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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग
१३?
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विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण चौदहभेदाभ्यंतरपरिग्रह ८४० ५ ३३ वृ०० १ गा८३१ चौदह भेद जीवों के ८२५ ५ १७ सम १४,प्राव ह प ४४ ६४६ चौदह भेद श्रुतज्ञान के ८२२ ५ ३ नसू ३८-४४, विशे गा ४५४ चौदह महानदियाँ ८४४ ५ ४५ सम० १४ चौदह महाखम तीर्थङ्कर व ८३० ५ २२ भश १६उ ६ मू५७८,ज्ञा चक्रवर्ती के जन्म सूचक
श्र.८ सू ६५, कल्प सू ४ चौदह मागेणास्थान ८४६ ५ ५५ कर्म भा ४ गा :-१४ चौदह रत्न चक्रवर्ती के ८२८ ५ २० सम० १४ चौदह राजू परिमाण लोक८४५ ५ ४५ प्रव द्वा.१४३, तत्त्वार्थ अध्या
३स ६टी,भ श ५ उ स २२६ ,
भ श १३३ ४ सू ४७६.४८० चौदह लक्षण अविनीत के ८३५ ५ ३० उत्त.अ ११गा ६-६ चौदह स्वप्न मोक्षगामी ८२६ ५ २० भ० श०१६ उ०६ सू० ५८० आत्मा के चोपन उत्तम पुरुप १००६ ७ २७७ सम० ५४ १ चौमासी अनुद्घातिक ३२५ १ ३३४ ठा ५ उ० २ सू०४३३ २ चौमासी उद्घातिक ३२५ १ ३३४ ठा०५ उ०२ सू० ४३३ चौमासे के पिछले सित्तर ३३७ १ ३४७ ठा० ५ उ० २ सू० ४१३ दिनों में विहार के कारण चौमासे के प्रारंभिकपचास ३३६ १ ३४७ ठा० ५ उ० २ सू० ४१३ दिनों में विहारके कारण चौवीसगाथाविनयसमाधि:३३६ २०१ दश० अ० ६ उ० २ अध्ययन के दूसरे उद्देशे की चौबीसगाथासमाधिश्र०की९३२ ६ १६७ सूय श्रु० १ २०१०
१ चार मास का गुरु प्रायश्चित्त । २ चार मास का लघु प्रायश्चित्त ।
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