा ३ से ४ ३४३ कर्म भा ५ गा. ८- १२ ३४१ कर्म भा ५ गा ७ प्रवद्वा. ६ ७गा ५६६, ध अधि. ३ श्लो २२ टी १३८, पिं. नि गा ९३, पिं विगा. ४ पंचा १३ गा. ६ न सृ ३६, विशेगा ५०१-५०३ प्रहार का दोष २. श्रुतज्ञान का एक भेद ३ वह ज्ञान, का निश्रय नहीं होता । ठा २ उ. १ सू ७२ रत्ना. परि १ सू १३-१४, न्याय प्र अभ्या. ३ अननुगामी श्रवधिज्ञान ४२८ २२७ ठा ६ उ ३ सू. ५२६, न सू. ६ से १६ जिसमें वस्तु के स्वरूप Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, भाउया माग विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण अननुबन्धी प्रतिलेखना ४४८ २ ५३ टा. ६ उ : रा ५०६, उन. य. २६ गा २५ अननुयोग के दृष्टान्त ७८० ४ २३८ प्राव. ह न १ गा १३३,१३४, बारह वृ नि गा. १७१,१७२ अनन्त आठ ६२० ३ १४७ प्रनु ग. १८६ अनन्तक दस ७२०३ ४०३ ठा. १० उस ७३१ अनन्तक पाँच ४१७ १ ४४१ ठा, ५ उ. ३ स्मृ. ४६२ अनन्तक पाँच ४१८ १ ४४२ ठा. ' उ ३ स. ४६२ अनन्त छह ४८८ २ १०० अनु सू. १४६ टी , प्रव. द्वा. २५६ गा १४०४ अनन्त जीविक वनस्पति ७० १ ५१ ठा ३ ३ १ स. १४१ अनन्तमिश्रितासत्यामृपा ६९६ ३ ३७१ ठा १० उ ३ सू ७४१, पन्न प. ११ स. १६५, ध. भवि. लो.४१ टी पृ९२२ अनन्तरागत सिद्धों के 8७६ ७६६ न सू २० टी पृ १२५ अल्पबहुत्व के तेनीस बोल 'अनन्तरागम ८३ १६१ धनु सू. १४४ अनन्त संसारी ८ १ ६ पातुर.गा.४२,ठा २3 २ सृ ७६ अनन्तानुवन्धी कपाय १५८ १११८ पन्न प, १८ र १८८, ठा. ४ सू २४६, कर्म.मा.१ गा १७,१८ अन भीप्सित साध्य धर्म ५४४ २ २६२ रत्ना परि ६ स ४६ विशेपण पक्षाभास अनतिन प्रतिलेखना ४४८ २ ५३ टा. ६ 3. * स १०५ म २६ गा २५ . .. . १. मागम का एक भेद Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण अनर्थ दण्ड ३६ १२३ ठा २ उ. १ सू ६६ अनर्थदण्ड विरमण व्रत १२८(क)१६१ धात्र हे थ६ पृ. ८२६ अनथे दण्ड विरमगव्रत ३०८ १ ३०७ उपा असू ७, श्राव ह अ६ के पॉच अतिचार पृ८२६,प्रवद्वा ६ गा २८२ अनर्थदण्ड विरमण व्रत ७६४ ४ २८३ भागम निश्चय और व्यवहार से अनवकांक्षाप्रत्ययाक्रिया २६५ १ २८१ ठा २ ३.१ सू ६०, ठा ५ उ.२ सू ४१६, प्राव.हम ४ पृ६१४ अनवस्था दोष ५१४ ३१०३ प्र मी अध्या १ आ.१ सू ३३ अनशन ४७६ २ ८५ उत्त अ ३०गा ८,ठा ६उ ३सू ५११, उव सू १९प्रवद्वा ६ गा.२७०, अनशन इत्वरिक के ४७७ २ ८७ उत्त अ ३० गा.१०-११, छः भेद भश २५ उ ७ सू ८०२ अनशन के दो भेद ६३३ ३ १८५ उब सू १९, भ श. २५ उ ५ और उनके प्रभेद सू ८०२ अनाचार २४४ १ २२१ पि नि. गा. १८२, ध अधि ३ श्लो ५३ टी पृ १३६ अनाचीर्ण वावन साधुके १००७७ २७२ दश प्र ३ अनात्मभूत लक्षण ६२ १४३ न्याय दी प्रका १ अनात्मवान् के लिये ४५८ २६१ ठा ६ उ. ३ सू ४६६ अहितकर स्थान ः अनाथताकी पन्द्रह गाथाएं८५४ ५ १३० उत्त श्र. २० गा ३८-५२ अनाथीमुनि-अशरण भा.८१२ ४ ३७६ उत्त य २० अनाथी मुनि की कथा ८५४ ५ १३० उत्त. प्र. २० Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवाँ भाग विषय अनादि श्रुत अनादि सिद्धान्त नाम ७१६ ३ ३६८ अनुसृ १३० अनानुपूर्वी अनावाध सुख बोल भाग पृष्ठ प्रमाण ८२२५८ नंसू ४३, विशे गा, ५३७-४४ ११६ १ ८४ अनुसू६६, ६७, ६८ ७६६ ३ ४५५ टा १० उ ३ सू ७३७ नाभिग्राहिक मिथ्यात्व २८८ १२६७ वमधि २ को २२टी ३६, कर्म भा. ४ गा ५१ अनाभोग आगार ४८३ २ ६७ अनाभोग निवर्तित क्रोध १६४ अनाभोग प्रत्यया क्रिया २६५ अनाभोग वकुश सू४१६, आव ह. ४ ६१३ ३६८ १३८३ ठा ५ उ ३ सू ४४४ अनाभोगिक मिथ्यात्व २८८ १ २६७ प. अधि २ श्लो २२ टी. १,३६, कर्म. भा ४ गा ५१ अनिदानता अनियट्टि (श्रनिवृत्ति) याव अ ६ ५८२, प्रव द्रा ४ गा २०३ टी. ११२४ का ४ उ. १ सू २४६ १२८१ ठा २१ सू ६०, ट ५ ३ २ अनासक्ति पर नौ गाथाएं ६६४ ७ २०५ अनाहारक ८ १ ७ अनित्थंस्थ संस्थान अनित्य भावना ४६६ २ ६६ ८१२ ४३५६ वादर सम्पराय गुणस्थान निवृत्तिकरण ठा २ उ सृ. ७६ भ श २५३ सू७२४, गाभा १ प्रक १, भावना, ज्ञान प्रक २, प्रत्र द्वा. ६७मा ५७२, तत्त्वार्थ श्रध्या. ६ सू ७ ७६३ ३ ४४४ वा १० उ ३ सू. ७५८ ८४७५ ८० कर्म भा २ गा २ व्याख्या ७८ १ ५७ भाव म गा.१०६-७टी, आगम., विशे.गा १२०२-१८, प्रवद्वा २२८ गा १३०२ टी, कर्म भा २ गा.२ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण१ भनिसृष्ट दोष ८६५ ५ १६४प्रय द्वा६७ गा ५६६,ध अधि.३ श्लो २२टी पृ ३८,पिं नि गा.६३. पि वि गा.४, पंचा,१३गा.६ २ अनिवाचार ५६८३६ घ अधि १ श्लो. १६ टी पृ१८ ३ अनीक ७२६ ३४१६ तत्त्वार्थ, प्रध्या ४ सू ४ अनुकम्पा २८३ १ २६४ धमधि २श्लो २२ टी पृ ४३ अनुकम्पादान ७६८ ३ ४५० ठा १० उ३ सू ७४५ अनुकम्पा प्रत्यनीक ४४५ २ ५० म. श ८ उ ८ सू. ३३६ अनुगामी अवधिज्ञान ४२८ २ २७ ठा ६उ ३सू ५२६, न सू :-१. अनुनट भेद ७५० ३४३३ ठा १० उ ३ सू. ७१३ टी., पन्न. प १३ सू १८५ अनुत्तर दस केवली के ६५५ ३ २२३ ठा १० उ ३ सू ७६३ अनुत्तर पॉच केवली के ३७६ १ ३६१ ठा ५ उ १ सू ४१० अनुत्तर विमान पाँच ३६६ १ ४२० पन्न ११ सू. ३८, भ. श १४ उ ७ सू ५२६ अनुत्तर विमान में उत्पन्न ह८३ ७ ११२ पन्न. प १५ उ २ टी. ३१६ जीव क्या नरक तिर्थश्च के भव करता है? अनुत्तर विमानवासी देव १८३ ७ १०३ भ श ५ उ ४ सू १६६ शंका होने पर किसे पूछते हैं और कहाँ से? अनुत्पन्न उपकरणोत्पा- २३५ १ २१६ दशा द ४ दनता विनय १ माहार का एक दोप। २ ज्ञानाचार का भेद । ३ सैनिक देव अथवा सेनानायक देव। Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोज संग्रह,अाठवा भाग विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण अनुषशान्त क्रोध १६४ १ १२४ ठा ४ उ १ स २४६ अनुपालनाशुद्ध मन्या- ३२८ १ ३३७ श्राव ह थ, ६ पृ. ८४६, ख्यान ठा ५ उस ४६६ १ अनुमेक्षा ३८१ १ ३६८ ठा १३३ मु ४६५ अनुप्रेक्षा(भावना)वारह ८१२४ ३५५ शा मा. १-२,भावना ज्ञान पर , प्रत्र द्वा ६७ गा.५७२.१ ७१, तत्त्वार्य अव्या ६ स ७ अनुभागनाम निवत्तायु ४७३ २८० मश६८ सू २५० टी ठा। र ३ सृ ५ ३६ टी अनुभाग वन्ध २४७ १ २३२ ठा ४३ २ २६६,कर्म मा गा २ अनुभाव(फल)आठ कर्माक५६०३ ४३ पन्न प २३ ० २६२ अनुभापण शुद्ध प्रत्या- ३२८ १ ३३७ ठा ५ उ ३ सू ४६६, भाव ह ख्यान घ ६ १८४७ अनुमान ३७६ १ ३१५ रत्ना. परि ३ स् १० अनुमाननिराकृतवस्तुदोष ७२३ ३ ४११ ठा १० उ.३ सू. ७४३ टी भनुमान निराकृत साध्य ५४६ २ २६१ रत्ना, परि ६ सू. २ धर्म विशेषण पक्षाभास अनुमान प्रमाण २०२१ १६० भ श.५उ ४स १६३,अनुसू १४४ अनुयोग के चारद्वार २०८ ११८५ अनु. सू. ५६ अनुयोग के चार भेद २११ १ १६. दा. नि. गा ३ पृ. ३ अनुयोग के चार भेद ४२७ २ २६ अनु सू. ५६ अनुयोग के सात निक्षेप ५२६२ २६२ विशे. गा. १३८१ मे १९६२ अनुयोग देने वाले के ६५२ ६ २८६ बृ नि.गा २४९-२४४ अठाईस गुण १ सीन्ने हुए सूत्रार्थ का बार बार मनन करना । Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग १७ rurammarwrwwwmar aur विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण अनुयोग द्वार सूत्र का २०४ १ १७६ संक्षिप्त विषय वर्णन अनुयोग श्रत ६०१ ६४ कर्म भा १ गा ७ अनुयोग समास श्रत ६०१ ६४ कर्म भा १ गा. ७ अनुस्रोतचारी भिक्षु ४११ १ ४३७ ठा ५ उ ३ सू ४५३ अनुस्रोतचारी मच्छ ४१० १ ४३६ ठा ५ र.३ सू. ४५३ अनृद्धिप्राप्त आय केभेद ६५३ ३ २१६ पन्न. प १ स ३७ अनेकरूपधुना प्रमाद- ५२१ २ २५१ उत्त अ २६ गा २७ प्रतिलेखना अनेकवादी ५६१ ३ ६१ ठा ८ उ ३ सु. ६०५ अनेक सिद्ध ८४६ ५ १२० पन्न प १ सू ७ अनेकान्तवाद पर पाठ ५६४ ३ १०२ प्रमी अध्या.१ मा १ स.३३टी दोष और उनका वारण अनकान्तिक हेत्वाभास ७२२ ३ ४१० ठा. १० उ ३ स ७४३ टी अन्तःशल्य मरण ८७६ ५ ३८३ सम १७,प्रव.द्वा.१५७गा.१००६ अन्तक्रियाएं चार २५४ १ २३७ ठा ४ .१ स. २३५ अन्तगडदसांग सूत्र का ७७६ ४ १६१ संक्षिप्त विषय वर्णन अन्तचरक ३५२ १ ३६७ ठा. ५ उ १ सू. ३६६ अन्तचारी भित ४११ १ ४३७ ठा ५ उ.३ र ४५३ अन्तचारी मच्छ ४१० १ ४३६ ठा ५ उ.३ स् ४५३ अन्तरद्वीप छप्पन १०११ ७ २७७ पन्न प १सू.३७ टी ,प्रव द्वा.२६२ गा.१४२०.१४२१,जी.प्रति ३ सू. १०८-११२ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ विषय अन्तर द्वीपिक श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला बोल भाग पृष्ठ ७१ १ ५२ १ श्रन्न इलायचरक अन्नपुण्य अन्यत्व भावना ५६० २ ३४१ १२५ १ ८६ ५६० ३८१ अन्तर नरकों का अन्तरात्मा अन्तराय कर्म और उसके भेद अन्तराय कर्मका अनुभाव ५६० ३८२ अन्तराय कर्म के पॉच ३८८ १ ४१० भेद व्याख्या सहित अन्तराय कर्म के बन्ध ५६० ३८३ के कारण अन्ताहार ३५६ १३७१ ७६८ ४ २६६ अन्तोसल्ल मरण अन्त्यकाश्यप (महावीर) ७७० ४६ ३५३ १३६८ ६२७ ३ १७२ अन्यलिंग सिद्ध अपनी पोर से किसी को भयन देना ही क्या अभयदान का अर्थ है? प्रमाण टाउ १८ १३०, पन्न. १३७ जी प्रति १०० भ श १८ ५-७ परमा गा १४ कर्म भा १ गा. ५२, न प २३ सू २६३ - २६४, तवार्थ, व्या पन्न प २३ सू. २६२ १ अभिग्रह विशेष धारा करने वाला मुनि । कर्म भा. १ मा ५२, ५न. प २३ स ३ मू २६३ भ. सू. ३५ टा०५ ३० १ सू ३६६ भ. श २ र १ सू. ६१ जन विद्या वोल्यूम १ न. १ ५. उ १ सृ ३६६ ठा ठा. ६ उ ३ सू ६७६ ८१२ ४ ३६४, शाभा १ क ४, भावना, ज्ञान ३८२ प्रक. २, प्रवद्वा.६७ गा.४७२, तत्त्वार्थ अध्या. सू. ७. ८४६५११६ पन. प. १ सू. ७ ६८३ ७ १३१ गच्छा अधि२.टी.,सूप, गा २३ टी. Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग ... .......~~ ~~~~rrrrrror विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण अपर सामान्य ५१ १ ४१ रत्ना परि ७ सू १६ अपरावर्तमान प्रकृतियाँ ८०६ ४ ३५१ कर्म भा ५ गा १८ अपरिग्रह पर ग्यारहगाथाएं९६४ ७ १८१ । अपरिग्रह महावत की ३२१ १ ३२६ श्राव ह य ४प ६५८,प्रव. द्वा ७२ पाँच भावनाएं गा ६४०,सम २४,याचा श्रु २ चु ३अ २४,ध भधि उग्लो.४५टी अपरिणय दोप ६६३ ३ २४७ प्रवद्वा ६७गा ५६८, पिं.नि गा।२०,ध अधि ३ श्लो २२ (आहार का दोप) टीपृ ४१,पचा १३गा २६ परिश्रावीस्नातकनिग्रन्य३७१ १३८७ठा सू ४४५,भ.श, २५उ ६सू ७५१ अपयरसित श्रुत ८२२ ५ ८ न सू ४३,विशे गा ५३७से ५४८ अपर्याप्तक जीव ८ १६ ठा २ उ २ सू ७६ अपवर्तना करण ५६२ ३ ६५ कम्म गा. २ छापवर्तनीय प्राय विष- ५४०३६७ तत्त्वार्थ अध्या.२ सू ५२,ठा २ यक शका समाधान उ.३ सू. ८५ टी. शपवाद (विशेष नियम) ४० १ २५ वृ.नि गा ३१६,स्या का ११टी अपवाद सूत्र ७७८ ४ २३६ वृ उ १निगा १२२१ अपश्चिम मारणान्तिकी ३१३ १३१४ उपा म १ सू.७,ध अधि २ संलेखना के अतिचार 'लो ६६ टी पृ.२३१ अपाय विचय धर्मध्यान २२० १ २०२ गा.४उ.१सू २४७, अपायापगमातिशय १२६ (ख)१ ६६ स्या. का १ टी १ अपाश्वस्थता ७६३ ३ ४४५ टा १० उ ३ सू ७५८ २ अपूर्वकरण ७८ १ ५६ श्राव म गा १०६-१०७ टी., विशे गा १२०२ से १२१८,प्रव द्वा.२२४ गा १३०२ टी., कर्म, भा.२ गा २ व्याख्या, यागम. १ज्ञान दर्शन चारित्र की विराधना न करना । २ जीव का परिणाम विशेष। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण अपूर्वकरणगुणस्थान ८४७ ५ ८० कर्म, भा २ गा २ व्याख्या अपूर्वस्थिति वन्ध ८४७ ५ ७६ कर्म. भा २ गा २ व्याख्या अपोद्गलिक सम्यक्त्व १० ११० प्रब द्रा १४६ गा ४४२ टी अप्काय ४६२ २६४ ठा ६२ ३सु ४८०,दन अ४,फर्म भा ४ गा १० अप्पारंभा आदि- ८६० ५ १४४ उब स ४१,पूय ध्रु २अ २ स ३६ श्रावकों के विशेषण अप्रतिपत्ति दोप५६४ ३ १०४ प्रमी अध्या १या १ सू,३३ टी अप्रतिपाती अवधिज्ञान ४२८ २ २८ ठाउ ३२ ५ २६,न मू १५ प्रतिवद्धयथालन्दिक ५२२ २ २६. विशे गा ७ अप्रत्याख्यानावरण १५८ १११३ पन्न, प.१४ - ११८,ठा ४ उ १ कपाय , सू २४६,कर्म,भा १गा १७-१८ अप्रत्याख्यानिकी क्रिया२६३ १ २७८ ठा २3 १८ ६० ठा.५७ २ सू.४१६,पन्न प २२ स २८४ अप्रथम समय निग्रेन्थ ३७० १ ३८५ ठा। उ ३ मू४४५ अप्रमत्तसयत गुणस्थान ८४७ ५ ७६ फर्म भा २ गा २ अप्रमाण दोष ३३० १ ३३६ ध अधि ३श्लो २२टी, पृ.५४. पिनिगा.६४१.६५४ अप्रमाद प्रतिलेखनाछः ४४८ २ ५२ ठा ६ उ. ३ सू ५०३, उत्त घ २६ गा.२५ अप्रशस्तकाय विनय क ५.४ २ २३३ भश २५३७ मू.८०३०.७३,३ सात भेद सू५८५,उव मृ.२० अप्रशस्त मनविनय के ७४१ ४ २७५ उव. सू २० वारह भेद Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, आठवों माग वोल भाग पृष्ठ विषय प्रशस्त मन विनय के ५०० २२३१ मात भेद अपशस्त वचन छः ४५६ २६२ १ अमानुतक ३५६ १३७३ अवद्धिक निह्नव का मत ५६१ २ ३८४ अब्रह्मचर्य का स्वरूप ४६७२१६७ अत्रह्मचर्य के अठारह भेद ८६३५ ४१० अभग्गसेन चोर की कथा ६१० ६३७ अभयकुमार की कथा पारिणामिकी बुद्धि पर अभवसिद्धिक(अभव्यजीव) ८ १ ७ १५ ६ ७४ सू१८५, सू २० ठा ६३५२७, प्रत्र. द्वा. २३५ गा १३११, बृ (जी) उ ६ प्रमशस्त वचन विनय ५०२२ २३२ भ ग २५ ७८०२ला ७उ ३ के सात भेद सू ५८५ अभिगम पॉच अभिगम पॉच श्रावक के ३१४ अभिगम रुचि अभिग्रह पच्चक्रखारण ६२४ ३ १ २१ प्रमाण भग २५, ७सू. ८०२ हा ७३.३ ६६३ ३ ७०५ ३ टा २३.२ ७६,श्रा प्रगा ६७ अभव्य और मोक्ष ४२४ २६ आगम अभव्य जीव ऊपर कहॉ ६८३ ७ ११३ प्रवद्धा १६०गा १०१६टी, म तक उत्पन्न होते है? श १ उ २ अभव्या परिपद (अच्छे रा ) ६८१ ३ २७६ टा १०३ ३८ ७७७,प्रवद्धा १३८ ठा ५३१ सू३६६ विशेग। २५०६ से २५४६ आह अ४१६४२ विश्र ३ न मू २७गा ७२,आव होगा,६४६ गा. ८८५ १६७ भग २ उ.३ सु १०६ ३१५ भ.श. २ उ ५ सृ १०६ ३६३ उत्त अ २८ गा २३ ३८१ प्रवद्भा ४गा. २०२, पचा ५गा १०, श्राव ह६ निगा १५६७ १ टगड और गर्मी के परिपट को सहन करने वाला अभिग्रह धारी साधु | Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ၃ ခု श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला बोल भाग पृष्ठ प्रयाण अभिमान के बारह नाम ७६० ४ २७५ भ ग १२ उ ५ तू ४४६ अभिवपित संवत्सर ४०० १ ४२६ठा ५उ ३४६०,प्रव.मा १४० गा ६०१ अभिवर्धित संवत्सर ४.० १ ४२८ ग.५ उ ३ सृ ४६०, प्रव द्वा १४२ गा६०१ अभिपेक सभा ३६७ १ ४२१ ठा। उ ३ म. ४७२ अभिहत दोष ८६५ ५ १६३ प्रव द्वा : ७गा ४६६,ध अधि । (आहार का दोप) श्लो २० टी पृ ३८, पिनि गा ६३,पिं विगा ४,पचा,१३गा.६ अमात्य(मंत्री)की पारि- ६१५ ६ ८५ त्रिप पर्व ,नग्यू २७गा ७२,प्रार, पामिका बुद्धि कोकथाह गा ६४६ अमात्य पुत्र की पारिणा- ११५ ६80 नसू २७गा ७३,उत्त अ १३टी. मिकी बुद्धि की कथा घाव ह गा ६५० असायाविता(सरलता) ७६३ ३ ४४५ ठा १०३ ३ सू ७५८ अमावस्या बारह ८०१ ४ ३०३ सूर्य.प्रा १०प्रा. पा ६ स ३८ अमूदष्टि दर्शनाचार ५६६ ३८ पन्न,प.१सृ ३७टी.गा १२८,उत्त य २८ गा ३१ अमोसली प्रतिलेखना ४४८२ ५३ ठा ६ उ. ३ सू. ५०३, उत्त म. २६ गा २५ अयोगी केवली गुणस्थान ८४७ ५ ८६ अयोग्य अठारह पुरुष ८६१ ५४०६ प्रत्र द्धा १०७गा ७६..७६१,घ. दीक्षा के अधि ३ ग्लो.७८ टी. प्रयाग्य स्त्रियांचीम ८.१५ १० प्रवद्वा.१०८गा.७६२,ध अधि: दीक्षा के ग्लो ७८टी परसाहार ३५६ १ ३७१ ठा ५ उ.१ सू ३६६ २व्याच्या Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह,अाठवा भाग विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण अरिहन्त २७४ १ २५२ भ, मगलाचरण परिहन्त " ४३८२४५ ठा.६ उ.३सू ४६ १,पन्न प १सू ३७ अरिहन्त देव की वादि ६७६ ७ ७१ सम ३५ री ,रा स ४ टी ,उव के पैंतीस अतिशय सू.१०टी अरिहन्त देव के चौतीस ६७७ ७ ६८ सम ३४,स श द्वा ६७ अतिशय अरिहन्त भगवान के ७८२ ४ २६० स्म ३४,म. श. द्वा. ६६ अष्ट महामातिहाये अरिहन्त भगवान् के १२६(ख )१ ६६ स्या का. १ टी. . चार मूलातिशय अरिहन्त भगवान् के ७८२ ४ २६० सम ३४, स श. द्वा ६६ वारह गुण स्या का १ टी. अरिहन्त भगवान् में नहीं ८८७ ५ ३६७ प्रवद्वा ४१ गा.४५ १-४५२, स. पाये जाने वाले अठारह शद्वर ६६ गा १६१.१६२ दोष दो प्रकार से अरिहन्त मंगलकारी, १२६ (क)१ ६४ भाव.ह.य४ पृ. ५६६ लोकोत्तम और शरण रूप है अरूपी ६० १ ४२ तत्त्वार्थ. अभ्या. ५ सू.३ अरूपी अजीव के तीसभेद६३३ ३ १८१ भागम.,पचीस वोल का थोकडा, पन्न.प.१सू.३,उत्त,प्र.३६गा.४-६ अरूपीअजीव के दस भेद ७५१ ३ ४३४ पन्न.१ १३,सू,नी,प्रति १ सू ४ अर्जुनमाली(निर्जराभाधना)-१२ ४ ३८६ भेत. व ६ अ. ३ अर्जनमाली की कथा ७७६ ४ १६६ मत व ६ अ 3 अर्थ कथा ६७ १६६ टा ३३.३सू. १८६ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण अर्थक्रिया छः द्रव्यों की ४२५ २ १८ यागम अर्थ दण्ड ३६ १ २३ टा २ उ १ स ६६ अर्थधर पुरुप ८४ १ ६२ वा ३३ ३ सू१६३ अर्थ योनि तीन १२६ १६० या ३ उ: सू १८५ टी अर्थशास्त्र की कथा ६४६६ २८० नं स २७ गा ६५ टी औत्पत्तिकी बुद्धि पर अर्थश्रत धर्म १६ १ १५ ा २ उ १ स. ७२ अर्थागम ८३ १६० अनु स् १४४ अर्थाचार ५६८ ३६ ध अधि १ जो १६टी १८ अर्थाधिकार ४२७ २ २६ भनु स ७० अर्थावग्रह ५८ १४० न सृ.२८,कर्म.भा १ गा । अर्थावग्रह के छः भेद ४२६ २ २८ न सू ३०,ठा ६३ ३ सृ ५२५, तत्वार्थ अभ्या. १ अर्द्धपर्यङ्का ३५८ १ ३७२ ठा ५उ १ ३६६टी ठा ५३ १ सू ४०० भर्द्धपेटा गोचरी ४४६ २ ५१ ठा ६.सू. ५१४,उत्त अ.३ ०गा १६, प्रब द्वा ६७गा ७४५, अधि: ग्लो, २२ टी पृ. १७ अधचक्रवाल श्रेणी ५४४ २ २८४ ठा ७३ सृ.५८१,भ.श २५ सू ७३० अर्धनाराच संहनन ४७० २ ७० पन प २३ स २६३, टा ६ 3 3 सू ४६४, कर्म भा.१ गा.३% अर्पितानर्पितानुयोग ७१८ ३ ३६३ ठा.१० उ: सू ७२० अलङ्कारिफा सभा ३६७ १ ४२२ टा ५७ ३ सू ४७२ अलीक वचन ४६६ २ ६२ ठा.६३.३सू ५२७,प्रय डा.२३॥ गा १३२१, पृ. (जी.) ३६ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवा भाग विषय 'बोल भाग पृष्ठ अलोकाकाश ३४ १२३ 'अल्पायु के तीन कारण १०५ १७४ f अल्पबहुत्व के तेती सबोल६७६ ७ ६६ अनन्तरागम सिद्धों के अल्पबहुत्व चार संज्ञाओं १४७ ११०७ का चार गतियों में I अल्पबहुत्न छः काय का ४६४ २ ६५ ८२५. ५.१८ अल्पबहुत्व जीव के चौदह भेदों का अल्पबहुत्व वेदों का अवगाहनानाम निघत्तायु४७३२८० A अवगाहना नारकी जीवों की सू, २००४ अल्पबहुत्व स्थावर जीव६६५ ७२५२, म. श. १६ उ.३ सू. ६५१ की अवगाहना की irr } ममाण ठा २ उ १ सू ७४ ठा ३ उ. १ सू.१२५, भ श ५३.६ अवग्रह २००१ १५८ ५८ १ ४० अवग्रह के दो भेद अवग्रह के दो भेद ध्यवग्रह ज्ञान के बारह भेद७८७ ४ २६६ ४२६ २ २८ अवग्रह पॉच ३३४ १ ३४४ २५ ? r नं. सू २० टी. पृ.१२५ पन प. ८ सू० १४८ 17 1 ५६६ ३ १०६. जी प्रति. २ सु. ६२ 1E जी. प्रति २६२, पनप ३द्वा४ जी प्रति ४ २२५, प्र. भा. २ पन्न पं३द्वा.३,१८,१६ भ.श. ६ उ ८सू.२५०, ठा. ६उ ३ सू ५३६ ५६० २३१६' जी. प्रति. ३.८६, प्रवद्वा. १७६ गां १०७७-१०८० ठा.४ उ ४ सू `३६४. न.सू.२८,कर्म. भा. १ मा ४-४ नं सू २८, तत्त्वार्थ, अध्या, १ ठा० ६० ३सू ५१०टी, विशे. गा ३०७,तत्त्वार्थ अध्या. १ सू. १६ भ. १६ उ. २ सू. ५६७, प्रव. द्वा ८४गा. ६८१, माचा. श्रु २. चू. १भ ७ उ.२ सू. १६२ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण अवग्रह प्रतिमाएं सात ५१८ २ २४८ याचा शृ २८ १७ १६ मनायज्ञान अवधिज्ञान ३७५ १ ३६१ ठा* उ ३१ ४६३,कर्म भा । गा ४,न. सू १ अवधिज्ञान और मनः ६१८ ६ १३७ भाग १उटी ,तत्त्वार्थ पर्यय ज्ञान में क्या अन्तर है शान मक्या अन्तरह अध्या . १ सू. २६ अवधिज्ञान के भेद १३ १ ११ । ठा. उ.१ सू ७१ अवधिज्ञान के छः भेद ४२८ २ २७ ठाउ ३ मृ ५२६ ,नं सृ हमें १५ अवधिज्ञान दर्शन मद ७०३ ३ ३७४ टा १० उ. मृ ७१०, ८ ५ अवधिज्ञान नारकी ५६० २ ३२३ जी प्रति 3म ८८ प्रवद्रा १७६ जीवों का गा १०८४ अवधिज्ञान के घलित ३७७ १ ३६२ टा०५ उ० १ २० २६४ होने के पाँच बोल अवधिज्ञानसाकारोपयोग७८६ ४ २६८ पन० प० २६ स० : १२ अवधिज्ञान से मन:पयेय ११८६ १३७ भ श १ 3 3 टी,तत्वार्थ, झानअलग क्यों कहा गया? अध्या. १ ८ २६ अवधि ज्ञानावरणीय ३७८ १ ३६४ ठा ५ उ.: म् १६४, कर्ग. भा १ गाह अवधिज्ञानी जिन ७४ १५३ ठा-३ उ०४ स० २२० अवधिदर्शन १६६ १ १५८ ठा ४३ ४सू ३६५ , कर्म, भा.४ गा. १२ ७८६४२६४ पन० प० २६ सृ० ३१२ अवधिदर्शन अना- कारोपयोग भवधिमरण अवधिलब्धि ८७६ ५ ३८२ सम.१७,प्रव.दा. 3गा १००६ ८५४ ६ २६१ प्रव. दा. २५० गा. १४६२ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवाँ भाग अवयव से नाम अवलित प्रतिलेखना प्रमाण विषय वोल भाग पृष्ठ अवन्दनीय साधु पाँच ३४७ १ ३५७ भाव ह अ ३ निगा ११०७-८ पृ ५१६ प्रवद्वा २गा. १०३-२३ अनु सू१३० ठा ६ उ. ३ सू ५०३, उत्त ७१६ ३ ३६८ ४४८ २५३ का जानकार होना साधु के लिये आवश्यक है अवसर्पिणी अवसर्पिणी काल के छः भरे अ. २६ गा २५ अवसन्न सार ३४७ १ ३५८ भाव ६ अ. ३ निगा ११०७-८ ५१६ प्रवद्वा. २गा १०६-८ अवसर आदि नौ बातों ६४१ ३२१२ भाचा श्रु १ अ २३५ सू८८ २७ ३३ १ २२ ४३० २ २६ ठा० २३० १ सू० ७४ ज वक्ष २, ६ ३४६२, भ श ७ उ. ६सू २८७-२८८ सू७७२ ६७८ ३ २६७ ठा १० उ ३ ५६ १ ४१ रत्ना परि व्यवस्था दस अवान्तर सामान्य श्रवाय २००१ १५६ अविनीत के चौदह लक्षण ८३५ ५३० अविरत सम्यग्दृष्टि गुण० ८४७ ५ ७४ अविरति आश्रव २८६ १२६८ ठा ५.२ सु. ४१८, सम. ५ अविरुद्धानुपलब्धि हेतु ५५६ २२६८ रत्ना परि ३६५-१०२ के सात भेद ७ सृ १६ ठा ४ उ४ सू ३६४ उत्त.. ११गा. ६-६ कर्म भा २ गा, २ अविरुद्धोपलब्धि रूप ४६५२१०४ रत्ना. परि. ३ सू.६८-८२ हेतु के छः भेट अवैदिक दर्शनों की सत्रह ४६७ २ २२३ बातों से परस्पर तुलना Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला -rammarrrrrrrrrrrr . . . . . . ~~ rrrrrr बोल भाग पृष्ठ प्रमाण५६१ २ ३५६, विशे, गा २३५६ - २३८८ ४२१ १ ४४५. भग १६३६ मू. ५७७ . ५१४ ३ १०४ प्र मी अध्या,१ प्रा.१ ८३३ विषय . अव्यक्त दृष्टि नामक तीसरे निद्रव का मत अव्यक्त स्वम दर्शन अव्यवस्था दोष अव्यवहार राशि अव्यवहार राशि अव्याप्ति अव्याप्ति दोष अशक्य घोल छः अशवल स्नातक भागम० ४२५ २ २१ भागमः । १२० १ ८४ न्याय दी प्रका , ७२२ ३ ४०८ ठा. १.उ.३ सू ७४३ टी ४६० २ १०१ ठो ६ उ ३ सः ४७६ ३७१ १ ३८६ ठाउ ३ सू ४४५, म श २५ 'अशरण' पर दस गाथाएं६६४ ७ २२२ अशरण भावना ८१२ ४ ३५८, शा भा १प्रक २, भावना,ज्ञान. ३७६ प्रक २,प्रव.द्वा.६७ गा.५७२, तत्त्वार्थ प्रध्या ६ सू. अशुचि भावना ८१२४३६५. शा.भा १प्रक.६,भावना.,ज्ञान, ३८४ प्रक.२,प्रव०द्वा ६७गा १७२, तत्त्वार्थ अध्या ६ स. अशुभ दीर्घायु के ३ कारण १०६ १७४ ठा• ३ उ० १ सू० १२५ अशुभ नाम कौ चौदह कर्मबोरा ८३६ ५ ३३ पर ३३ पन प. २३ र २६२ . प्रकार से भोगा जाता है। श्रशुभ भावना पॉच ४०१ १ ४२८ प्रव. द्वा ७३ गा.६४१, उत्त, प्र६६ गा. २६१-२६४ अश्लोक भय ५३३ २ २६८ ठा ७ उ ३ स. ५४६, मम. लीनिकाय। Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय: श्रश्वमित्र नामक चौथा नित्र और उसका मत श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, श्राठवाँ भाग बोल भाग पृष्ठ प्रमाण 1 ५६१२३२८ विशे गा २३८६-२४२३ । अश्वों का दृष्टान्त - ज्ञाता ६०० ५ ४६६ धर्म कथाका १७ अध्ययन 7 अष्ट महाप्रातिहार्य भरि ७८२४२६० सम, ३४, स श द्वा ६७. इन्त भगवान् कं २ अष्टशत सिद्ध श्राचर्य ६८१ ३ २६० ठा १०३ ३ ७७७, प्रव. स् द्वा १३८गा ८८६ भ.श. १२.५ सू. ४५० उपाय १ सू७ भ.श ८ उ ४ अष्ट स्पर्शी ६१ E असई जो मणया कर्मादान८६० ५ असंक्लेश दस श्रसंख्यातजीविक वनस्पति७० संख्येय के नौ भेद असज्ञिश्रुत श्रसज्ञी असंभव असंभव दोष १ ४२ १४६ ७१५ ३ ३८६ १ ५१ ६१६ ३ १४६ ८२२५६ ८ १ ६ १२० ७२२ ६६ असंयत असंगतपूजाआश्चर्य (अच्छेरा ) ६८१ १८५ ३४.८ .9 २६ ܐ सू ३३९,भाव ६ ८.६ पृ.६२८ ठा १० उ. ३ सु ७३६ ठा. ३ उ. १ सू १४१ मनु स्. १४६ टी ठा २२७६ न्याय. दी प्रका. १ 1 न सु. ४०, विशे गा ५०४ से ५ २६ अमंगती अविरति कोमासुक६८३ ७ १३० भ श ८ या अमाक आहार देने से २ एक ममय में उत्कृष्ट अवगाहना वाले १०८ जीवों का सिद्ध होना । न्याय. दी. प्रका १, रत्ना. परि. १ सू २ टी १५० भ. श ६ उ. ३ सू २३७ ३ २६० वा १० उ ३. सु ७७७, प्रव. द्वा १३८ गा. ८८६ 2 ६ सू ३३२ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय चोल भाग पृष्ठ प्रमाण एकान्त पाप होना भगवनी में किम अपेक्षा से कहा है? असंयम पाँच २६७ १ २८३ ठा.५ ३. २ मू.४०६ ४३० प्रयंवर (आश्रव) दस ७११३ ३८६ ठा. १• ३. २ ७०६ १ असंत बकुश ३६८ १ ३८३ ठा. ५ उ. ३ र ४४५ असंस्कृत अ०की१३गाथाएं८१६४ ४०६ उत्त भ. ४ असज्झाय चौतीस ६६८ ७ ३५ टा ४ ३ २ सू २८ ठा.१०३.३ अगज्झाय बत्तीस ६६८ ७ २८ सू ७१४, प्रत्र द्वा २६८ गा १४५०-१४७१,व्यव.भाग्य उ.७गा,२६६-३१६,प्राव है घ ४ गा.१३२१ म१३६० शासत्य का स्वरूप ४६७ २ १६६ अमत्य भाषा २६१ १ २४६ पन्न प. ११. सू. १६१ असत्यवचन के चार प्रकार२७० १ २४६ दश अ.४ सू ४ टी, असत्य वचन दस ७०० ३ ३७१ ठा १०३.३सू.७४ १,पन्न.प ११ सू १६५,य. अधि.: 'लो ४१ टी. १२२ असत्यासपाभापा २६४ १ २४६ पन्न. १ ११ सू. १६१ असत्यामृषा(व्यवहार) ७८८ ४ २७२ पन ५ ११ सू. १६५ भापा के बारह भेद असमाधि के वीस स्थान १०६ ६ २१ मम.२०, दशा. द । सानावेदनीय ५१ १३० पन १ २३.२६३, कर्म भा, गा १२ व्याख्या असिकर्म ७२ १ ५२ जी प्रति,३३ १ सू १११ तन्दु स १४.१४ पृ.४० शरीर मोर अकागा की विभूषा करने वाला माधु । Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह,पाठवा भाग विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण प्रसिद्ध हेत्वाभास ७२२ ३ ४०६ ठा १० उ.३सू. ७४३ टी. अमरकुमारोंकेदस अधिपति७३१३ ४१७ भ. श.३ उ. ८ सू. १६९ अस्तिकाय के पाँच भेद २७७ १ २५४ ठा ५ उ ३ सू. ४४१ अस्तिकाय धर्म ७६ १५४ ठा ३ ३ ३ सू १८८ अस्तिकाय धर्म ६६२ ३ ३६२ ठा १० उ ३ सू. ७६० अस्तिकाग पाँच २७६ १ २५३ उत्त श्र.२८ गा.७-१२,ठा. अस्तित्व गुण ४२५ २१६ पागम द्रव्य त अध्या.११ श्लो २ अस्ति सुख ७६६३४५४ टा १० उ.३ सू ७३७ अस्वाध्यायथान्तरिक्षदस६६० ३३५६ ठा १० स ७१४,प्रव द्वा २६८ गा १४५०-७१,व्यव.भाष्य उ७ अस्वाध्याय औदारिकदस ६६१ ३ ३५८ ठा १० उ 3 सू ७१४ श्रस्वाध्याय का सवैया * ५ ४७५ अस्वाध्याय चौतीस ६६८ ७ ३५ / टा.४उ २ सू.२८५, ठा.१०३ सू ७१४, प्रत्र द्वा. २६८ अस्वाध्याय बत्तीस ह६८ ७ २८ | गा.१४५०-१४७१च्यव भाष्य उ ७ गा २६६-३१८, पावह श्र४ गा १३२१ से १३६ . अहंकार के दस कारण ७०३ ३ ३७४ ठा १० व ३ सू. ७१०, ठा ८ उ३ सू.६०६ महिंसा अणुव्रत ३०० १ २८८ श्राव ह म.६५८१७, ठा ५७ सू ३८६,उपा म.१सू ६,प. अधि.२ श्लो.२५ पृ.५७ अहिंसा अणुव्रत (स्थूल ३०१ १ २६० भाव ह य ६१८१८,उपा १ प्राणातिपात विरमण व्रत) सू.५, ध अधि.२ ग्लो ४३ फ पाँच अतिचार १ १.. अहिंसा और कायरता ४९७ २ १६३ आव Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला श्री से विषय . बोल भाग पृष्ठ प्रमाण अहिंसा की व्यावहारिकता४६७ २ १६५ अहिंसा(दया)पर १७गाथाहह४ ७ १६७ ... अहिंसा भगवती की उपमा६२२ ३ १५० प्रन्न, सवरद्वार १ सू ? अहिसाभगवतीके साठ नाम६२२३ १५१ प्रश्न सबरद्वार १ सू. २१ अहिंसा महाव्रत की पाँच ३१७ १ ३२४ भावह अ४६५८ प्रब द्वा.७२ भावनाएं गा ६३६,सम २५.याचा ध्रु.२ चु ३५२४८.१७६,ध अवि श्लो ४५ टी पृ १२५ अहिंसावाद ४६७२२१० अहोरात्रिकी ग्यारहवी ७६५ ४ २६० मम १२,भग २५ 3टी. भिक्खुपडिमा अहलब्धि १५४६२१४ प्रव द्वा. २७० गा १८८४ दगा द ७ । आ आँवले का दृष्टान्त पारि- ६१५ ६ ११३ न स २७गा ७४,माह गा ५१ णामिकी बुद्धि पर आउंटण पसारण आगार ५८७ ३ ४१ भाव ह य ६८५ प्रब द्वाद गा.२.३ आउर पञ्चक्रवाणपइण्णा ६८६ ३ ३५३ द प. आकाश ३४ १ २२ टा २ उ.१ सू ७४ । आकाश के सत्ताईस नाम ६४८ ६ २४१ भ श.२० २.२ स. ६६ ४ आकाश द्रव्य ४२४ २३ अागम ,उत्त अ.३६ गा. ६ आकाश सम्बन्धी दस ६९० ३ ३५६ टा.१०३ ३सू५१४ प्रवद्धा.२६८ अस्वाध्याय गा १४५० से ७१व्यव भाष्य उ." भाकाशास्तिकाय के भेद २७७ १ २५५ टा 3 3 सू. ४४१ भाक्रान्त वायु ४१३ १ ४३८ ठा. . ट स ४६४ wr m Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, श्राठवाँ भाग विषय बोल- भाग पृष्ठ प्रमाणा' . आक्षेपणी कथा की व्याख्या१५४१ ११२ ठा४ उ.२ सू.२८२ दश.अ. और भेद निगा-४-१९४ । - पाख्यायिका निःसृतअसत्य७०० ३ ३७२ ठा १० उ ३ स. ७४ १,पन्न प ११ सू.१६५,ध अधि.३लो ४,१टी १२२ आगति नारकी जीवों की ५६० २ ३२७ प्रव. द्वा १८२गा १०६१-६३ . भागमः . ॥३७६ १ ३६६ रत्ना. परि ४ सू १,२ आगम की व्याख्यो, भेद ८३ १६. रत्ना.परि ४] १,२ मनु सू १४४ आगम निराकृत साध्य ५४६ २ २६१ रत्ना परि ६ सू ४३ धर्म विशेपण पक्षाभास आगम पैंतालीस ६६७ ७ २६० जै ग्र.,अभि राभा १ प्रस्तावमा पागम प्रमाण २०२ १ १६१ भय उ ४ स १६३,अनु सू १४४ आगम बत्तीस ६६६ ७ २१ आगम व्यवहार ३६३ १ ३७५ ठा ५उ २८ ८२.१,भ श८3८ सू ३४० आगम व्यवहार के छः ३६३ १ ३७५ ठा ५ उ २ मू ४२१, भ श ८ . भकार उ८ सू ३४० आगामी उत्सर्पिणी के ७८४ ४ २६५ सम १५६ वारह चक्रवर्ती आगामी उत्सर्पिणी के ५११ २ २३६ ठा.७ उ ५५ ६,सम १५६ सात कुलकर आगामी चौबीस तीर्थकरह ६ १६७ सय १५८,प्रवद्धा ७ गा ३०० से ऐरवत क्षेत्र के ३०२ भागामी चोवीस तीर्थकर९३०६ ११६ सम १४८, प्रब द्वा५ भरत क्षेत्र के गा २६३-२६५ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ ra sat सेठिया जैन सन्माला आई सि । awanva II. २०४ विषय... बोल भाग, पृष्ठ प्रमाण - भागार आठ आय विलकेचा ४१ "भाव ह.. RE: F 5 ११REETTETTE प्रागार श्राठ एकाशन५६७ ३४० आव ह अ६५८प्रद्वार PTE!! :१८ UTT TTHF THE भागाराछा पोरिसि के ४८३ २ ६७ भावह अपृ८५ प्रब द्वा ४ गा २०३ आगारछ: समफित ४५५:२०५८ उपा मसूदभाव हार १ S PU८१०,ध भधि • श्लोमा भागार नौ निन्विाई..६२६.३,१५६ मायू. ई.स.१४ स्वद्रा पच्चक्खाण के - गा EF भागार बारह तथा चार :८०५.४, ३१६, ग्राव ह. भ. १. ११५5:115 कायोत्सर्ग के भोगार'सात एगहाण ५१७२२४७ मावह अ.६पृ.८५३टी ,प्रब द्वा ४ (एक स्थान ) के (017गा० २०४ - भागार दी पोरिसि के ५१६२ २४७ मावन प्रभावित माचाम्लिक(आयंबिलिए)३५६ FIRTआचार पाँच ३३२ ठा ५ ३.२,सू ४३३,५ मा EPSलो ४११४० .. आचार प्रकल्प के पाँचभेद३२५ १३३३ ठा, उ २ स. आचार विनय के चारभेद२३३२१४ दशादा 17. प्राचार समाधि केचारभेद५५३ २ २६४ दश अ६ उ. UPTET आचार सम्पदा ८, ५७४१३३१२६ देशाद ठोस भाचारांग सूत्र का विषय ७७६ ४ ६७ भाचारांग सूत्र के नर्वे ८७३ माची... के चौथेउकी १७गाथाएं Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3. is श्री जैन सिद्धान्त चौल संग्रह पाठवा भाग IRIHERITE IFsi -rrrrr~~~~~~~~~~~n .. .wwm विषय . बोल" भाग पृष्ठ प्रमाण , आचांगंगम के नवें के ७८४८४ भाचा ध्रु.१.उ. ४ .६ : चौथे उ की१७मूलेगाथाएं आचागि सूत्र के नवें भ० ८७४३५, ४८२ श्राचा श्रः १ ..२ दूसरे उ० की सोलह गाथाएं प्राचारांगसूत्र नाअ०के ८७४ ५ ४८१ दूसरउ की१६मूलगाथाएँ Se - TORECTIFIYE आचासंगसूत्र नवें २२१६६ भाचा.अ.म.उ. 'एक पहले उ की तेईसगा TREATREEEE ।भापागंग सूत्र प्रथम श्रत-१००५७२७२ समा TE ) स्कन्ध के कावन उद्देशे ६ ६ FEETE आचार्य - . ० . ०२७४.१२५२ भ. मंगलाचरण का - आचार्य उपाध्याय केगळ३४४६१३५५ ठा. ५ . ३६॥ में पाँच फलह स्थान आचार्य उपाध्याय के गण ३४३ १५३५४ . उ. EINE से निकलने के पाँच कारणे : २ भाचार्य उपाध्याय के : ४३४२३६५३ ठा। उ.३ मा विशिष्ट पॉच अतिशय . भाचार्य उपाध्यायके सात १४३ २४३ ठा. उस.३८६, ताउ.३ संग्रह स्थान - स. १जार भाचार्यकी ऋद्धिके ३.भेद१.२ १३७१ ठा. ३ ३.४२१४ भाचार्य के छः कर्तव्य ४५१, २, ५ ......-१५० टी .प्राचार्य के छत्तीस गुण ६२,५,६४ प्रवद्वाexekx.५४ श्राचार्य के तीन, भेद, १९३८ १३७२ रा. स. ETAL भाचाये के पाँच प्रकार३४२.१.३५२ भधि. ३ श्लो. ४६टी.१११८ EATE प्राचार्य पदवी ५१३२ २३६ ठा. ३ .३ सू. १00 टी. ',? Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ . श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला ला. विषय . बोल भागः पृष्ठ प्रमाण आच्छेद्य दोप ८ ६५ ५ १६३ प्रब द्वा६ ७ गा ५६६,ध.अधि.३ लो.१२टी पृ ३८ पि निगा.६३, पिसी गां४, पचा,१३ मा ६ प्राजीव दोप ८६६ ५ १६४ प्रवद्रा ६ ७गा ५६७,ध अधि : . श्लो,२२टी पृ ४०,पिनिगा ४०८ __ - पिविगा।८,पंचा १३गौ १८ आजीवक के१२श्रमणापा०७६३४ २७६ भ श६ उ. रसू ३३० आजीधिक श्रमण ३७२ १ ३८७ प्रवा द्वाः ६४ गाँ:१७३१ आज्ञापनिकी या आनायनी२६५ १ २८० ठा २ उ । सू ६., ठा। उ २ (प्राणवरिणया)क्रिया : स ४१६,प्राव ह म ४ ६१३ आज्ञा रुचि ६६३ ३ ३६३ उत्त.,य २८ गा २० आज्ञा विचय धर्मध्यान- २२० १-२०१ ठा ८३ १सू.१५ आज्ञा व्यवहार ३६३ १ ३७६. ठाउ.२४ ४२१, 3 ८ ,सू ३४० . पाठ प्रक्रियावादी ५६१ ३ ६० टा. ८ उ ३ सू. ६०७ . पाठ अनन्त ६२० ३ १४७ श्रनु सू १४६.. , आठ आगार प्रायम्बित के ५८८ ३-४१ ; आय हे म.६४८५६ प्रवद्धा.४ . गा. २०४ -1 पाठ धागार एकाशन के. ५८७ ३४०. प्राव. ह न. ६ १ ८५ प्रब द्वा ४ गा १०३. आठ अात्मा ५६३ ३ ६५ भन.१२ उ.५० र ४६७ आठ आयुर्वेद ६०० ३ ११३. ठा.८ ३ ३ सू. ६११ पाठ उपदेश योग्य वात ५८५ ३ ३६ भाचा प्र.६७.५ मू. १६४ आठ उपमा अहिंसा की ६२२ ३ १५० प्रश्न. मंवर द्वा १ सू. २२ आठ उपमा सघ की ६२३ ३ १५६ नं पीठिका गा. ४-१५ आठ करण ५६२३६४ कम्न. गा. २ ८ . Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग ३७ विषय -वोल भाग- पृष्ठ प्रमाण पाठ कर्म ५६० ३ ४३ . विशे गा १६०६-१६४४, . .. तत्त्वार्थ अध्या ८,कर्म भा.१, "भ श प्उ Eसू ३५१,मश: उ ४ उत्त य ३३, पन प २३, , "द्रव्या लो.स १० । पाठ कर्मों का क्षय करने ६८३ ७ ११७ उब सू ४१ " वाले महात्मा यहाँ की स्थिति परीकरके कहॉउत्पन्न होते हैं? ..! •i . . . . आठ कमां की स्थिति ५६० ३ ४३-६०पन्न प २३ सू २६४,तत्त्वार्थ, ' अध्या सु१५म२१,उत्तथ,३३ आठ कमा के अनुभाव ५६० ३ ४३-६०पन्न प २३ सू. २६२' आठकमर्विन्धककारण५६० ३-४३-६०भ०२०८ उ०६ सू० ३५१ आठकमा के भेद प्रभेद ५१० ३ ४३-६० पन्न०प २३ तू ३६३,उक्त श्र.३३ __ कर्म भा१,तत्वार्थ अध्या सू ५-१४ आठ कारण झूठ बोलनेके५८२ ३ ३७ साधु प्र महाव्रत २ आठ कृष्ण रानि ६१६ ३ '१३३ ठा ८उ ३सू ६२३, रा.६उ सू २६२ वि द्वा २.६७ गा १८४१ मे १४४४ माठ गण ५९-६ ३ १०८. पिगल , .. .. : आठ गणधर पाश्वनाथके ५६५ ३३ 'ठा ८ उ ३ सूं. ६ १७,सम.८ ___ठाणाग सूत्र एक समवायाग सूत्र क मूल पाठ में भगवान्, पार्श्वनाथ के पाठ गणधर बतलाये है किन्तु हरिभद्रीयावश्यक गाथा २६६ से २६९ में, प्रवचन सारोद्धार द्वार १५ मैं तथा मतरिमय ठाणा वृति द्वार १११ में भगवान् पार्श्वनाथ के दस गणधर होना बतलाया है । ठाणाग और समवायाग के टीकाकार श्री अभयंदेवमूरि ने भी टीका में दन गणधर का होना माना है । मूल पाठ में दी हुई पाठ की सख्या का सामजस्य करने के लिये उन्होंन टीका में यह जामा किया है कि अल्प यायु होने के कारण सूत्रकार ने दो गणधरों की विवक्षा न कर मात्र ही गणधर बतलाये है। Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 • ६३८ वाले के " विषय " बोल भाग पृष्ठ L ५७४ ३ ११ आठ गण सम्पदा गुण आलोयरा करने५७६ ३ १६ ! वाले के साधु माठ गुण शिक्षाशील के ५८४ ३ ३८ आठ गुण सिद्ध भगवान् के ५६७३४ - C 1 गुण लोणा देने ५७५ ३ १५ · ★ आठगुणसाधु औरसोने के ५७१ ३ ६ - ५६८ ३-५ आठ ज्ञानाचार आठ तरह के संकेत पच्चक्रखाण में आठ त्रस - आठ दर्शन 4 1 भाठ तृण वनस्पतिकाय , - MER श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला 1 -1° も आठ दर्शनाचार : श्राठ पृथ्विय 1 आठ प्रकार से वेद का ! अन्य बहुत्व ܵܐ Fra C t IMS,S दशा द४, ठाउ ३.६०१ ठा. उ. ३ सू६०४, भ.रा.२५ उ.७७६६ भ्राठदोपअनेकान्तवादपर५६४ ३ १०२ आठ दोष चित्त के ६०३ २ १२४. आठदीप साधुकोवर्जनीय ५८३ ३३८ । " आठ नाम ईपत्याग्भारा के ६०६ ३ १२६ आठ पुल परावर्तन ६१८ ३ १३६ Pr+ प्रमाण }}} ठाउ ३६०४,भ. श. २४ vor sie । प्रय. द्वा. २६७ , ध. अधि. १श्लो. १६/१८ " A ६५८६३४२ मात्र, इ. ८.६निंग. ५८, उत्तम. ११४ अनुसु १,६८११५.सुम ३१′ २४: ६१२३ १२६ ठा८३ ६१३ ६१० ३१२७४३.३ ९:५६८ ३ १०६.८३.३३.६१६ ५६६ ३ ६ ६०८ ३.१२६ ५६६ ३. १०६ -45 4 17. - } • प्रव द्वा ४ गा. २० st · पचा. १४ मा ३२-३४ १६६३६४ पत्र. प १ सू. ३७गा. १२८, उत्त. अ.२८ गा. ३१ 174 प्रमीमध्य १ मा १. ३१ कभी २ श्लो. १६६ - १६.१ टत. म. २४ गा. पत्र १. २५४, ३.३ ३.६४ } T कर्म, भागा. ८६ ठा.उ. ३. सु. ६४८ जी प्रति. २. सु. ६.२०० } } '' 1 Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त, बोल संग्रह, पाठवा भाग ३६० : विषय .... बोल भाग पृष्ठ प्रमाण १ बाट प्रभावक .५७२.३० १०५ : प्रव. द्वा १४८/गा.८३४. ! पाठ प्रमाद : १ :- ५८०.३१३६ । प्रव. द्वा २०५ गा १२९७.८८ मातृप्रवचन, माता . .५७० ३८ उत्त श्र. २४. गा १, सम.८ भाव प्रायश्चित्त :... -५८१ ३ ३७ ठा. ८ उ.३ सू. ३०५ आठ बातें छमस्थ नहीं:६०२:३, १२० ठा ८उ ३ सू. ६१. देख सकता : 17.) : पाद भेद,गन्धर्व के ॥६१३ ३.१२६ - उव सू २४,पन्न.पं.२ सू४७12 आठ भेदभतिक्रमण के -५७६-३२२१ ९. यह अ ४निगा.१२३३०४८ माठ मदः . . . . ७०३ ३:३७४.', ठा;८उ.३.सू. ६.६,ठा. १० : ___उ ३ सू ७१० : प्राठ मराग्रह -- .. ६०४ ३३१२१....ठा.८३.३ सू. ६१२ . . पाठ महानिमित्त ६०५ ३ १२१ ठाउ:३सू ६०६,प्रवद्धा २५ गा १४०५ से १४०६ अाठ मांगलिक पदार्थ ५६४ ३ ३ - उव. सू. ४'टी', रा सू.१४॥ भाठ योगांग ६.१३ ११४ यो., रा 'यो । पाठ योनि संग्रह - ६१०६ १२७ ' दश अ.४,ठा. उ ३सू.५६, आठ राजाभगवान् महा-५६६३३ ठा८ उ३. सू. ६२१ ,. वीर के पास दीक्षित हुए भाठ रुचक प्रदेश - ६०७३ १२५ ? प्राचाश्रु १५.१उ १टी नि गा ४२, . . . . समागम,भ श. सू. ३४० ___ - - PIP , टी., ठा.८.३३ सू६२४ आठ लोकस्थिति ६२१ ३ १४८ भश.१३.६, ठा ८उ, ३ सू.६... आठ लौकान्तिक देव , ६१५.३.१३२ . भ. ग ६ उ ५ सू ४४३, ठा... भौर उनके विमान . . . . . . ३६५ ३.१०५. ठा.उ.३सू ६ . ६ ,अनु.मू.१२८ आठ वचन विभक्तिया ५६५.२. १९२ १ धर्म प्रचार में सहायक होने वाला। Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०, विषय आठ वर्गरणा आठ व्यन्तर देव श्री सेठिया जैन ग्रन्थमीला ✓ आठ संख्या प्रमाण आठ संगम ६१६ ३ १९४१ ५७३३११ आठ संपदा ५७४३.११ ६११ ३ १२८ आठ सूक्ष्म आठ स्थान एफल विहार५८६.३ ३६ प्रतिमा के बोल भार्ग पृष्ठ ६१७ ३ १३४ ६१४ ३ १३० आठस्थान माया की ५७७३ १६ आलोर्यणा करने के I आठ स्थान माया की ५७८ ३.१८ आलोयणा न करने के और रक्षा के लिये प्रयत्न करना चाहिये आठ स्पर्श स्थानों की प्राप्ति ६०६ ३ १२४ आढ्यत्व सुख प्राणत और मायात देवलोक का वर्णन 4 ५६७३ १०८ ७६६ ३ ४५४ ८०८ ४३२३ ✓ आतापक ३५६ १ ३७३ आत्मकृत दोप ७२३ ३४१२. थात्मचिन्तन पर चार ६६४ ७ २४८ गाथाएं " }" प्रमाण शेिगा. ६३१ मे ६३७ ८ ३ सू६६४, जी. 1 'प्रति ३१२१, पेन २ 2 ..सू ४७-४६, पत्र. ४. १०० अनु. सू. १४६ तत्त्वार्य अभ्यासू टाउ ३ सू१६ दशा. ४ ठाउ ३ सू. ६०१ ठाउ ३६०१५, दश. ८गा. १४ ठाउ ३ सु. ५६४ ठा.८ उ, ३. सू. ५.६.७ . ) ( ठा.उ. ३ सू. ६४६ +* { 1 टा.उ. ३५००, पन्न.प.२३२७. ठा. १० उ. ३ सृ पन प. २ सू.. ७३७ ક્ર્ f · टा. ५ उ. १ सू. ३६६ ठा. १० उ. ३ सू ७४३ 1 Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग .. विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण यात्म दयन के विषय में १६४ ७ २०७ सोलह गाथाएं आत्मभूत लक्षण ६२ १४३ न्याय. दी प्रका. १ मात्म रक्षक देव ७२६ ३ ४१६ नत्त्वार्थ अध्या, ८ सू ४ आत्मवादी प्राचा श्रु १ भ.१३ १सू ५ मात्मसंवेदनीय उपसर्ग २४३ १ २२० ठा ४३ ४सू ३६१,सूय.श्रु १५३ के चार प्रकार उ १ नि गा ४८ आत्मा १ १२ ठा.१ उ १ सू २ धात्मांगुल की व्याख्या ११८ १ ८३ अनु सृ. १३३ वात्मा के विपयमें गण- ७७५ ४ २४ विशे गा १५४६ से १६०५ धर इन्द्रभूति कीशका और उसका समाधान आत्मा के आठ भेद ५६३ ३ ६५ भश १२ उ १० सू. ४६५ मात्मा के माठ भेदों का ५९३ ३ ६५ भ श १२ उ १० सू ४६७ पारस्परिक सम्बन्ध १ आत्मागम ८३ १६१ मनु सू. १४४ मात्मा तीन १२५ १ ८४ पग्मा गा.१३-१५ आत्मा पर छ: गाथाएं ६६४ ७ १५६ मात्यन्तिक मरण ८७६ ५ ३८३ सम १७प्रव द्वा १५७गा १००६ आदानपद नाम ७१६ ३ ३६६ अनु सू. १३० पादान भंडमात्र निक्षे-३२३ १ ३३१ सम..ठा ५ उ ३ सू.४५७,ध पणा समिति थधि : ग्लो ४ष्टी.११३०, उत्त अ २४ गा २ १ प्रागम का एक भेद। Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण १ भादान भय ५३३ २ २६८ ठा.७उ ३. सू.५४६, मम ५ श्रादित्यप्रमाण संवत्सर ४०० १ ४२६ टाउ ? ४६० प्रब द्वा १४२ गा ६०० श्रादित्य संवत्सर ४.० १ ४२७ ठाउ सू ४६०,प्रवदा १४२ गा, ६०१ प्राधा कर्म ७६० ३४४३ श्राचा म २उ १नि. गा.१८३ आधा कर्म दोष ८६५ ५ १६१ प्रव द्वा.६७गा ५६५,ध अधि : श्लो २२टी.पृ.३८,पि नि गा ६२, पि वि गा.:, पंचा १३ गा। आधार ४८ १ २८ विशे गा. १४० आधिकरणिकी क्रिया २६२ १ २७७ ठा २ उ १ सू ६०, टा ५ उ • सू ४१६, पन,१ २२ स २७६ प्राधिगमिक सम्यक्त्व १० ११० ठा २३ १.७०,पन्न ५ १ स १७, तत्त्वार्थ अध्या. १३ श्राधेय ४८ १ २८ विशे गा १४०१ माध्यात्मिक विकासक्रम ८४७ ५ ६३ मा वि, तथा दूसरे दर्शन आनन्द श्रावक ६८५ ३ २६५ उपा प्र. १ आनन्द श्रावक की वाईस ६८५ ३ २६७ उपा म १ सू ५ . पोलोंकीमर्यादासातवेंव्रतमें आनन्दश्रावकके अधिकार६८५ ३ ४५७ उपा (म), उपा (हे.) में आये हुए 'चेइय' शब्द पर टिप्पण आनन्दश्रावककेअधिकार४५५ २ ५८ उपा म. १ म ८ में सम्यक्त्व के छ:आगार १ धन की रक्षा के लिए चोर भादि से डरना । Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवाँ भाग बोल भाग पृष्ठ प्रमाणा विषय आनन्द श्रावक के अधिकार६८५ ३ ३०३ उपा अ. १ सू८ में सम्यक्त्व के छ: आगार आनन्द श्रावक के बारह ६८५ ३ २६५ उपा थ १ सू ६-७ an और अतिचार आनुगमिक व्यवसाय श्रानुपूर्वी धानुपूर्वी ८५ १ ६२ ४२७ २ २६ अनु. सू ७० ६ क पूर्वी कंठस्थ गुणने की * ६ ग सरल विधि श्रानुपूर्वी दस आपृच्छना समाचारी आप्त की व्याख्या अभिग्रहिक मिथ्यात्व * ठा ३ उ ३ सू. १८५ ४३ ७१७ ३ ३६० अनु. सू. ७१-११६ ६६४ ३ २५० भ.श. २४३.७सू. ८०१ ठा १०उ ३ सू ७४६, उत्त. घ. २६ गा २, प्रवद्वा १०१ गा. ७६० ३७६ १ ३६६ रत्ना परि. ४ सू ४ २८८ O १२६७ ६ अधि. २श्लो. २२टी पृ.३६, कर्म भा ४ मा ५१ श्राभिनिवोधिक ज्ञान ठा. २३.१ सू ७१ आभिनिवोधिक ज्ञान ३७५ १३६० ठा. ५ उ. ३ सू ४६३, नसू. १, कर्म. भा. १गा. ४ श्रभिनिवोधिक ज्ञान के ६५० ६ २८३ सम. २८, कर्म भा. १ गा.४,५ भेद २६७ पन्न, १.२६ सू ३१२ आभिनिबोधिकसाकारोप ७८६ ४ आभिनिवेशिक मिथ्यात्व २८८ १२६७ कर्म.भा. ४ गा.५१, ध अधि २ श्लो. २२ टी ३६ १५ १ १२ पन्न. प. २६. सू. ३१२, Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ श्री सेठिया जैन ग्रन्यमाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण १ आभियोगिक देव ७२६ ३ ४१६ तत्वार्थ अध्या ४ सू. ४ आभियोगिकी भावना १४१ १ १०४ उत्त अ३६ गा २६२ आभियोगिकी भावना के ४०४१ ४३१ उन अ. ३६ गा २६२, प्रव. पाँच प्रकार द्वा. ७३ गा. ६४४ आभोग निवर्तित क्रोध १६४ १ १२३ ठा ४ उ १ सू २४६ २आभोग वकुश ३६८ १ ३८३ ठा। उ ३ सू ४४५ प्राभ्यन्तर तप के छः भेद ४७८ २ ८४ उत्रम् २०,उत्त । ३० २०, प्रव द्वा. ६ गा.२७१, ठा ६ उ३ सू. ५११ आभ्यन्तरपरिग्रहके १४ भेद ८४. ५ ३३ ६ उ. १ गा.८३१ आमशीपधि लब्धि ४५४६ २६० प्रव द्वा २५० गा. १४९२ ३ आम्नायार्थ वाचकाचार्य ३४१ १ ३५२ ध.अधि ३श्लो ४६टो पृ.१२८ आयविल के पाठ आगार ५८८३ ४१ पात्र. ह. या पृ.८५६, प्रव द्वा ४ गा २०४ आयंबिल पच्चक्रवाण ७०५ ३ ३७६ प्रब द्वा.४ गा २०४, घाव ह म.ह पृ ८४६,पचा५ गा. आयंबिल बर्द्धमान तप ६८६३३४६ प्रत. व ८ य १० ४ आयत संस्थान ४६० २६४ भ श २५ उ ३, ७०४,पर. आयुकर्म और उसके भेद ५६० ३ ६५ कर्म.भा १ गा. २३. पन्न १ २३ सू. २६३तत्यार्थ अध्याय ११ मायुको का४ अनुभाव ५४०३ ६५ पर. १ २३८ २६२ आयुफमक बंध के कारण ५६०३६५ भ.ग. उ. ६. स. ५१ १ दाग के ममान सेवा करने वाले देव । शरीर और उपकरगा की विभया करने वाला माथु । ३ उत्सर्ग और भपवाद रूप धाम्नाय का मयं वदने वाला प्राचार्य । ८ दडे सरीखा लम्बा माकार - - - Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, आठवा भाग ~~~~~~... ~ wriorrm ~~~~~~~~~ ~ ~~~~~~~ ४५ ~~~~~~~~~~ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण आयुकीव्याख्या औरभेद३० १ २१ तत्त्वार्थ अध्या.२ सू. ५२, भ. श २० उ. १० सू. ६८५ श्रायु के दो प्रकार ५६० ३ ६६ तत्त्वार्थ (सु)अध्या २ सू ५२, थायु परिणाम नौ ६३६ ३ २०४ ठा ६ उ ३ सू. ६८६ आयु बन्ध छः प्रकारका ४७३ २ ७६ भ श ६ उ ८ सू. २५०, ठा. ६ उ. ३ सू ५३६ पायुबन्ध नैरयिकों का ५६० २ ३४१ भ श ३० उ. १ सू. ८२५ आयु भेद सात ५३१ २ २६६ ठा. ७ उ ३ सू ५६१ आयुर्वेद आठ ६०० ३ ११३ ठा ८ २ ३ सू. ६११ आरंभ ४६ १२६ ठा-२ उ०१ २०६४ आरंभ ६४ १६७ ठा• ३ उ०१ स० १२४ प्रारंभ परिग्रह को छोड़ने ४६ १२६ ठा.२ उ १ सू. ६५ पर ११ वोलों की प्राप्ति आरंभ परिग्रह छोड़े बिना७७३ ४ १७ ठा २ उ.१ सू ६४ ११वातोंकीप्रासिनहींहोती आरण और अच्युत ८०८ ४ ३२३ पन्न० प० २ सू० ५३ देवलोक का वर्णन आरभटा प्रतिलेखना ४४६ २ ५३ ठा. ६ उ.३ सू. ५०३, उत्त. अ. २६ गा.२६ प्रारम्भिकी क्रिया २६३ १ २७८ ठा.२ उ.१ सू.६०,ठा. ५ उ २ सू ४१६, पनप २२ स २८४ श्राराधना तीन ८६ १ ६२ ठा ३ उ ४ सू. १६५ आरे छः श्रवसर्पिणी ४३० २ २६ जं.बक्ष.२सू १६-३६ठा ६७ ३ काल के सू ४६२, भ. श. ७ उ. ६ सू २८७-२८८ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय वोल भाग पृष्ट प्रमाण भारे छः उत्सर्पिणी ४३१ २ ३५ जवक्ष २ स .२७-४०,ठा (उ. फाल के सू.४६२,विशे गा २७०८-१० आरोग्य सुख ७६६ ३ ४५३ ठा. १० उ.३ सू० ७३७ भारोपणा प्रायश्चित्त ३२५ १३३४ ठा ५ उ २ र ४३३ । आरोपणा के पाँच भेद ३२६ १ ३३४ ठा ५७.२ सृ. ४३३, सम २८ भारोपणाप्रायश्चित्त२४५(ख) १ २२३ ठा ४ उ १ सू. २६३ মালৰ ३५० १ ३६५ ठा 13 सू ३६६,प्रव द्वा६६ गा ५५४,ध.अधि ३ श्लो.४६ टी पृ १२५ आर्जव ६६१ ३ २३३ मव गा २३, मम. १०, शा. भा. १ प्रक. ८ वार्तध्यान २१५ ११६४ ठा ४३.१ स २४७,सम ४,दा म १ नि. गा ४८ टी भार्तध्यान के चार प्रकार२१६ १ १६६ ठा 63 १ सृ २४७,माय ह.भ ४ ध्यानशतक गा ६- ६५८४ आर्तध्यान के चारलिंग २१७ १ १६८ ठा ४ उ.१ १.२४७,ग २५ उ ७ स८०३,भाव. इ. म.४ ध्यानगतक गा. १५ पृ.१८४ आर्य(ऋद्धिमाप्त)केछ भेद ४३८ २ ४२ ठाउ ३१ ४६ १,पन.प.११ ३५ आय(अनृद्धिमाप्त) केहभेद६५३ ३ २१३ पन १ १ २ ३७ आये के बारह भेद ५८५ ४ २६६ वृ उ.१ नि गा ३२६३ थार्य क्षेत्र साढ़े पचीस ६४२ ६ २२३ प्रत्र द्वा २७५ गा.१५८७.१४६ पान ११ सू.:७,. उ १ नि. गा. १२६३ आयेंगग निदव का मत ५६१ २ ३६६ विगे. गा.१४२.४-२४५ • Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह,पाठवा भाग ४७ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण आर्यापाढआचार्यकीकथा-२१ ४ ४६६ नवपद गा १८टी.(सम्यक्त्वद्वार) सम्यक्त्व के स्थिरीकरण नामक प्राचार के लिये आलोचना करने योग्य ६७० ३ २५८ भ श २५ उ ७ सू. ७६६, साधु के दस गुण ठा १० उ ३ सू. ७३३ भालोचना के दस दोष ६७२ ३ २५६ भ. श २५ उ, ७ सू vie, ठा १० उ ३ सू. ७३३ आलोचना देने योग्य ६७१ ३ २५६ म. श. २५ उ.७ सू. ७६६, साधु के दस गुण ठा १० उ.३ सू. ७३३ आलोचना पर ८ गाथाएं ह६४ ७ २४६ आलोयणा करने योग्य ६७० ३ २५८ म श २५ 3 ७ सू ७६६, साधु के दस गुण ठा १० उ ३ सू ७३३ आलोयणा करने वाले के ५७६ ३१६ ठा ८ उ ३ सू ६०४,भ.श २५ माठ गुण उ. ७ सू. ७६६ भालोयणादेने वाले साधु५७५ ३ १५ ठा ८ उ.३ सू ६.४,भ.श. २५ के आठ गुण उ ७ सू ७६E आलोयणामाया की करने ५७७ ३ १६ ठा ८ उ ३ सू ५६७ के भाठ स्थान आलोयणा माया की न ५७८ ३१८ ठा८ उ ३ सू ५६५ करने के आठ स्थान पावलिका ५५१ २ २६२ नं. वक्ष २ सू १८ आवश्यक के छः भेद ४७६ २ ६० भाव. ह. भावश्यक के छः भेदों का ४७६ २ ६३ प्राव ह. पारस्परिक सम्बन्ध Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण आवश्यक के दस नाम ६८७ ३ ३५० विश.गा.८७२.८७६.अनु म आवश्यिकी(आवस्सिया)६६४ ३ २५० भ श २५उ ७८८०१,ठा १०३ समाचारी सू ७४६, उत्त अ २६ गा पत्र द्वा १०१ गा ७६. आविर्भाव ४४ १२७ न्याय को. आवीचि मरण ८७६ ५ ३८२ सम.१७,प्रव.द्वा १५७गा १००६ आशंसा प्रयोग दस ६६७ ३ २५३ ठा १० उ ३ सू ७ve आशातनाएं तेतीस ६७५ ७ ६१ मम ३३,दशा द 2,भाव ह य ४ ७२ आशीविष लब्धिं ६५४ ६ २६३ प्रव द्वा २७० गा १४६३ आश्चर्य (अच्छेरा) दस ६८१ ३ २७६ ठा १० उ. २ ७७७, प्रव द्वा १३८ गा८८५-८८६ आभव और संवर ४६७ २ २.५ आश्रव के वयालीस भेद ६६२ ७ १४६ नत्र गा १६ आश्रय के वीस भेद ६.७ ६ २५ मम ५,प्रश्न. नि गा २३, ठा ५ उ २ सू ४१८,४२५, ठा १० उ ३ स. ७०६ आश्रव, क्रिया, वेदना ८६८ ५ १६८ म श १६ उ.४ मू. ६५८ और निर्जरा के १६ भांगे भाव तत्त्व के वीस पोर६३३ ३ १८३ नव.गा.१६,मम.५,प्रश्न निगा २ बयालीस भेद १३टी.ठा । उ २ मू ४१८,४२७ ठा.१० ३.३ स ७.६ श्राश्रवद्वार प्रतिक्रमण ३२६ १ ३३८ टा.५ उ ३ सृ. ४६५, मात्र ह भगा १२५०.१२५१ पाश्रव पाँच २८४ १ २६८ टा. उ.२ सू ४१८, सम.५ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह,पाठवा भाग विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण आश्रव भावना ८१२ ४ ३६७ शा भा.१प्रक'७,भावना,ज्ञान प्रक.२, प्रव०द्वा.६७ गा. ५७२, तत्त्वार्थ, अध्या. ६ स. ७ आसन और उसके प्रकार६०१ ३ ११५ यो , रा. यो. आसन प्राणायाम के ५५६ २ ३०४ हठ , पी. प., आसुरी भावना १४१ १ १०४ उत्त.प्र. ३६ गा, २६४ आसरी भावना के ५ भेद ४०५ १ ४३१ उत्त. ध ३६ गा २६४, प्रव द्वा, ७३गा ६४५ आस्तिक्य २८३ १ २६४ ध.अधि.२ श्लो.२२टी पृ ४३ आहारक ८ १७ ठा.२ ८.२ सू. ७६ आहारक मनाहारक के ८१७ ४ ३६८ पन्न. प. २८ व. २ तेरह द्वार थाहारक फाययोग ५४७ २ २८७ भश.२५उ, १सू.७१६, द्रव्य. लो. स. ३ पृ ३५८, कर्म. भा.४गा. २४ आहारक मागणा के भेद-४६ ५ ६३ कर्म. भा ४ गा, १४ आहारकमिश्र काययोग ५४७ २ २८७ भ.श २५उ, १सू.७१६,द्रव्य लरे. स.३४ ३५८,कर्म.भा ४ गा.२४ आहारक लब्धि ६५४ ६ २६६ प्रव.द्वा २७० गा. १४६४ भाहारक शरीर ३८६ १४१४ पन्न प. २१ सू. २६७, ठा५ उ.सू ३६५,कर्म,भा.गा.३३ थाहारक शरीर बन्धन ३६. १ ४१६ कर्म.भा.१गा,३५,प्रव द्वा.२१६ नाम कर्म गा. १२७२ आहारक समुद्धात ५४८ २ २८४ पन प ३६ सू० ३३१, ठा. उ३ सू५८६, प्रव. द्वा. २३१ गा.१३११,द्रव्य लो.म.३पृ.१२४ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण आहार की गवेषणाके ८६६ ५ १६४ प्रव द्वा ६७गा.५६७.५६८,ध. सोलह उत्पादना दोष मधि. २ श्लो २२ टी.पृ.४०, पि नि.गा.४०८-४.६,पि. वि. गा.५८-५६,पचा १३गा १८.१६ आहार की गवेषणा के ८६५ ५ १६१ प्रवद्धा.६७गा.५६५-५६६,ध सोलह उद्गम दोप प्रधि ३लो २२टी पृ.३८,पिं नि. गा.९.२.६३, पि वि गा.३-४, पंचा. १३ गा. ५-६ भाहार के छः कारण ३३०१३४० उत प्र.२६गा.३२,ध मधि.? लो.२३टी.पृ.१६,पिं.नि.गा ६६२ आहार करने के(साधुके)४८४ २ ६८ पिं. नि. गा. ६६२, उत्त, छः कारण घ.२६ गा. ३२ पाहार के४७ दोष १००० ७ २६५ पिं. नि. गा. ६६६ श्राहार तिर्यंच का २६१ १ २४५ ठा. ४ उ. ३ सू ३४० आहारत्यागने के (साधु ४८५ २ १६ पि. नि गा ६६६, उत्त. के) छः कारण अ २६ गा ३६ थाहार देवता का २६३ १ २४६ ठा० ४ उ० ३ सू. ३४. आहार नरक का २६० १ २४४ टा ४ उ ३ सू ३४० पाहार नारकी जीवोंका ५६० २ ३४० भ श १४ उ ६सू 18 आहार पर्याप्ति ४७२ २ ७७ पत्र.प १सू १२टी,भाग.३१ सू १३०, प्रव. द्वा. २३२ गा १३१७,कर्म भा. १४६ थाहार मनुष्य का २६२ १ २४५ ठा. ४ उ. ३ म. ३४. भाहार संज्ञा १४२ १ १०५ a. ४ उ. ४ सृ. ३४६, प्रव. द्वा १४५ गा. ६२३ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवाँ भाग विषय थाहार संज्ञा वोल भाग पृष्ठ ७१२ ३ ३८६ आहार संज्ञा चार कारणों से उत्पन्न होती है आहार के ४२ दोष १४३ ११.५ ६६० ७ १४६ इ इंगाल कर्म कर्मादान ८६० ५ १४४ ८७६ ५ ३८४ इंगिनी मरण इकतालीस प्रकृतियाँ ६८६ ७ १४६ उदीरणा विना उदय में आती हैं इकतीस उपमा साधु की ह६२ ७४ इकतीस गाथाएं सूयग- ६६३७८ डांग अ० ४० १ की इकतीस गुण सिद्ध ६६१७२ भगवान् के दो प्रकार से एकावन उद्देशे आचा- १००५ ७ २७१ मम श्रुत स्कन्ध के इक्कीस कारणों से विद्य- ६१४ ६ ७१ मान पदार्थ नहीं जाना जाता प्रमाण ठा १०३ ३ सू. ७५२,भग ७ उ८ सू २६६ ठा ४ उ. ४ सू ३५६, प्रव. द्वा १४५ गा ६२३ टी पिं. निगा. ६६६ ५१ उपा. १ सू७, भश८२५ सू. ३३०, आव. हा ६८२८ सम १७, प्रवद्वा १५७गा १००७ कर्म भा ६ गा ५४-५५ प्रश्न धर्मद्वार सू २६, उव.सू १७ सूय भ ४१ उत्त ३१ गा २०टी, प्रव द्वा २७६मा १४६३-१५६४, सम ३१, आय ह भ ४ पृ ६६२, भाचा श्रु १ ४३ ६ १७० सम ५१ विशे. गा. १६८२ टी. इक्कीस गाथा उत्तराध्ययन६१७६ १३० उत्तम. ३१ के इकतीसवें अध्ययन की Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला बोल भाग पृष्ठ प्रमाण विषय इक्कीस गाथादशवैकालिक १६ ६ १२६ दश म. १० के भिक्खु अध्ययन की इक्कीस गुण श्रावक के ६११ ६ ६१ इक्कीस दृष्टान्त पारिणा - ६१५ ६ ७३ मिकी बुद्धि के इक्कीस प्रकार का धोरण ६१२ ६ ६३ पानी इक्कीस प्रश्नोत्तर १८६१३३ इक्कीस शवल दोप इक्कीस श्रावक के गुण ६१३ ६ ६८ ६११ ६ ६१ इच्छाकार समाचारी ६६४३२४६ इच्छा परिमाण व्रत प्रत्र द्वा २३६गा १३५६-१८, ध अधि १ श्लो. २० १ २८ नं सू. २७गा, ७१-७४टी, भाव हगा ६४५ से ६१ याचा श्रु २ अ १३.७८ सू. ४१,४३,पिं निगा १८-२१, दश थ. ५ उ. १गा. ७५-७६ दशा द २, सम २१ प्रच द्वा. २३६गा १३५६-५८, घ अधि १ श्लो. २० पृ २८ भ श २५३७८०१, ठा १० उ ७४०, उत्त २६गा ३ प्रव. द्वा १०१मा ७६० ३०० १ २६० यावइ म ६१८१५,४३१ सू३८६, उप म. १ सू.६, ध अधि २२६ ६७ इच्छामहं की कथा औत्पत्ति ८४६ ६ २८१ न २७ गाई, डी. की बुद्धि पर १ इच्छालोभिक इत्वरिक अनशन के छः भेद४७७ २८७ ७२६ ३४१५ तार्थ अन्य इन्द्र १ लोभ में उपधि से महगा करने वाला साधु । ४४४ २ ४८ ठा (उ. ३ ५२६, धृ. (जी.)ड उत्त भगा ११ " Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवा भाग ५३ भेद विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण इन्द्रभूति गणधर की जीव ७७५ ४ २४ विशे. गा १५४६ से १६०५ विषयक शंका-समाधान इन्द्रस्थान की पाँच सभाएं ३६७ १ ४२१ ठा ५ उ ३ सू. ४७२ १ इन्द्र स्थावरकाय ४१२ १ ४३८ ठा. ५ उ १ सू. ३६३ इन्द्रिय का स्वरूप और ३९२ १ ४१८ पन्न प १५ सू १६ १, ठा ५ उसके पाँच भेद उ ३ सू ४४३ टी, जे प्र. इन्द्रिय की व्याख्या और २३ १ १७ पनप १५ उ १ सू १६ १ टी , तत्त्वार्थ अध्या २ सू १६ इन्द्रिय परिणाम ७४६ ३ ४२६ ठा सू ७१३,पन प १३सू.१८२ इन्द्रिय पर्याप्ति ४७२ २ ७७ पन प १सू १२टी ,भ श ३उ १ सू १३०,कर्म भा १ गा ४६, प्रव द्वा २३२ गा १३१७ इन्द्रिय मार्गणा और भेद ८४६ ५ ५७ कर्म भा ४ गा १० इन्द्रियां प्राप्यकारी चार २१४ १ १६३ ठा. ४ उ ३२ ३३६, रत्ना परि २ सू ५ टी. इन्द्रियों का विषयपरिमाण३६४ १ ४१६ पन्न प १५ उ १ सू १६५ इन्द्रियों के तेईस विषय ६२६ ६ १७५ ठा सू ४७,३६०,४४३,५६६, और २४० विकार पन प २३उ २सू २६३,प बोल १२, तत्त्वार्थ अध्या.२सू.२१ इन्द्रियों के दो सौचालीस ६२६ ६ १७५ ठा सू ४७,३६०,४४३,५६६, विकार पन्न.प.२३उ २सू २६३,प चोल १२, तत्त्वार्थ अध्या २स २१ इन्द्रियों के संस्थान ३६३ १ ४१६ पन प. १५ उ १ स १६ १, ठा. ५ उ. ३ स ४४३ टी इहलोक भय ५३३ २ २६८ ठा ७ उ ३ सू ५४६, सम.५ १पृथ्वीकाय। Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला LA विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण इपिथिक कर्म ७६० ३ ४४२ प्राचा प्र. २3 १नि गा १८३ ईपर्यापथिकी क्रिया २६६ १ ३-३ ठा २ ३.१सू ६०, ठा.५ उ सू ४१६,भाव.ह अ.४१६१८ ईयोसमिति ३२३ १ ३३१ सम , ,ठा. ५ उ.३ र ४५७, उत्त. घ २४ गा २, ध अधि: ग्लो ४७ टी पृ १३० ईयोसमिति की चार यतना१८१ १ १३६ उत्त. य २४ गा ६-८ ईयोसमिति के चार कारण १८१ १ १३५ उत्त. भ २४ गा.