________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संपह, पाठवाँ भाग 336 विषय - बोल भाग पृष्ठ प्रमाण हरिकेशीमुनि(संवरभावना)८१२ 4 386 उत्त अ 12 हरिवंश कुलोत्पत्तिआश्चर्य 681 3 284 ठा 103 3 सू 777, प्रव द्वा 138 गा८८६ हस्ति शुण्डिका 358 1 372 ठा ५सू ३६६टी ,ठा 58 400 हाहाहड़ा आरोपणा 326 1 335 ठाउ.२सू 433 हानि छः प्रकार की 425 2 24 थानम हायणी अवस्था 678 3 268 ठा 10 उ ३सू 772 हासनिःसृत असत्य 700 3 372 ठा १०सू 441, पन प.११सू १६५,ध अधि ३ग्लो 411 122 हास्य कीउत्पत्ति के४स्थान२५७ 1 243 ठा 4 उ 1 सू 266 हास्य रस 636 3 210 अनु सृ 126 गा 76-77 हास्योत्पादन 4021 426 उत्त.अ ३६गा २६१,प्रत्र द्वा 73 हिंसा का स्वरूप 467 2 160 हिंसा के छःकारण 461 2 63 प्राचा श्रु 17 १उ १सू 11 हीयमान अवविज्ञान 428 2 28 ठा ६उ ३सू ५२६,न सू 13 हीलित वचन 456 262 ठा ६उ ३सू ५२७,प्रब द्वा 235 गा 1321, वृ (जी )उ 6 हंडक संस्थान 468 268 ठा ६सू ४६५,कर्म भा १गा 40 42 1 27 रत्ना परि 3 सृ 11 280 1 367 रत्ना परि 3 सृ 11 हेतुअविरुद्धानुपलब्धि के 556 2 268 रत्ना परि ३सू 64-102 सात भेद हेतु अविरुद्धोपलब्धि के 465 2 104 रत्ना परि ३सू.६८-८२ छः भेद हेतु हेतु