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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवॉ भाग
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विपय
वोल भाग पृष्ठ प्रमाणा कर्म तीन
७२ १ ५२ जी प्रनि ३ उ १ स १११,
तन्दुल सू १४, १५ पृ ४० कर्म दर्शनावरणीय के भेद,५९० ३ ५६ कर्म भा १ गा १०-१२,५४, अनुभाव और वन्ध के
भ.श ८ ६सू ३५१,पन प० कारण
२३सू २६२-२६४, फर्म नाम के भेद, अनु- ५६० ३ ६८ पन प. २३ सू २८२-२६४, भाव और वन्ध के कारण
भ.श.८उ.६सू ३५१,ज्ञा भ ८सू ६४, प्राव ह नि गा १७९-१८१,कर्म भा १गा २३,
२७,३१ तत्त्वार्थ अध्या ८ फर्म प्रकृतियों का उदया- ८४७ ५ ६४ कर्म, भा २ गा १३-२२ धिकार गुणस्थानों में कर्म प्रकृतियों का उदोरणा-८४७ ५ १८ कर्म भा २ गा २३-२८ धिफार गुणस्थानों में कमे प्रकृतियों का बन्धा- ८४७ ५८८ कर्म. भा २ गा ३-१२ धिकार गुणस्थानों में फर्म प्रकृतियों का सत्ता- ८४७ ५ 86 फर्म भा २ गा २५-३४ धिकार गुणस्थानों में फर्म प्रकृतियों के बारह द्वार८०६ ४ ३३६ कर्म, भा. ५ गा १-१६ फर्म बन्ध के कारण ५६०३ ५२ कर्म भा १ भूमिका तथा गः ५
व्याख्या, टा. १ सू. ६६ कर्मभूमिज ७१ १ ५१ टा ३ २ १ स १३०, पन प
१८३७,जीप्रति स. १०५ फर्मभूमि पन्द्रह ८५८ ५ १४२ पन प ११३७,भ न, २०
८, ८ स ६५५