४-८ ईशान देवलोक का वर्णन ८०८ ४ ३२० पन्न. प. २ स.? ईपत्यारभारा(सिद्धि) फा ६०८३ १२६ टा८ उ ३ सू ६४८,एन प २ स्वरूप सृ५४,उत्त.अ.३६गा ४६ १२ ३पत्मारभारा पृथ्वी के ६०४ ३ १२६ पन्न १२ सू४, 21 - पाठ नाम उ ३ सू. ६४८ ईपत्माग्भारा पृथ्वी के ८१० ४ ३५२ सम. ११ वारह नाम इहा (मतिज्ञान का भेद ) २००१ १५८ ठा. ४ ३४ रस . ३६४ उक्वित्तविवगणं-यागारy: ३ ४२ मात्र इ म६१८४६, प्रा. द्वा.४ गा २०४ उच्चार (मलपरीक्षा) की८४६२६५ न. सृ २७ गा. ६३ 21 भायंबिल का कथा पौत्पत्तिकी बुद्धि पर Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री बैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण उच्चारपरिस्रवणखेलसिघाण३२३ १ ३३१ सम ५, उत्त अ २४ गा. २, जल्लपरिस्थापनिकासमिति ठा.५उ ३सू ४५७,ध.अधि ३ श्लो. ४७ टी. पृ १३. उच्छवाससंकेत पञ्चक्खाण ५८४ ३४३ भाच ह म.६ नि गा.१५७८, प्रव. द्वा. ४ गा. २०० उज्झितकुमार की कथा ६१० ६ ३४ वि.स २ उत्कटुका ३५८ १ ३७३ ठा.५उ. १सू.३९६ (टी.),४.. उत्कटुकासनिक ३५७ १ ३७१ य ५ उ. १ स ३६६ उत्करिका भेद ७५० ३ ४३३ ठा १० उ. ३ सू. ७१३ टी., पन्न प १३ सू १८५ उत्कालिक श्रुत ८२२ ५ ११ नं सू. ४४ उत्कीर्तनानुपूर्वी ७१७३ ३६१ भनु. सू ७१ उत्तिप्तचरक ३५२ १ ३६७ ठा. ५ उ.१ सू. ३६६ उत्तम पुरुप चोपन १००६ ७ २७७ सम ५४ उत्तर गुरण ५५ १ ३२ सूय. प्र. १४ नि गा.१२६, पचा, ५ गा २ टी. उत्तर प्राणायाम ५५१ २ ३०३ योग प्रका ५ ग्लो ६ उत्तरमीमांसा दर्शन ४६७ २ १५४ उत्तराध्ययनसूत्रक इक्कीसवै७८१ ४ २५५ उत्त भ. २१ गा. १३-१४ म० की अन्तिम १२ गाथाएं उत्तराध्ययनसुनके ग्यारहवें८६३ ५ १५५ उत्त म ११ गा १५ ३० प्र की सोलह गाथाएं उत्तराध्ययनसूत्र के ग्यार-९७३ ७ ५१ उत्त म ११ हवं अ० की बत्तीस गाथाएं Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विपय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण उत्तराध्ययनसूत्र के चरण-६१७६ १३० उत्त. भ ३१ विहिप की २१ गाथाएं उत्तराध्ययन सूत्र के चोथे ८१६ ४४०६ उत्त अ. ४ अध्ययन की तरह गाथाएं उत्तराध्ययन सूत्र के छठे ८६७ ५ ४१६ उत्त अ. ६ अध्ययन की १८ गाथाएं उत्तराध्ययन सूत्र के छठे ८६७ ५ ४८५ अध्ययनकी१८मूलगायाएं उत्तराध्ययन सूत्र के छत्तीस२०४१ १६३ श्र०का संक्षिप्त विषयवर्णन उत्तराध्ययन सूत्र के तीसरेह०६६ २६ उत्त. भ. ३ अध्ययन की वीस गाथाएं उत्तराध्ययन सूत्र के दसवेंह८४ ७ १३३ उत्त• अ० १. अध्ययन की ३७ गाथाएं पत्तराध्ययनसूत्रकेपचीसह ६ ७ २५४ उत्त० म. २४ था की पैंतालीस गाथाएं उत्तराध्ययनसूत्रके पन्द्रह-८६२ ५ १५२ उत्त• अ० १५ अ. की सोलह गाथाएं उत्तराध्ययनसूत्र के पन्द्रहवें८६२ ५ ४८० अ० की सोलह मूल गाथाएं उत्तराध्ययन सूत्र के पाँच ह७२ ७ ४६ उन० भ०५ अ. की बत्तीस गाथाएं उत्तराध्ययन सूत्र के वीसवें८५४ ५ १३उत्त. म.१० गा :म० की पन्द्रह गाथाएं Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, श्राठवाँ माग विषय चोल भाग पृष्ठ भमाया उत्तराध्ययन सूत्र के बीसवें८५४ ५ ४७७ अ में से पन्द्रह मूल गाथाएं उत्पत्तिया बुद्धि २०१ १ १५६ न.सू.२६,ठा.४३ ४ सू ३६४ उत्पत्तियाबुद्धि की२७कथा६४६ ६ २४२ न. सू २७ गा. ६२-६ ५ टी. उत्पन्न मिश्रिता सत्यामृषा ६९६ ३ ३७० टा.१० उ ३ स. ७४१, पन्न भाषा प.११ सृ. १६५., ध. अधि: श्लो ४१टी पृ. १२२ उपन्न विगत मिश्रिता ६६६ ३ ३७० ठा १० उ ३ सू ७४१, पन्न. सत्यामृषा भापा प. ११ सू.१६५, ध. अधि३ लो.४१ टी पृ १२२ उत्पाद ६४ १४५ तत्त्वार्थ, अध्या. ५ सू २६. उत्पादना दोप सोलह ८६६ ५ १६४ प्रव. द्वा ६७गा ५६७-५६८, आहार के ध. अधि ३ श्लो.२२ टी.पृ ४., पिनि गा.४०८४०६,पचा.११ गा १८-१६,पि.विगा।८-१६ उत्पादनोपघात ६६८ ३ २५४ टा १० ३.३ सृ. ७२८ उत्पाद, व्यय,धोव्य रूप ४२५ २ २२ भागम. सत्त्व छहों द्रव्यों में उत्सर्ग ४० १ २५ गा ३१६,स्या.का ११ टी. उत्सर्ग सूत्र ७७८ ४ २३६ ५ र १ गा १२२१ उन्सर्पिणी काल ३३ १ २२ टा • उ १ सृ ७४ सत्सर्पिणी के छः बारे ४३१ २ ३५ ज. वन २३५-४०, टा ६ उ ३ सू. ४६२, विशे गा. २७०८-२७१. उत्सेधांगल ११८ १ ८३ मनु. स. १३३ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला उदय विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण उदधिकुमाराकेदसअधिपति७३७ ३ ४१६ भ श ३ उ८ स. १६६ २५३ १ २३७ कर्म, भा.२ गा. १ व्याख्या उदयाधिकार कर्मप्रकृतियों८४७ ५ ६४ कर्म. भा २ गा १३ से २२ कागुणस्थानों में उदायी राजा ६२४ ३ १६३ ठा ६ उ. ३ २ ६६१ उदाहरण ३८० १ ३६७ न्याय दी. प्रका ३ उदितोदय राजा की पारि-६१५ ६ ८१ न सृ. २७ गा. ७२, प्राव ह णामिकी बुद्धि की कथा गा ६४६ उदीरणा २५३ १ २३७ कर्म भा.२ गा १ व्यारत्या उदीरणाकरण ५६२ ३ ६५ क्म्म. गा २ उदारणाधिकार कर्म ८४७ ५ १८ कर्म भा २ गा. २३-२४ प्रकृतियों का गुणस्थानों में उदीरणा विना उदय में 848 ७ १४६ कर्म मा ६ गा ५४-१५ आने वाली ४१ प्रकृतियां उद्गम दोप सोलहआहार के २६५ ५ १६१ प्रवद्धा ६७ गा : ६५-७६६, ध अधिगे २२टी पृ३८, पिनि.गा ६२.४२,पि. वि गा.३-४, पचा १३ गा.:उद्योपघात ६६८ ३ २५४ ठा. १० उ ३ र ५३८ ५ उद्देशाचार्य ३४१ १३५२ धमधिशेटी १.८ उद्देशे इकावन आचारांग १००५ ७ २७१ सम ५१ प्रथम श्रुतस्कन्ध के उद्धार पल्यापम (सूक्ष्म, १०८ १ ७५ अनु. २.१२८ लव दा.१४८ व्यावहारिक) गा. ५.१८ १०२ १युत का कथन वरने वाले तथा मृल पाट सित्ताने वाले प्राचार्य Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवा भाग विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण उद्धार सागरोपम १०६ १ ७८ अनु सू १३८,प्रव द्वा १५६ गा १०२७-१०२८ उद्भिन दोष ८६५ ५ १६३ प्रव द्वा ६ ७गा ४६६,ध अधि ३ श्लो.२२टी.पृ ३८,पिं नि गा , पि वि गा ४, पचा १३ गा ६॥ उद्वर्तना करण ५६२३९५ कम्म गा २ उद्वर्तनानारकी जीवों की ५६० २ ३२६ प्रव द्वा १८१गा १०८७.६०, पन० प २० स २६३ उनचालीस कुल पर्वत १८६ ७ १४४ सम ३६ उनतीस गाथाएं महावीर-६५५ ६ २६६ सूय. अ. ६ स्तुति नामक सूयगडांग सूत्र के छठे अध्ययन की उनतीस पापश्रुत ६५६६३०५ सम २६, उत्त. अ ३१गा १६ टी, याव ह भ ४६६. उनपचास भंग श्रावक १००३ ७ २६७ भ श ८ उ ५ सू ३२६ के प्रत्याख्यान के एनपचास भेद ७ स्वरों के ५४० २ २७५ अनु सू.१२७ गा ५६. ठा ७ उ ३ स.13 उन्नीसफथा ज्ञाताधर्मकथाकीह०० ५ ४२७ ज्ञा० उन्नीस दोप कायोत्सर्ग के ८६६ ५ ४२५ भाव ह न ५ गा १४४६-४७, प्रय द्वा ५ गा २४७.२१२, यो प्रा ३ पृ.२५० उन्माद के छः बोल ४५७ २६० ठा ६ ३ ३ स ५०१ उन्मार्ग देशना ४.६१ ४३३ उत्त. प ३६ गा. २६५ टी, प्रव द्वा ७३ गा. ६४६ उपकरण १४ साधुओं के ८३३ ५ २८ पंच,व गा ७७१-७७६ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय उपकरण द्रव्येन्द्रिय उपकरण वकुश साधु बोल भाग पृष्ठ २४ ११७ ३६६ १३८० उपघात दस उपघात निःसृत असत्य ७०० ३ ३७२ उपनय उपनीत दोष उपपात जन्म उपपात सभा १२१६ उपकरणोत्पादनता विनय २३५ उपक्रमकीव्याख्या और भेद४२७ २२५ उपक्रमकीव्याख्या औरभेद२४६ १२३४ वा ४ उ. २ सू २६६ मनु सृ. ७० ६६८ ३ २५४ टा १० उ ३ सृ. ७३८ ठा. १०३ ३७४१, पन्न.प. ११ स. १६५,६ अधि ३ ग्लो ८१ टी. पृ १२२ याचा य. उ. सू. १६४ दग. प्र. २ प्रमाण तत्वार्थ. अभ्या. २ सृ. १७ ठा ५ उ. ३ सू ४४४ टी, भग.२५ उ. ६ सू.७५१ टी. दशा द ४ उपदेश के योग्य पाठ वा ५८५ ३३६ उपदेश राजमती का रहनेमि को ७७१४ १५ उपदेश रुचि ६६३ ३ ३६२ उत्त अ २८ मा १६ उपदेश से सम्यक्त्व प्राप्ति ८२१ ४ ४३४ नवपद गा. १४टी गम्यता (चिलातीपुत्र ) धिकार, ज्ञा १८ १ उपधानाचार २ उपबृंहण दर्शनाचार ५६६३८ ५६८ ३६ ध, अधि १ग्लो, १६.११= ३८०१३६७ रत्ना परि ३४६ ७२३ ३४१२ टा १० उ. ३७४३ ६६ १४७ तत्त्वार्थ श्रव्या २३० ३६७१४२१ टा. ५ उ ३ सु. ४७२ पत्र. प १ सू ३७गा १२८, उत्तम २८ मा ३१ १ जानाचार का एक भेदा गुणी पुत्रों को प्रशसा करना । Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह,श्राठवा भाग विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण उपभोग परिभोग परिमाण:४३ ६ २२५ उपा अ १ सू ६,ध अधि २ व्रत में २६ बोलों की मर्यादा श्लो ३४ टी पृ८०,श्रा प्रति. उपभोगपरिभोगपरिमाण१२८(क)१६१ प्राव ह. अ६ पृ ८२७ उपभोग परिभोग परिमाण ३०७ १ ३०५ उपा अ १ सू.७, प्रव द्वा. ६ व्रत के पाँच अतिचार गा २८१ उपभोग परिभोग परिमाण७६४ ४ २८३ अागम. व्रत निश्चय औरव्यवहार से उपभोगान्सराय ३८८ १ ४११ म भा. १ गा ५२, पन्न प. २३ सू. २६३ उपमा पाठ अहिंसा की ६२२ ३ १५५ प्रश्न सवरद्वार १ सू २२ उपमाएं आठ संघ की ६२३ ३ १५६ न. पीटिका गा. ४- १७ उपमाएं इकतीस साधु की ६६२ ७४ प्रश्न धर्मद्वार ५सू २६,उब स १७ उपमाएं बारह साधु की ८०५ ४ ३०६ अनु. सू १५० गा. १३१ उपमा चार क्रोध की १५६ १ १२० । टा. ४ उ. १ सू. २४६, उपमा चार मान की १६० १ १२१ । ठा ४ उ २ स २६३ टी, पन्न प १४ सू.१८८, कर्म. उपमा चार माया की १६१ १ १२१ , उपमा चार लोभ की १६२ १ १२२ । उपमादस संसारकी लवण६७६ ३ २६६ प्रश्न अधर्मद्वार ३ सू. ११, समुद्र से उव सू २१ उपमान प्रमाण २०२ १ १६१ श्रनु स १४४.भ श ५ उ. ४ स. १६३ उपमान संख्या के ४ प्रकार६१६३ १४२ अनु मू. १४६ उपमा बत्तीस शील की ६६४ ७ १५ प्रश्न. धर्मद्वार ४ सू २७ उपमा संख्या की व्याख्या २०३ १ १६१ अनु सू. १४६ पृ २३ और भेद भा १ गा २ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ៩ ខ वोल भाग पृष्ठ विषय सम्बरदत्त कुमार की कथा ६१० ६ ४५ उम्मीसे दोप ६६३ ३ २४७ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला ऊनोदरी परिसर्प उववाई (भौपपातिक) सूत्र ७७७ ४ २१५ का संक्षिप्त विषय वर्णन उष्ण योनि ६७ १ ४८ ऊर्ध्वता सामान्य ऊर्ध्व लोक प्रत्र. द्वा. ६ ७गा. ४६८११४८, पिं.नि. गा. ५२०,ध, अधि. ३ श्लो. २२टी पृ ४१, पचा १३गा २६ ४०६ १४३६ पन. प १ सू ३५, उत्त ३६ गा १८० ऊ ४७६२ ८६ ५६ ६५ प्रमाण १४१ १४६ १ ४६ वि. अ. ७ २१ १ १६ भ. श २५ उ.७ सृ. ८०२ ऊनोदरी के भेद ऊनोदरी तप के १४ भेद ६३३ ३ १८६ ख सू. १६, भ श . २४ ऋ ऋजुमति मन:पर्ययज्ञान १४ ११२ ६५४ ६ २६१ ऋजुमति लब्धि ऋजुमुत्रनय और उसके ५६२ २४१६ दो भेद तत्त्वार्य अध्या. २ ३३, ठा ३ उ १ सू १४० उत्त ३० मा ८, ठा. ६ उ. ३ सू. ५११, उव. स. १६, मव द्वा ६ गा २७० उ ७ ८०२ रत्ना परिसू ५ लोक. भा. २स. १२,भ.न.११ उ १० सू ४२० टा. २ ३ १ ८ ७१ प्रा. द्वा २७० मा १४६२ रत्ना परि.७ २८, भनु . १५२ गा. १३८. त अभ्या. ६ रलो. १४ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, अाठवा भाग १५ विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण ऋज्वायता श्रेणी ५४४ २ २८३ ठा. ७ उ. ३ सू ५८१, भ. श. २५ उ ३ सू ७३० ऋतुएं छः ४३२ २ ४० ठा.६उ ३सू ५२३टी, हो. ऋतुप्रमाण संवत्सर ४०० १ ४२६ / ठा ५ उ ३ र ४६०, प्रव. ऋतु संवत्सर ४०० १ ४२७ । द्वा.१४२ गा. ६०१ ऋद्धि के तीन भेद ६६ १ ७० ठा ३ उ ४ स २१४ ऋद्धि गौरव (गारव) ८ १ ७० ठा.३ उ ४ सू. २१५ ऋद्धि प्राप्त याय के छः भेद ४३८ २ ४२ ठा ६ उ १ सृ ४६१, पन्न प१ सू ३७ ऋपभदेवकासंक्षिप्त जीवन८२० ४ ४१६ वि ष पर्व १ ऋपभदेव के अहाणवे पुत्र ८१२ ४ ३८८ सूय थ १ अ.२७ १,विप पर्व १ ( बोधिदुर्लभ भावना) ऋपभदेवभगवान् के १३भव८२० ४ ४०६ त्रि प पर्व १ ऋषभनाराच संहनन ४७० २ ७० पन• १२३ सू २६३, ठा.६ उ ३स.४६४,कर्म,मा.१गा ३८ एक आत्मा १ १२ ठा• १ सू० २ एक गण से दसरे गण में ५१५ २ २४४ ठा ७ उ ३ स १४१ जाने के सात कारण एक जम्बूद्वीप ४ १२ ठासू ५२, तत्त्वार्थ अध्या ३ एकतः अनन्तक ४१८ १ ४४२ टा ५ उ ३ सृ. ४६२ एकतारखा श्रेणी ५४४ २ २८३ ठा ७ .३सू ५८१,म २.२५ उ ३ स ७३० एकता और अनेकता का ४२४ २७ प्रागम विचार छः द्रव्यों में पागम Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्यमाला विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण एकतो वका श्रेणी ५४४.२ २८३ ठा ७ उ ६ मू.५८१,भग २५ उ ३ सू ७३० एकत्व भावना ८१२ ४ ३६२, शा भा.१प्रक ४,भावना ,ज्ञान ३८१ प्रक.२,प्रब टा.६७गा ५७२, तत्त्वार्थ अध्या. ६ सू . एकत्व वितर्क अविचारी २२५ १ २१. भाव ह प्र४ ध्यानणतकगा शुक्लध्यान ७६.८०,ठा ४२ १स २४५, ज्ञान प्रक ४२,कभा २श्लो.२१५ एक दण्ड ठा. १ सू ३ एक परमाणु ६ १३ सा. १ सू ४५ एक प्रदेश ५ १३ ठा. १ स. ४५ एकमासिकी भिक्खुपडिमा७६५ ४ २८५ सम.१२,भ.श २ ३.१ सू ६३ टी, दशा द ७ एकगत्रिकी वारहवीं ७६५ ४ २६१ सम.१२,भ.श.२३.१ सू.६३ भिक्खु पडिमा टी,दशा ६७ एकल विहार प्रतिमा के ५८६ ३ ३६ ठा ८ उ 3 सू. ५६४ पाठ स्थान (गुण) एकवादी ५६१ ३१० ठा ८ उ. ३ मृ ६०७ एक समफित २ १२ प्रव. द्वा १४६गा ६४२,पंचा. गा ३, तत्त्वार्थ, मध्या १ एक समय में कितने सिद्ध ८४६ ५ १२. पन्न प १ स . टी. हो सकते हैं ? एक सिद्ध ८४६ ५ १२० पन, प. १ स.. एकामपो प्रमादप्रतिलेखना५२१ २ २५१ उत्त भ २६ गा २५ एकार्थिक दोप ७२३ ३ ४११ ठा १० उ ३ सू ५४३ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठयॉ भाग १७ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण एफार्थिकानुयोग ७१८ ३ ३६३ ठा १० उ. ३ सू ७२७ एकासन के पाठ आगार ५८७ ३ ४० प्राव ह य पृ८५२,प्रव द्वा. ४ गा २०३ एकासन वियासण का ७०५ ३ ३७८ प्रव द्वा ४ गा २०२-२०३ पञ्चक्रवाण टी, पचा ५ गा८, पाव.ह. अ६ पृ८५० एकेन्द्रियजीवों का समारंभ२६८ १ २८५ ठा । उ २ सू ४२६,४३० न करने से होने वाला पाँच प्रकार का संयम एकेन्द्रिय जीवोंके समारंभ२६७ १ २८४ ठा ५ उ २ स ४२६ ४३० से होने वाला पाँच असंयम एगहाण का पञ्चक्खाण ७०५ ३ ३७८ प्रव द्वा ४ गा २०२,२०४टी, आव ह.अ६पृ८५३,पचा.गा। एगहाण के सात प्रागार ५१७ २ २४७ भाव अपृ८५३, प्रव द्वा ४ गा २०४ एवंभूत नय ५६२ २ ४१८ अनु सू. १५२ गा १३६, रत्ना. परि. ७ सू ४० एपणा समिति ३२३ १ ३३१ सम. ५,ठा ५ उ.३ सू ४५७, उत्तम.२४ गा.२,ध.अधि.३ श्लो. ४७ टी पृ. १३० एपणा समिति के भेद ६३ १६६ उत्त. भ २४ गा.११-१२ एपणोपघात ६६८ ३ २५४ ठा १• उ ३ सू. ५३८ ऐश्वत क्षेत्र के आगामी १३१ ६ ११७ सम १५८, प्रव द्वा. चौवीस तीर्थकर गा. ३००-३०३ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० ' थ्री गठिया जैन ग्रन्थमाला ~~~~~~ ~ ~~~~ ~ विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण कथा अंजकुमारी की ६१० ६ ५० वि०म० .. कथा अतिमुक्त कुमार की ७७६ ४ १६८ मत० ३० ६ अ० १५ कथा अनाथी मुनि की ८५४ ५ १३० उत्त० अ० २० कथा अभगगसेन चोर की ४१०६ ३७ वि० प्र० ३ फथा अभयकुमार की ६१५ ६ ७४ न० सू• २७ गा० ७२, प्राव. पारिणामिकी बुद्धि पर ह. नि. गा० ६४६ कथा अमात्य (मंत्रा) की ६१५६ ८५ त्रि०प०५६०६,न० स० २५ पारिणामिकी बुद्धि पर गा ७२,याव ह नि.गा०६४६ कथा अमात्य पुत्र की ६१५ ६ ६० उत्त.य,१३टी.,याव६०नि० पारिणामिकी बुद्धि पर गा०६५०,न० सू० २७ गा०५३ कथा अजेनमाला की ७७६ ४ १६६ अत० व० ६ ० ३ । कथा अर्थशास्त्र की १४६ ६ २८० न० सू० २७ गा० ६५ टी० औत्पत्तिकी बुद्धि पर कथा अश्वों की १.०५ ४६६ झा• अ० १७ कथा आँवले की पारिणा-११५६ ११३ न० स० २७ गा० ७ 6, भाव मिकी बुद्धि विषयक ह. नि० गा• ६१ कथा आर्यापाढ़ आचार्य ८२१ ४ ४६६ नवपद० सम्यक्त्वाधिकार की स्थिरीकरण पर गा० १८ टी. कथा इक्कीस पारिणामिकी ११५ ६ ७३ न० सू. २७ गा०७१-७१. बुद्धि की श्राव ह.नि.गा०६४८-1 कथा इच्छामहं की औत्प- १४४६२८१ न० सू० २७ गा० ६१ 21 त्तिकी बुद्धि पर कथा उच्चार (मल परीक्षा)४६६२६४ न० पृ० २५ गा० ६. 2. की औत्पत्तिकी बुद्धि पर Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जन सिद्राचा सग्रह.या भाग विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण कथा उज्झित कुमार की ६१० ६ ३४ वि० ० २ कथा उदितोदय राजा की ११५ ६ ८१ न. सू०२७ गा०७२, पाव. पारिवामिकी बुद्धि पर १० नि० गा० ६४६ कथा उन्नीस ज्ञाताधर्म- ६०० ५ ४२७ कथांग सूत्र की . कथा उम्बरदत्त कुमारकी ६१० ६ ४५ वि० प्र०७ कथा एवंता कुमार की ७७६ ४ १९८ प्रत व ६ ॥ कथा कछुए और शृगालकीह०० ५ ४३७ ज्ञा० ० ४ कथा कमलाला की भाव७८० ४ २५० श्राव००नि० गा० १३४.३० अननुयोग पर नि० गा० १७२ पीटिका कथा काक की ओत्पत्ति- ६४६ ६ २६३ नसू० २७ गा० ६३ टी. की बुद्धि पर कथाकाल सेठ की पारि- ६१५ ६ ७८ न० सू० २७ गा०७२,श्राव. णामिकी बुद्धि पर ह• नि० गा०६४६ कथा कुब्जा की क्षेत्र अन- ७८० ४ २३६ प्राव० ह०नि० गा० १३३, नुयोग पर वृ० नि० गा• १७१ पीटिका कथा कुमार सेठ की पारि-६१५ ६ ७६ न० सू०२७ गा०७०, श्राव० णामिकी बुद्धि पर ह० नि० गा० ६४४ कथा कुशध्वज राजा की ४२१ ४ ४५५ नवपद गा० ५८ टी. सम्यकांक्षा दोपपर त्याविकार कथा कृष्ण की अपरकङ्काह०० ५ ४६६ शा० अ० १६ गमन सम्बन्धी कथा कोंकणदारक की ७८० ४ २४८ पात्र ६०नि०गा० १३४,पृ. भाव अननुयोग पर नि० गा० १५२ पीठिका Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय चोल भाग पृष्ठ प्रमाण कथा क्षपक की पारिणा- ६१५ ६ ८८ न० सू० २७ गा०७३, मावा मिकी बुद्धि पर ह. नि. गा०६५० कथा नुल्लक की औत्पत्ति-१४६ ६ २६७ न० सू० २७ गा० ६३ टी० की बुद्धि पर कथा खग(गेंदा)कीपारि-६१५ ६ ११६ न०सू० २७ गा०७४, माव० णामिकी बुद्धि पर ह. नि. गा० ६५१ कथा खुड्डग (अंगूठी) की ६४६ ६ २५८ न० सू० २७ गा० ६३ टी० ओत्पत्तिकी बुद्धि पर कथा गजमुकुमार की ७७६ ४ १६३ यत० ३० ३ ० ८ कथा गहों पर ५७६ ३ ३४ प्राव ह अ.४ नि गा.१२४२ कथा गाय और बछड़े की ७८० ४ २३९ श्राव.ह नि.गा १३३.यू. गा. द्रव्य अननुयोग पर १७१ पीठिका० कथा गंडे की पारिवामि-११५ ६ ११६ न सू. २७ गा.७४, पाव है. की बुद्धि पर नि० गा०६५१ कथागोलक-लाख कीगोली:४६ ६ २६६ न० मू० २७ गा० ६३ टी. की औत्पत्तिकी बुद्धि पर कथा ग्रामीण की वचन ७८० ४ २४२ प्राव. ६ नि. गा. १३३,य. अननुयोग पर नि० गा० १७१ पीटिका कथाघयण (भांड) की १४६ ६ २६५ न सृ. २७ गा. ६३ टी. मोत्पत्तिकी बुद्धि पर कथा चण्डकोशिक सर्प की०१५ ६ ११४ त्रि. प. प १०, न. २२ पारिणामिकी बुद्धि पर गा.७४,माव.ह.नि.गा . कथा चन्द्रमा की ... ५ ४५६ मा. म १० Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण कथा चरणाहत की पारि-६१५६ ११२ नं सू.२७गा.७४,यात्र.ह नि. गामिकी बुद्धि पर गा ६५१ कथा चाणक्य की पारि- ६१५ ६ ६४ न सू.२७ गा ७३,प्राव ह नि. णामिकी बुद्धि पर गा... कथा चार पुत्रवधुओं की ६०० ५ ४४२ ज्ञा श्र ७ कथाचिलातीपुत्र की उप-८२१ ४ ४३४ नवपद गा १४ टी सम्यक्त्वादेश से सम्यक्त्व प्राप्ति पर विकार, ना अ.८ कथाचेटक निधान की ६४६६ २७६ न सू. २७ गा. ६५ टी. औत्पत्तिकी बुद्धि पर फथा चौदह रोहक की ६४६ ६ २४३ न सू २७ गा ६४ टी. औत्पत्तिकी बुद्धि पर कथा जिनदत्त ओर ६०० ५ ४३६ ज्ञा अ. ३ सागरदत्त की कथा जिनदास कुमार की 8१० ६ ५४ विप्र १५ कथा जिनपाल जिनरक्षकी १०० ५ ४५३ ज्ञा. म कथा तीन ६७ १६६ ठाउ ३ सृ. काथा तुम्बे की ६०० ५ ४४१ ज्ञा म ६ कथा तेतलीपुत्र की १०० ५ ४६२ ज्ञा अ. १४ कथा तेरह सम्यक्त्व की ८२१ ४ ४२२ नवपट गा १४-१८ कथा दस दुःख विपाक की:१० ६२६सं५३ विय १ मे १० फथा दस सुख विपाक कीह१० ६ ५३से६० वि. म ११ से २० कथा दाबद्रव वृक्ष की ६०० ५ ४५६ ज्ञा. अ. १] कथा दुर्गन्धा की जुगुप्सा ८२१ ४ ४५८ नवपद. गा. टी.सम्यालादोप पर धिकार Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय वोल भाग पृष्ठ कथा देवदत्ता रानी की ६१० ६ ४७ कथा देवी पुष्पवती की ६१५६८० पारिणामिकी बुद्धि पर प्रमाण वि. अ. न. सू. २७ गा ७२, आवड नि गा. ६४६ कथा धनदत्त की पारि - ६१५ ६ ८३ ने सु.२७गा.७२, शा.अ.१८, रामिकी बुद्धि पर भाव ह. नि.गा ६४६ कथा धनपति कुमार की ६१० ६ ५६ कथा धन सार्थवाह की ८२१४४४६ सम्यक्त्व प्राप्ति के लिये ५७६ ३ २८ ५७६ ३ २६ नि. १६ अ नवपद. गा, १६टी सम्ययत्वा धिकार कथा धन्नाकुमार की ७७६४२०४ अणु व. ३ १ कथा धन्ना सार्थवाद और ६०० ५ ४३४ ज्ञा० अ० २ विजय चोर की कथा नक्कुल की भाव ७८०४२४६ श्राव०ह० नि०गा० १३४,० अननुयोग पर ज्ञा. भ. १३ ज्ञा. अ १५ नि० गा० १७२ पीटिका कथा नन्द मणियार की ८२१४४४४ नवपद.गा. १५, ज्ञाम १३ कथा नन्द मणियार की ६०० ५४६० कथा नन्दी फल की ६०० ५४६४ कथा नन्दीवर्धन कुमार की १० ६ ४३ कथा नन्दीपे साधु की ६१५६ ८२ पारिणामिकी बुद्धि पर कथा नाक की प्रौत्प- ६४६६२७५ न. सू. २७ गा. ६४ टी. वि. अ. ६ न सू २७गा. ७२, भाव नि. गा. ६.४६ त्तिकी बुद्धि पर कथा निन्दा पर कथा निवृत्ति पर भाव. ह. ४नि. गा. १२४२ मान. इ. प्र. ४ नि.गा १२८० Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, श्राठवा भाग ७५ विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण कथा पट की औत्पत्तिकी ६४६ ६ २६२ न सू २७ गा ६३ टी बुद्धि पर कथा पणित की औत्प- १४६६ २५६ न सू २७ गा ६३ टी त्तिकी बुद्धि पर कथा पति की औत्पत्तिकी९४६ ६ २६६ न सू २७ गा ६३ टी बुद्धि पर फथा परदेशी राजा की ७७७ ४ २१७ रा कथा परिहरणा पर ५७६ ३ २४ श्राव.ह प्र ४ नि गा.१२४२ कथा पुंडरीक और कंड-१०० ५ ४७२ ज्ञा अ १६ रीफ की फया पुत्र की प्रोत्पत्तिकी ६४६ ६ २७१ न सू. २७ गा. ६३ टी. बुद्धि पर फथा प्रतिक्रमण पर ५७६ ३ २२ यात्र.ह.अ.४ नि. गा.१२४२ कथा प्रतिचरणा पर ५७६ ३ २३ थाव ह भ.४नि. गा. १२८२ कथावधिरोल्लापको वचन७८० ४ २४१ भाव ह. नि गा. १३३,बृ नि. अननुयोग पर गा १७१ पीठिका कथा वारद अननुयोग की७८० ४ २३८ श्राव.ह नि. गा १३३,१३८, वृ नि गा १७५-१७२पीटिका कथा वीस विपाक सूत्र की११० ६ २६ वि कथाबृहस्पतिदत्तकुमारफी:१० ६ ४१ विम ५ कथा भद्रनन्दीकुमार की ११० ६ ५८ वि.स १२ कथा भद्रनन्दीकुमार की ६१० ६ ६. वि. अ. 15 - कथा भरतशिला की १४६ ६ २४३ न रसृ. २७ गा. ६४ टी. औत्पत्तिकी बुद्धि पर Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ श्री सेठिया जैन ग्रन्यमाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण कथा भिक्षुक की औत्प-६४६ ६ २७६ न. सृ २७ गाटी त्तिकी बुद्धि पर कथा मणि की पारि- ११५६ ११३ न स २७ गा ७४, यावद णामिकी बुद्धि पर ___नि गा. ६५१ कथा मधसिक्थ की औत्प-१४६ ६ २७२ नसू २७ गा. ६५ टी त्तिकी बुद्धि पर कथा मयूराण्ड और सार्थ ८२१ ४ ४५३ नवपद गा १८टी.सम्यक्त्याधिबाह की शंकादोप के लिये कार, ज्ञा , ३ कथामल्लिनाथभगवान् की:०० ५४४४ मा ७ ८ फथा महाचन्द्रकुमार की १० ६६० वि अ १६ कथा महावलकुमार की ११० ६ ५६ वि. म १७ कथा महेश्वरदत्त वणिक ४२१ ४ ४५६ नवपद गा १८टी गम्यक्त्वाकी विचिकित्सादोप केलिये विकार कथामार्गकी औत्पत्तिकी १४६६२६७ न सू २७ ना ६२ टी. बुद्धि पर कथा मुद्रिका की प्रोत्प- १४६६ २७२ न स २७ गा ६५ टी त्तिकी बुद्धि पर कथा मुनि की स्वाध्याय ७८० ४ २४० श्रार. ,गा १३३, नि गा विषयक काल अननयोग पर १८१ पीठिका कथा मृगापुत्र की ११०६ २६ विय ५ फया संघकुमार की १०० ५ ४२६ मा म १ कथा राजमती रहनेमि की ७७१ ४ १३ दश २ २ टी कथा रोहस की मौत्प. १४४६२४३ में स २७ गा : ४.टी तिकी शुद्धि पर Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग ७७ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण कथा वज्रस्वामी की पारि-६१५ ६१०६ श्राव ह गा ६५०, न सू २७ णामिकी बुद्धि पर गा ७३ कथा वज्रस्वामी की ८२१ ४ ४८१ नवपद गा 1८ टी सम्यक्त्वावात्सल्य पर धिकार कथा वरदत्तकुमार की ६१० ६ ६० वि अ २० कथा वारणा पर ५७६ ३ २५ श्रावद थ ४ नि गा १२४२ कथा विष्णुकुमार की ८२१ ४ ४८५ नवपद गा १८ टी प्रभावनापर सम्यक्त्वाधिकार कथा वृक्ष की औत्पत्तिकी १४३ ६ २५७ न स २७ गा ६३ टी बुद्धि पर कथा शकटकुमार की ६१० ६३६ वि ध्र ४ कथा शतसहस्त्र की ६४६ ६ २८२ न सू. २७ गा ६५ टी, औत्पत्तिकी बुद्धि पर कथा शम्ब के साहस की ७८० ४ २५२ श्राव ह. गा १३४, ३ नि भाव अननुयोग पर गा १७२ पीठिका कथा शरट (गिरगिट)की ६४६ ६ २६२ न सू २७ गा ६३ टी औत्पत्तिकी बुद्धि पर कथा शिक्षाकी औत्पत्तिकी ४६ ६ २७६ न स २७ गा ६५ टी बुद्धि पर फया शुद्धि पर ५७६ ३ ३६ याब ह य ४ नि गा १२२ कथा शैलक राजर्षि की ६०० ५ ४३८ शा. म । कथा श्रावक भार्या की ११५ ६ ८४ नं मू. 5 गा ७२, मापद पारिणामिकी बुद्धि पर . निगा.९४६ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विपय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण . कथा श्रावक भार्या की ७८० ४ २४५ भाव. ह नि गा. १३४, पृ. भाव अननयोग पर निगा १७२ पीठिका कथा श्रेणिक की ८२१ ४ ४६५ नवपद गा. १८ टी उपवृहणापर सम्यस्त्वाधिकार कथाश्रेणिक के कोपकी ७८० ४ २५३ श्राव ह. नि. गा १३४, वृ भाव अननुयोग पर नि. गा. १७२ पीठिका कथा श्रेयांस कुमार की ८२१ ४ ४२३ नवपद, गा १२८ सम्यक्त्व प्राप्ति के लिये कथा सती कुन्ती की ८७५ ५ ३४६ ज्ञा अ. १६ कथा सती कौशल्याकी ८७५ ५ २६८ त्रि प. पर्व ७ कथा सती चन्दनवाला ८७५ ५ ११७ श्राव ह नि गा ५२०.५२१ (वसुमती) की त्रि प. पर्व १०, चन्दन कथा सती दमयन्ती की८७५ ५ ३५२ पच प्र, भरत. गा ८, वि ५. पर्व ८ सृ. ३ कथा सती द्रौपदी की ८७५ ५ २७५ ज्ञा. ध १६, त्रि. प पत्र ८ कथा सती पद्मावती की ८७५ ५ ३६६ प्राव इ. नि. गा १३११ भाध्य गा. २०४.२०१६ कथा सती पुष्पचूला की ८७५ ५ ३६४ भाव.इ.नि.गा.१२८८ फथा सती प्रभावती की ८७५ ५ ३६५ श्राव ह नि गा.१२८४ फया सती ब्राह्मी की ८७५ ५ १८५ प्राव ह नि.गा. १६६,वि पप १,२ कथा सती मगावती की ८७५ ५ ३०३ भाव.इ नि गा.१०४८,दा. य.१नि गा७६ कया सती राजमती की ८७५ ५ २४६ दरा.म.२,नि पपर्व,उन, भ.२२, राज Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह,पाठवा भाग ७९ विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण कथा सती शिवा की ८७५ ५ ३४६ प्राव ह नि गा १२८४,भरत. पा.१० कथा सती सीता की ८७५ ५ ३२१ त्रि ष पर्व ७ कथा सती सुन्दरी की ८७५ ५ १६० श्राव ह नि गा १६६,३४८, विष पर्व १,२ कथा सती सुभद्रा की ८७५ ५ ३४० दश श्र १ नि गा७३-७४, भरत गा.८ कथा सती सुलसा की ८७५ ५ ३१३ श्राव ह नि गा. १२८४, भरत गाठा सू.६६ टी कथा२७औत्पत्तिकीवुद्धिकी६४६ ६ २४२ न सू. २७ गा ६२-६४ टी. कथा सयडाल की पर- ८२१ ४ ४६१ नवपद. गा १८ टी. पापड दोप पर सम्यक्त्वाधिकार कथा साप्तपदिक व्रत की ७८० ४ २४६ भाव ह नि गा १३४, भाव अननुयोग पर वृनि गा. १७२ पीठिका फथा सुसुमा,चिलातीपुत्रकीह००५ ४७० मा अ. १८ कथा सजातकुमार की ६१० ६ ५८ वि य १३ कथा सुन्दरीनन्द की ६१५ ६ १०५ भाव ह. नि गा ६.५०,न. पारिणामिकी बुद्धि पर सू. २७ गा ७३ कथा सुबाहुकुमार की १० ६ ५३ वि. ध ११ कथा सुबुद्धि मंत्री और १०० ५ ४५८ ज्ञा. ग्र १२ जितशत्र राजा की कथा सुवासव कुमार की ६१० ६ ५० विम १४ कथाठ संठ(काल) की ६१५ ६ ७८ । न सू. २७ गा ७२, पारिणामिकी बुद्धि पर भाव ह नि गा ४६ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विपय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण . कथा श्रावक भार्या की ७८० ४ २४५ भाव. ह नि गा १३४, पृ भाव अननुयोग पर निगा. १७२ पीटिका कथा श्राणक की ८२१ ४ ४६५ नवपद गा १८ टी उपबृहणा पर सम्यक्त्वाधिकार कथाश्रेणिक के कोपकी ७८० ४ २५३ पाव. ह. नि. गा.१३४, घृ भाव अननुयोग पर नि गा. १७२ पीठिका कथा श्रेयांस कुमार की ८२१ ४ ४२३ नवपद गा १२८ सम्यक्त्व प्राप्ति के लिये कथा सती कुन्ती की ८७५ ५ ३४६ ज्ञा अ. १६ कथा सती कौशल्याकी ८७५ ५ २६८ त्रि. प. पत्रे ७ कथा सती चन्दनवाला ८७५ ५ १६७ श्राव ह नि गा ५२०..." (वसुमती) की त्रि प. पर्व १०, चन्दन कथा सती दमयन्ती की८७५ ५ ३५२ पच प्र, भरत गा. ८, विप पर्व ८ सू. ३ कथा सती द्रौपदी की ८७५ ५ २७५ शा भ. १६, त्रि प ५३८ कथा सती पद्मावती की ८७५ ५ ३६६ याच ह नि गा १३११ भाष्य गा २०.००१ कथा सती पुष्पचूला की ८७५ ५ ३६४ भाव.ह.नि गा.१२८४ फथा सती प्रभावती की ८७५ ५ ३६५ श्राव ह निगा १२८४ कथा सती ब्राह्मी की ८७५ ५ १८५ भाव ह नि.गा, १६६,त्रि पपर्व १,२ फया सती मृगावती की ८७५ ५ ३०३ भान.ह निगा १०४८,दर भ.१नि गा.७६ कथा सती राजपती की ८७५ ५ २४६ दरा.प्र.२,विप पर्प ८,उत्त म २२,राज Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्वान्त वोल संग्रह, आठवाँ भाग बोल भाग पृष्ठ प्रमाण ८७५५ ३४६ यावह निगा १२८४, भरत. ना. १० त्रिप पर्व ७ श्रवह निगा १६६,३४८, त्रि पर्व १,२ ८७५ ५ ३४० दश अ १ नि गा ७३-७४, विपय कथा सती शिवा की कथा सती सीता की कथा सती सुन्दरी की कथा सती सुभद्रा की ८७५ ५ ३२१ ८७५ ५ १६० भरत गा८ कथा सती सुलसा की ८७५ ५ ३१३ वह निगा १२८४, भरत गाला सू६६१ टी. कथा२७ औत्पत्तिकी बुद्धिकी६४६ ६ २४२ न सू २७ गा ६२ ६५ टी. कथा सयडाल की पर- ८२१४४६१ नवपद गा १८ टी पापड दोप पर सम्यक्त्वाधिकार कथा साप्तपदिक व्रत की ७८०४२४६ भाव इ निगा १३४, भाव अननुयोग पर वृनि गा. १७२ पीठिका कथा संमा, चिलाती पुत्रकी६००५ ४७० ज्ञा १८ वि अ. १३ थावह निगा ६५०, नं. सृ. २७ गा. ७३ विघ ११ ६१० ६ ५३ ६००५ ४५८ मा स. १२ कथा सृजातकुमार की कथा सुन्दरानन्द की पारिणामिकी बुद्धि पर कथा सुवाहुकुमार की कथा सृबुद्धि मंत्री और जितशत्रु राजा की कथा सुवासव कुमार की ६१० ६५० ६१५६७८ कथाठ सेठ (काल) की पारिणामिकी बुद्धि पर ६१० ६ ६१५ ६ ७६ ५८ १०५ विद्य १४ न सृ. २७ मा ७२, भाव है निगा ६४ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण कथा सौर्यदत्त की १० ६ ४६ वि श्र. कथा स्तम्भ की ओत्पत्तिसी:४६६२६६ न. स २७ गा ६३ टी बुद्धि पर कथा स्तूप की पारिणामिकी६१५ ६ ११७ उत्त (क)प्र १ टी , निर , बुद्धि पर न सू २७ गा ७४, पार ह नि. गा. ६५१ कथा स्त्री की औत्पत्तिकी १४६ ६२६८ न. सृ २७ गा ६३ टी बुद्धि पर कथा स्थूलभद्र की ६१५ ६ ६५ पाव दगा ६५०, न स्मृ २३ पारिणामिकी बुद्धि पर गा. ७३ कथा हाथी की औत्पत्तिकी६४६ ६ २६४ नसू २७ गा : टी. बुद्धि पर कनकावलीतपयंत्रसहित ६८६ ३ ३३८ प्रत व. ८ म. २ ४०२ १ ४२६ उत्त. य ३६ गा २६१, प्रव द्वा. ७३ गा ६४२ कन्दर्प भावना १४१ १ १०४ उत्त. अ ३६ गा. २६ । कन्दर्प भावना के पाँच ४०२ १ ४२८ उत्त श्र. ३६ गा. २६ १, प्रकार प्रब द्वा. ७३ गा ६४२ कप्पवडंसिगा मूत्र का ३८४ १४.१ निर. संक्षिप्त विषय-वर्णन कप्पचडसिया मूत्र के दस ७७७ ४ २३३ अध्ययनों का वर्णन कमलामेला का दृष्टान्त ७८०४ २५० ग्राय ६ मि. गा १३४, धू भाव अननुयोग पर नि. गा १७२ टिका कन्दर्प Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह,पाठवा भाग विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण फम्मिया (अभ्यास से २०१ १ १५६ नमू. २६,१.४८.४ सू ३६४ उत्पन्न) बुद्धि कम्मिया बुद्धि के बारह ७६२ ४ २७६ नसू २७ गा.६७.६८,प्राव ह दृष्टान्त नि गा. ६४७ करण आठ ५६२३६४ कम्म गा २ करण की व्याख्या और ७८ १ ५५ भाव म.गा १०६-१०७ टी उसके भेद विशेगा.१२०२ से १२१८, प्रवद्वा. २२४ गा १३.२टी, कर्म भा २ गा. २, यागम. करण के तीन भेद १४ १६७ ठा ३ उ । सू १२४ करणसप्तति के ६३७ ६ २१६ प्रब द्वा ६६-६७ना.५५२-५६६, सत्तर बोल ध अधि, लो. ४७पृ.१३० करणानुयोग ७१८ ३ ३६३ टा. १० उ ३ सू ७२५ करिष्यति दान ७६८ ३४५२ टा १० उ ३ मृ ५४५ करुण रस ६३६ ३ २१० अनु सू १२६ गा ७८-७६ करुणा भावना २४६ १ २२७ भावना. (परिशिष्ट), क भा.२ लो ८६.४०, च, कर्म अन्तराय के भेद, ५६० ३ ८१ अनुभाव और वन्ध तत्वार्थ अध्या ८, कर्म भा के कारण गा ५२, भश ८ उसू.३५ कर्म आठ ५६० ३ ४३ शिं.गा १६०६.१६४४ नत्वा अध्या,कर्म भा १, ETE सृ.३५१,मग 13 ८,उत्त प्र.३: प०१२३, दश्य लोन 10 पाप २.२६४, Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण कर्म आठ के क्षय से प्रकट ५६७ ३ ४ अनु. स. १२६,प्रव द्वा २७६ होने वाले पाठ गुण गा १५६३-१५६४,सम ३१ कर्म आयु के भेद,अनुभाव ५६० ३६५ भश ८ ८३५१,पन्न प २३ और बन्ध के कारण सू २६२-२६४, पर्म भा १ गा.२३,तत्वार्थ अध्या ८ कर्म और जीव का अनादि५९० ३ ५१ विशे. गा. १८१३-१८१४, सम्बन्ध कर्म भा १ प्रस्तावना कर्म औरजीव का सम्बन्ध५६० ३ ४७ विशे. गा. १६३५- १६३६ कर्मकाठिया तेरह १८३७ १२७ श्राव ह गा८४१.८४२१३४६ कर्म का लक्षण ५६० ३४४ कर्म भा १ गा.१ तथा भूमिका फर्म की चार अवस्थाएं २५३ १ २३७ कर्म भा. २ गा. १व्याख्या कर्म की मृतता ५९० ३ ४६ विशे. गा १६२४-१६२८ फर्य की व्याख्या और भेद २७ १ १८ कर्म भा. १ गा १व्याख्या कर्म की शुभाशुभता ५६० ३ ४६ विशे गा १६४२-१६४५ कर्म की सिद्धि ५६०३४४ विशे गा १६११-१६ १५. कर्य के विपय में गणधर ७७५ ४ ३१ निशे गा १६०६ मे १६४४ अग्निभूति फाशंका समाधान कर्म के नामादि दस भेद ७६० ३ ४४१ प्राचा श्रु १ २ ३.१ टी. गा १८३-१४ कर्म गोत्र के भेद,अनुभाव ५६० ३ ७६ भ श.८ ६ रसू. ३४ १,एन और वन्ध के कारण प २३ स २६२-२६४,कर्म भा गा.५२ तत्त्वार्य यध्यास कर्म ज्ञानावरणीय के भेद, ५६० ३ ५५ भ.ग ८उ.६ सू ३५१, पन्न अनुभाव, बन्ध के कारण प२३मृ २६२-२६४,कर्ममा गा.६, ४तत्यार्थ अभ्यास Aani Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवॉ भाग ८३ विपय वोल भाग पृष्ठ प्रमाणा कर्म तीन ७२ १ ५२ जी प्रनि ३ उ १ स १११, तन्दुल सू १४, १५ पृ ४० कर्म दर्शनावरणीय के भेद,५९० ३ ५६ कर्म भा १ गा १०-१२,५४, अनुभाव और वन्ध के भ.श ८ ६सू ३५१,पन प० कारण २३सू २६२-२६४, फर्म नाम के भेद, अनु- ५६० ३ ६८ पन प. २३ सू २८२-२६४, भाव और वन्ध के कारण भ.श.८उ.६सू ३५१,ज्ञा भ ८सू ६४, प्राव ह नि गा १७९-१८१,कर्म भा १गा २३, २७,३१ तत्त्वार्थ अध्या ८ फर्म प्रकृतियों का उदया- ८४७ ५ ६४ कर्म, भा २ गा १३-२२ धिकार गुणस्थानों में कर्म प्रकृतियों का उदोरणा-८४७ ५ १८ कर्म भा २ गा २३-२८ धिफार गुणस्थानों में कमे प्रकृतियों का बन्धा- ८४७ ५८८ कर्म. भा २ गा ३-१२ धिकार गुणस्थानों में फर्म प्रकृतियों का सत्ता- ८४७ ५ 86 फर्म भा २ गा २५-३४ धिकार गुणस्थानों में फर्म प्रकृतियों के बारह द्वार८०६ ४ ३३६ कर्म, भा. ५ गा १-१६ फर्म बन्ध के कारण ५६०३ ५२ कर्म भा १ भूमिका तथा गः ५ व्याख्या, टा. १ सू. ६६ कर्मभूमिज ७१ १ ५१ टा ३ २ १ स १३०, पन प १८३७,जीप्रति स. १०५ फर्मभूमि पन्द्रह ८५८ ५ १४२ पन प ११३७,भ न, २० ८, ८ स ६५५ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ श्री सेठिया जैन अन्यमाला विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण कर्ममाहनीय के भेद.अनु-५६०३६२ भश ८३६ स् ३५१,पा. भाव और बन्ध के कारण १२३१ २६२-२६४,कर्म भा. १गा १३-२२,तत्त्वार्थ अभ्यास कर्मवाद ४६७ २ २१२ कर्मवाद का मन्तव्य क्या ५६० ३ ८६ आत्मा को पुरुपार्थ से विमुख नहीं करता ? फर्मवाद का महत्त्व ५४०३ ८५ कर्म भा. १ भूमिका कर्मवादी १६२ १ १५० थाचा अ १ उ. १ न. ५ फर्म वेदनीय के भेद,अनु- ५९० ३ ६० पन्न प २३ सू. २६२-२६८, भाव और वन्य के कारण भ श. ८ उ. मू. ३५१, भ श ७३६स २८६,कर्म भा १गा.१३,तत्त्वार्थ भच्या फर्म से छुटकारा और ५६० ३ ५३ विशे गा.१८१७-१८२१,भ उसके उपाय श६ उ.३ मृ २३५,स्या का फर्मादान पन्द्रह ८६० ५ १४४ उपा.अ.१ ८ ५, भ.ग८३.५ सू.१०,याव.ह भ.६१८ ७८५ ४ २६६ बृ. उ. १ नि गा.६. कर्मों की उत्तरमकृतियाँ ६३३ ३ ११७ कर्म भा १,पन.५ २३ २.१ एक सौ अड़तालीस कमा की सफलता के ६४ ७ २१४ विषय में पॉच गाथाएं कमा के क्रम की सार्थकता५:०३८४ पन. १ २३ १८८टा कलाचार्य १०३ १ ७२ रा मृ ७७ कलासवर्ण संख्यान ७२१ ३४०४ टा. १० उ: मू... कार्य Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवॉ भाग ८५ विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण कल्प अठारह साधु के ८६० ५ ४०२ सेमे १८, दश अ६ गा८.६६ कल्प दस साधु के ६६२ ३ २३४ पचा १७ गा. ६-४० कल्पनीय ग्रामादि१६स्थान८६७ ५ १६६ वृ उ. १सू. ६ कल्पपलिमन्थ छः ४४४ २ ४७ ठा.६ उ ३सू ५२६, (जी) उ ६ फल्प बीस १०४ ६६ वृउ १ कल्पवृक्ष के दस भेद ७५७ ३ ४४० सम १०,१.१०उ ३ सू ७६६, प्रव द्वा १७१गा १०६७-७० कल्पवृक्ष क्या सचित्त ११८६ १४० याचाच २ पीठिका,जी प्रति वनस्पति रूप औरदेवाधि ३सू.१११,ज वक्ष २सू २०टी., ष्ठित हैं? प्रव द्वा १७१,यो प्रका.४श्लो ६४ कल्प संख्यान ७२१ ३४०६ ठा १० उ ३ सू ७४७ कल्पस्थिति छः ४४३ २ ४५ ठा ३ उ ४सू २०६,ठा ६ उ. सू ५३०, वृ (जी) उ ६ कल्पातीत ५७ १ ४० तत्त्वार्थ अध्या ४ सू १८ कल्पोपपन्न देव के इन्द्र दस ७४१ ३ ४२. ठा १० उ ३ सू ७६६ कल्पोपपन्न देव वारह ८०८ ४ ३१८ पनप २,४,६,जी. प्रति ३सू २०७-२२३,तत्त्वार्य,अध्या ४ कल्याणक पके २७५ १ २५३ पचा ६ गा.३०-३१,दशा द ८ कपाय आश्रव २८४ १ २६६ ठा ५ उ २सू ४१८, सम ५ कपाय की ऐदिक हानियाँ १६६ १ १२५ दश अ, ८ गण ३८ कपाय की व्याख्या और १५८ १ ११७ पन.प १४सू १८८, ठा ४३ १ सू.२४६,कर्म भा १गा.१७-१८ कपाय कुशील ३६६ १ ३८१ ठा ५ उ.३सू ४४५,भ.स २५ र ६ सू७५१ फपाय कुशील के पाँच भेद ३६६ १ ३८४ ठा उ. ३ सू ४४५ भेद Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय चोल भाग पृष्ट प्रमाण कृपाय के भेद और प्रभेद १५८-१ ११७- ठा ४८ २४६,२६३, पन.१ १४ उपमा सहित १६२ १२२ १८८ कर्म भा गा 16, 20 फपाय जीतने के चारउपाय१६७ १ १२५ दश म ८ गा ३६ कपाय पर तेईस गाथाएं ११४ ७ २३६ फपाय परिणाम ७४४ ३ ४२६ ठा १० ३.३ सू ७१३, पा १ १३ सू १८२ कपाय प्रतिक्रमण ३२६ १ ३३८ अ.उ ३८ ४६७,मावर, प ४ गा.१२५०.१२१ फपाय प्रमाद २६१ १ २७३ ठा.६ उस ५०१,५ मधि: श्लो..६५८१,पचा १गा २टी कपाय मार्गणा और भेद ८४६ ५ ५८ वर्म भा ४ मा ११ फपाय मोहनीय २४ १ २० फम भा १ गा १७,पन्न. १४ मृ १८६ टी फपाय समुद्घात ५४८ २ २८८ पन.प.३ ६ ३३१,ठा ७३ : मृ १८६, द्रव्य लोग. १२५,प्राधा २१गा 1:११ कपायात्मा ५६३३६६ भ.मा १२ उ. १० स . फॉक्षा २८५ १ २६५ उपा म १ मृ५, मा. फाक की कथा औत्पत्तिकीह४६ २६३ नं सू. २७ गा, 32 बुद्धि पर काठिया तेरह ८३ ७ १२७ म.व, नि गा८४१६ काण्ड नरकों के ५६० २ ३२८ जी. प्रति P.. कापोत लेश्या ४७१ २ ७३ उत्त.प्र. ३४ गा. २४... कर्म भा. ४ गा. १३ काम कथा ६७ १६६ टा. ३८ मृ. १८६ शाम गुणा पाँच ३६५ १४२० टा. ५ उ. १ र ३६० Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, पाठवा भाग ८७ विषय बाल भाग पृष्ठ प्रमाण कामदेव श्रावक ६८५ ३ ३०६ उपा म २ कामभोग की असारता के १६४ ७ २१८ विषय में सोलह गाथाएं काम मुख ७६६ ३ ४५४ ठा १० उ.३ सू. ७३७ कायकौत्कुच्य ४०२ १ ४२६ उत्त अ.३६ गा २६१, प्रव, द्वा. ७३ गा ६४२ कायक्लेश ४७६ २८६ उत्त अ ३० गा ८, ठा. ६ उ ३सू ५११, उव सू १६, प्रवद्वा ६ गा २७० कायक्लेश के तेरह भेद ६३३ ३ १६० उव सू १६, भ श. २५ उ ७ सू ८०२ कायक्लेश के तेरह भेद ८१६ ४ ३६७ उव. सू १६ कायगुप्ति १२८ (ख)१ ६२ उत्त प्र. २४ गा. २४-२५, ठा ३ उ १ मृ १२६ काय छः ४६२ २ ६३ टा ६ उ ३ सू ४८०, दश. य ८, कर्म भा. ४ गा १० काय छः का अल्पवहुत्व ४६४ २६५ जी प्रति २ सू ६२,पन्न प ३वा ८ काय छः की कुलकोटियाँ ४६३ २ ६४ प्रब द्वा १५०गा ६६३.६६५ काय पुण्य ६२७ ३ १७२ ठाउ : सू.६७६ फायमार्गणा के भेद ८४६ ५ ५८ कर्म भा १ गा १० काययोग १५ १६८ टाउ १ सू १२४,तत्त्वार्य अध्या . ६ म १ काययोग के सात भेद ५४७ २ २८६ म.स २५२ १ मृ.७१६,द्रव्य लोग ३:१८,कर्म भा,४ गा२४ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मेठिया जैन ग्रन्थमाला विपय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण काय विनय ४६८ २ २३० उव स २०,भश २५ .५ सू८.२.७८ ३ १ , ध.वि. श्लो १४टी.पृ.१४३ काय विनय अप्रशस्त के ५०४ २ २३३ भ श २५ उस ८०२, टा सात भेद ७२ : सु५८१, उवम् २० कायविनय प्रशस्त के ५.३ २ २३२ गम २५ उ.७सू ८०२,ठा सात भेद ___७ उ.३ सू.५८५,उव स २० कायस्थिति ३१ १ २१ ठा. २ उ ३ र ८५ काया के दोप सामायिक.७८४ ४ २७३ शिक्षा कायिकी क्रिया २६२ १ २७७ ठा २ उ.१ १६०, टा.५ उ ३ सू ४१६,पन.प.२२स.२७६ सायात्सगे आवश्यक ४७० २१२ माव . म ५ कायोत्सर्ग के १२ श्रागार८०७ ४ ३१६ ग्राव ६ प्र. ५ १७७८ कायोत्सर्ग के उन्नीस दोपहह ५ ४२५ प्राव ह य । गा. १४४६. १५४७, प्रवदागा २४७. २६२, यो.प्रका, .. कारक समकित ८० १ ५८ विशे गा.२६७४ मध्यलो.ग ३ ग्लो.६६६, ध.वि.लो. २२टी३१,प्रा.म. गा. कारण कारण के दो भेद ३५ १२३ विगे, गा. २०६६ कारण दोप कारण दोप कारुण्यदान कार्माण काययोग ४३ १ २७ न्याय को , जे. प्र ७२२ ३ ४०० टा. १० उ स ७४३ ७२३ ३ ४१२ ठा. १० उ.३ २५४३ ७६८ ३४५१ ठा. १• उ ३ ७१४ ५४७ २ २८७ भ.न. २५३ ११ १२, न्य लो स पृ. ३१८, पर्म, मा. ८ गा.२४ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग ८६ कार्य विषय . बोल भाग पृष्ठ प्रमाण कार्माण शरीर ३८६ १ ४१४ पन्न.प.२ १सू.२६७, ठा.५उ । सू. ३६५, कर्म.भा. १ गा ३३ कार्माणशरीरवन्धन ३६० १ ४१६ कर्म भा १ गा ३५, प्रव द्वा नामकर्म २१६ गा. १२७३ कार्मिकी बुद्धि २०१ १ १५६ नसू २६,ठा.४ उ ४ सू ३६४ ४३ १ २७ न्याय को , जै. प्र. काल २१० १ १८६ न्यायप्र.अध्या ५,रत्ना.परि.. सू. १५ टी. काल २७६ १ २५७ पागम , कारण,सम्मतिभा ५ काण्ड ३ गा० ५३ काल के चार भेद ४३१ २ ३८ विशे. गा. २७०८-२७१० काल के नौ भेद ६३४ ३ २०२ विशे. गा० २०३० काल के भेद और व्याख्या ३२ १ २२ ठा २ उ ४ सू. ६६ फाल के७ भेद(मुहूते तक) ५५१ २ २६२ ज. वक्ष २ सू. १८ काल चक्र के दो भेद ३३ १ २२ ठा २ उ १ सू ७४ काल द्रव्य ४२४ २३ भागम , उत्त. भ. ३६ काल निधि ६५४ ३ २२१ ठा उ. ३ सू. ६५३ कालपरिमाण के ४६ भेद ६६८ ७ २६३ मनु सु ११४, म श ६ उ " काल पुद्गल परावर्तन सच्म ६१८ ३ १३६ कर्म भा ५ गा.८६-८८ और वादर का स्वरूप काल प्रत्युपेक्षणा ४५६ २६० ठा ६ उ ३ सृ. ५०२ कालाचार ५६८३६ ध अधि.१ श्लो. १६ टी पृ१८ कालानुपूर्वी ७१७ ३ ३६१ मनु स. ७१ कालिक भत ८२२ ५ ११ नं० मू० ४४ फाली रानी ३ पत.व . अ १ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मेठिया जैन ग्रन्थमाला Amms - विषय वोन बोल भाग पृष्ठ प्रमाण कालोदधि समुद्र में चन्द्र ७६६ ४ ३०१ सूर्य प्रा. १६ स १०० मूयादि की संख्या काव्य के चार भेद २१२१ १६० टा ४ उ. ४ 7 ३७६ काव्य के रस नो ६३६ ३ २०७ मनु.म. १२६ गामे कितनीदीनापर्यायवाले को५१४ २ २४३ ठा ५३ १६६व्यव.उ.१. कोनसा मृत्र पढ़ाना चाहिए स २१-३५ फिल्विपिक ७२६ ३४१६ तत्त्वार्थ अध्या. ४ पृ.४ किल्विपिकी भावना १४१ १ १०४ उत्त अ.३६ गा २६३ किन्विपिकी भावना के ४०३ १ ४३० उत्त० अ०३६ गा.२६३,मार पांच प्रकार द्वा ७३ गा. ६८३ किस गति में किस कपाय १६३ १ १२३ की अधिकता होती है ? कीलिका संहनन ४७० २ ७० पन १.२३ य. टा.उ.: स. ४६४,कर्म मा गा.३६ कुण्डकोलिक श्रावक ६८५ ३ ३१६ उपा अ. ६ कुन्नी ८७५ ५ ३४६ मा १६ कुन्ज संस्थान ४६८ २६८ ठार ४६५, गर्म भा.१गा ५० फुलमाका दृष्टान्त क्षेत्र ७८० ४ २३६ मायद निगा १३३,.नि.पा. अननुयांग पर १५१ पीटिका कुमार की कया पारिणा- ११५ ६ ७६ न.२७ गा.७२, यानि. मिकी बुद्धि पर गा० ६४ बुम्भक प्राणायाम ५५४ २ ३०३ यो.प्र लो. कुम्भ की उपमा से४ पुरुप १६०, १२६ ठा ४ उ. ४ ३६० कुम्भ की चौभंगी १६८१ १२५ टा०४ उ० ८ ० ३६. शुरुक्षेत्र दस(महाविदेहक)७५४ ३ ४३८ टा० १० १० ११० ४६४ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, श्राठवॉ भाग कुल धर्म विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाणा कुलकर दस आगामी ७६७ ३ ४५० ठा० १० उ०३ सू० ७६७ उत्सर्पिणी के कुलकर दम गत , ७६६ ३ ४४६ ठा०१० उ०३ सू० ७६७ कुलकर७मागामी , ५११ २ २३६ ठा. उ.३ सृ ५५ ६,मम १५६ कुलकर सात गत , ५१२ २ २३६ ठा ७ उ ३ सू ५५६,मम १५७ कुलकर सात वर्तमान ५०८ २ २३७ ठा ७२०३सू० ५५६,मम अवसर्पिणी के १५७,०भा० २ पृ. ३६२ कुलकोड़ी छःकाय की ४६३ २ ६४ प्रव वा १५०गा ६६३-६६५ ६१२३३६१ ठा० १० उ० सू०७६ . कुलपर्वत३६समयक्षेत्रके ६८६ ७ १४४ सम० ३६ कुल मद ७०३ ३ ३७४ टा.१० र ३सू ७१० ठा.सु ६०६ कुलाये ७८५ ४ २६६ वृ उ १ नि गा ३२६३ कुव्यसन सात ६१८६१५५ गौ कु का म.१८ सू १३५, पृ उ १नि गा. ६४० कुशध्वज राजा की कथा ८२१ ४ ४५५ नवपद गा. १८ टी. कांक्षादोप के लिये कुशील ३४७ १ ३६० घाव ह.य ३ नि.गा ११०७. ११०८,प्रवद्वा.२गा १०४-११५ कुशील ३६६ १ ३८१ ठाउ ३ पृ.४४४,भ.ग. ३६६ १ ३९१ उ०६ सृ. ७५१ कुशील के अगरइ भेद ८६३ ५ ४१० भाव इ.स.४ पृ ६५२ कुशील के तीन भेद ३४७ १ ३६० प्राव ह म ३ नि गा ११०७ १६ प्रवद्वा २ गा. १०६ सुशील के पांच भेद ३६६ १ ३८४ टा । उ ३ सू०४८५ १ कृतदान ७६८ ३ ४५२ टा० १० उ० ३ सृ०७४४ ५ पूर्वत उपकार के बदले दिया जाने वाला दान । Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय , कृतिकर्म चोल भाग पृष्ठ प्रमाण ७६०३ ४४३ माचा म.२ उ १ निगा १८॥ कृतिकर्म कल्प ६६२ ३ २३८ पचा १७ गा २१.०५ • कृत्स्ना धारापणा ३२६ १३३५ ठा.५ उ २ ४३३, सम.२८ __ : कृपण वनीपक ३७३ १ ३८८ टा०५ उ० ३ स ४४४ कृषिकर्म ७२ १ ५२ जी.प्रति.३ उ १सू ११९ नन्दल. मू १४-१५ पृ. ४० कृष्ण का अपरकंका ६-१३ २८० ठा.१० २. ३ १५७७,अब दा. गपन (भाश्चर्य) १३८ गा ८९ कृष्ण का भपरकंकागमन:०० ५ ४६६ मा. अ १६ ४ कृपणपातिक ८१ ७ भरा १३ ३, मू.४७०,टा. * कृष्णरानियाँ आठ ६१६ ३ १३३ ठा८३.३ मू ६२३, भ.ग' उ. सू.२४२, प्रा डा.२.७ गा १४४१ मे १९८४ कृष्ण लेश्या ४७१ २ ७३ उत्तम.३४ गा.२१-२२,कर्म भा.४ गा." कृष्णा रानी ६८६ ३ ३४१ मा प. भ. ४ ३७५ १ ३६१ टा. ३१६,नग१. फा. भा.गा. ४ मारल्या कवलज्ञान साकारोपयोग ७८६४ २६८ ११ प २६. ३१२ केवलज्ञानावरणीय ३७८१३१४ टा.१३ १ ४६४र्म भा 'गा। केवलज्ञान & १चन्दना । २ प्रायदिन का एक भेद लेने पाना! मालानन में मो. पाना औपचन प्रशमा य पार में Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण केवलज्ञानी जिन .७४ १ ५३ ठा ३ उ ४ सू २२० केवलदर्शन १६६ १ १५८ ठा ४सू ३६५,कर्म भा ४गा १२ केवलदर्शनअनाकारोपयोग७८६४ २६६ पन्न प. २६ सू० ३१२ केवलि मरण ८७६ ५ ३८४ सम १७,प्रव द्वा १५७गा.१००७ केवलि लब्धि ६५४ ६ २६३ प्रव द्वा २७० गा १४६३ केवलि समुद्घात ५४८ २ २६० पन्न.प. ३६सू ३३१, ठा.७ उ ३स ५८६, द्रव्य लोस ३ पृ. १२५,प्रव द्वा २३१गा १३११ केवली के दस अनुत्तर ६५५ ३ २२३ ठा १० उ ३ सू७६३ केवली के परिषह सहन ३३२ १ ३४२ ठा० ५ उ० १ सू० ४०६ करने के पांच स्थान केवली के पांच अनुत्तर ३७६ १ ३६१ ठा० ५ उ० १ सू० ४१० केवली जानने के ७ स्थान ५२४ २ २६१ ठा० ७ उ० ३ सू० ५५ • केवलीमरूपितधर्ममांगलिक१२६१ ६५ प्राव ह भ ४ पृ. ५६६ । लोकोत्तम और शरणरूप है केसवाणिज्जे कर्मादान ८६० ५ १४५ उपा.अ १ सू.७, भश ८ उ.. सू ३३०,पाव.ह भ ६पृ८२८ कोकणदारक का दृष्टान्त ७८० ४ २४८ पाव. ह गा १३४, बृ नि भाव अननुयोग पर गा०१७२ पीठिका कोणिक की विशाला ११५६ ११७ उत्त (क) म १ गा ३ टी.,निर नगरीजीतने की कथा म.१,न.सू.२७ गा.७४,पाव ह नि गा. ६५१ कोष्ठक बुद्धि लब्धि ६५४ ६ २६६ प्रवद्वा २७० गा १४६४ १ कौकुचिक ४४४ २४७ ठा ६२ ३सू ५२९, (जी)उ ६ १ कुत्सित चेष्टा कर सयम की घात करने वाला साधु । Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय फौतुक प्रगाण उत्त ३६ गा २६२, प्रवा ७३ गा० ६४८ कौतुक भृतिकर्म आदि ३४७ १ ३६० भाव ६ ३ लिंग ११०७ १६, प्र. २गा. १११-११४ का स्वरूप १ श्री मेठिया जैन ग्रन्यमाला कौन्कुत्र्य बोल भाग पृष्ठ ४०४ १ ४३१ ४०२ १ ४२६ उत्तम. ३६ गा २६१, प्रव द्रा ३ गा० ६८० २६८०प० प ७ ९४२ यूपीटिकामा ६८८-७०२३, ठा ८३ ३० ५०८ क्या पृथ्वी के जीव अठा- ६८३ ७ १२२ न. १६ उ. रह पाप का सेवन करते हैं? ८७५५ कौशन्या क्या एकलविहार शास्त्र ६१८ ६ सम्मत है ? दुर्गाको माने क्या सभी मनुष्य एकमी ६८३ ७ १२१ भ० श० १३० २ २० २१ क्रिया वाले होते है ? क्रियाकी व्याख्या और २६२१२७६२ २१.६० २२ एसके पाँच भेद ४१.२० क्रिया के पाँच भेद २३३ १ २७७ .. १६०५ ४१.२.१.२२ क्रिया के पाँच भेद क्रिया के पाँच भेद क्रिया के पाँच भेद ? ख ** a २६४ १ २७६ ठाउ ल ८६५८१२ २६५ १२८० १०. ܨܚܕ (7 ४१९, याव. ४६१ २६६ १ २८२ ३०३ . .४२.६१८ निग Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह,पाठवा भाग ...~~~ ~mmerrrrrrrrrrrrrrr~~~~~ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण क्रिया पचीस ६४०६ २१८ ठा.२ उ.१सू ६०,ठा ५उ २सू. ४१६,ग्राव ह ४१६११ क्रियारहित ज्ञान परगाथा:६४ ७ १६२ क्रिया रुचि ६६३ ३ ३६३ उत्त प्र २८ गा २५ क्रियावादी १६२ १ १५० श्राचा०म०१ उ० १ सू०५ क्रियावादी की व्याख्या १६१ १ १४४ भश ३० उ १८. ८२४ टी., और उसके १८० भेद भाचा.म १उ १सू,सूय अ १२ क्रियास्थान तेरह ८१४ ४ ३६२ सृय ( २.२ सू १६ से २६ १ क्रीत दोप ८६५ ५ १६३ प्रब द्वा. ६७ गा ५६५,ध अधि. ३ग्लो २१३८,पि नि.गा ६.२, पि वि गा ३,पचा १३ गा ५ क्रीड़ा अवस्था ६७८ ३ २६७ ठा.१० उ ३ सू ७७२ क्रोध आदि की शांति के ८१८ ४ ४०२ श्राद्ध प्रका० २ पृ० ४३५ तरह उपाय क्रोध कपाय के दस नाम ७०२ ३ ३७४ मम० ४२ क्रोध के चार भेद और १५६ १ १२०पन्न प.१४सू.१८८,ठा ४सू २४६ उनकी उपमाएं २६३ टी कर्म भा.१ गा.१६ क्रोध दोष ८६६ ५ १६५ प्रव गा ५६७,ध प्रधि ३ श्लो २२टी पृ ४०,पि नि गा.४०८, पि विगा ५८,पचा १३गा १८ क्रोध निःसृत असत्य ७०० ३ ३७१ ठा १०सू ७४ १,पन्न प ११ सृ १६५,ध अधि.३श्लो.४११ १२२ क्रोधसंज्ञा ७१२ ३ ३८७ ठा १०उ ३सू ७५२,भ. श ७ उ० ८ सू० २६६ १ साधु के निमित्त खरीदे हुए ग्राहार को ग्रहण करना। Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्पमाला विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण क्रोधादि उत्पत्ति के४स्थान१६५ १ १२४ ठा० ४ उ० १ सृ० १४६ क्रोधादि के चार प्रकार १६४ १ १२३ टा० ४ उ० १ ० २४६ क्लेश दस ७१४ ३ ३८८ टा० १० उ० ३ २०.७३६ क्षपक की पारिणामिकी ११५ ६८८ न.स २७ गा.७३,भाव. इ.नि बुद्धि की कथा गा० .. तपकभरणी ८४७ ५ ८४ प्रवद्वा८६ गा.६६४-६६६, वर्म.भा. २ गा०२ तपक श्रेणी का वर्णन ५६ १ ३६ विशेगा.१३१३,द्रव्यलो.म? रलो.१२१८.१२३४,कर्म मा २गा.२,भाव.म.गा.१२१-१२३ समा ६६१ ३ २३३ नव गा.२३,सम.१०,शा.भा १ प्रक ८ (संवर भावना) समापना पर आठ गाथाएं९६४ ७ २५० क्षयोपशमप्रत्ययअवधिज्ञान १३ १ ११ ठा० २ उ० १ मृ.७१ तान्ति ३५० १३६५ टा ५१.३६६,ध.अधि.३श्लो ४६११२५,प्रव.दा.६६ गा.१५४ तान्ति क्षमणता ७६३ ३ ४४५ ठा.१० उ० ३ स.७५% सायिक और ओपशमिकह८३ ७११७ भ० २० १३०३ २.३७टी. सम्यक्त्व में क्या अन्तर है? नायिकभाव की व्याख्या ३-७१ ४०८ कर्म.भा.गा ६५, अनु.प. और उसके नी भेद १२५,प्रयदा.२२१गा० १९६१ सायिक समकित ८० १ ५४ प्रव.द्वा १८६गा १४४,कर्म. भा० १ गा० १५ सायिक समफित २८२१ २६३ कर्म० मा० १ गा १६ नायोपशमिकभावकी व्पा-३८७ १ ४०० फर्म.भा.४गा ६८,अनु.प. २१, ख्या और उसके १८ भेद प्रवद्वा. ०११ गा.२६९ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवा भाग विषय क्षायोपशमिक समकित बोल भाग पृष्ठ ८० १ ५६ की अठारह गाथाएं क्षेत्र भा० १ गा० १५ क्षायोपशमिक समकित २८२ १२६२ कर्म० भा० १ गा० १५ क्षीणकषायवीतराग ८४७५ ८४ ६७ प्रमाण प्रव द्वा.१४εगा ६४४, कर्म कर्म ० क्षेत्रानुपूर्वी क्षेत्रार्य छद्मस्थ गुणस्थान क्षीरमधुसर्पिराश्रवलब्धि ६५४ ६ २६५ प्रवद्वा २७० मा १४६४ ठा. ६ उ. ३ सू५१३ क्षुद्र प्राणी छः क्षुल्लक की कथा और ४६७ २६७ ६४६६२६७ न०सू० २७ गा० ६३ टी. त्तिकी बुद्धि पर क्षुल्लक निर्ग्रन्थीय अध्ययन८६७ ५ ४१६ उत्त॰ श्र० ६ ० भा० २ गा० २ २१० १ १८६ न्याय प्र अध्या ७, रत्ना. परि० ४ सू० १५ टी० क्षेत्रपरिमाण के तेईस भेद ६२५ ६ १७३ मनु. सू. १३३पृ १६०-१६२, प्रवद्वा २५४ मा १३६ १टी. अनु. सू. १४०, प्रव द्वा. १५८ गा० १०२६ क्षेत्र पन्योपम (सूक्ष्म, १०८ १७७ व्यवहारिक) क्षेत्र पुगल परावर्तन सूक्ष्म ६१८ ३ १३८ कर्म. भा ५ गा८६-८८ और वादर का स्वरूप क्षेत्र प्रत्युपेक्षणा ४५६ २६० ठा. ६ उ० ३ सू० ५०२ क्षेत्र वास्तु आदि परिग्रह ६४० ३ २११ आव. ह अ ६ पृ. ८२५ क्षेत्र सागरोपम १०६१७८ अनु. सू. १४०, प्रवद्धा. १५५ गा १०३१-१०३२ ७१७ ३ ३६१ अनु सु० ७१ ७८५ ४२६६ वृउ १ नि गा.३२६३ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री रेठिया जैन ग्रन्थमाला. विषय : बोल भाग पृष्ठ र प्रमाण · । खडग (गडे)की कथा पारि-९१५ ६ ११६ न स. २७ गा. ७४, मान.४. णापिकी बुद्धि पर नि गा ' खण्ड भेद। ७५०३ ४३३ टा.१० ३.३.१ टीस, प.१३ २. १८५ वर पृथ्वी . ४६५.२ ६६ जी.प्रति.३ पृ..१०१ खग्वादरपृथ्वी के ४०भेदह८७७ १४५ पनप.१य१५ खिसित वचन . ४५६.२ ६२ : ठा ६उ.स.५२७ सय द्वा२।। गा १३२१, नी) ३६ खुड्डग (अंगूठी) की कथा ६४६ ६.२५८- २० पू०.२७ गा० ६३ टी. प्रोत्पत्तिकी बुद्धि पर खुले मुँह कही गई भापा ११८ ६ १५० भग १६ उ २१ ५५८ मावद्य होती है या निरवच? ग्वेचर .. ४०६ १४३६ पत्र प. सू.३०, उत्तम.३६. ग्वेलीपधि लब्धि ५४ ६ २६० प्रय द्रा २५० गा १४६१ ख्याति ४६७ २ २२० मिरवच? गंठी मुट्टी ग्रन्थि मुष्टि)भादि५८६ ३४२ . याव दश: नि गा.१५ पञ्चरवाण के प्राट संकेत सहा. ४ गा... गच्छ प्रतिवद्ध यथालन्दिक ५२२ २ २६. विशे० गा० " 21, गच्छ में प्राचार्य उपाध्याय ३४४ १ ३५५- ८1० 1 20 AM I.. के पाच कलहस्थान , गच्छाचार पइपणा ६८६ ३ ३५४ ६० १० गज की कथा मीत्पनिकी १४०६ २६४ में म.. बुद्धि पर Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग ~~~~~~mmmmmmmmmmmm. .विषय .. बोल, भाग पृष्ठ, ... प्रमाण, . गजमुकुमाल की कथा ७७६ ४ १६३ अत० व० ३ ० ८ । गण आठ , ५६६ ३.१०८ छ०, पिगल. . .. गण कोधारण करने वाले४५० २ ५४ ला० ६ ० ३ स० ४७५ , गण४शुभ और ४ अशुभ २१३ १ १६१ सरल पिं. ... गणधरअकम्पितस्वामीका ७७५ ४ ५२ विशे गा १८८५-१६०४.., नरकविषयक शंकासमाधान गणधर अग्नि भूति का कर्म ७७५ ४ ३१ विशे गा १६०६-१६४४ . विषयक शंका समाधान गणधर अचलभ्राताकापुण्य७७५ ४ ५४ विशेगा १८०५ से १६४८ पाप विषयक शंकासमाधान *गणधर पार्श्वनाथ के ५६५ ३३ ठाउ ३सू ६१७,सम. ८टी गणधर इन्द्रभूति का आत्मा ७७५ ४ २४ विशे० गा० १५४६-१६०५, विषयक शका समाधान गणधर ग्यारह . ७७५,४ २३ विशे गा १५४६ से २०२४, , सम ११,प्राव ह नि गा ५६: ६ ५६,प्राव ह टिप्पण पृ २८-३५ * गणधर दस भगवान् ५६५ ३ ३ ठा८सू ६ १७टी ,म'टी प्रय पौवनाथ के । द्वा १५गा ३३०,श्राव ह नि:गा २६८-२६६, सश द्वा ११११ , ५१३. २ २४० ठा ३ उ ३ सू १७७ टी., , गणधर प्रभास स्वामी का७७५ ४ ६० विशेगा० १६५२ से २०२८ मोक्षविषयक शंकासमाधान * पृष्ट. ३७ पर टिप्पणी देखो। Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री संटिया जैन प्रन्थमाला विषय वोल भाग पृष्ट प्रमाण गणपग्मेडिनस्वामी का बन्ध७७५४४४ विगे. गा १८०२-१८६ मातविषयक शंकासमाधान गणधरमेनार्यस्वामी का पर-७७५४ ५४ विशे गा,१६४६-१७) लोकविषयक शंकासमाधान गणधर मायेपुत्र कादेवों के७७५ ४ ५० विशे गा १८१८-१८८४ विषय में शका समाधान गणधरलब्धि y६२१३ प्रवद्वा २७० गा.१४६३ गणधर वाद संक्षेप में ७७५ ४ २३ विशे. गा. १४४६-२०२४ गणधर वायुभूति का जीव ७७५ ४ ३४ विशे गा १६४५-१६८९ और शरीर के भेदाभेद विषयक शंकासमाधान गणधव्यक्तस्वामीकापृथ्वी ७७५ ४ ३६ विशे गा.१६८७ १७६६ आदि भूतों के अस्तित्व विषय में शंका समाधान गणधरसंख्या तीर्थों की७७५४ २३ भाव ह.नि गा२६. २६६ गणधरसधास्वामीके'यहॉ७७५४४० विशेगा.१७४०-१८०१ जो जैसा है परभव में वह वैसा ही रहता है, मत का समाधान गण धर्म ६६२ ३ ३६१ टा०१. उ० ३१. ७.. गणनाअनन्तक ४१७ १४४१ टा० ५ 3.३ १. ८ गणनानुपूर्वी ७१७ ३ ३६१ भगु सू• ७१ गणनासंख्या के तीन भेद ६११३ १४३ अनु० ० १४६६ गण भगवान महावीर के ६२५ ३ १७१ ठा० ३० म.६८. गणापक्रमण सान ५१५ २ २४४ टा. 30 . ' tu Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, अाठवा भाग १०१ -- विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाणा गणाभियोग श्रागार ४५५ २ ५६ उपाय १ सू८,भाव ह अ.