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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
भूति कर्म
विपय घोल भाग पृष्ठ प्रमाण भिक्ष की कथा औत्पत्तिकीह४६६ २७६ नं.स.२७गा टी. बुद्धि पर भिन प्रतिमा (पडिमा) ६८६ ३ ३४३ प्रतव्य,८७.५ १ भिन्न पिण्डपातिक ३५५ १ ३७० ठा: १ १ ३६६ १ भुज परिसर्प ४०६ १ ४३६ पन प.१सू ३५,उत.प्र.३६ ३ भूत (जीव) १३. १६८ ठा ५१ ४३०,भग २२.११.८८ भूतग्राम (जीवों)कं१४ भेद ८२५ ५ १७ सम.१४,यात ६५ ४ १६४८
४०४ १४३१ उत्त.म ३६गा २६२,प्रवद्धा.४३ भेद तेईस क्षेत्र परिमाण के १२५ ६ १७३ भनु म १३३, प्रवदा २४४ भेद परिणाम ७५० ३ ४३३ टा १०३.२५१३,पर प.१३ भेद प्रभेद पाठ कमाँ के ५६० ३ ४३ पन्न.प.२३,उत्त.प्र.३३, फर्म.
भा.नस्वार्थ मध्यामाग उE,भ.स.१36,5,विशे.गा।
१६.६.४८तथा १६४२.४५ भंद बयालीस भाव के ह१२ ७ १४६ नव गा.१६ भोग प्रतिघात ४१६ १४४० टा.५८ १ १४०६ भोग सुख
७६६३४५४ टा.१०३ ३ स७१७ भोगान्तराय ३८८१४११ कर्म,मा १गा १२, पाए २३ भोजनपरिणामरःप्रकारका४८६२६४ ठाउ.अ १३३ भ्रमर वृत्ति पर चारगाथाएं8६४ ७ १८५
मंगल रूप लोकोत्तमतया १२६१ ६४ भाप इ.य ४१५६६ शरण रूप चार
शो मस्नु न लेकर कहे की हुई वस्तु को ही लेने पाला मभिप्रहधारी माधु। २ भुजामों से चलने वाले औप, रे मादि । भूत,भारत मौर वर्तमान तीनों कालों में विद्यमान होने में जीवभूतपदाता है।