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श्री जैन सिद्धान्त बोल संश, पाठवाँ गाग
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विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण शत सहस्त्र की कथा औत्प-६४६ ६ २८२ न सू.२७ गा ६५ टी त्तिकी की बुद्धि पर . शनैश्वर संवत्सर ४०० १ ४२८ ठा. उ ३सू ४६० ,प्रव द्वा १४२ १ शवल दोप इक्कीस ११३ ६ ६८ दशा.द २,सम २१ शब्द के दस प्रकार
७१३ ३ ३८८ ठा १०उ ३सू ७०५ शब्द नय
५६२ २ ४१७ अनुसू १५२,रत्ना परि ७सू.३२ शब्द परिणाम
७५० ३ ४३४ ठा १०८ ३सू ७१३,पन्न प: १३
सू १८४-१८५ शम्ब के साहस काष्टा- ७८० ४ २५२ प्राव ह.नि गा १३४, पीठिका न्त भाव अननुयोग पर
नि गा १७२ २ शम्कावर्त्ता गोचरी ४४६ २ ५२ ठा ६उ ३सू ५१४,उत्तम ३.
गा १६,प्रवद्वा गा ७४५,
ध अधि ३श्लो २२ टी पृ३७ शयन पुण्य
६२७ ३ १७२ ठाउ ३ सृ.६७६ शय्यातर पिण्ड कल्प ६६२ ३ २३७ पचा १७ गा १७ - १६ शय्यादाता अवग्रह ३३४ १ ३४५ भश १६उ रमू.५७६,प्रवद्रा
८गा ६८१-६८४, याचा.
५२चू १५ र २सू१६२ शरट (गिरगिट)की कथाह४६ ६ २६२ नं पू २७गा ६३ टी औत्पत्तिकी बुद्धि पर शरीर,यात्मा की भिन्नता ४६६ २१०७ रासु ६३-७४ विपयकपरदेशीराजाकेछःप्रश्न शरीर कीव्याख्या और ३८६ १ ४१२ ठा. उ.१सू ३६५,पन.प २१सू उसके भेद
___ २६७, कर्म भा १गा ३३ १ जिन कार्यो से चारित्र को निर्मलता नष्ट हो जाती है उन्हें शवलदोष कहते हैं। २ गस के पावर्त की तरद वृत्त (गोल) गति वाली गोचरी।