६Y ८१०,ध अधि २श्लो २२१४१ गणावच्छेदक पदवी ५१३ २ २४० ठा०३ उ०३ सू०१७७ टी गणित निमित्त आदि सूक्ष्म६४२ ३ २१३ ठा०६ उ०३ सू०६७६ वस्तुओं के ज्ञाताहनैपुणिक गणित योग्य काल परिमाणह१८ ७ २६३ अनुसू ११४,भ. श ६ २७ के छियालीस भेद सू २४७ गणितानुयोग २११ १ १६० दश०नि० गा०३ पृ. ३ गणिविज्जा पइण्णा ६८६ ३ ३५५ द० ५० गणि सम्पदामाठ ५७४ ३ ११ दशा द ४, ठा ८ठ ३सू ६.५ गणि पदवी ५१३ २ २४० ठा०३ उ०३ सू० १७७ टी. गतउत्सर्पिणीके२४तीर्थकरह२७ ६ १७६ प्रव द्वा ७ गा २८८-२६० गत उत्सपिणी के कुलकर५१२ २ २३६ ठा ७३.३सू ५५६,सम १५७ गतप्रत्यागतागोचरी ४४६ २ ५२ ठा.६ उ.३सू ५१४,उत्तय ३० गा १६,प्रवद्वा गा ७४५, ध अधि ३ श्लो.२२टी.पृ ३७ गतागत के अठारह द्वार ८८८ ५ ३६८ पन प ६ के आधार से गति कीव्याख्या और भेद१३१ १ १४ पन्न प २३उ.२सू २६३, कर्म __ भा ४ गा. १० गति दस ७२५ ३ ४१३ ठा १० उ ३ सु ७४५ गति नाम निधत्तायु ४७३ २ ७६ भश ६उ ८,ठा.६ उ ३सू ५३६ गति परिणाम ७४६ ३ ४२६ ठा १०सू ७१३, पन प १३ गति परिणाम ७५० ३ ४३२ ठा १०उ.३ ७१३,पन्न.प.१३ गति पाँच २७८ १ २५७ ठा.५ उ. ३ सू. ४४२ गतिप्रतिघात ४१६ १ ४४० ठा. ५ उ. १ सू. ४०६ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ܕ I" श्री मॅटियां जनं प्रत्यमाला विषय गति प्रत्यनीक गनि मार्गणा और भेद गन्ध नारकियों का गन्ध परिणाम गन्धर्व वाणान्तर आठ ६१३३ १२६ } गमिक श्रुत ८२२५१० ६६ १४७ गर्भ जन्म गर्भहरण ६८१ ३ २७७ बोल भाग पृष्ट गाण द ४४५ २४६ ८४६ ५५७ वर्म, भा४ मा १० . ५६० २३३६ जी. प्रति ३८७ ७५० ३ ४३३ टा १०३ ३७१३५११३ २४४० आर्य गर्व के बारह नाम ग पर कथा niranur गणणा के सोलह ८६६ ५ १६४ ६३ १६७ उत्पादना दोप भग ३३६ ७६० ४ २७५ ५७६३३४ 1 नमृ. ४४, विशे. ५४६ तत्वार्थ अन्य २ सू ३२ ठा १०.३.७७७ वा. १३८८८१ भ १.१२३४४४६ श्राव ३ ४ नि.गा. १२४० उन २४ गा ११-१२ मत्र.वा. ६७मा ५६७-६६८,१. अधि ३श्लो. २२ १४०, पि. निगा ४०८ ४०६,पिं.विमा of ५८-५९, पचा १३गा. १८-१२ गवेपणा के सोलह ८६५५१६१६७०.४६५-४६६,१. उद्गम दोप अमिलो टीपू पिनिगा २६,पिंगा 4-4,771 1201 - गाथा अठारह उत्तराध्ययन८६७५ ४१६ ०० ६ • सूत्र के अध्ययन की गाथा : मूल ) १८ उत्तराय-८६७५ ४८५ उ० प्र० ६ यन सूत्र के कटे अध्ययन की गाथा १८ दशकालिक ५२००० २०१ सूत्र की मथम चूलिका फो Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्नह, पाठवा भाग विषय ... वोल भाग पृष्ठ प्रमाण गाथा (मल)१८दशका-८६८ ५ ४८७ दशा १०१ लिकसूत्र प्रथमचूलिका की .. गाथा अड़तीस सूयगडांग ९८५७ १३६ सूय० ध ११ । सूत्र के ११वें मार्गाध्ययन की , गाथा आठ आलोचना परद६४ ७ : गाथा आठ क्षमापना पर ६६४ ७ २५०, ।,... . गाथा आठ धर्म पर ६६४ ७ १५१. गाथा आठ विजय पर १६४ ७ १६८ . गाथा इकतीस स्त्री परिज्ञा ६६३ ७८, सूप , . अध्ययन प्रथम उद्देशे की गाथा इक्कीस चरणविहि ११७६१३० उत्त अ ३१ । नामक अध्ययन की गाथा२१सभिक्खु अ० की ६१६ ६ १२६ र्दशः अ ३० गाथारह वीरस्तुति की६५५६ २६६ सूय अ६ । गाथा ग्यारह अपरिग्रह परह६४ ७ १८१ । - ।. गाथा ग्यारह तप पर 86४ ७ २०२ गाथा ग्यारह दशवैकालिक७७१ ४ ११ दश अ . . . . मूत्र के दूसरे अध्ययन की गाथा ग्यारह विनय पर ६६४ ७ १.६५. । .. गाथा ४ आत्मचिन्तन पर 8६४ ७ २४८ । गाथा४क्रियारहितज्ञान पर ६६४ ७ १६२ . . गाथा चार भ्रयरवृत्ति पर ६६४ ७ १८५ : गाथा चौदह सत्य पर ६६४ ७ १७२ गाथा चोवीस विनय ६३३ ६ २००१ दश अ 2 3 २ समाधि अध्ययन की Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सहिया जैन अन्यमाला . विषय बोल भाग पृष्ट ममारण गाथा२४ममाधि अध्ययनकी ३२६ १६७ मय शु १ भ .. गाथा ३६धर्माध्ययन की १८१ ७ ८७ सूय. शु. १ मा गाथा ६ श्रात्मा पर ६६४ ७ १५६ गाथा छः रतिभरति पर ६६४ ७ १६० गाथा छः वमन किये हुएकोह६४ ७ १८६ ग्रहण न करना'विषय पर गाथा तीन निन्ध प्रवचन १६४ ७१५५ महिमा पर गाथा तीन यतना पर ६६४ ७ १६५ गाथा २३आचारांग नवे १२२ ६ १६६ भाचा. ध्रु. १ प्र. 3 , अध्ययन प्रथम उद्देशे की गाथा तेईस कपाय पर ६४ ७ २३६ गाथा तेरह असंस्कृत ८१६ ४ ४.६ उत्त म.. अध्ययन की गाया१०अशरणभाव पर 8६४ ७ २२२ गाथा दस जीवन की ६४ ७ २२५ अस्थिरता पर गाथा दस 'पूजा प्रशंसा ६६४ ७ १६० त्याग' पर गाधादस प्रमाद पर ह६४ ७२३१ गाथा दम राग द्वेप पर १६४ ७ २३३ गाथा दस सम्यग्दर्शन पर ९६४ ७ १५८ गावाटोव्यवहारनिश्चय परह६४ ७ १६३ गाथा दोसच्चे त्यागी परहह४ ७ १८८ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवा भाग बोल भाग पृष्ठ विषय गाथा नौ अनासक्ति पर ६६४ ७ २०५ गाथा नौ कठोर वचन पर ६६४ ७ २१४ गाथाहनमस्कारमहिमा पर६६४ ७ १५३ गाथा नौ मृगचर्या पर ६६४७१८६ गाथा नौशल्य पर ६६४ ७ २४४ गाथा पचीस नरकविभक्ति ६४१ ६ २१६ सूय श्रु १ अ ४ उ २ अध्ययन के दूसरे उद्देशे की गाथा पन्द्रह अनाथता की ८५४५ १३० ८५३ ५ १२७ गाथा १५ पूज्यता पर गाथा १५ महानिर्ग्रथीय ८५४५१३० अध्ययन की गाथा पन्द्रह मोक्ष मार्ग पर ६६४७१६४ ममाण गाथा ३२बहुश्रुतपूजा ० की६७३७ ५१ गाथा बत्तीस वैतालीय ६७४७५६ अध्ययन के दूसरे उ० की १०५ गाथा पन्द्रह विनयसमाधि ८५३ ५ १२७ दश अ ६ उ ३ अध्ययन के तीसरे उद्देशेकी गाथा पाँच अचौर्य पर ६६४ ७ १७६ गाथा५कर्मो की सफलतापर६६४ ७ २१६ गाथा रात्रिभोजन त्याग की६६४७१८४ गाथा ४५ यज्ञीयाध्ययन की६ ७२५४ उत्तम. २५ गाथा बत्तीस अकाम मर-६७२ ७ ४६ णीय अध्ययन की उत्तम ५ उत्त अ २० मा ३८-५२ दश प्र. ६ उ ३ उत्तम २० मा ३८-४२ उत्त ग्र ११ सूर्य उ २ • गाथा बारह जैन साधु के ७८ १ ४ २५५ उत्तम २१ गा १३-२४ लिए मार्ग प्रदर्शक Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन प्रन्यमाला विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण गाथा वारह दशकालिक ८११ ४ ३५२ दश न ४ गा. १४ २५ मूत्र के चौथे अध्ययन की गाथा वारह वैराग्य पर ६६४ ७ २२८ गाथा१२समुद्रपालीय की७८१४ २५५ उत्त घ २१ गा." गाथा२० चतुरंगीय अ.की:०६६ २६ उत्त अ. ३ गाथा २७ग्रन्थाध्ययन की ६४६ ६ २३० सूय ६ १२. १४ गाथा २७ नरयविभत्ति ६४७ ६ २३६ सृय श्रू १५ । उ १ अध्ययन के पहले उद्देशे की गाथा१७अहिंसा-दया पर ह६४ ७ १६७ गाथा सत्रह उपधानश्रुत ८७८ ५ ३८० माना Q१3 4 अध्ययन के चौथे उ. की गाथा सत्रह भगवान् महा. ८७८ ५ ३८० याचा ४.१ स : ३४ वीर की तपश्चयो विषयक गाथा सत्रह विनय ममाधि८७७ ५ ३७७ दश म इ. १ अध्ययन के प्रथम उ० की गाथा७ जीभ के संयम पर ६६४ ७ २१२ गाथा मात तृष्णा पर ६६४ ७ २४२ गाथा सात दान पर ९६४ ७ २०० गाथासात विनय समाधि ५५३ २ २६३ मम . ८ सध्ययन के चोथे उ० की गाथा सान सम्यग्ज्ञान पर ह६४ ७ १६० गाया३७ मपत्रक अकीह८४७ १३३ उत्त३५० गाथा सोलह उपधान शून ८७४ ५ १८२ भागा, 11... अध्ययन के उ.२की Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह,श्राठवा भोग १०७ ) विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण , । गाथा १६ आत्मदमन पर ६६४ ७ २०७. गाथा सोलह उत्तराध्ययन८६२ ५ १५२ उत्त य १५ मूत्र के सभिक्खु अ० की गाथा मोलह कामभोगों ११४ ७ २१८ की असारता पर गाथा१६दशवकालिक सूत्र८६१ ५ १४७ दश च २ की दूसरी चूलिका की गाथा१६बहुश्रुत उपमा की८६३ ५ १५५ उत्त अ.११गा १५-३०. गाथा सोलह महावीर की ८७४ ५ १८२ प्राचा श्रु १ अ. ६ उ २ वसति विषयक गाथा सोलह शील पर ६६४ ७ १७७ गान्धार ग्राम की सात ५४० २ २७३ अनुसू १२ज्या ४१-४२ पृ... मूईनाएं १३., ठा ७उ ३ सू ५५३ ___* जैन सिद्धान्त बोल सग्रह भाग २ पृष्ठ २७३ पर गान्धार 'ग्राम की जो साल मुर्छनाएँ छपी हैं वे सगीतशास्त्र नामक ग्रंथ मे ली हुई हैं । अनुयोगद्वार तथा स्थानाग सूत्र में गान्धार ग्राम की मुर्छनागों के नाम दूसरी तरह दिये हैं। इनकी गाथा इम . प्रकार है - नंदी अ खुद्दिा पूरिमा य चउत्थी अ सुद्धगंधारा । उत्तरगंधारा वि य सा पंचमिश्रा हवइ मुच्छा ॥ १- ॥ . सुठुतरमायामा सा छट्ठी सव्वो य णायव्वा ।। __ अह उत्तरायया कोडिमा य सा सत्तमी मुच्छा ॥ २ ॥ अर्थ- (१) नदी (२) नुद्रिका (३) पूरिमा (४) शुद्धगान्धारा (५) उत्तरगान्धारा (६) मुटठुतरमायामा (७) उत्तरायतकोटिमा । Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मेठिया जैन मन्यमाला विपय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण गान्धार स्वर ५४० २ २७१ धनु सू १२७गा.२४५ १२, टा ७ उ.३ सू ५५३ गाय और बछड़े का दृष्टान्त७८० ४ २३६ मात्र इ. गा १३३ पृ.८८, पृ द्रव्य अननुयोग पर पीटिका नि गा ११ गारवकीव्याख्याऔरभेद १८ १७० ठा? 3 ४ सू. २१५ गिदपट्टमरण ७८४ २६६ म.स २ उ १ सू. ६१ गिद्धपिपरण ८७६ ५ ३८४ सम १५,प्ररद्धा.१५७गा १००, गिरिपडण मरण ७९८४ २66 में श.१ उ. १ स ६१ गिद्वत्थ संसदेगां ग्रागार ५८८३ ४२ भाव.इ म६ १८५६,प्रवद्रा. यायम्बिल का ४ गा. २०४ ४६ १ २८ उत्तम ८ गा६,तत्या भध्या । स ४० गुण२८अनुयोगदनेवालफेह५२ ६ २८६ वृपीठिका नि गा.२४१-२४ ॥ गुण आठ आलोयणा ५७६ ३ १६ ठा८३ ३ ३ ० ४,म श.२५ करने वाले के उ ७ म ६ गुण पाठ आलोयणा देने ५७५ ३ १५ ठाउ ३ प ६०५, वाले के २४ ३. ७ . . गुणदएकलविहारप्रतिमाके५८६३ ३६ टा. गुण आठ शिक्षा शील के ५८४ ३ ३८ उत्तम११गा... गुण - सिद्ध भगवान् के ५६७ ३ ४ मनुम१३.पृ.५१५मम:, प्रा.डा.२७३मा.१५:३८ गुणाट से साधुनारसीने५७१ ३६ पना १४ गा. ३०- की समानता गृण इकतीम सिद्ध भग- ६६१ ७२ उन ५,३१गा १०ी.,मना चान के दो प्रकार से १६. 1863-11४. मागावर प.." भामा.R. . Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, पाठवा भाग १०६ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण गण इक्कीस श्रावक के ६११ ६ ६१ प्रव. द्वा २३६ गा. १३५६ १३५८,ध अधि १श्लो.२०१२८ गुण के दो प्रकार से दो भेद ५५ १ ३२ सूय अ १४ नि गा.१२६,पचा ५गा २टी.,द्रव्य त अध्या.१२ गुण छ: गण को धारण ४५० २ ५४ ठा. ६ उ ३सू.४७५ करने वाले के गण छः श्रावक के ४५२ २ ५६ धर प्रक गा ३३ पृ८२ गुण३६आचार्यमहाराजके९८२ ७ ६४ प्रव द्वा ६४ गा ५४१-५४६ गुण दस आलोचना करने६७० ३ २५८ भ. श २५ उ.७ सू ७६६, योग्य साधु के ठा.१० उ.३ सू ७३३ गुण दस आलोचना देने ६७१ ३ २५६ भ श २५उ ७ सू ७६६, योग्य साधु के ठा १० उ ३ सू ७३३ गुण पचीस उपाध्याय के १३७ ६ २१५ प्रवद्धा ६६-६७गा ५५२-५६६, ध.अधि ३श्लो ४६-४७पृ १३० गुण१५दीक्षादेनेवालेगुरुके८५१ ५ १२४ ध अधि ३श्लो.८०.८४१ ५ गुण पैंतीस गृहस्थ धर्म के १८० ७ ७४ यो प्रका.१श्लो ४७-५६५५० गुण प्रकाश के चार स्थान २५६ १ २४४ ठा ४३ ४ सू ३७० गुण१२ अरिहन्त देव के ७८२ ४ २६० सम.३४,म श द्वा.६६,स्या का १ गुण रत्न संवत्सर तप ७७६४ २०० प्रत व ६ अ १५ गुण लोप के चार स्थान २५८ १ २४३ ठा. ४ उ ४ सू. ३७० गुणव्रत की व्याख्या,भेद १२८१ ११ भाव ह.भ६१८२६.८२६ गणव्रत तीन ४६७ २ २०० गणश्रेणी ८४७ ५ ७६ कर्म भा २ गा. २ गुण संक्रमण ८४७ ५ ७६ कर्म भा. २ गा. २ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ܘ ܀ श्री मेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय वोल भाग पृष्ट प्रमाण गुण सत्ताईस साधु के ६४५ ६ २२८ सम २५, उत्तम 3 १गा १८, आव ह म ४EE गण सत्रह श्रावक के ८८३ ५ ३६२ ध भवि.२ खो २२ टी. गया १६दीक्षा लेने वाले के-६४ ५ १५८ ध अधि.३लो ७३-७८ । गुणस्थान ४६७ २ २०६ गुणस्थान का सामान्य ८४७५६८ कर्म मा २,४, प्रब द्वा । स्वरूप गा ५१०२ गुणस्थान चौदह ८४७ ५ ६३ वर्भ. भा २,४, प्रब द्रा २० । गा १३००, गुगा यो. गुणस्थानों में अट्ठाईस द्वार ८४७ ५ १०५ गुण यो गुणस्थानों में अन्तर द्वार ८४७ ५ ११२ गुणा थो गणस्थानांमअल्पवहत्वद्वार८४७ ५ ११३ गुण. या फर्ग गा गा. गणस्थानों में आन्म द्वार ८४७ ५ १०८ गुण थी. गुणस्थानों में उपयोगद्वार ८४७ ५ १०६ गुण यो गुणस्थानों में कर्म प्रकृतियों-४७ ५ ६४ कर्म गा.२गा.१३.७१ का उदयाधिकार गुणस्थानों में कर्मप्रकृतियों ८४७ ५ १८ कर्म. भा २ गा.. ८ का उदीरणाधिकार गणस्थानों में कर्मप्रकतियां-१७ ५८: यौ मा २ गा - १ का बन्याधिकार गणयानाकर्मप्रतियो-४७५ ह म भा• गा -" का मताधिकार गगास्थानों में कारणहार ८४७ ५ १०७ गुणा भा. गगास्थानों में क्रिया द्वार ८४७ ५ १०६ गुर पा Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग १११ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण गणस्थानों में गण द्वार ८४७ ५ १०८ गुण यो. गणस्थानों में चारित्र द्वार ८४७ ५ ११२ गुण थो. गुणस्थानों में जीव द्वार ८४७ ५ १०८ गुण गण में जीव योनि द्वार ८४७ ५ १११ गुण थो. गुणस्थानों में दण्डक द्वार ८४७ ५ १११ गुण थो. गुणस्थानों में ध्यान द्वार ८४७ ५ १११ गुण. थो गणस्थानों में निमित्त द्वार८४७ ५ ११२ गुण थो. गुणस्थानों में निजेरा द्वार ८४७ ५ १०६ गुण थो. गणस्थानों में परिषहद्वार ८४७ ५ १०७ गुण, थो गणस्थानों में भाव द्वार ८४७ ५ १०७ गुण थो गणस्थानों में मागेणाद्वार ८४७ ५ ११० गुण थो गुणस्थानों में योग द्वार ८४७ ५ १०६ गुण थो. गुणस्थानों में लेश्या द्वार ८४७ ५ १०६ गुण, गणस्थानों में समकितद्वार८४७ ५ ११२ गुण गणस्थानों में स्थिति द्वार ८४७ ५ १०५ गुण गणस्थानों में हेतु द्वार ८४७ ५ ११० गुण थो. गप्ति . २२ १ १६ उत्त अ २४ गा २ गप्ति की व्याख्या औरभेद१२८ख १२ उत्तय २४गा २०-२५,ठा : उ१ सू १२६ ६३ १४४ यो.प्रका २ श्लो. गुरु निग्रह आगार ४५५ २ ५६ उपा अ १८, भाव ह म.६१ ८१०,ध मधि २लो २२पृ ४१ गरुप्रत्यनीक ४४५ २ ४६ भश ८ ८ स ३३६ गर्वभ्युत्थान प्रागार ५१७ २ २४७ प्राव इ.स. ६६५३, प्रव. द्वा ४ गा । २०४. गरु Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण गृहपति अवग्रह ३३४ १३४५ भग १६.२ ५६५, भाना श्रु.२ १४५ उ.२.१ १६२, प्रवद्वा८५ गा.६१ गृह संकेत पञ्चक्रवाण १८:३४३ धारा भ.नि.गा १५७८, प्रय द्वा.४ गा २०० गृहस्थधर्म क पतीस गुण ह८० ७ ७४ यो.प्रका १.४७-५६११. गृहस्थलिंग सिद्ध ८४६ ५ ११६ पाप १सू . गृहस्थ वचन ४५१ २ ६२ टा ६.३१.१.२७,प्रवदा २३५ गा १३२१, पृ.मी) 3 गंडे की कथा पारि- १५६ ११६ नंम २७ गा ७८, मार है गामिकी बुद्धि पर गा. ५१ गैरुक श्रमण ३७२ १ ३८७ प्रच वा १४ गा ७३१ गोचरीके छः प्रकार ४४६ २ ५.१ टाउ.स. ११४,उत्त.भ.." गा.१६, प्रय.हा.६७गा.७४५, घ.मभि: भो.२टी. . गोत्र कर्म और उसके भेद ५९० ३ ७९ पय.प.२३१ २६३, भार गोत्रकर्मका अनुभाव ५६० ३८० पाप, २३ स. २६२ गोत्र काम के यन्ध के कारग५६० ३८० 13.११ गोत्र नरकों के ५६० २ ३१५ जी पनि ग. ६३, प्रन, हा. १७ गा.१.. गोनिपाधिका ३५८ १ ३७२ टा.उ.१ य .टी.,५०० गोमूत्रिका गोचरी ४४६ २५१ टाप..,True गा. गदा, गा,, भ.नि.गी , गीला लायकी गाली)की४६ ६ २६० न. म. : 3 डी. कथा त्यत्तिकी बुद्धि पर Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग ११३ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण _. गोशालक के श्रमणोपासक७६३ ४ २७६ भ श ८३५ सू ३३० गोष्ठामाहिल सातवांनिद्वव५६१ २ ३८४ विशे.गा २५०६ से २५४६ गौरण ३८ १२४ तत्त्वार्थ प्रध्या ५ सू ३१ गौण आदि दस नाम ७१६ ३ ३६५ भनु सू १३० गौण नाम ७१६ ३ ३६५ अनु सू १३. गौरव की व्याख्या व भेद १८ १७० ठा३ उ.४सू २१५ गौरव दान ७६८ ३ ४५२ ठा.१० उ ३सू ५४५ ग्यारह अंग मूत्र ७७६ ४ ६६ ग्यारह उपासक पडिमाएं ७७४ ४ १८ दशा द ६,सम ११ ग्यारह गणधर ७७५ ४ २३ विशे गा १५४६-२०२४,सम ११,माव ह टिप्पण पृ२८-३५ भावह नि गा ५६३-६४१ ग्यारह गाथादशवैकालिक७७१ ४ ११ दश प्र२ । सूत्र के दूसरे अध्ययन की ग्यारह दुर्लभ ७७२ ४ १७ भाव ह नि गा८३१ पृ ३४१ ग्यारह नाम महावीर के ७७० ४ ३ जैन विद्या वोल्यूम १ न. १ ग्यारह वोल आरंभ परिग्रह ४६१ २६ ठा.२ उ १सू ६५ छोड़ने पर प्राप्त होते हैं ग्यारह वोल आरंभ परिग्रह७७३ ४ १७ ठा २ उ.१ सू. ६४ छोड़े विना प्राप्त नहीं होते ग्रन्याध्ययन की२७गाथाएं९४६ ६ २३० सूय अ १४ ग्रन्थि संकेत पञ्चक्खाण ५८४ ३ ४३ प्राव ह अ६नि गा १५७८, प्रवद्वा.४ गा २०० ग्रहणेषणा १३ १६७ उत्तय २४ गा ११-१२ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन अन्धमाला ग्राम धर्म विपय बोल भाग पृष्ट प्रमाण 1 ग्रहणपणा के दम दोप ६६३ ३ २४२ प्रवदा ६७ १ १६८,पिं.नि गा १२०, मधिरता २२ टी ४१,पचागा .२६ ६६२ ३ ३६१ या १० २.३ स.. ग्राम नगर श्रादि दम धम६६२ ३ ३६१ टा १० उ: ६. ग्रामादि सोलह स्थान साधु-६७ ५ १६६ वृ. 3 १२५ के लिए कल्पनीय ग्रामेयफ(ग्रामीण)कादृष्टान्त७८०४ २४५ मावर नि. गा १३३ पृ८८, वचन अननुयोग पर धृ. पीटिका नि.गा १" ग्रामपणा (परिभोगेपणा) ६३ १ ६७ उत्ता. २४ गा.११-१२ ग्रासपणा के पाँच दोष ३३० १ ३३६ धमधि ३लो २३टी ..पि. नि.गा ६५-६६८,त्त अ.२४ गा.१२टी ,उत्तम.२६ गावटी ग्लान भतिचारी बारह ७६७४ २६७ प्रदा,७१गा १२६६३६, और अड़तालीस नवपद गा.१२६१.३१६ ग्लानकी सेवा करना माधु-३ ७ १०८ नि. गा.१८७१, १८७२, फैलिये श्रावश्यक है या १८७१,८८, २५३.' उसकी इच्छा परनिर्भर है? ...आम २६,,मो. गा.५८,६,१२,१३२,५३३ ग्लान साधु की सेवा करने ७६७४ २६७ प्रपद्वा...१२ १३६, वाले बारह गमगा 12 चन नर घन मंग्यान ४७७ २ ८ रा.म.१०गा.. ७२१ ३१०६ टा 1.2.५४, न पापों में एटा दास भोप है, उन नास भेद हैं। Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, पाठवा भाग ११५ विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण । घयण (भांड)की कथा ६४६ ६ २६५ न सू २७ गा ६३ टी . औत्पत्तिकी बुद्धि पर घाती कर्म २७ १ १६. अष्ट ३० श्लो १ घ्राणेन्द्रिय ३६२१ ४१८ पन प १५ सू १६१,ठा १२ ३. सू ४४३, जै प्र चउसरण पइण्णा ६८६ ३ ३५३ द प चॅवालीस वोलस्थावर की १६५ ७ २५२ म श १६ उ ३ सू ६५१ अवगाहनाकेअल्पवहुत्वके चक्रवर्तियों का वर्ण ७८३ ४ २६३ अाव. ह नि गा ३६१ चक्रवर्तियों की अवगाहना७८३ ४ २६३ श्राव.ह नि गा ३६२-३६३ . चक्रवर्तियों की गति ७८३ ४ २६१ ठा २ उ ४ सू. ११२ " चक्रवर्तियों की प्रत्रज्या ७८३ ४ २६५ ठा १० उ ३ सू ७१८ चक्रवर्तियों की स्थिति ७८३ ४ २६३ ग्राव ह नि गा ३६५-३६६ चक्रवर्तियो के ग्राम ७८३ ४ २६२ सम ६६ चक्रवर्तियों के जन्म स्थान ७८३ ४ २६२ ( सम १५८,आव ह य १नि . चक्रवर्तियों के पिता के नाम७८३ ४ २६२ | गौ ३६७-४०० . चक्रवर्तियों के स्त्री रत्न ७८३ ४ २६४ सय १५८ '. चक्रवर्ती ४३८ २ ४२ ठा ६उ ३सू ४६ १,पन्न प स ३७ चक्रवर्ती का काकिणीरत्न ७८३ ४ २६१ टा.८ उ ३ सू ६३३ चक्रवर्ती का बल । ७८३ ४ २६२ श्रात्र म गा ७३-७४ पृ चक्रवर्ती का भोजन ७८३ ४ २६१ ज वक्ष २ स २० टी चक्रवर्ती का हार ७८३ ४ २६३ सम ६४ . चक्रवर्तीकीमहानिधियांनो६५४ ३ २२० ठा ६ उ ३सू ६७३ OY Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ श्री मेठिया जैन ग्रन्यगाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण चक्रवर्ती की सन्तान ७८३ ४ २६४ र प्र२३१३ चक्रवर्ती के एकेन्द्रिय रत्न ७८३४२६३ा ७ उ ३ . ५५८ चक्रवर्तीके पकेंद्रिय रत्न सात५२८ २ २६५ टा. ७३३४५८ चक्रवर्ती के चौदह रत्न ८२८५ २. सम १४,७३५३ चक्रवर्ती के पंचेन्द्रिय रत्न ७८३४२६३ टा ७ ३ ३ . ५४८ चक्रवर्ती के पंचेन्द्रिय रत्न ५२८ २ २६५ ०.७.३ . ४४८ चक्रवतीं चारह ७८३ ४ २६० टा. ११२, ४४८,६१३, मम ६४,६६, १ च २.२२ टी, आव ह. भ. १,३९२०४०१ त्रि. पदर प्रफा २,३५१३, २० चक्रवर्ती वारह भागामी ७८४४२६५ नम. १५६ उत्सर्पिणी के चक्रवर्ती लब्धि १ चक्रवाल श्रेणी ६५४ ६ २६४ प्रय. हा ९७० मा १४६ १ ५४४ २ २६४७.४८१, भ २३. ३० चचदर्शन १६६ ११५७ टा ३६१६ चक्षुदर्शन अनाकारोपयोग७८६ ४२६८ ११.२३. सु. ३१२ चक्षुदर्शन की तरह श्रोत्रादि ६८३ ७ १०६ दर्शन क्यों नहीं कहे गये ? १.३३७ टी. चतुरिन्द्रिय ३६२१४१८ ११६१. उ. प्र. 21.3.2013 ४४४ २ ४८ 2288 उम् चतुलोलुप चण्डकौशिक सर्प कीपारि २१५ ६ ११४१०,नं-२७णा ७८, लामिकी बुद्धि पर कया भाव ए. दि १ देशों की यह जिसके द्वारा माणु भादिवार गाए दी है। Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवाँ भाग विषय १ चतुःस्पर्शी बोल भाग पृष्ठ ६१ १ ४२ चतुरंगीय अ० की २० गाथाह०६६ २६ ४६६ २ ६६ चतुरस्र संस्थान चतुर्थ भक्त प्रत्याख्यान ६१८ ६ का क्या मतलब है? १४६ चन्द्र और सूर्यो की संख्या ७६६ ४ ३०० चन्द्रगुप्त राजा के सोलह ८७३ ५ १७८ स्वम फल सहित चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र का वर्णन ७७७ ४ २२८ चन्द्र प्रमाण संवत्सर चन्द्रमा का दृष्टान्त चन्द्र संवत्सर सू. १८२टी, अंत. व. ८ अ १ चतुर्मासिकीभिक्खुपडिमा७६५ ४ २८६ सम. १२, भ. २४.१ सू६३ टी, दशा द. ७ चतुर्विंशतिस्तवमावश्यक४७६ २६१ घाव. ह. थ २ चतुष्पद तिर्येच पंचेन्द्रिय २७१ १२५० ठा ४ उ ४ सू. ३५० के चार भेद चन्दनवाला (वसुमती) ८७५ ५ १९७ आवह निगा ५२०-५२१,त्रि पत्र १०, चन्दन सूर्य प्रा. १६ व्यव.चू (हस्तलिखित) ममाण भ श १२ उ. ५ सू ४५ ० उत्त अ. ३ भश. २५४ ३ सु. ७२४, पन्न प. १ भश २उ १ ६३, ठा ३ उ. ३ ११७ ४०० १ ४२५ ठा ५उ ३ सू ४६०, प्रवद्वा १४२गा ६०१ ६०५ ५ ४५६ ज्ञा अ. १० ४०० १ ४२७ चन्द्रसूर्यावतरण आश्चर्य ६८१ ३२८४ चमरोत्पात माश्वर्य ६८१ ३ २८७ १ शीत, उष्ण, रूक्ष और स्निग्ध ये चार स्पर्श वाले पुद्गल । ठा. ५ उ३ सू ४६०, प्रवद्ध १४२ गा. ६०१ ठा.१०३.३सू.७७७,प्रव. वा. १३८ गा. ८८५,८८६ L Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 2 श्री सेठिया जैन श्रमान विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण २११ १ १६० दुन. निगा ३ चरण करणानुयोग चरणविधिसल्फी२१गाथा६१७ ६ १३० उन अ : १ ६३७ ६ २१६ प्रा. हा ६ गा.४४२-७६६, चरणमति (चरण सत्तर के सत्तर बोल चरणाइन का हष्टान्न पारि-०१५ ६ ११२ १२७.७४, बाव.इनि ध अविश्८७ १३० गा ६४१ सामिकी बुद्धि पर चरमशरीरीको प्राप्त १७ बातें=६६ ५ ३६५ . विन्या ३७० १ ३८५ टा० ४ ३० ३ ०४८५ चरम समय निर्ग्रन्थ चरमचरम के चौदह घोल =४३ ५ ४२ भ.ज. १८३०१०१ चरम पचवाण ७०५ ३ ३ ८० प्रा० १.ग्रा यार.. य. निगा १४६७ safar.8.7** ना ७३ चाणक्य की पारिणामिकी ६१५६ ६४ बुद्धि की कथा चार अनुपेक्षा धर्मध्यानकी २२३ १२०७४५७ चाग्यनुज्ञाशुक्लध्यानकी२२८ १२१२/२० { E., AMBA चार अन्त क्रियाएं चार अवस्था कर्म की चार भागार कार्यात्सर्ग के ८०७ ४३१६ २५४ ? २३७ 23.१०३५ २५३ १ २३७ नं. मा २ गा १६१ चालम्वन धर्मध्यान२२२ १ २०६ 24,25, 2474175 पारश्रानंवन शुक्लध्यान २२७ १ २११ 電 रा चार इन्द्रियां प्राप्यकारी २१४ १ १९३८ स्नात T Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, श्राठवॉ भाग ११६ विषय बोल भाग पृष्ट प्रमाण चार उपसर्ग २३६ १ २१८ / चार उपसगेतियञ्चसंवन्धी२४२ १ २१६ | ठा ४ ४२ ३६१ सय चार उपसर्ग देव संबन्धी २४० १ २१६ / प्र ३ उ १ नि गा ४८ चार उपसर्गमनुष्यसंबन्धी२४१ १ २१६ । चार उपाय कपाय जीतने के १६७ १ १२५ दश म ८ गा ३६ -- चार कपाय १५८ १ ११७ पन प. १४,ठा.४८ १सू २४६, कर्म भा १ गा.१७-१८ चार कपाय की हानियां १६६ १ १२५ दश अ ८ गा ३८ . चार कषायों की अधिकता१६३ १ १२३ गति की अपेक्षा चार कारण ईर्यासमिति के१८१ १ १३५ उत्त घ २४ गा ४-८ चार कारण जीव,पुद्गलों के२६८ १ २४७ ठा० ४उ० ३ सू० ३३७ लोक बाहर न जा सकने के चार कारण तिर्यञ्चायु के १३३ १६६ ठा०४ उ०४ सू० ३७३ चार कारण देव के मनुष्य-१३८ १ १०१ ठा• ४ उ० ३ सू ३२३ लोक में न पा सकने के चार कारण देवायु के १३५ १ १०० ठा,४३ ४ सू ३७३ - चार कारण नरकायु के १३२ १ ६६ ठा.४३.४ सू ३७३ चार कारण मनुष्यायु के. १३४ १ १०० ठा ४४ ४सू सू ३७३ । चार कारणों से आहार-१४३ १ १०५ ठा ४उ ४ सू ३५६, प्रब द्वा, संज्ञा उत्पन्न होती है __ १४५ गा ६२३ टी . चार कारणों से जीव, पुद्गल२६८ १ २४७ ठा ४उ रेस ३३७ लोकसे बाहर नहींजासकते चार कारणों से परिग्रह- १४६ १ १०६ ठा.४३.४सू ३४६,प्रवद्वा १४५ संज्ञा उत्पन्न होती है गा, २३ टी. Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० ममाण विपय बोल भाग पृष्ठ चार कारणों से भयसंज्ञा १४४ ११०६ उत्पन्न होती है टा. ४उ. ४ सू ३५६, प्रव. द्वा. १४५ गा. ६२३ टो. चार कारणों से मैथुनसंज्ञा १४५ ११०६ टा.४ ४.४ ३५६, द्वा उत्पन्न होती है १४५ मा ६०३ टी चार कारणों से साध्वी के १८३ ११३७ टा ४३ २ ० २६० साथ आलापसंलाप करता हुआ साधु निर्ग्रन्याचार का अतिक्रमण नहीं करता चार गति में चार संज्ञाओं १४७ १ १०७ पन. १८१४८ का वहुत्व चार छेद सूत्र १ चारण श्री सेठिया जैन प्रन्यमाला २०५११८० ४३८ २४२ ठा.६.४९ ११ १३७ चारण लब्धि ६५४ ६ २६२ मा २७० मा १८६३ चारदानी मेघ की उपमा से१७५ ११२६ ठा.४ ३४ ३४६ चार देशकथा चार दोप १५१ १ १०६ ३.८१ टी. २४४ १२२१ पिं.नि.गा. १८२. *ata g 122 चार द्वार अनुयोग के २०८११८५ मनु मृ ५६ चार निक्षेप २०६ १ १८६ अनुमृ. १४० न्यागम, अध्या ००४०४० भ ७ चार पक्षी चार पुत्रवधुओं की कथा चार पुल परिणाम २६६ १२४७ १० १४ चार पुरुषकुम्भकी उपमा १६६ ११२६.४ उ. ३.२६० १ जानने महात्मा । २७२ १२५१ ६००५ ४४२ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवॉ भाग १२१ विषय बोल भाग पृष्ट प्रमाण चार पुरुष फूल की उपमासे १७१ १ १२७ ठा० ४ उ० ४ सू० ३२० चार पुरुष मेव की उपमा से १७३ १ १२७ ठा ४३० ४ सू. ३४६ चार पुरुपार्थ १६४ ११५१ पुरुषा. चार प्रकार आत्म संवेद- २४३ १ २२० ठा ४ उ.४सू.३६१, सूय श्रु' नीय उपसर्ग के अ ३.उ १ नि गा ४८ चार प्रकार आध्यान के २१६ १ १६६ ठा ४उ १सू २४७,भाव ह अ. ४ ध्यानशतक गा.६-६ चार प्रकारका अनुयोग २११ १ १६० दश नि गा ३ पृ ३ चारप्रकारकापसत्यवचन२७० १ २४६ दश. अ. ४ सू ४ टी. चारप्रकारकाआचारविनय२३० १ २१४ दशा द ४ चार प्रकारका उपकरणो-२३५ १ २१६ दशा. ६० ४ त्पादनता विनय चार प्रकार का उपक्रम २४६ १ २३४ ठा० ४ उ० २ सू०२६६ चार प्रकार का काव्य २१२ १ १६० ठा० ४ उ० ४ सू० ३७६ चार प्रकार का तियश्च का२६१ १ २४५ ठा० ४ उ०३ सू.३४० आहार चार प्रकार का दान १९७ १ १५६ ध०र०गा ०७० टी. चारप्रकारकादेवकाधाहार२६३ १ २४६ ठा ४ उ ३सू ३४० चार प्रकार कादोष निर्धा-२३३ १ २१६ दशा० द. ४ तन चिनय चार प्रकार का धर्म १६६ ११५४ स० श० द्वा० १४१ चार प्रकार का नरक का २६० १ २४४ ठा०४३०३ सू० ३४० आहार चार प्रकार का प्रायश्चित्त २४५१ २२२ ठा०४३०१ सू०२६३ चार प्रकार का बन्ध २४७ १ २३१ ठा ४सू २६६ ,कर्म भा १गा.२ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ श्री मेडिया जैन ग्रन्थमाला विषय बोल भाग पृष्ट प्रमाण चार प्रकार का भारमत्य- २३८ १ २१८ दशा. द ४ वरोहणता विनय चार प्रकार का मनुष्य का २६२ १ २४५ टा० ४३० ३ ० ३८० आहार चार प्रकार का मेघ चार प्रकारका वर्ण संज्व- २३७ १ २१७ दना ६ ८ लनता विनय चार प्रकार का विक्षेपणा २३२ १२१५ दशा. द ४ विनय चार प्रकार का श्रुत विनय २३९ चार प्रकार का संक्रम २५० चार प्रकार का संयम १७६ १७४क ११२८ ०४ ० ४ ० १८७ चार प्रकार का सहायता- २३६ विनय चार प्रकार की दुःखशय्या २५५ चार प्रकार की भापा चारप्रकार की विनयप्रतिपत्ति १२४० २.४३ २०४ २६६ १२४८ ११.५.११ सू. १९१ २३४ १२९६ दशा.. १२१५ दशा द ४ १२३५ ठा. ४२१६, वर्म.गा.२१ ११३४ टा. उ. २. ३१० १ २१७ ना. ६.४ चार प्रकार के मत्रजितपुरुष १७६ चार प्रकार के शूर पुरुष चार प्रकार के श्रावक चार प्रकार क्रोध के चार प्रकार तीर्थ के चार प्रकार फूल पं. ३१७ १ १३० टा. ४ . ३ सु. ३०० १६३ ११५० या ४ ३.३ १८४ ११३८ . ४.३.२०७ रा.उ. १६४ ११२३ १२४६ . ३. १७७ ११३० १७- ११२६४.३३२० Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह,पाठवा भाग विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण चार प्रकार रौद्र ध्यान के २१८ १ १६८ ठा ४ उ १ सू २४७ चार प्रकार वस्तु के स्वपर-२१० १ १८८ न्यायप्र अध्या.७, रत्ना चतुष्टय के परि ४ सू १५ टी चार प्रकार श्रावक के १८५ १ १३६ ठा. ४ उ. ३ सू. ३२१ चार प्रकार संसारी जीवके१३० १६७ ठा ५सू ४३०,भ श २उ १सू ६२ चार प्रकारसे लोक की २६७ १ २४७ ठा०४ उ०२ सू०२८६ व्यवस्था चार प्रकार से श्रमण ११३१ दश म २ नि गा १५४-१५५, व्याख्या अनु सू.१५०गा १२६-१३२ चार प्रमाण २०२ १ १६० भ श.५उ ४, अनु सृ १४४ चारबन्धकास्वरूपसमझाने२४८१ २३२ ठा ४ उ २ सू २६६, कर्म के लिए मोदक का दृष्टान्त भा १ गा २ चारबोल देवता के मनुष्य-१३१ १ १०२ ठा ४ उ ३ सू ३२३ लोक में आ सकने के चार बोल देवता के मनुष्य-१३८ १ १०१ ठा. ४ उ० ३ सू० ३२३ लोक में न आसकने के चारखोल देवोंकीपहचानके१३७ १ १०१ व्यव भाष्य उ.२ गा ३०४ चारयोल नैरयिकमनुष्य-१४० १ १०३ ठा० ४ उ.१ सू २४५ लोक में न आ सकने के चार भंग कुम्भ के १६८ १ १२५ ठा ४ उ ४ सू ३६० चारभक्त कथा १५० १ १०८ ठा ४ उ. २ स २८२ टी. चार भांगेस्थण्डिल के १८२११३७ उत्त अ २४ गा १६ चार भाण्ड (पण्य वस्तु) २६४ १ २४६ ज्ञान ८ सू०६६ चार भावना १४१ १ १०३ उत्तभ३६ गा २६ १-२६४ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२१ श्री सेठिया जैन प्रत्यमाला विपय बोल भाग पृष्ट प्रमाण चार भावना २४६१ २२४ भायना (परिशिष्ट.) पं.भा.' ॐगे.३५.५१, न. चार भावना धर्मध्यान की२२३ । ठा.८३.१९२४ मग.१३. चारभावनाशुक्लध्यानकी २२८ १ २१२ जनगा : ५,८८,उय .. । १८०३,माय हम.४ पान चार भाव प्राण १६८ १ १५७ पान ५ 7 टी चारभेद आक्षेपणी कथा के १५४ १११२ टा.४ ३.२ म.२८, का अ.. निगा १४-१६ चार भेद उपमा संख्या के २.३ १ १६१ भनु म १४६ ५ २३१ चार भेद क्रोध के उपमा १५१ १ १२० पाप १८ १८८, मा महित २८६,,वर्म गा गा चार भेदगति के १३१ १ ११२३३२६, मा ४ गा १० चार भेद चतुष्पद नियंच- २७१ १ २५० ठा १३ ४ ... पंचेन्द्रिय के चार भेद दर्शन के १६० १ १५७ ८४733,मा. : चार भेद देवों के १३६ १ १.१ उमा ...२ चार भंद धर्म यथा पं. १५३ १ ११२ . . . . . चार भेद धर्मध्यान सं. २२० १२.१ ८. ८ र ?' चार मंद धर्मपान २२४१ २०८ : प्रा 37..यो.प्रा 1.1., मा.:..... चार भेद ध्यान के २१५ १११३ ४ ५ १,११५ . प्रा. ना. श्री . Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त चोल संग्रह, पाठवा भाग १२५ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण चार भेद निकाचित के २५२ १ २३६ ठा०४ उ० २ सू० २६६ चार भेद निधत्त के २५१ १ २३६ ठा ४ उ०२ सू०२६६ चारभेद निर्वेदनी कथा के १५७ १ ११५ ठा ४ उ २ स २८२ चार भेद प्रायश्चित्त के २४५ व १ २२३ ठा०४७० १ सू २६३ चार भेद बुद्धि के २०११ १५६ न सू.२६,ठा० ४३०४सू ३६४ चार भेद मतिज्ञान के २०० १ १५८ ठा० ४ उ० ४ सु० ३६४ चार भेद मान के उपमा १६० १ १३१ पन्न.१ १४सू १८८,ठा ४२ २ सहित सु २६३,कर्म भा १ गा १६ चार भेद माया के उपमा १६१ १ १२१ पन्न प.१४सू १८८या ४उ ? सहित स २६३,कम भा १ गा २० चार भेद मोक्ष मार्ग के १६५ १ १५३ उत्त अ २८ गा २ चार भेद लोभ के १६२ १ १२२ पन प १४सू १८८,ठा ४उ २ उपमा सहित सू २६३,कर्म भा १ गा २० चार भेद वादी के १६१ १ १४४ भश ३ ० उ १८ ८२४टी ,प्राचा, १अ १उ १ सू ३ टी, सूय ध्रुअ.१२ चार भेद विक्षेपणी कथा क१५५ १११३ ठा ४उ २स २८२, दश ३ नि गा १६७-१८ चार भेदशुक्ल ध्यान के २२५ १ २०६ ठा ४ सू २४७ ज्ञान प्रक ४२, क भा श्लो २११-२१६,प्राव ह भ ४ ध्यानशतक गा ७७-२२ चार भेद संवेगनी कथा के १५६ १ ११४ ठा ४३ २सू २८२ चारभद सामायिक के ११० १ १४३ ध मधि २ श्लो ३७टी ,विशे गा.२६७३-२६७७ चार भेद स्त्री कथा के १४४ ११०७ ठा ४ उ २सू.२८२ टी. Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ श्री मंठिया जैन ग्रन्थमाला wwwww n विषय चार मंगलरूप, लोकोत्तम, १२६क १६४ तथा शरण रूप हैं चार महाव्रत * चार मूल मृत्र चार मूलातिशय अरिहन्त भगवान् के चार मैत्र चार मैच वोल भाग पृष्ठ चार बाचना के अपात्र चार वाचना के पात्र चार वाढी चार विकया १८० ११३५ २०४ १ १६३ १२६ख १६६ चार राजकथा चार लक्षण रौद्र ध्यान फे२१० १२०० चार लिंग सार्त्तध्यान के २१७ ११६८ चार लिंग धर्मध्यान के २२११ २०५ चार लिंग शुक्ल ध्यान के२२६ ४ २११ चाग्वन जंबूद्वीप के मेक २७३ १२५१ पर्वत पर प्रमाण आप ४५.४६६ डा० ८३० १ ० २६६ स्थाका १ टी. १७२ ११२७ ८० ४३०४ २०६ १७४ १ १२६०४१४६ १५२१११० ट.३.२.२८२ टी टी ४३१९८२ उ८०३, भाव ए ध्यानका २६, १५. १७, १८, १० ३.२ ३०२ म. हिन्द आउने तीन ५. ३३.३०८ २०७१ १८५ टाउ २०६ ११८५ १६२ १ १४६ भाना २.१५.१३: १४० १ १०७ ८०५३०११०२५२ भारत में उनका व्यापान हुए सनाया राबाद जानाति यद पता है। dās daz paraggag, zæknifeen ung saan anu tra proj कमिटी दरवारी मान भी Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रा जनासान्त बाल सग्रह, श्राठवा भाग १२७ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण चार विनयप्रतिपत्ति २२६ १ २१३ दशा द ४ चार विश्राम १८७ १ १४१ ठा ४ उ ३ सृ ३१४ चार विश्राम श्रावक के १८८ १ १४२ ठा ४३.३ सू.३१४ चार व्याधि २६५ १ २४७ ठा ४२.४सू ३४३ चार शिक्षात्रत १८६१ १४० पचा १ गा २५-३२,प्राव.ह. अ ६ पृ ८३१ चारशुभ,चारअशुभ ग़ण २१३ १ १६१ सरल पिगल चार संज्ञा १४२ १ १०४ ठा०४३०४ सू ३५६,प्रब द्वा. १४५ गा. ६२३ चार संज्ञाओं का अल्प- १४७ १ १०७ पन प८ सू १४८ बहुत्व चार गति में चार सदहणा १८९ १ १४२ उत्तभ २८गा २८, अधि २ ग्लो २२ टी पृ ४३ चार मुख शय्या २५६ १ २४१ ठा०४ उ०३ सू ३२५ चार स्थान क्रोधोत्पत्ति के १६५ १ १२४ ठा ४३.१सू २४६ चार स्थान गुण प्रकाश के २५६ १ २४४ ठा ४ उ ४सू ३७. चार स्थान गुण लोप के २५८ १ २४३ ठा.४ उ ४ सू ३७० चार स्थान से हास्योत्पत्ति २५७ १ २४३ या ४ उ १ सू २६६ चारित्र की व्याख्या और ३१५ १ ३१५ ठा ५ उ २सू ४२८ ,विशे गा १२६०-१२८० चारित्र कुशील ३६६ १ ३८४ ठा ५ उ ३सू ४४५ चारित्र के भेद ४६७ २ १६४ चारित्र धर्म १८ १ १५ ठा.२उ १ सू ७२ चारित्र धर्म ६६२ ३ ३६२ ठा १० उ ३ सू ७६ . चारित्र धर्म के दो भेद २०११५ ठा २ उ १ सू. ७२ भेद Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ विषय चारित्र परिणाम चारित्र विराधना चारित्राचार चारित्रात्मा चारित्राराधना चारित्रार्य चारित्रेन्द्र चारित्रांपधान श्री सेठिया जैन मन्यमाला - Men चारित्र पुलाक चारित्रभेदिनी विकथा चारित्र मोहनीय २८ १२० चारित्र मोहनीय के दो भेद २६ १२० चारित्र विनय ४६८ २ २३० चिन के दोष बोल भाग पृष्ठ ७४६ ३४२८ १. १३ . १८२ ३६७ १ ३८२ ठाम् ४४५, भन ११३१ ५३२२२६७ ठा. ७ ३ ३ ०६६६ टा २३.४५ १०४, कर्म.म गर्म भा १ मा १७ २०, ममाण १०८३१३, पप, ८७ १६३ ३२४ १३३२ ०७३३४९ अघि टीपू. १८१ मग. 3 २०७० श्लो १२० भ, २०३३ १२३१०. ८६० ६३ ३६६ ८६ १ ६३ दा ३ . १०० ७८५ ४२६७.३१ निगा २० 21. 1 3.1117 ६२ १ ६६ ६६८ ३ २५७ १०.७३८ ४६७ २ १३० चार्वाक दर्शन चालीम दाता दायक दोष ७१४६ न. ४० से दूषित चालीम भेद खर पृथ्वी ६८७७ १४५ १ १ १९ चिकित्सा दोप ८६६ ५ १६५ प्र こ दीपू, मिनि sfi Fenix, 4-1.13.1= ६०३३ १२० ८. भा. २१२०१९ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, श्राठवाँ भाग १२६ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण चित्तसमाधि के दस स्थान ६७४ ३ २६२ सम १०, दशा द. ५ चिन्तन के सात फल ५०७ २ २३५ था प्र. गा.३६३ चिन्ता स्वम दर्शन ४२११४४४ भश १६ उ ६ सू ५७७ चिलाती.पुत्र की सम्यक्त्व-८२१ ४ ४३४ नवपद गा १४टी सम्यक्त्वाप्राप्ति की कथा धिकार, ज्ञा अ १८ चिह्न छः नकारे के ४६१ २ १०२ उत्तम १८गा ४१नमुचिकुमार की कथा (हस्तलिखित) चुलनीपिता के व्रतभंग का६८५ ३ ३१३ उपा अ० ३ टी कारण रक्षा-परिणाम नहीं पर हिंसा व क्रोध हैं चुलनी पिता श्रावक ६८५ ३ ३११ उपा ध्र ३ चुल्लशतक श्रावक ६८५ ३ ३१५ उपा० अ० ५ चूर्ण दोष ८६६ ५ १६५ प्रव गा ५१८,ध अधि ३श्लो २२टी पृ.४०,पि नि गा ४०६, पि विगा ४६,पचा १३ गा १६ चूर्ण भेद ७५० ३४३३ ठा १० स ७१३टी ,पन्न प १३ 'चेइय'शब्दपर टिप्पण परिशिष्ट ३ ४५७ उपा (प्र) व हस्तलिखित प्रतिया चेटक निधान की कथा ६४६ ६ २७६ न सू २७ गा ६५ टी. श्रौत्पत्तिकी बुद्धि पर चोरी का स्वरूप ४६७ २ १६७ १ चोर की प्रसूति अठारह ८६६ ५ ४१५ प्रश्न प्राश्रवद्वार ३ सृ.१२ टी चौतीसअतिशय अरिहतकेह७७ ७६८ सम ३४, स श द्वा ६७ चौतीस अस्वाध्याय १६८ ७ ३५ ठा ४सू २८५, ठा १०सू ७१४, प्रवद्वा २६८गा १४५०-७१, व्यव.भाष्य उ.७ गा २६६ ३१६,प्राव ह प ४गा १३२१-६० १ चोर को चोरी के लिए प्रोत्साहन देना तथा अन्य किसी प्रकार से सहायता देना। Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० श्री गठिया जैन PAT rrrrm ammu-~~~~~ विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण चौतीम क्षेत्र जंवृद्वीप में १७८ ७ ७१ गम. १८ तीर्थोत्पत्ति चौदह अनिचार ज्ञान के ८२४ । १४ मा.द. 420 चौदह गुणस्थान ८४७ ५ ६३ कर्ममार,.दा. , चौदह जीत्र देवलोक में ४८ ५ ११५ . . . उपन्न होते है चांद द्वार चरमाचरण के ८४३ ५ ४२ 11037 चौदह द्वार पहमापढम के ८४२ ५ ३८ ॥ १८ : १ १ चौदह द्वार मप्रदेशी ८४१५३४ : 14 अमदेशी के चौदह नाम माया के ८३६ ५ ३१ गम चौदह नाम लाभ के ८३७ ५ ३२ गमक चौदह नियम पावर के ८३१ ५ २३ :Truth, चादर पूर्व ८२३ ५ १२ न . १.१.) घौदह प्रकार का उपकरण८३३ ५ २८ चादहमकार का दान ८३२ ५ २६ निगा.... चौदह प्रकार अशुभ नाम-३ ५ ३३ १.० ३.१०... कर्म भांगा जाना है चार प्रकार शुभ नाम-८३८ ५ ३३ . . . कर्म गोगा जाता है चीवर बात माघकालिए ८३४ । २६ . :.:. पपलानीग नाटत भेद यजीद के ८२७ ५ १६ . . . . . . Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग १३? - - - विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण चौदहभेदाभ्यंतरपरिग्रह ८४० ५ ३३ वृ०० १ गा८३१ चौदह भेद जीवों के ८२५ ५ १७ सम १४,प्राव ह प ४४ ६४६ चौदह भेद श्रुतज्ञान के ८२२ ५ ३ नसू ३८-४४, विशे गा ४५४ चौदह महानदियाँ ८४४ ५ ४५ सम० १४ चौदह महाखम तीर्थङ्कर व ८३० ५ २२ भश १६उ ६ मू५७८,ज्ञा चक्रवर्ती के जन्म सूचक श्र.८ सू ६५, कल्प सू ४ चौदह मागेणास्थान ८४६ ५ ५५ कर्म भा ४ गा :-१४ चौदह रत्न चक्रवर्ती के ८२८ ५ २० सम० १४ चौदह राजू परिमाण लोक८४५ ५ ४५ प्रव द्वा.१४३, तत्त्वार्थ अध्या ३स ६टी,भ श ५ उ स २२६ , भ श १३३ ४ सू ४७६.४८० चौदह लक्षण अविनीत के ८३५ ५ ३० उत्त.अ ११गा ६-६ चौदह स्वप्न मोक्षगामी ८२६ ५ २० भ० श०१६ उ०६ सू० ५८० आत्मा के चोपन उत्तम पुरुप १००६ ७ २७७ सम० ५४ १ चौमासी अनुद्घातिक ३२५ १ ३३४ ठा ५ उ० २ सू०४३३ २ चौमासी उद्घातिक ३२५ १ ३३४ ठा०५ उ०२ सू० ४३३ चौमासे के पिछले सित्तर ३३७ १ ३४७ ठा० ५ उ० २ सू० ४१३ दिनों में विहार के कारण चौमासे के प्रारंभिकपचास ३३६ १ ३४७ ठा० ५ उ० २ सू० ४१३ दिनों में विहारके कारण चौवीसगाथाविनयसमाधि:३३६ २०१ दश० अ० ६ उ० २ अध्ययन के दूसरे उद्देशे की चौबीसगाथासमाधिश्र०की९३२ ६ १६७ सूय श्रु० १ २०१० १ चार मास का गुरु प्रायश्चित्त । २ चार मास का लघु प्रायश्चित्त । - - Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री गदियानन्यमाना विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण चोरीम जान्युत्तर ६३६६ २०६ पनी भया काग न्याय मायामा चौबीयनीय दूसरोवत क्षेत्र ३१ ६ १६७ सम. ५८, . हा ७ गा. के. आगामी उत्मामी के चौबीस नीर्थदर वनक्षेत्र २८ ६ १७६ ना १५६, प्रा हा . के वर्तमान अवसर्पिणी के गा २९६ चौबीम नीर्थङ्कर भरत क्षेत्र १३, ६ १६६ गम० ११८. प्रा० द्रा० के आगामी उत्पपिणी के गा० ३२६ चोवीसनीधदर भरत क्षेत्र १२७६ १७३ प्ररा गा. " की गन उन्मर्पिणी के चौबीमतीर्थकर भरत क्षेत्र:२६ ६ १७७ मा १४, माना के गर्नपान अवसर्पिणी के 4: 417 म मा ३१में ग.न.प्रा ." चावीमतीर्थनगंक सचा-१२६ ६ १७८ गम.१४७,५३, निग२०६ दस वालों का यंत्र तथा उन स:-मानना 11. सम्बन्धी अन्य तेईम बोल म.प्रा.मा... নানা ঘ १३४६ २०४८दीम चौवीम धान्य : १३३ ६ २०५ म. ; RE द: सग प्रत्याख्यान १८२२६ यानि 11 पालने क. प. 4 . लायरमभूमि नंबटीप की४३५ २४१ २८२१.. . १४.. . REPTER TO मी Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आउवों भाग विषय बोल भाग पृष्ठ छ: अप्रमाद प्रतिलेखना ४४८ २५२ छ: अमशस्त वचन ४५६ २६२ छ: आगार पोरिसी के छः आगार समकित के प्रमाण ठा ६५०३, उत्त २६गा २५ ठा ६ उ. ३५२७, प्रवद्वा २३५गा १३२१,बृ(जी) उ ६ श्राव ह० ६८५२, प्रवद्वा ४ उपा ८१०, अधि २श्लो. २२५.४१ १८, आव ह थ . ६ पृ छः आभ्यन्तर तप छः आरे अवसर्पिणी के ४३०२२६ जवक्ष २सू १६-३६, टा ६ उ ३ ४७८ २ ८६ उव सू २०, उत्तम. ३०गा ३०, प्रवद्वा ६गा २७१,ठा ६सू ५११ छः प्रारे उत्सर्पिणी के सु४ε२,भश ७३. ६ सू २८७ ज वक्ष २सू ३७-४०, उा ६ उ ३ सू४६२, विशे गा २७०८-१० आव ६. छः आवश्यक छः इत्वरिक अनशन उत्तम ३० गा ६-११ अनु सू ७० ठा ६उ ३ सू५२३ वृ हो छः उपक्रम छः ऋतुएं श्रार्य छः ऋद्धि प्राप्त छः कर्त्तव्य श्राचार्य के १ छः कल्प पलिमन्यु छ: कल्पस्थिति छःकाय ४८३ २६७ ४५५ २ ५८ ४७६ २६० ४७७२८७ ४२७ २ २५ ४३२ २ ४० ४३८ २ ४२ ४५१ २ ५५ ४४४ २ ४७ ४४३ २ ४५ ४६२ २६३ छः काय का अल्पबहुत्व ४६४ २ ६५ छः काय की कुलकोटियाँ ४६३ २६४ १ कल्प यानी साधु के आचार का मन्थन अर्थात् घात करने वाले । . ४३१ २ ३५ १३३ ठा ६४६ १, पन्न. प १ सू ३७ ठा ७३ सू ५७० टी ठा ६उ ३५२६, वृ (जी) उ ६ ठा ३३४ सू २०६,ला. ६उ ३ सू५३०, वृ (जी) उ ६ ठा ६उ ३ सू ४८०, दश प्र ४, कर्म भा ४गा. १० जी प्रति २६२,पन्न प ३ द्वा ४ प्रवद्वा १५० गा ६६३-६६७ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गरिया जाना विषय बोल भाग पृष्ट प्रभाग इ.कारण तानावरणीय ४४० २४४ म.ग.- ३ ६. ११ कर्म बांधन के द: कारण दर्शनावरणीय४४१ २ ४४ भ.२ ८ ३६ र २५६ कर्म बॉबनेक कारण मोहनीय कर्म १४२ २ ४४ भाग-2. र २४६ बॉधन के कारण साधक याहार४८४ २८ पनि मा . ... गा ३३ छःकारण साधु के आहार-४-५ २८ मिनिना, न्याग के छः कारण हिमा के ४६१ २६३ बाय ११ १३.५ वान्टकाटीजीवनिकायकी४६३ २ ६४ प्रहा..FEE" छः क्षुद्र पारगी ४६७ २ ६७ ठा! 703" ::: छ गण गण धारक के १५० २५४ टा . " छः गण पावस १५२ २ ५६ गा. दाचित नकारक ४३? २ १०२ 377: ग... नीनिकाय ४६२ २६३ १३% १५.!!, मो वानीनिकायकीकुलमाडी४६३ २ ६१ प्रा.१०. . ." दर्शन दम चोला १२ १३ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्वान्त बोल संमह, आठवाँ भाग विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण __ छः पर्याप्ति ४७२ २ ७७ पन्न प १ सू १२टी.,भ श ३ उ १२ १३०,प्रव द्वा २३२गा १३१७-१८, कर्म भा १गा ४६ छःपर्व अधिक तिथि वाले ४३४ २ ४१ ठा ६ सू ५२४,चन्द्र प्रा १२ छःपर्व न्यूनतिथि वाले ४३३ २ ४० ठा ६ उ ३सू ५२४, चन्द्र प्रा १२,उत्त ग्र, २६ मा १५ छः प्रकार का अवधिज्ञान ४२८ २ २७ ठा ६सू ५२६, न.सू ६-१५ छः प्रकार का आयुबन्ध ४७३ २ ७६ भ श ६उ ८ठा ६ उ ३सू १३६ छःप्रकार का प्रश्न ४६४ २ १०३ ठा ६ उ ३ सू० ५३४ छःप्रकारकामोजनपरिणाम४८६ २ ९८ या ६ उ ३ सू ५३३ छः प्रकार का विवाद ४६३ २ १०३ ठा ६ ३ ३ सू ५१२ छःप्रकार की गोचरी ४४६ २ ५१ टा ६सृ ५१४,उत्त अ३०गा १६,प्रव द्वा ६७गा ७४५,ध. अधि ३ श्लो २२ टी पृ३७ छः प्रकार के मनुप्य ४३७ २ ४१ ठा ६ उ ३ सू ४६० छः प्रकार से झूठा कलंक ४६० २ ६२ वृ (जी) उ ६ सू २ लगाने वाले को प्रायश्चित्त छः प्रतिक्रयण ४८० २ ६४ ठा. ६ उ ३ स ५३८ १ छः प्रत्यनीक ४४५ २ ४६ भ श.८ उ८ सृ ३३६ छः प्रत्याख्यान विशुद्धि ४८१ २ ६५ प्राव ह नि.गा १५८६४ ८४६, ठा ५ उ ३ सू ४६६ टी छः प्रमाद ४५६ २ ५६ ठा ६ उ ३सू ५०२ छःप्रमाद प्रतिलेखना ४४६ २ ५३ ठासू ५०३,उत्त अ २६गा २६ छः प्रश्न परदेशी राजा के ४६६ २ १०७ रा सू ६३-७७ छःबात छनस्थ के अगोचर४८६ २ १०१ ठा० ६ उ०३ सू ४७८ १ शत्रु की तरह प्रतिकूल प्राचरण करने वाला । Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ኃ፡፡ श्री सेटिया जैन ग्रन्थनाला विषय बोल भाग पृष्ठ हवादर वनस्पतिकाय ४६६ २६६ द.म.४ ०१ ममाण यात्रा तय ४७६ २८५ उत्तम. ३०गाहा ZIZIE,STALIM,Kan २०६३०३ १०५०१ ०६ ३.३ ०४८५ ८.६ ३०३ ०४६ 3 धनु १ गम् vàɔ, bû m, dar o dete wafuaság, ४५७ २६० लः बोल उन्माद के चाबील दुर्लभ ४३६ २ ४३ द्रा बोल में कोई समर्थ नही ४६० २ १०१ ऋभाव ४७२ २ ८१ भावना समकित की ४५४ २ ५८ भेद अर्थावग्रह के ४२६ २ २८ भेद विरुद्धोपलब्धि ४६५२१०४ रत्ना रूप हेतु के भेद पुल के भेद पृथ्वी के दाभेद प्रतिलेखनाविधि मनुष्य क्षेत्र ४३६ २ ४१ लाभ चंदना से होनेवाले४७५२८४ : लेश्या ४७१ २५० 9.55 * = <* विष परिणाम संस्थान अजीव के न ३० ४२६ २ २५ ४६५ २ ६५ ४४७ २ ५२ भेद माकृत भाषा के ४६२ २१०२ प्र T तत्वार्थ भव्य १.१ माम गा जी पनि सु. ११ Mi ४८५ २ १०० ट ४६६२६६ ठा ३०३ ० ० प्रा. द.१०० • १९३३ मे ፩ ነ ***. 2 1412779३. (1.7.1 3,27 4,141 भागा K दरो भग४९३६१२४५. १ पाँ Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग १३७ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण छः संस्थान जीव के ४६८ २ ६७ ठा ६सू.४६५,कर्म.भा.१गा ४० छःसंहनन ४७० २ ६६ पनप २३सू २६३, ठा ६उ ३ सू ४६४,कर्म भा १ गा.३८,३६ छः सामान्य गण ४२५ २ १६ द्रव्य त.प्रध्या ११, प्रागम छःस्थान अनात्मवान् (सक-४५८ २ ६१ ठा ६ उ ३ सू ४६६ पाय) के लिए अहितकर छःस्थान समकित के ४५३ २ ५७ ध अधि २श्लो २२टी.पृ ४६, प्रव द्वा १४८गा.४१ छड्डियदोप(आहारकादोष)६६३ ३ २४६ प्रब द्वा ६७ गा ५६८, पि नि गा ५२०, ध अधि ३ श्लो २२टी पृ ४१, पचा १३गा २६ छत्तीसगाथाधर्माध्ययनकीह८१ ७ ८७ सूय अ. छत्तीस गुण प्राचार्य के १८२ ७ ६४ प्रव द्वा ६४ गा ५ ४१-५४ छत्तीस प्रश्नोत्तर १८३ ७ ९८ छमस्थआठवातेनहीं देखता ६०२३ १२० ठा ८ उ : सृ ६१० छद्मस्थ के परिपह उपसर्ग ३३१ १ ३४० ठा.५ उ १ सू. ४०६ सहने के पाँच स्थान छद्मस्थछःवातें नहीं देखता४८९ २१.१ टा ६ उ ३ सू ४७८ छमस्थ जानने के स्थान ५२३ २ २६० ठा ७ उ ३ सू ५५० छद्मस्थ दस बातों को नहीं ७१६ ३ ३८६ ठा १० उ ३सू ७५४,भ.श ८ देख सकता उ २ सू ३१७ छमस्थ पाँच बोल साक्षात् ३८६ १ ४०६ ठा ५ उ ३ स ४५. नहीं जानता छद्मस्थ सात बातें जानता ५२५ २ २६१ टा. ७ उ ३ सृ ५६५ और देखता नहीं है Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मेठिया जैन मन्यमानी चिपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण ट्रमस्थ मरण ८७६ ५ ३-३ नग मादा ११ मा ... हन्द के तीन भेद ५४. २ २७५ अनु. मू.१२. गा१२, , दगा छन्दगा समाचारी ६६४ ३ २५० भ२५ १८.18. उ ३ म तम गा३,प्रा.दा..गा. बप्पन अन्तर द्वीप १०११ ७ २७७ पनप १४ ३७८१.पपदा २६ । गा १४२. मे १४२८, जी. प्रति. १०८-113 छब्बीस बोलों की मर्यादा २४३ ६ २२५ उपा. न. ११.६, भ.नि. 2. टी.पृ८० प्रति बच्चीस वैमानिक देव ६४४ ६ २२७ पा. ११३८, ३ गा३.७.२१४03,१ छियालीस भद गणित 66 ७ २६३ १३ १ २४. 4] योग्य काल परिमाण के गु११३ बियालीस मातृकानर 6 ७ २६४ गग. ४६ वाली लिपि के देद मृत्र चार २.५ १ १८० दोपस्थापनिय चारित्र ३१५१ ३१७ टा. ३. ५८, मग. १५ोगा.... देदोपण्यापनीय कल्प- ४४३ २४५ 21.33 २०',,.. म्पिनि बाटी गतागत पं.१८द्वार ८ ५ ३६८ ५.१.६ रn मतपीलगगफम्मेवा - ८६० ५ ११५ aury,M.ग.८४, ५ डान Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्वान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाणा जड़कर्म कैसे फल देता है ? ५६० ३ ४८ कर्म भा १ भूमिका जनपद सत्य ६६८ ३ ३६८ ठा.१० सू ७४ १,पन्न प ११सू. १६५,ध अधि ३श्लो ४१११२१ जन्म की व्याख्या औरभेद ६६ १ ४६ तत्त्वार्थ अध्या २ सू ३२ जमाली की कथाऔरउसका५६१ २ ३४२ विशे गा २३०६-२३३२,भ मत शंकासमाधान सहित श६३३३,माय.इ.स.११ ३१२, भश.१ उ १ सू० ७ जम्बूद्वीप ४१२ ठा १सू ५२,तत्त्वार्थ प्रध्या ३१ ६ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति का वर्णन७७७ ४ २२५ जम्बूद्वीप में चन्द्र सूर्यादि ७६६ ४ ३०० सूर्य प्रा १६ जम्बूद्वीप में छःअकर्मभूमि ४३५ २ ४१ ठा ६ उ ३ सू ५२२ जम्बूद्वीप में तीर्थङ्करोत्पत्ति६७८ ७ ७१ सम. ३४ के चौतीस क्षेत्र जम्बूद्वीपमेंमहानदियाँसात५३६ २ २७० ठा ७ उ. ३ सू० ५५५ पश्चिम की ओर जाने वाली जम्बूद्वीपमेंमहानदियॉसात५३८ २ २७० ठा ७ उ ३ सू. ५५५ पूर्व की ओर जाने वाली जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत पर २७३ १ २५१ ठा० ४ उ० २ सू० ३०० चार वन हैं जम्बूद्वीप में वर्षधर७ पर्वत५३७ २ २७० सम ७,ठा ७३ ३ सू.५४५ जम्बूद्वीप में सात क्षेत्र ५३६ २ २६६ ठा ७ उ.३ सू ५५५, सम ७, तत्त्वार्थ अध्या.३सू १० जलचर ४०६ १ ४३५ पनप १सू ३३,उत्त प्र. ३६ जल प्रवेश मरण ७६८४ २६६ भ.श २ उ १ सू१ जल्लोषधि लब्धि ६५४ ६ २६० प्रव द्वा २७. गा.१४६२ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० श्री संठिया जैा मामा विषय बाल भाग पृष्ट प्रमाण ५ जांगमिक वस्त्र ३७४ १३८६ टा० । उ• ४४६ जागरिका तीन ६२४ ३ १६८ गा... 3. ३६ जाति की व्याख्या और २८१ १ २५६ १३.५.२३३.२ १.२६३,भा, द्वा१८५ गा.१०६.. जानि नाम निधत्तायु ४७३ २७ भ.ग.३८२६०, भंद जातिमद ७०३ ३ ३७४ ठा.1017 ७१. टा.ग.' जातिस्मरणसं समकितमाप्ति८२१ ४ ४२३ मापद गा. 15 जात्यार्य ७८५ ४ २६६ निगा 30: • जान्युत्तर चौवीम ६३६६ २०६ प्र.मी. भा. प्र.भा.न्यायद माया जितेन्द्रियता ७६३ ३ ४४५ १.३३१ जिनकल्प ५२२ २ २५३ शिं गा." जिनकल्प स्थिति ४१३ २ ४७ टा . z: जिनकल्पी की भावनाएं५२२ २ २५५ निगे. गा५ जिनकपी गथालन्दिय, ५२२ २ २६. ग. गा" जिन तीन ७४ १५३ . .. जिनदत्त,मागरदत्तकीकथा:००५ ४३६ नम: जिनदास कुमार की कथाह१० ६ ५६ प्र. जिनपाल,जिनरक्षाकया.. ५ ४५३ ... 3 जीन व्यवहार ३६३ १ ३७७ यामु., म...: १ मीमग या सामन। १ ३२ परिजनो। } RET नितारी गगन पर गाता का गया । Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग १४१ जीव विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण जीभ के संयम परगाथा ६६४ ७ २१२ जीव ७ख १ ४ ठा २स १०१,तत्त्वार्थ अध्या २ १३० १९८ ठा.५सू ४३०,भ श २3 १सू ६१ जीव और कर्मका संबन्ध ५६० ३ ४७ विशे गा १६३५-१६३६ जीव और पुद्गल के लोकसे२६८ १ २४७ ठा• ४ उ० ३ सू ३३७ बाहर न जाने के४कारण जीव और शरीर के भेदा-७७५ ४ ३४ विशे गा १६ ४५-१६८६ भेद के विषय में गणधर वायुभूति का शंका समाधान जीव कमेकाअनादि संबंध५६०३ ५१ विशे गा १८१३-१८१४ जीव के चौदह भेद ८२५ ५ १८ सम.१४,प्राव इ अ.४१ ६४६ जीव के चौदह भेदों का ८२५ ५ १८ पन प ३द्वा.३,१८,१६,जी प्रति अल्पबहुत्व ४ सू.२२५ प्रसं भा २ जीव के छः नाम १३० ११८ भ श २ उ १सू १ जीव के तीन भेद ६६ १५० भ श.६ उ ३ सू २३७ जीव के पाँच भाव ३८७ १ ४०७ कर्म भा ४गा ६४-६८,अनु स १२६, प्रवद्वा २२१ गा. १२६० से १२६८ जीव के संस्थान छः ४६८ २६७ ठा ६सू ४६५,कर्म भा १गा ४० जीव तत्त्व के ५६३ भेद ६३३ ३ १७८ पन प.१, उत्तय ३६, जी जीव दस प्रकार के ७२६ ३ ४१४ ठा १० उ ३सू ७७१ जीव दम प्रकार के ७२७ ३ ४१५ ठा.१० उ ३ सू ५७१ जीव द्रव्य ४२४ २ ३ भागम , उत्त अ ३६ जीवन की अस्थिरता पर ६६४ ७ २२५ दस गाथाएं Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ श्री मेठिया जैन ग्रन्थमाला विपर बोल भाग पृष्ठ प्रमाण जीवनिकाय छः ४६२ २६३ टाउ.१.४८. दगम र. फर्म. मा ४ गा १० जीवनिकायकीकुलकोडी४६३ २ ६४ प्रव हा.१५० गा.६६३.६ : " जीव परिणाम दस ७४४ ३ ४२६ पत्र.१, १२, ठा.१०१२ जीव प्रादेशिक दृष्टि निगव५६१ २ ३५३ विगै गा २३३२. २५ जीवमिश्रिता मत्यामृपा ६९४ ३ ३७. टा.4.1पाप ११. १६.मधि,न.४५, जीव सभी सात प्रकार के ५५० २ २६२ टा.७३ १४६२ जीवहाभारीकसेहोता८३ ७ १२० जग17६ मृ ७२ जीवाजीवमिश्रिता सत्या-६६ ३ ३७१ टा.१० र१.५४ १,१.१ ११. मृगा १६.प.वि: 21 जीवानीवाभिगम मूत्र का ७७७ ४ २१६ संक्षिप्त विषय चरणेन जीवा दिनातत्वों के नानसे-११ ४ ३५२ धाम. गा. १२वालों की परम्परामाप्ति जीवाधिकारण ५० १३० नपाय... ग. " जीवास्निकाय प्रकार २७७ १२५६ ८.१ ३.ग. जीवों की समानता ४२४ ० ८ भागत. जीवों क. चौदह भेद ८२५ । १७ 13 14,413 at जीवों पं. चौवीस दण्दक ३१ ६ २.१ टीमनी , जम्भश देवों के दस भद ७४२ ३ ४२. मेंग ११३८ जैन दर्शन १६७ २१५६ जनधर्मवीचारविशेषनाएं ४६७ २२१० ४६७ २२८८ जैन साधु Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह,पाठवा भाग १४३ ज्ञान विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण जैन साधु के लिए मार्ग- ७८१ ४ २५५ उत्तअ २१ गा.१३-२४ प्रदर्शक वारह गाथाएं ज्ञात, ज्ञातपुत्र ७७० ४ ४ जैन विद्या वोल्यूम १ न १ ज्ञाता के नौं भेद ६४१ ३ २१२ प्राचा.श्रु १ अ उ ५सू ८८ ज्ञाताधर्मकथांगकी१६ कथाह०० ५ ४२७ जाताधर्मकथांग के दोनों ७७६ ४ १८५ श्रुतस्कन्धों का विषयवर्णन ११ ११. पन १ २६ सू ३१२ ज्ञान कुशील ३६६ १ ३८४ ठा ५ उ ३ सू ४४५ ज्ञान के चौदह अतिचार८२४ ५ १४ श्राव.ह प्र ४ पृ ५३० ज्ञान के दो भेद १२ १ १० ठा २३ १सू ७१, न सू २ ज्ञान के पॉच भेद ३७५ १ ३६० या ५उ ३सू ४६३, कर्म भा , गा ४, न०८ १. ज्ञान गर्भित वैराग्य ह० १ ६५ क भा २ श्लो ११८-११४ ज्ञान नारकियों में ५६० २ ३३७ जो प्रति ३ सू ८८ ज्ञानपरिणाम ७४६ ३ ४२७ ठा १०७ ३ सू ७१३,पन्न प १३ ज्ञान पुलाक ३६७ १३८२ ठा५सू ४४५, मश २५उ ६ ज्ञान मार्गणा और भेद ८४६ ५ ५८ वर्म०मा ४ गा. ११ ज्ञान विनय ४९८ २ २२६ उव सू २०, भश २५ उ ७सू ८०२,ठा ७उ ३ सू५८५,ध. अधि.३ श्लो ५४ टीपृ.१४१ ॐ ज्ञान के चौदह अतिचारों में सुदिन्न दुपडिच्छिय दो अतिचार है । इनका अथ इस प्रकार है सुटठुदिन्न-शिष्य में शास्त्र प्रहण करने की जितनी शक्ति है उससे अधिक पढाना। यहा सुछ शब्द का अर्थ है शक्ति या योग्यता से अधिक । दुछपडिच्छिय-मागम को बुरे भाव से ग्रहण करना Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४१ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण ज्ञान विराधना ८७ १६३ सम ३ ज्ञान वृद्धि के दस नक्षत्र ७६२ ३ ४४४ मम.१०zा १०३ ३ सृ५८१ ज्ञान संख्या ६१६ ३ १४३ भनु सू १४६ ज्ञानाचार ३२४ १३३२ ठा.५उ २सू ४३२५.अधि: ग्लो ५४ पृ. १४० ज्ञानाचार पाठ ५६८३ ५ ध.अधि.१श्लो १६ टी पृ.१८ जानातिशय १२६ख १६७ स्या का.१ टी. ज्ञानात्मा ५६३३६६ भश १२ उ १०१ ४६७ ज्ञानाराधना ८६१ ६३ टा ३ उ ४ सृ १६५ ज्ञानार्य ७८५ ४ २६६ ६ उ १ नि गा ३०६३ . ज्ञानावरणीयकमेकाअनुभाव ५६०३ ५६ पन प २३ स २६२ ज्ञानावरणीय कर्म के भेद ३७८ १ ३९३ ठा ५सू ४६४,फर्म.भा१.गा. जानावरणीय कर्म के भेद ५६० ३ ५६ कर्म.भा १गा. ६,५४.भाश. और उसके बन्ध के ८ उसृ३१,पान पर छः कारण २६३-६४,तत्त्वार्थ अध्या पस ज्ञानावरणीय कर्म बॉधने ४४० २४४ मश८३ ६ २. ३५१ के छः कारण ज्ञानेन्द्र १२ १ ६६ ठा ३ उ.. स. 16 ज्ञानोपघात ६६८३ २५७ ठा. १० उ ३८ ७३८ ज्येष्ठ कल्प ६६२ ३ २३६ पचा. १७ गा. २६-31 ज्योतिषशास्त्र की तरक्या८३ ७ १२६ शाम ८ र ६ जैनशास्त्रों में भी पुष्यनक्षत्र की श्रेष्ठता का वर्णन है? ज्योतिपी देव कपाँच भेद ३६१ १ १२३टा. रा.४० १,जी.प्रनि ३स १२० ज्वलनप्रवेशमरण ७९८४ २88 भश २३ १ स.. Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवाँ भाग १४५ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण झूठ बोलने के आठ कारण५८२ ३ ३७ साधुप्र. महाव्रत २ झूठा कलंक लगाने वाले ४६० २ ६२ वृ (जी) उ. ६ सू २ को प्रायश्चित्त ठाणांग (स्थानांग)सूत्र ७७६ ४ ७६.११४ का संक्षिस विषय वर्णन ढाई द्वीप में चन्द्र सूर्यादि ७८६ ४ ३०२ सूर्य प्रा १६ ज्योतिथी देवों की संख्या णाप, णायपुत्त ७७० ४ ४ जैनविद्या वोल्यूम १ न। १ तज्जात दोष ७२२ ३ ४०६ ठा १० उ.