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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग
११३
विषय
बोल भाग पृष्ठ प्रमाण _. गोशालक के श्रमणोपासक७६३ ४ २७६ भ श ८३५ सू ३३०
गोष्ठामाहिल सातवांनिद्वव५६१ २ ३८४ विशे.गा २५०६ से २५४६ गौरण
३८ १२४ तत्त्वार्थ प्रध्या ५ सू ३१ गौण आदि दस नाम ७१६ ३ ३६५ भनु सू १३० गौण नाम
७१६ ३ ३६५ अनु सू १३. गौरव की व्याख्या व भेद १८ १७० ठा३ उ.४सू २१५ गौरव दान ७६८ ३ ४५२ ठा.१० उ ३सू ५४५ ग्यारह अंग मूत्र ७७६ ४ ६६ ग्यारह उपासक पडिमाएं ७७४ ४ १८ दशा द ६,सम ११ ग्यारह गणधर ७७५ ४ २३ विशे गा १५४६-२०२४,सम
११,माव ह टिप्पण पृ२८-३५
भावह नि गा ५६३-६४१ ग्यारह गाथादशवैकालिक७७१ ४ ११ दश प्र२ । सूत्र के दूसरे अध्ययन की ग्यारह दुर्लभ ७७२ ४ १७ भाव ह नि गा८३१ पृ ३४१ ग्यारह नाम महावीर के ७७० ४ ३ जैन विद्या वोल्यूम १ न. १ ग्यारह वोल आरंभ परिग्रह ४६१ २६ ठा.२ उ १सू ६५ छोड़ने पर प्राप्त होते हैं ग्यारह वोल आरंभ परिग्रह७७३ ४ १७ ठा २ उ.१ सू. ६४ छोड़े विना प्राप्त नहीं होते ग्रन्याध्ययन की२७गाथाएं९४६ ६ २३० सूय अ १४ ग्रन्थि संकेत पञ्चक्खाण ५८४ ३ ४३ प्राव ह अ६नि गा १५७८,
प्रवद्वा.४ गा २०० ग्रहणेषणा
१३ १६७ उत्तय २४ गा ११-१२