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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
विषय
बोल भाग पृष्ठ प्रमाण कर्म आठ के क्षय से प्रकट ५६७ ३ ४ अनु. स. १२६,प्रव द्वा २७६ होने वाले पाठ गुण
गा १५६३-१५६४,सम ३१ कर्म आयु के भेद,अनुभाव ५६० ३६५ भश ८ ८३५१,पन्न प २३ और बन्ध के कारण
सू २६२-२६४, पर्म भा १
गा.२३,तत्वार्थ अध्या ८ कर्म और जीव का अनादि५९० ३ ५१ विशे. गा. १८१३-१८१४, सम्बन्ध
कर्म भा १ प्रस्तावना कर्म औरजीव का सम्बन्ध५६० ३ ४७ विशे. गा. १६३५- १६३६ कर्मकाठिया तेरह १८३७ १२७ श्राव ह गा८४१.८४२१३४६ कर्म का लक्षण ५६० ३४४ कर्म भा १ गा.१ तथा भूमिका फर्म की चार अवस्थाएं २५३ १ २३७ कर्म भा. २ गा. १व्याख्या कर्म की मृतता ५९० ३ ४६ विशे. गा १६२४-१६२८ फर्य की व्याख्या और भेद २७ १ १८ कर्म भा. १ गा १व्याख्या कर्म की शुभाशुभता ५६० ३ ४६ विशे गा १६४२-१६४५ कर्म की सिद्धि ५६०३४४ विशे गा १६११-१६ १५. कर्य के विपय में गणधर ७७५ ४ ३१ निशे गा १६०६ मे १६४४ अग्निभूति फाशंका समाधान कर्म के नामादि दस भेद ७६० ३ ४४१ प्राचा श्रु १ २ ३.१
टी. गा १८३-१४ कर्म गोत्र के भेद,अनुभाव ५६० ३ ७६ भ श.८ ६ रसू. ३४ १,एन और वन्ध के कारण
प २३ स २६२-२६४,कर्म
भा गा.५२ तत्त्वार्य यध्यास कर्म ज्ञानावरणीय के भेद, ५६० ३ ५५ भ.ग ८उ.६ सू ३५१, पन्न अनुभाव, बन्ध के कारण
प२३मृ २६२-२६४,कर्ममा गा.६, ४तत्यार्थ अभ्यास
Aani