३ सू ७४३ १ तज्जात दोष ७२३ ३ ४११ ठा.१०उ ३ सु ७४३ २ तज्जात संसृष्ट कल्पिक ३५३ १ ३६८ ठा ५ उ १ सृ. ३६६ तत्काल उत्पन्नदेवष्टकारणों१३६ १ १०१ ठा ४ उ ३ सु ३०२ से मनुष्य लोक में आता है १ शास्त्रार्थ के समय प्रतिवादी के जाति,कुल आदि के दोषों को निकाल कर उस पर व्यक्तिगत आक्षेप करना । २ अभिग्रह विशेष, जिसके अनुसारे साधु तभी श्राहार लेता है जब कि दिये जाने वाले भाहार विशेष से दाता के हाय और भाजन खरडे हुए हों। Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण तत्काल उत्पन्नदेव४कारणों१३८ १ १०१ टा.३ उ ३ सू ३२३ सेमनुष्यलोक में नहीं आता है तत्काल उत्पन्ननरयिकचार१४० १ १०१ ठा०४३० १ २४५ वोलों से मनुष्य लोक में नहीं पा सकता तत्त्व की व्याख्या और भेद ६३ १ ४४ ध.वि.२लो २१-२२१३१, यो प्रका २ श्लो ४-११ तत्त्व नौ ६३३ ३ १७७ नव० गा १,ग.53 ३.सू.६६५ तथाकार समाचारी ६६४ ३ २५० भश.२५३.७ सू८०१,ठा १० उ.३सू ७४६,उत्तय २६गा३, प्रब द्वा १०१गा ७६. १ तथाज्ञानानुयोग ७१८ ३ ३६५ टा १० ३ ३ मृ ७२५ तदुभयधर पुरुप ८४ १ ६२ या ३ उ. ३ १६६ तदुभयागम ८३१ ६१ अनु. स्मृ १४४ तदुभयाचार ५६८ ३६ अधि.१लो.१६टी.पृ १८ तद्धितज भावप्रमाण नाम ७१३ ३ ४०२ अनु स् १३० केटभेद७१६ ३ ४०२ अनुस १३० तद्भव मरण ७९८४२६६ भाग २ उ १६ तव मरण ८७६ ५ ३८३ नम १७.प्रयदा १५७ १.८६ तन्दुलक्यालियपइण्णा ६८६ ३ ३५४ द प. तप ३५१ १३६६ ठा ५ स. ३६६, प्रा.गा.५५४, घअधि. लो ४६१. ५२७ ६६१ ३ २३४ ना. गा.२३, मम. १०, गा. भाक.८ तप ५ बस्तुरे यथार्य माप चिार। Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग १४७ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण तप आचार ३२४ १ ३३३ ठा.५ उ.२ सू.४३२,ध अवि ३ लो ५४ पृ १४० तप आदि के फल की दस ६६७ ३ २५३ ठा १० उ ३ सू. ४५६ प्रकार की इच्छा तपः कम ७६० ३ ४४३ प्राचा.प्र २उ १ नि गा १८३ तप के बारह भेद ४७६, २८५, उत्त य ३०, उव सू १९,२०, ४७८ ८ ६ ठा.६ उ ३सू ५११,प्रव. द्वा ६ गा २७०-२७१ तप के विषय में ११ गाथा ६६४ ७ २०२ तप धर्म १६६ ११५५ भ.श २५३ ७,उत्त श्र ३० गा८ तप पद ७०३ ३ ३७४ ठा १० सू७१०,ठा ८सू ६०६ तपसमाधि के चार भेद ५५३ २ २६४ दश अ ६ उ. ४ १ तयालीस प्रवचन संग्रह १४७ १५१ उत्त दश ,माचा सूय ,प्रश्न., द प.,भ ज्ञा ,दशा ,पि नि ,धर., विशे ,प्राव ह ,उव ,,पागम , समय वृ ,पेच व,प्रतिमा तरुपतन मरण ७६८ ४ २६8 भ.श २ उ १ सू ६१ तके ३७६ १ ३६५ रत्ना परि ३ सू ७ तापसश्रमण ३७२ १३८७ प्रब द्वा ६४ मा ७३१ तिथियों के पन्द्रह नाम ८५७ ५ १४२ चन्द्र प्रा १० प्रा प्रा १४ २ तिन्तिरणक ४४४ २ ४८ ठा६ सू ५२६, ब (जी )उ ६ ३ तिरीडपट्ट वस्त्र ३७४ १ ३८६ ठा.५ उ ३ सू० ४४६ १ मिन भिन तयालीस विपयों पर भागमतथा धर्म ग्रन्थों की गाथा एव पाठों का सुन्दर सग्रह । यह सग्रह स्वाध्यायप्रेमियों के लिए अत्यन्त उपयोगी है। २ चिड़चिड़े स्वभाव वाला व्यक्ति, कल्पपलिमन्यु का एक भेद ! ३ तिरीड वृक्ष की छाल का बना हुमा वस्न । Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ श्री सेठिया जैन साथमाला विपय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण तिरोभाव ४४ १ २७ न्याय को. तिर्यक्लोक ६५ १४६ लोक भा.२ स.१२,भग ११ उ १० सू ४२० तिर्यक सामान्य ५४ १४१ रत्ना. परि ५ स ४ तिर्यञ्चायुबंधके४कारण १३३ १ ६६ ठा४ उ ४ सू ३७३ तिर्यश्च के अड़तालीस भेद६३३ ३ १७८ उत्त प्र.३६,जी प्रति. १ सियञ्च के अड़तालीसभेद१००१७ २६५ पन. प. सू. १०-३६ तिर्यश्चपंचेन्द्रियके पाँचभेद४०६ १ ४३५ पनप १सू ३२-३६,उत्तम ३६ गा १६६-१६२ तिर्यञ्च सम्बन्धी उपसर्ग के२४२ १ २१६ ठा. ४ उ ४ सृ. ३६ १, मृय चार प्रकार श्र३ २.१ टी नि, गा ४८ तिष्यगुप्त निह्नव का भात्मा ५६१ २ ३५३ विशे.गा.२३३३-२३५४ फे संबंध में शंका समाधान तीन अंग पिता के १२२ १ ८७ टा. : उ. ४ पृ. २०६ तीन अंग माता के १२३ १८७ र ३ उ. ४ सू. २०६ तीन अच्छेद्य ७३ १ ५३ टा.३ ३ २ १ १६५ ।। तीन अभिलापाएं देव की १११ १८० य०३ २०३ सू १७८ तीन अर्थयोनि १२६ १६० टा : 3 : १८४ टी. नीनअवस्था-उत्पादव्ययत्रीन्य६४ १४४ तत्वार्थ, मध्या. पू. २६ तीन आत्मा १२५ १ ८६ परमा. गा १३-१४ तीन पाधार विमानों के ११४ १८१ टा ३ उ अ १८० तीन भाराधना ८६ १६२ टा.३ उ ८ स. १६५ तीन कया ६७ १६६ ठा. २ ३ १ १८६ तीन फर्म ७२ १ ५२ जीप्रनि ३.१४.१११,नन्दुन्द. म १४.१४ पृ. ८० Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाटवाँ भाग १४६ - ~ ~ विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण तीन का प्रत्युपकारदुःशक्य१२४ १ ८७ ठा ३ उ १ सू १३५ तीन कारण अल्पायु के १०५ १ ७४ [ ठा ३ उ १ सू १२५, भश ५ तीन कारण अशुभदीर्घायके१०६ १७४ । उ ६ स २०४ तीन कारण जीव की शुभ १०७१ ७५ भश ५ उ ६ सू २०४,ठा ३ दीर्घायु के उ १ सू. १२५ तीनकारणनवीन उत्पन्नदेव११० १ ७६ ठा ३ उ ३ सू. १७७ के मनुष्य लोक में आने के तीन जिन ७४ १५३ ठा ३ उ ४ सू २२० १ तीन दुःसंज्ञाप्य ७५ १ ५४ ठा.३ उ ४ सू २०३ तीन प्रकार के पुरुष ८४ १६१ ठा ३ उ ३ सू १६६ तीनबोलदेवकेच्यवनज्ञान के११३ १ ८१ ठा ३ उ ३ सू. १७६ तीनबोलदेवके पश्चात्ताप के११२ १८० ठा ३ उ ३ सू १७८ तीन वोल पृथ्वी के देशत: ११६ १८२ ठा. ३ उ ४ सू १६८ धृजने के तीनबोलसारीपृथ्वीधजनेके ११७१ ८२ ठा. ३ उ ४ सू १९८ तीन भेद अंगुल के ११८ १८३ अनु सू १३३ तीनभेदआगमकेदोपकारसे८३ १६० रत्ना परि.४सू १,२,मनु सू १४४ तीनभेद आचार्य-ऋद्धिके १०२ १ ७१ ठा ३ उ.४ सू. २१४ तीन भेद आचार्य के १.३ १ ७२ रा सू. ७७ तीन भेद ऋद्धि के हह १७० ठा ३ उ ४ सू २१४ तीन भेद एपणा के ९३ १६६ उत्त अ २४ गा ११-१२ १ दु.खपूर्वक कठिनता से समझाये जाने वाले जीव । Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० श्री मेडिया जैन नायमाला .nAAAA विश्य घोल भाग पृष्ठ प्रमाण तीन भेद करण के ७८ १ ५५ यागम.,श्राव.म गा १०६-१० टी,दिशे गा १२.२.१२१८, प्रब द्वा २०४ गा १३.टी. कर्म मा • गा • व्याख्या तीन भेद करण के १४ १ ६७ टा३ उ १ मू १२४ तीन भेद गाम्ब के १८ १७० ठा 3 ३.८ सू २१५ तीन भेद गुणवत के १२८(क)१ ६१ प्रावह अपृ ८२६.८२६ तीन भेद गुटि के १२८(रव)१ १२ उत्तय २४, टा: स १२६ तीन भद जन्म के ६६ १४६ तत्वार्य अत्र्या . मृ ३२ तीन भंद जीव के ६६ १५० गराउ ३२२३७ तीन भेद तत्त्व के ६३ १ ४४ यो प्रका श्लो ४-११,ध मा ली.२१.२२री १.३१ तीन भेद दण्ड के १६ १६० मन ३, याचा ६.१ ४३.१ सू.१२६टी दा ३३ १२ १३ तीन भेद दर्शन के ७७ १ ५५ टा. म १८४ भाग ८. तीन भेद दवोंकी द्धि के १००१ ७. टा. ६ ३०५ मृ० २५० तीन भेद द्रव्यानुपूर्वी के ११९ १ ८४ नु म ६५.६८ टी. तीन भेद धर्म के ७६ १ ५४ ठा: 1८८,२७ तीन भेद पल्यापम के १०८ १ ७५ मनु ११८-१४०,. 11 गा101510२६ तीन गेदभाव इन्द्र के १२१६६ टा० ३ ० १ ० तीन भेद मनुष्य के ७१ १ ५१ वा ३.१८. ११०,५ प १५ जी प्रति 2.१०७ तीन मंद मोक्षमार्ग ७१ ५७ उन.स २८ गा.३०, मा तीन भेद योग के ६५ १६८ ११.४ .भामा Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, श्राठवाँ माग १५१ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण तीन भेदयोनि के ३ प्रकारसे ६७ १ ४७ ठा ३सू १४०,तत्त्वार्थ,प्रध्या २ तीनभेद गजा की ऋद्धि के१०१ १ ७१ ठा० ३ उ० ४ २०२१४ तीन भेद लक्षणाभास के १२० १ ८४ न्यायदी प्रका १ तीन भेद लोक के ६५ १४५ लोक भा २ स १२,भ श.११ उ १० सू ४२० तीन भेद वनस्पति के ७० १५० ठा ३उ १ सू १४१ तीन भेद वेद के ६८ १ ४६ कर्म भा १गा २२ तीन भेद वैराग्य के 80 १६५ क.भा • श्लो ११८-११९ तीन भेद व्यवसाय के ८५ १ ६२ ठा.३ उ ३ स १८५ तीन भेदश्रद्धा,प्रतीनि रुचि१२७ १ १० भश १ उ ६ सू ७६ तीन भेद समकित के दो ८० १ ५८ विशे गा २६७५, द्रव्यलो स प्रकार से ३श्लो ६६८-६७०,ध. प्रधि २ श्लो २२टी पृ ३६, श्रा.प. गा ४६-५०,प्रव द्वा १४६ गा ६४३-६४५,कर्म भा १ गा १५ तीन भेद समारोप के १२१ १ ८५ रत्ना परि १,न्याय प्र अध्या ३ तीन भेद सागरोपम के १०६ १ ७८ अनु स १३८-१४०, प्रव द्वा १५६ गा १०२७ से १०३२ तीन मनोरथ श्रावक के ८८ १६४ ठा ३उ ४८ २१० तीन मनोरथ साधु के ८४ १६४ ठा ३ उ ४ सू २१० तीन लिंग समकित के ८१ १ ५९ प्रव०वा.१४८ गा. ६२ तीन वलय ११५ १ ८१ ठा० ३ उ० ४ सू० २२४ तीन विराधना ८७ १६३ मम०३ तीन शल्य १०४ १ ७३ धअविलो २७ ७६,सम ३,टा०३ उ० ३ सू १८२ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ श्री सेठिया जैन अन्यमाना विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण तीन शुद्धियां समकित की ८२ १६० प्रव० वा. १४८ गा ३३ तीन स्थविर ६१ १ ६६ ठा ३ उ.३ स. १५६ तीर्थङ्कर केचौतीसपतिशय९७७ ७ ६८ सम० ३४ विचरते हुए ६१८६ १३६ वि• प्र० ३ स २० टी० पुरिमताल नगर में अभग्गसेन का वध कैसे हुआ? तीर्थर को उपसर्ग रूप ६८१ ३ २७६ टा १०३ ३ स ७७७,त.हा. आश्चर्य(अच्छेरा) १३८ गा.८८५-८८६ तीर्थङ्कर गोत्र के वीस बोल ५६० ३ ७८ ) भाव.इ.स ११ ११८, शा.म. ८६४, प्रव.द्वा.१० गा. __ , , , , ६०२ ६ ५ । ३१० से ३१६ तीर्थङ्कर गोत्र वाँधने वाले ६२४ ३ १६३ टा.६.३ सू.६६१ नौमात्मा भगवान् महावीर के शासन में तीर्थङ्कर,चक्रवर्ती के जन्म ८३० ५ २२ भश १६ उ.६ र १७८,शाम ८ सूचक महास्वप्न चौदह सु ६५, कल्प. १४ तीर्थकर चोवीस ऐरवतक्षेत्र:३१ ६ १६७ सम १६८, प्रर द्वा ७ गा. के आगामी उत्सपिणी के . ३००.३०२ तीर्थकर चौवीस ऐरवतक्षेत्र६२८ ७ १७६ गम ११६, प्रव. द्वा ७ गा. के वर्तमान अवसर्पिणी के तीर्थङ्कर चौवीस के गणधर७७५ ४ २३ भाय.ह. नि गा २६६.६१८ तीर्थङ्कर चौवीस भरतक्षेत्र ६३० ६ १६६ गम० १५८, प्रव० दा० ७ के यागामी उत्सर्पिणी के गा० २६३.२६५ तीर्थङ्कर चौवीस भरत क्षेत्र ह२७ ६ १७२ प्र२० द्रा ७ गा.२८८-२६० के गा उत्सपिणी के Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण तीर्थङ्कर चौवीस भरत क्षेत्र६२६ ६ १७७ सम १५७,प्राव ह नि गा.२० के वर्तमान अवसर्पिणी के से ३६०,पाव म गा २३१ से ३८६,स. श ,प्रव द्वा ७-४५ तीर्थकर दीक्षा लेते समय ८३ ७ १०२ अाचा त्रु २ च ३ अ २४ सू. किसे नमस्कार करते हैं? १७६, प्राव ह अ१ पृ १८६ तीर्थग्नामकर्म के २०योल५६० ३ ७८ श्राव ह नि गा १७६-१८१ पृ११८ज्ञा असू ६४,प्रव. तीयङ्करनामकर्मकेर बोल०२ ६ ५ । द्वा१• गा ३१०-३१६ तीर्थङ्कर सम्बन्धी५० बोल १२६ ६ १८८ । सम १५७,श्राव ह.गा २०६. तीर्थकर सम्बन्धी२७वोलाह२६ ६ १७८ ! ३६०,भाव म गा २३१का लेखा व अन्य २३ बोल ३८६,स श ,प्रव द्वा ७-४५ तीर्थङ्कर सिद्ध ८४६ ५ ११७ पन.प १ सू तीर्थङ्करों ने पाँच महाव्रत ६८३ ७ ११६ भश १उ ३ सू ३७टी , उत्त और चार महाव्रत रूप धर्म अ २३ गा २३ से २७ अलग अलग क्यों कहा? तीर्थ की व्याख्या और भेद१७७ १ १३० ठा ४ उ.४ सू ३६३ टी तीर्थ सिद्ध ८४६ ५ ११७ पनप १ सू७ तीस अकर्मभूमि ६५७ ६ ३०७ पन्नप, १ सू ३७ तीस द्वार नरकों के ५६० २ ३३८ जी प्रति ३ उ १,२,३ तीस नाम परिग्रह के ६५८ ६ ३१० प्रश्न प्राश्रवद्वार । तीस प्रकार भिक्षाचर्या के १५९६ ३१० उव सृ १६,भ रा २५७ तीस महामोहनीय के बोल:६० ६३१० दशा द६,सम ३०,उत्त अ३१ 'गा १६टी,प्राव ह भ पृ६६० तुम्बेका दृष्टान्त ६०० ५ ४४१ ज्ञा० ५०६ तृणवनस्पतिकाय आठ ६१२ ३ १२६ या ८उ ३ सू ६१३ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ श्री मेठिया जैन पन्थमाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण तृण वनस्पति के दस भेद ७४५ ३ ४२२ ठा १०३ ३१ ७७३ तृतीयसप्तरात्रिदिवसनाम ७६५ ४ २६० मम. १२, दशा द ७,भ.स २ की दशवी भिक्खुपडिमा उ ६३ टी तृष्णा पर सात गाथाएं ६६४ ७ २४२ तईसअध्ययनमयगडांगकेह२४ ६ १७३ स्य तेईसगाथाएं भगवान् महा-६२२ ६ १६६ याचा यु १ श्र. 2 .१ . वीर की चर्या विषयक तेईस भेद क्षेत्र परिमाण के १२५ ६ १७३ मनु स १३३५ १६०-१६२, प्रव द्वा २५४ गा १३६१ टी, तेईस विषय पाँचइन्द्रियोंके६२६ ६ १७५ ठा सृ ८७,३६ ०,४४३,४६६, पन्न १२ अ २६, बोल १२. तत्त्वार्थ सध्या २ म २१ तेईस स्थान साधु के उतरनेह२३ ६ १७० प्राचा श्रु २ च १ म २३ २ योग्य तथा अयोग्य तेजस्काय ४६२ २६४ ठाउ ३११८०दन म , धर्म.मा ४ गा... तेजोलेश्या ४७१ २ ७४ उत्तम ४,कर्ग गा ४गा १? तेजोलेश्या लब्धि ६५४ ६ २१६ प्रव हा २७०गा १४६४ तेतलीपुत्र की कथा १८०५ ४६२ सा. १५ ततीस श्राशातनाएं ७५ ७६१ मम. ३३, बगा..., भान हय.४ १.२४ तेतीस बोल सिद्धों के १७६ ७ ६६ नम.२० टी. अल्पवहुन्व के तेनीमवालों का कथन ४१७ ६ १३० उन. प्र. ३१ करने वाली २१ गाथा Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्वान्त बोन संग्रह.पाठवा भाग विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण तेरह उपाय क्रोधादि की ८१८ ४ ४०२ श्राद्ध प्रका २ पृ४३५ शान्ति के तेरह (कर्म) काठिया का ६८३ ७ १२६ श्राव ह.नि गा८४१ ८४२ वर्णन कहाँ है? पृ ३४६ तेरह क्रियास्थान ८१४ ४ ३६२ सूय श्रु २ अ २ तेरहगाथाअसंस्कृत अ०की८१६ ४ ४०६ उत्त अ४ तेरह दृष्टान्तसमकितमाप्तिके८२१ ४ ४२२ नवपद सम्यक्त्वाधिकार तेरह द्वार आहारक और ८१७ ४ ३६८ पनप २८ उ २ अनाहारक के तेरह भव भ० ऋषभदेव के ८२० ४ ४०६ विष पर्व १ तेरह भेद कायक्लेश के ८१६ ४ ३६७ ) भ श २५ उ ७ सू८०२, तेरह भेद प्रतिसंलीनताके ८१५ ४ ३६५ । उब•सू १६ तेरह भेद विनय के ८१३ ४ ३९१ दश अ उ १नि गा ३२५.३२६, प्रत्र द्वा६५गा ५५०-५५१ तैजस शरीर ३८४ १४१४ पनप २१ सू २६७,ठा ५२ १ सू ३६५,कर्म भा १गा ३३ तेजसशरीरबन्धननामकर्म३६० १४१६ कर्म,भा १ गा ३५,प्रब द्वा २१६ तैजस समुद्घात ५४८ २ २८६ पन प ३६ सृ ३३१, ७ उ ३ सू ५८६,प्रब द्वा २३१ गा. १३११,द्रव्यलो स.३ पृ. १२५ त्याग ३५१ १ ३६६ ठा ५सू ३६६,ध अधि ३श्लो ४६ पृ.१२७,प्रव.द्वा ६६गा ५५४ वस ८१५ ठा २उ ४सू १०१ त्रस आठ ६१० ३ १२७ दश अ४, ठा.८उ.३सू.५६५ त्रसकाय ४६२ २ ६४ ठा.६उ ३ सू.४८०,देश ४, कर्म भा. ४ गा.१० Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ विषय चोल भाग पृष्ठ प्रमाण त्रायत्रिंश ७२६ ३ ४१५ तत्त्वार्थ सध्या ४.४ त्रिमासिकी भिक्खुपडिमा ७६५ ४ २८६ सम. १२,भ श०२ उ.१ मृ६३ टी, दशा.द. ७ त्रेपन नाम मोहनीय कर्म के १००८ ७२७६ सम ४२, १२७.५ ५६१ २३७१ विशे.गा २४५१-२४०८ ४६६ २६६ भ.श २५३. ३ ७२४, पन. प १ सू. ४ त्रैराशिक मत व्यस्त्र संस्थान श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला दर्शन थाउ दर्शन कुशीत द ८६० ५ १४५ उपाय. १ सू.७, भ.श. ८३.४ सू. ३३०, भाव हृ. १८९८ सरल पिंगल - वाणिज्जे कर्मादान दग्धाक्षर पांच दण्ड दण्डक चौवीस दण्ड की व्याख्या और भेद दण्ड की व्याख्याऔर भेद २६० १२६६ टा. व २४१= ३६ १२३ दण्ड के दो भेद दण्ड नीति के सात प्रकार ५१० २२३८ टा. ७३३४४७ टा. २३१६६ दण्डायतिक ३५६ १३७३ टा. उ१.३६६ दमयन्ती सती ८७५५ ३५२ भरत गाि दया के साठ नाम ६२२ ३ १५१ प्रश्न संवरद्वार १.२१ दर्शन पत्र २६ ३१९ ११ १ १० ५६८ ३ १०६ ट ३३ ३६६ १३८४५३.३८ 7་དང ३८५ १४०६ ३ १ २ ६३४ ६ २०४ ६६ १६६ टा. १सू. ३ या १सू ४१टी, गन. १३ १टी भाचा.शु. १४.४३ १३ १२६ टी." राम ३, ३३१ १२६ . Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवा भाग १५७ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण दर्शन के चार भेद १६६ १ १५७ ठा ४सू ३६५,कर्म भा ४गा.१२ दर्शन के तीन भेद ७७ १ ५५ भश.उ २सू ३२०,ठा ३सू १८४ दर्शन छः ४६७ २ ११५ तत्त्वार्थ रत्ना.,सर्वद ,साख्य, योग,न्यायद ,सि मु,प्रशस्त, शास्त्र ,वेदान्त ,ब्रह्म ,हि फि. दशेन परिणाम ७४६ ३ ४२७ ठा १०उ ३सू ७१३,पन्न प १३ दर्शन पुलाक ३६७ १ ३८२ ठा.५ सू ४४५,भ श २५उ ६ दशेनभेदिनी विकथा ५३३ २ २६७ ठा० ७ उ० ३ सू० ५६६ दर्शन मार्गणा और भेद ८४६ ५ ५८ कर्म. भा ४ गा १२ दर्शन मोहनीय २८ १ २० ठा.सू.१०५,कर्म भा १गा १३ दर्शन विनय ४९८ २ २२६ उव सू २०, भ.श २५उ ७ सु ८०२,ठा ७ उ ३सू।८५,ध. अधि ३ श्लो ५४ टीपृ १४१ दर्शनविनय के दस बोल ७०६ ३ ३८४ भ श.२५७ ७ सू८०२ दर्शन विनय के ५५भेद १०१० ७ २७७ उव सू २० दर्शन विराधना ८७ १ ६३ सम० ३ दर्शनाचार ३२४ १३३२ ठाउ.२सू ४३२,ध अधि ३ श्लो५४ पृ. १४० दर्शनाचार आठ ५६६ ३ ६ पन्न प १ सू३७गा १२८,उत्त. २८ गा ३१ दर्शनात्मा ५६३ ३ ६६ भ० श १२ उ १० सू ४६७ दर्शनाराधना ८६ १६३ ०३ उ०४ सू० १६५ दर्शनार्य ७८५ ४ २६७ वृ.उ १ नि गा.३२६२ दर्शनावरणीय कर्म और ५६० ३ ५६ कर्म भा १गा १०-१२,पन प. उसके नौ भेद २३सू २६३, तत्त्वार्थ अध्या ८ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ श्री मंठिया जैन प्रत्यमाला विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण दशनावरणीय समेबाँधने ४४१ २ ४४ भश उम् ३४१ के छः कारण दर्शनावरणीय कर्म बाँधने ५६० ३ ५६ कर्म भागा ७४,पन्न प २३ पृ. कंछःकारण और अनुभाव २६२, २८ उम.११ दर्शनेन्द्र १२ १६६ ठा: उ १% ११६ दर्शनों का विकास ४६७ २ ११६ दर्शनों की परस्पर तुलना ४६७ २ २१४ दर्शनापघात ६६८ ३ २५७ टा०1० उ०३ र ५३८ दवग्गिदावणया कोदान८६० ५ १४६ उपा म १४ , ८ उ' सृ३३.याव. प. 3% दशवकालिकमत्र कीदसरी८६१ ५ १४७ दश चू०२ चूलिका की सोलह गाथाएं दशवकालिकमूत्रकी दसरी८६१ ५ ४७८ दन. ' चूलिका की१६मूलगायाएं दशवकालिकसूत्र की प्रथम८६८ ५ ४२० दग० १० १ चूलिका की अठारह गाथाएं दशवकालिक मूत्र की प्रथमह८ ५ ४८७ दन० ० ५ चूलिका की१८मृलगाथाएं दशवसालिक मूत्र कंचौथे ११४ ३५२ दाम ४ गा. 1८-२५ श्र०की बारहगाधा का अर्थ दशवकालिकमृत्र कंदम २०४ १ १७२ बध्ययनों का विषयवर्णन दशवकालिक मूत्रके१०वें ११६ ६ १२६ दग० म० १. अध्ययन की २१ गाथाएं Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्वान्त बोल संग्रह, पाठवॉ भाग विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण दशकालिक सूत्र के दूसरे ७७१ ४ ११ दश श्र २ अ० की ग्यारह गाथाएं दशवकालिकसूत्रकेनअ०५५३ २ २६३ दश. अ उ ४ के चौथे उ० की७ गाथाएं दशवकालिकसूत्रकेनवें०८५३ ५ १२७ दश. श्र ६ उ ३ केतीसरेउकी १५माथाएं दशवकालिक सूत्रके नवें ८५३ ५ ४७६ दश० अ० ६ उ० ३ अध्ययन के तीसरे उ० की पन्द्रह मूल गाथाएं दशवैकालिकसूत्र केनवेंअ०६३३ ६ २०१ दश० अ० ६ उ० २ केदूसरेउकी २४गाथाएं दशवैकालिकसूत्रकेनवें०८७७ ५ ३७७ दश० अ० ६ उ० १ के पहले उ० की१७गाथाएं दशवकालिकमत्र के नवे ८७७ ५ ४८२ दश० प्र० ६ उ०१ अध्ययन के पहले उद्देशे की सत्रह मूल गाथाएं दशाश्रतस्कधदशासूत्र का २०५ १ १८० संक्षिप्त विषय वर्णन दस अच्छेरे (आश्चर्य) ६८१ ३ २७६ ठा १०उ ३ सू०७७७,प्रब द्वा १३८ गा८८५.८८६ दस अजीव परिणाम ७५० ३ ४२६ ठा १० उ ३सू ७१३,पन्न प १३ सू.१८४-१८५ दस अधिपति अग्निकुमारके७३५ ३ ४१८ भश उ ८ सू १६६ दस अधिपति असुर ,, ७३१ ३ ४१७ भ श ३ उ ८ सू १६६ दस अधिपति उदधि ,, ७३७ ३ ४१६ भ ग ३ उ८ सू १६६ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० श्री सेठिया जैन प्रन्यमाला वोल भाग पृष्ठ प्रमाण विषय दस अधिपति दिक्कुमार के७३८ ३४१६ भग. ३३८ सू १६६ ७३६ ३ ४१६ भरा ३८१६६ ७३२ ३ ४१८ भग ३ उ. सू. १६६ ७३६ ३ ४१६ भ.श. ३ उ. ८सू १६६ ७३४ ३४१८ भग ३८. १६६ ७३३ ३४१८ भराउ ८१६६ ७४० ३ ४२० भग ३८ १६६ दस अनन्तक ७२० ३४०३ टा०१०३०३ सृ. ७३१ दस अनुत्तर केवली के ६५५ ३ २२३ टा १० उ ३ सृ७६३ ६७८ ३ २६७ व १० उ३ सु. ७७२ ७१५ ३ ३८६ टा १०३ ३ ७३६ दस अधिपतिद्वीप दस अधिपतिनाग 39 "" दस अधिपति वायु, दस अधिपति विद्युत्,” दस अधिपति सुपर्ण दस अधिपति स्तनित, 35 35 इस व्यवस्था दस असंक्लेश दस स्वाध्याय आन्तरिक्ष६६० ३ ३५६ (छाकाश सम्बन्धी) दस आनुपूर्वी ७१७ ३ ३६० दस आशंसा प्रयोग ६६७ ३ २५३ दस इन्द्र वैमानिक देवों के ७४१ ३ ४२० दस उपघात दोष दस औदारिकस्वाध्याय६६१ ३३५८ ६६८ ३ २५४ दम कल्प वृक्ष ७५७ ३ ४४० या १०उ इस ७१४,प्रन.द्वा २६८, व्यव. भाप्य उ ७ अनु सृ ७१-११६ टा. १०३३.७५६ वा १०३ ३७६६ टा०१० उ० ३ सृ ७३८ १०३ ३ ७१८ राम १० हा १०३ ३०.७६६ प्रव द्वा. १७१ना १०६ ७ ७० दसकल्प साधु के दम कारण दीक्षा लेने के ६६४३२५१ टा. १० उ० ३ ० ७१२ दस कारण मान के ७०३ ३ ३७४ टा. १०.७१००६ दम कुरुक्षेत्र (महाविदेह के ७५४ ३ ४३८ व १०७.६ ७९४ ६६२ ३ २३४ पचा १७ गा.६-४० Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिदान्त बोल संभह, पाठवाँ भाग १६१ विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण दस कुलकर आगामी ७६७ ३ ४५० टा.१० उ ३ सू ७६७ उत्सर्पिणी के दसकुलकरगतउत्सर्पिणीके७६६ ३ ४४६ ठा १०उ ३ सू ७६७ * दस गणधर भगवान् ५६५ ३३ ठाउ ३सू६ १७टी ,सम ८टी, पार्श्वनाथ के प्रव द्वा १५गा ३३०,भाव. गा. २६८-२६६,मश द्वा १११ दस गति ७२५ ३ ४१३ ठा १०उ ३ सू ७४५ दस गुण आलोचना देने ६७१ ३ २५६ भ. श २५ उ ७ २ ७६६, योग्य साधु के ठा १० उ.३ सू ७३३ दस गुण आलोचना लेने ६७० ३ २५८ भ श. २५ उ ७ सू. ७६६, योग्य साधु के ठा १०उ ३ सू.७३३ दस चक्रवर्ती ने दीक्षा ली ६८३ ३ २६२ ठा १०उ ३ सू ७१८ दस चित्त समाधि ६७४ ३ २६२ दशा० द०५, सम १० दस जीव परिणाम ७४६ ३ ४२६ पनप १३,ठा १० सु ७१३ दस जम्भक देव ७४२ ३ ४२० भग १४३ ८ सू ५३३ दस दान ७६८ ३ ४५० टा १०उ ३ सू ७४५ दस दिशाएं ७५३ ३ ४३७ ठा १० सू ७२०,भ श १०३ १ स ३६४,याचा म उ.१सू.२ दस दृष्टान्त मनुष्यभव की ६८० ३ २७१ उत्त अ ३नि गा १६०,आव.ह दुर्लभता के नि गा८३२१३४० दसदोष आलोचनाके ६७२ ३ २५६ भ श २ ५उ ७,ठा १०१ ७३३ दस दोप ग्रहणेपणा के ३६३ ३ २४२ प्रब द्वा ६७गा ५६८, पि नि गा ५२०, पचा १६गा २६,ध अधि श्लो.२२ टी पृ ४१ • पृष्ठ ३७ पर टिप्पणी दसो। Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेटिया जैन . माला विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण दस दोप मनसामायिकमें७६४ ३ ४४७ शिक्षा दसदोपवचनके , ७६५ ३ ४४८ गिना दस दोपवाद के ७२२ ३ ४०६ टा १० उ ३ र ४५३ दस द्रव्यानुयोग ७१८ ३ ३६१ टा.१० ३ ३ सू ७२५ दस नक्षत्र ज्ञानवर्धक ७६२ ३ ४४४ मम १०,टा १०3 3 म५८१ दस नाम आवश्यक के ६८७ ३ ३५० विशे गा ८७२-७६ ,अनुगः दस नाम क्रोध कपाय के ७०२ ३ ३७४ सम ५२ दस नाम दृष्टिवाद के ६८८ ३ ३५१ टा.१० उ.: सृ. ७४२ दस पइण्णा ६८६ ३ ३५३ द. प दसपरंपराफलपर्युपासनाके७०८ ३ ३८३ टा ३७ ३१ १६० दस पुत्र ६७७ ३ २६५ ठा १० उ ३ सू५६२ दस प्रकार अद्धा पञ्च- ७०५ ३ ३७६ पचा गा८.११मादागा करवाण के २.१,माय. अ ६५१ दस प्रकार का असंबर ७११ ३ ३८६ ठा १० उ: ७०E दस प्रकार का असत्य ७०० ३ ३७१ ठा १०१ ७४१,१.१ १. १६५ मधिल ४१210 दस प्रकार का नाम ७१६ ३ ३६५ अनुमू १३. दस प्रकार का शस्त्र ६१६३३६४ दा ५० उ ३५४३ दसपकारकाशुद्धवागनुयोग६६७ ३ ३६५ टा १०३ १.७४८ दस प्रकार का संबर ७१०३ ३८५ रा १०३३nt दस प्रकार का सत्य ६६८ ३ ३६८ ठा १०१७ प११४१ १६.मधि ३गे. १३१ दस प्रकार का मराग ६६४ ३ ३६४ ठा,१०३.२१.७४ १,६१,' मम्यग्दशन दस प्रकार की मिथ(सत्या ६४ ३ ३७० १११११५.१०० मपा) भाषा ७५१,.परिशो ..११.१२ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जन सिद्धान्त बोल समह, आठवाँ भाग १६३ बोल भाग पृष्ठ प्रमाण विषय दस प्रकार के धर्म दसमकार के नारकी, समय७४७ ३ ४२४ टा १०उ ३ सू ७५७ ६६२ ३ ३६१ ठा १० उ ३ सू ७१० के अन्तर आदि की अपेक्षा दस प्रकार के शब्द ७१३ ३ ३८८ टा १०३३ सू ७०५ दस प्रकार के सर्वजीव७२६-२७ ३ ४१४-४१५ टा १० उ ३ सू७७१ दस प्रकार से संसार की ६७६ ३ २६६ समुद्र से उपपा १ दस प्रतिसेवना दस प्रत्याख्यान ६६६ ३ २५२ भ श २५७, १० सू ७३३ ७०४ ३ ३७५ ठा १०३३ सू. ७४८, भ श ७ ३२ सू २८२ ठा १ सू४८ टी., प्रव द्वा. १७० दस प्राण ७२४ ३४१३ ६७३ ३ २६० दस मायश्चित्त भ श २५३ ७, ठा १० सू ७३३ दसबल इन्द्रिय, ज्ञानादि के ६७५ ३२६३ टा १० उ ३ सू ७४० दसवातेंछद्मस्थ के अगोचर७१६ ३ ३८६ टा १० सू७४४, श८उ २ दस वोल पुण्यवान् के ६५६ ३ २२४ उत्त ३ गा १७-१८ दसवोल सम्यक्त्वमाप्ति के६६३ ३ ३६२ उत्तम. २८ गा.१६-२७ दस बोल सातावेदनीय के ७६१ ३४४३ भग ७ उ ६ सू० २८६ दस बोलों का विच्छेद ६८२ ३ २६२ दस ब्रह्मचर्य समाधि स्थान७०१३ ३७२ दृष्टान्त सहित दस भवनपति विशे गा २४६३ उत्त. प्र १६ ७३० ३ ४१६ पत्र प १३८, ठा. १०उ ३सू ७३६, भरा २उ. ७ ११५, जी प्रति ३ उ १ सृ ११५ १५ १३, जी प्रति १ ४ दस भेदरूपी जीव के ७५१ ३४३४ १ पाप या दोषों के सेवन से होने वाली सयम की विराधना । Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री संठिया जैन ग्रन्थमाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण दम भेद कम के ७६०३ ४४१ भाचा अ.२उ १गा.१८३.८४ दस भेद तुणवनस्पति के ७४५ ३ ४२२ ठा १० उ ३स ७७३ दस भेद दर्शनविनय के ७०६ ३ ३८४ भ.ग २५ उ ७ सू८०२ दस भेद देवों के ७२६ ३ ४१५ तत्त्वार्थ अध्या ४ स्मृ.४ दस भेद संसार में आने ७२- ३ ४१५ ठा १० उ ३ सृ ७७१ वाले प्राणियों के दस महद्धिक देव ७४३ ३ ४२१ टा १० उ: र ७६४ दसमहानदी गेरुसे उत्तरम७५६ ३ ४४१ अ.१० उ ३ स ७१७ दसमहानदी मेरुसेदक्षिणमं७५८ ३ ४४० ठा १० उ ३ मृ७१७ दस मिथ्यात्व ६६५ ३ ३६४ ठा १० उ० : सु. ५१४ दस मुण्ड ३६४.३६५ १ ३७८-३७६टा ५उ ३ १ ४४३ दस मुण्ड ६५६ ३ २३१ टा.१०८.३१ ०४६ दस यति धर्म ३५०- १ ३६४. टा.१३ १.६, मधि ३ ३५१ ३६६ ग्लो ४६टी ११.७,प्रय द्वा ६६ गा। दस रानियॉ श्रेणिक की ६८६ ३ ३३३ प्रत व ८ दस रुचि ६३ ३ ३६२ उत भ२८गा1-१७ दस सत्तण श्रावक के ६८४ ३ २६२ २ २३५ 2.१० दम लब्धि जानादि की ६५८३ २३० भाग ८१२५३२० दस लोकस्थिति ७५२ ३ ४३६ टा १० उ.27 ७०८ दस वकवार पर्वत सीता ७५५ ३ ४३६ 21 १०३.२०६८ महानदी के दोनों तटों पर दस वरम्वार पर्वत सीतोटा७५६ ३ ४३६ टा" महानदी के दोनों तटों पर a Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संघह, आ3वाँ भाग १६५ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण दस विगय ७०६ ३ ३८२ श्राव ह भ ६गा १६०९ पृ८५३ दसविमानवैमानिकइन्द्रोंके७४४ ३ ४२१ ठा १० उ० ३ सू ७६६ दस विशेषण स्थण्डिल के ६७६ ३ २६४ उत्त.प्र २४ गा १६-१८ दम विशेप दोष ७२३ ३ ४१० ठा १०उ ३ सू ७४३ दस वेदनानारकी जीवों के७४८ ३ ४२५ ठा १० उ ३सू ७५३ दस वेयावच्च (वैयावृत्त्य) ७०७ ३ ३८२ भ श २५उ ७ सू ८०२ दस श्रमण धर्म ६६१ ३ २३३ नव गा २३, सम १०,शा भा १ प्रक ८ संवरभावना दस श्रावक आनन्द आदि ६८५ ३ २६४ उपा अ.१-१० दस संक्लेश ७१४ ३ ३८८ ठा १०उ ३ सू ७३६ दस सज्ञा ७१२ ३ ३८६ ठा १० सू ७५२,भ श ७ उ ८ दस समाचारी ६६४ ३ २४६ भश २५उ ७सू८०१,ठा १० उ ३सू ७४६,उत्त प.२६गा २-७,प्रवद्वा १०१गा.७६. दस सुख ७६६ ३ ४५३ ठा १०३ ३ सृ ७३७ दस सूक्ष्म ७४६३ ४२३ ठा १० उ ३ सू ७१६ दस स्थविर ६६०३ २३२ ठा १०उ ३ सू ७६१ दसस्थानभद्रकर्मवॉधने के ७६३ ३ ४४४ ठा.१० उ ३ सू ७५८ दस स्थानों का अनुभव ५६० २ ३४० भ श.१४ उ ५ सू ५१६, नारकी जीवों के दसवमभगवान्महावीरके६५७ ३ २२४ भश १६ उ ६,टा १०सू ७५० दाता४०दायकदोप पित ६६३ ३ २४३ पि नि गा ५२० दान के चार प्रकार १९७ १ १५६ घर गा ७० टी दान के विषय में ७ गाथाएं १६४ ७ २०० दान दस ७६८३ ४५० ठा १०२ ३ सू ७४५ Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ श्री सेठिया जैन य थमाला बोल भाग पृष्ठ विषय दान धर्म १६६ ११५४ दान साधुयोग्य के १४ भेद ८३२ ५ २६ ३८८१४१० दानान्तराय दायक दीप (ग्रहण ६६३ ३ २४३ का छठा दोष) ममाल सूयय ६ मा २३चा गाई शिक्षा, आवह पृ८४६ कर्म० भा.१गा ४२,१२ १.२३ प्रत्र वा ६७ मा ५६८. गा ४२०, भविश्ये २२ टी पृ. १५चा १३ गा.२६ पि.नि. मा. ४२० दायक दीप के ४० प्रकार ६६३ ३ २४३ ढायकदीपदूषित४०दाता ६८८७ १४६ पि. निगा ४६० ६००५ ४५७ मा ११ दावत का दृष्टान्त दिक्कुमारीकेदस अधिपति७३८ ३४१६ मग.३३८११६ दिगाचार्य दिहिया क्रिया दिशाएं दस ३४१ १ ३५२ ६ मि. ४६१२ २६४ १ २७६ १६० अ ०१६ ७५३ ३४३७ टा ०७२०, ११०१ सृ३६४, यावा. १३१ १२८क १ ६१ या ६ दिशा परिमाण व्रत दिशा परमार व्रत के पांच३०६ १३०३ उपम १ नृ.७ अतिचार दिशा परिमाण व्रत निश्चय७६४४२८२ श्रागम और व्यवहार से ン ४८३ २ ६८ मान. १८२० दिशा मोह आगार दीक्षा के अयोग्य १८ पुरुष =६१५४०६ / प्रा १०७-८मा १६०दीक्षा के योग्य बीम स्त्रियाँ ६१ ५४०६ लो दीक्षा के दस कारण ६६५ ३२५१ २०३३ ७१६ दीक्षा देने वाले गुरु के =०१ ५ १२४ ध पन्द्रम गुण =/2. Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्ध न्त बोल संह, श्रावॉ भाग १६७ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण दीक्षा पर्याय और सूत्र ५१४ २ २४३ ठा ५उ १ सू ३८६, टा ७ सू पढ़ाने की मर्यादा ५५४,व्यवभा उ १० सू.२१-३५ दीक्षार्थी के सोलह गुण ८६४ ५ १५८ ध अधि ३ श्लो ७३-७८ पृ.१ दीक्षालेनेवालेदसचक्रवर्ती६८३ ३ २६२ ठा १० उ ३ सृ ७१८ दीपक संकेत पचक्रवाण ५८६ ३ ४३ प्राव इभ ६ नि गा १५७८,प्रव द्वा ४ गा २०० दीपक समकित ८० १ ५८ दिशे गा २६७५,द्रव्यलो स३ श्लो.६७०,ध अधि २श्लो २२ टीपृ३६,प्रा प्र गा. दीर्घ आयु सुख ७६६ ३ ४५३ या १०उ ३सू ७३७ दीर्घ संस्थान ५५२ २ २६३ ठा १सू ४७,ठा ७७ ३.सू.५४८ दीर्घायु-अशुभ के३ कारण १०६ १ ७४ | भ.श । ३ ६ सू २०४, ठा ३ दीघोयु शुभ के तीन कारण१०७ १ ७५ । उ १ सू १२५ दुःखगर्भित वैराग्य ६० १६५ क.भा २'लो. ११८-११६ दुःख विपाक की दस कथा ४१० ६ २६ वि श्र.१-१० दुःखशय्या के चार कारण२५५ १ २४० टा० ४ उ. सू ३२५ १ दुःशीलता ४०२ १ ४२६ उत्तय ३६गा २६ १,प्रव.द्वा ७३ दुःसंज्ञाप्य तीन ७५ १ ५४ टा उ ४ सू २०३ २ दुइपडिच्छियं ८२४ ५ १५ याव ह य ४ पृ ७३० दगन्धा का उदाहरण ८२१ ४ ४५८ नवपद गा १८टी सम्यक्त्वा. जुगुप्सा दोष के लिये दुर्लभ ग्यारह ७७२४ १७ प्राव ह नि गा८३१पृ.३४१ ८१ ७ ठाउ २ स ७६ धिकार दुर्लभ बोधि १ दुष्ट स्वभाव, कन्दर्पभावना का एक भंद। २ पृष्ठ १४३ पर टिप्पणी देसो Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण दुर्लभबोधि के पाँच कारण२८६ १ २६६ टा.५ उ १ स ४२६६ दुर्लभ वोल छः ४३६ २ ४३ ठा ६७.३ .४८५ दर्लभ मनुप्य भव के दम ६८० ३ २७१ उत्तमा ३नि गा. १६०,भाव र दृष्टान्त निगा-३२३४० दुपमपमा आग अव. ४३० २ ३३ जवन.२१ ३६ हा ६२ ४६२, सर्पिणी का भश र ६स २८७.२८८ दुपमदुपमाारा उत्स०का४३१ २ ३६ जवन २३७८ा ६१.४६२ दुपमसपमानागअवका४३० २३२ ज वन.२१३८,ा.सू ४६२ दुपममुपमाभारा उत्स०का४३१ २ ३७ जवन.२स २७ला म ४६२ दपमाभागअवसर्पिणीका ४३० २ ३३ अपक्ष ३५,टा ६४६५ दुपमाआरा उत्सर्पिणी का ४३१ २ ३६ जं.यक्ष. म३७,टा, - REP दपमाकालजानने के स्थान५३४ २ २६८ ठा.. ३.३ म.३६ दुष्प्रत्याख्यान ५४ १ ३१ गग.५३ ५१ दतीदोप (गवेपणेपणा ८६६ ५ १६४ प्रवगा १६७, प्र.अधि. ३ ), का एक दीप) २४०,पि.नि गा...., पि.गा, ५८,पंचा १३गा.१८ दूपणाभास (जात्युत्तर) १३६ ६२.६ प्रमी सध्या १११.म., चौवीस न्यायप्रन्यायस्त मध्या. मा दपिन दाता चालीस हद ७ १४६ पिं नि गा. 'दृष्टलाभिक ३५४ १ ३६६ टा.१३६ दृष्टान्त ३८. १३१७ स्ना परित्याग दी.प्रका 3 दृष्टान्त इक्कीस पारिणा-११५ ६ ७.. न म २७ गा.७१.७४,गार मिकी बुद्धि के १२६ इनि गा.:४८.४१ 1 पृष्ठ १३. पर टिगी देग्यो । • गए मारी गपणा करने वाला मभिप्रायारी माधु । Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त चोल संग्रह, पाठवा भाग विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण दृष्टान्त कमलामेलाकाभाव७८० ४ २५० श्राव ह नि.गा १३४ पृ.६४, अननुयोग तथा अनुयोगपर पीठिका नि गा १७२ दृष्टान्त कुब्जा का क्षेत्र अन-८० ४ २३६ श्राव ह नि गा १३३ पृ.८८, नुयोग तथा अनुयोग पर . वृ पीटिका नि गा.१७१ दृष्टान्त कोकणदारक का ७८० ४ २४८ प्राव. ह नि गा.१३४ पृ.६२, भाव अननुयोग,अनुयोगपर . पीठिका नि गा.१७२ - दृष्टान्त गाय,बछड़े का द्रव्य ७८० ४ २३६ प्राव ह नि. गा.१३३ पृ८८, अननुयोग तथा अनुयोगपर वृ पीठिका निगा १७१ ।। दृष्टान्त ग्रामेयक का वचन ७८० ४ २४२ पाप ह नि गा ११३ पृe, अननुयोग तथा अनुयोगपर - वृ पीठिका नि गा १७१ दृष्टान्त तेरह सम्यक्त्व के ८२१ ४ ४२२ नवपद वा ७ सम्यक्त्वाधिकार दृष्टान्त दस मनुप्य भव की६८० ३ २७१ उत्तभ्र ३नि गा १६०,प्राव ह दुर्लभता के निगा ८३२ पृ ३४० दृष्टान्त नकुल का भाव अन ७८० ४ २४६ भाव.ह नि गा १३४ पृ.६३, नुयोग तथा अनुयोग पर . वृपीटिका नि.गा १७२ .. दृष्टान्तवधिरोल्लापकावचन७८० ४ २४१ भाव ह नि गा १३३ पृ.८६, अननुयोग तथा अनुयोगपर वृ पीठिका नि गा १७१ दृष्टान्त वारह अननुयोग ७८० ४ २३८ प्राव ह.नि गा.१३३,१३४, तथा अनयोग पर पीटिकानि.गा १७१-१७२ दृष्टान्त१२कम्मियावुद्धिक७६२ ४ २७६ न सू.२७ प्राव ह नि गा६४७ दृष्टान्त शम्ब के साहस का७८० ४ २५२ प्राव ह निगा १३३५९४, भावअननुयोगअनुयोगपर पीठिका नि.गा १७२ ।। . दृष्टान्तश्रावकमायोकाभाव७८० ४ २४५ प्राव ह नि गा १३४ पृ.६१, मननयोगतथा अनुयोगपर वृपीटिका नि गा १७२ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण दृष्टान्त श्रेणिक के कोप का ७८० ४ २५३ भाव. नि.गा,१३४ पृ.६४, भावअननुयोगअनुयोग पर वृपोटिका नि गा.१७२ दृष्टान्त सत्ताईस औत्प- ६४६ ६ २४२ नं.मृ २७गा ६२.६४टी., त्तिकी बुद्धि के दृष्टान्तसाप्तपदिकका भाव ७८० ४ २४६ भाग ह नि. गा.१३४ १.६१, अननुयोग तथा अनुयोग पर पीठिका नि.गा. १७३ दृष्टान्त स्वाध्याय का काल७८०४ २४० पात्र.ह.नि.गा ११:१६, अननुयोग तथा अनुयोगपर पीटिका निगा १७१ दृष्टिजा(दिहिया) क्रिया २६४ १ २७६ ठा.२.६.०, टा ५पृ. ४१६ दृष्टिनारकियों में ५६० २ ३३७ जी प्रति स.८८ दृष्टिवाद के दस नाम ६८८ ३ ३५१ ठा.१०३ ३सू ७४२ १ दृष्टिसम्पन्नता ७६३३१४५ ठा.१० ३.३% ७५८ ६३ १ ४४ यो प्रकारको ४-११ देव थायु बन्ध के४कारण १.५ ११०० टा 63.४४१३७३ देवताओंकीपहचान केबील १३७ १ १०१ टा.४ ३.२ स. टी. देवताओं के चार भेद १३६ १ १०१ उत म.३६गा २०२ देवता की ऋद्धिके तीन भेद१०० १७० १.३८ ५१ २१४ देवता की तीन अभिलापाएं१११ १८. टा. ३ उ. ३म् १७८ देवताके एफसो अहाणुभेद६३३ ३ १७६ पाप.१.८ मा ३४ गा. २०३२१४,नी. प्रति देवता के च्यवन ज्ञान के ११३ १ ८१ टा.३४३ १०६ तीन बोल देवता के दो भेद ५७ १ ४. नत्मार्थ मन्या ४ म १७ देवता के पश्चात्तापकंवोल११२ १८० टा.उ.म् १७८ 5 मम्पाट होता, महामं ांधने का एक मारगा। Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ وام श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग rrm arrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr ~~~~~ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण देवता के मनुष्यलोक में १३६ १ १०२ ठा ४ उ ३ सू ३२३ आने के चार कारण देवता के मनुष्य लोक में ११० १ ७६ ठाउ ३सू.१७७ पाने के तीन कारण देवता कोनसी भाषा १८३ ७१२५ भ श ५उ ४सू 18 1,मम ३४, बोलते हैं? पन्न प १ सू३७ देवताचारकारणोंसे मनुष्य १३८ १ १०१ ठा ४ ३ ३ सू ३२३ लोक में नहीं आ सकता देवदत्ता रानी की कथा ११०६ ४७ वि अ देव पाँच ४२२१४४५ ठा ५सू ४० १ भ श १२ उ ६ देवलोक कहाँ स्थित हैं १८०८ ४ ३१८ पन्न प २सू ५१,जी प्रति उसू २०७ देवलोक की गतिश्रागति ८०८ ४ ३२८ जी प्रति ? सू २१४, पन्न प.६ ।। देवलोक की पर्षदाएं.पारि-८०८ ४ ३२५ जी प्रति ३ स २०६ पदों की संख्या और स्थिति देवलोकदेवोंकाउच्छास८०८ ४ ३२६ जी. प्रति.: सू २१५ देवलोक के देवों का वर्ण ८०८ ४ ३२६ जी प्रत ३ सू २१५ और स्पर्श देवलोक केदेवोंकासंस्थान८०८ ४ ३२६ जी प्रति ३ सू २ १४ देवलोककेदेवों का संहनन८०८ ४ ३२६ जी प्रति ३ सू २१४ देव के देवोंकीअवगाहना८०८४ ३२६ जी प्रति.३ सू २१३ देवलोकदेवोंकीवेशभूपा८०८ ४ ३३१ जी. प्रति. ३ सू २१८ देवलोक देवों के दसभेद८०८ ४ ३३३ तत्वार्य अध्या ४ स.४ देवलोकदेवों के मुकुटचिह्न८०८ ४ ३१६ पन प.२ सू ५१ देव के विमानोंकाआधारम०८४ ३२७ जी प्रति ३ सू २०६ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ प्रमाण विषय बोल भाग पृष्ठ देव० के विमानों का विस्तारयद ४ ३२७ जी. प्रति ३ स. २१३ देव० के विमानों का संस्थान ४ ३२७ जी. प्रति ३२१२ श्री मेठिया जैन मन्थमाला देवलोक के विमानों की ८०८४३२७ जी गति ३ २१०-२११ मोटाई और ऊँचाई देवलोक के विमानों के ८ ४३२७ जी प्रति ३ सू२१३ वर्ण, गन्ध और स्पर्श देवलोक वारह देवलोक चारह की स्थिति देव चारह के दस इन्द्र७४१ देवलोक चारह के विमान • देवलोक में अनुभाव देवलोक में अवधिज्ञान ८०८ ४३१८ पत्र. २,४,६, प्रति २०७-२२३, तवार्य अभ्या ४३२४ १११४६६ ३४२० टा १०३ सू.७६६ ४ ३२३ प.प. २३ देवलोक १२ स्थितिप्रादि८८४ ३३४ तत्वार्थ सध्या २० ७बातें उत्तरोत्तर अधिक हैं देवलोक में आहार देवलोक में उच्छ्वास देवलोक में उत्पन्न होने वाले जीव ८०८ ४३३६ ताभ्या ८०८४३३० जी प्रति १: L ここ ८०८४३३५ तता मया ८०८४३३५ तसर्थ मा. ८४८५११५ भग १३२२ २४ ८०८४३३६ तत्तार्थ मध्या ** देवलोक में उपपात देवलोक में उपपात विरह और उना विरह देवलोक में क्षुधा पिपासा ८०८४३३१.२११ देवलोक में गति आगति ८०८४३३२६.१६... देवलोक में चारचा उत्त०४३३५ तामा रोतर हीन होती है ४३३२ ५१६. १६६-२०० गा. १०१७ मे १०७ः Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग १७३ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण देवलोक में ज्ञान ८०८४ ३३० मी प्रति ३ सू २१६ : • देवलोक में दृष्टि ८०८ ४ ३३० जी प्रति ३ सू २१५ देवलोकदेवोत्पत्तिसंख्या८०८.४ ३२८ जी प्रति ३ स २१३ देवलोक में प्रवीचार ८०८ ४ ३३३ तत्त्वार्थ अध्या ४सू८,९. देवलोक में लेश्या ८०८४ ३३० जी प्रति ३ सू २१५ ... देवलोक में विकुर्वणा ८०८ ४ ३३१ 'जी प्रति ३ सू २१७ : देवलोक में वेदना ८०८४ ३३६ तत्त्वार्य. अध्या ४,उव सू ३८ देवलोक में समुद्घात ८०८ ४ ३३१ जी.प्रति ३ सू २१७१ - देवलोक में मुख और ऋद्धि८०८ ४ ३३१ जी प्रति ३ सू २१७. देव वैमानिक के २६ भेद ४४.६ २२७ पन प. १सू ३८,उत्तम ३६गा २०७-१४,म श१सू ३१० देवसम्बन्धी उपसर्ग चार२४० १ २१६ ठा ४उ ४सू ३६१, सूय अ ३ उ पनि गा ४८ टी १ देवाधिदेव ४२२ १ ४४६ ठा ५उ १सू ४०१,भ श १२ उ. सू.४६२ देवाभियोग थागार ४५५ २ ५६ उपाश्र.१सू.८,प्राव ह.अ६४ ८१०,ध मधि २श्लो २२पृ ४१ देवार्य-भ०महावीरकानाम७७० . ४ १० जनविद्या वोल्यूमन १ देविंदथव पइगणा ६८६ ३ ३५५ द प. । देवी(पूष्पवती)कीपारिणा-६:१५ ६८० नसू २७गा ७२, श्राव ह नि. मिकी बुद्धि की कथा . गा.४६ : देवेन्द्राक्ग्रह . ३३४ १ ३४४ भ श १६उ २सू ५६७, प्रत्र द्वा ८५ गा.६८१,माचा.अ २१ ७ उ.२ सू १६२ १ देवों से भी वह कर भतिशय वाले,अतएव उनके भी पाराध्य,केवलज्ञान केवल'दर्शन के धारक अरिहन्त भगवान् देवाधिदेव कहलाते है । 1T Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ وام श्री मेठिया जैन गन्यमाना विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण देवा की पाँच परिचारणा ३६८१ ४२२ पनप ३४,ठा ५७ १ ४००ी. देवों के इन्द्र सामानिक ७२६ ३ ४१५ तत्त्वार्थमन्या.४ १.४ आदि दस भेट देवोंक विषयमें गणधरमौर्य७७५ ४ ५० विगंगा १८६४.१८८४ स्वामीकाशंका समाधान देश अवसन्न ३४७ १५६ माय इ.म ३ नि गा ११०७, प्राद्वारे गा १०-१२ देशकथा चार १५१ १ १०९ ठा ४२.२ १.०८२ देशकयासेहोनेवालीहानि १५१ १ ११० ठा ४ र २८२ देश बन्ध ५२ १० कर्मभा १ गा.: गाया दशविरन गणस्थान ८४७ ५ ७५ कर्म.मा.२ ॥ देश विगति सामायिक १६० १ १४४ विशे गा.२६७-६८.७. देशविस्तार अनन्तक ४१% १ ४४२ ठा, उ.: म ४६ देशावकाशिकन १८६१ १४० पला गा ६७, साम देशावफाशिक वन के पॉच३१० १ :१० पा.प्र.११. मा. म. पृ. अतिचार ८३४, i ...? देशावकाशिक व्रत निश्चय७६४ ४ २८४ पागम. और व्यवहार से दो उपयोग ११ १ १० पाप २६ ३१ ११ १ १० दोनियम-उन्सर्ग,अपवाद १० १२५ वृ गा.:१६,स्या या ५12ी दापारिसी के सात आगार ५१६ २२४६ मार द.प72 माना। दो प्रकार का अवधिज्ञान १३ १ ११ टा दो प्रकार का मन:पर्य यज्ञान११ १ १२ ठा २० १ १ दामकारका वस्तु का स्वरूप४१ १ २६ गा.पा. ना . ? सामान्य और विशेष Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बरेल संग्रह,पाठवा भाग १७५ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण दो प्रकार जीव के ७ख १ ४ ठा२ सू १०१,तत्वार्य अध्या.२ दो प्रकार ज्ञान के प्रमाण,नय३७ १ २३ रत्ना परि १, ७ दो प्रकार प्रवचन माता के २२ १ १६ उत्त.अ २४ दो भेद अधिकरण के ५० १ २६ तत्त्वार्थ अध्या ६ सू.५ दो भेद अवग्रह के ५८ १४० नसू २८, कर्म भा.गा ४, दो भेद आकामा के ३४ १ २२ टा.२ उ.१ सू ७४ दो भेद आधार और प्राधेय ४८ १ २८ विशेगा.५४०६ दो भेद भायु के ३० १ २१ तत्त्वार्थ अध्या २सू ५२,भ-श. २० उ १ स ६८५ दो भेद-भारंभ और परिग्रह ४६ १ २६ ठा.२७ १ सू६४ दोभेद-प्राविर्भाव विरोभाव ४४ १ २७ न्याय को दो भेद इन्द्रिय के २३ ११७ पन.प.१५सू.१८ १टी ,तत्त्वार्थ. अध्या.२ सु १६ दो भेद उनोदरी के २१ १ १६ भ.श.२५उ ७ सू८०२ दो भेद कर्म के दो प्रकार से २७ १ १८ कर्म-भा १गा १व्याख्या,प्रष्ट ३०, कम्म गा ११.६,वि प्र.३सू २०टी दो भेद कारण के ३५ १२३ विशे गा २०६६ दो भेद-कार्य और कारण ४३ १ २७ न्याय को दो भेद काल के ३२ १२३ टा २ उ ४ सू L दो भेद कालचक्र के ३३ १ २२ ठा २ उ १सू ५४ दो भेद गुण और पर्याय ४७ १ २८ उत्त अ २८ गा६ दो भेद गुण के दो प्रकारसे ५५ १ ३२ सूय.अ १४नि गा १३६,पचा ; गा २,द्रव्यत अध्या १२ लोक द्रो भेद चारित्रधर्म के २० १ १५ टा २ उ १सू ७२ दो भेद चारित्रमोहनीय के २६ १ २० पन प.१४सू. १८६टी ,कर्म मा.१ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ میام श्री सेठिया जैन अन्यमाला 14 विषय वाल भाग पृष्ठ प्रमाण दो भेद ज्ञान के १२ १ १० नसू २,ठा २३.१.७१ . दो भेद दण्ड के ३६.१ २३ ठाउ १ स ६६ दो भेद देवता के ५७ १ ४० तत्त्वार्थ अध्या, ४ सृ.१५ दो भेद-द्रव्य और गण ४६ १ २८ उत्त प्र.२८गा ६,तत्त्वार्थ मध्या । दो भेद द्रव्य के ६० १ ४२ तत्वार्य मध्या ५ १ ३,४ दो भेद द्रव्येन्द्रिय के २४ १ १७ तत्त्वार्थ अध्या.२ पृ १७ दो भेद धर्म के १८ १ १४ दश.अ १गा.१ टी ठा. २उ. १ सृ.,प.अधि. श्लो.टी११ दो भेद नय के १७ ११४ रत्ना परि ७ रस १ दो भेद निगोद के 8 १८ मागग. दो भेद परोक्ष ज्ञान के १५ १ १२ पन.प. स.१२,टा र १ म ७१,म.रा.८३.९स:१८, न मृ १, यम भा गा दो भेद प्रत्याख्यान फ ५४ १३१ भग ७२५७१ दाभेद प्रत्ति और निवृत्ति४५ १२८ दोभेद वन्ध के ५२ १३० कर्म भा.गा. २१ व्याख्या दो भेद बन्धन के २६ १ १८ का २२ ४६ दोभंद भावेन्द्रिय के २५ १ १७ तत्वार्थ गया. 7 १८ दो भेद मरण के ५३ १ ३१ उत्तम ५ गा. दो भेद माहनीय कर्म के २८ १ १६ टा.२ १.१०४,कोमा गा 12 दो भेद रूपी के ६१ १ ४२ मग १२४५ . दो मंद तक्षण के ६२ १४२ न्यायसी प्रया, दो भेद वेदनीय कर्म के ५१ १३० पाप २३, कर्म मा गा.१० दाभेद तज्ञान के १६ १ १३ नम ४४, टा. उ १.५ दो भेट श्रुतधर्म के १६ ११५ ठाम १२ । Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, अायाँ भाग १७७ विषय - - बोल भाग पृष्ठ प्रमाण दो भेद श्रेणी के ५६ १ ३३ कर्म भा २ गा २, द्रव्यलो स ३ श्लो ११६६-१२३४,विशे.गा १२८४,प्राव म गा ११६-१२३ दो भेद संसारी जीव के ८ १४ । ठा,२८ ७३,७६,१०१,भ श.१३ नौ प्रकार से . उ १सू ४७०टी ,भाप्र गा ६६ ६७, प्रातुर गा ४२-४३ दो भेद सम्यक्त्व के चार १० १८ प्रव द्वा १४६गा ६४२टी कर्म प्रकार से भा १गा १५,ठा २सू ७०,पन्न प. १सू ३७, तत्त्वार्थ अध्या १सू ३ दो भेद सामान्य के दो ५६ १४१ रत्ना परि ७सू १५,१६,रत्ना प्रकार से . परि ५ सू ३-५ दो भेद स्थिति के ३१ १ २१ ठा २ उ. ३सू ८५ . दो भेद-हेतु और साध्य ४२ १ २७ रत्ना परि ३सू ११,१४ दो राशि, ७(क) १४ सम १४६ दोविवक्षा-मुख्य औरगौण ३८ १ २४ तत्त्वार्थ अध्या ५ सू ३१ ।। ७२३ ३ ४११ ठा. १० उ ३ सू ७४३ । दोप अठारह दो प्रकार से ८८७ ५ ३६७ प्रव द्वा ४१ गा ४५१-४५२, जोअरिहन्तदेव में नहींहोते स श द्वा ६६गा १६१-१६२, दोप अठारह पौपध के ६४ ५ ४१० शिक्षा दोपाठअनेकान्तवाद पर५६४ ३ १०२ प्रमी अध्या १ मा १ सू.३३ दोष आठ चित्त के ६०३ २ १२० क भा २ श्लो.१६०-१६१ दोपआठ साधु को वर्जनीय५८३ ३ ३८ उत्त अ २४ गा ६-१० . दोष उन्नीस कायोत्सर्ग के ८६8 ५ ४२५ प्राव ह अ५गा १५४६-४७,प्रव. द्वा गा २४७,यो प्रका ३पृ.२५० दोष Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ विषय दोष चार प्रमाण पिंनि गा, १८२, ३ ग्लो. ५३ टी. पृ १३६ दीप दस आलोचना के ६७२३ २५६ २४उ ७,टा १० सू. ७३३ दोपदसमन के सामायिक के७६४३ ४४७ निदा ७६५३ ४४८ शिक्षा, श्री मेडिया जैन ग्रन्थमाला दोप पाँच ग्रासपणा ( मांडला ) के बोल भाग पृष्ट २४४ १२२१ दोप दस वचन के,,,, दोप दस बाद के दोपनिर्घातन विनय के भेद २३३१२१६ ना. ६४ द्युत (जुआ) प्रमाद कृव्य ७२२ ३ ४०६ टा १० उ३७४३ ३३० १ ३३६ उन. २४गा १२ उत्तम. गा. ३२ अधि श्लो २३वी. पृ४६, पिनिगा ६३ ढोप बत्तीस तथा गुण या ६६७ ७२३ अनु १४१२, विंग, घृ.पीटिका निगा,२८७ सूत्र के दोष बत्तीस वन्दना के ६६६७३८ माह. ३.१२०७ १२११ १/४ ३ ३ ४७१ २६ १३०-१७३ ६४ दीपबत्तीस सामायिक के ६७०७४३ निवा दीप बयालीस आहारादि६६० ७ १४६ पिंनि ग. ६६ दोप १२कायार्क सामायिक के७४ २७३ शिक्षा. दोष विशेष दस ७२३ ३ ४१० 27.१०३ ३७८६ ढोप शक्ल इक्कीस ६१३ ६ ६८ दीप सैनालीस थाहार के १०००७ २६५ दो स्वरूप वस्तु के निश्रय ३६ थॉर व्यवहार १२५ ४५६ ४६ दा० ३०२ - २१ मिनि०६६ दिशा ३८ उच्च. रा. , अध्यान्ह १ २६०.उ. ३५०२ १२८ उन गाई, तसर्थ, १. टी. प्रध्या : मू.. Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, विषय बोल भाग पृष्ठ द्रव्य २१० १ १८६ ४१७ १ ४४१ द्रव्य अनन्तक द्रव्य ऊनोदरी २१ १ १६ द्रव्य और भावमनका क्या६८३ ७ १२२ स्वरूप है ? क्या वे एक दूसरे के बिना भी होते है? द्रव्य कर्म द्रव्यत्व गुण द्रव्य नय और भाव नय द्रव्य के दो भेद ५२७ २ २६३ द्रव्य के सात लक्षण द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव- इनमें६८३ ७ १२४ कौन किससे सूक्ष्म है? द्रव्य छह आठवाँ भाग ७६० ३ ४४१ ६० १ ४२ द्रव्य सम्यक्त्व द्रव्य निक्षेप द्रव्य पुद्गल परावर्तन सूक्ष्म ६१८ ३ और बादर का स्वरूप द्रव्य प्रतिक्रमण द्रव्य प्रत्युपेक्षणा द्रव्य लेश्या का स्वरूप तथा उसके सम्बन्ध में तीन मत ४२४ २३ ४२५ २ १६ ५६२ २ ४१६ २०६१ १८७ १३६ ४७६ २६२ ४५६ २६० ४७१ २ ७१ १०१८ عام प्रमाण न्यायप्र श्रध्या ७, रत्ना परि. ८ ठा ५ उ ३ सू ४६२ भश. २५ उ ७ सू८०२ पत्र प १५सू २००, भ श १३ उ १४७२टी, लोक स ३ श्लो० ५७० श्राचा अ २३ १नि गा १८३ तत्त्वार्थ, अध्या ५ सू ३,४ विशे गा २८ थावह निगा ३६-३७१३१ श्रागम, उत्त थ ३६ भागम द्रव्य त अध्या ११ श्लो २ न्यायन श्रध्या ५ अनु सू १५०, न्यायप्र अध्या. ६ कर्म मा ५ गा.८६-८८ घाव ह. अ ४ ठा ६उ ३ स ५०२ भ. श १३ २,उत्तम ३४, पत्र प १७३४ २२५टी, कर्म भा ४ गा. १३, आव ह अ ४ ६४४ द्रव्यलो स. ३ श्लो. २८४-३८२ प्रवद्वा १४६ मा ६४२ टी. Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण द्रव्य हिंसा में हिंसा का १८३ ७ १२१ भरा १ उ ३ ३७टी. लक्षण नहीं घटता फिर वह हिंसा क्यों कही गई? द्रव्यात्मा ५६३ ३ ६६ भग १२ 3 १० १४१५ द्रव्यानुपूर्वी ७१७ ३ ३६१ मनु प ७५ द्रव्यानपूर्वी के तीन भेद ११६ १८४ अनु म.६६-६८टी ३३ द्रव्यानयोग २११ १ १६० दग० निगा ३ पृ.३ द्रव्यानुयोग ५२६ २२६३ विशे गा १३८५.५:१२ द्रव्यानयोग ७१८ ३ ३६२ ठा. १० उ प ४२५ द्रव्यानयोग दस ७१८ ३ ३६१ टा.१०३ ३ १ ४२७ द्रव्यार्थिशनय १७ ११४ रत्ना परि । द्रव्यार्थिक नय के दम भेद ५६२ २ ४२० गत म०पा, आगर, द्रव्यार्थिक नय के मतान्तर५६२ २ ४१२ नय र, से तीन और चार भंद व्याय ७८५ ४२६६ १३.नि गा. द्रव्यावश्यक के विशेषण ८७२ ५ १७६ र १३.गे 11, व्यन्द्रिय २३ ११७ पर१17 16 टी l " द्रव्यन्द्रिय के दो भेद २४ ११७ तपार्थ या. द्रव्यों का परिणाम ४२४ २१५ मा द्रव्यों का पारम्परिकसंधष्ट२४ २ १४ अगा. द्रव्यों का स्व द्रव्य क्षेत्रकाल४२४ २ १२ मामग भाव की अपेक्षा वर्णन द्रव्यों की प्रक्रिया १२५ २१८ भागन Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवाँ भाग १८१ विषय प्रागम. प्रागम. यागम. मागम. बोल भाग पृष्ठ · प्रमाण द्रव्यों की संख्या ४२५ २ १६ भागम. द्रव्यों के गुण पर्यायों की ४२४ २ ७ भागमनित्यानित्यता द्रव्यों के चार चार गुण ४२४ २४ अागम. द्रव्यों के चार चार पर्याय ४२४ २४ द्रव्यों में आठ पक्ष ४२४ २ ७ प्रागम. द्रव्यों में गुण पर्यायआदि ४२४ २ ७ प्रागम. की एकता और अनेकता द्रव्यों में गुण पर्यायों की ४२४ २१० भागम. वक्तव्यता प्रवक्तव्यता द्रव्यों में नित्य अनित्य ४२४ २ ७ प्रागम. श्रादि आठ पक्ष द्रव्यों में नित्य अनित्य ४२४ २ ११ आगम, पक्ष की चौभंगी द्रव्यों में परस्पर समानता ४२४ २५ भागम और भिन्नता द्रव्यों में सत् असत् पक्ष ४२४ २६ घागम .. द्रुमपत्रक अ०की३७गाथाह८४ ७ १३३ उत्त अ १० . द्रौपदी ८७५ ५ २७५ ज्ञा म. ९६,त्रि ष पर्व ८ द्वार१८छोटी गतागत के ८८८ ५ ३६८ पनप ६ के प्राधार से द्वार वीस परिहार विशुद्धि १०५ ६ १६ प प १सू ३५ टी चारित्र के द्वार सत्रह शरीर के ८८१ ५ ३८५ पन्न प २१ द्वितीय सप्तरात्रिदिवम ७६५ ४ २६० सम १२, दशा.द ७,भ श २ नामक नवी भिक्खुपडिमा र. सू ६३ टी.' । Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ श्री सेठिया जैन अन्यमाला विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण द्विधा अनन्तक . ४१८ १ ४४२ टा. उ ३म ४६० द्विमासिकी भिक्खुपडिमा ७६५ ४ २८६ मम १२, दशा द ७.म.श २ उगटी १ द्विष्ट दुःसंज्ञाप्य ७५ १ ५४ टा ३३..२०३ द्वीपकुमारों के दमअधिपति७३६ ३ ४१६ भग ३ उ ८ र १६६ द्वेप निःसृत असत्य ७०० ३ ३७२ टा १०१ ७४१,पन प ११ मृ १६५,ध अधिगे ४११५२२ द्वेप प्रत्यया क्रिया २६६ १ २८२ टा २३.११६ ०, टाउ २१ ८१६, थार. १८ द्वेप बन्धन २६ १ १८ ठाउ ४ मा ४.६६ द्वेक्रियनामकपाँचवां निव५६१ २ ३६६ विशे गा २४२४-२ ८५० धनदत्त की पारिणामिकी ११५६ ८३ नम २७गा ७२, म 15, बुद्धि की कथा घायर गा.46 धनपति कुमार की कथा ४१० ६ ५६ वि.स.१६ धनसार्थवाह की कथा ८२१ ४ ४४६ नवपदमा १५ सम्मात्यापित सम्यक्त्व प्राप्ति पर धनुप सजीवांकी तरहक्याह-३ ७ १२८ रा. उ. ग.२०७टी, पानादिकेजीयाकोभी जीवरक्षाकारणक पुण्यवन्धहोता है? धन्ना कुमार की कथा ७७६ ४ २०४ गणु व ३ . 1 धन्नासार्थवाह और विजयह.. ५४३४ प्र.' चोर फी कथा १ नमामाच्या यानाकनि दार होने मदन योगावरन नाममा ne - - - -- - - - - -- - - Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग १८३ भेद विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण धर्म ६३ १४४ यो प्रका २श्लो ११,ध अधि२ श्लो २१-२२टी.पृ ३१ धर्म कथा ६७ १६६ ठा ३उ.३ सू १८६ धर्म कथा ३८१ १ ३६८ ठा ५ उ.३ टू ४६५ धर्मकथा कीव्याख्या,भेद १५३ १ ११२ ठा ४ उ २ सू.२८२ २११ १ १६० दशनि गा ३ पृ ३ धर्म की व्याख्या और उसके१८ १ १४ दश श्र १गा.१टी ,ठा२उ १सू. ७२,ध श्रचि १श्लो ३ टी पृ १ धर्म के चार प्रकार १६६ १ १५४ स श द्वा १४१ गा २६६१७. धर्म के तीन भेद ७६ १ ५४ ठा ३सू १८८,ठा ३सू २१७ धर्म के वाईस विशेषण ६१६ ६ १५६ ध अवि ३श्लो २७टी पृ. १ धर्म के बारह विशेषण ८०४ ४ ३०६ शा भा २प्रक १०धर्मभावना. . धर्म दस ६६२ ३ ३६१ ठा १०३ ३ सू ७६० धर्मदान ७६८ ३ ४५२ ठा १०३ ३ सू.७४५ धर्मदेव ४२२ १४४५ ठा ५उ १सू ४०१,भ श.१२उ ६ धर्म द्रव्य ४२४ २३ अागम ,उत्त.अ ३६ गा ५ धर्मध्यान २१५ १ १६५ सम ४,टा ४उ १सू २४७,देश. अ पनि गा ४८टी,भावह श्र.४ ध्यानशतक गा ६८ धर्मध्यान कीचारभावनाएं२२३ १ २०७ठा ४ सू २४७, भ श २५उ ७ धर्मध्यान के चारआलंबन२२२ १ २०६ ठा ४ उ १ सू २४७ धर्मध्यान के चार प्रकार २२० १ २०१ ठा ४उ १ सू २४७ धर्मध्यान के चार भेद २२४ १ २०८ ज्ञान प्रक ३७.४०,यो प्रका ७ १०,क भा २श्लो २०७-२०६ धर्मध्यान के चार लिंग २२१ १ २०५ ठा ४८ २४७, भ श २५उ ७ सू८०३,प्राव हाय ४१६०४ Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ श्री सेठिया जैन प्रत्यमाना विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण धर्म वोधि आदि ग्यारह ४१ १ २६ ठा २३.१ १६४-६५ बोलों की प्राप्ति धर्म भावना ८१२ ४३७३, शा भा२प्रफ १०,भावना ,शान ३८६ प्रक २, प्रव द्वा.६७ गा.५५३, तत्वार्थ मध्या ६ सू. धर्म रुचि ६६३ ३ ३६३ उत्तम २८ गा.२७ । धर्मरुचि-धर्मभावना ८१२ ४ ३८६ शाम १६ धर्म विषय पर अाठ गाथाएं६६४ ७ १५१ धर्माचार्य १०३ १ ७२ रा.स.७७ धर्माध्ययनकी३६ गाथा १८१ ७ ८७ राय म धर्मास्तिकायके पॉचप्रकार२७७ १ २५४ टा.४२ ३ ४४१ धातकारखण्ड में चन्द्रमोदि६ ४ ३०१ सूर्य, प्रा ५६ ज्योतिपी देवों की सख्या धातुन भावप्रमाण नाम ७१६ ३ ४०१ अनु. रस १३० धात्री दोप ८६६ ५ १६४ प्रव.द्वा ६७ र पि.३ ग्लोपिनि गा.४.८, पि.पि.गा ५८,पना १३गा.१८ धात्री (घाय)पाँच ४०८ १४३४ माना..२.7.3म.१.१७१, ग.ग. 13.17 २६ धान्य के चौबीस प्रकार 8:५६ २०५ द नि गा २०४-१? धाय (धात्री) पाँच ४.८ १४३५ याचा २५ 11, भन११३ १४.१ २०. १ २५६ 21 4 3 ४३५४ ६.१३ ११८ गो.,रा यो. धारणा व्यवहार ६६३ १३७६ ४२१,म. . . Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह,पाठवा भाग १८५ विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण धार्मिक पुरुष के ५आलंबन३३३ १ ३४३ ठा ५उ ३सू ४४७ धूम दोष ३३० १ ३४. ध अधि ३श्लो २३टी पृ ५५, पि.नि गा.६३५६८,उत्तम २४गा १२,उत्त श्र २६गा.३२ धैवत या रैवत स्वर ५४० २ २७१ अनुसू १२ ७गा २५,ठा ७सू ५५३ धौवन पानी इक्कीस ह१२ ६ ६३ अाचा श्रु २म १उ.७-८सू ४१प्रकारका ४५,पि नि गा १८-२१,दश अ. ५ उ १गा ७५-७६ धपात वायु ४१३ १ ४३८ ठा ५ उ ३ सृ ४४४ ध्यान ४७८ २ ८४ उव सू २०,उत्त अ ३०गा.३०, ठा ६सू५ ११,प्रव द्वा ६गा २७१ ध्यान ६०१ ३ ११६ यो , रा यो. ध्यान की व्याख्या और २१५ १ १६३ ठा ४ उ १सू २४७, सम ४, उसके भेद दश म पनि गा ४८टी,प्रवद्वा. हंगा २७१टी, पाव हम ४ ध्यानशतक पृ५८०,भागम. ध्यान के अड़तालीस भेद ६३३ ३ १६५ उव सू २०,भ श २५उ ७सू८०३ ध्यानके अड़तालीसभेद १००२ ७ २६६उव सू २०,भ.श २५ उ ५सू८०३ ध्यानमविघ्न रूप पाठ दोष ६०३३ १२० क भा २ श्लो १६०-१६१ ध्रुवबन्धिनी प्रकृतियाँ ८०१ ४ ३३७ कम भा ५ गा १-२ ध्रुवसत्ताक प्रकृतियाँ ८०६ ४ ३४२ कर्म भा ५ गा.१,८, ध्रुवोदया प्रकृतियाँ ८०६ ४ ३४१ कर्म भा ५ गा १-६ ध्रौव्य ६४ १ ४५ तत्त्वार्थ अध्या ५ सू २६ नकारे के छः चिह्न ४६१ २ १०२ उत्त. म १८ गा ४१ नमुचि कुमार की कथा(हस्तलिखित) Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मेठिया जैन गरमाना विषय बोल भाग पृष्ट प्रमाण नकुल काष्टान्त भाव ७८० ४ २४६ यादगा 121, अननुयोग पर पीदिशा नि गा १५. नक्षत्र अटाईम ६५३ ६ २८८ बक्ष.५८ ११४,सम.., नक्षत्र दस ज्ञान वर्धक ७६२ ३ ४४४ सम १.,टा.१०३ ७६५ नक्षत्र प्रमाण संवत्सर ४०० १४२५ टा.१२.३१.४६ ०, अगदा. १४२ नक्षत्र संवत्सर ४०० १ ४२५ । ठा ५३.३१ ४६.,प्रा नक्षत्र संवत्सर ४०० १ ४२७, १४५गा ६०१ नगर धर्म ६६२ ३ ३६१ टा.१०३.२. स. ७० नन्दमणियार की कथा ८२१ ४ ४४४ शा.अ. १३ मापद गा ११५५३ नन्दमणियार की कथा ६८८ ५ ४६० गा० ५१ नन्दिनी पिता श्रावक ६८५ ३ ३३१ आ. १०६ नन्दी फल का दृष्टान्त १०० ५ ४६४ ० म १५ नन्दीवद्धेनकुमारकी कथाह१० ६४३ पिप! नन्दीपेण की पारिणा- ६१५ ६ ८२ नं सृ.२७ गा..., साय. . मिकी बुद्धि की गया गा:४६ नंदी मृत्रका विषय वर्णन २०४ ११७८ न नपंसकलिंग मिद्ध ८४९५ ११६ प. ११५ नपसक वंद ६ ८१ ४६ कम मा. गा. नमस्कार कास्वामी नम. १८३७ १.