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श्री जैन सिद्धान्त चोल संग्रह, पाठवा भाव
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विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमारण पाँच भेद स्नातक के ३७१ १ ३८६ ठा.५सू ४४५,भ श २५ उ ६ पाँच भेद स्वाध्याय के ३८१ १ ३६८ ठाउ ३सू ४६५ पाँच महानदियोंको१मास३३५ १ ३४६ ठा,५३.२सू.४१२ में दो, तीन बार साधु द्वारा पार करने के पाँच कारण पाँच महाव्रत ३१६ १ ३२१ दश.म.४,ठा ५.१सू.३८८,
प्रवद्वा ६ ६गा ५५३,ध अधि३
श्लो ३६-४४ पृ १२० पॉच मिथ्यात्व २८८ १ २६७ कर्म भा ४ गा ५१,ध अधि २
श्लो २२ टी पृ. ३६ पाँच रस
४१५ १४३६ ठा ५२ ११ ३६० पाँच लक्षण समकित के २८३ १ २६३ ध अधि २श्लो २२ टी. पृ ४३ पाँच वर्ग निरयावलिकाक३८४ १ ३६६ निर पाँच वर्ण
४१४ १४३६ ठा ५उ १सू ३६० पाँच व्यवहार ३६३ १ ३७५ ठा५सू ४२१, भ.श ८ उ.८
सू३०४,व्यवमा पीठिकागा १-२ पॉच शौच (शुद्धि) ३२७ १ ३३५ ठा. उ ३सू ४४६ पाँच संयम
२६८ १२८४ ठा ५उ २सू ४२६-४३० पाँच संवत्सर ४०० १ ४२४ ठासू ४६ ०, प्रष. द्वा १४२ पाँच संवर
२६४ १ २८५ ठा.५सू ४१८,४२७,प्रश्न धर्मद्वार पाँच सभाएं इन्द्रस्थान की ३६७ १ ४२१ ठाउ ३सू ४७२ पाँचसमिति की व्याख्या ३२३ १ ३३० सम ५,उत्तम २४गा २,ठा ५सू. और उसके भेद
४५७,ध अधि.३श्लो ४७१ १३. पाँचस्थानकवलीकेपरिपह३३२ १ ३४२ टा.५उ १सू ४०६ उपसर्ग सहन करने के