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श्री जैन सिद्धान्त बोल सपह, पाठवाँ भाग
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विषय
बोल भाग पृष्ठ प्रमाण १लोल प्रमाद प्रतिलेखना५२१ २ २५१ उत्त अ २६गा २७ लौकान्तिक देव पाठ और६१५ ३ १३२ भश ६उ ५सू २४३,ठा ८उ ३ उनके विमान
सू ६२३ लोकान्तिक देव नौ ६४५ ३ २१७ ठाउ ३सू६८४ लोकिक फल के लिए यत८१८६१४६ भ श २उ ५सू १०७,श्राद्ध प्रति यक्षिणी की पूजा करने में
(रत्नशेखरसूरिकृतविवरण) क्या दोप है?
३३,ध अधि २श्लो २२१३६
वक्रवार पर्वतदससीतामहा७५५ ३४३६ ठा १०उ.३ सू ७६८ नदी के दोनों तटों पर स्थित वक्रवार पर्वत दस सीतोदा७५६ ३ ४३६ ठा १० उ ३सू ७६८ , महानदी के दोनों तटों पर स्थित वक्तव्य अवक्तव्य ४२४ २ १० पागम ,उत्त अ ३६६ वक्तव्यता ४२७ २ २६ अनु सू ७. वचन केदसदीप सामायिकके७६५ ३ ४४८ शिक्षा. वचन के सोलह भेद ८६६ ५ १७० पन्न ५ ११सू १७३, भाचा
२चू १७१३ उ१ वचन गुप्ति १२८ख १ ६२ उत्त.अ २४,ठा.३उ १सू १२६ वचन पुण्य
६२७ ३ १७२ ठाउ ३ सू.६७६ वचनयोग
६५ १६८ ठा ३सू १२४,तत्त्वार्थ अध्या । बचन विकल्प सात ५५४ २ २६५ ठा ७७ ३ स् ५८४ वचन विनय
४६८ २ २३० उव सू २०,भ श २५२ ७ सू.
८०२,ठा.७३ ३सू ५८५,ध.
अधि ३लो ५४ टी पृ४१ १ जमीन के साथ वन को रगड़ते हुए उपेक्षा पूर्वक प्रतिलेखना करना ।