१ शि, गागे म्फार काहगा पूज्य है ? नमस्कार के उत्पादक हद ७१. गिगा २८..... निमित्त क्या है? नगम्फार पुण्य ६२७ : १७३ का ७५ नमस्कारमहिमापरहगाथाह:४७ १५३ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग १८७ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण नमस्कारसूत्र में सिद्ध और ह८३ ७१८ म.मंगलाचरण टी ,विशे.गा. साधु दो ही पद न कहकर ३२.१ से ३२०६ पॉच पद क्यों कहे ? नमस्कार सूत्र में सिद्ध से ९८३ ७ ९८ म मगलाचरण टी , विशे गा पहले अरिहन्त को नम ३२१०-३२२१ स्कार क्यों किया गया ? नमिराजर्पि-एकत्वभावना८१२ ४ ३८१ उत्तम नमुक्कार सहिय,पोरिसी ७०५ ३ ३७६ प्रबद्वा ४ गा २०१-२०२, आदि दस पञ्चक्रवाण प्राव ह अ६ नि गा १५९७, पाठ सहित पंचा ५गा.८-११ नय ३७ १ २४ रत्ना. परि ७ सू.१ नय ४६७ २ १७१ नय के दो भेद १७ १ १४ रत्ना०परि.७ सू५ नय के भेद प्रभेद ४६७ २१७४ नय सात ५६२ २ ४११ अनुसू १५२,प्रव द्वा.१२४गा ८४७-८४८,विशे गा २१८०२२७८,रत्ना परि ७,तत्त्वार्थ अध्या १,पागम ,द्रव्य त। अध्या ५-८,न्यायप्र अध्या ५, नय ,नयप्र.नयविनयो,पालाप. नयों का विषय ५६२ २ ४२५ रत्ना०परि.५ नयों के अपेक्षा विशेष से५६२ २ ४२६ प्रव.द्वा ११४ गा ८४८ टी. दो सौ से सात सौ भेद नयों के तीन दृष्टान्त ५६२ २ ४२७ अनु सू.१४५ नयों के दूसरी अपेक्षा से५६२ २ ४२७ सात सौ भेद Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ श्री मेडिया जैन मन्यमामा विषय बाल भाग पृष्ट प्रमाण नकायुबन्ध के कारण १३२ १६. टा. ३ ४ १.३७३ नग्यविषयमें गणपक-७७५४ ५२ विये गा १८८५-१६०४ म्पित स्वामीकाशंकासमाधान नरक के नीस द्वार ५६० ३ ३३६ जी प्रति.३.१.३ नरक के दुःखों का वर्णन ६४१ ६ २१६ स्य० उ. करनेवाला पचीम गाथाएं नरक के दावों का वर्णन ६४७ ६ २३६ गया . इ.१ करने वाली२७गाथाएं नरकगनिमें अन्तर काल ५६० २ ३२० प्रव हा १४७ गा १०६१. नरक में वंदना ५६. २ ३१६ जो गनि, 8, ATT १७४,अन्न प्रथमदार ५ नरक सात ५६०२३१४ जी.प्रतिपदा,१७२-४, भाग १31-८गन५: 17... या नरकायाममान नारकी कं५६. २ ३१६ नीति ,प्रा. नरमायामों का विस्तार ५६० २ ३३६ जी ! नरकाशनों का संधान ५६० २३३४ नीप्रति नकों का परम्पर अन्तर ५६० २ ३४१ न.१3८१.२ नग्कों की मोटाई पाहन्य)५६. २३२८८ नका. काह ५६० २ ३२८ जीपनि : नरकों पं नाम आर गोत्र ५६० २ ३१५ नोमान 24.७,प्रपा नरकोपनर (पाय) २६०२२८ नि: नाका में संस्थान १६. २३४१ ५२ नरदेव ४२२ १४४५. ... Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग १८६ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण नरयविभत्ति अध्ययन के १४१ ६ २१६ सूय०५५ उ २ दुसरेउ० की२७गाथाएं नरय विभत्ति अध्ययन के ६४७ ६ २३६ सय ५ ५ उ १ पहले उकी२७ गाथाएं नवतत्त्व ६३३ ३ १७७ नव गा १, ठा उ ३सू ६६५ नव वाड़ शील की ६२८ ३ १७३ समठा Lउ ३ सू ६६३ नवीन उत्पन्न देवनाफेमनुष्य ११० १ ७६ ठा३ उ.३ सू १७७ लोकमाने के तीन कारण नाक के ४ मण्डल और उन५५१ २ ३०७ यो प्रका.५,राज , हठ, में रहने वालीवायु के भेद नागकुमारकेदसअधिपति७३२ ३ ४१८ भ०श ३ उ ८ सू १६६ नाग सुवणे मद ७०३ ३ ३७४ ठा १०उ ३ सू.७१० नाणक की कथा औत्प-६४६६ २७५ न•सू २७ गा ६५टी त्तिकी बुद्धि पर नाम ४२७ २ २६ अनु, सु ७० नाम अनन्तक ४१७ १ ४४१ ठा ५उ. ३ सू ४६२ नाम कर्म ७६० ३ ४४१ याचा अ २उ १ नि.गा1८३ नामकर्म अशुभ भोगने के ८३६ ५ ३३ पन्न०प २३ सू २६२ चौदह प्रकार नामकर्म और उसके वया-५६० ३ ६८ कर्म भा १ गा २३-२७,पन० लीस मूल भेद प२३ ३ २ सू २६३ नामकर्मकी१४पिंडप्रकृप्ति ५६० ३ ६६ पन०प २३२ २६३-२६४, कर्म के६५उत्तरभेद व व्याख्या भा० १ गा३३-४३ नामकर्मकीह३,१.३और५९० ३ ७७ कर्म०मा.१ गा.३१व्याख्या ६७ प्रकृतिगाँ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० श्री मेटिगा लेन अन्यमाना ३ पन १.०३ F विपय बोल भाग पृष्ट प्रमाण नाम पर्म की४२ प्रकृनियाँहह ७ १४६ पग-५२३३.२ र २१ नामकर्म के बन्ध के कारण५६० ३ ७८ भाग ८ उ १ र ३५१ नामकर्म-शुभ और अशुभ ५६० ३ ७८ पा०प २३ स २६२ का १४ प्रकारका अनुभाव नामकर्म-शुभचौदहप्रकारच३८ ५ ३३ से भोगा जाता है नाम११ भ० महावीर के ७७० ४ ३ जनविद्या बोल्युम १ न. १ नाम दस प्रकार का ७१६ ३ ३६५ ानु म १३. नाम नरकों के ५६. २३१५नी प्रनि.३,परदा १७०गा १०० नाम निक्षेप २०६ १ १८७ अनुप १४०.न्यायन प्रया. नाम सत्य ६९८ ३३६६ टाion ११,न.१.११॥ १५.मनितो. ८ १५.११ नाम सत्रह माया के c. ५ ३८५ सम. ५२ नाम से नाम ७१६ ३ ३६८ अनुग १३" नामानुपूर्वी ७१७ ३ ३६० मनु ग.३१ नामानुयोग ५२६ २ २६२ गिग गा ५१८१-१९ नामार्य ७८५ ४ २६६ ३१ निगा ३२६३ नारकी की गागति ५६०२३२७ प्रय डा. १८२गा १०३.1-2 नारकीदम प्रकारसमय७४७ ३ ४२४ 21 103,22 23 पं. अन्तर पादि की अपेक्षा नारकी जीवों कापायुवन्ध५६०२३४१ भाग ३. 3. १० नारफी जीवों काआहार ५६० २ ३४० भाग १८3,236 नारकी जीवों का गन्य ५६० २ ३३६ मा पनि ३ ग." नारकी जीवों का वर्ण ५६. २ ३३६ जी. १५ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवाँ भाग १६१ प्रमाण विषय बोल भाग पृष्ठ नारकी जीवों का श्वासोवास५६०२३३७ जी. प्रति ३८८ नारकी जीवोंका संस्थान५६० २३३७ जी प्रति ३ सू८७ नारकी जीवों का संहनन५६० २३३७ जी प्रति. ३ सू८७ नारकी जीवों का स्पर्श ५६० २३३६ जीप्रति ३.८७ नारकीजीant अवगाहना५६० २३१६ जी प्रति ३.८६, प्रवद्वा १७६ नारकी जीवों की उद्वर्तना ५६०२३२६ नारकी जीवो की विग्रहगति५६० २३४० नारकी जीवों की स्थिति ५६० २३१६ प्रवद्वा. १८१,१न्न १ २०सू २६३ भश १४उ. १ सू४०२ जी प्रति सृ ६०टी, प्रव द्वा १७५गा १०७५-१०७६ जी प्रति ३८८ प्रवद्वा १७६ पनप १३१, उत्तम ३६ गा १५५-१५६, जी प्रति ३ टा १० उ ३ मू ७५३ नारकी जीवों के वेदनादस७४८ ३४२५ नारकी जीवों में उपयोग ५६०२३३७ जी प्रति ३ सृ नारकी जीवों में ज्ञान ५६० २ ३३७ जी प्रति ३.८८ नारकी जीवोंमें दस स्थानों५६०२३४० भश १४ उ ४ सू ४१६ का अनुभव नारकीजीवों के अवधिज्ञान५६० २ ३२३ नारकी जीवों के चौदह भेद ६३३३ १७८ ५६०२३३७ जी प्रति ३ सू नारकी जीवों में दृष्टि नारकीजीवों में परिचाररणा ५६० २३३६ पन्न प ३४ ५६०२३४९ मग १८ उ.४सू.६२४ नारकी जीवों में युग्म नारकी जीवों में योग ५६० २ ३३७ जी प्रति नारकी जीवों में लेश्या ५६०२३२१ जी प्रति ३८८द्धा १७८ नारकी० मॅवेदना, निर्जरा ५६० २३३६ भश, ७७ ३ सू २७६ नारकीजीवों में समुद्घात५६० २३३८ जी प्रति ३८८ ६५२ ३ २१६ सेन उल्ला. ३ प्रश्न ६ ६ नारद नौ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ मेटिमा यमाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण नागच संहनन ४७० २ ७० प २२ :३,ठा ६३.३ मृ.४८ ४.मा 14.३८ निशंकिन दर्शनाचार ५६६ ३ ७ पाप ११ ३७,उत्तम.२८गा ३७ ५ निकाचना करण ५६२ ३ ६५ बम्मगार निकाचितकीव्याख्या,भेद२५२ १ २३६ टा.४३ म २६६ निक्खित्तदोष(ग्रहणपणा६६३ ३ २४३ मन द्रा, ६.७१ १६८, पिं.नि. का नीसग दोप) गा। २.५ धितो .२२ पृ४१,पंचा.गा. निक्षिप्त चरक ३५२ १ ३६७ का ५३ १२.३६५ निक्षेप चार २०६ १ १८६ मनु र १५,न्याय प्रसध्या.६ निक्षेप सात अनयोग के ५२६ २ २६२ मिग गा १३८५-१:६१ निगमन ३.० १ ३६७ रत्ना परि । निगोद है १८ मागग. निगोद का वर्णन ४२५ २ १६ भागम निमोद के दो भंद ४२५ २ २१ भागार • निग्रह दोप ७२२ ३ ४९० १..३८ ? निग्रह स्थान बाइस ह२१ ६ १३२ मी.मा. 14.३४,न्याया. न्यायपृ.अ. मा.. निन्य भनित्य पक्ष की ४२४ २ ११ वागम. चोभंगी छन्गों में निन्य दोष ७२: ३११२ १०३. ४३ कामना दी माहिती के भयो ए7 गया नारेमा का पार्योपनिन । जाति में RTI 3 यापन मिनि र गुको रार यही जना। Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, अाठवाँ भाग १६३ विषय वोल भाग पृष्ट प्रमाण नित्यानित्यता छाद्रव्यों में४२४ २ ७ मागम । निदान को ४४४ २ ४८ ठा ६उ ३सू ५२६, (जी)उ ६ निदान (नियाणा) नो ६४४ ३ २१५ दशा द १० निदान शल्य १०४ १ ७४ ठा ३उ ३सू १८२,सम ३,ध. __ अधि ३लो २७ पृ.७६ निद्रा ४१४ १४४३ कर्म भा १गा ११-१२,पन्न प २३ निद्रा के पाँच भेद ४१६ १ ४४३ कर्म भा १गा ११-१२,पन्न प.२३ निद्रानिद्रा ४१६ १४४३ कर्म भा १गा ११-१२,पन्न प २३ निद्रा प्रमाद २६१ १ २७५ ठा ६उ ३९ ५ ० २,ध अधि २ श्लो ३६पृ.८१,पचा १गा २३टी. निद्रा से जागने के कारण४२० १ ४४४ ठा ५उ २ सृ ४३६ निधत्तकीव्याख्याऔरभेद२५१ १ २३६ ठा ४उ रसू २६६ १ निधत्ति करण ५६२ ३ ६५ कम्म गा २ निधि के पांच प्रकार ४०७ १ ४३३ ठा ५उ ३सू ४४८ निन्दा पर फया ५७६ ३ २८ श्राव.ह थ ४नि गा १२४२ निमन्त्रणा समाचारी ६६४ ३ २५० भ श २५उ ७सू ८० १,ठा १० सृ ७४६,प्रवद्वा १०१गा ७६० निमित्त ४०४ १ ४३१ उत्त.अ : ६गा २६२,प्रव द्वा ७३ निमित्त कथन ४०५ १ ४३२ उत्त अ ३६गा २६४,प्रव द्वा ७३ निमित्त कारण ३५ १ २३ विशे गा २०६६ निमित्त दोप ८६६ ५ १६४ प्रव द्वा ६७गा ५६७,ध अधि ३ श्लो २२पृ ४०,पि नि गा ४०८, पिनि गा ५८,पचा १३गा.१८ १ जिससे कर्म उद्वर्तना और अपवर्तना करण के सिवाय शेष करणों के अयोग्य हो जाय ऐमा जीव का वीर्य विशेष । १०६ Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला विषय नियट्टिबादर गुणस्थान नियत वादी नियति वोल भाग पृष्ठ =४७५ ७६ ५६१ ३ ६४ २७६ १२५७ नियम ६०१ ३ ११५ नियम चौदह श्रावक के ८३१ ५ २३ ६४४ ३ २९५ नियाणा नौ निरनुकम्पता ४०५ १४३२ निरुपक्रम कर्म निर्ग्रन्थ निरयावलिका सूत्र के दस ३८४ १४०० निर अध्ययनों का विषय वर्णन ३० १ २१ प्रमाण कर्म भागा २ ठा.८३ ६. ०७ श्रागम., कारण, सम्मतिभा ५ काण्ड ३ गा.५३ यो.. रायो. शिक्षा,ध अधि. २श्लो ३४१ ७६ दशा द १० उत्त य ३६ गा. २६४, प्रव. निरयावलिका सूत्र के दस ७७७४२३२ निर अध्ययनों का विषय वर्णन निश्यावलिका सूत्र के५वर्ग३८४ १ ३६६ निर निरयावलका सूत्र के पाँच ३८४ १४०० वर्गो के ५२ अध्ययन निरुपक्रम थायु २७ १ १६ ३६६ १३८१ ३७० १३८५ निर्ग्रन्थ के पांच भेद निर्ग्रन्थ पांच ३६६ १३७६ निर्ग्रन्थप्रवचन पर३गाथाह६४ ७१५५ निर्ग्रन्थ श्रमण द्वा ७३ मा ६४५ तत्त्वार्थ सध्या २ सु. ५२, भ. श २०३१० सु. ६८५ वि. टा. ४ 2 सु. २० टी. ४४५, भश २४३६ ठा ४५३३.४४५, भग २५ उ. ६ सृ ७५१ ३७२ १ ३८७ प्रत्र द्वा ६८ मा ७३१ Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवॉ भाग १६५ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण निर्जरा . ४६७ २ २०६ निर्जरा,वेदना नैरयिकों में ५६० २ ३३६ भश ७ उ ३सू २७६ निर्जरा के बारह भेद ४७६ २ ८५ | उत्त श्र.३०गा.८, ३०,उव सू १६,२०,प्रव द्वा ६ गा २७०निजेरा के बारह भेद ४७८ २८६ । २७१, ठा ६उ ३ सू ५११ निजेरा तत्त्व के बारह भेद ६३३ ३ १८४ नव ,उव सू १६-२०,भ श.२५ उ७ सू८०२ से८०४ निर्जरा भावना ८१२ ४३६६, शा भा १ प्रक,भावना , ज्ञान ३८६ प्रक २, प्रव द्वा ६७ गा ५७२, तत्त्वार्य.अध्या सू७ निर्मितवादी ५६१ ३ ६३ ठा ८ उ ३सू ६०७ निर्याण मार्गपॉच २८० १ २५६ ठा ५ठ ३सू ४६ १ निर्विकृतिक(णिवियते) ३५५ १ ३७० ठा ५उ १ सू ३६६ निर्विचिकित्सदर्शनाचार५६४ ३७ पन प १सू ३७,उत्त अ २८गा ३१, प्र र.भा २८१४, निर्विशमान कल्पस्थिति ४४३ २ ४६ / ठा ३उ ४ सू.२०६ ठा ६उ ३ निर्विष्टकायिककल्पस्थिति४४३ २ ४६ । सू ५३०,वृ (जी )उ ६ नित्तिद्रव्येन्द्रिय २४ १ १७ तत्त्वार्थ अध्या. स् १७ निर्वेद . २८३ १ २६४ ध अधि २श्लो २२ टी पृ ४३ निर्वेदनी कथा के भेद १५७ १ ११५ ठा ४ उ २ सू २८२ निन्लंकरण कम्मेकर्मादान ८६० ५ १४६ उपा.य १ सू ५,भ श ८उ ५ सू ३३०,याव अपृ८२८ निवृत्ति ४५ १२८ निवृत्ति पर कथा ५७६ ३ २६ श्राव ह अ.४नि गा.१२४२ निविगइ पञ्चक्रवाण ७०५ ३ ३८१ प्रव द्वा.४ गा २०१-२०२, भाव.ह अ६नि गा.१४६७. ८५१,पचा गा८.११ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन प्राथमाना विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण निबिगइपञ्च के नोआगार६२६३ १७४ श्राव ह म ६१८५४,प्रब द्वा.४ निशीथमूत्रका विषयवर्णन२०५ १ १८२ निशीथ. निश्चय ३६१ २५ विशे गा ३५८६,द्रव्य त.यध्या ८ निश्चय और व्यवहार नय ५६२ २ ४१६न्यायग्र अध्या ५,द्रव्य त प्रध्या ८ निश्चय और व्यवहार से ७६४ ४ २८० प्रागम श्रावक के बारह भाव व्रत निश्चय नय के दो भेद ५६२ २ ४२०रत्ना परिजनन्यायन अध्या। निश्चय सम्यक्त्व १० ११ वर्म मा १गा १५ ,प्रव द्वा.१८६ निपद्या के पाँच भेद ३५८ १ ३७२ टा२६६टी ,ठा. रस ४०० निपाद स्वर ५४० २ २७१ मनु सू.१२७गा २५,टा सृ.५५३ १ निपेक ४७३ २ ७६ भश ६ ३८ र २९० टी, टा६३सू.५३ टी निष्कांक्षित दर्शनाचार ५६६ ३ ७ पनप ११.३७,उन म गा ३५ २ निप्कृपना ४०५ १ ४३२ उत्तभ३६गा २६४,प्रब द्वा निष्क्रमण सुख ७६० ३४५४ टा १०३१७१७ निसर्गरुचि ६६३ ३ ३६२ उत्त प्र.२-गा.१७-१८ निसीहिया(नधिकी) ६६४ ३ २५० भाग २५३.५१८०१,ठा १० समाचारी उ7 ७८६,उत्तय गा. २-५, प्रब द्वा १० गा ७६. निव पाठवां (शिवभूति ५६१ २ ३६४ विशे गा २५५०-२६०६, अथवा वाटिक) टा७ उ ३ स५८७ निद्रव चोथा (अश्वमित्र) ५६१ २ ३५८ विगे.गा.२३८६-२८२३ निवटा (रोहगत) ५६१ २ ३७१ विगे.गा.. ८४१-२४०८ १ पल भोग के लिए होने वाली यमं पुटला की रचना विशेष। २ धावगदि जीदों पर दाभाव न रचनातथा निना उपयोग गमनादिक्यिा करना। Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग १६७ - विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण निहवतीसरा(अव्यक्तदृष्टि)५६१ २ ३५६ विशे गा-२३५६ -२३८८ निह्नव दुसरा (तिष्यगुप्त) ५६१ २ ३५३ विशे २३३३-२३५५ निह्नव पहला (जमाली या ६६१ २ ३४२ विशे गा २३०६-२३३२,भ बहुरत) श १३ १,भ श उ ३३,पाव हअ ११३१२ निव पाँचवॉ(आयगंग) ५६१ २ ३६६ विशे गा २४२४-२४५० निह्नव सात ५६१ २ ३४२ विशे.२३.०-२६२०, ठा,सू ५८७,भ.श.१उ.१,भश उ ३३,ग्राव ह ध १गा ७७८-७-८ निह्नवसातवां-गोष्ठामाहिल५६१ २ ३८४ विशे गा २५०६-२५४६ नील लेश्या ४७१ २ ७३ ४७१ २ ७३ उ उत्तम ३४,कर्म.भा ४गा १३ नंगमनय और उसके दो ५६२ २ ४१२ रत्ना परि ७सू ७,तत्त्वार्थ अध्या. तथा तीन भेद १,न्यायप्रअध्या.५,द्रव्य तथध्या ६ नैपुणिक नौ ६४२ ३ २१३ ठाउ ३ सू ६५६ नैरपिकचारवोलोंसेमनुष्य १४० १ १०३ ठा ४उ १ सू.२४५ लोक में आने में असमर्थ है नैरुक्त भाव प्रमाण नाम ७१६ ३ ४.१ अनु मू १३० नैपधिक ३५७ १ ३७२ ठा ५उ १सू ३६६ नैधिकी (निसीहिया) ६६४ ३ २५० भ श २५उ असू८० १,ठा १० समाचारी उ३ ७४६,उत्त अ २६गा २-७,प्रवद्धा १०१गा ७६० नैसर्गिक सम्यक्त्व १० १६ ठा २उ १सू ७०,पन्न प १सू.३७, तत्त्वार्य.अध्या १ सु.३ नैसप निधि . ६५४ ३ २२० ठा.६उ ३ सृ६७३ नेसृष्टिकी(नेसत्थिया) २६५ १ २८० ठा २उ १सू.६०,ठा ५उ २सू ४१६, याव.ह.अ.४१६१३ क्रिया Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विपय घोल भाग पृष्ठ प्रमाण नोउत्सर्पिणी अवसर्पिणी ४३१ २ ३८ विशेगा २७०८ २७१० नोउत्सर्पिणी अवसर्पिणी ४३१ २ ३६ विशे,गा, २७०८-२७१० फालकेक्षेत्रकी अपेक्षा४भाग नोकपायमोहनीय २६१ २१ कर्म भा १गा १५ नोकपाय बंदनीय नौ ६३५ ३ २०३ ठाउ.३ सू ७०० नोगौण नाम ७१६ ३ ३६५ अनु सू १३० नौ अनृद्धि प्राप्त थार्य ६५३ ३ २१६ पनप ११ ३७ नौआगार निविगई पञ्च-६२६३ १७४ याब ह ६१८४४,प्रा द्वा ४ क्वाण के गा २०५ नौ आचायों के नाम(बल ६५१३ २१६ सम १५८ देव,वासुदेवों के पूर्वभवके) नामात्मा ने भ०महावीरके६२४ ३ १६३ ठाउ १.६६१ शासन में तीर्थङ्करगोत्रबाँधा नौ आयु परिणाम ६३६ : २०४ ठाउ ३१ ६८६ नों काव्यरस ६३६ ३ २०७ अनु मृ १२६ गा.६२-१२८ नो कोटि भिक्षा की ६३१ ३ १७६ ठासू ६८१,घाचा अउ ५ नौगणभगवान् महावीरके १२५ ३ १७१ ठा ६३ ३ .६८० नौ नारद ६५२ ३ २१६ सेन उल्ला ३ प्रन्न ६६ नी निमित्त स्वप्न के ६३८ ३ २०६ विगंगा १७०३ नो नियाणा (निदान) ६४४ ३ २१५ दगाद १० नौ नपुणिक ६४२ ३ २१३ ठाउ ३ २ ६७६ नौनोकपाय वेदनीय ६३५ ३ २.३ ठाउ: मृ५.. नौपरिग्रह ६४०३ २११ माव ह.य ६१८२५ नौ पाप धन ६४३ ३ २१४ टा.६ 3 3.६७ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, श्राठवाँ माग १६६ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण नौ पुण्य ६२७ ३ १७२ ठाउ ३सू ६७६ नौ प्रकार की वसति ह२३ ६ १७० याचा श्रु २८ १ २ उ २ नौ प्रतिवासुदेव ६४८ ३ २१८ सम.१५८, प्रव द्वा २११गा. १२ १३,श्राव ह.अ १पृ.१५६ नौ बलदेव ६४६३ २१७ सम १५८, प्रवद्वा २०६गा १२११,प्राव ह अ.१११५६ नौबलदेवोंकेपूर्वभवकेनाम६४६ ३ २१८ सम १५८ नौ वातें मनःपर्यय ज्ञान के ६२६ ३ १७२ न सू १७ लिए आवश्यक हैं नौ ब्रह्मचर्य गुप्ति ६२८ ३ १७३ म उ ३सू ६६३,सम । नौ भेद काल के ६३४ ३ २०२ विशे गा २०३० नौ भेद ज्ञाता के ६४१ २ २१२ भाचा..१.२उ.५ सू ८८ नोमहानिधियांचक्रवर्तीफी ६५४ ३ २२० ठा ६ उ ३ सू.६ ७३ नौ लोकान्तिक देव ६४५ ३ २१७ ठा, उ ३ सू ६८४ नौ वासुदेव ६४७ ३ २१७ प्राव ह.अ १गा ४० पृ १५६, प्रवद्वा २१०गा १२१२ नौवासुदेवोंकेपूर्वभवकेनाम६५० ३ २१८ सम १५८ नौ विगय ६३० ३ १७५ ठाउ.३ सू ६७४, प्राव ह अगा१६.१ टी नौस्थानरोगउत्पन्न होने के६३७ ३ २०५ ठाउ ३सू ६६७ नौ स्थान संभोगी को ६३२ ३ १७६ ठाउ ३ सू ६६१ विसंभोगी करने के न्यग्रोध परिमंडल संस्थान ४६८ २ ६८ ठा ६सू ४६५,कर्म.भा.१गा ४० न्यायदर्शन ४६७ २ १३२ न्यून तीथे वाले पर्व छः ४३३ २ ४० ठा ६उ ३सू ५२४,चन्द्र प्रा १२, उत्त.भ २६गा १५ Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० श्री सेठिया जैन मन्यमाला प बोल भाग पृष्ठ विपय पड़ण्णा दस पंचकल्याणक पंच परमेष्ठी पंचम स्वर ५४० २२७१ अनु मृ १२७, ठा. ७.५५३ पंचमासिकी भिक्खुपडिमा ७६५ ४ २८६ सम १२ भ श २७.१, दशा.द.७ १२५३ उत्त अ २८गा ७टा ५४४ १ पंचास्तिकाय २७६ पंचेन्द्रियजीवों का समारंभ २६८ न करने से पॉच संयम १२८५ का ४३२ सू ४२६,४३० ६८६ ३ ३५३ २७५ १ २५३ २७४ १ २५२ पक्षाभास के सात भेद ५४६ २ २६१ पक्षी चार पचपनभेददर्शन विनय के १०१० ७ २७७ पचास भेद प्रायश्चित्त के १००४ ७ २७१ · प्रमाण पंचेन्द्रियजीवों के आरंभ से २६७ १२८४ टा ५३ २ पाँच प्रकारका असंयम द. प. पंचा. ६गा. ३०-३१, दशा द भ मंगलाचरगा ४२६ रत्ना परि ६सू ३८-४६ २७२ १ २५१ ठा. ४ उ ४सू. ३५० उपसु २० भ.श २५३.८०२, टा. १० ३७३३, २० ६४० ६ २१८ टा २ ६०, ५ ४१६, ११. प.२२, भाव ह.भ.४१ ६११ सूय श्र. ५३.२ पचीस क्रिया पची सगाथा सूयगडांगसूत्र६४९ ६ २१६ के पॉच अ० के दूसरेड की पचीस गुण उपाध्याय के ६३७६२१५ प्रवद्वा. ६६-६७ ४४२-४६६, विलो ४७११३० पचीस प्रतिलेखना ६३६ ६ २१८ उत्तथ २६गा २४-२७ पचीसभावनाएं पाँच महा-६३८ ६ २१७ सम २४,आचा. २ चू. ३म. व्रत की २४. १७६, आव ६ प्र.४५. ६६८, प्रवद्धा ७२ ६३६-६४०, ध. अधि. ग्लो, ४५, ११२५ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, अाठवाँ भाग २०१ विषय बोल भाग पृष्ट प्रमाण पञ्चक्रवाण के दस प्रकार ७०४ ३ ३७५ ठा. १०सू ७४८, भ.श ७ उ २ पञ्चक्खाण में प्राउ तरह ५८६ ३ ४२ घाव.ह.प्र.६ नि गा.१५७८, का संकेत (चिह्न) प्रवद्वा ४ गा २०० पट की कथा औत्पत्तिकी ह४६ ६ २६२ न सू.२७ गा ६३ टी. चुदि पर पडिमाग्यारह श्रावक की ७७४ ४ १८ दशा. द.६, सम ११ पडिमा बारह भिक्खु की ७६५ ४ २८५ सम १२,दशा द.७,भ श २उ । पडिलेहणा पचीस ६३६ ६ २१८ उत्त.भ २६ गा २४-२५ पडुच्चमक्विएणं-निविगइ६२६ ३ १७४ श्राव.हम ६८५४ ,प्रवद्वा.४ पञ्चक्खाण का आगार गा. २०५ पढमापढय के चौदह द्वार ८४२ ५ ३८ भ श १८३.१ सू.६१६ पणित की कथा श्रौत्प- ६४६ ६ २५६ न सू २७ गा.६३ टी. त्तिकीवुद्धि पर पण्डित मरण ८७६ ५ ३८३ सम.१७, प्रव द्वा १५७गा.१०.६ पण्डित वीर्यान्तराय ३८८ १४११ कर्म भा १गा ५२,पन्न ५.२३ १पण्य वस्तु चार २६४ १ २४६ ज्ञा. भ ८ सू.६६ पतंग वीथिका गोचरी ४४६ २ ५१ ठा ६सू ५ १४,उत्तम ३० गा. १६,प्रव द्वा६७ गा ७४५, ध. अधि ३श्लो.२२ टी.पृ ३७ पति की कथा औत्पत्तिकी ४६ ६ २६६ नसू २७ गा.६३ टी बुद्धि पर पदवियाँ सात ५१३ २ २३६ठा.३७.३सू १७७ टी. पद श्रुत ६.१ ६४ वर्म.भा १ गा ७ १ झयाणक, बेचने की वस्तु । Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ श्री सेठिया जैन गन्थमाला ~~~~~~mmmmmmmmmmmmmmmmmm~ ~ ~ ~~~~... विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण पद समास श्रत ०१ ६४ कर्म.भा १गा." पदस्थ धर्मध्यान २२४ १ २०८ ज्ञान प्रक ३८,यो प्रका.८,क भालो २०७-२०६ पदानुसारिणी लब्धि ९५४ ६ २६६ प्रत्र द्वा.२७० गा.१४६४ पदार्थ की तीन अवस्था ६४ १४४ तत्त्वार्य अध्या । सृ २६ पद्म लेश्या ४७१ २ ७४ उत्त अ: ४,धर्म. मा ४गा १३ पद्मावती ८७५ ५ ३६६ श्राव ह गा १३११ पद्य के आट गुण ५४० २ २७५ अनु सु १२७गा ५१,ठा ७२५५? पन्द्रह अंग मोक्ष के ८५० ५ १२१ पच व गी १४६-१६३ पन्द्रह कर्म भूमि ८५८ ५ १४२ पनप १,भ ग २०३ र ६७५ पन्द्रह कर्मादान ८६० ५ १४४ उपा प्र.१८५,मगर । सृ ३३०,प्राव हय पृ८०८ पन्द्रह गाथा अनाथना की ८५४ ५ १३० उत्त. अ.२० गा ३८-१२ पन्द्रहगाथा पूज्यताप्रदर्शक८५३ ५ १२७ दन म उ ३ । पन्द्रहगुणदीक्षा देनेवालेक८५१ ५ १२४ धमधि ३ग्लो ८०.८४१५ पन्द्रह नाम तिथियों के ८५७ ५ १४२ चन्द्र प्रा. १०मा प्रा १८ पन्द्रह परमाधार्मिक ८५६ ५ १४३ मम १४. . पन्द्रह प्रकार के मिद्ध ८४६ ५ ११७ पन प १ . पन्द्रह भेद बंधननामकर्मफे५६ ५ १४० कर्म भा १गा ३७,म्म गा १टी पन्द्रह योग ८५५ ५ १३८ पन्न प १६९ २० २,भ श.२५३ १ पन्द्रह लक्षण विनीत के ८५२ ५ १२५ उत्तय ११गा १०-११ पनवणा मूत्र केछत्तीसपदों७७७ ४ २२१ पत्र प १-२ का संक्षिप्त विपय वर्णन परदेशी राजा की कथा ७७७ ४ २१६ रा परदेशी राजा के छःप्रश्न ४६६ २१०७ ग सू ६३.७५ Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवाँ भाग २०३ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण परपाषंडी प्रशंसा २८५ १ २६५ | उपा असू ७, प्राव ह अ परपाषंडी संस्तव २८५ १ २६५ ६१८१० परमाणु ६१३ ठा १सू ४५ परमाणु ७३ १ ५३ ठा ३उ २ सू १६५ । परमात्मा १२५ १६० परमा गा १५ परमाधार्मिक देव पन्द्रह ५६० २ ३२४ प्रव.द्धा १८०गा १०८५-१०८६ परमाधार्मिक पन्द्रह ८५६ ५ १४३ सम १५ परमावधिज्ञानी क्या चरम १८३ ७ १०३ भ ग ७३ ७ सू.२६१ । शरीरी होते हैं ? परमेष्ठी पाँच २७४ १ २५२ भ मगलाचरण परम्परागम ८३ १६१ अनुसू १४४, । परलोक विपयमेंगणधर७७५ ४ ५४ विशे गा १६४६-१६७१ मैतार्यस्वामीकाशंकासमाधान परलोक नास्तित्ववादी ५६१ ३ ६४ ठा ८उ ३ मू ६०७ परलोक भय ५३३ २ २६८ ठा ७७ ३सू ५४६,सम ७ . परविस्मयोत्पादन ४०२१ ४३० उत्त य ३६गा २६१,प्रव द्वा ७३ पर सामान्य ५६ १४१ रत्ना परि ७ सू. १५,१६ परार्थानुमान ३७६ १ ३६६ रत्ना परि ३ सृ. २३ परार्थानुमान के पाँच अङ्ग३८० १ ३६६ रत्ना परि ३,न्यायदी प्रमा.३ पगवर्तमान प्रकृतियाँ ८०६ ४ ३५१ कर्म भागा १-16 परिकर्मोपघात ६६८ ३ २५५ ठा १०उ ३ स ७३८ परिकंचना प्रायश्चित्त २४५ख१ २२४ ठा ४उ १ २६३ ' परिक्रम संख्यान ७२१ ३ ४.४ ठा १०उ ३८ ७४७ ४६ १ २६ ठा २ १ सू ६४ परिग्रह Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय वोल भाग पृष्ट प्रमाण परिग्रहाभ्यन्तरके १४भेदच्४. ५ ३३ उ.१ गा८३१ परिग्रह का खरूप ४६७ २ १६८ परिग्रह के तीस नाम ६५८६ ३१० प्रश्न, ग्राश्रमद्वार ५ परिग्रहत्यागपर ११गाथा ६६४ ७ १८१ परिग्रह नौ ६४० ३ २११ प्राव हम..१८२५ परिग्रह परिमारण व्रत ३०० १ २६० थावह य ६१८२५,ठा. मृ ८८ उपा अ.१सूध मधि, २लो २६१६७ परिग्रह परिमाण व्रत के ३०५ १३०० उपा.प्र.१सू ७,याव ह म ६ पृ. पाँच अतिचार ८२५,ध मधि.२श्लो.४७ १०४ परिग्रह परिमाण व्रत ७६४ ४ २८२ प्रागम निश्चय और व्यवहार सं परिग्रह विरमण रूप पाँचवें३२१ १ ३२६ ग्राव ह म १६८,प्रय द्वा ७२ महाव्रत की पांच भावनाएं गाई ४०,गम,२५,माचाथ. रचू ३ २४ सू.१०६, ध मधि ३श्लो.४५टी पृ १२५ परिग्रह संज्ञा १४२ १ १०५ ठा ४३.४सू ३५६,प्रब द्वा १४४ परिग्रह संज्ञा ७१२ ३ ३८७ टा.१०.७५२,भ श.७३.८ परिग्रह संज्ञा चार कारणों१४६ १ १०६ य ४ उ.४ स ३५६, प्राता से उत्पन्न होती है १४ गा२३ परिचारणानारकीजीवाम५६० २ ३३६ पन ५३४:२० परिचारणा पॉच देवों की३६८१ ४२२ पन प.३४, रा. ५ ४०२टो, परिज्ञा पॉच ३६२ १ ३७५ टाउ स ४२० परिहावणियागार ५१७ २ २४७ धाव इ. १८५, प्रव.दा. १ वस्नु स्वरूप दा मान करना और मानपूर्वक म छोरना। Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवाँ माग विषय परिणामिया बुद्धि परिणामिया ( पारिणामि - ६१५६७३ की) बुद्धि के इक्कीस दृष्टान्त बोल भाग पृष्ठ २०११ १६० प्रमाण ठा ४उ ४ सू ३६४,न सू २६ नसू. २७गा ७१-७४, श्राव ह निगा ६४८- ६५१, निर अ १, परित्त संसारी ८ १६ ४६६ २ ६६ ३५५ १३७० परिमंडल संस्थान परिमाण संख्या के दो भेद ६१६ ३ १४२ परिमित पिण्डपातिक १ परिवर्तना परिवर्तित दोष ( गवेषणै - ८६५ षणा का एक दोष) ३८१ परिषद बाईस परोक्षज्ञान उत्त१गा ३ टी. ( कथा ) ठा २उ २सू ७६, मातुर गा ४३, भश २५ ३ ७२४, पन्न ११ अनुसू १४६ ठा. ५३.१सू ३६६ १३६८ ठा.५ उ ३ सू४६५ ५ १६३ प्रवद्वा ६७गा ५६६, ध अधि ३ श्लो २२ टीपृ ३८, पि नि गा ७२२ ३ ४०७ ५७६ ३ २४ परिहरण दोष परिहरणा पर कथा परिहरणोपघात परिहार विशुद्धि चारित्र ३१५ १३१८ ६६८ ३ २५५ २०५ ९.३, पि वि.गा ४, पचा १३गा ६ ६२० ६ १६० सम २२, उत्त २, प्रवद्वा ८६ गा ६८५-८६,तत्त्वार्थ भध्या ६ ठा. १०उ ३ ७४३ आवद्द ४नि गा. १२४२ परिहार विशुद्धि चारित्र ६०५ ६ १६ के बीस द्वार परुष वचन ठा. १० उ ३ सू ७३८ ठाउ, २सू ४२८, भनु सृ १४४, विशे गा १२७०-१२७६ पन्न १३७ टी ४५६ २६२ ठा. ६उ ३सू ५२७ प्रव द्वा. २३५ गा. १३२१,वृ (जी.) उ ६ न सु २, ठा २१ सू० ७ १ १२ १ ११ १ सीखा हुआ ज्ञान विस्मृत न हो इसके लिए उसे फेरना ! Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ श्री मंठिया जैन ग्रन्थमाला www.rrm ~ विपय घाल भाग पृष्ठ प्रमाण परोक्ष ज्ञान के दो भेद १५ १ १२ टा २ उपसू ७१,पा.प २६६सु. ३१२,मश ८३२ सु.३१८, कम भा.१गा ४, न १ परोक्ष प्रमाण के पाँच भेद ३७६ १ ३६५ रत्ग परि ३,४ पर्या (निपद्या का भेद) ३५८ १ ३७२ ठा.सू. ३६६टी.,टा. ४०० पर्याप्तक ८१५टा २ उ २ स ७६ पर्याप्ति छः ४७२ २ ७७ पनप १ १२वी ,भग. ३१ स1:0,प्रवद्वा२३२गा १३१७ १३१८, कर्म मा १ गा४६ पर्याप्तियोंके पूर्णहानेकाक्रम४७२ २ ७६ प प ११ १२टी ,प्रा द्वा २६२ पर्याय ४७ १ २८ उत्त.य २८ गाई पर्याय, पोयसपासश्रत १०१ ६३ कर्म भा. १ गा । आदिश्रुत ज्ञान के बीस भेद पर्याय श्रुत ह०१६ कर्म भा १ ग.७ , , पोय समास श्रत १६३ कर्म भा १ गा" पोयार्थिक नय १७ ११४ रन्ना परि ७१५ पर्यागार्थिक नय के भेद५६२ २ ४२१ घागम , द्रव्य न माया , पर्यपामनाक परम्परा फल७०८ : ३८३ ठार ३ ." पर्युसना कल्प ६६२ ३ २४१ पचा १७गा ३८-४० पर छ:यधिक तिथि वाले४३४ २४१ टाउ र ५२८ चन्द्र.प्रा ११ पर छः न्यूननिथि चाले ४३३ २४० टाउन २४,चन्द्र प्रा.१५ उत्तम ०६गा 18 पर्व बाज ४६६ २६६ दशम ४ र ५ पच्यापम ३२ १ २२ टा २३.८ ६ Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, भाउवाँ भाग २०७ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण पल्योपम की व्याख्या १०८ १ ७५ अनुसू.१३८-१४०, प्रवद्वा. और उसके भेद १५८गा १०१८-१०२६ पश्चानुपूर्वी ११६ १ ८४, धनु सू६६-६८, 'पांच अङ्ग परार्थ के ३८० १ ३६६ रत्ना परि ३,न्यायदी.प्रका : पाँच अणुव्रत ३०० १ २८८ श्राव ह अ.६१८१७,ठा ५ सू ३८६,उपा.अ १सू ६,ध घधि. २२लो २३-२६ पृ५७.६७ पाँच अतिचार अचौर्याण-३०३ १ २६६उपा अ १८ ७,प्राच ह पृ ८२.१ , व्रत के ध अधि २श्लो ४५१ १०२ पाँचअतिचार अथितिसंचि-३१२ १ ३१३ उपा अ १सू.७, श्राव ह य ६ भाग व्रत के पृ८३६ । पॉच अतिचार अनर्थदंड ३०८ १३०७ उपा अ १८.७, प्रव द्वा ६गा विरमण व्रत के २८२, प्राव ह य ६८२४ पाँच अतिचार अपश्चिम ३१३ १ ३१४ उपा. १सू ७,ध अधि २श्लो. मारणान्तिकी संलेखना के ६६ पृ. २३० पॉच अतिचार अहिंसाणु ३०१ १ २६० उपा अ १सू ७,ध अवि.२श्लो. व्रत के ४३११००,श्राव ह अ.१८१८ पाँचअतिचार उपभोगपरि-३०७ १ ३०५ उपा.अ १ सू७, प्रव द्वा ६ गा भोग परिमाण व्रत के २८१ . पॉच अतिचार दिशा परि-३०६ १ ३०३ उपा.अ.१ म.७ पाण व्रत के पाँच अतिचार देशावका- ३१० १३१० उपा असू ७,भाव ह भ पृ. शिक व्रत के ८३४,व अधि २ श्लो ५६१ ११४ पाँच अतिचार परिग्रह ३०५ १३०० उपा.म १सू ७, प्राव हथ.६ परिमाण प्रत के पृ८२५,ध श्रधि २श्लो ४५४८ पृ १०५-१०७. Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ श्री सेठिया जैन मन्थमाला प्रमाण बोल भाग पृष्ठ ३११ १ ३११ उपाम १७ विषय पाँच अतिचार प्रतिपूर्ण पौपध व्रत के पाँच अतिचार संलेखना ३१३ १ ३१४ उपाम. १७,ध.अधि. २श्लो. ६६टी पृ.२३० पाँच अतिचार सत्या ३०२ १२६४ उपा.घ १७, धमधि २श्लो. ४४ व्रत के १. १०१, भाव. हम ६१.८२० पाँच अतिचार समकित के २८५ पाँचअतिचारसामायिकत्रतके ३०६ १२६५ उपा.म. १.७ मा ६ पृ. ८१० १ ३०६ उपाथ १ सू. ७,भाव ह१.८३१ पाँच अतिचार स्वदार संतोष व्रत के पाँच अतिशय आचार्य ३४२१३५३ ठा५३ २ ४३८ उपाध्याय के ३०४ १२६८ उपाय १.७ टी. पाँच अनन्तक पाँच अनन्तक पॉच अनुत्तर केवली के पाँच अनुत्तर विमान १ पॉच अभिगम श्रावक के३१४ १३१५ पाँच अवग्रह ३३४ १ ३४४ ४१७ १ ४४१ ठा ५उ. ३ सृ ४६२ ४१८ १४४२ ठा ५उ. ३. ४६२ ३७६ १३६१ टा. ४ उ.१ सू.४१० ३६६ १४२० पत्र प. १.३८,भश. १४३.७ भश.२ उ. ४ सू १०६. माचा ९. २१ म.उ. ९सू १६२, १६३. २. ५६७ प्रवद्वा८५ ६८१ पाँच अवन्दनीय साधु ३४७१३५७ भाव. इम. ३ निगा ११०७, पाँच अशुभ भावना पृ ५१६ प्र द्वा.२मा १०३-२३ ४०११ ४२८ प्रवद्वा. ७३गा ६४१, उत्त.भ. ३६ मा. २६१-२६४ १ साधु के सामने जाते समय मचित्त इव्यादित्याग रूप पाले जाने वाले नियम । Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्वान्त बोल संग्रह पाठवा भाग २०६ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण पॉच असंयम २६७ १ २८३ ठाउ रस ४२६,४३० पाँच अस्तिकाय २७६ १२५३ उत्त. २८गा ७-१२,ठा ५ उ३ सू.४४१ १ पाँच आचार ३२४१३३२ ठा ५उ २सू ४३२, ध श्रधि ३ श्लो ५४ पृ१४० पाँच श्राचार्य ३४१ १ ३५२ ध अधि ३श्लो ४६टी पृ१२८ पॉचआलंबनस्थानधार्मिकके ३३३ १ ३४३ ठा ५७.३ सू.४४७ पाँच आश्व २८६ १२६८ ठाउ २सू.४१८,सम ५ पाँच इन्द्रियाँ ३१२ १४१८ पनप १५सू १६१,टा ५३ सू.४४३टी, जै प्र. पाँच इन्द्रियों का विषय ३६४ १ ४१६ पन्न प १५उ. १सू १६५ परियारण पाँच इन्द्रियों के तेईसविषयह२६ ६ १७५ टा सू.४७,३४०,५६६,पन्न प. २३.२सू.२६३,प.वोल १२, तत्वार्थ अध्या २ सू.२१ पाँच इन्द्रियों के संस्थान ३६३ १ ४१६ पनप १५,ठा.५ सू. ४४३टी पाँच कलहस्थान गच्छ में ३४४ १ ३५५ ठा ५उ.१सू. ३६६ आचार्य उपाध्याय के पाँच कल्याणक २७५ १२५३ पचा गा.३०-३१, दशा.द.८ २ पांच कामगुण ३६५ १४२० ठाउ १सू ३० • पांच कारण अवधिज्ञान या३७७ १ ३६२ ठा ५उ १ सू ३६४ अवधिज्ञानीकेचलितहोने के पाँच कारण आचार्य उपा-३४३ १ ३५४ टा.. उ.२ सू.४३६ ध्याय के गण से निकलने के १ मोक्ष प्राप्ति के लिये किये जाने वाला ज्ञानादि भासदन रूप अनुष्टान विशेष । २ काम अर्थात् प्रभिलाषा को उत्पन करने वाले गुण, शब्दादि । Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 २१० विषय पाँच कारण चौमासे के पिछले सित्तर दिनों में विहार करने के श्री सेठिया जैन मन्यमाला प्रमाण बोल भाग पृष्ठ ३३७ १३४७ ठा ५ उ २ सू४१३ पाँच कारण चौमासे के ३३६ १३४७ ठा ४ उ २ सृ४१३ प्रारंभिक पचास दिनों में विहार करने के पाँच कारण दुर्लभ बोधि के २८६ पॉचकारण निद्रासेजागने के४२० ३४६ पाँच कारण पारंचित प्रायश्चित्त के १२६६ ट ५३२ सू.४२६ १४४४ ठा४ उ.२ सू ४३६ १३५६ ट ५३ १३६८ पाँच कारण मोक्ष प्राप्ति के २७६ १२५७ भागम, कारण,, सम्मति भा. ४ कांड३ गा ५३ पाँच कारण शिक्षा में बाधक४२३ १ ४४६ उत्तथ ११ गा ३ पाँच कारण संभोगी साधु ३४५ १३५६ ट ५३१ ३६८ को अलग करने के पाँच कारण साधु द्वारा ३४० १३५१ टा २४३७ साध्वी को ग्रहण करने या सहारा देने (स्पर्श करने) के पाँच कारण साधु साध्वी ३३६ १ ३४६ या ४८२ ४१७ के एकजगह स्थान, शय्या, निपधा आदि के पाँच कारण सुलभवोधिके २८७ १ २६६ ५ उ४२६ पाँच कारण मूत्र की वाचनाके३८२ १ ३६८ ठा५३३.६८ पाँच कारणों से साधु मास ३३५ १ ३४६ टा. ४ उ.२ मृ. ४१२ में दो या तीन वार पांच महानदियों कोपारकरसकता है Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग २११ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाणा पाँच कारणों से साधु राजा३३८ १ ३४८ ठा ५उ २ सू ४१५ के अन्तःपुर में प्रवेश कर सकता है पाँच क्रिया २६२ १ २७६ । ठा २सू ६०,ठा : सू ४१६, पाँच क्रिया २६३ १ २७७ ) पन प २२ सू २७६-२८४ पाँच क्रिया २६४ १ २७६ ] ठा २सू ६०.३ सू ४१६, पाँच क्रिया २६५ १ २८० [ भाव ह.अ ४प ६१२-६ १३ पाँच क्रिया २६६ १ २८२ ठासू ६०,४१६,भाव ह भ ४ पृ ६१४,सुय श्रु २ अ २गा १६८ पाँच गति २७८ १ २५७ ठाउ ३ सृ ४४२ पाँच जाति २८१ १ २५६ पन०प २३उ २सू २६३,प्रव द्वा १८७गा.१०६८-११०४ १ पाँच दग्धाक्षर ३८५ १४०६ सरल पिगल पाँच देव ४२२ १४४५ ठा ५स ४० १,भ०श १२ उ ६ पॉच दोप मांडला (ग्रासै- ३३० १ ३३६ उत्त भ २६ गा ३२,पि नि गा पणा) के । ६३५-६६८,ध अधि ३श्लो २३१५५,उत्त अ २४गा १२, पॉच धाय (धात्री) ४०८ १ ४३४ भ रा ११३ ११सू ४२६,प्राचा श्र२चू ३म २४स १७६ ४१४ १४४२कर्म भा १गा ११-१२,पन्न०प २३ पाँच निर्ग्रन्थ ३६६ १ ३७६ ठा ५सू ४४५, भ श २५ उ६ पाँच निर्याण मार्ग २८० १ २५६ ठा५३ ३ स ४६ १ पाँच परमेष्ठी २७४ १ २५२ म मंगलाचरण पाँच परिचारणा देवों की ३९८ १ ४२२. पन्न प ३४,ठा ५ स .०२ टी पाँच परिज्ञा ३६२ १ ३७५ ठा ५उ सू.४२० १ काव्य में विशेष अशुभ तथा दूपित माने जाने वाले अक्षर । पाँच निद्रा Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घी सेठिया जैन प्रत्यमाला विषय घोल भाग पृष्ठ प्रमाण पाँच पाँचभावनाएंगदत्ता-३१६ १ ३२६ दानविरमा व्रत, सम २५, आवायु २चुम परिग्रह विरमण व्रत, ३२१ १ ३२६ , २४सू १७६, भाव.इ.४४ प्राणातिपात विरमण व्रत,३१७ १ ३२४ १६५८,प्रव मृपावाद विरमणव्रत और३१८ १ ३२५ । 1 से ६ ४.,ध अधि,३ श्लो. ४५ टी पृ १२५ मैथुन विरमण व्रत रूप ३२० १ ३२७ / पांच महाव्रतों की पॉचपाँचभेद अस्तिकाय के२७७ १ २५४ ठा ५३ ३सू.४४१ पाँच प्रकार पाभियोगिकी४०४ १४३१ उन. ३६ २६२,प्रम द्वा भावना क ७३गा६४८ पॉचप्रकारामुरीभावना.४०५ १ ४३१ । उन प्र.३६गा २६ ४,२६१, पाँचप्रकारकन्दभावनाक४०२१ ४२८ । प्रब टा ७३गा ६८५.६४२ पाँचप्रकारकाप्राचारप्रकल्प३२५ १ ३३३ टा। उस ०३३ पाँच प्रकारका दण्ड २६० १ २६६ ठा। उ २ १८ पॉचप्रकारका प्रत्याख्यान३२८ १३३६ ठास ४६६, माय. १८४. पाँच प्रकार का स्वमदर्शन ४२११४४४ भाग १६उ ६ मृ ५७७ पाँचप्रकारकिल्चिपीभावनाकंट.३ १ ४३० उतम ३६गा.२६ २,प्रय हा ३३ पॉचप्रकार की प्रचित्तवायु४१३ १ ४३८ ठार.३ ४८८ पाँच प्रकार के मच्छ ४१० १ ४३६ ठा। उ १५३ पॉचप्रकार के मुण्ड ३६४ १ ३७८ टा । ३ ३ १ ४४ ? पाँच प्रकार के मुण्ड ३६५ १३७६ टा.५३३ ४ ३ पाँच प्रकार के वनीपक ३७३ १ ३८७ टा.५३ १४ पाँच प्रकार के श्रमण ३७२ १३८७ प्रर द्वा: ११ Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवा भाग विषय पाँच प्रकार सम्मोही भावना के पाँच प्रतिक्रमण पाँच प्रतिघात पाँच प्रमाद वोल भाग पृष्ठ ४०६ १ ४३२ प्रमाण उत्तम ३६ गा २६५टी, प्रवद्वा ७३ गा. ६४६ ३२६ १ ३३७ ठा ५उ ३ सू ४६७, आव ह अ ४ मा १२५०-१२५१ ४१६ १ ४४० ठा ५उ १ सू ४०६ २६१ १ २७० पचा १गा २३टी, ध भवि २श्लो पाँच बोल छद्मस्थ साक्षात् ३८६ १४०६ का ५३३ सू.४५० नहीं जानता पॉच बोल भगवान् महावीर ३५०, १३६४, से उपदिष्ट एवं अनुमत ३५१ १३६५ ३६टी पृ ८१ ठा ६ उ ३मू ५०२, ट १६रलो. १टी ر महापर्यवसान के पाँच भाव जीवों के २१३ पॉचवोलपासजाकरवंदना३४८ १ ३६३ प्रवद्वा २गा १२४, यावह ह्य् ३ निगा ११६८५४० करने के असमय के पॉचवोलपासजाकरवंदना ३४६ १ ३६४ प्रवद्वा २गा १२५, याव६ ३ करने योग्य समय के निगा ११६६ पृ५४१ पॉच वोल भगवान् महावीर ३५२ से उपदिष्ट एव अनुमत पाँच बोल महानिर्जरा और ३६० १३७४ का ५ १ ३६७ महापर्यवसान के ५३६६, प्रवद्वा ६६ गा ५४४ ध अधि. ३ श्लो. , ४६पृ १२७ १३६७ ठा५३१ ३६६ . पॉच बोलमहानिर्जरा और ३६१ १ ३७४ ठा५ उ १ सू ३६७ ३८७ १४०७ कर्म भा. ४गा. ६४-६८, अनुसृ १२६, प्रवद्वा. २२१ गा.६०-६८ Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला बोल भाग पृष्ठ वि वो २२ १८३ विपय पाँच भिक्षुकमच्छ की उपमा ४१११४३७ पाँच भूपण समकित के २८४१२६४ पाँच भेद अन्तराय कर्म के ३८८ १ ४१० पाँच भेद आगेपणा के ३२६ १३३४ टाउन्सू ४३३,सम २८ टी. ३६६ १३८४ टा ५३ ३ सू.४४५ १५. २३, कर्म मा १गा ४० पाँच भेद कुशील के पाँच भेद चारित्र के ३१५ १ ३१५ ठतू ४२८, १४४, विशे गा १२६० - १९८० ३७५ १ ३६० टाई ४६३, कर्मभा १९ पाँच भेद ज्ञान के पाँच भेद ज्ञानावरणीय के ३७८ १३६३ य सू. ४६४, कर्ममा १ प्रमाण ठाउ ३ सू ४५३ १४२३० ४ ४०१, जी प्रति ३.१२० १४३५ प ११ उ. ३ ६ १६६-६६ पाँच भेद ज्योतिषी देवों के ३६६ पाँचभेद तिर्यच पंचेन्द्रिय के४०६ पाँच भेद निर्ग्रन्थ के पाँच भेद निपचा के पाँच भेद परोक्ष प्रमाण के पाँच भेद ३६८ १३८३ टा५३ ८४४ पुलाक कं पॉच भेट वकुश के पाँचभेद बन्धन नामकर्म के ३८० १४१५ कर्ममा १३५२१६ पाँच भेट वस्त्र के ३७४१३८६ पाँचभेदवेदिकाप्रतिलेखनाके ३२२ १ ३२० पाँच भेद शरीर के ३८६ १४१२ ट ८६ ३७० १ ३८५ ठा.३३४४५ ३५८ १ ३७२ ३७६ १ ३६५ रत्ना परि ३, ३६७ १ ३८२ ठा. ५.४४४ . २५३० पाँच भेद संवातनामकर्मके ३६१ १ ४१६ पाँच भेदसंसारी निधि के ४०७ १ ४३३ पाँच भेद समकित के २८२ १ २६१ ३ ४०० उ. ३ १०३ टी. ३१३६१.२५ ०६७ मा १.३३ , मा १गा ३६, २१६ ३.४ ३३ मा १.१४ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त चोल संग्रह, पाठवा भाव २१५ - विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमारण पाँच भेद स्नातक के ३७१ १ ३८६ ठा.५सू ४४५,भ श २५ उ ६ पाँच भेद स्वाध्याय के ३८१ १ ३६८ ठाउ ३सू ४६५ पाँच महानदियोंको१मास३३५ १ ३४६ ठा,५३.२सू.४१२ में दो, तीन बार साधु द्वारा पार करने के पाँच कारण पाँच महाव्रत ३१६ १ ३२१ दश.म.४,ठा ५.१सू.३८८, प्रवद्वा ६ ६गा ५५३,ध अधि३ श्लो ३६-४४ पृ १२० पॉच मिथ्यात्व २८८ १ २६७ कर्म भा ४ गा ५१,ध अधि २ श्लो २२ टी पृ. ३६ पाँच रस ४१५ १४३६ ठा ५२ ११ ३६० पाँच लक्षण समकित के २८३ १ २६३ ध अधि २श्लो २२ टी. पृ ४३ पाँच वर्ग निरयावलिकाक३८४ १ ३६६ निर पाँच वर्ण ४१४ १४३६ ठा ५उ १सू ३६० पाँच व्यवहार ३६३ १ ३७५ ठा५सू ४२१, भ.श ८ उ.८ सू३०४,व्यवमा पीठिकागा १-२ पॉच शौच (शुद्धि) ३२७ १ ३३५ ठा. उ ३सू ४४६ पाँच संयम २६८ १२८४ ठा ५उ २सू ४२६-४३० पाँच संवत्सर ४०० १ ४२४ ठासू ४६ ०, प्रष. द्वा १४२ पाँच संवर २६४ १ २८५ ठा.५सू ४१८,४२७,प्रश्न धर्मद्वार पाँच सभाएं इन्द्रस्थान की ३६७ १ ४२१ ठाउ ३सू ४७२ पाँचसमिति की व्याख्या ३२३ १ ३३० सम ५,उत्तम २४गा २,ठा ५सू. और उसके भेद ४५७,ध अधि.३श्लो ४७१ १३. पाँचस्थानकवलीकेपरिपह३३२ १ ३४२ टा.५उ १सू ४०६ उपसर्ग सहन करने के Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ श्री संठिया जैन अन्यमाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण पाँचस्थानछद्मस्थकेपरिपह३३१ १ ३४० ठाउ १ सू ४.६ उपसर्गसहन करने के पाँचस्थानभगवान् महावीर ३५३-१ ३६७-६ से उपदिष्ट एवं अनुमत ३५७ १ ३७३ । ठाउ १८.३६६ पाँचस्थानभगवान् महावीर३५६ १ ३७३ ठाउ.११.३६६ से उपदिष्ट एवं अनुमत पाँच स्थान सूत्र सीखने के ३८३ १ ३६६ टा./उ ३ सृ.४६८ पाँच स्थावरकाय ४१२ १ ४३७ ठा.उ.१२ ३६३ पारखण्ड धर्मर ६६२ ३ ३६१ या १०उ.३स ७६ . पाणिमाण विशोधन ४४८२ ५३ ठा.६उ.३सू ५०३,उत्तम २६ प्रतिलखना गा२४ १ पाण्डक निधि ६५४ ६ २२१ ठाउ ३ सू ६७३ पात्र परिकर्मोपघात ६६८३ २५५ ठा १०उ.३८ ७३८ पादपोपगमन मरण ८७ ५ ३८५ सम १७,प्रवद्वा.१५७गा.१००७ पान पुण्य ६२७ ३ १७२ ठाउ ३ स ६७६ पानी(धोक्न) इक्कीस ११२ ६ ६३ भाचा.ध्रु २५.१ ७ ८सू ४१, प्रकार का ४३, पिनि गा १८-२१,दा. अ.५उ १ गा.७५-७६ पानपणा के सात भेद ५२० २ २५० माचा. २ च. १६ १७ ११ सु ६२,ठा. ड. सू५४४टी. घधि ३ श्लो २२टी ५ पाप प्रकृतियॉवयासी ८०६ ४ ३५१ / कर्म भा.५ गा. १६-१७, पाप प्रकृतियाँ क्यासी ६३३ ३ १८२) नागा.१३-१५ १ चम्वती की नौ महानिधियों में से दूसरी निधि । -- Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग २१७ Y OT र विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण नापबॉधने के अठारहप्रकार६३३ ३ १८२दशा.द ६,ठा. १ ४८,भ.श १उ.. नापभोगन केवयासीप्रकार६३३ ३ १८२ नव. कर्म भा.गा १६-१७ चाप श्रुत के उनतीस भेद १५६ ६ ३०५ सम २६,उत्त अ.३१गा.१६टी., भाव ह.अ ४ पृ६६. पाप श्रुत नौ ६४३ ३ २१४ या उ.३ सू.६७८ पाप स्थानक अठारह ८६५ ५ ४१२ ठा.१ सू ८८,प्रव द्वा. २३७ गा १३५१-१३५३, दशा द६, भ.श.१३ ६, भ श १२ उ.५ पारंचितप्रायश्चित्त के ५बोल३४६ १ ३५६ या ५ उ १ सू ३६८ पारिग्रहिकी क्रिया २६३ १ २७८ ठा २उ १ सू ६०, ५उ २सू. ४१६, पन प.२२ सू.२८४ पारिणामिक भाव की ३८७ १ ४०६ कर्भ भा ४गा ६६, अनु सू १२६, व्याख्याभोरउसके तीनभेद प्रवद्वा २२१ गा १२६४ पारिणामकी बुद्धि २०१ १ १६० ठा ४३.४सू. ३६४,न सू २६ पारिणामिकी(परिणामि-११५ ६ ७३ नम्.२७ गा.७१-७४,प्राव-ह. या)बुद्धि के इक्कीसदृष्टान्त गा.६४८-६५१ पारितापनिकी क्रिया २६२ १ २७७ ठा २उ १ सू ६०,ठा ५उ २ सू. ४१६, पन प.२२ सू २७४ पारिपद्य ७२६ ३ ४१६ तत्त्वार्थ अध्या.४ सू ४ १ पार्श्वनाथ भगवान के ५६५ ३ ३ सय ८३.३सु ६१७,सम ८ गणधर आठ पास जाकर वन्दना करने ३४८ १ ३६३ प्रव द्वा २गा १२४,श्राव हम. के पॉच असमय ३ नि.गा.११६८१५४. पास जाकर वन्दनाकरने ३४६ १ ३६४ प्रवद्वा २गा.१२५,माव.ह भ.३ योग्य समय पाँच निगा.११६६.५४१ १ पृष्ठ ३७ पर टिप्पणी दखो। Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ श्री मेटिया जैन प्रन्थमाला wwwmummunwar norm wwwin विषय वोल भाग पृष्ट प्रमाण पासत्य(पाश्वस्थ)साधु ३४७ १ ३५७ प्रब दा २गा १०४-१०५,आर हम.३नि गा.११.७.११.८ पिंगल निधि ६५४ : २२१ टा ६उ स १७३ पिण्डस्थ धर्मध्यान २२४ १ २०८ ज्ञान प्रक ३७,यो प्रका ७, मा २ श्लो २०७ पिंडपणाएं सात ५१६ २ २४६ प्राचा..२ च १२ १३ ११ सू६२ला.ज्य.स.१४५टी ध अधि श्लो.२२टो.१४५ पिता के तीन अङ्ग १२२ १ ८७ ठाउ ४८ २०६ पिहिय दोप(ग्रहणपणा ६६३ ३ २४३ प्रब द्वा ६७ ५६८,पि नि.गा. का एक दोप) ४२०,ध अधि ३ ग्लो २३टी. पृ४१,पचा १३गा.२६ पीड़ित वायु ४१३ १४३६ ठा ५३ २सू ४४४ पुण्डरीक,कुण्डरीककी कथा६०० ५ ४७२ ज्ञा० १६ पुण्य की तीन अवस्थाएं ६३३ ३ २०१ नवगा.१ व्याख्या पुण्य के नौ भेद ६२७ ३ १७२ टा.६ उ ३मू ६७६ पुण्यपाप विपयकगणधर७७५ ४ ५४ विशे.गा १६०५ - १६४८ अचलभ्राताकाशंकासमाधान पुण्य प्रकृतियाँ ८०६ ४ ३५० चर्म मा ५ गा १,१४,१५, पुण्य प्रकृतियॉ बयालीस ६३३ ३ १८२ पुण्य प्रकृतियाँ बयालीस १६३ ७ १५० ) पुण्य वॉधने के नौ प्रकार ६३३ ३ १८१ ना , टा.६.३म् १७६ पुण्यभोगनके ४२ प्रकार ६३३ ३ १८२ नर , धर्म मा ५ गा १५.१७ पुण्यवान को प्राप्तदसवोल ६५६ ३ २२४ उत प्र.३गा १७-१८ पुत्र की कथायोत्पत्ति की १४६ ६ २७१ नं २७ गा.६३ टी बुद्धि पर नवगा१०.१२ Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, पाठवाँ माग २१६ विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण पुत्र के दस प्रकार ६७७ ३ २६५ ठा १०उ ३ सू.७६ २ पुगल के छः भेद ४२६ २ २५ दश न.४ भाष्य गा ६० टी पुद्गल छःकीइन्द्रियविषयता४२६ २ २५ दश०.४ भाष्य गा ६०टी पुगल द्रव्य ४२४ २ ३ प्रागम ,उत्तथ ३६गा १० पुद्गल परमाणुनों की ६१७ ३ १३४ विशे गा ६३१-६३७ वर्गणा पाठ पुद्गल परावर्तन आठ ६१८ ३ १३६ कर्म भा ५ गा ८६.८८ पुद्गल परावर्तन सात ५४६ २ २८४ ठा ३उ ४स १६३टी ,भश १२ उ४सू ४४६,कर्म भा गा.८७८८,प्रवद्वा.१६२गा १०३६ से१०५२,पच द्वा २गा ३६टी. पुल परिणाम चार २६६ १ २४७ ठा ४२.१ सू २६५ पुद्गलास्तिकाय के ५ प्रकार २७७ १२५६ ठा ५उ ३ सू ४४१ पुद्गलोकेशुभाशुभपरिणाम:०० ५ ४५८ ज्ञा०य १२ पुप्फचूलिया सूत्र के दस ३८४ १ ४०३ निर० अध्ययनों का विषय वर्णन पुप्फचूलिया सूत्र के दस ७७७ ४ २३४ निर० अध्ययनों का विपयवर्णन पुफियामूत्र के दस अध्य-३८४ १ ४०१ निर० यनोंकासंक्षिप्तविषयवर्णन पुफिया सूत्र के दस अध्य-७७७ ४ २३३ निर• यनों कासंक्षिप्त विपयवर्णन पुरिमड़ह (दोपहर)अवडढ७०५ ३ ३७७ प्रव द्वा.४गा २०१-२,प्राव इ.स (तीन पहर)का पञ्चक्रवाण ६गा १५६७पचा गा८-११ पुरिमड्ह (दो पोरिसी) के ५१६ २ २४६ श्राव ह भ पृ८४२,प्रव द्वार सात आगार गा २०३ Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाता पुरुपार्थ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण पुरुपकार(उचोग) २७६ १ २५७ भागम.,कारगण ,सम्पति.भा कांड३ गा.५३ पुरुप के तीन प्रकार ८४ १६१ ठा ३उ ३म् १६६ पुरुष लिंग सिद्ध ८४६ ५ ११६ पन्न.५ १ सृ." पुरुप वेद ६८ १४६ उ ४,कर्म.मा.१ गा.२० २७६ १२५७ प्रागम कारगा सम्मति मा । फाड गा३ पुरुपार्थ के चार भेद १६४ १ १५१ पुरुषा पुलाक ३६६ १ ३७६ ) | टा.५र उसू ४४.मग पुलाक (प्रतिसेवा पुलाक)३६७ १३८२ । उ ६ सू.७५ १ के पाँच भेद पुलाक लब्धि ६५४ ६ २६७ प्रवद्रा २७०गा १६५ पुष्करवरद्वीपमें चन्द्रमर्यादि७६६ ४ ३०१ सूर्य प्रा.१६ सू.१०० ज्योतिषी देवों की संख्या पुष्करोदघिसमुद्रचन्द्रमर्या७६६ ४ ३०२ मूर्य प्रा १६ र १०० दिज्योतिषी देवोंकीसंख्या पुष्पचूला ८७५ ५ ३६४ भाव ह नि ? १२८८ घुप्पवनी देवी को कथा ११५६ ८० न.म. गा, ग्राम नि, पारिणामिकी बुद्धि पर पूजातिशय १२६ व १६७ म्या.का टी पूजा प्रशंसा के त्याग पर ह६४ ७ १६० दस गाथाएं पृन्यता प्रदर्शक१५गाथाएं-५३ ५ १२७ दग प्र.: 33 गा Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, श्राठवाँ भाग २२१ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण पूति कर्मदोप ८६५ ५ १६२ प्रवद्वा ६७गा ५६५,ध अधि. ३श्लो २२टी पृ ३८,पि नि गा ६२,पि.वि गा ३,पचा १३गा ५ पूरक प्राणायाम ५५१ २ ३०३ यो प्रका ५ श्लो ७ पूर्णिमाएं वारह ८०० ४ ३०२ सूर्य प्रा १०प्रा प्रा ६ सू ३८ पूर्वकृत कर्म तय २७६ १ २५७ पागम कारण ,सम्मति.भा ५ काड३ गा ५३ . पूर्व चौदह ८२३ ५ १२ नसू ५७,सम १४,१४७ पूर्वधर लब्धि ६५४ ६ २६४ प्रव द्वा २७० गा १४६३ पूर्वमीमांसा दर्शन ४६७ २ १५२ पूर्वश्रुत ६०१ ६५ कर्म भा.१ गा ७ ६०१ ६५ कर्म भा १ गा ७ पूर्वानुपूर्वी ११६ १ ८४ अनु सू६६-६८ पूर्वार्चिक (पुरिमड्ढी) ३५५ १ ३७० ठा ५उ १ सू ३६६ १पृच्छना ३८१ १ ३६८ ठा ५७ ३ सू ४६५ पृथक्त्व वितर्क सविचारी २२५ १ २०६ठा ४उ १सू २४७,ज्ञान प्रक ४२, शुक्लध्यान श्राव हश्र ४ ध्यानशतक गा ७७-७८, क.भा २श्लो १२ पृथुल संस्थान ५५२ २ २६३ ठा १सू ४७, ठा ७ सू ५४८ पृथ्वियां भाठ ६०८ ३ १२६ ठा:८उ ३सू ६४८ पृथ्वीआदिभूतोंके विषयमें७७५ ४ ३६ विशे गा १६८७.१७६६ व्यक्तस्वामीकाशंकासमाधान पृथ्वीकाय ४६२ २ ६४ ठा ६उ ३सू ४८०, दश अ४, कर्म.भा ४ गा १० १ गोखे हुए सत्रादि ज्ञान में शका होने पर प्रश्न करना । Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ श्री मेटिया जैन अन्यनाला विपय बोल भाग पृष्ठ पृथ्वीका के चालीस भेद ६८७७ १४५ पृथ्वीकाय के सात भेद ५४५२२८४ ४६५ २ ६५ पृथ्वी के बः भेद पृथ्वी के देशतः धृजने के ३वोल ११६ १८२ पृथ्वी वलयां सेवलगित है११५ पृथ्वीसारीधूजने के बोल ११७१८२ १८१ १ पृष्ट लाभिक पृष्टिना (पुट्टिया) क्रिया पेटा गोचरी ममाण पन प १ सू. १५ पन. १ सृ १४ जी. प्रति ३१०१ टा ३ ४ १६5 उ. ४ सू २२४ ठा ३३.४ सू १६८ ३५४ १ ३६६ ठा ५.१.३६६ २६४१२७६ टा.२ ६०, ट ४ ४१६ ४४६ २ ५१ ठा ६.३५१४, उत्त भ ३० こ १६, प्रवद्वा ६ ७ ७४५, वधि २२ पृ ३७ पैंतालीस थागम पैतालीसगाथाउत्तराध्ययन ६६६ ७ २५४ उत्तत्र १५ मूत्र के पचीसवें अध्ययन की पैंतीस गुण गृहस्थधर्म के ६८० ७७४ योलका ११लो ४७-६६११ पैतीस वाणी के अतिशय ६७६ ७७१ सम ३४, रामदीय म १० टी. ६२४ ३ १६४ टा.६६६१, अणुच.३ ६६७ ७२६० जैय, अभिगमा १ प्रस्तावना C पोटिल नगार पोतक वस्त्र ३७४१३८० 21 पोरिसी का प्रमाण चार ८०३४ ३०४ उत्नभ २६गा १३-१४ महीनों का ४८३ २६७ पोरिसी के छ: आगार पग्मिी सापोरसी का ७०५ ३३७७ पच्चक्रवाण १ माहार नादि के लिए पूछने वाले दाता में ही मित्रा ऐने वाला अभिप्रधारी साधु ● का बना हुआ । प्राद्वा८२०१०९०, भाव अनिगा १४६३७. ८११-१२ मा ८-११ Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संघs, पाठवाँ भाग विषय चोल भाग पृष्ठ प्रमाण पौगलिक सम्यक्त्व १० ११० प्रव द्वा १४६ या ६ ४२ टी. पौषध के अठारह दोष ८६४ ५ ४१० शिक्षा, पौषध के पाँच अतिचार ३११ १ ३११ उपा. १ सू" पोषध व्रत निश्चय और ७६४ ४ २८४ भागम. व्यवहार से पौषधोपवास व्रत १८६११४०पंचा ३गा २६,प्राव ह भ पृ.८३५ प्रकीर्णक ७२६ ३ ४१६ तत्त्वार्य.अध्या ४ सू ४ प्रकीर्ण तप ४७७ २८८ उत्त-अ ३० गा ११ प्रकृति बन्ध २४७ १ २३१ ठा.४५.२६६,कर्म.मा १गा २ प्रकृतियॉर८मोहनीयकमकीह५१ ६ २८४ कर्म.भा १गर १३-२२,सम २८ प्रकृतियॉ४१उदीरणाविनाह८६ ७ १४६ कर्म भा ६गा ५४-५५ उदय में आने वाली प्रकृतियाँ ४२नाम कर्म की ६६१ ७ १४६ पन्न.प २३२.२सू २६३ प्रकृतियाँ ४२ पुण्य की १६३ ७ १५० कर्म.भा.मा १५,१७ प्रचला ४१६१४४३ | फर्म भा १गा.११, पन्न प २३ मचलाप्रचला ४१६ १४४३ | उ २सू २६३ मच्छन्न काल आगार ४८३ २ १८ श्राव हश्र ६ पृ ५८२,प्रव द्वा.४ २ प्रज्ञा अवस्था ६७८ ३ २६८ ठा १• उ ३ स् ७७२ मतर तप ४७७ २८७ उत्तय ३०गा १० मतर नरकों में ५६० २ ३२८ जी प्रति.३सू ५० टी प्रतर भेद ७५० ३ ४३३ ठा १०सू ७१३टी ,पन्न प १३ १ वे देव जो नगरनिवासी प्रयवा साधारण जनता की तरह रहते है। २ दस अवस्थाओं में से एक अवस्था, इस अवस्था को प्राप्त होने पर पुरुष को अपने अभीष्ट की सिद्धि एव कुटुम्बवृद्धि की बुद्धि उत्पन्न होती है। Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विपय घोल भाग पृष्ठ प्रमाण प्रतान स्वप्न दर्शन ४२१ १ ४४४ भरा १६उ ६सू ५७७ प्रतिक्रमण आवश्यक ४७६ २ ६१ प्राव ह प ४ प्रतिक्रमण कल्प ६६२३ २४० पचा १७ गा.३२-३४ प्रतिक्रमण के पाठ भेद ५७६ ३ २१ भाव ह प ४नि गा १२३३और उन पर दृष्टान्त १२४२ प्रतिक्रमण के छः भेद ४८० २ १४ टा.६उ ३ सु.५३८ प्रतिक्रमण क्याव्रतरहित ११८६ १४४ प्राव ह य ४नि.गा १२७०टी को भी करना चाहिए? १५६८,पंच प्र (बदित्ता सूत्र) प्रतिक्रमण पर कथा ५७६ ३ २२ ग्राव. ध नि गा १२४२ प्रतिक्रमण पॉच ३२६ १ ३३७ ठाउ ३ सू ४६७,याव ह भ ४ निगा १०५०-१०५१ प्रतिघात पाँच ४१६ १४४० ठा ५३ १सू ४०६ १मतिचरणा पर कथा ५७६ ३ २३ प्राव हम ४नि गा १२४२ प्रतिज्ञा ३८० १३६६ रत्ना परि.३,न्यायदी.प्रका ३ प्रतिपत्ति श्रुत ६०१ ६४ कर्म भा १ गा." प्रतिपत्ति समास श्रत ६०१ ६४ कर्म.भा १ गा ७ प्रतिपाती अवधिज्ञान ४२८ २ २८ ठा६ मृ.५२६,नं स्पृ १४ प्रतिपणे पोषध व्रत के ३११ १ ३११ उपाय १.७ पाँच अतिचार प्रतिपृच्छा समाचारी ६६४ ३ २५० मश-१७ मृ८०१८ा १. उ३७८६,इत.२६गा २, प्रयदा १०१ गा ७६० १ सयम का सावधानता पूर्वक निटोंप पालन बग्ना प्रनिररणा है। २ गुरु ने पहले जिस कार्य के लिए निषेध पर दिया है उसी कार्य में ग्रावग्यातानुसार फिर प्रवृत्त होना हो तो विनय पूर्वक गुरु में पटना। Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवाँ भाग बोल भाग पृष्ठ प्रमाण विषय १ प्रतिमास्थायी ३५७ १ ३७२ ठाउ १ सू० ३६६ उत्त य्र २६गा '२४ प्रतिलेखनाकीविधिकेछः भेद४४७२५२ प्रतिलेखना के पचीसभेद६३६६ २१८ उत २६ गा. २४-२७ प्रतिवासुदेव नौ ६४८ ३ २१८ सम १५८, प्रवद्वा २११ गा. १२१३, ग्राव इ. भाष्यगा ४२ १५६ उत्त ३०गा, ठा ६ सू ५११, प्रतिसंलीनता तप ४७६ २८६ प्रतिसंलीनतातर्फ तेरह भेद= १५४३६५ प्रतिसंलीनता तप के भेद ६३३ ३ १६२ चार और अवान्तरभेद तरह प्रतिसेवना कुशील मतिसेवना कुशील के ५ भेद ३६६ १३८४ ठा ५उ ३ सू ४४५ प्रतिसेवना दस' उ ३७३३ प्रतिसेवना प्रायश्चित्त २४५ख १२२३ ठा ४३ १.२६३ प्रतिसेवा पुलाक 1 प्रतिस्त्रांतचारी भिक्षु प्रतिस्रोतचारी मच्छ प्रतीत सत्य २२५ , सू. १६, प्रवद्वा ६ गा२७० २५ ७८० २उब सं १६ उब सू.१६, भै २५ उ ७ 何 सू८०२ ३६६ १३८१ ठा ५सू-४४५, भ.शे २५उ ६ '' ६६६ ३ २५२ भश. २५३ ७ सू७६६, ठा. १० ३६६, १३८० ठा ५.४४५ भ श २५.६ , पक्षाभास प्रतीति १२७१६० प्रतीति निराकृतवस्तुदोष ७२३ ३४११ ४११ १ ४३७ या ५उ ३ सू ४५३... ४१० १ ४३६ ठाउ ३४५३ ६६८ ३ ३६६ ठा १० सू ७४१, पन्न प ११ सू १६५, अधि ३ श्लो ४१८ १२१ प्रतीत साध्य धर्म विशेषण ५४६ २ २६१ रत्ना परि ६सू ३६ भरा १३६ सू ७६ टा. १०उ ३ सू ७४३टी १ एक रात्रि यादि की पडिमा अंगीकार कर कायोत्सर्ग में स्थिर रहने वाला साधु | 1 Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण प्रत्यक्ष ज्ञान १२ १ ११ ठा २उ १सू ७१,नं १ २ प्रत्यक्ष निराकृत वस्तु दोप ७३३ ३ ४११ ठा १०उ.३सू ७४३ टी प्रत्यक्ष निराकृत साध्यधर्म ५४६ २ २६१ रत्मा परि.६ सृ ४१ विशेपण पक्षाभास प्रत्यक्ष प्रमाण २०२ १ १६.भ श ५उ ४सू १६३,मनु म १४६ प्रत्यक्ष व्यवसाय ८५ १ ६२ ठा ३उ ३८ १८५ प्रत्यनीक के छःमकार ४४५ २ ४६ भ.ग ८ उ.८ सु३१६ प्रत्यभिज्ञान ३७६ १ ३६५ रत्ना परि ३ सू.५ प्रत्याख्यान आवश्यक ४७६ २३ भाव है भ६ प्रत्याख्यान के दो भेद ५४ १ ३१ भश ७ उ २ स २७१ प्रत्याख्यान दस ७०४ ३ ३७५ ठा १० सू.७४८.म.श.उ' प्रत्याख्यानपॉच प्रकारका ३२८ १३३६ ठा .४६६,याव इ.१८४७ प्रत्याख्यान पालने के छः ४८२ २६६ प्राव हम पनि गा १५६३१ ८७१,ध मधि.श्लो.६३.१६२ मत्याख्यान विशद्धि के छः ४८१ २ ६५ ठा ५३.३१ ४६६ टी ,प्राव ह. प्रकार भनि 1.1५८६१८४६ प्रत्याख्यानावरण कपाय १५८ १११६ पाप.१४.१८८ठा दर १स २४६,कर्म भा गा१७१८ प्रत्याहार(योगकाएकग्रंग)६०१ ३ ११८ यो०रा०यो। प्रत्याहार प्राणायाम ५५४ २ ३०३ यो.प्रका ग्लो. प्रत्युत्पन्न दोप ७२३ ३ ४१२ टा.१०3 3 सू ७४३ प्रत्युपकारतीनकादुःशक्य है १२४ १ ८७ टा.३उ १ सू १३१ प्रत्युपेक्षणाप्रमाद ४५६ २६० ट.३.३ र ४०२ प्रत्येक बुद्ध सिद्ध ८४६ ५ ११८ पन्न प.१ ८.५ प्रत्येकमिश्रिता सत्यामृगा६६४३ ३७१ टा.१. मु.५४१, पान १.११, धमधि श्लो.४१टी.पृ.१२२ अङ्ग Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवा भाग २२७ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण प्रथमसप्तगत्रिदिवसनामक७६५४ २०० सम १२,दशा द भ श २उ १ आठवीं भिक्खु पडिमा सू६३ टी. प्रथम समय निग्रन्थ ३७० १ ३८५ ठा ५ उ ३ सू ४४५ १ प्रदेश ५१ ३ ठा.१ सू ४५ प्रदेश ७३ १ ५३ ठा ३ उ २ सु १६६ प्रदेश अनन्तक ४१७ १ ४४१ ठा ५उ ३ सू ४६ २ प्रदेश नाम निधत्तायु ४७३ २८० भश ६ उठा ६सू ५३६टी. प्रदेशबन्ध २४७ १ २३२ ठा ४सू २६६,कर्म भा १गा २ प्रदेशवत्व गुण ४२५ २ १६ द्रव्य त अध्या ११ श्लो ४ प्रधान (मुख्य) ३८ १ २४ तत्त्वार्थ प्रध्या ५ सू ३१ प्रधानतापद नाम ७१९ ३३९७ अनु०सू १३. २ प्रपश्वा अवस्था ६७८ ३ २६८ ठा १०उ ३ सू५७२ ३ प्रभावक आठ ५७२ ३ १० प्रव द्वा १४८ गा ६३४ प्रभावती ८७५ ५ ३६५ भावह निगा १२८४ प्रभावना दर्शनाचार ५६६ ३ ८ पन प १सू ३७ ,उत्त अ २८गा ३१ भभासस्वामी कीमोक्ष विष ७७५ ४ ६० विशे गा १६७२-२०२४ यक शका और समाधान प्रमत्त संयत गुणस्थान ८४७ ५ ७६ कर्म भा २ गा २ प्रमाण ३७ १ २३ रत्ना०परि १ सू.२ प्रमाण ४२७ २२६ अनु०सू ७० प्रमाण और नय ४६७ २ १७० प्रमाणा चार २०२ १ १६०भ श.५उ ४सू १६३, अनु सू १४४ १ स्वन्ध या देश में मिला हुवा द्रव्य का अति सूक्ष्म विभाग । २ इस अवस्था को प्राप्त होने पर पुरुष का स्वास्थ्य गिरने लगता है। ३ जो धर्म के प्रचार में सहायक होते है वे प्रभावक कहलाते है । Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ श्री सेठिया जैन मन्यमाला . विषय बोल भाग पृष्ठ, प्रमाण प्रमाण नाम ७१६ ३ ३६४ अनु०स १३० प्रमाण नाम के चार भेद ७१६ ३ ४०० अनु० स १२० । प्रमाण संवत्सर की व्या-४००१ ४२५ ठास ४६०, ५२ टूा, ख्या और उसकॉचभेद - १४२ गा ६०१ : ' प्रमाणांगुल ११८ १.८३ अनु० स १३३ ।। प्रमाद आठ ५८०३३६ र ना २०७ गा १२०४-८ प्रमाद याश्र २८६ १२६८ टा ५३ २ रस ४१८,२म.. प्रमाद छः ४५६ २. ५६ टा ६ उ ३१५०० ।। प्रमाद पाँच २६१ १ २७० ठाइसू १०२,ध यपि.स्लो ६६झी ८१.पना १३., मट १६१ टी प्रमाद प्रतिलेखना ५२१ २ २५१ उत्त. हा २७ प्रमाद निलखना छः ४४६ २ ५३ ६१०३,उत भ.गा प्रमाद प्रतिलेखना सान ५२१ २ २५१ उमअ.२५गा, . प्रमादविषयक दम गाथाएं६४ ७ २३१ प्रमेयत्व गुण ४२५ २ १६ सागर य न पा मा. लो. प्रमोद भावना ४६.१ २२६गाना ,च , ३ . प्रयत्नादिकयोग्यस्थान६०६ : १६४ -3.57 प्रयोग कर्म ७६० ३४४२ २३ दिया? . . प्रयोग गति कं पन्द्रह भंट ८५५ ५ १३८ प ५ १ भयोगमति सम्पदा ५७४ ३ १४ दशान दास मलम्ब प्रमादतिलेग्वना ५२१ २ २५१ 2017 , आ.) MI ): लिएर मात्रामा Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, पाठवा भाग २२६ mmmmmmmm~~~~~~~~~ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण १ प्रवचन उद्भावनता ७६३ ३ ४४६ ठा १०उ ३तूं ७५८ . प्रवचन माता २२ १ १६ उत्त,भ २४ गा.१-२ " प्रवचन माता आठ ५७० ३८ उत्तम २४गा १-२, सम ८ प्रवचन वत्सलता ७६३ ३ ४४६ ठा. १० उ ३ सू ७५८ प्रवचन संग्रह तयालीस १६४ ७१५१ उत्त दश ,याचा ,प्रश्न , दप ,भ ,ज्ञा ,विशे ,प्राव ह.,उव., ध.,पागम ,समय ,,प्रतिमा,, पच च.,र्फि नि ,पि वि,ध र, दशा प्रवर्तक पदवी ५१३ २०२४० ठा ३३.३१ १७७ टी प्रवृत्ति ४५ १ २८ प्रव्रज्या के दस कारण ६६५ ३ २५१ ठा.१०उ ३ सृ ५१२ प्रव्रज्या दस ६६५ ३ '२५१ ठा १० उ ३ सू ७१२ मत्रच्या प्राप्त पुरुष चार १७६ १ १३० ठा ४ उ ४ सू ३२७ '' प्रव्रज्या स्थविर १११६६ ठा ३उ ३ सू.१५६ ' • प्रव्राजकाचार्य ३४१ १ ३५२ ध अधि.३ लो ४६टी पृ. १२८ प्रशस्त काय विनय सात ५०३ २ २३२ { भश २५ उ ७सू ८०२,टा प्रशस्त मन विनय सात ४६१ २ २३१ ] ७उ ३सू. ५८५, उस २० प्रशस्त वचन विनय सात५०१ २ २३२ भश २५३ ७,ठा मृ ५८५ प्रशान्त रस ६३६ ३ २११ अनु सू १२६ गा ८०-८१ प्रशास्तु दोष ७२२ ३ ४०७ ठा १०३ ३ - ७४३, प्रशिथिलप्रमादतिलेग्वना५२१ २ २५१ उत्त अ.२६ गा २५.. १ द्वादशाग रूप प्रवचन का वर्गवाद एव गुण कीर्तन करना प्रवचन उद्भाबनता है। । २ सामायिक व्रत आदि का प्रारोपण करने वाले प्राचार्य। Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० श्री सेठिया जैन अन्यमाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण प्रश्न(आभियोगीकीभावना४०४१ ४३१ उत.भ ३६ गा २६ २,प्रव द्वा. का एक भद) ७३गा ६४४ प्रश्न छः परदेशी राजा के ४६६ २ १०७ रासू ६३ प्रश्न छः प्रकार का ४६४ २ १०३ ठा ६उ ३ सू ५३४ प्रश्न व्याकरण मूत्र के दस७७६ ४ २०८ अध्ययनों का विषय वर्णन प्रश्नाप्रश्न ४०४ १ ४३१ उत्त.प्र.३६ गा.२६ २,प्रव द्वा७३ *प्रश्नोत्तर इक्कीस ११८६ १३३ *प्रश्नोत्तर छत्तीस १८३ ७ ९८ प्रस्थापिता आरोपणा ३२६ १ ३३५ टा 15 २८ ४३३ प्रस्फोटना प्रतिलेखना ४४६ २ ५४ टा.६२ १०३,उत्तम २६गा २६ प्राकृतादि१२भेदभापाके७७६ ४ २३८ प्रश्न धर्मद्वार सू टी. प्राकृत भापा के छः भेद ४६२ २ १०२ प्रा,पड्भापा प्राक्पश्चात्सस्तव दाप ८६६ ५ १६५ प्रब द्वा ६ मा १८,घ.मधि, लो २२१८०,पिंनि गा ४०६, पिविगा५६पना १३ गा.१६ प्रारभारा अवस्था ६७८ ३ २६८ ठा १०३ ३ सृ.७७२ भाजापत्य स्थावरकाय ४१२ १ ४३८ ठार.१ स ३६३ माग १३० ११७ टा .४३०,भग २३ १८८ ५५१ २ २६२ ज वन.२ १८ माण अपानादि पाँच वायु ५५१ २३०४ यो प्रा. गजा, इट प्राण अपानादि पाँच वायु ५५६ २३०५ यो.प्रका ५ गज.,ठ, फो जीतने का फल प्राण दम गा १०६६नर. प्राण ७२४ ३ ४१३ टा १.४-टी, प्रा.वा.१७० * पृया या गानां एवं धर्म प्रन्यों में से चुन कर लिय हुए प्रश्न तथा टन के उत्तर Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाणा भारणातिपात विरमण व्रत ३१७ १ ३२४ प्राव ह य ४१६१८,प्रव.द्धा. रूप प्रथम महाव्रत की पाँच ७२गा ६३६-६४०,सम २५, भावनाएं धाचा श्रु.२८ ३.२४ सू १७६, ध अधि ३ श्लो.४५टी पृ १२१ प्राणातिपात चिरमण व्रत ७६४ ४ २८० प्रागम. निश्चय और व्यवहार से भाणातिपातिकी क्रिया २६२ १ २७७ टा.२.उ १ सू ६ ०, Vउ २सू. ४१९,पन्न प २२६.२७६ प्राणायाम ६०१ ३ ११८ यो०, रा०यो० भाणायामसात ५५१ २ ३०२ यो प्रका ५,रा-यो,इट मातीत्यिकी क्रिया २६४ १ २७६ ठा २सू ६०,ठा रसृ ४१६ प्रात्ययिक व्यवसाय ८५ १ ६२ ठा ३७.३ सू १८५ मादुष्करण दोप ८६५ ५ १६३ प्रव. द्वा ६७मा ५६५,ध अधि ३श्लो २२टी पृ३८,पि नि गा. ६२,पि वि गा ३,पचा १३गा। प्रापिकी क्रिया २६२ १ २७७ ठा २उ १८.६०, ठा ५३ २सू ४१६, पनप २२ सू२७६ १ प्रान्त चरक ३५२ १ ३६७ ठा। उ १८ ३६६ प्रान्ताहार ३५६ १ ३७१ ठा ५७.१ स ३६६ माप्यकारी इन्द्रियाँचार ।२१४१ ११३ ठा ४सू ३३६,रत्ना परि २स ५ कर्म भा १गा ५ भाभृतमाभृत श्रुत ६०१ ६ ४ । कर्म भा १ गा." भाभृतमाभृत समास श्रत ६०१ ६४ माभृत श्रुत ६०१ ६ ४ फर्म भा. १गा.. कर्म भा १गा." पाभृत समास श्रुत १ भोजन से भवशिष्ट तुच्छ एव हल्के माहार का गवेषक अभिग्रहधारी साधु । Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन अन्यमाला ~~~ ~~~~~~~~~ ~~rm विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण प्राभृतिका दोप ३४७१ ३५९ श्राव ह भ नि गा.११०५८ पृ ५१६,प्रय द्वा २गा १०३-२३ प्रव.द्वा ६७ गा ५६५,५। प्राभृतिका दोप ८६५ ५ १६३ ाधि ३२लो २२टी ३८, . प्रामित्य दोप ८६५ ५ १६३ [ पि नि गा, पि.वि गा । . ३,पना.१३गा५ । प्रायश्चित्त ४७८ २९ व २०,उत्तम ३० गा ३०, ठा ६सू । ११,मव द्धा.६ गा.२७१ पायश्चित्त पाठ ५८१ ३ ३७ ठा ८र ३ .६०५ प्रायश्चित्त के अन्यचार भेद२४५२१ २२३ या ४ उ.१ सू २६३ प्रायश्चित्त के पचास भेद ६३३ ३ १६३ मग.२५३७ १८०२,उय. स् २०,ठा.१०३ ३ सू ७३३ प्रायश्चित्त के पचास भेद १००४ ७ २७१ भ म २५उ ७ सू.८०२ प्रायश्चित्त चार २४५क १ २२२ ठाउ १ र २६३ प्रायश्चित्त झूठा कलंक ४६० २६२ (जी) ३.६ लगाने वाले को प्रायश्चित्त दस ६७३ ३ २६० मश.७,ठा.१० १७३३ प्रायोगिकी क्रिया २६६ १ २८२ टा.२३.१२१६० ठाउ २२ ४१६, प्रारम.८५६१८ मियसेन कृष्णारानी ६८६३३४७ प्रत०१६ प्रेम निःसत असत्य ७०० ३ ३७२ या १० १७८१,पन १.११४४ ५६४, अधिनमो. ८१५ १२२ प्रेम प्रत्यया (पेजयत्तिया) २६६ १ २८२ ठा २३ ११ ६ ०,टा. ५२.२१ क्रिया ४१६,मायदा स्पृ.१४ फूल की उपमा से पुरुषचार१७१ ? १२७ ठा । उ.४१ ३२. Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त घोल संग्रह, अाठवाँ भाग विषय फूल के चार प्रकार फोडी कम्से कर्मादान बोल भाग पृष्ठ प्रमाणा १७० १ १२६ ठा. ४उ ४ सृ.३२० ८६० ५ १४५ उपा असू ७,भ श.८३ ५सु. ३३०,भाव ह अ६८२८ वकुश उत्तय ११ ३६६ १३८७ य ५र१.४४५,भ श २५३.६ चकुश के पाँच भेद ३६८ १ ३८३ ठाउ ३ सू.४४५ वत्तीस अस्वाध्याय ४६८ ७ २८ ठा ४३ २ २८५, १०33 सू ७१४ प्रब द्वा २६८गा.१४५०१८७१,व्यव.भा उ ७गा.२६६.. ३१६,श्राव ह अ.४गा १३२१-६० बत्तीस उपमा शील की ६६४ ७ १५ प्रश्न धर्मद्वार ४ सू २७ बत्तीस गाथा अकाम मर- ६७२ ७ ४६ उत्त अ५ णीय अध्ययन की बत्तीस गाथा वहश्रत पूजा ६७३ ७ ५१ उत्त अ ११ अध्ययन की बत्तीसगाथासयगडांगसूत्र७४ ७ ५६ सूय प्र २३ २ केदुसरे अकेदूसरेउकी वत्तासदाप तथा याठ ६७ ७ २३ अनुसू १५१टी ,विशे गाइEE गुण सूत्र के टी, गा २८७.२८८पीठिका बत्तीस दोष वन्दना के ६६६ ७ ३८ प्राव ह भगा १२०७-११ ५४३,उ.३गा ४४७१-६४, प्रव द्वा २गा १५०-१७३ बत्तीस दोष सामायिक के १७० ७ ४३ शिना० बत्तीस योग संग्रह १६५ ७ १६ उत्तम ३१,प्रश्न धर्मद्वार५ सू २८,मम ३२, याव.ह अ४ गा. १२७-४७८ पृ.६६३ Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ श्री सेठिया जैन प्रन्यमाला विषय गा२ बोल भाग पृष्ट प्रमाण बत्तीस विजय ६७१ ७४३ ज.वस ४, लोक भा.२ १, बत्तीस सूत्र ६६६ ७ २१ वधिरोल्लाप का दृष्टान्त ७८० ४ २४१ श्राव ह गा.१३३, पीटिका वचन अननुयोग पर नि गा.१७१ वन्ध २५३ १ २३७ कर्म भा २गा १ व्याख्या वन्ध ४६७ २ २०१ वन्ध का स्वरूप समझाने २४८ १ २३२ ठा ४३ २सू २६६, कर्म मा १ के लिये मोदक का दृष्टान्त बन्ध की व्याख्या ओरभेद२४७ १ २३१ ठा ४५ २६ कर्म भा १गा : वन्ध के कारण आठकमांक५६० ३ ४३ भश ८ उ ६ मू३४१ वन्ध के दो भेद ५२ १ ३० कर्म. भा.१ गा ३४ व्याव्या वन्ध के भेद ४६७ २ २०४ वन्ध तत्त्व के चार भेद ६३३ ३ १९७ कर्म भा १गा २,नय ,टा ४ २६ वन्धन करण ५६२ ३ ६५ कम्ग गा २ बन्धनकी व्याख्या और भेद२६ १ १८ ठा २९ ४ र ६६ बन्धन नामकर्म का स्व. ३६० १ ४१५ कर्म भा १गा ३५ र हा : १६ रूप और उसके पाँच भेद गा.१२७२ बन्धन नामकर्मकेपन्द्रहमंद-५६ ५ १४०र्म भा.१गा.३५,रम्म.गा.टी. वन्धन परिणाम ७५० ३ ४३० ठा 1० ७५३,पर प १३ वन्धन प्रतिघात ४१६१ ४४. ठा: उ.१.१.६ पन्ध मोक्षविषयकगणधर ७७५ ४ ४४ विगे.गा १८०३.१८६ : मंडितस्वामी काशंकासमाधान बन्चाधिकार कर्म प्रक्रतियों-४७ ५८८ कर्म.भा.गा.३-१२ ngang ở Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त घोल संग्रह, पाठवॉ भाग २३५ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण बयालीसदोषाहारादिकेहह० ७ १४६ पिं नि गा ६६६ बयालीस पुण्य प्रकृतियाँ १६३ ७ १५० कर्म भा ५गा.१५.१७ । बयालीसप्रकृतिनामकर्मकीहह१ ७ १४६ पन प २२३ ३स २६३ वयालीस भेद आश्रय के ६६२ ७ १४६ नवगा १६ वयासी पाप प्रकृतियाँ ६३३ ३ १८२ कर्म मा ५ गा १५-१७,नव० बलदस इन्द्रिय,ज्ञानादिके ६७५ ३ २६३ ठा.१०उ ३ सू ७४० बलदेव ४३८ २ ४२ ठा ६सू ४६१, पन.प १सू ३७ बलदेव नौ - ६४६३ २१७ प्राव.इ पृ. १५६,प्रव द्वा.२०६ गा १२११,सम.१५८ चलदेव और वासुदेवों के ६५१ ३ २१६ सम १५८ पूर्वभव के प्राचार्य नौ बलदेव लब्धि १५४ ६ २६४ प्रव द्वा २७० गा १४६३ वलदेवों के पूर्वभव के नाम६४६ ३ २१८ सम १५८ वलमद ७०३ ३३७४ ठा १०सू ७१०,ठा ८सू ६०६ चल वीय पुरुषाकार परा-४१६ १ ४४१ ठा ५उ १सू ४०६ क्रम का प्रतिघात १बला अवस्था ६७८ ३ २६८ ठा १०२ ३ सू ७७२ बत्ताभियोग आगार ४५५ २ ५९ उपा अ.१८,प्राव.ह अ६ __८१०,ध अधि २श्लो २२ पृ.४१ बहिरात्मा १२५ १ ह परमा गा १३ २ बहुमानाचार ५६८३६ घ अधि १श्लो १६टी पृ.१८ बहुरत निद्रव कामतशंका५६१ २ ३४२ विशे गा २३०६-२३३२,भ समाधान सहित श६उ ३३,भ श.13 1,प्राव. ह भाष्यगा १२५-१२६५३१२ १ दम अवस्थाओं में से चौथी अवस्था । २ ज्ञानाचार का एक भेद, ज्ञानी और गुरु के प्रति भक्ति एव श्रद्धा रखता Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन अन्यमाला विषय बोल भाग पृष्ट प्रमाण बहुशनपूजा अ०सी३२गाथाह७३ ७ ५१ उत्तय ११ बहुश्रुतसाधुकी१६उपमाएं८६३ ५ १५५ उत्त अ.११ १५.३. . वाईस निग्रह स्थान ६२१ ६ १६२ प्र मी नव्या १मा ११३४, न्यायप्रन्यायाम सध्या यार वाईम एरिपह १२० ६ १६० गम २२,उत्त म २,प्रा दा ८३ गाई,तत्त्वार्थ मध्या. बाईस विशेपण धर्म के 8१६ ६ १५६ धधवि 3 लो २७ टी.पृ.६१ वादर ८१ ५ टा२३ १ यू ७३३ वादर पुद्गल ४२६ २ २५ दग.य,माध्यगा.:. टी. वादर बादर पुद्गल ४२६ २ २५ दशम भाज्यगा ६०टी वादर वनस्पनिकाय छः ४६६ २६६ दश०.४ य.१ बादर मूक्ष्म पुहल ४२६ २ २५ दाय ४ भाप्य गा ६० री. वारह अमावस्याएं ८०१ ४ ३०३ सूर्य प्रा १०प्रा.प्रा ६१३८, वारसागार कायोत्सर्गके०७ ४ ३१६ माय . ५ पृ.७७८ बारह उपमाएं साधु की ८०५ ४ ३०६ अनु०.१५ • गा १३" वारह उपयोग ७८६ ४ २६७ पन्न.१.२६३१२ बारह उपांग मूत्र ७७७ ४ २१५ बारह गाथादशवकालिक ८११ ४ ३५२ दशमगा - सूत्र के चौथे अध्ययन की बारह गाथाएंगमुद्रपालीय७८१ ४ २५५ उ.म.२१ अध्ययन की बारह गाधाएं साध लिये७-१४ २५५ उन..." मार्ग प्रदर्शक बारह गुण अरिहन्त देव ७८२ ४ २६० गन ३४,ग गदा,गा." १०११म का Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह,पाठवा भाग २३७ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण बारह ग्लान मतिचारी ७६७ ४ २६७ प्रवद्वा ७१गा.६२४ से ६३५, नवपद गा १२६ पृ३१६ * बारह चक्रवर्ती ७८३ ४ २६० ठाउ ३सू.६३३,ठा २उ ४ सू ११२,सम.६४, १५८,श्राव हअ पनि गा.३६७,त्रिप बारह चक्रवर्ती आगामी ७८४ ४ २६५ सम, १५६ उत्सर्पिणी के बारह दृष्टान्त अननुयोग ७८० ४ २३८ भावह गा १३३-१३४, तथा अनुयोग के पीठिका नि गा १७१-१७२ वारहदोषकायाकेसामायिकके७८६ ४ २७३ शिक्षा. बारह द्वार फर्म प्रकृतियों के८०६ ४ ३३६ कर्म भा ५ गा १-१६ वारहनाम ईपत्याग्भारा के ८१० ४ ३५२ सम १२ वारह नाम मान के ७६० ४ २७५ भ.श १२उ ५८ ४४६ चारह पूर्णिमाएं ८००४ ३०२ सूर्य प्रा १० प्रा प्रा ६८ ३८ बारह प्रकारका तप ४७६, २८५, / उत्तय ३०,उव सू १९-२०, (निर्जरा) ४७८ २ ८8 1 ठासू ५ ११.अव द्वा.६ गा २७० वारह प्रकार के आर्य ७८५ ४ २६६ वृ उ पनि.गा ३२६३ बारह बाल मरा ७६८ ४ २६८ भश २ठ १सू ६१ बारह भावना (अनुप्रेक्षा) ८१२४ ३५५ शामा १,२,भावना ज्ञान प्रक २,प्रव द्वा ६७गा ५७२-५७३। तत्वार्थ अध्या ६ ५ गा १-१६ : हरिभद्रीयावश्यक नियुक्ति गाथा४० 1 में मुभूम और बादत्त चन्चती का सातवी नरक में जाना, मघवा और सनत्कुमार चक्रवर्ती का तीसरे सनत्तुमार देवलोक में उत्तम होना एव शेप माठ चावर्तियों का निद्ध होना बताया है । Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला घोल भाग पृष्ठ ८१२४३७६ विषय बारह भावना पर दोहे वारह भाव व्रत श्रावक के ७६४ ४ २८० भागम. निश्चय और व्यवहार से बारह भिक्खु पडिमा २० बारह भेद प्रशस्त मन ७६१ ४ २७५ अ मृ विनय के वारद्द बारह भेद कल्पोपपन्न देवों के बारह भेद भाषा के बारह भेद सूत्र के बारह महीनों में पोस्सिी का परिमाण प्रमाण बारह भेद अवग्रह ज्ञान के७८७ ४२६६ ठाउ ३. ४१० टी, विशे.गा. ३०७, तस्वार्थ अध्या १ सू. १३ बारहभेदअसत्यामृपाभापाके७८८ ४ २७२ प प ११ सृ. १६५टी. ७६५ ४ २८५ मम १२, दशा ३ ७, भश, २३ १ बारह मास बारह विशेषण धर्म के बारह विशेषण सापेक्ष यति धर्म के वारह व्रत श्रावक के (पाँच अग्गुवन) (तीन गुणवत) (चार शिक्षाव्रत) बारह मान्यताएं चन्द्र और७६६ ४ ३०० सूर्य प्रा. १६. १०० सूगाँकी संख्या के विषय में ८०८४३१८ पन्न१.२,४,६, जी प्रति. ३ सृ. २०७२२३, तत्त्वार्थ अध्या 4 प्रश्न धर्महार २२४ टी ७७६ ४२३८ ७७८ ४ २३५ उ१गा १९६१ ८०३४ ३०४ उत्तम २६गा १३-१८ ८०२४३०३ सूर्य प्रा१० प्रा. प्रा. १९ ८०४४३०६ गाभा क १० (धर्मभावना) न.३६६ ८०६ ४३१४ ३०० १२८८ मान अ. ६ ८१७-३६, १२८क १ ६१ उपा.१६, ठा..३६, पचा१गा ७-३०. मधि.: मो. ०३-२०१४३-६४ པ་ १८६ १ १४० Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री बैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग २३६ विषय बोल भाग पृष्ठ समारण चारह श्रमणोपासक ७६३ ४ २७६ भ श८उ ५सू ३३० आजीवक के वारह संभोग ७६६ ४ २६२ निगी.उ.५,सम १२,व्यव.भा उ. वाल अवस्था ६७८ ३ २६७ ठा १० उ ३ सू ७७२ चाल पण्डित मरण ८७६ ५ ३८३ सम १७,प्रव द्वा १५७गा १००६ वाल पण्डित वीयोन्तराय ३८८ १ ४१२ कर्म भा १गा,५२,पन.प. २३ वाल मरण ८७६ ५ ३८३ सम १७ प्रव द्वा १५७गा.१००६ बाल मरण के बारह भेद ७६८४ २६८ भ श.२ उ सू१ वाल वीयोन्तराय ३८८ १ ४११ कर्म भा १गा ५२,पन्न. प.२३ वावन अनाचीणे साधु के१००७७ २७२ दश प्र.३ वावन भेद विनय के १००६ ७ २७२ प्रब द्वा ६५गा ५५१ वाहन्य(मोटाई) नरकोंकी ५६० २ ३२८ जी प्रति ३२.६८ वाह्य तप छः ४७६ २ ८५ उत्त.अ ३०गा ८,ठा.६सू ५११, उब सू १६,प्रवद्वा ६गा २७. १ बाह्यावाह्यानुयोग ७१८ ३ ३६४ ठा १०उ ३ १७२७ बीज वुद्धि लब्धि ६५४ ६ २६६ प्रव द्वा २७०गा १४६४ बाजरुचि(समक्तिकाभेद)६९३ ३ ३६३ उत्तम २८ गा.२२ ४६६ २ ६६ दश अ.४ वीभत्स रस ६३६ ३ २०४ अनुसू १२६गा.७४-७५ चौस असमाधि स्थान ०६६ २१ सम २०,दशा.द.१ वीस आश्रव सू ४१८,४२७,७०६ २ वीज रूह ६०७६ २५ सम ५,प्रश्न.नि.गा २१३,१.५ १ द्रव्यानुयोग का भेद, वान (विलक्षण)ोर अवाह्य (समान) का विचार । २ वीज से उगने वाली वनस्पति, जैसे शालि ग्रादि । Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० श्री सेठिया जैन मन्यमाला विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण बीस फल्प १०४ ६६ उ१ वीसगाथाचतुरंगीयम की:०६ ६ २६ उत्तम ? वीस वोल तीर्थरगोत्र १०२ ६ ५ भाव ह नि.गा.१७६-१८१पृ बाँधने के 11८,ज्ञा असू.६४,प्रब द्वा. १०गा ? १३-११६ वीस मंद श्रत ज्ञान के कर्ममा गा. वीस विहरमान १०३ ६८ ठामू ६३७टी.,विदर.,त्रिलोक बीस संवर १०८६२५ टा.५१ ४१८,४२५, टा. स. ७.६,प्रान मवरद्वार,सम वीस स्त्रियाँ दीक्षा के ८११५४०६ प्रत दा १०८ गा.६२, ध. अयोग्य अधि.३श्लो ७८टी १३ बुद्ध बाधित सिद्ध ८४६ ५ ११६ प प १ स५ बुद्धिोत्पत्तिकी (उत्पा-६४६ ६ २४२ न०१७ तिया)के सत्ताईस दृष्टान्त बुद्धि कम्मियाक१२दृष्टान्त७९२ ४ २७६ नरस २५, भावह निगा ६.४५ बुदि के चार भेद २०१ १ १५६ नं. ,टा ८४ ३६.४ बुद्धि पारिणामिकी (परि-११५ ६ ७३ न०१.०७ गा.७१-७४,पार, णामिया)के रक्कीसदृष्टान्त दनि गा६४८.६४१ वृहत्कल्पमूत्रकाविषयवर्णन२०५ १ १८१ . वृहरपतिदत्तकुमार कीकथा१० ६ ४१ मि.म बोटिकनामकआठवॉनिहव५६१ २ ३३ गिगा १५०-२६० ना ८१२ ४ ३७१,मा.मा.प्र. १० टा.५3 21 ३८८ ८७,भावना.मान पर प्रर. ___ द्वा६६गातार प्रया ४६७ २ ११७ बौद्ध दर्शन Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग २४१ विषय चोल भाग पृष्ठ प्रमाण ब्रह्मचर्य ६६१ ३ २३४ नव ,सम १, शा.भा.१ प्रक.८ ब्रह्मचर्य की बत्तीस उपमा ६६४ ७ १५ प्रश्न धर्मद्वार४ सू २७ ब्रह्मचर्य के अठारह भेद ८६२ ५ ४१० सम.१८,प्रव द्वा.१६८गा.१०६१ ब्रह्मचर्य के समाधिस्थान७०१ ३ ३७२ उत्त०१६ ब्रह्मचर्यप्ति नौ ६२८ ३ १७३ ठाउ ३सू.६६३,सम में ब्रह्मचर्य पर सोलह गाथाएं९६४ ७ १७७ ब्रह्मचर्य महाव्रत की पॉच ३२० १ ३२७ भाव ह म ४६५८,प्रव द्वा. भावनाएं ७२गा ६३६,सम २५,याचा. ध्रु २.३ २४ सू.१७६,ध. अधि ३ग्लो ४५ टी पृ १२५ ब्रह्मचर्य वास ३५१ १३६६ ठा.५उ.१सू ३९६,ध अधि ३ श्लो ४६४ १२७,प्रव.द्वा ६६ ब्रह्मदेवलोक का वर्णन ८०८ ४ ३२२ पनप २ सू ५३ ब्रह्म स्थावर काय ४१२ १ ४३८ ठाउ १ सू ३६३ १ ब्राह्मण वनीपक ३७३ १३८८ ठा ५३ ३ सू ४४४ ब्राह्मी ८७५ ५ १८५ भाव ह गा १९६,त्रि पर्व १,२ ब्राह्मीलिपिक.४६मातृकाक्षरह८६ ७ २६४ सम.४६ भंग उनपचास श्रावक के१००३ ७ २६७ भश ८ उ ५ सू ३२६ प्रत्याख्यान के भंगछब्बीस सान्निपातिफ४७४ २ ८१ अनु. मृ १२६, ठा.६उ ३म् भाव के ५३५,कर्म भा ४गा.६४-६६ भंग सात (सप्तभंगी) ५६३ २ ४३५ सृय त्रु २५गा १०,मागम , सप्त.,रत्ना परि.४,स्या.का.२३ १ ग्राह्मण दान की प्रशना कर भिक्षा लेने वाला याचक । Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला चोल भाग पृष्ठ विषय भगवती सूत्र के इकतालीस ७७६ ४१३८ शतकों का विषय वर्णन १ भगवान पार्श्वनाथ के ५६५ ३ ३ दस गणधर भगवान् महावीर के नौ गर६२५ ३ १७१ भगवान् महावीर के पास ५६६ ३ ३ ममाण टाउ ३ ६ १७टी, सम टी याद निगा -६ > भगवान् मल्लिनाथ आदि ५५३२२७७ टा.७३ ३४६० एकसाथ दीक्षा लेने वालेसात भगवान् महावीर की चर्या ६२२ ६ १६६ प्राचान्श्रु १अ (उ. १ विपयक गाथाएं तेईस भगवान् महावीर की तप-८७८५३८० भाचा० १६३८ श्रर्याविषयक सह गाथाएं भगवान् महावीर कीवसति८७४ ५ १८२ थाना० शु. १ ६५० पियक सोलह गाथाए भगवान महावीर के ११ नाम७७० ४ ३ जिन विद्या वोल्यूम १ ० १ भगवान महावीरकेदसम६५७३२२४ . १६७.६ सृ४७६, ठा. १० भगवान महावीर से उपदिष्ट३५०- १३६४ एवं अनुमन पांच पांचव३५७ feat at गद्दा १११, प्रयद्वा १४ मा ३३० उसु ७५० टा.उ. ३६० ८३३९१ वाट राजा दीक्षित हुए भ० महावीर के शासन मेनीर्थ- ६२४३ १६३६०१ कुरगोत्रायनेवालेनी आत्मा ११. इसी ददी १९७ ३७२ | वास्६ ४६ ४ Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल समह, आठवाँ माग बोल भाग पृष्ठ प्रमाण विपय भगवान् महावीर से उपदिष्ट३५६ १ ३७३ ठाउ १ सू ३६६ एवं अनुमत पाँच स्थान भक्त कथा चार ११०८ ठा ४ १५० २ २८२ भक्तासे होने वाली हानि १५० १ १०६ ठा. ४ उ २सू२८२ टी भक्त मत्याख्यान मरण भक्त परिण्णा पण्णा ६८६ ३ ३५३ ६०प० भद्रकर्मवॉने केदसस्थान ७६३ ३ ४४४ ठा १०३ ३.७५८ वि०अ १२ १ भयदान भय निःसृत असत्य भद्रनन्दी कुमार की कथा ६१० ६५८ भद्रनन्दी कुमार की कथा भद्रोत्तरप्रनिमा तप की विधि और उसका यत्र २४३ ८७६५ ३८४सम १७, प्रवद्वा १५७गा. १००७ वि०अ १८ ६१० ६ ६० ६८६ ३ ३४७ प्रत व ८ ७६८ ३ ४५१ ठा १०३ स् ७४५ ७००३ ३७२ ठा १० ७४१, पन प ११सू १६५, श्रवि ३ ४ १५ १२२ ठा ४३४ ३५६, प्रबद्धा १४४ भय संज्ञा १४२ १ १०५ भय संज्ञा ७१२ ३ ३८६ ठा १० ७०२, भ श ७३८ भय संज्ञा चार कारणों से १४४११०६ ठाउ४ से ३४६, प्रवद्वा उत्पन्न होती है १४४ मा ६२३ भय स्थान सान ५३३ २ ठा ७३३४४९ नम ७ भरत क्षेत्र की आगामी उत्स. ६३० ६ मम १५८, प्रत्र द्वा ७ गा पिंणी के चौबीस तीर्थङ्कर २६३-२६५ भरत क्षेत्र की रात उत्स- ६२७ ६ १७६ प्रवद्वा ७ गा २८८-२६० पिंणी के चौबीस तीर्थङ्कर १ राजा यादि के दर से दिया जाने वाला दान | २६८ १६६ Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला विपय वोल भाग पृष्ठ ममाण भरतक्षेत्र के वर्तमान यवस-६२६ ६ १७७मम १५७, माव ६ गा२०६-३६०, पिंरणी के चौबीस तीर्थङ्कर भाव गंगा २३१-३८८६, सश., प्रवद्वा ७ से ४४, भरतचक्रवती अनित्यभावना ८१२४ ३७८ त्रिप. १६ २४३ नं २७ गा. ६२ टी. भग्न शिलाकी कथा औत्प- ६४६ ६ त्तिकी बुद्धि पर भव तेरह भ० ऋषभदेव के २०४४०६ त्रिप. पर्व १ भवनपति देवों के दस दस अधिपति { भवनवासी (भवनपति) ७३० ३४१६ प प १३८, १०३ ३. देव दस ७३६, भग. २७ . ११४, भवपुद्गल परावर्तन भवमत्यय अवधि ज्ञान भव सिद्धिक भव स्थिति ७३१-३४१७ ७४० ३ ४२० ६१८ ३ १४० १३ १ ११ १ ७ भव्यत्व मार्गणा और उसके भेद ご भ. ३३८ १६६ ३१ १ २२ टा २०३ भव्य भव्य स्त्री पुरुषों में ६५४ ६ २६८ प्रद्वा २०० गा. ११०१ से कितनीलब्धियां हो सकती हैं? १/०८ ओ प्रति. ३ १ ११४ वर्म भागा ८६.८८ टा २३ १ सु ७१ टाउ ७६ धावा ६६ भव्य जीवोंक सिद्ध हो जाने६१८ ६ १३६ मग.१२३२२४३ पर क्या लोक भव्यों से शून्य हो जायगा ? ८४६५५८ 447,411,611.13 Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, पाठवाँ भाग २४५ विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण १ भव्य द्रव्य देव ४२२ १४४५ ठा सू ४.१, भ श १२3 2 २ भांगिक वस्त्र ३७४ १३८४ ठा ५उ ३ सू ४४६ भांगेसोलहआश्रव आदिके८६८ ५ १६८ भश १६उ.४ सू ६५४ भाडी कम्मे कमोदान ८६० ५ १४५ उपा अ १७,भश ८उ ५सू. __ ३३०, प्राव हम ६१८२८ भाण्ड (पण्यवस्तु) चार २६४ १ २४६ ज्ञा प्र.८ सू६६ भार प्रत्यवरोहणता विनय२२८ १२१८ दशा द.४ के चार प्रकार भाव २१० १ १८६ न्यायप्र अध्या ७,रत्ना.परि ४ भाव इन्द्र के तीन भेद १२ १६६ ठा.३३ १सू ११६ भाव ऊनोदरी २१ १ १६ भश २५उ ७सू ८०२ भाव फर्म ७६० ३४४३ श्राचा म २उ १नि गा.१८४ भाव छः ४७४ २८१ अनु सू १२६, ठा ६ उ ३सू ५३७, कर्म भा.४ गा.६४-६६ भावदुःवशय्याके४प्रकार२५५ १ २४० ठा.४उ ३ सू ३२५ भाव देव ४२२ १४४६ ठा ५ सु ४०१, भ श.१२38 भावना अशुभ पाँच ४०१ १ ४२८ प्रवद्वा.७३गा ६४१,उत्तम.३६ भावना चार १४१ १ १०३ उत्तय ३६गा २६१.२६४ भावना चार २४६१ २२४ भावना ,क भा २श्लो ३५-५५,च, भावना चार ४६७ २ १८८ भावना छः समफित की ४५४ २ ५८ प्रव द्वा १४८ गा ६४०, ध. अधि २श्लो २२ टी.१४६ भावना धर्म ११६ ११५६ ध.भधि श्लो.४७ टी पृ १३१ १ मागामी भव में देव होने वाला जीव । २ अलसी का बना हुमा वन । Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ श्री सेठिया जैन यमाग विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण भावना२५पाँचमहाव्रतकी १३८६ २१७ ( भाचा.. १ चू ३ अ २४ स्मृ भावना पचीस पाँचमका-३१७.१ ३२४-१ . १७,सम २५,आरह भ.४ पृ. ६५८,पव दा ७२गा ६ ३६-४०. व्रतों की ३२१ ३२६ । धावि ३ग्लो ४५ टीपू.१२५ भावना बारह ८१२४ ३५५ शाभा १,२,भावना वान प्र २, प्राद्वा ६७ का ५५०.५७३ तत्वाव.सध्या हस भाव निक्षेप २०६ ११८८ अनुस् १४०,न्याय.प्र.मध्या है भाव पाँच जीव के ३८७ १ १०७ अनु सु. १२६, गवदा २२१ गा. १६..६८,कर्म मा.ना.६८.६८ भार पुद्गल परावर्तनमुक्ष्म ६१८ ३ १३६ कर्म का गा ८६-८८ और बादर का स्वरूप भाव प्रतिक्रमण ३२६ १ ३३६ ठा३३.४६७,याप १.य ८ गा ५२५०- १२५१ ६८ भगव प्रत्यनीक १४५२५१ न.८ ३८१३३६. भाव प्रत्युपेक्षणा ४५६ २ ६० ठा६३ म.. भाव प्रमाणनामचारभद७१६ ३ ४०१ मनु र १३० भावप्राणको व्याख्या,भेद१६८ १ १५७ पाप.१.१ टी. भाव लेश्या ४७१ २ ७२ गम.१३२,कार,पार ११34 11 रामा प, माघ. १६६५, दम्यागो ... २ भायशुद्ध प्रन्याख्यान ३२८ १ ३३७ टा५३ १९४६३,772 भारधावसननलितगद.३ ५ ३१२ घातली. ही 2 भाव अन्य ६६८ ३ ३७०, टा 1,.. . १६५ दियो ८११.१२१ Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग २४७ दिपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण भाव सम्यक्त्व १० १८ प्रपं. द्वा.१४६ गा ४२ टी. १ भावानुपूर्वी ७१७ ३ ३६१ अनु सू ७१ २ भाविताभावितानुयोग ७१८ ३ ३६४ ठा १०३.३ 'सू ७२७ भावन्द्रिय २३ १ १७ पनप १५,तत्त्वार्थ अध्या २सू १५ भावेन्द्रिय के दो भेद २५ १ १७ तत्त्वार्थ अध्या २ सू १८ भाषा के चार भेद २६६ १ २४८ पन प ११ सृ १६ १ भाषा के बारह भेद ७७६ ४ २३८ प्रश्न मवरद्वार २ सू २४टी भापा पर्याप्ति ४७२ २ ७८ पनप १सू.१२ टी., भ श.३उ.१ सू १३०, प्रच.द्वा २३२ गा १३१७,कर्म भा.१गा ४६ भापार्य ७८५ ४ २६६ वृ उ पनि.गा ३२६२ भापा समिति ३२३ १ ३३१ सम ५,ठा ५२, ४५७,उत्तम २४, ध प्रवि ३श्लो.४७टी पृ १३० भिक्खु पडिमा बारह ७६५ ४ २८५सम १२,भ श २ उ १टी,दशा द ७ भिक्षा की नोकोटियाँ ६३१ ३ १७६ ठाउ सू ६८१,याचा श्र.२ उ.५ सू८८ टी भिक्षाचर्या ४७६ २८६ उत्तश्र ३०गा ८,ठा ६ ११, __उव सू १६, प्रब द्वा गा.२७० भिक्षाचर्या के तीस भेद ६३३ ३ १८६ । उव सू १६,म.श २५उ ५ भिक्षाचर्या के तीस भेद ६५६ ६ ३१० सू.८०२ भिक्षुक ४मच्छ की उपमासे ४११ १ ४३७ या ५ उ ३ सू ४५३ भिक्षक का खरूप बताने ८६२ ५ १५२ उत्ता १५ वाली सोनहगाथाएं १ौदारिक परिगाम आदि माता का मम, परिपाटी। २ द्रव्यानुयोग का एक भेद Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला भूति कर्म विपय घोल भाग पृष्ठ प्रमाण भिक्ष की कथा औत्पत्तिकीह४६६ २७६ नं.स.२७गा टी. बुद्धि पर भिन प्रतिमा (पडिमा) ६८६ ३ ३४३ प्रतव्य,८७.५ १ भिन्न पिण्डपातिक ३५५ १ ३७० ठा: १ १ ३६६ १ भुज परिसर्प ४०६ १ ४३६ पन प.१सू ३५,उत.प्र.३६ ३ भूत (जीव) १३. १६८ ठा ५१ ४३०,भग २२.११.८८ भूतग्राम (जीवों)कं१४ भेद ८२५ ५ १७ सम.१४,यात ६५ ४ १६४८ ४०४ १४३१ उत्त.म ३६गा २६२,प्रवद्धा.४३ भेद तेईस क्षेत्र परिमाण के १२५ ६ १७३ भनु म १३३, प्रवदा २४४ भेद परिणाम ७५० ३ ४३३ टा १०३.२५१३,पर प.१३ भेद प्रभेद पाठ कमाँ के ५६० ३ ४३ पन्न.प.२३,उत्त.प्र.३३, फर्म. भा.नस्वार्थ मध्यामाग उE,भ.स.१36,5,विशे.गा। १६.६.४८तथा १६४२.४५ भंद बयालीस भाव के ह१२ ७ १४६ नव गा.१६ भोग प्रतिघात ४१६ १४४० टा.५८ १ १४०६ भोग सुख ७६६३४५४ टा.१०३ ३ स७१७ भोगान्तराय ३८८१४११ कर्म,मा १गा १२, पाए २३ भोजनपरिणामरःप्रकारका४८६२६४ ठाउ.अ १३३ भ्रमर वृत्ति पर चारगाथाएं8६४ ७ १८५ मंगल रूप लोकोत्तमतया १२६१ ६४ भाप इ.य ४१५६६ शरण रूप चार शो मस्नु न लेकर कहे की हुई वस्तु को ही लेने पाला मभिप्रहधारी माधु। २ भुजामों से चलने वाले औप, रे मादि । भूत,भारत मौर वर्तमान तीनों कालों में विद्यमान होने में जीवभूतपदाता है। Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त चोल संग्रह, पाठवा भाग २४६ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण मक्खिय दोप (ग्रहण- ६६३ ३ २४२ प्रव द्वा६७गा ५६८५ १४८, पणा का एक दोष) पि नि गा ५२०,व अधि ३श्लो. २२टी पृ ४१,पचा १३ गा.२६ मच्छ की उपमा सेभिक्षुक ४११ १ ४३७ ठा.५उ ३ सू ४५३ मच्छ के पॉच प्रकार ४१० १ ४३६ ठा ५७.३सू ४५३ मणि का दृष्टान्त पारिणा-६१५ ६ ११३ नं सू २७ गा ७४, पाव.ह मिकी बुद्धि पर गा:५१ मण्डितस्वामीगणधरकादंध७७५ ४ ४४ विशेगा १८०२-१८६३ मोक्षविषयकशंकासमाधान गतिज्ञान १५ १ १२ पन्न.प.२६सू ३१२,ठा २सू ७१ मतिज्ञान ३७५ १ ३६० ठा ५२ ३ सू ४६३, न सू.१, कर्म मा १गा ४ व्याख्या मत्तिज्ञान के अठाईस भेद ६५० ६ २८३ सम.२८, कर्म भा.१ गा ४-५ पतिज्ञान के चार भेद २०० १ १५८ ठा ४ उ ४ सू ३६४ मतिज्ञानावरणीय ३७८ १३३४ कर्म.भा १गा ६,ठा ५सू ४६४ १ मतिभंग दोष ७२२ ३ ४०६ ठा १०३.३ सू ७४३ मति सम्पदा ५७४ ३ १४ दनाद ४,ठा ८र ३सू.६०१ मत्यज्ञान साकारोपयोग ७८६ ४ २६८ पन०५ २६ सू.३१२ मद दस ७०३ ३ ३७४ ठा १० सू.७१०,ठा ८सू ६०६ मद्य प्रमाद २६११ २७१ ठा ६उ ३सू ४०२,ध अधि २ ग्लो.३६टी पृ८१,पंचा १गा २३टी प्रट १६श्लो १टी. मधु सिक्य की कथा ६४६ ६ २७२ न सू २७गा ६४ टी. औत्पत्तिकी बुद्धि पर १ वाद या गानार्थ के समय अपनी जानी हुई वान को भी भूल जाना अथवा ममय पर उमका याद न माना। Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय प्रमाण घोल भाग पृष्ठ *मध्यग्रामकी मूर्छनाएं५४० २ २७३ अनुसू१२७१ ४० ला ७ ५३३ ४११ १ ४३७ ठा ५३.३ ४५३ १ मध्यचारी भिक्षु . मध्यचारी मच्छ ४१० १ ४३७ ठाउ १४५३ ५४०२ २७१ अनुसृ. १२७ २५ ३६१ ४६३, कर्म मा १ मध्यम स्वर मन:पर्ययज्ञान टाउ ३ गा ४, न० सु. १ मन:पर्ययज्ञान का विषय ६८३ ७ १०४ विशे० मा ८१२ ८१४ ३७५ १ क्या है ? मन:पर्ययज्ञान की अवधि ६१ ६ १३७ भग १३ उटी, तस्वार्थ ज्ञान से विशेषता मन:पर्ययज्ञानकी व्याख्या, भेद१४ ११२ सध्या १२‍ व १ सृ.७१ १७ १ केप में २ द्वीप में हुए मन:पर्ययज्ञान के लिये ६२६ ३ १७२ २० यावश्यक नौ बातें ६ मन:पर्ययज्ञान साकारी- ७८६ ४ २६८ ११०१२६३१२ पयोग मन:पर्ययज्ञानावरणीय मन:पर्यय ज्ञानी जिन ७४ १ ५३ ३७८ १३६४४४६४१ ट.३ड.४२२० श्री जनसिद्धान्त चाल संग्रह भाग २ दृष्ट २७३ पर मध्य ग्राम की मात सुनाए छपी है वे गीत गा नामक ग्रन्थ में ली हुई हैं। अनुयोगद्वार तथा ग्यानाग सूत्र में सभ्य ग्रामी नामों के नाम दूसरी तरह है। उनकी गाथा सप्र हैतरमंदा रयणी, उतरा उत्तरासमा 1 समोक्ता य सोवीरा, अभिरूवा होइ सत्तमा || अर्थ- उत्तग्मदा, रत्ना, उत्तरा, उत्तरागमा, समाना, सांग और अभिया । ५४३ लेने वाला श्रमिमदवारीमा | पंचेन्द्रिय जीवों के मनोगत जाना। Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त घोल संग्रह, अाठवाँ भाग २५१ विपय बोल भाग पृष्ट प्रमाणा मनःपर्यय दर्शन नहीं हैफिर९८३ ७ १०५ न०सू,१८टी ,विशे गा ८१५ मनःपर्ययज्ञानी अनन्त प्रदेशी स्कन्ध जानता और देखता है यह कैसे कहा ? मनापर्याप्ति ४७२ २ ७८ पन.प १सू १२टी ,भ श.३२ १सू १३.,प्रव द्वा २३२,कर्म भा १गा ४६ मन:पुण्य ६२७ ३ १७२ ठाउ ३ मू ६७६ मनःशिला पृथ्वी ४६५ २ ६६ जी प्रति ३सू १०१ मनकेदसदोपसामायिकके७६४ ३ ४४७ शिक्षा मन विनय ४९८ २ २३० उव सू २०,भ श २५७.५ सू. ८०२,ठा ७उ ३सू ५८५, ध. अधि ३श्लो ५४टी पृ.१४१ मन विनय (अप्रशस्त) के ७६१ ४ २७५ उव सू २१ बारह भेद मनविनय (अप्रशस्त)सात ५०० २ २३१ । भ श २५२.१सू८.२ का ७ मन विनय (प्रशस्त) सात ४६४ २ २३१ । उ ३सू.५८५, उव सू २० मनुष्यप्रायुबन्धके४कारण१३४ ११०० ठा ४३ ४ सू ३७३ मनुश्य के छः प्रकार ४३७ २४१ ठा ६उ ३ सू ४६० मनुष्य के तीन भेद ७१ १ ५१ ठा ३उ १८ १३०,पन प १सू ३७,जी.प्रति ३सू १०७ मनुष्य के तीनसो तीन भेद६३३ ३ १७६ पन प.१,उत्तम ३६,जी प्रति ३ मनुष्य क्षेत्र छः ४३६ २ ४१ य उ ३ सू.४६० मनुष्य भवादि११दुर्लभ७७२ ४ १७ याच ह नि गा८३११ ३४१ मनुप्यभवथादि ४अगोंकी:०६ ६ २६ उत्त प्र.३ दुर्लभतावतानेवालीवीसगाथा Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ श्री सेठिया जैन मन्यमाला विषय बोल भाग पृष्ट प्रमाण मनुष्य भव की दुलभता के६८० ३ २७१ उत्त.प्र.३नि गा १६०,भाव है. दस दृष्टान्त निगा८३२३४० मनुष्य संमूर्छिम के चौदह ८२६ ५ १८ पन०प ११ ३५, प्रनु सू १३३ उत्पत्ति स्थान १६६ मनुप्यसम्बन्धीउपसर्गचार२४१ १ २११ ठा ४३६१,सूय म ३२.12ी मनोगुप्ति १२८ख १ ६२ उत्त.अ २४, टा.३मृ २१६ मनोयोग १५ १६८ ठा ३स १२४,नत्वार्थ यध्या.६ मनोरथ तीन श्रावक के ८८ १६४ टा ३३.४ .२१० मनोरथ तीन साधु के ८६ १६४ टा.३ ३ ४ सू २१० मन्त्र दोप ८६६ ५ १६५ प्राद्वा ६७गा ४६८,मधि : ग्लो ४०,पिनिगा ८.६, पियि.गा १६,पना.१३गा १६ मन्दा अवस्था ६७८ ३ २६७ ठा १०२ ३ ४७२ मयूराण्ड और सार्थवाह की८२१ ४ ४५६ नापद गा १८टी. गम्यस्त्याकथासम्यक्त्वमशंकाकेलिए विकार,शाम मरण के दो भेद ५३ १ ३१ उत. गा. मरण( वाल)के बारदभेद ७९८४ २६८ भग... १६१ मरण के सत्रह प्रकार ८७६५ ३८२सम.१७,मादा ११ गा.१०.६ मरण भय ५३३ २ २६८ ७३.३ १४.सम , मरण समाहि पाण्णा ६८६ ३ ३५५ द०१० मयोदायबीस बोलों की ४३ ६ २२५ उपा.TE, शा.नि." मधिगली. १८० मल्लिनाथ याटि एक माथ ५४३ २ २७७ ला ७३५६४ दीक्षा लेने वाले मान मल्लिनाथ भगवान और उन ४३ २ २७७ ८.५3306 केदा माथियों का पूर्वभव Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह,पाठवा भाग विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण मल्लिनाथ भगवान् की कथा:०० ५ ४४४ ज्ञा०प्र.८ मल्लिनाथ भगवान् के छः ८१२ ४ ३८० ज्ञा०८ मित्रराजा (संसार भावना) मल्लिनाथ भ के साथदीक्षा५४३ २ २७८ ठा ७७ ३ सू ५६४ लेनेवालेछाराजाओं कीकथा | मसि कर्म ७२ १ ५२ जी प्रति ३उ १५ १११,तन्दुल सू १४-१५४० महति वीर (महावीर) ७७० ४ ४ जनविद्या वोल्यूम१न १ महत्तरागार ५१६ २ २४७ श्राव ह भ पृ८५३टी ,प्रव. द्वा ४गा २०४ महर्द्धिक देव दस ७४३ ३ ४२१ ठा १०उ.३ सू ७६४ महाफाल निधि ६५४ ३ २२१ ठाउ ३ सू ६७३ महाकाली रानी ६८६ ३ ३४१ अत०३८ अ ३ महा कृष्णा रानी ६८६ ३ ३४४ मंत०व ८ अ ६ महाग्रह पाठ ६०४ ३ १२१ ठा ८ उ ३ सू ६ १२ महा चन्द्र कुमार की कथा ४१० ६६० वि०१६ महानदियाँ चौदह ५३८-५३६ २ २७० ठा ७३.३ सू ५५५ महान दियाँ चौदह ८४४ ५ ४५ सम १४ महानदियाँदसमेरुसेउत्तरमें७५६ ३ ४४१ टा १०उ ३ सू ७१७ महानदियॉदसमेरुसेदक्षिणमें७५८३ ४४० ठा १०३ ३] ७१७ महान दियॉसातसात५३८-५३६ २ २७० टा ७३ ३ सू ५५५ महानदियों को साधु द्वारा ३३५ १ ३४६ ठा ५उ २ सू ४१२ एक मास में दो. तीन वार पार करने के पाँच कारण महानिधि नौ चक्रवर्ती की ६५४ ३ २२० टा.६उ.३स.६७३ Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ श्री मटिया जैन ग्रन्थमाला विपर बोल भाग पृष्ठ प्रमाण महानिमित्त आठ ६०५ ३ १२१ टा सू.६०८,प्रवदा २५७ महानिग्रेन्यीय अध्ययन ८५४ ५ १३० उत्त अ २०गा.३८-४२ की पन्द्रह गाथाएं महा निर्जरा और महापर्य३६०, १ ३७४ टा ५३ १ -३६७ दमान के पाँच पाँच बोल ३६१ महा पञ्चक्रवाण पइण्णा ६८६ ३ ३५३ द०१० महा पद्मनिधि ६५४ ३ २२१ २ ६३३ सु ६५३ महापानिहार्य अरिहन्त.७८२ ४ २६० सग ३४,स ग द्वा.६७ महाबल कुमार की कथा ६१० ६ ५१ वि० म.१७ महामोहनीय कर्म के तीस:६०६ ३१० दना दनाम ३०, उत्त.य ३१ स्थान गाटो ,भाव , ४१.६१. महायुग्म सातह ८७१ ५ १७२ २.३५३, १९८५४ महाविदेह क्षेत्र के बत्तीस १७१ ७ ४३ अक्ष.४ ३.१० नोक.. विजय भास १७ महावीर __ ७७०४४ जनविता योयूमन : महावीर भगवान की चर्याह२२६ १६६ माना 31 विषयक तेईस गाथाएं महावीर भगवान् की तप-८७८ ५ ३८० माना.१ अ..' श्वयांविषयक सत्रह गाथाएं महावीर भगवानकीवसनिः७४ ५ १८२ याना. १३.२. विषयक सोला गाथाएं महावीर भगवानग्या - ७७५ ४ २३ विणे गा.१५१३ २०२४, रद गणधर ५१,मा ... मारवानिगा -१६ Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, अाठवाँ भाग २५५ विषय योल भाग पृष्ठ प्रमाण महावीरभगवान के ११नाम७७० ४ ३ जनविद्या वोल्युम १ नं १ महावीर भगवान् केदस ६५७ ३ २२४ भश १६२.६सू ! ७६, १० स्वप्न और उनका फल उसू ५५० महावीरभगवान् के नौ गण६२५ ३ १७१ ठाउ ३सू ६८० महावीर भगवान् के पास ५६६ ३ ३ ठाउ.३ स ६२ १ दीक्षित आठ राजा महावीरभ के शासनमेंतीर्थ-६२४३ १६३ ठाउ ३.६६१ रगोत्र वाँधने वालेनौआत्मा महावीर स्तुति अध्ययनकी६५५ ६ २६६ सूयन ६ उनतीस गाथाएं महाव्रत की व्याख्याऔर ३१६ १ ३२१ दश च ४,ठा ५ उ १सृ.३८४, उसके मंद प्रब द्धा ६६गा ५५३,घ.अधि. श्लो.३९-४४ पृ १२० महावत चार १८० १ १३५ ठा ४उ १ रसू २६६ महाव्रत पाँच की पचीस ३१७- १३२४ransr कीजीय ३१७.१३२१. ) याचा २ च या । १७६,श्राव हाय.४१६५८, भावनाएं ३२१ १ ३२६ सम २४, प्रवद्वा ७२ गा. महावत पाँच की पचीस ६३८ ६ २१७ । ६३६.६४०, घ भधि 3 भावनाएं | श्लो.४४टी १२५ महाव्रतोंकीपचीसभावनाएं४६७ २ १८४ महाशतक श्रावक ६८५ ३ ३२७ उपाय.८ महाशुक्रदेवलोककावर्णन ८०८ ४ ३२२ पर प २८ ५३ महासर्वतोभद्रतपयंत्रसहितद-६ ३ ३४५ /त०व.८५.७ महा सामान्य ५६ १४१ रत्ना परि ५ र १४ महासिंहनिष्क्रीड़िततप व यंत्र६८३३ ३४१ प्रत० ८.४ Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ श्री सेठिया जैन अन्यमाला विपय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण महासेन कृष्णा रानी ६८६ ३ ३४६ मंत० व.८ अ.१. महास्वप्न चोदह ८३० ५ २२ भश.१६उ.६८ ५७८,शा.प. ८ सू.६५, कल्पत ४ महेश्वरदत्तकीकथासम्यक्त्व८२१ ४ ४५६ नवपद,गा १८टी सम्यक्त्वाके विचिकित्सादोपकेलिए धिकार मांगलिक पदार्थ आठ ५६४ ३ ३ उव सू ४टी रा०सृ.१४ मांडला (ग्रासपणा)कपाँच३३० १ ३३६ घ अधि ३लो.२३ टी १४५, दोप पि.नि.गा ६३५-६८,उत्तम २४ १ माणवक निधि ६५४ ३ २२२ ठार. १६७१ माता के तीन श्रङ्ग १२३ १ ८७ ठा३र ८ सू २०६ मातापितास्वामीधमोचाये १२४ १८७ ठा.३३ १ मृ ३५ का प्रत्युपकार दुःशक्य है मातृकातर४६व्राह्मीलिपि केहद ७२६४ सम.४६ २ मातृकानुयोग ७१० ३ ३६२ ठा १०३.३ प ७२७ माध्यस्थ भावना २४६ १२२८ गाना (परिनिट), क.भा. १ ग्लो.1- . मान के चार भेद और १६० १ १२१ पन.प. १ नमू.१८८,टा ४८ २ उनकी उपमाएं सू.२ ३, नर्म गा.१गा. १६ मान के दस कारण ७०३ ३ ३७४ टा. १०६.५१०९०६ मान के बारह नाम ७६० ४ २७५ गन १२४४६ मान दोष ८६६ ५ १६५ प्रवद्रा : गा. ६३५ मधि३ j२२ टी ४०,पि.नि गा. १०८,पिffगापना.१३ गा.१८ चरवती की नौ माहानिधियों में मार निधि । २ उत्पाद, व्यय और धौम्य इन तीन पशे को मातृभादमदत है। इन्हें बीमादि पलों में पटाना मातृमानुयोग है। Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त चोल संग्रह, आठवाँ माग बोल भाग पृष्ट प्रमाण ७०० ३३७१ ठा. १० उ. ३ ७४१, पन्न प १९ सू १६५, ६, अधि ३श्लो. ४१५. १२२ ७१२ ३ ३८७ टा १०३ ३ ७५२ भ श ७३.८ ५७८ ३ १६ ठाउ ३ सू५६७ ठा ८ ३ सू ५६७ विषय मान निःसृत असत्य मानसंज्ञा माया का फल माया की आलोया के ५७७३ १६ आठ स्थान माया की आलोयणा न करने के आठ स्थान माया के चार भेद और १६१ ११२१ पन्न. १ १४सू १८८, ठा४उ २ सू २६३, कर्म. भा१गा. २० उनकी उपमाएं सम ५२ सम ५२ प्रवद्वा ६ जगा ५६७, ध श्रधि ३ श्लो २२५४०, पिनिगा ४०८, पि.वि.गा.. पंचा १३गा १८ माया निःसृत असत्य ७०० ३ ३७१ ठा. १०.७४१, पन १११ मू १६४, अधि ३श्लो ४१ १२२ १ मायाप्रत्यया क्रिया २६३ १२७८ ठा २३ १ सु ६०ला ५३ २सू. ४१६, पन्न २२ २८४ मायावी भावना ४०३ १ ४३० उत्तम ३६गा. २६३, प्रवद्वा ७३ मा ६४३ मग ३ १०४ १ ७३ माया संज्ञा ७१२ ३ ३८७ या १० उ. ३ ७५२, १ छल एन माया द्वारा दूसरों को उगने के व्यापार में लगने वाली क्रिया । माया के चौदह नाम माया के सत्रह नाम माया दोप माया शल्य ३५७ ५७८ ३ १८ टा८३ सू५६७ ८३६ ५ ३१ ८६०५ ३८५ ८६६ ५ १६५ ३ ३ १८२, ध. विलो २७टी पृ. ७६ ७३८ Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ विषय वोल भाग पृष्ठ मारणान्तिक समुद्घात ५४८२२८८.३६,७३३५६, द्रव्यलो.स. ३ १२४ वा. २३१ मार्ग की कथा औत्पत्तिकी८४६ ६ २६७ न० २७गा. ६३टी बुद्धि पर मार्गणा चौदह और उसके६ ३ ३ ३ १६६ नवगा. ३४, कर्म मा ४ श्री सेठिया जैन भन्यमाला अवान्तर भेट मार्गणा स्थान के अवान्तर ८४६ ५ ५७ भेद वासठ मार्गणास्थान चौदह १ मार्ग दूषण २ मार्गविप्रतिपत्ति मार्दव (मृदुता ) मार्दव (मृदुता ) * मालापहृत दीप 2 ८४६ ५ ५५ ४०६ २ ४३३ ममाण धर्म भागा १०-१४ "माम कल्प १ चरित्र रूप सत्य में सातवाला मार्गही जानी में वर्क्स भा. ४ गा.-१४ उत्तम ३६ २६ प्रदा. ७३ ६४६ ४०६ १ ४३३ उन ३६ २६ प्र हा. ७३ मा ६८६ ३५० १ ३६५ ३३ प्राद्वा ६६गा ४पनि भलो ४६११२७ ६६१ ३ २३३ नया २३, राम १० जागा.१ भा ८६५ ५ १६३ प्रादा. ६७.५६६ प्र.अधि. 2172,fi fam , *३ विगा.४, पंना १३.६ ६६३ ३ २४० चा १७३५-३७ बादि लगानाहार देना। माधुओं के एक नाम ने मन्थान पर उसके पालनामों में सत्यमार्ग को टपरीत न पहुंच गयी चतुरायादिमी है। " Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्वान्त बोल संग्रह, पाठवॉ माग २५६ विषय घोल भाग पृष्ठ प्रमाण मास वारद ८०२४ ३०३ सूर्य प्रा १०प्रा.प्रा.१६ १ मासिक अनुद्घातिक ३२५ १ ३३३ ठा. उ २ सू ४३३ २ मासिक उद्घातिक ३२५ १ ३३४ ठाउ २ सू ४३३ माहणका अर्थ क्या श्रावकह८३ ७ १२६ भश १उ ७सू ६२टीभ श.२ भी होता है ? उ स ११२टी माहेन्द्र देवलोक का वर्णन ८०८ ४ ३२१ पन्न प २सू ५३ मिच्छाकार (मिथ्याकार) ६६४ ३ ३५० भग २५उ सू८०१,ठा १० समाचारी उ ३सू ७४६, उत्त अ २६गा ३, प्रवद्वा १०१गा ७६. ३ मितवादी ५६१.३ १२ ठाउ ३सू ६०७ मिथ्यात्व आश्रय २८६ १२६८ ठा ५उ २ सू ४१८,सम ५ मिथ्यात्व दस ६६५ ३ ३६४ ठा १०उ ३सू ७३४ मिथ्यात्व पाँच २८८ १ २६७ ध अधि २श्लो २२टी पृ ३६, कर्म भा ४ गा५१ मिथ्यात्व प्रतिक्रमण ३२६ १३३८ ठा ५७ उसृ.४६७,भाव,ह म. ४गा.१२५०-१२५११५६४ मिथ्या दर्शन ७७ १५५ भग ८उ २८.३२०,ठा ३स् १८४ ४ मिथ्या दर्शन प्रत्यया २६३ १ २७८ ठा २उ.१सू.६०, ठा ५उ २मृ क्रिया ४१६,पन्न.१ २२सु २८४ मिथ्या दर्शन शल्य १०४ १ ७४ सम ३,आ.३उ ३सू.१८२ १ जिम प्रायश्रित का भाग न दो गानि गुरु प्रायचित्त । २ जो प्रायश्चित्त विभाग करके दिया जाय यानि लघु प्रायश्चित्त । ३ जीत्रों के अनन्तानन्त होने पर भी उन्हें परिमित बताने वाले अमियावादी। ४ मिथ्या दर्गन मर्थात् तत्त में श्रद्धान या विपरीत श्रद्धान से लगने वाली रिया मिथ्या दर्शन प्रत्यया मिया कहलाती है। Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० श्री मेठिया जैन ग्रन्थमाला ~~~~~~~~~~~ - - ....~ wrow - . . . .. -~~ ' ~~~~~~~ विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण मिथ्या दृष्टि गुणस्थान ८४७ ५ ७२ कर्म भा २ गा २ व्याया मिथ्या श्रत ८२२ ५ ७ न०म. विशे.गा.६२७-३ मिश्र गुणस्थान ८४७ ५ ७३ कर्म गा २ गा.२ व्याया १ मिश्र जात दोप ८६५ ५ १६२ प्रब द्वा ६७मा ५६५,ध अभिः ग्लो २९टी पृ ३८,पिनि गा ६२,पि विगा३.पना १३गा। मिश्र दर्शन ७७ १ ५५ भराड,टा ३३.२१ १८९ मिश्र भापा २६६ १ २४६ प ५११ पृ.१६१ मिश्र भाषा के दस प्रकार ६९४ ३ ३७० या १०७.१,पन.ए १११ १६, मवि ३ लो ४५५ १२३ २ गंमुही अवस्था ६७८ ३ २६८ ठा १० ६.३ र ४७३ मुख्य (प्रधान) ३८ १ २४ नया अध्या 1739 मुण्ड दस ६५९ ३ २३१ ८ १०33 23 ५४६ सुक्तावली तप यंत्र सहित ६८६ ३ ३४८ नमः ५० १ ३६५ टा ., RT...: गा. १५, लो, १२.. ६६१ ३ २३३ गागागा OFTII) मुक्ति मुक्ति सुनि(मुणि)माहण(ब्राह्मण)७७० ४ ७ का गायन १ मुद्रिका कथागोत्पत्तिकीट४६ ६ २७२ नग 11. टी. बुद्धि पर ५५१ २ ३ वा. पिता अपने और गायु माया मार - RITAIM में में नदी HEIT, Enार को माना समान में म नपर अपने भी { आमनोज जाता Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिजान्त बोल संह, श्राठवाँ भाग २१? विपय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण । मुष्टि संकेत पच्चक्खाण ५८६ ३ ४३ प्राव ह अ६ नि गा १५७८, प्रव.द्वा ४ गा २०० ७५ १ ५४ टा.३ र ४ सू २०३ * मूर्छना२१तीनग्रामोंकी५४० २ २७३अनु स् १२७,ा ७सू ५५ ३,सगीत मृत कर्म का अमूर्त आत्मा ५६० ३ ४७ विशे अग्निभूतिगणधरवाद पर प्रभाव मूल गुण ५५ १३२ सूय य १४नि गा १२६,पचा गा २ मूलगोत्र मात ५४२ २ २७६ ठा. उ ३ सृ ५५१ मूल कर्म दोप ८६६ ५ १६६ प्रब द्वा ६७गा ५६८,ध अधि ३ श्लो २२टी पृ४०,पिं निगा ४०६, पि विगा५६,पचा १३गा १९ श्री जैन सिद्धान्त वोलसग्रह भाग २ ४२७३ पर पड्ज, मध्यम और गान्धार ग्रामों की जो इक्की स मूछनाए छपी है वे सगीतशास्त्र नामक ग्रन्थ से ली हुई है। अनुयोगद्वार तथा स्थानाग सूत्र में इन तीनों ग्रामों की मूर्छनायों के नाम दूसरी तरह दिये हैं। उनकी गाथा इस प्रकार है - मगी कोरविा हरिया, रयणी असारकंता य । छट्ठी अ सारसी नाम, सुद्ध सज्जा य सत्तमा ॥३९॥ उसरमंदा स्यणी, उत्तरा उत्तरासमा। समोक्कता य सोवीरा, प्रभिरूवा होइ सत्तमा ।।४०|| नंदी अ खुद्दिा पुरिमा य, चउत्थी सुद्धगंधारा। उत्तरगंधारा घि असा पंचमिश्रा हवह मुच्छा ॥३१॥ सुटुत्तरमायामा सा छट्ठी सव्वनो य णायव्वा । अह उत्तरायया फोडिमाय, सासत्तमी मुच्छा ॥४२॥ अर्थ - १५ ग्राम की सात मईनाए-मागा, वोरवी, हरिता, रत्ना, सारकांता, सारसी भोर गुपजा । मध्यम ग्राम की सात मृहनाए-उत्तामदा, रत्ना, उत्तरा, टत्तरासमा, लमकांता, मुजीरा और अभिरूपा । गान्धार ग्राम की मात मुईनाएं-नदी, नुद्रिका धरिमा, गुदगान्धाग,उत्तरगान्धारा,मुतग्मायामा और उलगयतकोटिगा। Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण १ मूल वीज ४६६ २ ६६ दश प्र.४ मृल मूत्र चार २०४ ११६३ मतातिशयअरिहन्तदेव के १२६ व १६६ स्या. का १ टी. मृगचर्या पर नौ गाथाएं ६६४ ७ १८६ मृगापुत्र (अन्यन्वभावना)-१२ ४ ३८२ उत्त १६ मृगापुत्र की कथा ६१० ६ २६ विन १ मृगावती ८७५ ५ ३०३ भाव ह निगा १०४८, द. १ नि गा.७६ मृदुकारुणिकी विकथा ५३२ २ २६७ टा.७ ३ ३ सू ५६६ मृपावाद चार प्रकारका २७० १ २४६ दशम ८ दूसरे महारत की टीका मृपावाद दस प्रकारका ७०० ३३७१८.५०१ ७४१,पन प.११सू.१६५, ध पनि ३-लो ४१ टी १२३ मृपावादविरमणरूपद्वितीय३१८ १ ३२५ मम २५,माचा. अ.२.४ महावन की पाँच भावनाएं म ५७६, माव ह भ ४५६५८, प्रव. नागा ६.४०,भ. भार . टी .१२४ मृपावाद विरमण व्रत ७६४ ४ २८१ प्रागम. निश्चय और व्यवहार से मंघकीउएमासदानीपुरुप१७५ १ १२६ ४३,४२९६ मेघ की उपमा से पुरुपचार१७३ १ १२७ ८ ८३ ४ १.३४६ मेघकुमार की कया १००५ ४२६ मा भ.१ मेघकी उपमा से वक्ता १७४क १२८ टा ४८.४ ८७ प्रारदाता के चार प्रकार म वनस्पति का मत मागवीन का काम देता है, फमल मालि Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग २६३ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण मेघ के अन्य चार भेद १७४ख१ १२६ ठा.४ उ ४ सू ३४६ मेघ चार १७२ १ १२७ ठा ४उ ४ सू. ३४६ मेतार्यस्वामी का परलोक ७७५ ४ ५४ विशे.गा.१६४६-१९७१ के विषयमेंशंकासमाधान मेरुपर्वत के चार वन २७३ १ २५१ ठा.४उ.२सू ३०२ मेरुपर्वत के सोलह नाम८७० ५ १७१ सम.१६,ज.वक्ष.४ सू. १०६ मैत्री,प्रमोद,करुणा और ४६७ २ १८८ माध्यस्थ्य भावनाएं मंत्री भावना २४६ १ २२४भावना ,च ,क.भा २श्लो.३५.४२ मैथन विरमण रूप चतुर्थ ३२० १ ३२७ सम २४,घाचा श्रु २८ ३घ २४ महाव्रत की पाँच भावनाएं सू १७६,प्रव द्वा ७२गा ६३९, श्राव ह अ. १६५८,ध अधि ३ श्लो ४५ टी. १२५ मैथुन विरमण व्रत निश्चय ७६४ ४ २८२ प्रागम श्रोर व्यवहार से मैथुन संज्ञा १४२ १ १०५ ठा ४ सू ३५६, प्रव द्वा १४५ मेधन सज्ञा ७१२ ३ ३८७ ठा १० उ ३सू ७५२,भ श ७उ८ मैथुनसंज्ञा चार कारणों से १४५ १ १०६ टा ८उ ४१ ३५६,प्रव द्वा १४५ उत्पन्न होती है मा२३ मोक्ष ४६७ २ २०६ मोक्ष के पन्द्रह अंग ८५० ५ १२१ पच व गा.१५६-१६३ मोक्षगामीयात्माके१४स्वम८२६ ५ २० भग १६३ ६ सृ ५८० मोक्षतत्त्वज्ञानाद्वारासिवर्णन६३३ ३ १९८ नागा ३२-३३ मोक्षप्राप्ति के काल स्वभाव२७६ १ २५७ प्रागम ,गरण ,सम्मति मा ५ आदि पाँच कारण कागड गा५३ Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ श्री मेठिया जैन पन्थमाला विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण मोक्षमार्ग के चार भेद १६५ १ १५३ उत्तम २८ गा २ मोक्षमार्ग के तीन भेद ७६ १५७ उत्त अ २८गा ३० तत्वार्थ अध्या मोक्षमार्गपर१५ गाथाएं ६६४ ७ १६५ मोनविषयकगणधरमभास७७५ ४ ६० विशे. गा 1६७२-२०२४ स्वामीका शंका समाधान मोसली प्रतिलग्वना ४४९ २ ५४ टा.६५०३,उत्त.भ.२६ गा.२६ मोह (सम्मोही भावना) ४०६ १ ४३३ उत्त थ.३६,प्रवदा ७३ गा.६० मोह गर्भित वैराग्य ० १ ६५ कभा २ श्लो. ११८ मोह जनन ४०६१ ४३३ उत.५ ३६,प्रा दा.३ गा.६.४६ मोहनीयकर्म और उसके ५६ ३ ६२ कर्म मा १ गा.१२.२२,तत्वा भेद मध्या ८,पन प २३१ २६३ मोहनीय कर्मफी २८ प्रकृतिह५१ ६ २८४ गर्म:गा गा १३.२२,गम २८ मोहनीयकर्मशीव्याख्या ,भेद२८ १ १६ टा. १०५,म.मा.पगा.१२ मोहनीय कर्म के ५६ नाम१८८८७ २७६ राम २,भराट ४५. मोहनीयकर्मवॉधन केटःकारण४४२ २ ४४ भग. ३ :४१ मोहनीयफर्मवॉधन के प्रकार ५१०३ ६३ गगम , पर प.२३ और उमका अनुभाव मोहनीयकर्मवेदताहुआजीव ७ १२० उ०१८ क्या मोहनीय कर्म वॉधता है या वंदनीय कर्म वॉधता है? माग्यरिक ४४४ २४८टा (डी.): १ गान चरक ३५३ १ ३६८ टा५३.१२. मागपत्र गणघरमादेवांक ७५ ४ ५. मिशे गा १८८ १८८। विषय में शंका समाधान न या पहिमा की गोषणा करने बाला सिमसारी गा। Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त मोल, संग्रह, पाठवाँ भाग . विषया बोल भाग पृष्ठ प्रमाण यतनाकेविषय में३ गाथा १६४ ७ १६५ यतिधर्म दस - ३५०, १ ३६४, [ ठासू ३६६,ध.अधि.३ . श्लो ४६पृ १२७,प्रव द्वा ६६ ३५१ . ३६६ / गा.५५४ । यति धर्म दस ६६१ ३ २३३नव गा २३,सम १०,शा.भा. १८ यथाख्यात चारित्र ३१५ १३२१ ठा ५उ २ सू ४२८ मनु सू १४४, विशे या १२६०-१२८० यथाच्छन्द साधु ३४७ १ ३६३ श्राव ह श्र.३ नि गा ११०७.८ । पृ८१६,प्रव द्वा २गा १२१-१२३ यथा प्रवृत्तिकरण । ७८ १ ५५ श्राव म.गा १०६-१०७टी, विशेगा.१२०२.१२१८,प्रव । द्वा २२४गा १३०२टी, कम भा २गा व्याख्या ,प्रागर्म, यथालन्दिक कल्प ' ५२२.२ २५६ विशे गा." यथा सूक्ष्म कुशील ३६६ १ ३८४ ठाउ ३ सू ४४५ यथा मूक्ष्म निग्रन्थ । ३७० १ ३८६. टाउ, ३ सू ४४४ यथा सूक्ष्म पुलाक ३६७ २ ३८२ टास् ४४५, म श २५उ ६ यथा सूक्ष्म वकुश . ३६८ १ ३८३ ठा ५उ ३ मृ.४४५ यम ६०१ ३ ११५ यो,रा यो याथातथ्य स्खम दर्शन •४२१ १ ४४४ भ.स १६ ३ ६सू ५७७ यावत्तावत् संख्यान .७२१ ३ ४४५ ठा १०३ ३सू ७४७ युग संवत्सर की व्याख्या ४.० १ ४२५ ठा ५३ ३ ४६० ,प्रब द्वा १४२ और उसके पांच भेद गा ६०१ युग्म नारकी जीवों में ५६० २ ३४१ भरा १८उ ४ सू.६२४ योग आश्रव २८६ १२६६ टा.५२ २ सू ४१८,सम.५ Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ विषय घोल भाग पृष्ठ ममाण योग का चौथा अङ्ग (माणा - ५५६ २३०२ यो रायो, टोप गीता अध्याय ६ याम) योग का साधन करने के ५५६ २ ३१४ गीता अध्याय ६ लिये नियमित आहार विहारादि योग की व्याख्या और भेद ६५ १६८ ठा. ३. १२४, तत्त्वार्थ भध्या १ ५५६ २३१० पी०प० ८५५ ५ १३८ १६२०२, रा. २४३.१ ४६७ २ १४६ ८६६ ५ १६५ योग के कुछ आसन योग के पन्द्रह भेद योग दर्शन योग दोप श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला योग नारकियों में योग परिणाम योग प्रतिक्रमण योग सत्य यांगांग याठ योगात्मा ५६० २ ३३७ जीन्प्रति ३८८ योगमार्गणा और उसके भेद ४६ ५५८ १ योगवाहिता ७६३ ३ ४४५ योग संग्रह तीस ६६५ ७ १६ प्रवद्वा. ६७५६८, ६. मधि ३ श्लो २२१.४०, पि.निगा. ४०६, पिं.वि गा.पा. १३ मा १६ ७४६३४२७ टा १०३ ३७१३, पद्म १.१३ ३२६ १ ३३८ ट ५ ३४६७, माप. ६ भ.४ गा. १२५०-१२५१५४६४ कर्मभाग १० १०३.३७८ उत्तम ३१.२० टी., प्रन्न धर्महारी, मग ३२, मार. ६ ४गा, १२७४-०८ (३ १०७८५.१.११५. १.२.१२१ ६६८ ३ २७० मधि १६४ ६०१ ३११४ यो०, रा०यो • ५६३ ३ ६६ भग १९३१०.४६७ १ पान करना इस शुभ कर्मों का बन्ध होता है । , कार, सांसारिक पदार्थों पर से राम हटा कर शाम पान Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, आठवाँ भाग विषय बोल भाग पृष्ठ योनि की व्याख्या और भेद ६७ १४७ योनि संग्रह आठ ६१० ३ १२७ र ८४५५ ४६ प्रमाण तत्त्वार्थ श्रध्या २, ठा. ३ १४० दश० ४, ठा. ८ ३.५६५ प्रव द्वा १४३ गा ६१७,तत्त्वार्थ • अध्या १८ टिप्पणी ठा १०३ ३सू. ७४७ रज्जु की व्याख्या ७२१ ३ ४०४ १ रज्जु संख्यान रति अरति पर छः गाथाएं ६६४ ४ १६० सम १४ रत्न चौदह चक्रवर्ती के ८२८ ५ २० रत्नावली यादित काली ६८६ ३ ३३५ प्रत व ८ आदि रानियों के रत्नावली तप यंत्र सहित ६८६ ३ ३३६ प्रतव रस गौरव (गाव) ६८ १७० २६७ रस घात ८४७५७८ रसना के संयम पर७ गाथाह६४ ७ २१२ रसनेन्द्रिय ३६२ १ ४१८ ठा ३उ ४ सू २१४ कर्म भागा २ पन प १५३१सू १६१, टा ५ उ ३ सू४४३, जैप्र. अनु०सू १२६गा. ६३-८१ टा १० उ ३७१३ टी., पन्न प १३१८४-१८५ ४७६ २८६ उत्त. ३०गा ८,ठा ६५११, ख.पू. १६, प्रवद्वा ६गा २७० _ १६,भरा २५उ ७सू ८० २ ६३६ ३ २०७ ७५० ३ ४३४ रस नौ काव्य के रस परिणाम रस परित्याग रस परित्याग के नौ भेद ६३३ ३ १८६ रस पाँच ५१५ १४३६ ठा ५३१ सू ३६० १ रस्सी से नाप कर लम्बाई चौड़ाई मालूम करना रज्जु सख्यान कहलाता है । Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ श्री मेठिया जैन भव्यमाला विषय “बोल भाग पृष्ठ , प्रमाण रस वाणिज्जे कर्मादान ८६० ५ १४५ उपाय १सू ७,भग.. 30,भाव हम ६१८२६ राग द्वेषविषयकदसगाथाएं९६४.७ २३३ राग वन्धन २६ १.१८ ठा २२,४ १६६ रान कथा चार १५२ १ ११० ठा.४३ २ २८२ राजस्थासे होनेवालीहानि १५२१ १११ टा ४३ २०८२ टी. १ राजपिण्ड कल्प ६६२ ३ २३७ पंचा १७गा २०-२२ राजमती रहने मि की कथा७७१ ४ १० दशा २ टी. गजमती सती । ८७५ ५ २४६ दाय त्रि.प.५८, उत्तम.२२, राजगनी (न्य श्रीजाहिरानाय) राजा की ऋद्धि के तीन भेद १०१ १ ७१ टा ३३ ८ र१.२१८ गजाकेसन्तःपुरंगमाधुक३३८ १३४८ टा. १४१५ प्रवेश करने के पाँच कारण राजाभियोग शागार ४५५ २ ५६ जाग.८,भाय. घ.६.५ ८१.,परि.२ २०५४ राजावग्रह ३४ १ ३४४ भग.१३५ १५.११. १८१, माना." म. राजा श्रेणिक के कोप का ७८०४ २५३ मा7 P.गा १३१, पृ.माटर दृष्टान्न भाव अननुयोग पर निगा १४० गत्रिभाजनात्यागपरगाथाहह ७ १८४ ...... ~~~ ... . ... .. माह में याागरिकलेने के लिए बताया गया गायुगमायानगंगा • चार लागिने अंत्र को उपर दवए गामी is TEAM Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, अाठवाँ भाग २६६ विषय बोल,भाग पृष्ठ प्रमाण राम कृष्णा रानी ६८६ ३ ३४६ प्रत व ८ . रायप्पसेणी (राजप्रश्नीग)७७७ ४ २१६ सूत्र का संक्षिप्तविषयवर्णन राशि की व्याख्या और भेद ७३ १.४ सम १४६ ।' १ राशि संख्यान ७२१ ३४०४ ठा १०३ ३ सू ७४७. राष्ट्र धर्म ६६२ ३ ३६१ ठा.१० उ.३ स ७६ ० रुचक प्रदेश आठ ६०७ ३ १२५ प्राचाश्रु १७ १उ १नि गा ५२ टी ,यागम ,भ श ८उसू ३४७ टी,टा ८ उ ३ सू ६२४ २ रुचि १२७ १६१ भश १उ ६७६ । रुचि दस ६६३ ३ ३६२ उत्त.व २८गा १६-२७ रूप मद ७०३ ३ ३७४ ठा १०सू ७१०, ठा ८सू ६०६ ३ रूप सत्य ६६८ ३ ३६६ ठा १०सू ७४१,पन्न प ११ सू __ १६५,ध अधि ३श्लो ४१ टी १२१ रूपस्थ धर्मध्यान . २२४. १ २०८ ज्ञान प्रक ३६, यो प्रका ६, कभा २ श्लो २०६ रूपातीत धर्मध्यान २२४ १ २०६ ज्ञान प्रक ४०, यो प्रका १०, - कभा २श्लो २०६:I, ६०.१ ४२ तत्त्वार्थ अध्या ५ सू.४ रूपी अजीव के ५३० भेद ६३३३ १८१ पन्न प १सू ३,उत्त श्र.३६गा ४६ रूपी के दो भेद ६१ १ ४२ 'भग १२उ ५सू ४४० ५ धान प्रादि के ढेर का नाप कर वा तोल कर परिमाण जानना । २ श्रद्धा पूर्वक तान दर्शन चारित्र प्रादि के सेवन की इच्छा । ३ वास्तविक्ता न होने पर भी रूप विरोप को धारण करने से किसी व्यक्ति, या चम्नु को उस नाम से पुकारना रूपसत्य है। रूपी Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० श्री सेठिया जैन प्रन्यमाला - - - - विपय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण रेचक प्राणायाम ५५१ २ ३०३ यो.