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श्री जैन सिद्धान्त बोल समह,
आठवाँ माग
बोल भाग पृष्ठ
प्रमाण
विपय भगवान् महावीर से उपदिष्ट३५६ १ ३७३ ठाउ १ सू ३६६
एवं अनुमत पाँच स्थान
भक्त कथा चार
११०८ ठा ४
१५० २ २८२ भक्तासे होने वाली हानि १५० १ १०६ ठा. ४ उ २सू२८२ टी
भक्त मत्याख्यान मरण भक्त परिण्णा पण्णा ६८६ ३ ३५३ ६०प० भद्रकर्मवॉने केदसस्थान ७६३ ३ ४४४ ठा १०३ ३.७५८
वि०अ १२
१ भयदान
भय निःसृत असत्य
भद्रनन्दी कुमार की कथा ६१० ६५८
भद्रनन्दी कुमार की कथा भद्रोत्तरप्रनिमा तप की विधि और उसका यत्र
२४३
८७६५ ३८४सम १७, प्रवद्वा १५७गा. १००७
वि०अ १८
६१० ६ ६० ६८६ ३ ३४७ प्रत व ८
७६८ ३ ४५१ ठा १०३ स् ७४५ ७००३ ३७२ ठा १० ७४१, पन प ११सू १६५, श्रवि ३ ४ १५ १२२ ठा ४३४ ३५६, प्रबद्धा १४४
भय संज्ञा
१४२ १ १०५
भय संज्ञा
७१२ ३ ३८६ ठा १० ७०२, भ श ७३८
भय संज्ञा चार कारणों से १४४११०६ ठाउ४ से ३४६, प्रवद्वा
उत्पन्न होती है
१४४ मा ६२३
भय स्थान सान
५३३ २
ठा ७३३४४९ नम ७
भरत क्षेत्र की आगामी उत्स. ६३० ६
मम १५८, प्रत्र द्वा ७ गा
पिंणी के चौबीस तीर्थङ्कर
२६३-२६५
भरत क्षेत्र की रात उत्स- ६२७ ६ १७६ प्रवद्वा ७ गा २८८-२६० पिंणी के चौबीस तीर्थङ्कर
१ राजा यादि के दर से दिया जाने वाला दान |
२६८
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