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श्री जैन सिद्वान्त बोल संग्रह पाठवा भाग
२०६
विषय
बोल भाग पृष्ठ प्रमाण पॉच असंयम २६७ १ २८३ ठाउ रस ४२६,४३० पाँच अस्तिकाय २७६ १२५३ उत्त. २८गा ७-१२,ठा ५
उ३ सू.४४१ १ पाँच आचार ३२४१३३२ ठा ५उ २सू ४३२, ध श्रधि
३ श्लो ५४ पृ१४० पाँच श्राचार्य ३४१ १ ३५२ ध अधि ३श्लो ४६टी पृ१२८ पॉचआलंबनस्थानधार्मिकके ३३३ १ ३४३ ठा ५७.३ सू.४४७ पाँच आश्व २८६ १२६८ ठाउ २सू.४१८,सम ५ पाँच इन्द्रियाँ ३१२ १४१८ पनप १५सू १६१,टा ५३
सू.४४३टी, जै प्र. पाँच इन्द्रियों का विषय ३६४ १ ४१६ पन्न प १५उ. १सू १६५ परियारण पाँच इन्द्रियों के तेईसविषयह२६ ६ १७५ टा सू.४७,३४०,५६६,पन्न प.
२३.२सू.२६३,प.वोल १२,
तत्वार्थ अध्या २ सू.२१ पाँच इन्द्रियों के संस्थान ३६३ १ ४१६ पनप १५,ठा.५ सू. ४४३टी पाँच कलहस्थान गच्छ में ३४४ १ ३५५ ठा ५उ.१सू. ३६६ आचार्य उपाध्याय के पाँच कल्याणक २७५ १२५३ पचा गा.३०-३१, दशा.द.८ २ पांच कामगुण ३६५ १४२० ठाउ १सू ३० • पांच कारण अवधिज्ञान या३७७ १ ३६२ ठा ५उ १ सू ३६४ अवधिज्ञानीकेचलितहोने के पाँच कारण आचार्य उपा-३४३ १ ३५४ टा.. उ.२ सू.४३६ ध्याय के गण से निकलने के
१ मोक्ष प्राप्ति के लिये किये जाने वाला ज्ञानादि भासदन रूप अनुष्टान विशेष । २ काम अर्थात् प्रभिलाषा को उत्पन करने वाले गुण, शब्दादि ।