प्रका.५ श्लो.६, रा.यो ,इठ. रेचकादिप्राणायामशाफल५५१ २ ३०४ यो.प्रका, श्लो.१०-१२ रेवती ६२४ ३ १७० टाउ.३ सू.६६१ वित या धैवत स्वर ५४, २ २७१ अनु मू.१२७गा.२५,टा रोग उत्पन्नहाने कनौस्थान६३७ ३ २०५ ठा,६३. सू.६६७ १ रोचक समकिन ८० १ ५८ विशेगा.२६७५ द्रव्यलो स. ग्लो.६ ६ ६,ध अधि.श्लो.२२ टी१.३६,आप्र.गा ४६ रोहक की मौत्पत्तिकी ६४६ ६ २४३ न.स.२७ गा.६४ बुद्धि के चौदह दृष्टान्त गेहगलनापलटेनिद्ववका५६१ २ ३७१ मिशे.गा २४४१-२४०८ राशिकमत समाधान सहित रौद्रध्यान २१५ ११६४ सग ४, प्रब द्वारंगा २७१टी, स. नि.गा.४८ टी. ध्यान के चार प्रकार २१८ १ १९८ टा.८ ३.११.२०४७ गेद्र ध्यान के चार लक्षण २१६ १ २०. टा ४३ ११२...१३ ७ मु८०३,मापदम-दा. TATI .v१० रौद्र रस ६३६ ३ २०४ भनु म १९६७-७१ लकवाणिज्ज कमोहान ८६०५ ११५ आम11., ८३ २३.,माय...म ६१.८२८ लक्षण शीव्यास्त्याव भंद ६२ १ ४३ यामी.प्रका.? जिम मत होने पर जोर गटन माफ नचि मिन्नु मार. र पाना या गेममदिन। प Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवाँ भाग बोल भाग पृष्ठ प्रमाण ६८४ ३ २६२ भश २३५सू १०७ विषय लक्षण दस श्रावक के १ लक्षण दोष ८५२५ लक्षण पन्द्रह विनीत के लक्षण संवत्सर की व्याख्या ४०० १ ७२२ ३ ४०८ ठा १०३ सू७४३ १२५ ४२७ लज्जादान लब्धि दस लब्धि पुलाक २७१ उत्तम ११गा १०-१३ टा५ उ ३ सू४६०, प्रथ द्वा १४२ मा ६०१ और उसके पाँच भेद लक्षण सत्रह श्रावक के ८८३५३६२ ध अधि २ श्लो. २२टी १४६ लक्षणाभास की व्याख्या १२० १ ८४ न्यायदी. प्रका १ ३५६ १३७३ और भेद २ लगण्डशायी लघुसर्वतोभद्रतपयंत्रसहित ६८६ ३ ३४५ लघुसिंह क्रीड़ातपयंत्रसहित ६८६ ३ ३४१ लघुसिंह निष्क्रीड़ित तप ६८६ ३ ३४१ ७६८ ३ ४५१ ६५८ ३ २३० ३६६ १३८० टा ५३ १ सू ३६६ व ८.६ व ३ अंत व ८.३ ठा १०३ ३७४५ भरा ८२ सू ३२० ट ५ ३४४५, भरा. २५ उ ६ सू७५१ टी. लब्धि प्रत्यय वैक्रिय शरीर३८६ १४१३ पद्म प २१स् २६७,टा उ १ सू. ३६५,कर्म भा१गा ३३ तत्त्वार्थ श्रध्या २ १८ लब्धि भावेन्द्रिय लब्धि मद लब्धियाँ अठाईस लगन पुण्य १ बाद का एक दोष, इसक सव्याप्ति, प्रतिव्याप्ति और असम्भव तीन भेद हैं । २ दुसस्थित या बाकी लकडी की तरह कुबड़ा होकर मस्तक भौर कोहनी को जमीन पर लगाते हुए एवं पीठ से जमीन को स्पर्श न करते हुए सोने वाला साधु । २५ ११७ ७०३ ३ ३७४ ठा १० सू ७१०, लासू ६० ६ ६५४ ६ २८६ प्रत्र द्वा २७० मा १४६२-१५०८ ६२७ ३ १७२ ठाउ ३ सू. ६७६ Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ श्री सेटिया जैन अन्यमाला " विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण । लव (७स्तोंक का एक लव ५५१ २ २६३ जंबन, २सू.१८ लवणसमुद्रमें चन्द्रसूर्यादि६६ ४ ३०० सूर्य प्रा १६४ १०० ज्योतिपी देवों की संख्या लाघव ३५० १ ३६५ ठा. ३६६,ध अधि श्लो. ' ४६५१२७, प्रयद्वा ६६ गा.१५४ लान्तकदेवलोक का वर्णन८०८ ४ ३२२ पाप २.५३' लाभान्तराय ३८८ १४१० फर्म भा. १मा, २,पनप २३ लिंगकुशील ३६६ १ ३८४ टाउ.३ पृ. ४४६ लिंग तीन समकित के ८१ १ ५४ प्रव दा १४८गा । लिग पुलाक ३६७ १३८२ टा.५१४ग. 13 ६ लित्त दोप(दायफ दोपका ६३३ ३ २४७ प्ररदा ५ गा: ६८५ १४८,' एक भेद) यिनि गा ४२०, अभिमनो टीए ४ १,पना.१ मा लिपियाँ अठारह ८८६ ५४०६ पाप.1 2 3 ,गम.१८ * लून चरक ३५२ १ ३६७ टा। 17::: * लक्षाहार ५६ १ ३७१ टा? १ . लवालवणं गागार(आयं-५८८ ३ ४२ मा १८:,HTET. बिल का) लश्या कास्वम्प समभान४७१ २ ७४ प ८ १.३३ Hd म.लिए दो दृष्टान्त ' । लेश्या छः ४७१ २७० भE31 1, १७.. गा.१३॥१. ३. म म.४१, न्य लोगो ८:३८५ । पीनार का गाना । Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जेन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवाँ भाग विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण लेश्या नारकी जीवों में ५६० २३२१ जी प्रति ३.८८, प्रयद्वा १७८ ७४६ ३ ४२७ टा १०३ ३ ७१३, पन्न प १३ लेश्या परिणाम लेश्या मार्गरणा और भेद ८४६५८ . भा४गा. १३ ८४५ ५ ५३ लोक का नक्शा लोककानक्शावनानेकी विधि८४५५ ४८ लोक का संस्थान ८४५५ ४७ लोक की व्याख्या औौरभेद ६५ १४५ लोककीव्यवस्था४प्रकार २६७ १२४७ ८४५५ ४६ लोक के भेद लोक चौदर राजू परिमाण ८४५५ ४५ २७३ प्रवद्वा १४३ गा. ६०६-६०७ तत्त्वार्य अध्या ३६, प्रवद्वा १४३गा. ६०५ लोक भा रस १२, मश ११ १० सू ४२० ४ उ.२ सू २८६ तत्त्वार्थ प्रध्या ३ सृ.६ टी प्रवद्वा १४३ मा ६०२-६१७, तत्वार्थ अव्या. ३ सू. ६ टी, भ ६०२६, भग.१३ उ४ सू ४७६ ४८० लोक निराकृत साध्य धर्म ५४६ २ २६१ राना परि ६.४४ विशेषण पक्षाभास १ लोकपाल लोक भावना ७२६ ३ ४१६ तचार्य मध्या४ सूत्र ८९२ ६ ३७० शा मा ११, भावना ज्ञान. प्रका ६७ ना ४७३, तत्वार्य. अध्या६ ७ लोक में अन्धकार कितने ६१ ६ १५६४३२४ कारणों से होता है? १ मीना (नर) को राजपाला है। Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ عام श्री मेटिया जैन प्रस्यमाला विपय बोल भाग पृष्ट प्रमाण लोक में चौदह राज और ८४५ ५ ४८ प्रा.दा.१४ मा ६.०२.२.१७ रखण्ड रज्जु फा वर्णन लोकढिनिगकृतवस्तुदोष७२३ ३ ४११ टा १०३.३ १७४३टो लोकवादी १६२११४६ माना ग १3 11 लोक मंना ७१२३ ३८७ ठा १०३ १७१२.म.न . लोकस्थिनिश्राट ६२१३ १४८ गन 17.६, टा.८१६.. लोकस्थिति दर ७५२ ३ ४३६ टा.१०८७.४ लोकाकाश ३४ १२३ ११५ लोकोपचार विनय ९८२२९समा२१3.८.२, ठा ७33 .मानो १४.११४१ लोगोपचार विनय के ५०५ २ २३३ मग २५ १८. टा.?? मात भेद म , अम. लाभ के चार भेद और १६२ १ १२२ ग..on:+3, प.१.१८ पनकी उपमाएं 41८८,५i , लोभ के चौदह नाम ८३७ ५ ३२ गा ५२ लोभ दोष ८६६ ५ १६५ मा En : सी.टी .,पिनिग ८०८० सिंसिंगा . 3.10 टीम मंत्रा ७१२ ३ ३८७ टा 1033 .574 नोम निःमत शमन्य ७०० ३ ३७१ ट .7, ७ ४१,९१.३१ Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सपह, पाठवाँ भाग २७५ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण १लोल प्रमाद प्रतिलेखना५२१ २ २५१ उत्त अ २६गा २७ लौकान्तिक देव पाठ और६१५ ३ १३२ भश ६उ ५सू २४३,ठा ८उ ३ उनके विमान सू ६२३ लोकान्तिक देव नौ ६४५ ३ २१७ ठाउ ३सू६८४ लोकिक फल के लिए यत८१८६१४६ भ श २उ ५सू १०७,श्राद्ध प्रति यक्षिणी की पूजा करने में (रत्नशेखरसूरिकृतविवरण) क्या दोप है? ३३,ध अधि २श्लो २२१३६ वक्रवार पर्वतदससीतामहा७५५ ३४३६ ठा १०उ.३ सू ७६८ नदी के दोनों तटों पर स्थित वक्रवार पर्वत दस सीतोदा७५६ ३ ४३६ ठा १० उ ३सू ७६८ , महानदी के दोनों तटों पर स्थित वक्तव्य अवक्तव्य ४२४ २ १० पागम ,उत्त अ ३६६ वक्तव्यता ४२७ २ २६ अनु सू ७. वचन केदसदीप सामायिकके७६५ ३ ४४८ शिक्षा. वचन के सोलह भेद ८६६ ५ १७० पन्न ५ ११सू १७३, भाचा २चू १७१३ उ१ वचन गुप्ति १२८ख १ ६२ उत्त.अ २४,ठा.३उ १सू १२६ वचन पुण्य ६२७ ३ १७२ ठाउ ३ सू.६७६ वचनयोग ६५ १६८ ठा ३सू १२४,तत्त्वार्थ अध्या । बचन विकल्प सात ५५४ २ २६५ ठा ७७ ३ स् ५८४ वचन विनय ४६८ २ २३० उव सू २०,भ श २५२ ७ सू. ८०२,ठा.७३ ३सू ५८५,ध. अधि ३लो ५४ टी पृ४१ १ जमीन के साथ वन को रगड़ते हुए उपेक्षा पूर्वक प्रतिलेखना करना । Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ टिगता विषम पोन भाग पृष्ठ प्रमाण रचनविनय प्रशस्त मान ५०२ २ २३२ } 3,7८.. बचन विनय प्रगस्त सान १०१ २ २३२ २.३ मा वचन विभक्तियां याद ६५ ३ १०५ २ . 2.7 ... वन सम्पदा ७४ ३१३ : ... ..! वचनानिए पनीस १९ ७ ७ नम :, .. बताभ नागनमनन ४७० २६१ प. . :: : 10:वनन्यागी की कथा पारि-6१५ ६१०६ ' . . . :., गागिकी गद्धि पर जवानाकोपात्राम-२०११? नारग 1... . ग के लिए वा कमरे काहान ६५ ११2 37 • • . , , .41 नयनिशान 12.01.. काम कामदनमंद ७१ १२२ चापति ननद ७.१ " ' . ११ वीपरकीयापा,३७३ १ ३८७ :.:. '' ननामा १६५ : .... या कायर बन्दनाला गन्दा १० र १२ : १७५ २ .:, ::":." ३१८३६३R..., . "," t Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाटवाँ भाग २७७ विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण वन्दना के बत्तीस दोष ६६६ ७ ३८ प्राव ह गा १२०७-१२११ पृ. ५४३,वृ उ ३गा ४४७१-६४, प्रवद्वा २गा १५०-१७३ वन्दना योग्य समय के ३४६ १ ३६४ प्राव ह य ३निगा,११६६ पाँच वोल ५ ८१,प्रब द्वा २गा १२५ 'वमनकिये हुए को ग्रहण नह६४ ७ १८६ करना' विषय पर छःगाथाएं १ क्य स्थविर ११ ६६ टा3उ ३सू १५६ वरदत्त कुमार की कथा ४१० ६ ६० विग्र २० वगेणा आट ६१७ ३ १३४ विशे गा ६३१-६३५ वर्ग तप ४७७ २ ८८ उत्त० ३० गा १० वर्ग वर्ग तप ४७७ २८८ उत्तय ३०गा ११ वर्ग वर्ग सख्यान ७२१ ३४०६ ठा १०३ ३ सू ७४७ वर्ग संख्यान ७२१ ३४०६ ठा १०३ ३ सू ७४७ वर्ण नारकी जीवों का ५६० २ ३३६ जी प्रति ३सू ८७ वर्ण परिणाम ७५० ३ ४३३ ठा.१०३ ३मृ७१३,पन्न प १३ वर्ण पॉच ४१४ १४३६ ठाउ १ सृ ३६० वर्णसंज्वलनताबिनय चार२३७ १ २१७ दाद ४ वर्णादि के भेद से स्त्रियों ५४० २ २७५ अनु स् १२७ गा ५४, ठा ७ का स्वर भेद उस५३ वर्तमान अवसर्पिणीक कुल-५०६२ २३८ सम १५७,टा ७३ ३५५६ सरों की भार्याओं के नाम वर्तमान सवसर्पिणी के १२६ ६ १७७ सम १५७ श्राव ह नि गा.२०६ - चावीस तीर्थङ्कर २६०,यावस गा२३१-३८४, सम, प्रब द्वा ७ मे ५५ १ साठ वर्ष की मरम्या कमावु वय त्यविर (जाति स्थनिर) महलाते है। ७२१२. Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ योगठिया जैन यमाला चिपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण वतमान अवमपिणी के ५०८ २ २३७ टा.७३ ३ १६.गार. १४५, मान कुलकर भा २१.३६२ वर्धमान (महावीर) ७७० ४३ जनविा बोल्यमाने । १ वषपान अवधिनान १२८ २२७ टा ६८.२१२६नमू.१२ वर्षयरपर्वत मात ५३७ २२७. टा. ७९८४२१८ मग 3 ११ बलन्मरण ८७६५३८३मम प्रा. ७.१०.१ वलग तीन ११५ १ १ ३ २२४ *वशार्तमरण ८७६५३८३ मा ११,मा १५७ मा१.०६ ध्यम मरण ७६८४ २६८ मन. नर्मान .नी भेट १२३६ १७० Tit-ing T.1823. बमान परिकपिधान ६६८ ३ २७५ दा १०३.२ ३८८ यमनी(चन्दनवाला) ८७५ ५ १३७ ? नि गा!..२१, ___सि . न. वस्तु का लक्षण ४६७ २ १८२ नम्नु के. स्वपर चतुष्टय के २१०११३८ गाय म.,मापार चार भेट म) टी. वस्तुत्य गण ४२५ २१६ RR M OR + वस्तुदोष ७२२ ३ ४१० र.10337 + यम्न दोर ७२३ ३ ४११ ८ १०८,inki मी माघ । inst शामक गोमती 7 Rana गम्ममा Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त चोल संग्रह, आठवाँ भाग २७६ विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण बस्तु श्रत ६०१ ६५ कर्म भा १ गा. वस्तु समास श्रुत ६०१ ६५ कर्म भा.: गा ७ वस्त्र के पाँच भेद ३७४ १ ३८६ ठाउ ३ सू.४४६ वस्त्र पुण्य ६२७ ३ १७२ ठाउ ३ सृ.६७६ चह्निदशा सूत्र के १२ अ०७७७, ४ २३४, निरयावलिका सूत्र का संक्षिप्त विपय वर्णन ३८४ १४०५ । चाक कौत्कुच्य ४०२ १ ४२६ उत्त थ ३६गा २६१,प्रवद्धा ७३ चागतिशय १२६ख १ ६७ स्या का १ टी. वाचना ३८१ १ ३६८ ठाउ ३सू ४६४ वाचना के चार अपात्र २०७ १ २८५ ठा ४ ३ सू३२६ वाचना के चार पात्र २०६ १ २८५ ठा.४उ ३सू ३२६ वाचना देने के पाँच बोल ३८२ १ ३६८ ठा-५उ ३ सू ४६८ १ वाचना सम्पदा ५७४ ३ १४ दशा द ४,ठा ८उ ३सू.६०१ वाणी के पैंतीस अतिशय ६७६ ७ ७१ सम ३५ टी , रा सू ४ टी , उव.सू १०टी. २ वात्सल्य दर्शनाचार ५६६ ३ ८ पनप ११ ३७गा.१२८,उत्त. अ२८ गा ३१ वाद के दस दीप ७२२ ३ ४०६ ठा १०उ ३सू ७४३ चादी के चार भेद १६१ १ १४४ भश ३ ० उ १८ ८२४टी ,प्राचा म १उ १स ३टी सूय म.१२ वादी चार १६२ १ १४६ भाचा म १उ १८५ ३ वामन संस्थान ४६८ २ ६८ ठा.६ सू ४६५,कर्म भा १गा.४० गरिश की एक सम्पदा, गिष्यों को शास्त्र पटाने की योग्यता । २ अपने धर्म मे तथा स्वधर्मियों में प्रेम रखना । ३ जिय गरीर मे छाती, पेट पीट प्रादि अवयव पूरे हो किन्तु हाय पर धादि अवयव चोटे हों। Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० विषय वारणा पर कथा चालुका पृथ्वी बाउन नावनो वायुकाय बाबुकुमा के दस अधिपति७३६३४१६८११८ वायू (अचित्त) के पांचमकार४१३ १४३८ ४३३४४ चायुकेमा अपानादि प्रभेद५५६ २३०४ योगी एड वायुधार करने का फल५५६ २३०६५ गयो, टूट वायुभूति गणधर का जीव ७७५ ४३४ मि. १६-२-१९८६ और शरीर की एकता और भिन्नतानिषयक शंकासमाधान , < श्री मेटिया पैन मन्यगाला चोल भाग पृष्ठ ४६२ २६४ "" हुन ५७६ ३ २५ ४६५ २ ६६ ४३= २ ४२ ६४७ ३ २१७ 3148. (•,47,7 %, वर्ग भा प्रमाण वामदेवलि ६५४ ६ २६४१३ नामुदेवों के पूर्व भय के नाम६५३२१८.११८ विकीव्याख्या मे १४८ १ १०७ ५८५ विकाया ममाद मिना fter såna 226 02 श विचार ३२१२२५. विशेषणीकपातीव्याम्या ११५ १११३ और इसमे ' की प१ि०१ ४११० पनिया १२५९ MI-१-१२ २६१ १ २७३ शी ११-३ मारमार.३४, 21 १३ K aTtܝܰ 9 ? ?U3 7. 15 ३ " ******* ***55,407,94,3 ܺܝ ܽܠ£ 57 योग निदेशा Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, श्राठवाँ भाग २८१ चिपण बोल भाग पृष्ठ प्रमाणा विगत मिश्रिता सत्यामृपा ६६६ ३ ३७० ठा १०सू ७४९,पन्न प ११सू. १६५,ध अधि ३श्लो ४१पृ १२२ विगय दस ७८६ ३ ३८२ पाच हश्र ६गा १६०१पृ८५३ विगय ना ६३० ३ १७५ टाउ ३सू.६७४,पात्र ह भगा १६०१ पृ.८५३ टी. विग्रहगति नारकी जीवों की५६० २ ३४० भश १४२ ११५०२ १ विचिकित्सा २८५ १ २६५ उपा अ.१सू ७, श्राव हम ६ विच्छिन्न बोल दस ६८२ ३ २६२ विशेगा २५६३ विजयको विषयमें ८गाथाएं ६४ ७ १६८ विजय बत्तीस ६७१ ७ ४३ नं वन ४सू ६३-१०२,लोक भा २ स १७ विज्ञ (जीव का एक नाम) १३० १ ६८ भश २उ.1 सू८८ विपीया(वैनयिकी)बुद्धि २०१ ११५६ न सू २६गा ६ १,ठा.४ सू. ३६४ विदेह,विदेह दिन्न(महावीर)७७० ४ ४ जनविद्यावोल्युम १न १ विद्यमान पदार्य की अनु- ६१४ ६ ७१ विशे गा.१६८३ टी पलब्धि के इक्कीस कारण २ विद्या दोप ८६६ ५ १६५ प्रवद्वा ६७गा ४६८,ध मधि: ग्लो २२सी.४०,पि नि गा ४०६, पि विगा ५६, पचा.१३गा १६ ३ विद्याधर ४३८ २ ४३ टा ६८ ४६ १,पन्न प १सृ.३७ विद्यत्मागेंफेदसथाधिपति७३४ ३ ४१८ भरा. ८ स १६६ १ मागम तथा युक्ति संगत किया विषय में फल के प्रति संदेह करना। २ स्त्री रूप देवता मविष्टित जप होमादि से सिद्ध होने वाली विद्या का प्रयोग परके भादारादि लेना। तान्य पर्वत अधिवासी प्राप्ति भादि विद्यामों को धारण करने वाले विशिष्ट शचि सम्पन्न व्यक्ति । Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ भी सहिया जन माला विपय बोल भाग पृष्ट प्रमाण विनय ४७८ २ ह उगम २., उराम३०गा.३०, प्रवदागा २७ 1,21.६.११ विनय के तेरह भेद ८१३ ४ ३६१ म.प्र.६ उ पनि गा३1 १२६,प्रवद्वा.६५गा.५०.५५ विनय के पावन भेद १.०६७ २७२ पव द्वा ६ गा५४१,५.अधि. ग्लो ४४ पृ.१४॥ विनय के मूल भेद सात ६३३ ३ १६३ 37 २०, म २. उ.५ और १३४ अवान्तर भंद म ८०२ विनयविषयम११गाथाएं ६६४७ १६५ विनय के सात भेद ४६८ २ २२६ म., मग २३७ ८.२,टा 311८४.. थविलोटी. विनयनिपत्तिके प्रकार ०६४ १ २१६ माय. विनय प्रतिपत्ति चार २२६ १ २१३ मा । बिनगवादी की गाग्या १६१ १ १४७ म7.34.८१ टी., भार उमा बत्तीग भेद मा १२ १३ १११टी, १८४, विनय शुद्ध प्रत्याख्यान ३२८ १ ३३७८ , विनग ममाधि अध्ययन ६३३ ६ २.१ : 3. की नीवाम गाया विनयममाधिय कीरगाथा"३५ १२७ - . मिसमाधिनी १७गाया७५ ३७७ .. विनयममाधिय-नीमाया५३ २२१३ द. 74 निग गाधिरेनार भेट५५३ २ २६३ विनय समाधि नारभद) ३ २ २६४ Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, थाठवा भाग विषय १ विनयाचार विनीत के पन्द्रह लक्षण २ विपक्ष पद नाम विपरीत स्वम दर्शन विपर्यय चोल भाग पृष्ठ ५६८ ३६ ८५२ ५ १२५ उत्तउ ११गा १०-१३ ७१६ ३ ३६६ अनुम् १३० ४२१ १ ४४५ भ श १६३ ६ सू. ५७७ १२१ १ ८६ रत्ना परि १, न्यायप्र मध्या. ३ ४ १ २४७ विपाक विचय धर्मध्यान २२०१२०४ विपाकसूत्र की बीस कथाएं६१० ६ २६ विपाक सूत्र के दोनों श्रुत- ७७६ ४२१३ स्कन्धों का संक्षिप्त विषय वर्णन - विपुलमति मन:पर्ययज्ञान १४ १ १२ विपुलमति लब्धि ठा २उ. १ सृ६७१ ५४ ६ २६१ प्रत्र द्वा २७० मा १४६२ प्रवद्वा २७०गा १४६२ ६५४ ६ २६० विमुड पधिलब्धि विभंगज्ञान साकारोपयोग ७८६४२६८ ११ २६ ३१२ विभंगज्ञान सात ५५८ २३०१ ठा ७३ ३ ५४२ विभक्तियाँ ग्राठ ५६५ ३ १०५ सिकारकप्रकरण, अनु सू १२८, ठा ८३ सू६०६ ३४२१ टा १०३ ३सु ७६६ २८३ प्रमाण अधि१श्लो. १६टी पृ १८ वि विमान दस बारह देवलोक७४४ के दस इन्द्रों के विमानों के तीन आधार ११४ १ ८१ ठाउ ३१८० विरसाहार ३५६ १३७१ ठा ४३.१ सू ३६६ गम ३ विराधना की व्याख्या, भेद ८७ १६३ विरुद्ध हेत्वाभाम ७२२ ३ ४१० टा १०३.३.७४३टी विरुद्धोपलब्धि हेतु के भेद ५५५ २ २६६ रत्ना परि. ३८३-६२ १ ज्ञानाचार का एक भेद, ज्ञानदाता गुरु का विनय रखना विनयाचार है । २ विक्षित वस्तु में जो धर्म है उसने विपरीत धर्म बनाने वाला पत्र | Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ श्री मेठिया जैन प्रमाला Mum - - - - - - - - विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण विरोध दोप ५६४ ३ १०३ प्रमी मध्या.१मा १.३३ विवाद के छः प्रकार ४६३ २ १०३ टा.उ.३१२ चिचिक्तचर्या की१६गाथा -६१ ५ १४७ दश न २ विविधगुणा विशिष्ट श्रावकह-३ ७ ११४ उस ४१ अन्त समय आलोचना पनि. क्रमण कर संधारा पूर्वक काल कर कहाँ उत्पन्न होने है? विविध गुण सम्पन्न अन.१८ ७११५ उमःम.४१ गार महात्मा इसमत्रकी स्थिति पूरी कर कहाँउत्पन्न होते हैं? विटतयोनि ६७१४: सम्वार्थ माया ठा. १४. विशेष ११ १२६ ला गरि 7,1,16 विशेषण वाईसधर्म के ११९ ६ १५९ प .ली. टी.पू विशेषण१६व्यावश्य रक-७२ ५ १७६ गया. - ", F.१३ विशेष दीप दम ७.३ ११. टा १.3.373 विशुद्धि दम ६६. २५७ ०१-४.१८ विभाग चार १०७ ११४१ टा ३१ विभाग चार श्रावक र १८ ११४२ 21633 23११ विप पग्गिामल १७२ १0022 विगतमा परगा ७८४ २९. मग 7.1F" विश्यमांन डन्द्रियाँयह२६६ १७७ ,४४,., . ... ममा जिगमगाद २६.१ २७२ ६.३०. airat. 12.ना.मा. . निमारका दृशन्न २१ १५. मायामभावनामलियं Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग २८५ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण विसंभोगीकरनेके नौस्थान६३२ ३ १७६ ठाउ ३ सू ६६ । विस वाणिज्जे कर्मादान ८६० ५ १४५ उपा.प्र.१७,भ.श.उ.सू. ३३०, प्राव ह अ६ पृ८२८ विस्तार नरकावासों का ५६० २ ३३६ जी.प्रति ३सू८४ विस्तार रुचि ६६३ ३ ३६३ उत्त प्र २८ गा.२४ विहरमान वीस ६०३ ६८ बिलोक ,विहर ,ठा.-सू ६३५ विहायोगति के सत्रह भेद ८२२ ५ ३८६ पनप १६ सू २०५ वीर कृष्णा रानी ६८६ ३ ३४५ अंत व.८ अ ७ वीर रस ६३६ ३ २०७ अनु.सू १२६गा ६४-६५ वीरस्तुति अकीरगाथा६५५ ६ २६६ सूय भ६ १ वीरासनिक ३५७ १ ३७२ ठा ५७ १सू ३६६ २ वीर्याचार ३२४ १३३३ गाउ रसू ४३२,ध अधि ३ श्लो५४ पृ.१४० वीर्यात्मा ५६३ ३ ६६ भग १२ उ १•सू ४६५ वीयोन्तराय के तीन भेद ३८८ १४११ कर्म भा १गा ५२,पन्न प २३ हस की कथा औत्पत्तिकी १४६ ६ २५७ न सू.२७ गा ६३ टी बुद्धि पर वृत्त संस्थान ४६६ २ ६६ भश २५उ ३सू ७२४,पन्न प.. दृत्तिकान्तार यागार ४५५ २ ५६ उपा म.सू,श्राव ह भ.६१. ८१०,ध अघि २श्लो २२१ ४१ द्धि छः प्रकार की ४२५ २ २४ भागम. पभ स्वर ५४० २ २७१ अनुसू १२७गा २५,ठा सू५५५ १ पैर जमीन पर रख कर सिहासन पर बैठे हुए पुरुष के नीचे से सिहासन निकाल लेने पर जो अवस्था रहती है उस भवस्था से बैठने वाला साधु । २ धर्म कार्यो में यथाशक्ति मन वचन काया द्वारा प्रवृत्ति काना वीर्याचार है। Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मेठिया डा गन्यमाना विषय घोल भाग पृष्ट प्रमाण १३० १ १८ भ.स २३.१४८८ बंदक समकिन २८२ १ २६२ नर्म भा.१ गा.१५ वेद की व्याख्या और भेद ६८ १४६ क मा १ मा २२ वेदना दस नारकी जीया ७४८ ३ ४२५ टा.१० २.३ १४५३ वंदना नरकों में ५६. २३१६ श्री. तिमा १५४ गा १०७१,मथ महार४ वेदना,निजगनारकीजोबाग५६० २ ३३६ मग.७ ३ ३ स २४६ वेदना भय ५ः३२२६. टा.zn!.गा, वेपना समृदयात ४८२२८८ ११३१, यलो परदा गा 121, 2 1८६ वंदनीयरम का स्वरूप ५६ ३ ६० गा.१गा मालाना और उसके भेद 13.२१ वंदनीय कर्म केदाभेद ५११३० पर प... मा . वंदनीयकर्मवत्यकारा ५६ ३ ६. 43 : नंद परिणाम ७४६ ३ १२८1.30 चंदमागणार भंट४६ ५ ५% ग + गा.११ चंदान्त दान ४६७ २१५४ चतिमा प्रतिबना ४५० २ ११ .: दिनानिलगनाक मंद:२२ १ ३२६ मी . बदाका अन्य सहन्य३ १०६ नगाव दग ७ ०७३ ३.२ मा ? c. '. . .rafts या l " : " 4 . ' Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग २८७ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण, वेसालिय (महावीर) ७७० ४ ६ जनविद्या बोल्यूम १ न १ चैकुर्विक देह लब्धि ६५४ ६ २६७ प्रव द्धा २७० गा १४६५ वैक्रिय काययोग ५४७ २ २८६ भग २५उ १सू ७१६,कर्म भा. ४गा २४,द्रव्यलो स ३१३५८ चैक्रिय मिश्रकायोग ५४७ २ २८७ भ.ग २४ उ १सू ७१६, कर्म भा. ४या २४, द्रव्यलो स ३१३५८ चैनिय शरीर ३८६१ ४१३ टा. उ १ सू : ६७,पन.प.२१ सू.२६७,कर्म भा १गा ३३ बैंक्रियशरीरबंधननामकर्म३६० १ ४१६ कर्म भा १गा ३५,नव द्वा २१६ क्रिय समुद्घात ५४८ २ २८६ पन्न प ३६ सू. ३३ १,ठा ७उ ३सू ५८६, द्रव्यलो स ३ पृ.१२८, प्रव द्वा २३१ गा.१३११ चैदारिणी (वेयारणिया) २६५ १ २८१ या २३ १सू. ६०, टाउ २सू. क्रिया 616,यावह अ४ ६१३ वैदिक दर्शनों की सत्रह ४६७ २ २१४ बातोसे परस्पर तुलना वैनयिकी (विणीया) बुद्धि २०१ १ १५६ ०.२६,टा ८ ४मू.६६ । वैभाविक गुण ५५ १ ३३ द्रव्य.त अध्या १२लो ८ वैमानिकइन्द्रों केदसविमान७४४ ३ ४२१ ठा १० र ३ स.७६६ रैमानिक देवों के छब्बीस ६४४ ६ २२७ पन्न प १.३८,उत्त भ.३६गा. भेद २०७-२१४,भग ८उ ११.३१. वैमानिक देवों के दस इन्द्र ७४१ ३ ४२० टा १०३-७६६ चयधिकरण्य दोप ५६४ ३ १०३ प्रमी.सध्या या म् ३३ यावृत्त्य ४७८ २ ८६ उचम्म २०, उत्तय ३० गा ३०, प्रय हागा २७१,टा ६११ Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ श्री मेठिया जैन पन्यमाना विषय चोल भाग पृष्ट प्रमाण वयात्त्य पं.दस बोल ३६. १ ३७४ टा. ३ १ १३०७ वैयावृत्य के दम बोल ३६१ १ ७४ टा.१३ १ १.२५ वैयावृत्य के दस भेद ६३३३१६५ उपगग.२५ १८.२ वैयाहत्त्य दस ७०७ ३-२ गग.२११८०० वैराग्य की व्याख्या गौरभेदह १६५ मा १-११६ वेगग्य पर बारह गाथाएं ह४ ७ २२० वैशेषिक दर्शन ४६७ २१४४ वैश्रमणकुमारकी कया ६१० ६ ५६ विप्र १६ + वहानम मरण ७९८४२६४ मा २३१११ * बहायर मरणा ८७९ ५३४ गा १. १ .१.a1 व्यक्तस्वामीगणवरकी पृथ्वी७७५४ ३६ शिंगा १६८.१६ সানিশূনমনিননিন शंका सीर उसका समाधान ३ यजनाचार ५६८ ३६ . १r নানাঃ ५८ १४. i nmalink... कनिका दोर ५६६ ३ १.४ मी 1 1111 ११३॥ निका १४ १ २२१ nि :Amt.:.; यन्नरदेव याट ६११ ३ १३. | Paron,PART च्यन्नन्दयां का स्थान भार६१४ ३ १३१ १८:५५८, उनी म्यिान गनर दयों के इन्द्र ६११ ३ १३१ कि .५ गग ६४ १४५ mins Patin7 एटाने में होने का 1 ,ATMarrrrrr I Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संमह, आठवाँ भाग २८६ विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण १ व्यवशमित वचन ४५६ २६२ ठा.६उ ३सू ५२७,प्रवद्वा.२३५ मा.१३२१, घृ.(जी.) उ.६ व्यवसाय की व्याख्या,भेद८५ १६२ ठा ३ उ ३ सू १८५ व्यवसाय सथा ३६७ १ ४२२ ठा ५ उ ३ सू ४७२ व्यवहार ३४ १ २५ विशे गा.३५८६, द्रव्य.त अध्या.८ व्यवहार और निश्चय पर ९६४ ७ १६३ दो गाथाएं व्यवहार नय और उसके ५६२ २ ४१५ अनुसू १५२ गा.१३७,द्रव्य त दो भेद अध्या ६ श्लो १३ व्यवहार नय के सद्भूत, ५६२ २ ४२४ द्रव्य.त अध्या.७ असद्भूत आदि भेद व्यवहार पाँच ३६३ १ ३७५ ठा ५२.४२१,मश ८उ सू. २४०,व्यव पीठिकाभाष्य गा.१.२. च्यवद्दार भाषा २६६ १ २४६ पन्न प ११सू १६ १ व्यवहारभाषाफेवारह भेद७८८ ४ २७२ पन्न प ११सृ.१६५ व्यवहार राशि है १८ भागम. व्यवहार राशि ४२५ २ २१ भागम व्यवहार संख्यान ७२१३४०४ ठा १० उ ३ सृ७४७ व्यवहार सत्य ६९८ ३३६६ठा १०३ ३सू ७४१,पन्न प ११सु. १६५,ध अधि ३श्लो ४१पृ.१२१ व्यवहार सम्यक्त्व १० ११ कर्म भा.१गा.१५,प्रब द्वा १४६ गा६ ४२टी व्यवहारसूत्रकाविपयवर्णन२०५ १ १८२ व्यसन सात ६१८ ६ १५५ गौ कु, ज्ञा.अ.१८ ८ १३७, मृ उ १ गा.६४. १ एक वक्त गान्त हुए कलह को फिर में उभाइने वाले वचन कहना। Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૦ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय बोल भाग पृष्ठ व्याख्यामनसि सूत्र के इक- ७७६ ४१३८ नालीम शतकों का विपयवर्णन व्यापि चार १ व्युत्सर्ग प्रमाण २६५ १२४७.४४३४३ ४७८ २ ८६ अबू उत्तम ३१०गा. ३०, वाचा. २७१.६४११ व्यूत्सर्ग तप के भेद, प्रभेद ६३३३१६६३२०.२१.७८०४ ५५७ २३०० टा. २० व्युन्मर्ग साम • व्युग्राहिन व्रत कन्य वन धारण न करने वाले के६१ लिये भी क्या मतिक्रमण करना आवश्यक है? व्रतधारी तिर्यञ्च विधिपूर्वक ७ ११७ काहोना है? बीड़ा रस ७५ १ ५४ 2122.44 ६६२ ३ २३६ पना १७ गा ६ १४४ २.१२७० *te,nan kalau q7) ६३६ ३ २०६ १२५.०२-०३ श शंका समतिकाअतिचार ) २८५ १२६५३० पादप्रतितेखना ५२१ २ २५१ ३२ शंभर पोचली श्रावक ६२४ ३ १६४११११ गंग्व निषि ६५४ ३ २२२३६३ शव कुमार की कथा ६२०६३ स शकेन्द्र की सेना नया सेना- १४१२२७६ ठाउ पनि मात 155 कई नागेंद है 1 a purely father cantare à falupetar grenĒģi Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संश, पाठवाँ गाग २६१ ~ ~ ~ rrernmrimur rrrrrn. विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण शत सहस्त्र की कथा औत्प-६४६ ६ २८२ न सू.२७ गा ६५ टी त्तिकी की बुद्धि पर . शनैश्वर संवत्सर ४०० १ ४२८ ठा. उ ३सू ४६० ,प्रव द्वा १४२ १ शवल दोप इक्कीस ११३ ६ ६८ दशा.द २,सम २१ शब्द के दस प्रकार ७१३ ३ ३८८ ठा १०उ ३सू ७०५ शब्द नय ५६२ २ ४१७ अनुसू १५२,रत्ना परि ७सू.३२ शब्द परिणाम ७५० ३ ४३४ ठा १०८ ३सू ७१३,पन्न प: १३ सू १८४-१८५ शम्ब के साहस काष्टा- ७८० ४ २५२ प्राव ह.नि गा १३४, पीठिका न्त भाव अननुयोग पर नि गा १७२ २ शम्कावर्त्ता गोचरी ४४६ २ ५२ ठा ६उ ३सू ५१४,उत्तम ३. गा १६,प्रवद्वा गा ७४५, ध अधि ३श्लो २२ टी पृ३७ शयन पुण्य ६२७ ३ १७२ ठाउ ३ सृ.६७६ शय्यातर पिण्ड कल्प ६६२ ३ २३७ पचा १७ गा १७ - १६ शय्यादाता अवग्रह ३३४ १ ३४५ भश १६उ रमू.५७६,प्रवद्रा ८गा ६८१-६८४, याचा. ५२चू १५ र २सू१६२ शरट (गिरगिट)की कथाह४६ ६ २६२ नं पू २७गा ६३ टी औत्पत्तिकी बुद्धि पर शरीर,यात्मा की भिन्नता ४६६ २१०७ रासु ६३-७४ विपयकपरदेशीराजाकेछःप्रश्न शरीर कीव्याख्या और ३८६ १ ४१२ ठा. उ.१सू ३६५,पन.प २१सू उसके भेद ___ २६७, कर्म भा १गा ३३ १ जिन कार्यो से चारित्र को निर्मलता नष्ट हो जाती है उन्हें शवलदोष कहते हैं। २ गस के पावर्त की तरद वृत्त (गोल) गति वाली गोचरी। Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ही सेटिया नजन्यमाला HA K - - - - - - - - - विपण बोल भाग पृष्ट प्रमाण शरीर के मत्र द्वार ८१ ५ ३८५ पन.१२ से प्राधार में शरीर पर्याप्ति ४७२ २ ७७ ५.३१ टी..न.31 P१३०,प्रयदा २३२ १७, कर भा. . शरीर बकुश ३६६ १ ३८० टा.. टोन टी शरीर सम्पदा ५५४ ३ १३ मा ... .." गर्गगनुगत वायु ४१३ १ ४३८ 213.४४ शकग पृथ्वी ४६५ २६६ femi. शन नीन १.४ १७३ गा 3,21.51 152,५ टी20 गलगविषयक नो गायापं.१६४ ४ २४४ शम दम प्रकार का ६६ : ३६४ ४,१०१ का शवापाटन मम्मा ७६८ १२६ मा ११ गाय श्रमण ७२.१८७ १77mms? शान्त मारणायाम ५५९ २३.३ २-13 1,यो.. जातोपिकागिना श्रावण ६८५ ३ ३३२ 34. नापन अनन्तक २१८ २ १४२८. ग . शाशनाना बनानयोग ७१८ : ४ ठा.. " शिनामी स्थानीम्पत्तिा ६२७8 RE !! श्री. बुद्धि पर निजामिया कारण२३ १४१६ टन २१५ गा ? शिक्षा प्राचार १८६१ १४.. .. . गिनायन नाग ४६७२२०९ गिलागीनघाट गया १४ ३ ३८ Ent Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल समह, आठवाँ भाग २६३ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण शिल्प स्थावर काय ४१२ १ ४३८ ठा ५उ १सू ३६३ शिल्पाचार्य १०३ १ ७२ रासू ७७ शिल्पार्य ७८५ ४ २६६ वृउ पनि गा.३२६३ शिवभूतिनामक वेंनिहव५६१ २ ३६६ विशे गा.२५५०-२६०६, कामतशंकासमाधानसहित या ७उ ३सू ५८५ शिवराजर्षि(लोकभावना) ८१२४ ३८७ भश ११उ सू ४१७-४१८ शिवा सती ८७५ ५ ३४६ प्राव ह.श्र नि गा १२८४ शीत योनि ६७ १४८ तत्त्वार्थ प्रध्या २,ठा.३सू १४० शीतलेश्या लब्धि ६५४ ६ २६७ प्रब द्वा २७०गा १४६४ शीतोष्ण योनि ६७ १ ४८ तत्त्वार्थ अध्या २,टा ३सू १४. शील की नववाड़ ६२८३ १७३ ठाउ ३सू ६६३, सम ह शील की बत्तीस उपमा ६६४ ७ १५ प्रश्न धर्मद्वार ४ सू २७ शील के अठारह भेद ८६२ ५४१० सम १८,प्रवद्धा १६८गा.१०६१ शील धर्म १६६ १ १५५ ध अवि २श्लो २८टी ६६ शील पर सोलह गाथाएं ६६४ ७ १७७ शुक्लध्यान २१५ १ १६६ सम ४, ठा ४ उ १ सू.२४७, यागम क भा २'लो २११ शुक्लध्यान के ४ पालम्बन २२७ १ २११ ठा ४उ १सू २४७,प्राव ह ४ ध्यानशतक गा ६६, उव सू २० शुक्लध्यान के चार भेद २२५ १ २०६ श्राव ह स ४ध्यानशतक गा७७ ८२,ठा ४उ १सू २४७,ज्ञान प्रक. ४२, कभा २'लो.२११-२१९ शुक्लध्यान के चारलिंग २२६ १ २११ याव इ अ.४ ध्यानशतक गा. पृ.६०६, ठा.४ उ १सू२४७, भ.स २५ उ.७ सू.८०३ Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ श्रीमटिगा कपमा विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमागा शस्त्यानी की४भावनाएं२२८१ २१२ या ४३.12२ १५,मार "नगरमा.८०००८,. ९ शुक्रान्तिक ८ १७ गग १३३ १.४.७० শুলহা ४७१ २७४ा. गा.पा मा..? शुद्ध पृथ्वी ४६५ २६६ भीमा ११ गृन्दवागनुयोगदगमकार६६७ ३ ३६५ मा १०३ ३ ४४ शुद्धि पर कथा ५७६ ३ ३६ भाग..! ५२४२ शुद्धिार ३.७ १ ३३५ ३५३ 11226 ঢায়ি ३५४ १ ३६६ टा: 3 ११३: सनद्रगम्यान ७६३३ ४४४३१०३८ एकतीन पारण१०७१ ७५ 17.1.10. शुभ नामकर्म चीटर प्रकार ८३८ ५ ३३ प. ' में मांगा जाना है गम भाग मृत ७६ ३ ४५१ र १• 2,34. गर का. चारपकार १६३ १ १५.० ८.in" गार ग ६ ३४ ३ २.८ मग १२ गा'.-." जैना गमि की कथा .. ५ १३८ २९ शाच शिमग धर्म) ६६१ ३२३४मा TRIMER शान पान ३२७ ? ३३५ टी' ? " अदा १२७ ? ६. .12.. प्रदान गन्द्र न्यायान ३२८१:३६ ... " घमण (महार) ७७० fat TRA 4.1 Amerimenापाया। Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ था जन सिद्धान्त चाल समह, पाठवा भाग २१५ विपय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण श्रमण (समण,समन) की १७८ १ १३१ दश श्र.नि.गा १५४-१५७, चार व्याख्याएं अनुसू १५०गा.१२६-१३२ श्रमण की वारह उपमाएं ८०५ ४ ३०६ अनुसू १५० गा १३१ श्रमण के पाँच प्रकार ३७२ १ ३८७ प्रब द्वा ६ ४गा ५३१ श्रमण को सर्प पर्वत आदि १७८ १ १३१ दश अ २नि. गा.१५४.१४५, बारह वोलों की उपमा अनुसू १५० गा १२६-१३२ श्रमण धमे दस ६६१ ३२३३नव गा २३,सम १०,शा भा १प्रक ८ १ श्रमण बनीपक ३७३ १ ३८६ ठाउ : सू.४५४ श्रमरणोपासक श्रावक के ८८ १६४ ठा.३उ ४ सू २१०. तीन मनोरथ श्रामण्यपूर्विका अध्ययन७७१ ४ ११ दश अ २ की ग्यारह गाथाएं श्रावक का मूत्र पढ़ना क्या ६१८६१५१ न सू ५२,एम.१०२,उत्त अ. शास्त्र सम्पत है ? २१गा ,उत्त अ'२२ गा ३२, ज्ञाय १२सू. २,उव सू४१, श्रावक की आदर्श,पताका,१८५ १ १३६ ठा४३ ३ सू ३२१ स्थाणु,रवरकण्टक से समानता श्रावक कीग्यारहपडिमाएं ७७४ ४ १८ दशा द ६,सम ११ श्रावक के अणुव्रत पॉच ३०० १ २८८ भावह अ६ पृ८१७.८०६, ठा सु२८६,उपा श्र.१सू ६, धमधि २श्लो २३.२६५७६७ श्रावक के अन्य चारप्रकार१८५ १ १३६ या ४ उ ३सू ३२१ श्रावक के इक्कीस गुण ६११ ६ ६१ प्रब द्वा २३६ गा १३४६-१८, ध अधि १ग्लो २०१२८ १ जो दाता श्रमणों का गला है उसक घागे प्रमणदान की प्रशसा र भिक्षा लेने चाला याचक अमया दनीपक कहलाता है। Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६१ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण श्रावक के चार प्रकार १८४ ११३८ ठा ४३.३मू ३२१ श्रावक के चार विश्राम १८८ १ १४२ ठा ४३.२सू ३१४ श्रावक के चार शिक्षाबत १८६ १ १४० श्राव ह अ.६८३१-८३६, पंचा १गा.१-३२ श्रावक के चौदह नियम ८३१ ५ २३ गिना.,ध अधि २श्लो ३४५६ श्रावक के छःगुण ४५२ २ ५६ धर गा ३३ श्रावक के तीन गुण व्रत १२८क १६१ प्राव ह म पृ८२६-८२६ श्रावक के तीन मनोरथ ८८१ ६४ ठा ३२ ४ स २१० श्रावक के दसलक्षण ६८४ ३ २६२ भग २३.५ १०५ श्रावक का पॉच अणुव्रत ३०० १ २८८ भाव र भ.६५.८१७८२६,ठा ४ सू३८६,उपाय १६,ध अधिग्लो .२३.२६.४७६. श्रावक के पाँच अभिगम ३१४ १ ३१५ भश २३ ५ १०६ श्रावक के पतीस गुण ८० ७ ७४ यो प्रका १श्लो ४७.५६ श्रावक के प्रत्याख्यान १००३ ७२६७ भ शउसू. ३२६ के उनचास भंग श्रावक के बारह भावव्रत ७६४ ४ २८० मागम निश्चय और व्यवहार से श्रावक के बारह व्रत (तीन गुणावत) १२८क १६१ । प्राव ह म १८१५.८३६, उपा.मा ,ध अधि.२ लो. (चार शिक्षा व्रत) १८६ १ १४० २३.४.१.५३-६४, ठा (पाँच अणुव्रत) ३०० १ २८८E,पंचा.१ गा ७.१२ भावक के बारह व्रत ४६७ २ २०० श्रावक पं. वारह वनों के ३०१.१ उपास जमाव.६ साठ अनिनार पृ-१७,५ मधिलो . १२ ३१४ १३.४८.१००-१११ Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, पाठवा भाग २६७ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण, ,। श्रावक के सत्रह लक्षण ८३ ५ ३९२ व.अधि २ श्लो.२२ टी.पू.४६ श्रावक के सातवें उपभोग६४३ ६ २२५ उपा असू ६,ध अधि.२श्लो. परिभोग परिमाण व्रत में ' ३४टी पृ८०,श्रा प्रति.. मर्यादा के छब्बीसंबोल आवकको माता पिता,भाई,१८४ १ १३८ ठा ४३.३ सू ३२१ ". मित्र गौर सौत से उपमा श्रावक दस ६८५ ३ २६४ उपा.अ १-१० श्रावक भार्या का दृष्टान्त ७८० ४ २४५ माव ह गा १३४, बृ.पीठिका भाव अननुयोग पर निगा १७२' श्रावक भार्या की पारिणा-६१५ ६ ८४ न रु २७गा ७२, माव'ह. मिकी बुद्धि की कथा गा श्रावकों के अप्पारंभा अप्प-८६० ५ १४४ उब सू ४१,सूय ध्रु.२.२सू ३ परिग्गहा आदि विशेषण श्रुत ज्ञान १५ १ १३ ठा २उ १सू.७१, भ.श ८उ २ सू. .. ३१८,कर्म भागा ४,न.स श्रुतज्ञान ३७५ १ ३६० ठा५३ ३ सृ.४६३,कर्म.भा १. गा४,न सं १ श्रुतज्ञान के चौदह भेद ८२२ ५ ३ न पृ:८-४४,विशे गा.४५४-५५२ श्रुतज्ञान के दो भेद १६ १ १३. न म ४४,ठा २३ १सू ७१ श्रुत ज्ञान के वीस भेद ६०१ ६ ३ को भा.१गा . श्रुतज्ञान साकागेपयोग ७८६ ४२६८ पन्न प २६ न्यू ३ १२ अतज्ञानावरणीय ३७८ १ ३६४ ठा, मू ६.४,कर्म भा गा. श्रुत धर्म १८ ११५ ठा २८ १८ १२ ६९२ ३३६१ टा १०उ : मृ ७६० अन धर्म के दो भेद १६ १ १५ ठा २३.१ र ७२ श्रत धर्म Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण भूत प्रत्यनीक ४४५ २ ५० भश.८3८ सू.३३६ श्रुत मद ७०३ ३ ३७४ ठा १०सू १०,ठा.सू. ६०६ श्रत विनय के चार प्रकार २३१ १ २१५ दशा०द.४ श्रत व्यवहार ३६३ १ २७५ ठा.५७ २१ ४२१,म.श.८३८ श्रत समाधि के चार भेद ५५३ २ २६४ दशम उ ४ श्रुत सम्पदा ५७४ ३ १२ दशा.६४, टा.८ ३१.६.१ श्रत सामायिक १६० १ १४४ विशेगा.२६७३.२६७७ ताज्ञान साकारोपयोग ७८६ ४ २६८ पन प २६सू ३१२ श्रेणिक की कथासम्यक्त्व८२१४ ४६५ नवपद गा.१८टी.सम्यक्त्वा. के उपबृहणा याचार के लिए धिकार अंणिक के कोप फादृष्टान्त ७८० ४ २५३ प्राव ह नि गा.१३४,वृपीटिका भाव अननुयोग पर निगा.१७२ श्रेणिकराजाकीदसरानियाँ६८६ ३ ३३३ मत व,८ श्रेणियाँ सात ५४४ २ २८२ ठा.७.२१.५८१,भश २४३ ३ श्रेणी के दो भेद ५६ १ ३३ कम भा.२गा.२, विशे गा १२८४ १३१३ द्रव्यलो सग्लो 1981 १२३४ भाव म.गा.११३-२३ श्रेणी तप ४७७ २८७ उत्तम.३.गा.. श्रेयांसकुमार कीसम्यक्त्व ८२१ ४ ४२३ नवपद गा.१२८ सम्यक्त्याप्राप्ति की कथा धिकार श्रोत्रेन्द्रिय ३६२१ ४१८ १२.१४स १६१. टा.उ.३ सू ४४३टी.,जे.प्र. लक्ष्ण पृथ्वी ४६५.२ ६५ जी.प्रति.३ पृ.१." लक्षणवादरपृथ्वीके७भेद ५४५ २ २८४ पन प.स.१४ Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सभह, पाठवाँ भाग २६६ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति ४७२ २ ७७ पन्न,प १सू १२टी ,भ श ३उ १ सू १३०, प्रव.द्वा २३२ गा १३१७, कर्म भा १गा.४६ श्वावनीपक ३७३ १ ३८८ ठा.५२ ३ सू.४५४ श्वास तथा उच्छ्वास ५५१ २ २६२ ज वन.२ सू १८ श्वासोच्छासनारकियों का५६० २ ३३७ जी.प्रति उसू८८ पटपुरिम नवस्फोटका ४४८ २ ५३ ठाउ ३ सू ५०३,उत्त.म २६ प्रतिलेखना गा०५ * पडजग्राम की सात ५४०२ २७३ अनुसू. १२७गा.३६,ठा..उ ३ मूर्छनाएं सू ५५३,सगीत पड्ज स्वर ५४० २२७१अनुसू १२७गा २५,ठा ७सू ५५३ पाण्मासिकीभिक्ख पदिमा७:५५ २८8 सम.१२, भ श.२७ १ सू६३ टी,दशा द७ संकर दोष १ संकिय दोष ५६४ ३ १.४ प्र मी भध्या १मा १सू ३३ ६६३ ३ २५२ प्रवद्वा ६७ गा ५६८११४८, पिनिगा १२०,ध अधि ३श्लो. .२टी १४१,पचा १३गा.२६ श्री जैनसिद्धान्त योल सग्रह भाग ,२७३ पर पड़जग्राम की सात मुरनाए छपा है वे सगीत शास्त्र नामक ग्रन्थ से ली हुई है। अनुयोग द्वार तथा स्थानाग सून म पग्राम की मुनामों के नाम दूसरी तरह दिये हैं। उनकी गाथा इस प्रकार है मगी कोरविश्रा हरिया, रयणी य सारकंसा य । छट्ठी व सारसी नाम, सुसज्जा य सचमा ।। मर्थ---मार्गी, कोरवी, हरिता, रत्ना, सारकाता, सारमी और शुद्ध पहजा। १ भादारी माधाकर्म मादि दोषों की शका होने पर भी उसे लेना ने किया नफितादोष है। Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाना विषय बोल भाग पृष्ठ , प्रमाण । संक्रम की व्याख्या और भेद२५० १२३५ ठा.४.२६ ,कर्म भा.गा। संक्रमण करण ५१२ ३ ६५ कम्म.गा २ १ संक्रामरा दोष ७२२ ३ ४१० टा १० ३ ३ सू.७४३ । संक्तश दस ७१४ ३ ३८८ ठा१०३ ३ ४९६ संक्षेप रुचि ६६३ ३.३६३ वृत्तम २८ गा२६ . • संख्यातजीविकवनस्पति ० १ ५. या ३३.१ स्मृ १४१ संख्यादत्तिक ३५४ १ ३६६ ठाम ३६६ .. संख्यान दम ७२१३४०४ मा १० उ.३सू.५४७ .. " संख्या प्रमागा श्राट ६१६३ १४१ अनुम्म १४६ संख्या या परिमाण ७२१३ ४.४ टा.१० ३.३.४५ जानने कदम बोल संख्येय के नीन भेद ६१६ ३ १४४ मनु मृ १४६ , संगीन कंगाट तथा अन्य ५४. २ २७३ मनु १२७मा ८,E, टा ७३ र ४५३ संगीन के छः दोष ५४० २ २७३य? १२७गा ४० ठा.३३३ मंग्रह दान ७६८ ३ ४५, टा १० इ. म संग्रह नय और उसके दो ५६२ २ ४१४ रत्ना परि १२..., मनु, मा .१३७ संग्रह परिक्षा सम्पदा ५७४३१५ दशाद यात.. मंघ की लाट उपमा ६२३ : १५६ नीyि 1.6-10 मंघ नार्थ है, यानार्थडर १८६ १३४ यि गा १० 23-103, तीर्थ है ? भग२०३८८१ मंच पर ६६२ ३ ३६१ ठा १०.७६० १२ टोप, अनु। त्रिय प्रातुन पर रोदना। २६-777 में गत्यात नानि में लगा माल भद Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गा.७ श्री जैन सिद्धान्त बोल सपह, श्राठवॉ भाग ३०१ xmmmmmmmmmmm~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ~~~~~~ विषय बोल मा बोल भाग,पृष्ठ प्रमाण संघातनामक के पाँचभेद३६१ १४१६ कर्म भा १गा ३६,प्रय द्वा २१६ संघात श्रुत ६.१ ६.४ संघात समास श्रत १०१ ६४ कर्म भा १गा." संज्ञा की व्याख्या औरभेद१४२ १ १०४ ठा ४उ ४सू ३५६.प्रव वा १४५ संज्ञा चार का अल्प वहुत्व १४७ १ १०७ पन्नप'८'सू१४८ चार गति में संज्ञा दस ७१२ ३ ३८६ ठा १०उ ३सू ७५२,भ श ७ ८ संज्ञी श्रुत ८२२ ५ ४ नसू४०, विशे गा ५०४-५२६६ संजी ८१६ ठाउ.२ सू ५६ । संज्ञी के तीन भेद २२ ५ ५ नसू४०, विशे गा ५०४ संजीमार्गणा औरउसकभेद६ ५६३ कर्म भा ४ गा १३ ... संज्वलन कपाय १५८ १११६ पन्न प १४सू १८८, ठा ४उ १सू .. २४६ कर्म भा १गा १७-१८ संठाण छः अजीव के ४६६ २ ६६ भ श २५उ ३सू ७२४,पन्न प १सू ४ संठाण छः नीव के ' ४६८२६७ टा.इसे.४६५, कर्म भागा ४. संथारग पइण्णा ६८६ ३३५४ दप' । १ संभिन्न श्रोतो लब्धि ५४ ६२११ प्रवद्वा २७०गा १४६२' संभोगी को विसंभोगी ६३२ ३ १७६ ठाउ ३ सू६६१ करने के नौ स्थान संभोगी साधुओं कोअलग३४५ १ ३५६ ठा ५३ १ सू ३६८ ... करने के पॉच बोल संयत . '६६ १५० भश ६ उ ३१ २३७ संयतासंयन ६६ १५० भश.६उ ३सू २३५ 0 m १ ऐसी शक्ति विशेष जिससे शरीर के प्रत्येक भाग से सुना जाय । Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ विषय संयम संगम (श्रमण धर्म) श्री सेठिया जैन मन्थमाला www संयम आठ संयम की विराधनादस संयम के चार प्रकार संयम के सत्रह भेद घोल भाग पृष्ठ प्रमाण ३५१ १ ३६६ ठा. सू ३६६, प्रवद्वा ६६ गा. ५५४, ध.अधि. ३ श्लो ४६ टी पृ. १२७ ६६१ ३ २३४ नत्र.गा २३, सम १०, शा भा. १ संवत्सर पाँच संबर के बीस भेद संवर के सत्तावन भेद प्रक संवर भावना तत्वार्थ मध्या सू. ६ भ श २४३.७,ठा १० सू ७३३ ठा ४ उ २ सु३१० मम १७, आव ह अ ४१.६५१० प्रवद्वा. ६६गा ५५६ प्रवद्वा ६६ मा ५५५ ठा ५.२सू ४२६-४३० कर्म भा. ४मा १२ अनुमू १३० पिनिगा ६३६-३७, ध अधि ३ श्लो ३४५, उत्तम. २४गा. १२टी. २ २२३ ठा ४ उ १ सू. २६३ २५७ टा १०३. ३८.७३८ ५७३ ३ ११ ६६६ ३ २५२ १७६ ११३४ ८८४ ५ ३६३ संयम के सत्रह भेद संयम पॉच ८८५ ५ ३६५ २६८ १२८४ संयम मार्गणा और भेद ८४६ ५५८ संयोग नाम ७१६ ३ ३६६ " संयोजना दोप ३३० १ ३३६ संयोजना प्रायश्चित्त २ संरक्षणोपघात २४५१ ६६८ ३ संरम्भ ६४ १ ६७ संलेखना के पाँच अतिचार ३१३ १ ३१४ A टा ३३. ११२४ उपाभ. १.७, घ अधि. २श्लो. ६६ टीपृ२३. ४०० १४२४. ५ ६०८ ६ २५ १०१२७२८० ४६०, प्रयद्वा १४२गा ६०१ नत्र गा.२०, ठासू ४१८, ४२७, ट १०३. ३ ७०६, प्रश्न नरद्वार, सम. ५ १ मांडला का एक दोष, रसलोलुपता के कारगा एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य के साथ संयोग करना । २ परिग्रह से निरृत्त साधु का वस्त्र पात्र तथा शरीरादि में ममत्व होना । Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह,पाठवा भाग विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण संवर तत्त्व के बीस और ६३३ ३ १८४ । सत्तावन भेद संवर दस ७१० ३ ३८५ टा १०३ ३सू ५०६ संवर पाँच २६६ १ २८५ ठा. सृ ४१८, ४२७, प्रश्न. सवर द्वार ५, संवर भावना ८१२ ४ ३६८, गाभा २प्रक ८,भावना, ज्ञान ३८६ प्रक २, प्रव.द्वा ६७ गा.१७२, तत्त्वार्थ अध्या ६ सूप संवृतबकुश ३६८ १ ३८३ ठा. उ ३ स ४४५ संत योनि ६७ १ ४८ | तत्त्वार्थ मध्या.२सू ३३,ठा ३ संत विकृत योनि ६७ १ ४८ । उ १ सू.१४० संवेग २८३ १ २६४ ध.प्रधि २ लो २२टी पृ.४३ सवेगनीकथाफीव्याख्या,भेद१५६ १ ११४ ठा ४उ २सू २८२ संशय १२१ १८५ रत्ना परि.२,न्यायप्र अध्या.३ संशय दोप ५६४ ३ १०४ प्र.मी.अध्या या १ स ३३ संशद्ध ज्ञान दर्शनधारी ३७१ १ ३८६ ठाउ ३सू ४४५,भ श.२५३६ अग्दिन्त जिन केवली स७४१ संसक्त ३४७ १३६२भाव ह स ३नि गा ११०७.११०८ पृ १६,प्रवद्धा २गा ११६.१२. संसक्त तप . ४०५ १ ४३२ उत्तम ३६,प्रवद्वा ७३गा ६४, संसार की लवण समुद्र ६७६ ३ २६६ के साथ दस उपमा ससार भावना ८१२ ४ ३६०, गा.भा.१ प्रक.३,भावना , शान. ३८० प्रक.२,प्रव द्वा.६७,तत्त्वार्थ प्रध्या.. Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला ~~~~~ ~ ~~~~~~ ~~~~~ विपय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण संसार में पाने वाले ७२८३४१५ टा.१०२.३ सू ७१ प्राणियों के दस भेद संमारी ७(ख) १ ४ ठा २सू १०१,तत्वार्थ प्रव्या.२सू १० संसारी जीवक चारमकार१३० १६७ ठाउ २८ ४३ ०,भ श २२.१सू८८ संसारी जीव के नोप्रकार ८ १४ मे दो दो भेद १ ससृष्ट कल्पिक ३५३ १ ३६८ ठा ५७.१.३६६ संस्थान छः अजीव के ४६६ २ ६६ भश २५उ ३सू ७२४,पन्न प.१ सूर,जी प्रति १ मंस्थान छः जीव के ४६८ २ ६७ ठासू ८६५, कर्म भा १गा.४० संस्थान नरकावासों का ५६० २ ३३४ जी प्रति ३ सृ८२५ संस्थान नरकों में । ५६० २ ३४१ भ श.२५५उ । सृ ७२५ संस्थान नारकी जीवों का५६० २, ३३७ जी प्रति ३ मू.८७ संस्थान परिणाम ७५० ३ ४३३ टा १०३ ३ग्पृ.७१३, पन्न.प.१३ संस्थान विचयधर्मध्यान २२० १. २०४ ठा ४उ १सू २८७ संस्थान सात ५५२ २ २९३ १सू.४५, ठा ७३ ३सू ५४८ संस्थानानुपूर्वी ७१७ ३ ३६१ अनु सू ७१ संहनन (संघयण) छः ४७० २ ६६ पन प.२३१ २६३,ठा ६ उ.३ स ४६८,कर्म भा.१गा ३८-३६ मंहनन नारकी जीवों का ५६० २ ३३७ जी प्रति. मृ८५ संहरण के अयोग्य सात ५३० २ २६६ प्रव द्वा २६१ गा १४१६ मकडाल(सद्दाल)पुत्र श्रावक६८५ ३ ३१६ उपाश्र.५ मकाम मरण ५३ १३१ उन गा २ १ गंगष्ट प्रथांत् खन्ट हुए हाय या भाजन मादि मे दिये जाने वाले थाहार को ही ग्रहण काने वाला साधु । y Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त घोल संग्रह, पाठवा भाग विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण सचित्त योनि ६७ १ ४८ | तत्वार्थ अध्या.२सू.३३, ठा ३ सचित्ताचित्त योनि ६७ १ ४८] उ.१ सू.१४० सच्चे त्यागी का स्वरूप ६६४ ७ १८८ बताने वाली दोगाथाएं सतियाँ सोलह ८७५ ५ १८५- ठा.६ उ.३सू.६६ १टी.ज्ञा.अ १६, ३७५ त्रि.ष पर्व १,२,७,८,१०,पचा. १६गा ३१,राज.,चन्दन.,भरत. गा८.१०, भाव ह. सतियों के लिये प्रमाण ८७६ ५ ३७५ भूत शास्त्र सत् असत् पत्तद्रव्यों में ४२४ २६ घागम. सत्ता २५३ १ २३७ कर्म.भा २ मा.१ व्याख्या सत्ताईस कथा औत्पत्तिकी ६४६ ६ २४२ ने सू २७ गा.६२-६५ बुद्धि पर सत्ताईस गाथा मूयगडांग ६४६ ६ २३० सूय. अ.१४ मूत्र के १४वें अध्ययन की 'सत्ताईस गाथा सुयगडांग ६४७ ६ २३६ स्य श्र ५उ १ सूत्रकेपॉचर्येश केउकी सत्ताईस गुण साधु के ६४५ ६ २२८ सम.२७, प्राव ह म. पृ. ६४६, उत्त. ३१गा १८ सत्ताईस नाम आकाश के १४८ ६ २४१ भश २०उ.२८.६६४ सत्ता का स्वरूप , ६४ १४४ तत्त्वार्थ मध्यास २६ सत्ताधिकारकर्मप्रकृतियों ८४७ ५ 88 कर्म भा.२गा. २५-३४ फा गुणस्थानों में सत्तावन भेद संवर के १०१२ ७ २८० नव गा. सत्त्व (जीव का एक नाम) १३० १ १८ टा.सू ४३०,भग २३.१८८८ Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०॥ श्री सेठिगा जैन ग्रन्थमाला विपय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण सत्व गुण ४२५ २ २२ पागम सत्य ३५१ १ ३६५ ठा ५सू ३६६,ध अधि ३श्लो ४६ टी पृ १२७,प्रव द्वा ६६गा.५४४ सत्य (श्रमण धम) ६६१ ३ २३४ नव गा २३,सम १०,शा भा.१प्रक८ मत्य पर चौदह गाथाएं ६६४ ७ १७२ सत्य भाषा २६६ १ २४६ पनप ११सू १६ । सत्य महाव्रत की पॉच ३१८ १ ३२५ ग्राचा व २८ ३.२४ १७६, भावनाएं सम २५,ग्राव ह प ४६५८, प्रवद्वा.७२गा ६३७,ध अधि. ३को ४५ टी पृ १२५ सत्य वचन के दस प्रकार ६६८ ३ ३६-ठा १०७ ३ सू.७४ १,पन्न प ११सू. १६५,ध अविश्लो.४१टी१२१ मत्य वचन में भी क्या ६८३ ७ १०७ प्रश्न सवर द्वार २ स २४,सूय. विवेक होना चाहिए? भ६गा २३ सत्यागुव्रत (स्थूल मृपा- ३०० १ २८८ प्राव इ. ६८२०,टा ५३ ११ वाद विग्मण वन) ३८६,उपाय.११.६, ध.यधि श्लो २६११८ । सत्याणुव्रत के पॉच अति. ३०२ १ २६४ उपा अ पस ७, ५ माघ २ लो चार ४४११०१,श्राव ह य ६१८२० सत्यामृपा भापा २६६ १ २४६ पनप ५१सू. १६१ सत्यामृपा भापा के दस ६६६ ३ ३७. टा १०१ ७४ १, पन.प.११ सृ प्रकार १६, अधिग्लो ४१टी पृ. १२२ सत्रहगाथाएं भगवानमहा ८७८ ५ ३८० प्राचा श्रु १ अ६३.८ वार की तपश्चर्या विषयक मत्रह गाथाएं विनय ८७७ ४ ३७७ दग य उ । समाधि अध्ययन की Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संह, प्रावाँ माग विपय सत्रह द्वार शरीर के सत्रह प्रकार का मरण सत्रह प्रकारका संयम बोल भाग पृष्ठ ८८ १ ५ ३८५ पन्न प २१ सत्रहवातों की अपेक्षा अत्रै - ४६७ २ २२३ दिक दर्शनों की परस्परतुलना सत्रहवातकीपेक्षा वैदिक ४६७ २२१४ दर्शनों की परस्पर तुलना सत्रह माया के नाम सहरा चार ८८५ ५ ३६५ सत्रह प्रकार का संयम सहकार की विहायोगति८२ ५ ३८६ सत्रह बातें चरम शरीरी को८८६ ५ ३६५ ध वि श्रध्या =सू ४८४-४८६ प्राप्त होती हैं ८७६ ५ ३८२सम १७, प्रव द्वा १५७गा १००६ ८८४ ५ ३६३ सम १७, प्रवद्वा ६६ गा ५५६, आवद्द प्र४ ६५१ प्रवद्वा ६६गा ५४५ पनप १६मू २०४ सन्तोष सुख सन्मति (महावीर ) ममाण ८८०५ ३८५ सम ४२ (मोहनीय के नामोंमें) सत्रह लक्षणभाव श्रावक के८८३ ५ ३६२ व प्रविश्लो २२टी ४६ १ सदा विग्रहशीलता ४०५ १४३२ उत्त श्र ३६ २६४, प्रवद्वा ७३ मा ६४५ १८६ १ १४२ उत य २८ २८ अधि २ ग्लो २२टी पृ.४३ सद्दाल (मकडाल) पुत्रश्राव रु ६८५ ३३१६ सनत्कुमार चक्रवर्ती ८१२ ४ ३८४ सनत्कुमारदेवलोक का वर्णन ०८ ४३२१ ३०७ ७६६६४५४ ७७० ४ ८ आय ७ त्रिप पर्व४ ७ १२ १३ ठा १०३ ३७३७ जनविया बोल्युम १ १ 1 १ मुरी गायना का एक भेद, हमेना लाई भागडे करते रहना, करने के बाद पश्चात्ताप करना, दूसरे के समाने पर भी न होना और सदा विरोध भाव रखना । Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ श्री संठिया जैन ग्रन्थमाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण सपर्यवसित श्रुत ८२२ ५८ नं सू ४३, विशे गा ५३७.६४८ सप्तभंगी ५६३ २ ४३५ सय २५.५मा १०-१२ टी. पागम.,रत्ना परि-४,स्या का.२३,सप्त. सप्तमासिकी मिक्खुपडिमा७६५ ४ २८६ सम.१२,भ श.२उ १सू.६३ टी, दशा द.५ सप्त स्वर सीभर ५४० २ २७४ अनुसू.१२७गा ४६-५०,ठा.७ सप्रदेशीयप्रदेशीके१४वोल४१ ५ ३४ भश उ.४ सृ.२३८ सभिक्खु प्र०की२१ गाथाह१६ ५ १२६ दश अ.१० सभिवरव अ० की१६गाथा ८६२ ५ १५२ उत्त भ.१५ सम (समकित का लक्षण) २८३ १ २६३ ध अघि २श्लो २२टी.पृ.४३ समकित २१ २ प्रवद्वा.१४६गा.६४२,तत्त्वार्थ, अध्या १,पंचा.१गा३ समकित की छ:भावना ४५४ २ ५८ प्राद्धा.१४८गा६४०,ध.अधि. २श्लो .२ टी.पृ.४३ समकित की तीन शुद्धियां ८२ १६० प्राहा १४८ गा ६३२ समफित के छः प्रागार ४५५ २ ५८ उपाय १८,याव ह.भ.६ ८१०,ध मधि.२श्लो २२टी पृ४१ समकित के छ: स्थान ४५३ २ ५७ धप्रवि श्लो २२ टी.पृ.४६, प्रवद्वा.१४८ गा.६४१ समकित के तीन लिंग ८१ १ ५६ समकित के दो प्रकार से तीन ८० १ ५८ ग्लो.६६८-६७०, अधि २ ग्लो २२ टी पृ.३६, प्रव द्वा. १६गा ६४३-६४५,कर्म मा. १गा ५४ा .प्रगा.४६.५. :गा.६२६ Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिजान्त बोल संमह, पाठवाँ भाग ३०६ ~~~~~~~~~~~~~ ~~~~~ ~mmmmmmmmrrrrrrr~~~~~~~~~~~~~~~~ विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण समकित के पाँच अतिचार२८५ १ २६५ उपा अ १८७,प्राव.ह पृ८१० समकित के पाँच भूषण २८४ १ २६४ ध अधि २ग्लो २२टी पृ ४३ समकित के पाँच भेद २८२ १ २६१ कर्म.भा १ गा १५ समकित के पॉच लक्षण २८३ १ २६३ ध अधि २श्लो २२टी पृ ४३ समचतुरस्र संस्थान ४६८२ ६७ ठा ६सू ४६५,कर्म भा १गा ४० समपादयुता (निषद्या) ३५८ १ ३७२ ठा ५सू ३६६टी ,ठा ५सू ४०० समभिरूढ़ नय ५६२ २ ४१७ अनुसू १५२गा १३६, रत्ना. परि ७सू ३६ 'समयं गोयममा पमायए'९८४ ७ १३३ उत्तम १० काउपदेशदेनेवाली३७गाथा समय ७३ १ ५३ ठा ३उ २सू १६५ समय ५५१ २ २६२ ज वक्ष २सू १८ समयक्षेत्र के ३६कुल पर्वत १८६ ७ १४४ सम ३६ समवतार ४२७ २ २७ अनु सृ.७० समवायांगसूत्रका संतिप्त ७७६ ४ ११४ विषय वर्णन समवायी कारण ३५ १२३ विशे गा २०६८ समाचारी दस ६६४३ २४8 भ श २ ५३ ७१८०१,ठा १. उ ३सू ७४६ उत्त. २६ गा २-७, प्रवद्वा १०१गा ७६० समाचार्यनुपूर्वी ७१७ ३ ३६१ अनुसू ७१ समाधि ६०१ ३ ११८ यो,रा यो. समाधि की २४गाथा:३२ ६ १६७ सूय शु ११० समाधि का फल ५५३ २ २६५ दश अउ.४ समारम्भ ६४ १६७ ठा ३२ १सू १२४ Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० विषय बोल भाग पृष्ठ समारोप का लक्षण और भेद १२९१ ८५ ४०१ श्री मेटिया जैन ग्रन्थमाला समास केन्द्र आदि सात द७१६ ३ समिति मनुसृ १३० २२ १ १६ उत्त अ २४ गा २ समितिकी व्याख्या और ३२३१३३०१म ५, ३.५ ४५७,उत्तम २८ गावि श्लो ४७५.१३० उसके भेद समुच्छिन्न क्रिया अमति २२५ १२१० मा हृय ४ध्यानगतगा पाती शुक्लध्यान १ प्रमाण रत्ना परि १, न्यायप्र.मध्या ३ समुच्छेदवादी समुद्रान कर्म समुद्यात नारकी जीवों में ५६०२३३८ जी प्रति समुद्घान सात ५४८ २ २८८ प सम्मत सत्य टाउ १ २४७, ज्ञान. प्रक. ४२, कभी २ श्री २१७ ठा' उस ६०७ ५६१ ३ ६४ ७६० ३ ४४२ श्राचा. म २३ १निगा १८३ ममुद्देशानुजाचार्य समुद्रपाल गुनि ८१२ ४ ३८५ उत्त य. २१ समुद्रपालीयम की गाथाएं७८ १ ४ २५५ उन म,२१गा १३-२४ समूह प्रत्यनीक ३३६ सम्पदा आठ सम्भोगवारह 1 ३६३३१, टा ७ भू ५८ प्रवद्धा २३१गा १३११ १३१६,ब्र्यलोस ३११२४ ३४१ १३५२ व यमि उरलो. ६वी पृ.१२ ४४५ २ ५० ५७४ ३ ११ ७६६ ४२६२ दादा,३६० निशी उसम १२, व्यव.भ उ !भाव्य गा ४०-५० ६६८ ३ २६८ १०७४१११११३ १६५, धथवि लो ४१० Q १ की वाचना देने वाले गुरु के न होने पर को स्थिर परिचित करने Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग ३११ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाथा सम्पति स्थावर काय ४१२ १ ४३८ ठा ५उ १ सू ३६३ सम्पदो प्रतिलेखना ४४६ २ ५४ ठा ६सू ५०३,उत्त अ २६गा २६ सम्मूर्छिम जन्म ६६ १४७ तत्त्वार्थ अध्या.२सू ३२ । सम्मूर्छिम मनुष्यों के उत्प ८२६ ५ १८ पन्न १ १सू ३७,अनु सू १३३ त्ति स्थान चौदह सम्मूर्छिम वनस्पति ४६६ २ ६६ दशम ४ सू.१ सम्मूछिम वायु ४१३ १ ४३६ टा ५३ ३ सू ४४४ सम्मोही भावनाके५प्रकार ४०६ १ ४३२ उत्त अ ३६गा २६५टी ,प्रव द्वा. ७३ गा६४६ सम्यक्चारित्र ७६ १ ५७ उत्त अ २८गद ३०,तत्त्वार्थ.प्रध्या.१ सम्यक्चारित्र ४६७ २ १८४ सम्यक्त्व के उपबृहणा ८२१ ४ ४६५ नवपद गा १८टी सम्यक्त्वाआचार परश्रेणिक की कथा विकार सम्यक्त्व के कॉक्षादोष के ८२१ ४ ४५५ नवपद गा.१८ टी सम्यक्त्वालिए कुशध्वज का दृष्टान्त धिकार सम्यक्त्व के चार प्रकार से १० १८ प्रव द्वा १४६गा ६४२,कर्म भा. दोदो भेद १गा.१५,तत्त्वार्थ अध्या १,पन्न 4 सू ३७, ठा २ उ १सृ ७० सम्यक्त्व के जुगुप्सा दोष ८२१ ४ ४५८ नवपद.गा १८टी सम्यक्त्वाके लियेदुर्गन्धा का उदाहरण धिकार सम्यक्त्व के दो प्रकार से ८० १ ५८ विशे गा.२६७५, द्रव्यलो.स तीन भेद श्लो ६८-७०,ध अधि.२श्लो २-टी पृ ३६,श्रागा ४६५०, प्रवद्वा १४९ गा६४३. १४५,कर्म भा.१ गा.१५, Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ श्री सेठिया जैन प्रन्यमाला धिकार धिकार विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण सम्यक्त्वकेपरपापंडप्रशंसा८२१ ४ ४६१ नवपद गा १८टी सम्यक्त्वादोप पर सयडाल की कथा धिकार सम्यक्त्व के प्रभावना आ-८२१ ४ ४८५ नवपद गा १८ टी सम्यस्त्वाचारपरविष्णुकुमारकीकथा सम्यक्त्व के लिये१३दृष्टान्त८२१ ४ ४२२ नवपद ७ वां सम्यक्त्व द्वार सम्यक्त्वकेवात्सल्याचार८२१ ४ ४८१ नवपद गा.१८टी सम्यक्त्वा. केलिये वज्रस्वामी का दृष्टान्त धिकार सम्यक्त्व के विचिकित्सा ८२१ ४ ४५६ नवपद गा १८ टी सम्यक्त्वादोपके लिये महेश्वरदत्त वणिक् का दृष्टान्त सम्यक्त्व के शंका दोप के ८२१ ४ ४५३ नवपद गा.१८ टी सम्यक्त्वा. लिये मयूराण्ड,सार्थवाह कीकथा धिकार, ज्ञाभ ३ सम्यक्त्व के स्थिरीकरण ८२१ ४ ४६६ नवपद,गा १८ टी सम्यक्त्वाआचार के लिये आर्यापाढ़ विकार, उत्त प्र.२ (कथा) प्राचार्य का दृष्टान्त सम्यक्त्वप्राप्तिके दसबोल ६६३ ३ ३६२ उत्त अ २८गा.१६-२७ सम्यक्त्व माप्ति के लिए ८२१ ४ ४३४ नवपद गा १४टी , शाम १८ चिलाती पुत्र की कथा मम्यक्त्व प्राप्ति के लिये ८२१ ४ ४४६ नवपद.गा.१६सम्यक्त्वाधिकार धन सार्थवाह की कथा सम्यक्त्व माप्ति के लिये ८२१ ४ ४२३ नवपद गा १२८ श्रेयॉसकुमार की कथा सम्यक्त्व भ्रष्ट होने पर ८२१ ४ ४४४ ज्ञा.म.१३,नवपद गा १४ नन्द मणियार की कथा Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, श्राउवों भाग ३१३ बोल भाग पृष्ठ विषय सम्यक्त्व मार्गणा और भेद ८४६ ५ ५८ सम्यक्त्व सामायिक १६० १ १४४ सम्यग्ज्ञान ७६ १५७ उत्त सम्यग्ज्ञान ४६७२ १६८ सम्यग्ज्ञान पर सात गाथा ६६४ ७ १६० सम्यग्दर्शन सम्यग्दर्शन सम्यग्दर्शन प्रमाण धर्मभा ४ गा १३ विशे गा २६७३-२६७७ २८, तत्त्वार्थ, ग्रध्या. १ १ ७७ ५ ५५ म श ८ २३२०,टा ३सू. १८४ ७६ १५७ उत्तम. २८, तत्वार्थ. मध्या १ १ ४६७ २ १६६ सम्यग्मिथ्यादृष्टिगुणस्थान८४७ ५ ७३ ८२२५ ७ सम्यग्दर्शन पर दस गाथा ६६४७१५८ सम्यग्दर्शन सराग के दस ६६४ ३ ३६४ या १० सू. ७४१,१न्न ११सू ३७ प्रकार कर्म भा २ मा २ न सू ४१, विशे गा १२७ ५३६ सम्यकश्रुत सयडालकी कथापरपापंड- ८२१ ४ ४६१ नवपद गा १८ टी सम्यक्त्वा - धिकार प्रशंसा दोष के लिये सयोगी केवली गुणस्थान८४७५ ८५ कर्म भा २ मा २ व्याख्या सरदद्दतलाय सोसण्या ८६०५ १४६ कर्मादान सू ३३०, वह ६८२८ सराग सम्यग्दर्शन दस ६६४३३६४ हा १०७५१,पन्न १ १ ३७ सर्वअवसन्न(श्रोसन्ना माधु३४७ १ ३५८ भाव हय ३ निगा ११०७ पृ ५१७, प्रयद्वा २ गा १०६ उपाय १ सू७, भश उ こ का भेद) सर्वचारी मच्छ ४१० १४३७ ठाउ ३४५३ सर्वदेशघाती प्रकृतियाँ ८०६ ४ ३४७ कर्म भा ५ गा १३,१४ Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण सर्वप्राणभूत जीव सत्वका२६८ १ २८५ ठा ५उ.