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श्री जैन सिद्धान्त चोल संग्रह, पाठवा भाग
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विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण मक्खिय दोप (ग्रहण- ६६३ ३ २४२ प्रव द्वा६७गा ५६८५ १४८, पणा का एक दोष)
पि नि गा ५२०,व अधि ३श्लो.
२२टी पृ ४१,पचा १३ गा.२६ मच्छ की उपमा सेभिक्षुक ४११ १ ४३७ ठा.५उ ३ सू ४५३ मच्छ के पॉच प्रकार ४१० १ ४३६ ठा ५७.३सू ४५३ मणि का दृष्टान्त पारिणा-६१५ ६ ११३ नं सू २७ गा ७४, पाव.ह मिकी बुद्धि पर
गा:५१ मण्डितस्वामीगणधरकादंध७७५ ४ ४४ विशेगा १८०२-१८६३ मोक्षविषयकशंकासमाधान गतिज्ञान
१५ १ १२ पन्न.प.२६सू ३१२,ठा २सू ७१ मतिज्ञान
३७५ १ ३६० ठा ५२ ३ सू ४६३, न सू.१,
कर्म मा १गा ४ व्याख्या मत्तिज्ञान के अठाईस भेद ६५० ६ २८३ सम.२८, कर्म भा.१ गा ४-५ पतिज्ञान के चार भेद २०० १ १५८ ठा ४ उ ४ सू ३६४ मतिज्ञानावरणीय ३७८ १३३४ कर्म.भा १गा ६,ठा ५सू ४६४ १ मतिभंग दोष ७२२ ३ ४०६ ठा १०३.३ सू ७४३ मति सम्पदा
५७४ ३ १४ दनाद ४,ठा ८र ३सू.६०१ मत्यज्ञान साकारोपयोग ७८६ ४ २६८ पन०५ २६ सू.३१२ मद दस
७०३ ३ ३७४ ठा १० सू.७१०,ठा ८सू ६०६ मद्य प्रमाद
२६११ २७१ ठा ६उ ३सू ४०२,ध अधि २
ग्लो.३६टी पृ८१,पंचा १गा
२३टी प्रट १६श्लो १टी. मधु सिक्य की कथा ६४६ ६ २७२ न सू २७गा ६४ टी. औत्पत्तिकी बुद्धि पर
१ वाद या गानार्थ के समय अपनी जानी हुई वान को भी भूल जाना अथवा ममय पर उमका याद न माना।