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________________ २४४ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला विपय वोल भाग पृष्ठ ममाण भरतक्षेत्र के वर्तमान यवस-६२६ ६ १७७मम १५७, माव ६ गा२०६-३६०, पिंरणी के चौबीस तीर्थङ्कर भाव गंगा २३१-३८८६, सश., प्रवद्वा ७ से ४४, भरतचक्रवती अनित्यभावना ८१२४ ३७८ त्रिप. १६ २४३ नं २७ गा. ६२ टी. भग्न शिलाकी कथा औत्प- ६४६ ६ त्तिकी बुद्धि पर भव तेरह भ० ऋषभदेव के २०४४०६ त्रिप. पर्व १ भवनपति देवों के दस दस अधिपति { भवनवासी (भवनपति) ७३० ३४१६ प प १३८, १०३ ३. देव दस ७३६, भग. २७ . ११४, भवपुद्गल परावर्तन भवमत्यय अवधि ज्ञान भव सिद्धिक भव स्थिति ७३१-३४१७ ७४० ३ ४२० ६१८ ३ १४० १३ १ ११ १ ७ भव्यत्व मार्गणा और उसके भेद ご भ. ३३८ १६६ ३१ १ २२ टा २०३ भव्य भव्य स्त्री पुरुषों में ६५४ ६ २६८ प्रद्वा २०० गा. ११०१ से कितनीलब्धियां हो सकती हैं? १/०८ ओ प्रति. ३ १ ११४ वर्म भागा ८६.८८ टा २३ १ सु ७१ टाउ ७६ धावा ६६ भव्य जीवोंक सिद्ध हो जाने६१८ ६ १३६ मग.१२३२२४३ पर क्या लोक भव्यों से शून्य हो जायगा ? ८४६५५८ 447,411,611.13
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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