रसू.४२६-४३० समारंभ न करने से होने वाला पाँच प्रकारकासंयम सर्व प्राण भूत जीव सत्त्व के २६७ १ २८४ ठा ५ उ २ सू ४२६-४३० आरंभ से होने वाला पाँच प्रकार का असंयम सर्ववन्ध ५२ १३० कर्म भा १गा ३५ व्याख्या सर्वरत्न निधि ६५४ ३ २२१ ठा 23 सू६७३ सर्व विरति रूप सामायिकह८३ ७ १०७ भ श.१ ३सू ३७ टी चालेको पोरिसीमादिप्रत्याख्यानोंकीक्याावश्यकता है? सर्वविरतिसाधुके३मनोरथम १६४ टा.३७.४सू २१० सर्व विरति सामायिक १६० १ १४४ विशेगा २६७३-२६७७ सर्व विस्तार अनन्तक ४१८ १ ४४२ ठा ५उ.३सू.४६२ सर्वसमाधिप्रत्यय आगार ४८३ २ ६८ श्राव ह अ६ पृ.८५२, प्रवद्वा ४ (पारिसी का आगार) गा२.३ मर्व स्रोतचारी भिक्षु ४११ १ ४३७ टा ५७.३स ४५३ सपिधि लब्धि ६५४ ६ २६० प्रवद्वा२७. गा १४६२ सहसाकार श्रागार ४८३ २ ६७ भाव ह भ पृ८५२, प्रवद्वा ४ सहस्रारदेवलोककावर्णन ८०८४ ३२३ पनप २ स.५३ सहायताविनयकेचारप्रकार२३६ १ २१७ दशा द ४ मांख्य दर्शन ४६७ २ १४४ सांशयिक मिथ्यात्व २८८१ २६७ कर्म मा ४ गा ११,ध.अधि.२ श्लो.२२टी.पृ.३९ Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग ३१५ गा २०४ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण सांसारिकनिधिके प्रकार ४०७ १ ४३३ ठा ५उ ३ सू ४४८ सागरोपम ३२ १ २२ ठा २उ ४सू ६ सागरोपम के तीन भेद १०६ १७८ अनु.सू १३८-१४०, प्रव द्वा. १५६गा १७२७.१७३२ सागारियागार (एगहाण ५१७ २ २४७ श्राव ह अ.६पृ८५३,प्रव.द्वा ४ का आगार) सागारी (शय्यादाता) ३३४ १३४५ भश १६उ.२सू ५६७,प्रव द्वा अवग्रह ८५गा ६८१,माचा श्रु २चू १ अ.७उ २ सू १६२ साठ नाम अहिंसा(दया)के ६२२ ३ १५१ प्रश्न संवरद्वार १सू.२१ साडीकम्मे कर्मादान ८६० ५ १४४ उपा अ १सू ७,भ श ८उ.५ सू ३३०,प्राव हम पृ८२८ साढ़े पचीस आय क्षेत्र १४२ ६ २२३ प्रब द्वा २७५गा.१५८७-६२,पन्न. प १सू ३७,३ र १नि गा ३२६३ सात अवग्रह प्रतिमाएं ५१८ २ २४८याचा व २८ १ ७उ २सू १६ १ सात आगार एगहाण के ५१७ २ २४७ श्राव ह न ६४८५३,प्रवद्धा ४ सात आगार पुरिमड (दो ५१६ २ २४६ प्राव ह भ पृ८५२, प्रत्र द्वा पोरिसी) के .४ गा २०३ सात आयु भेद ५३१ २ २६६ ठा ७ उ ३ सू ५६ १ सातएकेंद्रियरत्नचक्रवर्तीके५२६ २ २६५ ठा ७उ ३ सू ५५७ सातकर्मोकाएकमाथबन्ध ५६०३ ८३ तत्त्वार्थ (सु०) अध्या ६सू २६ होनेपरबन्ध केविशेषकारण से विशेप कर्मका वन्ध होना कैसे संगत हो सकता है? सात का संहरण नहीं होता५३० २ २६६ प्रवद्धा २६१गा.१४१६ व्याख्या. Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्री सेठिया जैन प्रथमाला -~~mmmmmmon arrr. wwmar.mom amrrrrowr विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमारण सात कुलकर आगामी ५११ २ २३६ ठा ७३.३ सू.५५ :, मम १५६ उत्सर्पिणी के सानकुलकरगतउत्सर्पिणीके ५१२ २ २३६ ठा ७उ ३ सू.३५ ६,मम १५७ सात कुलकर वर्तमान ५०८ २ २३७ ठा ७३ ३सू.५५ ६, सम १५५ श्रवसर्पियी के जे भा २१.३६२ सात गणापक्रमण ५१५ २ २४४ ठा ७ उ ३ रसू ५४१ सात गाथा विनयसमाधि ५५३ २ २६३ दशम ६२.४ अध्ययन के चौथे उद्देशेकी सात नय ५६२ २ ४११ यनु सू १५२,प्रव द्वा.१२४ गा, ८४७,८४८,विशेगा २१८०. २२७८, रत्ना परि ७, तत्वार्थ चव्या १, गत अध्या ५-८, न्यायध्या ५,प्रागमनय, नय,नयविनयो पालाप, सात नरक ५६० २३१४ जी.प्रति.३ सू.६६.६१, प्रवदा १७२.१८४२.१.७,१४,१८, २५,३०,पन्न प २०,३४, प्रश्न म । सात निक्षेप अनुयोग के ५२६ २ २६२ विशे.गा.१३८५-१३६२ सान निहन ५६१ २ ३४२ विशे गा २३.०.२६२०,श्राव है य १गा ७७८७८८,भग उ.१,मश.६उ ३३म सू.५८७ सातपंचेंद्रियरत्नचक्रवती के५२८ २ २६५ या ७ ३३ मु.५५७ सात पसाभास सात पदवियाँ सात पानपणा ५२० २ २५० ( भाचागु २८ १ १२ ११ सात पिण्डपणा अधि.३श्लो २२टी पृ.४५ ५४६ २ २४१ रत्ना परि ६ सू ३८-४६ ५१३ २ २३६ ठा.३८.३ सू.१७७ टी. ५१९ २ २४० र सू६२ ठा.७३ ३५४५,५ Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, बाठो माग ३१७ सात पुद्गलपरावर्तन विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण ५४६ २ २८४ ठा.३सू १६ ३टीम श, १२३४ सू ४४६,पच द्वा २गा ३६ टी कर्म भा.गा८७८८,प्रवद्धा १६२ सात पृथ्वी के नाम व गोत्र ५६० २ ३१५ जी.प्रति ३८ ६७, प्रव द्वा.१७२ सातमकार का अप्रशस्त ५०४ २ २३३ भश २५९ ७ सू.८०२,ठा ७ काय विनय उ ३सू ५८५, उव.स २० सात प्रकार का अप्रशस्त ५०० २ २३१ भरा २५ र ७सू८०३, ठा ७ मन विनय उ.३सू ५८५ सात प्रकार का अप्रशस्त५०२ २ २३२ भ श.२५३ ७स ८०२, ठा ७ वचन विनय उ ३ सू५८५ सात प्रकार का काययोग ५४७ २२८६ भ श २५उ १सू ७१६,कर्म भा ४गा २४,द्रव्यलो स ३पृ ३५८ सात प्रकार का प्रशस्त ५०३ २ २३२ भ श २५उ ७ सू८०२,ठा ७ काय विनय उ ३ सू ५८५, उव स २० सात प्रकारका प्रशस्त ४६४ २ २३१ भ ग २५उ ७सू८०२, ठा ७ मन विनय उ ३सू ५८५ सात प्रकार का प्रशस्त ५०१ २ २३२ भ ग.२५उ ७८०२, ठा ७ वचन विनय उ ३ मू ५८५ सात प्रकार कालोकोप- ५०५ २ २३३ ) भ श २ र ७८८०२,ठा ७ चार विनय उ.३सू५८५,उव सू २०,ध. सात प्रकारका विनय ४४८ २ २२8 । अधि ३श्लो ५४टी १४१ सात प्रकार की दण्डनीति ५१० २ २३८ ठा ७ उ ३ सू ५५७ सात प्रकार के सब जीव ५५० २ २६२ ठा ७उ ३सू ५६२ सात प्रकार श्लक्ष्ण बादर ५४५ २ २८४ पन प १सू १४ पृथ्वी काय के Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ श्री मेठिया जैन ग्रन्थमाला विपय घोल भाग पृष्ठ प्रमाण सात प्रमाद प्रतिलेखना ५२१ २ २५१ उत्तम २६गा.२५ सात प्राणायाम ५५६ २ ३०२ यो प्रका ५,रा यो , छपी सात फल चिन्तन के ५०७ २ २३५ श्रा प्र.गा. ३६३ सातवातें छद्मस्थकंथविषय५२५ २ २६१ ठाउ ३८ ५६५ सातवातों से केवली जाना५२४ २ २६१ ठा.उ. ३ सू ५५ • जा सकता है सात बातों से छमस्थ जाना५२३ २ २६० टा७३ ३ सू ५५० जा सकता है सात बोल मूत्र सुनने के ५०६ २ २३४ विशे गा . ६५, मम ५ सात भंग ५६३ २४३५ सय .२.५ गा.१० १२टी., थागम मप्त रत्ना परि ४,स्या का सात भयस्थान ५३३ २ २६८ ठा ७३.३ सू ५४६, मम ७ सात मंद अविरुद्धानप ५५६ २ २१८ रत्ना परि.३६ -१०० लब्धि हेतु के सात भेद काल के ५५१ २ २६२ ज वन ' सू.१८ सातभेद विरुद्धोपत्नधि के५५५ २ २६६ रत्ना परि ३ सृ ८३.६१ सात भेदव्युत्सर्ग के ५५७ २ ३०० उब म २० सात महानदियाँ ५३८ २ २७० टा ७३ ३८.५५५ सात महानदियाँ ५३६ २ २७० टा७३ ३ स १५ सात मुलगोत्र ५४२ २ २७६ ठा.५३ ३ सू ५५ ॥ सात लक्षणा द्रव्य के ५२७ २२६३ विशे गा २८ सात वचन विकल्प ५५४ २ २६५ ठा ७ उ ३.४८४ सात वर्तमान अवसर्पिणी ५०९ २ २३८ ठा.७३ ३ सू.५५ ६,सम.." के कुलकरों की भार्याओं के नाम Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, ध्याठवाँ भाग विषय सात वर्षधर पर्वत सातवादी (सुखवादी) बोल भाग पृष्ठ ५३७ २ २७० ५६१ ३ ६४ ५३६ २ २६६ सात वास (क्षेत्र) जम्बूद्वीप में सात विकथा ५५८ २३०१ ठा ७उ. ३ सू५४२ सात विभंगज्ञान सातव्यक्तियों (भ० मल्लिनाथ५४३ २ २७७ टा ७उ ३सू. ५६४ आदि) ने एकसाथ दीक्षा ली सात व्यसन ५३२ २ २६७ ठा.७ उ ३ सू५६६ प्रमाण ठा. उ. ३सू५५५, सम ७ ठा. ८उ ३ सू. ६ ०७ ठाउ ३ ५५५, सम. ७, तत्वार्थध्या ३ १० ६१८ ६ १५५ ज्ञा. ५५२ २ २६३ ५४८ २ २८८ ३१६ २७६ २६८ सात सेनापति शक्रेन्द्र के ५४१२ सात स्थानदुपमाजानने के ५३४ २ सातस्थान सुपमाजानने के५३५ २ २६६ सात स्थान स्थविरकल्प ५२२२२५१ १ सात स्वर मात श्रेणी ५४४ २ २८२ टा ७५८१, २५७३० सात संग्रहस्थान आचार्य ५१४२२४२ ठा.५ उ १ सू ३६६, ठा ७उ ३ तथा उपाध्याय के सू ५४८ सात संस्थान सात समुद्घात १८सू १३७, बृ. उ१नि. गा ६४०,गौ कु. ठा १सू ४७, ७ ३५४८ पन प ३६ सू ३३१, ठा. ७ सू ५८६, प्रवद्वा २३१गा १३१११३१६,द्रव्यलोस ३ १२४ ठा ७उ ३५८२ ठाउ ३ सू. ५४६ ठा ७३ ३ सू५५६ विशे गा ७ ठाउं ३५५३, अनुसू १२७ पश्न प २३सू २६२ ५४० २ २७० साता औरअसातावेदनीय ५६० ३६१ का अनुभाव आठ आठ प्रकार का १ इस बोल के अन्तर्गत जो इक्कीस मूर्छनाए छपी है उनके सम्बन्ध में पृष्ठ २६१ पर टिप्पणी देखो । Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० श्री मेठिया जैन मन्यमाला विषय साता गौरव (गाव) सातावेदनीय सातावेदनीय कर्म बाँधने ७६१ के दस बोल सातावेदनीय की जघन्य ६९८ ६ १३६ उत्त ३३ गा१६-२०, पनप २३म् २६४ स्थिति अन्तर्मुहूर्त की या बारह मुहूर्त की ? वोल भाग पृष्ठ प्रमाण ६८ १ ७० ठा ३४ २१४ ५१ १ ३० पत्र प २३ २६३, कर्म भा १गा १२ ३४४३ भरा ७३ ६ २८६ पन सातावेदनीय की जघन्य ६१८ ६ १३६ उत्तय ३३ गा १६ २०, स्थिति दो तरह किस विवक्षा प२३ २६४ से कही गई है ? सादिश्रुत सादि संस्थान साधर्मिक श्रवग्रह साधु साधु आलोचना करने योग्य के दस गुण ८२२५८ ४३, शेगा३७-१४८ ४६८ २६८ ठा ६४६५, कर्म भागा ४० ३३४ १ ३४५ भग १६३२४६७, ८ २७४ १ २५६ ६७०३ २५८ गा ६८१, याचा २ १७३२ भ मंगलाचरगा भग २५७६६, टा १० उ ३७३३ साधु थालोचना देने योग्य६७१ ३ २५६ भग २७७६६, १० ३३ मृ. ७३३ के दस गुण साधुओं की सेवा भक्ति के ७०६ ३ ३८३ ३३ ३ १६० परम्परा फल दस साधु और सोने की थाट ५७१ ३ ६ गुणों से समानता पचा १८ गा ३२-३४ Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त घोल संह, आठवाँ भाग ३२१ विषय . बोल भाग पृष्ठ प्रमाण साधु का पॉच कारणों से ३३८ १ ३४८ ठाउ.२सू ४१५ राजा के अन्तःपुर में प्रवेश साधुकास्वरूप बतानेवाली८६२ ५ १५२ उत्तम.१५ सभिक्खु श्र०की१६गाथाएं साधुका स्वरूप बतानेवाली६१६ ६ १२६ दश. अ १० सभिक्खु अ की२१गाथाएं साधुकीअवग्रहप्रतिमासात५१८ २ २४८ श्राचा श्रु.२चू.१अ उ २ साधु की इकतीस उपमाएं ६६२ ७ ४ प्रश्न सवरद्वार ५ २६,उव सू १७ साधु की बारह उपमाएं ८०५ ४ ३०६ अनु सू.१५० गा १३१ साध की बारह पडिमाएं ७६५ ४ २८५ सम.१२,भ श २उ १,दशाद ७ साधु की समाचारी दस ६६४ ३ २४६ भ.श २५७ ७ सू८०१,ठा १० उ ३सू७४६, उत्तप्र.२६ गा २-७,प्रवद्वा १०१गा ७६०-६७ साधु के अठारह कल्प ८६० ५ ४०२ सम १८, दश अ ६ गा८-६६ साधुके आहारग्रहणकरने ६६३ ३ २४२ प्रव द्वा ६ ७ गा ५६८,पि नि गा के दस दोष ५२०, ध अधि ३श्लो २२ टी पृ.४२,पचा १३गा २६ २साधके आहारसंबंधी१००० ७ २६५ पि नि गा ६६६ सैंतालीस दोष साध के इक्कीस शवल दोष ११३ ६ ६८ सम २१, दशा द २ साधु के उतरने योग्य तथा १२३ ६ १७० भाचा श्रु २८ १म २उ २ अयोग्य स्थान तेईस १ मकान,वस्त्र, पात्र भादि वस्तुएं लेने में विशेष प्रकार की मर्यादा धारण करना । २ आहार के सैंतालीस दोषों में एक दायक दोष है । इसके चालीस भेद है । वे ४० भेद श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह के तीसरेभाग के बोल नं. ६६३ में दिये गये हैं। Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२२ भी सेठिया जैन अन्यमाला ९ . विषय ' ' वोल भाग पृष्ठ प्रमाण साधु के चारित्र को दूपित ६६८ ३ २५४ ठा.१०३ ३ सू ७३८ फग्ने वालेदसं उपघातदोष । साधु के तीन मनोरथ ८६ १६४ ठाउ ४ सू २१० साधु के दस कल्प ६६२ ३ २३४ पचा १७ गा ६-४० साधु के पाँच महावत ३१६ १ ३२१ दश.अ.४, ठा.५ १सू ३८६, प्रवद्वा ६६गा ५५३,ध अधि: ग्लो ३६-४४पृ.१२०.१२४ साधु के वाईस परिपड ६२० ६ १६० सम २२,उत्त में २, प्रवद्धा ८६ . .', 'गा ६८५,तत्वार्थ मश्या सू . साधु के बारह विशेपण ८०६ ४. ३१४,वि सू ३६६ १ साधु के बारह सम्भोग ७६६ ४ २६२ निशी उ ५, सम.१२, व्यव उ.५भाप्य गा. साधु के पावन अनाचीर्ण १००७७ २७२ दश न ३ साधु के वीस कल्प १०४ ६१ वृउ १ माधुकं मलादिपरठने के लिये ६७६ ३ २६४ उत्तम २४ गा १६-१८ दसविशेषण वाला स्थण्डिल साध के लिये अकल्पनीय ८३४ ५ २६ पृट ३पृ.१६-२१ चौदह बातें माधु के लिये, आवश्यक ६१८६१४३ दश भउ २गा ५,गुग श्लो ३० आदि क्रियाक समय उनकी उपेक्षा कर क्या ध्यानादि करना उचित है? माधुके लियेावश्यक वात ४६७ २२१८ नगान गमाचारी वाले साधुग्रां का सम्मिलित आहार यादि व्यवहार सम्भोग हटलाता है। Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, पाठवौं भाग , ,३२३ ~~idiomarium विषय बोल भाग पृष्ठ ' ' प्रमागा साधु के लिये ग्लान साधु ६८३ ७ १०८ वृगा १८५१-१८५८,भश २५ की सेवा करना आवश्यक - उ. सू८०२, उत्तम २६ गा. है या उसकी इच्छा पर ८-१०, उत्तअ २६ प्रश्न४३, निर्भर है? '. ओ गा ४८,४८,६२,५३२-३३ साध(स्थविरकल्पी) केलिये ८३३ ५ २८ पंच व गा ७७१-७७६ चौदह प्रकार का उपकरण साधु (जिनकल्पी) के लिये ८३३ ५ २८, पच व गा ७७१-७७८ वारह प्रकार का उपकरण साधके लिये वर्जनीयरदोष ५८३ ३.३८ उत्त अ २४गा साधुके संयमकीविशुद्धिदस ६६६ ३ २५७,ठा १०३ ३ सू७३८ । .. साधु के संयम में संक्षोभ ७१४ ३ ३८८ठा १०उ ३सू ५३६ - (अशान्ति होनेके दस कारण साधु के सत्ताईम गुण ६४५ ६ २२८ मम २,७,अावाह अ.४५ ६४६५ । उत्त अ ३१गा १८ ।। साधु के सत्य वचन में भी ६८३ ७ १०७ प्रश्न मवरद्वार २ स. २४, सूय.. क्या विवेक होना चाहिये? . शु.६गा २३०, का र साधुकोआहारकीगवेषणा८६५ ५ १६१ प्रवद्वा ६७ गा ५६५-५६६ में लगने वाले१६उद्गमदोप ध, अधि ३ श्लो २२ पृ ३२ पिनिगा ६२-६३,पि विगा ३-४, पंचा १३ गा ५-६ साधुकोनाहारकीगवेपणा८६६ ५ १६४ प्रव द्वा ६७ गा ५६७-५६८ में लगने वाले सोलह ध अधि ३श्लो २२.४०. पि उत्पादना दोप नि गा ४०८-४०६,पि विगा ५८-५६,पचा १३गा १८-१६ Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ श्री सेठिया जैन अन्यमाला विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण माध को कल्पनीयग्रामादि८६७ ५ १६६ वृउ.१सू.६ सोलह स्थान साधु कोकोनसावादकिसह१८६ १५७ प्रष्ट १२,उत्त (क)प्र.१६ (कथा) के साथ करना चाहिये ? साधु ग्लान की सेवाकरने ७६७४ २६७ प्रवद्वा.७१ गा ६ २६-६३५, वालबारह और अड़तालीस नवपद. सलेसनाद्वार गा.१०६ साधु द्वारा आहार करने ४८४ २ १८ उत्त भ२६.गा.३२-३३,पिं नि के छ कारण गा.६६२ साधु द्वारा प्राहार त्याग ४८५ २ १८ उत्त. अ.२६ गा.३४, पि. नि. करने के छःकारण गा६६६ साधुद्वारा साध्वी कोग्रहणा३४० १ ३५१ ठा ५उ.२ १ ४३७ करने या सहारा देने के बोल साध मंगलकारी लोको. १२६ १६४ भाव हम ४ पृ.५६ ६ त्तम और शरण रूप है माधुयोग्य १४प्रकारकादान-३२ ५ २६ शिक्षा.,भावह प.६ पृ८४६ साधुवचन आगार ४८३ २१८ भाव.३ म.६१८५२,प्रव.द्वा.४ साधु साध्वी के एक जगह ३३६ १ ३४६ ठा.५ उ.२ सू ४१७ स्थानशय्यानिषद्या केकारण साधु साध्वी के साथ चार १८३ १ १३७ टा ८३.२ सू २६. कारणों से थालाप संलाप करना हुश्रा निर्ग्रन्याचार का भतिक्रमण नहीं करता साध्य ४२ १ २७ रला परि ३स १४ सानक वस्त्र ३७४ १ ३८६ ठाउ.३ सू४४ ६ Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संमह, पाठवौं भाग ३२५ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण सान्निपातिक भाव छः ४७४ २८१ अनु सू १२६, टा ६उ ३ सू ४३७,कर्म भा.४गा ६४-६६ सान्निपातिक भाव के ४७४ २८१ अनु सू १२६, ठा ६ उ ३ सू छब्बीस भंग ५ ३७, कर्म भा ४गा ६४ ६६ सान्निपातिकभावके भंग ४७४ २८३ अनुसू १२६, ठा ६ उ.३ सू. २६में से जीवों में पाये जाने ५३५,कर्म भा ४ गा ६४-६६ वाले छ: भंग सापेक्ष यतिधर्म केविशेषण८०६ ४ ३१४ ध वि सू ३६६ पृ.७५ सातपदिकव्रत का दृष्टान्त ७८० ४ २४६ प्राव ह गा.१३४ च पीठिका भाव अननुयोग पर नि गा १७२ सामन्तोपनिपातिकी २६४ १ २७६ ठा.२उ १सू ६०,ठा ५३ २सू (सामन्तोवणिया) क्रिया ४१६ श्राव ह अ४६१२ सामानिक ७२६ ३४१५ तत्त्वार्थ अध्या ४सू ४ सामान्य ४१ १ २६ रत्ना परि ५ सू १,स्या का.४ सामान्य के दो प्रकार से दो ५६ १४१ रत्ना परि ५स ३-५, रत्ना परि ___ ७ सू १५-१६ सामान्य गुण छः ४२५ २ १६अागम द्रव्य त अध्या ११श्लो २-४ सामान्य विशेष ५६ १४१ रत्ना परि ५ सू ३-५ सामायिक आवश्यक ४७६ २80 मावह अ.१ सामायिकोग्छेदोपस्था-६८३ ७ ११८ भश १उ ३सू ३७टी १६० पनिक चारित्र अलग अलग क्यों कहे गये हैं ? सामायिक कल्प स्थिति ४४३ २ ४५ ठा ३उ ४ सू २०६,ठा ६ उ.३ सू५३०,वृ (जी) २६ भेद Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२६ 1 श्री मेटिया जैन ग्रन्थमाला बोल भार्ग "पृष्ठ प्रमाख १६० ११४३ र अवि, २३७८ विशे गा.२६७३-२६७७ विशे गा. २००८ - २७१० विपय सामायिक की व्याख्या और उसके भेद सामायिक के चार भेट ४३१२३८ सामायिक के बतीस दोपह७०७ ४३. सामायिक चारित्र ३१५ १३१६ ठाउ शिक्षा 1 ई " सामायिक चारित्र के अन-४४३ २ ४५ ठाउ४३४६टी, ठा.६ 1. वस्थित कल्प छः उ५३ टी सामायिक चारित्र के ४४३ २४५ ठाउ' सू २०६ टी., टा.' उ अवस्थित कल्प चार सामायिक में १२कायादोप७४ २७३ शिक्षा सामायिक में दुसमन दोप७६४ ३ ४४७ शिक्षा सामायिक मंदसवचनदोप७६५ ३४४८ गिना. 20 सामायिक वन १८६ ११४०८३१,१.१५ सामायिकत्रत के५. अतिचार ३०६ १ ३०६ उपाय १, या ६६६ स. ३० टी. 1 साम्यवाद ४६७ २ २१३ सारीपथ्वीधजने के बोल ११७ १ ८२ -- ४२८, मनु सू.१४४. विशे.गा १२६०-१२६७. • ; pr सामायिक वन निश्चय और७६४४२८४ भागम व्यवहार से सामासिकभाव प्रमाणनाम७१६ ३ ४०१ अनु१३०. सामुच्छेदिक दृष्टि नामक ५६१२३५८ २३८६-२०६३ चीन का गत सामुदानिकी क्रिया T · हः ' ठा.३० १६८ त J. T . + "$ २६६ १२८२ ठाउ १६० ३२ 1 ܪ ܐ ܪ t T 7 F ४१६, या. ४१६१४, सूय श्रु.२य. निगा १६व्य Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग विषय ८२८२ १ २६१ सास्वादान समकित सास्वादानसम्यग्दृष्टिगुण ०८४७५ ७३ साहरिय दोष (आहार का ६६३ ३ २४३ दोष) २ い THEH बोल भाग पृष्ठ सिद्ध सिद्ध सिद्ध भगवान् के आटगुण५६७ ३ ७ख १ ४ w ' ' २७४ १ २५२ ४. सिंद्र भगवान् के इकतीस ६६१७२ गुण दो प्रकार से प्रमाण कर्म भा १गा ०१२ : १ कर्मभामा २ व्याख्या, प्रवद्वा ६७गा ५६८१.१४८, पिति ग्रा. ५२९, पचा १३गा. २६, धि ग्लो. २२ टी पृ ४१ ठा.२उ ४सू १०१,तत्त्वार्थ मध्या २ 1 भ मंगलाचरण , १७० सिद्ध मंगलकारी लोको - १२६क १६४ घाव ४१५६६ त्तम और शरण' रूप है 1 अनु सू १२६१ ११५, श्र्व द्वा. २७६गा: १५६३-६४/सम. ३१ उत्त म.३१गा. ३०टी, प्रव वा. { ३२७ 1 २७६ मा १५६३-१५६४, 'सम ३१, आचा भ. ५ ६ सु श्रावे. ४१, ६६ र " सिद्ध शिला और अलीक' ६१८ ६२ १३५ भ श १४ उ ८. १२७ टी. के बीच कितना अन्तर है ? f छ सिद्धों का अल्प वहुत्व ६४६ ५ १२१ सिद्धों के अल्पबहुत्व के ३३ बोल६७६ ७६६ ८४६ ५ ११७ पन प १सू ७ सिद्धों के पन्द्रह भेद सीता सती 1 "" I ८७५, ५ ३२१ त्रिषपर्व७ संसृमा, चिलावी पुत्रकी कथा ६०० ५ ४७० ज्ञा १८ सुकाली रानी Y ६८६ ३ ३३८ ८ अ.२ सिद्ध शिला के आठ नाम ६० ३ १२६ पत्र प २५४ ठाउ सू. ६४८, उत्त थ, ३६ग्रा ५६ " I पन्न १ १-७ नंसू २० टी १२५ " Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला विषय सकृष्णा रानी सरख दस वोल भाग पृष्ठ प्रमाण ६८६ ३ ३४३ अंत व ८ अ५ ७६६ ३ ४५३ ठा.१०उ ३१७३७ ,मुख विपाक की दस कथाह१० ६५३-६० वि ध ११-२० सुख शय्या चार २५६ १२४१ ठा.४उ ३सू.३२५ सुजात कुमार की कथा ६१० ६ ५८ विप्र १३ * मुटुंदिन्नं ८२४ ५ १५ भाव ह भ ४ पृ७३. सुधर्मा सभा ३६७ १ ४२१ ठा.५उ.३सू ४७२ सुधास्वामीगणधर के, ७७५ ४ ४० विशेगा.१७७०--१८०१ 'जो जैसा है,परभवमेवह वैसा ही रहना है' मनकासमाधान सुन्दरी (सनी) ८७५ ५ १६. मिप पर्व १-२,भाव ह.नि गा.३४८८ सुन्दरीनन्द की पारिणा-११५६ १०५ भाव ह गा.६५०, न सू२५ मिकी बुद्धि की कथा सुपर्णकुमारकेदसअधिपति ७३३ ३ ४१८ म श ३उ.८८ १६६ सुप्रत्याख्यान ५४ १ ३२ मश ७७ २८ २७१ सुबाहुकुमार की कथा १० ६ ५३ विभ ११ सद्धि व जितशत्रकी कथाह०० ५ ४५८ का अ.१२ मुभद्रा सनी ८७५ ५३४० दश प्र.नि.गा.५३.७४ सुगदेव श्रावक ६८५ ३३१३ उपाय ४ मुलभ बोधि ८१७ टा. ८.२ स ७६ मुलभ वोधि के पाँच वोल २८७ १२६६ ठा १३ २ सू ४२६ मुलसा ६२४ ३ १६६ ठा.६उ ३सू.६६१ मुलसा सती ८७५ ५ ३१३ श्राव ह नि.गा १२८४, ठाउ.. सू.१६१टी * पृट १४३ पर टिप्पणी देखो। Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग ३२१ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रभाण्ड सुवासब कुमार की कथा ६१० ६ ५८ विश्र.१४ सुश्रामण्यता ७६३ ३ ४४६ ठा १०उ ३सू.७५८ मुषमदुषमा पारा अवस- ४३० २ ३१ जं. वक्ष २ सू २७-३३, ठा पिणी का उ ३ सू४६२ सुषम दुषमा अपरा उत्स- ४३१ २ ३७ नं वक्ष २ सू.३०-४०, ठा ६ र्पिणी को उ ३ सू ४६२ सुषम मुषमा पाराभव- ४३० २ ३० ज वक्ष २ सू.१६-२५, ठा ६ सर्पिणी का उ३ सू ४६२ सुषम सुषमा पारा उत्स-४३१ २ ३८ ज वक्ष २ सू.३७-४०, ठा.६ पिणी का उ ३सू ४६२ सुषमाप्राराअवसर्पिणीका४३० २ ३० अंवक्ष.२सू.२६,ठा.६ सू.४८ २ सुषमा आरा उत्सर्पिणी का४३१ २ ३८ जं वक्ष.२सू.३७-४०,ठा ६सू ४६ १ सुषमाकालजाननेक स्थान५३५ २ २६६ ठा ७३.३ सू.५५६ सूक्ष्म ८१५ ठा.२ २.१ सू.७३ सूक्ष्म क्रिया अनिवर्ती २२५ १ २१० श्राव.इ. ४ ध्यानशतक गा. शुक्ल ध्यान ८१,ठा.४उ.१ सू.२४७, ज्ञान. प्रक.४२,क भा २ श्लो २१६ सूक्ष्म जीव आठ ६११ ३ १२८ दश.अ.८मा १५ ठर ८सू ६१५ सूक्ष्म दस ७४६ ३ ४२३ ठा १० उ ३ सू.७१६ सूक्ष्म पुद्गल ४२६ २ २५ दश अ ४भाष्य गा ६० टी. सूक्ष्म बादर पुद्गल ४२६ २ २५ दश ४भाष्य गा.६० टी सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थान ८४७ ५ ८२ कर्म भा.२ गा २ सूक्ष्मसम्पराय चारित्र ३१५ १ ३२० ठा ५उ रसू ४२८,अनु सू १४४, विशे.गा १२६०-१२८० सूक्ष्म सूक्ष्म पुद्गल ४२६ २ २५ दश न ४भाष्य गा ६० टी. Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन मन्यमाला A विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण सूत्र की वाचनादेनकेश्वोल ३८२ १ ३६८ ठा. उ ३ सू ४६८ सूत्र के वत्तीस दोष तथा ६६७ ७ २३अनु सृ १५१टी.,विशे.गा.ELEटी , आठ गुण वृपीटिका नि गा २५८-२८७ सूत्र के बारह भेद ७७८ ४ २३५ घृउ.पनि गा.१२२१ १मूत्रधर पुरुप ८४ १६१ ठा ३उ ३सू १६६ मुत्र पढ़ने के बत्तीस अस्वा-६६८ ७ २८ टा सृ २८४,७१४, प्रव द्वा. ध्याय २६८गा १४५०-१४७१,न्यव. भा उनि .गा २६६-३१६, थाव ह य ४निगा.१३२१-६ . मृत्रपटाने की मर्यादा और५१४ २ २४३ ठा ५७ १यू ३८६,ठा ७यू ५४४, दीक्षा पर्याय व्यव भा उ १०% २१-३५ मूत्र बत्तीस ६६६ ७ २१ मृत्र रुचि ६६३ ३ ३६३ उन अ २८ गा २१ मुत्र शून धर्म १६ १ १५ ठा.२७ १स ७२ मृत्र मीखने के पाँच स्थान३८३ १ ३६६ ठा ५3 3.८ मूत्र सुनने के सात घोल ५०६ २ २३४ विशे. गा ५६५ • मूत्र स्थविर ४११६६ टा 33 अ.१४६ मूत्रागम ८ ३१ ६० यनु म १४४ मृयगडांगमूत्र के ग्यारहवें १८५७ १३६ स्मृय भ.११ मार्गाध्ययनकी गाथाएं मृयगडांग मूत्र के चौथेअ०६६३ ७ ८ मय म ४ २१ प्रथम उ० की ३१ गाथाएं मुत्र को धारगा करने वाला शाप पाटर पुम्प मृत्रधर कहलाता है। २माग और नमायाग सून के माता सातु सत्रम्यानर यदलाते हैं । Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, पाठवा भाग ३३१ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण सूयगडांग स्त्र के चौदहवें १४६ ६ २३० सूय अ १४ अध्ययनकी २७ गाथाएं सूयगडांग सूत्र के तेईस १२४ ६ १७३ अध्ययनों के नाम सयगडांगसूत्र के दसवें ६३२ ६ १६७ सूय अ १० समाधि अ०की २४गाथाएं सूयगडांगसूत्र के दूसरे अ०६७४ ७ ५६ सूय अ २उ २ कैदूसरे उ० की३२गाथाएं सयगडांग सूत्र केन-धर्मा-६८१ ७ ८७ सूय मह ध्येयन की छत्तीस गाथाएं सयगडांग सत्र के पाँचवें ६४१ ६ २१६ सूय अउ २ नरयविभत्ति के दूसरे उद्देशे की पचीस गाथाएं सयगडांग सत्र के पाँचवें ६४७ ६ २३६ सूय अ ५२ १ नरयविभत्ति अ०के पहले उ०की सत्ताईस गाथाएं सूयगडांगसत्र के प्रथमद्वितीय७७६ ४ ७६ दोनों श्रुतस्कन्धों के तेईस अध्ययनों का विषय वर्णन सूयगडांगसूत्र के वीरस्तुति:५५ ६ २६६ सूय अ६ अध्ययन कीउनतीस गाथाएं सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रकेवीसमाभृतों७७७ ४ २३० का संक्षिप्त विषय वर्णन सेठ (कालसेठ) की पारि-६१५ ६ ७८ न.मू २७ गा ७० प्राव ह गा ६ ४६ णामिकी बुद्धि की कथा Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन मन्यमाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण सेवार्तक (वह) संहनन ४७० २ ७० पन.प २३ सू.२६३, ठा.६७.३ सू ४६४,कर्म मा.गा.३६ 1 सैंतालीसदोपाहारके १००० ७ २६५ पिनि.गा.६६६ सेंतीसगाथाए उत्तराध्ययनह८४ ७ १३३ उत्त.प्र.१० मूत्र के दसवें अध्ययन की २ सोपक्रम प्रायु ३० १ २१ तत्वार्थ अध्या.२सू ५२,भ.श, २० उ.१•स ६८५ : सोपक्रम कर्म २७ १ १६ विभ ३सू २० टी. सोलह उत्पादनादोप ८६६ ५ १६४ (प्रवद्धा ६७गा.५६५-५६८, धअधि.३लो २२टी १३८, सोलह उद्गम दोप ८६५ ५ १६१ पिंनि गा.४०८,४०६,६२, १३,पि वि.गा ५८,५६,३४, __पचा.१३गा.१८-१६,५-६ सोलहगाथाएंउत्तराध्ययन८६२ ५ १५२ उत्त.प्र.१५ सूत्रकेपन्द्रहवें अध्ययन की मोलहगाथाएंदशकालिक-६१ ५ १४७ दरा, चु.२ मूत्र की दूसरीचूलिका की सोलहगाथाएंबहुश्रुतसाधु ८६३ ५ १५५ उत्तम.११गा.१५.३० की उपमा की सोलहगाथाएं भगवान्महा-८७४ ५ १८२ प्राचाय उ वीर की वसतिविषयक सोलहगुणदीक्षालेनेवालेश६४ ५ १५८ धमधि.३ श्लो ७३-७८, सोलह नाम मेरु पर्वत के ८७० ५ १७२ सम.१६, अं.वन.४म.१० सोलह भंग याभवआदिके-६८ ५ १६८ भ.ग.१६३४ पृ.६५४ १पृष्ट ३२१ की रिणगी देगो। २ जो प्रायु परी भोगे गिना घायु टूटने के मात फारगों में में मिगी कारण से असमय में ही टूट जाय! ३ जिस कर्म का फल उपदेना मादि सेशान हो जाय। Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह,पाठवा भाग विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण सोलह भेद वचन के ८६६ ५ १७० पनप ११सू १७३, माचा श्रु २ चू १८ १३३१ सोलह महायुग्म ८७१ ५ १७२ भश ३५उ १ सू ८५५ सोलह विशेषणद्रव्यावश्यकके८७२५ १७६ अनु सू १३, विशे गा८५१-५७ सोलह सतियां ८७५ ५ १८५- ठाउ ३सू ६९ १टी झा अ १६, ३७५ त्रिष पर्व १,२,७,८,१०,पचा १६गा ३१,चन्दन ,राज ,भरत गा८-१०, आवह सोलह सतियों के लिये ८७६ ५ ३७५ प्रमाण भूत शास्त्र सोलहस्थान(ग्रामादि)साध८६७ ५ १६६ वृ उ १सू ६ के लिये कल्पनीय हैं सोलह स्वम चन्द्रगसराजा ८७३ ५ १७८ व्यव चू हस्तलिखित के और उनका फल सौधर्म देवलोक का वर्णन ८०८४ ३१६ पनप २ सू.५२ सौर्यदत्त की कथा ६१०६ ४६ विश्र८ १ स्कन्ध बीज ४६६ २ ६६ दश अ४ स्तनितकुमारकेदसअधिपति७४० ३ ४२० भ श.३३ ८सू. १६६ स्तम्भ की कथा औत्पतिकी:४६ ६ २६६ नंसू २७ गा ६३ टी. बुद्धि पर २ स्तिबुकसंकेत पञ्चक्रवाण५८६ ३ ४३ प्राव इअ६गा १५७८, प्रवद्वा । स्तूप की कथा पारिणा- ११५६ ११७ उत्त (क) १गा ३टी,निर.,न. मिकी बुद्धि पर सू २७गा ७४,भाव ह गा ३५१ १ जिस वनस्पति का स्कन्ध भाग वीज का काम देता है, जैसे शलकी भादि । २ पचक्खाण करने में एक तरह का सकेत, पानी रखने के स्थान पर पड़ी हुई धूद जव तक सूख न जाय अथवा जव तक भोस की बूदे न सूखे तब तक का पचखाण। Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मंठिया जैन ग्रन्थमाला विषय घोल भाग पृष्ठ प्रमाण स्तोक ५५१ २ २६३ वन.२ स.१८ म्न्यानगृद्धिनिद्रा ४१४ १४४३ पन ५.२,कर्म भा.१गा.११-१२ स्त्री कथा के चार भेद १४६ १ १०७ ठा। 3 २ १ २८२ टी. स्त्रीका से होनेवाली हानि १४१ १ १०८ ठाउ २८ २८२ टी. स्त्री की कथा औत्पत्तिकी ६४६ ६ २६८ न.२.२७गा. टी. बुद्धि पर स्त्री के गर्भ में जीव उत्कृष्ट ११८६ १४१ भाग २उ ५ स्मृ १० १, प्रा. कितने काल तक रहता है? २४१-२८० गा १९६० स्त्रीनीर्थकर आश्चय ६८१ ३ २७८ टा १०३ २७७७,प्रव द्वा.१३८ स्त्रीलिंग सिद्ध ८४६ ५ ११६ पनप १म. बी वंद ६८ १४६ वृउ ४, कर्म भा १गा २२ स्थण्डिल के चार भांगे १८२ १ १३७ उन २८ गा.१६ स्थण्डिल के दस विशेपण ६७६ : २६४ उत्त प.२८ गा.१६-१८ स्थलचर ४०६ १४३६पन्न १.१ नथ.३६गा.१७० स्थविर कल्प का क्रम ५२२ २ २५१ विगं गा. स्थविरकल्प कं१२विशेषणः०६४ ३१४ ध. वि ३६६ स्थविर कल्पस्थिति ४४३ २ ४७ टाट ४५.२०६८ा ६ ३ ३ स ५३०, बृ. (जी) उ६ स्वविकल्पीयथालन्दिक ५२२ २ २६० विगे गा स्थविरकल्पी माधुओं के ८३३ ५ २८ पच व गा ७७३-७७६ लिये१४प्रकार के उपकरण स्थविर तीन ६१ १ ६६ टा ३३.३१.१४६ स्थावर दम ६६०३२३२ ठा.१०३ ३१७६१ स्थविर पदवी ५१३ २ २४० ठा.उ ३ स. १७. टी पचत्र गा७७१-७७६ Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, पाठवाँ भाग ३३५ विषय "वोल भाग पृष्ठ प्रमाण स्थान तेईस साधु के उतरनेह२३ ६ १७० प्राचाश्रु २चू १.२उ २ योग्य तथा अयोग्य स्थान परिहरणोपघात ६६८ ३ २५६ ठा १०३ ३सू ७३८ १ स्थानातिग ३५७ १ ३७१ ठा ५३ १सू ३६६ स्थापन दोष ८६५ ५ १६२ प्रब द्वा ६७गा ५६५,ध अधि ३ ग्लो २ -टी पृ३८,पि नि गा६२, पि विगा ३, पचा १३ गा५ स्थापना अनन्तक ४१७ १ ४४१ ठा ५उ ३सू ४६२ स्थापना कर्म ७६० ३४४१ प्राचा भ २उ १ निगा १८३ स्थापना दोष ३४७ १ ३५६ प्राव ह अ ३नि गा ११०७ पृ. ५१७,प्रव द्वा २ गा १०६ स्थापना निक्षेप २०६ ११८७ अनु स १५०,न्यायप्र अध्या ६ स्थापनानुपूर्वी ७१७ ३ ३६० अनु स् ७१ स्थापनानुयोग ५२६ २ २६,२ विशे गा १३६० स्थापनाप्रमाणनामके भेद७१६ ३ ४०० अनुसू १३० गा ८५ . स्थापनार्य ७८५ ४ २६६ वृ उ पनि गा ३२६३ २ स्थापना सत्य ६६८ ३ ३६६ ठा १०सू ७४१,पन्न प ११ सृ १६५,ध प्रधि ३श्लो ४११ १२१ स्थापिता पारोपणा ३२६ १ ३३५ ठा ५उ २ सू ४३३ स्थावर ८ १५ ठा २उ ४ सू १०१ स्थावरकाय पाँच ४१२ १ ४३७ ठा.५उ १सृ ३६३ १ अतिशय रूप मे स्थान अर्थात् कायोत्सर्ग वरने वाला साधु । २ सय या विसदृश प्राकार वाली वस्तु में किसी की स्थापना करके उसे उस नाम से कहना स्थापना सत्य है । जैसे शतरज के मोहरों को हाथी घोड़ा श्रादि कहना भयवा 'क' इस प्राकार विशेप को 'क' कहना । Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री गठिया जैन मन्यमाना विषय घोल भाग पृष्ठ प्रमाण स्तोक ५५१ २ २६ ज.वक्ष. सू.१८ स्त्यानगृद्धि निद्रा ४१६ १ ४४३ पन्न १२३,रम भा १गा.११-१२ स्त्री कथा के चार भेद १४६ १ १०७ टा ४३ २ १ २८२ टी. स्त्रीकथा संहानवाली हानि१४६ १ १०८ या ४३ २ सू २८२ टी. स्त्री की कथा गोत्पत्तिकी ६४६ ६२६८ नम.२ ७गा ६६ टी बुद्धि पर स्त्री के गर्भ में जीव उत्कृष्ट ६१८ ६ १४१ भश २उ.४ सू १ ० १, प्रर द्वा. कितने काल तक रहता है? २४१-२४२ गा १३६० स्त्रीतीर्थकर आश्चर्य ६८१ ३ २७८ टा.१०३ २७७७,प्रब द्वा.१३८ स्त्रीलिंग सिद्ध ८४६ ५ ११६ पनप १म.. सी वंद ६८ १ ४६ वृउ ४, कर्म गा गा २३ धण्डिल के चार भांगे १८२ १ १३७ उन २४ गा.१६ स्थण्डिल के दस विशेपण ६७६ ३ २६४ उत्तम २४ गा १६.१८ स्थलचर ४०६ १४३६पन १ ११.३२,उन थ६ गा.१७० रथविर कल्पका क्रम ५२२ २ २५१ शिं गा. स्थविकल्प के १२विशेपण८८६ ४ ३१४ व वि स ३६६ स्थविर कल्पस्थिति ४४३ २४७ ठा३ ४११००६,ठा ६३ म ५३०, (जी) ३.६ स्थविरकल्पीयथालन्दिक ५२२ २ २६० मिग गा..। स्थविरकल्पी साधूत्रों के ८३३ ५ २८ पंच व गा ७७ १.७.६ लिये१४मकार के उपकरण विर तीन ६१ १६६ टाउ.३१ १४६ स्थविर दम ६६०३ २३२ टा 103३१७६१ स्थविर पदवी ५१३ २ २४० टा उ.३ म १७. टी. Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, आठवाँ भाग ३३५ विषय "बोल भाग पृष्ठ प्रमाण स्थान तेईस साधु के उतरनेह२३ ६ १७० प्राचा श्रु.२चू १अ २उ २ योग्य तथा अयोग्य स्थान परिहरणोपघात ६६८ ३ २५६ ठा १०उ ३सू ७३८ १ स्थानातिग ३५७ १ ३७१ ठा ५उ १सू ३६६ स्थापन दोष ८६५ ५ १६२ प्रत्र द्वा ६७गा ५६५,ध अधि ३ प्रलो २२टी पृ३८,पि नि गा ६२, पि विगा ३, पचा १३ गा५ स्थापना अनन्तक ४१७ १ ४४१ ठा ५उ ३सू.४६२ स्थापना कर्म ७६० ३ ४४१ प्राचा भ २उ १ निगा १८३ स्थापना दोष ३४७ १३५६ प्राव ह अ ३नि गा ११०७ पृ. ५१७,प्रवद्धा २ गा १०६ म्थापना निक्षेप २०६ १ १८७ अनु स १५०,न्यायप्र श्रध्या ६ स्थापनानुपूर्वी ७१७ ३ ३६० अनु सू ७१ स्थापनानुयोग ५२६ २ २६,२ विशे गा १३९० स्थापनाप्रमाणनामके भेद७१६ ३ ४०० अनुसू १३० गा ८५ . स्थापनार्य ७८५ ४ २६६ वृ उ पनि गा ३२६३ २ स्थापना सत्य ६९८ ३ ३६६ ठा १०सू ७४१,पन्न प ११ स १६५,ध भधि ३श्लो ४११ १२१ स्थापिता यारोपणा ३२६ १ ३३५ ठा ५उ २ सू ४३३ स्थावर ८ १५ ठा २उ ४ सू १०१ स्थावरकाय पाँच ४१२ १ ४३७ टा ५उ १सू ३६३ १ अतिशय रूप से स्थान अर्थात् कायोत्सर्ग करने वाला साधु । २ सदृश या विसदृश प्राकार वाली वस्तु में किपी की स्थापना करके उसे उस नाम से कहना स्थापना सत्य है । जैसे शतरज के मोहरों को हाथी घोड़ा श्रादि कहना अथवा 'क' इस प्राकार विशेष को 'क' कहना। Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन प्राथमाला विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण स्थावरजीवोंकीअवगाहना ६६५ ७ २५२ भश १६उ ३ सू.६५१ के अन्प बहुत्ल के४४ चोल स्थिति पाठ कर्मों की ५६० ३ ५६- पनप २३ सू २६४, तत्त्वार्थ ८२ मध्या ८, उत्त अ ३३ स्थिति की व्याख्याऔरभेद३१ १ २१ ठा २उ ३ सू ८५ स्थिति घात ८४७ ५ ७८ कर्म भा २गा.२ स्थिति नाम निधत्तायु ४७३ २ ७६ भश ६उसू २५०,ठा.६सू ४३ स्थिति नारकी जीवों की ५६० २३१६ जी प्रति. सू ६० टी ,प्रवद्ध १७५ गा.१०७५-१०७६ स्थिति प्रतिघात ४१६ १ ४४० ठा १३ १ सू ४०६ स्थिति बन्ध २४७ १ २३२ ठा.४सू २६६,कर्म भा १गा : स्थिरीकरण दर्शनाचार ५६६ ३ ८ पनप १सू ३७गा १२८,उत्त म २६गा ३१ स्थूल अदत्तादानका त्याग ३०० १ २८६ | श्राव ह य ६१८१७-८२६ स्थलअसत्य(मृघा)कात्याग३०० १ २८८ { ठा ५३ १सू ३८६, उपा अ स्थलमाणातिपातकात्याग ३०० १ २८८ । सू६,ध अधि २लो २०१६ स्थूलभद्र की पारिणामिकीह१५ ६ ६५ प्राव ह गा.६५०, पू २७गा " चुद्धि की कथा स्नातक ३६६ १ ३८२ ठाउ ३स, ४४५,भग.२ स्नानक के पाँच भेद ३७१ १ ३८६ | उ ६ मू.७५१. स्पशे आठ ५९७३ १०८ या ८उ ३.५६६, पन्न प २ स्पर्श नारकी जीवों का ५६० २ ३३६ जी प्रति ३ सृ.८७ स्पर्शनेन्द्रिय ३९२१ ४१६ पन प.१४उ.११ १६ १,ठा, ३.३ १४३, जै प्र. SHMA Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवाँ भाग ३३६ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाणा हरिकेशीमुनि(संवरभावना)८१२ ४ ३८६ उत्त प्र १२ हरिवंश कुलोत्पत्तिाश्चर्य ६८१ ३ २८४ ठा १०उ ३ सू ७७७, प्रव द्वा १३८ गा८८६ हस्ति शुण्डिका ३५८ १ ३७२ ठासू ३६६टी ,ठा ५सू ४०० हाड़ाहड़ा आरोपणा ३२६ १ ३३५ ठा ५उ २सू ४३३ हानि छः प्रकार की ४२५ २ २४ भागम हायणी अवस्था ६७८ ३ २६८ ठा १० उ ३सू ७७२ हासनिःसृत असत्य ७०० ३ ३७२ ठा १०सू ४४१, पन प.११सू १६५,ध अधि ३श्लो ४११ १२२ हास्य कीउत्पत्ति के४स्थान२५७ १ २४३ ठा ४ उ.१ सू २६६ हास्य रस ६३६ ३ २१० अनु सू १२६गा ७६-७७ हास्योत्पादन ४०२१ ४२६ उत्त.अ ३६गा २६१,प्रव द्वा ७३ हिंसा का स्वरूप ४६७ २ १६० हिंसा के छःकारण ४६१ २ ६३ प्राचा श्रु १५ १उ १सू ११ हीयमान अवधिज्ञान ४२८ २ २८ ठा ६उ ३सू ५२६,न सू १३ हीलित वचन ४५१ २ ६२ ठा ६उ ३सू ५२५,प्रव द्वा २३५ गा १३२१, वृ (जी )उ ६ हंडक संस्थान ४६८ २६८ ठा ६सू ४६५,कर्म भा १गा ४० ४२ १ २७ रत्ना परि.३ सू ११ ३८० १ ३६७ रत्ना परि ३ सू ११ हेतुअविरुद्धानुपलब्धि के ५५६ २ २६८ रत्ना परि ३सू६४-१०२ सात भेद हेतु अविरुद्धोपलब्धि के ४६५ २ १०४ रत्ना परि ३सू.६८-८२ छः भेद ८ 10thoc -- Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन प्रन्यमाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण हेतु दोष ७२२ ३ ४.४ ठा १०३ :७४३ हेतु विरुद्रापलब्धिके भेद५५५ २ २६६ रत्ना परि ३५८३-६२ हस्व संस्थान ५५२ २ २६३ टा ११ १७,ठा ७उ ३मृ ५४८ न्यूनाधिकमशुद्ध वा, यहा स्याहीप्रमादितम् । दुष्कृतं तस्य मिथ्याऽस्तु. क्षन्तव्यं तच ज्ञानिभिः॥ भावार्थ-श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह के सात भागों में तथा उनके चिपयानुक्रममूचक इस आठवें भाग में बुद्धि प्रमाद से जो न्यून, अधिक अथवा अशुद्ध लिखा गया हो उससे होने वाला पाप निप्फल हो एवं ज्ञानी पुरुष उसके लिये क्षमा करें। अन्तिम मंगल कामना क्षेमं सर्वप्रजानां प्रभवतु बलवान् धार्मिको भूमिपालः । काले काले च वृष्टिवितरतुमघवा व्याधयोयान्तुनाशम्।। दुर्भिक्षं चौरमारी क्षणमपि जगतां मास्म भूज्जीवलोके । जैनेन्द्र धर्मचक्रं प्रसरतु सततं सर्वसौख्यप्रदायि ।। ___ भावार्थ-सकल प्रजाजनों का कल्याण हो,राजा बलवान् और धर्मात्मा हो, वृष्टि यथासमय हया करे, सभी रोग नष्ट हो जायें, दुभित(दुष्काल), चोरी और महामारी आदि दुःश्व ससार में कभी किमी भी प्राणी को न सतावे और रागदपक विजेता श्रीजिनेश्वर देव द्वारा प्रतिन, मर्व मुग्वों को देने वाले धर्मचक्र का सदा सर्वत्र विस्तार दी। शान्ति ! शान्ति ! शान्ति !!! Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवाँ भाग विषय स्पर्श परिणाम स्मृति स्याद्वाद खदार सन्तोष व्रत बोल भाग पृष्ठ प्रमाण ७५० ३ ४३४ टा १०उ ३७१३, पन्न.प १३ ३७६ १ ३६५ रत्ना. परि. ३ सू ३ ४६७ २ १७६,२११ ३०० १ २८६ र ६८२२, हा ५३ १ स्वदार सन्तोष व्रत के पाँच ३०४१ २६८ उपा.अ १सू ७ टी. प्रतिचार स्वयं बुद्ध सिद्ध सू३८६, उपा. १ सू. ६, ध. श्रधि २ श्लो २८ ६६ स्व द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावकी ४२४२१२ अपेक्षा छ: द्रव्यों का वर्णन स्वद्रव्यादि की चौभंगी ४२४ २ १२ जीवादि द्रव्यों में स्वप्न के नौ निमित्त स्वप्न१४मोक्षगामी आत्माके८२६ ५२० स्वप्न (महास्वप्न) १४तीर्थङ्कर - ३० चक्रवर्ती के जन्म सूचक स्वम दर्शन के पाँच भेद ४२११४४४ स्वप्न दस भगवान् महावीर६५७ ३ २२४ के और उनका फल स्वम सोलह चंद्रगुप्त राना ८७३ ५ १७८ व्यव च हस्तलिखित उ ३ ७४० के और उनका फल स्वभाव ३३७ आगम. आगम. ६३८ ३ २०६ विशे गा १७०३ भ.श १६ उ ६ सू५८० ५२२ भश १६ ६ ५७८ज्ञा भ ८ सृ ६५, कल्पसू ४ भश. १६ उ ६ ५७७ भश. १६उ ६ सू ४७६ टा १० २७६ १२५७ श्रागम, कारगा, सम्मति भा ५ काण्ड ३ गा ५३ ८४६ ५ ११७ पन्न प १ सृ७ Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन मन्यमाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण स्वयंवुद्ध सिद्धारप्रत्येक 840 5 118 पन.प.१सू-७टी. बुद्ध सिद्ध का अन्तर * स्वर सात 540 2 270 } स्वरा का फल 5403 2172 / अनु सू १२५,गा 25-46. टाउ.३सू.५५३ स्वरों के उत्पत्ति स्थान 540 2 271 / स्वर्ग के तीन ग्राम 540 2 273 / अनु.स. 127 गा.२६.४२, स्वरोंके तीनग्रामकीमुर्छना५४० 2 273 ठाउ ३सू ५४३,संगीत. स्वलिग सिद्ध 846 5 116 पन प.१.सू.५ स्वरचननिराकृतवस्तुदोप७२३ 3 411 ठा १०उ ३सू७४३ टी. स्व वचन निराकृत साध्य-५४६ 2 261 रत्ना.परि दस.४५ धर्म विशेषण पक्षाभास स्वाध्याय 478 2 6 व .२०,उत्त.य.३०गा.३०, श्व द्वा.६गा २७१,टा इस१११ स्वाध्याय का दृष्टान्त काल 780 4 210 भाव ह.नि.गा १३३,३.पीटिका अननुयोग पर नि गा.११ स्वाध्याय की व्याख्या,भेद३८१ 1 398 या ५उ ३स.१६५ स्वाध्याय के पॉच भेद 633 3 115 उब सू 20, 22 मः स्वापनी अवस्था 678 3 268 ठा.१० 3.1.772 स्वाभाविक गण 551 33 द्रव्य त सध्या.१२ग्लो 8 स्वार्थानुमान 376 1 366 रत्ना.परि.३ सू.१० स्वास्तिकी (साहथिया) 264 1 276 टा.२ 3 १सू 60, ठा 53.2 क्रिया सु४५६ स्वद संत पवावा Y 43 भाव इ.भ.६ नि गा.१५७८, प्रयद्वा ४गा.१०. / मुनामों के सम्बन्ध में पृष्ठ 261 पर टिप्पणी देखो। Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संमह, पाठवाँ भाग 326 विषय . पोल भाग पृष्ठ प्रमाण सुवासव कुमार की कथा 410 6 58 वि.१४ . मुश्रामण्यता - 763 3 446 का १०उ 38.758 र मुषमदुषमा भास अचस-४३० 2 39 जं. वक्ष 2 सू 27-33, ठा 6. पिणी का उR सू 42 सुषम दुषमा आरा उत्स- 431 2 37 संवत 2 सू.३५-४०, ठा पिणी कर *उ.३ सू 462 सुषम सुषमा श्रारा मक- 420 2 30 ज.वक्ष 2 सू 19-26, अ६ सर्पिणी का उ 3 सू 462 सुषम सुपमा आरा उत्स-४३१ 2 38 ज वक्ष २सू 37-40, ला६ पिणी का उदेसू 462 मुषमाआमवसर्पिणीका४३० 2 3.0 जवक्ष.२८.२६,ठा.६ सू.४८ 1 सुषमा आरा उत्सर्पिणी का४३१ 2 38 जवक्ष.२सू.३७-४०,ठा ६सू 462 सुषमाकाल जाननेक स्थान५३५ 2 266 [ 73.3 सू.५५६ . . सूक्ष्म 815 ठा.२ 2.1 सू.५३ सूक्ष्म क्रिया अनिवर्ती 225 1210 प्राव.इ अ 4 ध्यानशत्तक गा. शुक्ल ध्यान ८१,ठा.४उ.१सू.२४७, ज्ञान, प्रक.४२,क भा.२ श्लो 216 सूक्ष्म जीव पाड 611 3 128 दश.अ गा १५,ठा.सू 615 सूक्ष्म दस 746 3 423 ठा.१० उ.३ सू.७१६ / / सूक्ष्म पुद्गल 426 2 25 दश प्रभाष्य गा 60 टी सूक्ष्म बादर पुद्गल 426 2 25 दशम ४भाष्य गा.६. टी. सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थान 847 5 82 कर्म भा 2 -2 सूक्ष्मसम्पाय चारित्र 315 1 320 ठाउ रसू 428, अनु सू 144, विशे गा 1260-1280 सूक्ष्म सूक्ष्म पुगल 426 2 25 दश ग्र,भाष्य गा ६०टी. Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन मन्यमाला विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण सूत्र की वाचनादेनकेचोल३८२ 1 398 टा 5 उ 3 सू 468 मूत्र के बत्तीस दोप तथा 667 7 २३अनु मृ 14 १टी.,विशे.गा.६६Eटी., आठ गुण वृ.पीठिका नि गा 258-285 मूत्र के बारह भेद 778 4 235 वृउ.१नि गा 1221 1 मूत्रधर पुरुप 84 161 ठा ३उ स 166 मुत्र पढ़ने के बत्तीस अस्वा-६६८ 7 28 टा म 284,714, प्रव. द्वा ध्याय २६८गा १४५०-१४७१,न्यव. भा उनि गा 266-316, मावर प.४निगा 1321-6 . मृत्रपढाने की मर्यादा और५१४ 2 243 ठा 53 1 ३६E,टा ७मृ 544, दीक्षा पर्याय व्यव मा र 108 21-35 मूत्र वत्तीय 666 7 21 मूत्र रुचि 663 3 363 उत्त अ 28 गा 21 मूत्र श्रुन धर्म 16 1 15 ठा 23.11.50 मृत्र सीखने के पॉच स्थान३८३ 1 366 ठा.४३ 3 468 मृत्र सुनने के सात घोल 506 2 234 विशे गा 565 * मूत्र स्थविर ह१ 166 ठाउ.पृ.१४६ मूत्रागम 83 160 अनुस् 144 मुयगडांगमूत्र के ग्यारहवं ह८५ 7 136 मृय भ.११ मार्गाध्ययनकी३८गाथाएं मृयगडांग मृत्र के चौथे अ०६६३ 7 8 सय अ.४ उ / प्रथम उ० की 31 गाथाएं पन यो धारमा करने वाला नाम पाटक. पुरुष सूत्रधर यदलाता है। २८riग मार गमरायांग सूत्र के माता गायु स्त्रग्यावर कहलाते हैं। Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाग 331 श्री जैन सिद्धान्त चोल संग्रह, पाठवा भाग ~~~~~~~~~~~~~~~~ ~~~~ ~~ ~~ ~~~~ सूयगडांग सूत्र के चौदहवें 646 6 230 सूय भ 14 अध्ययनकी 27 गाथाएं सूयगडांग सूत्र के तेईस ह२४ 6 173 अध्ययनों के नाम सयगडांगसूत्र के दसवें 132 6 167 सूय अ 10 समाधि अ०की २४गाथाएं सूयगडांगसूत्र के दूसरे अ०६७४ 7 56 सूय अ २उ 2 केदूसरे उ० की३२गाथाएं सयगडांगसूत्र केन।धर्मा-६८१ 7 87 सय प्रह ध्येयन की छत्तीस गाथाएं सूयगडांग सूत्र के पाँचवें 641 6 216 सूय अ५उ 2 नरयविभत्ति के दसरे उद्देशे की पचीस गाथाएं सयगडांग सत्र के पाँचवें 647 6 236 सूय प्र ५उ 1 नरयविभत्ति अ०के पहले उ०की सत्ताईस गाथाएं सूयगडांगसत्र के प्रथम द्वितीय७७६ 4 76 दोनों श्रुतस्कन्धों के तेईस अध्ययनों का विषय वर्णन सूयगडांगसूत्र के वीरस्तुतिह५५ 6 266 सूय म 6 अध्ययन कीउनतीस गाथाएं सर्यप्रज्ञप्तिसूत्रकेवीसमाभृतों७७७ 4 230 का संक्षिप्त विषय वर्णन सेठ (कालसेठ) की पारि-६१५ 6 78 न सू 27 गा ७२,प्राव ह गा 6 46 णामिकी बुद्धि की कथा Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन पन्थमाला विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण सेवाक (वह) संहनन 470 270 पनप 23 मृ.२१३, टा.६७.५ सू४६४,कर्म भा.गा.३६ संतालीसदोषाहारके 1000 7265 पिनि.गा 666 सेंतीसगाधाए उत्तराध्ययनह८४ 7 133 उत्त... मूत्र के दमवें अध्ययन की 1 सापक्रम आयु 30 121 तत्वार्थ प्रध्या २सू.५२,म.रा. 20 उ.१•सृ.६८५ : मोपक्रम कर्म 27 116 विभ ३सू. 20 टी. मोलह उत्पादनादोप 866 5 164 (प्रवदा ६७गा.५६५-५६८, ध.अधि:लो २२टी 38, सोलह उद्गम दोप 865 5 161 / पि.नि गा 408,4.6, 2, पिरिगा५८,५६,३.४, पंचा १३गा.१८-१६-६ सोलहगाथाएंउत्तराध्ययन८६२ 5 152 उन भ.१५ मूत्रकेपन्द्रहवें अध्ययन की सोलहगाथाएंदशकालिक-६१ 5 147 दा. च२ मूत्र की दूसरी चूलिका की सोलहगाथाएंबहुश्रुतमाधु 863 5 155 उत्तय ११गा.५५.३० की उपमा की सोलहगाथाएं भगवान महा-८७४ 5 182 भाचा म उ 2 वीर फी वसतिविषयक सोलहगुणदीक्षालेनेवालक-६४ 5 158 धमधि.: ग्लो.५३-७८' मोलह नाम मेरु पर्वत के 870 5 171 सम.१६, अ.वन.अनु.१०६ सोलह भंग आभवमादिक-६८५ 168 भग.१६ 3.4 8.654 12:21 की रिपो देगी / 2 जो प्रायु पी भोग विना प्रायु टने में सात / झारगों में में दिमी कारगा में मममय में ही टूट जाय। जिस फर्म का फल उपदेश मादि मेमांत हो जाय। 5 त्तश्र१५गा.११.३. Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह,पाठवा भाग विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण सोलह भेद वचन के 866 5 170 पनप ११सू 173, माचा [2 चू १२.१३उ 1 / सोलह महायुग्म 871 5 172 भ श ३५उ 1 सू 855 सोलहविशेषणद्रव्यावश्यक के८७२५ 176 अनु सू 13, विशे गा८५१-५७ सोलह सतियां 875 5 185- ठाउ ३सू 6 6 १टी ज्ञा प्र 16, 375 विष पर्व १,२,७,८,१०,पचा 16 गा ३१,चन्दन ,राज ,भरत. गा८-१०, प्राव. सोलह सतियों के लिये 876 5 375 प्रमाण भूत शास्त्र सोलहस्थान(ग्रामादि)साध८६७ 5 166 बृ उ 18 6 के लिये कल्पनीय हैं सोलह स्वम चन्द्रगप्तराजा८७३ 5 178 व्यव चू हस्तलिखित के और उनका फल सौधर्म देवलोक का वर्णन 808 4 316 पनप 2 सू.५२ सौर्यदत्त की कथा 610 6 46 विन 1 स्कन्ध बीज 466 266 दश 4 स्तनितकुमारकेदसअधिपति७४०३४२० भ श 32 ८सू.१६६ स्तम्भ की कथा श्रौत्पतिकी६४६ 6 266 नसू 27 गा 63 टी बुद्धि पर 2 स्तिबुकसंकेत पञ्चक्रवाण५८६ 3 43 श्राव हम गा.१५७८, प्रवद्धा 4 स्तूप की कथा पारिणा- 6156 117 उत्त (क)म १गा ३टी,निर ,न. मिकी बुद्धि पर सू २७गा ७४,प्राव ह.गा 151 1 जिस वनस्पति का स्कन्ध भाग वीज का काम देता है, जैसे शल्लकी भादि।। 2 पचक्खाण करने में एक तरह का सकेत, पानी रखने के स्थान पर पडी हुई। बूदें जब तक सूख न जाय अथवा जब तक भोस की बूदें न सूखे तब तक का पच्चक्खाण। Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मेटिया जैन प्रथमाला _ विषय घोल भाग पृष्ठ प्रमाण स्तीक 551 2 26 ज.वन. सृ 18 स्न्यानगृद्धिनिद्रा 416 1 443 पन १२ः,कर्म भा गा 11-10 स्त्री कथा के चार भेद 146 1 107 या 43 2 1 282 टी स्त्रीकथा से होनेवाली हानि१४६ 1 108 ठाउ.पू 282 टी. स्त्री की कथा औत्पत्तिकी 646 6 268 नं २७गा.६३ टी बुद्धि पर स्त्री के गर्भ में जीव उत्कृष्ट 618 6 141 भाग २उ 4 सू : 0 1, प्ररद्धा. कितने काल तक रहता है? 41242 गा 1960 स्त्रीनीर्थकर आश्चर्य 681 3 278 ठा 503 3 ५७७,अब दा.१३८ स्त्रीलिंग सिद्ध 846 5 116 पा 1.17 स्त्री वंद 68 146 वृउ 4, फर्म गा गा. स्थाण्डिल के चार भांग 182 1 137 उत्तय 24 गा.१६ स्थण्डिल के दस विशेपण 676 3 264 उत्त.प 28 गा 16.18 स्थलचर 406143610 ११४३२,उत्तम ३६मा 170 स्थविर कल्प का क्रम 522 2 251 विशे. गा. स्थविकल्प के १२विशंपण८०६ 4 314 ध वि स 366 स्थविर कल्पस्थिति 443 247 टा23 07 २०६,टा 63. 160, वृ (नी) उ६ स्वविकल्पीयथालन्दिक 522 2 260 विगे गा 7 स्थावरकल्पी साधुओं के 833 5 28 पंच व गा 371-776 लिय१४मकार के उपकरण स्थविर तीन 11 166 टा 32.3 146 स्थविर दस 66. 3 232 वा 103.3.361 स्थावर पदवी 513 2240 टा: 3.157 टी Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, श्राठवाँ भाग 335 विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण 'स्थान तेईस साधु केउतरनेह२३ 6 170 श्राचा ध्रु.२चू १अ २उ.२ योग्य तथा अयोग्य स्थान परिहरणोपघात 668 3 256 ठा 103 ३सू 738 1 स्थानातिग 357 1 371 ठा ५उ १सू 366 स्थापन दोष 865 5 162 प्रा द्वा ६७गा ५६५,ध अधि 3 लो.२२टी पृ ३८,पि नि गा 62, पि वि गा 3, पचा 13 गा५ स्थापना अनन्तक 417 1 441 ठा ५उ ३सू 462 स्थापना कर्म 760 3 441 प्राचा भ २उ 1 नि गा 183 स्थापना दोष 347 1356 प्राव ह अ ३नि गा 1107 पृ ५१७,प्रवद्धा 2 गा 106 स्थापना निक्षेप 206 1 187 अनुसू १५०,न्यायप्र प्रध्या 6 स्थापनानुपूर्वी 717 3 360 अनु स् 71 स्थापनानुयोग 526 2 262 विशे गा 1360 स्थापनाप्रमाणनामक७भेद७१६ 3 400 अनुसू 130 गा८५ स्थापनार्य 785 4 266 बृ उ पनि गा 3263 2 स्थापना सत्य / 668 3 366 ठा १०सू ७४१,पन्न प 11 सृ १६५,ध मधि ३श्लो 411 121 स्थापिता पारोपणा 326 1 335 ठा 52.2 433 स्थावर 8 15 ठा २उ 4 सू 101 स्थावरकाय पाँच 412 1 437 ठाउ १स 363 -- - - - 1 प्रतिशय रूप से म्यान अर्थात् कायोत्सर्ग करने वाला साधु / 2 सश या विसदृश प्रामार वाली वस्तु में किसी की स्थापना करके उसे उस नाम से कहना स्थापना सत्य है / जैसे शतरज के मोहरों को हाथी घोड़ा प्रादि कहना अथवा 'क' इस प्राकार विशेष को 'क' कहना / Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन प्राथमाला - - विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण स्थावरजीवोंकीअवगाहना 665 7 252 भश. १६उ 3 1651 के भन्प बहुत्व के४४ बोल स्थिति प्राट फाँकी 5603 56- पनप 23 सू 264, तत्त्वार्थ. 82 मध्या८, उत्त भ.३३ स्थिति की व्याख्याऔरभेद३१ 1 21 ठा.२उ 3 सृ 85 स्थिति घात 8 47 5 78 वर्म भा २गा.२ ' स्थिति नाम निधत्तायु 473 2 76 भश उ २५०,ठा ६सू 536 स्थिति नारकी जीवों की 560 2 316 जी प्रति 3 सृ० टी ,प्रव द्वा. 175 गा.१०७५.१०७६ स्थिति प्रतिघात 416 1440 ठा 53 1 सृ००६ स्थिति बन्ध 247 1 232 ठा 41 २६६,कर्म भा १गा ? स्थिरीकरण दर्शनाचार 564 38 पन.प 1सू ३७गा १२८,उत्त म २८गा.३१ स्थूल अदत्तादानका त्याग३०० 1 289 | भाव ह भ 61817-826, स्थलअसत्य(मृपा)कात्याग३०० 1 288 टा.५३.१सू ३८६,उपा थ स्थूलमाणातिपातकात्याग 300 1 288 (1 स्थूलभद्र की पारिणामिकीह१५ 6 65 भाव ह.गा.६५० नं सू २७गा.७३ बुद्धि की कथा स्नातक स्नातक के पाँच भेद 371 1 386) उ.६ पृ.७५१० स्पर्श आठ 567 3 108 ठाउ.३८ ५६६,पन्न प.3 म्पर्श नारकी जीवों का 560 2 336 जी.प्रनि.३ सृ.८५ स्पर्शनेन्द्रिय 362 1 416 पन प.१५.११ 16 १,ठा.. उ.३.४४३, जे प्र 366 1 382 ठाउ.३१.४४५,भ श.२५ Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, श्रावॉ भाग 337 विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण स्पर्श परिणाम 750 3 434 ठा १०उ ३सू ७१३,पन्न प 13 स्मृति 376 1 365 रत्ना.परि.३ सू३ स्याद्वाद / 467 2 176,211 खदार सन्तोष व्रत 300 1 286 प्राव ह अपृ.८२२,काउ सू 386, उपा अ.सू.६,ध. अधि 2 श्लो 2866 खदार सन्तोष व्रत के पाँच 304 1 268 उपा.अ.१सू 7 टी. अतिचार स्व द्रव्य,क्षेत्र,काल,भावकी४२४ 2 12 प्रगम, अपेक्षा छ द्रव्यों का वर्णन स्व द्रव्यादि की चौभंगरी 424 2 12 मागम, जीवादि द्रव्यों में स्वान के नई निमित्त 638 3 206 विशे गा 170 3 स्वप्न१४मोक्षगामीआत्माके८२६ 5 20 भ.श 16 उ.६ सू 580 स्वम(महास्वप्न)१४ तीर्थड्र८३० 5 22 भश १६७.६सू 578 ज्ञा श्र.८ चक्रवर्ती के जन्म सूचक सु ६५,कल्प सू४ स्वप्न दर्शन के पाँच भेद 421 1 444 भश.१६ उ 6 सू. 577 स्वादस भगवान् महावीर६५७ 3 224 भ श.१६उ 6 सू.५७६, ठा 10 / के और उनका फल उ.३सू 750 स्वम सोलह चद्रगुप्त राजा८७३ 5 178 व्यव चू हस्तलिखित के और उनका फल स्वभाव 276 1257 आगम ,कारगा.,सम्मति मा. कागड 3 गा 53 स्वयं बुद्ध सिद्ध 846 5 117 पन्न प १सू. Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मंठिया जैन मन्यमाना विषय वोल भाग पृछ प्रमाण स्वयंबुद्ध सिद्ध और प्रत्येक 840 5 118 पन्न.प.१ षटी. बुद्ध सिद्ध का अन्तर * म्बर मात 540 2 270) म्वगं का फण / अनु स १२७,गा०५-१६ 540 2 272 7.1.413 स्वर्ग के उत्पत्ति स्थान 540 2 271 ) स्वगे तीन ग्राम 540 2 273 / अनु म 127 गा.२६-४२, ४म्बगेरू तीनग्रामसीमूर्खना५४० 2 273 ठाउ अस / ३,संगीत. स्वलिंग सिद्ध 846 5 116 पर प 1] " स्ववचननिराकृतवस्तुदोप७२३ 3 411 टा 103 33743 टो स्व बचन निराकृत नाध्य-५४४ 2 261 रत्ना.परि.४५ धर्म विशेपणा पक्षाभास स्वाध्याय 478 284 व २०,उत्त अगा .30, प्रादागा २.१,ठा.स. 19 रवाध्याय का दृष्टान्तयार 7804 240 प्राव निगा १२३,पीटिका अननुयोग पर नि गा.१७१ म्वाध्याय की व्याख्या,भेद३८१ 1 368 ठा 52 3 46 स्वाध्याय पॉच भेद 633 3 115 उरमू २०,मग 2.43 .802. स्थापनी अवस्था 678 3 268 टा.१० 3.1 772 स्वाभाविक गुण 55 133 द्रव्य न मध्या १२ला 8 म्वाथानुमान 376 1 366 ना.परिम.१० माहस्निफी (साहन्धिया) 264 1 276 ठा, उ 160, ठ।। .6 क्रिया स्मृ.४१६ स्वद संत एचवरवाण 5.313 थाय नि.गा. 7, रद्वा गा.... Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संपह, पाठवाँ भाग 336 विषय - बोल भाग पृष्ठ प्रमाण हरिकेशीमुनि(संवरभावना)८१२ 4 386 उत्त अ 12 हरिवंश कुलोत्पत्तिआश्चर्य 681 3 284 ठा 103 3 सू 777, प्रव द्वा 138 गा८८६ हस्ति शुण्डिका 358 1 372 ठा ५सू ३६६टी ,ठा 58 400 हाहाहड़ा आरोपणा 326 1 335 ठाउ.२सू 433 हानि छः प्रकार की 425 2 24 थानम हायणी अवस्था 678 3 268 ठा 10 उ ३सू 772 हासनिःसृत असत्य 700 3 372 ठा १०सू 441, पन प.११सू १६५,ध अधि ३ग्लो 411 122 हास्य कीउत्पत्ति के४स्थान२५७ 1 243 ठा 4 उ 1 सू 266 हास्य रस 636 3 210 अनु सृ 126 गा 76-77 हास्योत्पादन 4021 426 उत्त.अ ३६गा २६१,प्रत्र द्वा 73 हिंसा का स्वरूप 467 2 160 हिंसा के छःकारण 461 2 63 प्राचा श्रु 17 १उ १सू 11 हीयमान अवविज्ञान 428 2 28 ठा ६उ ३सू ५२६,न सू 13 हीलित वचन 456 262 ठा ६उ ३सू ५२७,प्रब द्वा 235 गा 1321, वृ (जी )उ 6 हंडक संस्थान 468 268 ठा ६सू ४६५,कर्म भा १गा 40 42 1 27 रत्ना परि 3 सृ 11 280 1 367 रत्ना परि 3 सृ 11 हेतुअविरुद्धानुपलब्धि के 556 2 268 रत्ना परि ३सू 64-102 सात भेद हेतु अविरुद्धोपलब्धि के 465 2 104 रत्ना परि ३सू.६८-८२ छः भेद हेतु हेतु Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेठिया जैन प्रन्यमाला - विषय बोल भाग पृष्ट प्रमाण हेतु दोष 722 3 406 ठा 103 ३सू 743 हेतु विरुद्धापलब्धिके७भेद५५५ 2 266 रत्ना परि ३सू 83-62 हस्त्र संस्थान 552 2 263 टा.११ ४७,ठा 73 38 448 न्यूनाधिकमशुद्धं वा, यहा स्याद्वीप्रमादितम् / दुष्कृतं तस्य मिथ्याऽस्तु, क्षन्तव्यं तच ज्ञानिभिः॥ भावार्थ-श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह के सार में तथा उनके विपयानुक्रममूचक इस आठवें भाग में बुद्धि प्रमाद से जो न्यून, अधिक अथवा अशुद्ध लिखा गया हो उससे होने वाला पाप निष्फल हो एवं ज्ञानी पुरुष उमके लिये क्षमा करें। अन्तिम मंगल कामना क्षम सर्वप्रजानां प्रभवतु बलवान् धार्मिको भूमिपालः / काले काले च वृष्टिवितरतु मघवा व्याधयोयान्तु नाशम्।। दुर्भिक्षं चौरमारी क्षणमपि जगतां मास्म भृजीवलोके / जैनेन्द्रं धर्मचक्रं प्रसरतु सततं सर्वसौख्यप्रदायि / / भावार्थ-सकल प्रजाजनों का कल्याण हो,राजा बलवान् और धर्मात्मा हो, दृष्टि यथासमय हुआ करें, सभी रोग नष्ट हो जायें, दभित(दकाल), चोरी यार महामार्ग प्रादि दुःख संसार में कभी किसी भी माणी को न सनाव और रागद्वेप के विजेता श्रीजिनेश्वर दव द्वारा प्रवर्तिन, सवे सृग्वों को देने वाले धर्मचक्र का सदा सर्वत्र विस्तार हो। शान्ति ! शान्ति !! शान्ति !!! 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