________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह,पाठवा भाग
२३७
विषय
बोल भाग पृष्ठ प्रमाण बारह ग्लान मतिचारी ७६७ ४ २६७ प्रवद्वा ७१गा.६२४ से ६३५,
नवपद गा १२६ पृ३१६ * बारह चक्रवर्ती ७८३ ४ २६० ठाउ ३सू.६३३,ठा २उ ४ सू
११२,सम.६४, १५८,श्राव
हअ पनि गा.३६७,त्रिप बारह चक्रवर्ती आगामी ७८४ ४ २६५ सम, १५६ उत्सर्पिणी के बारह दृष्टान्त अननुयोग ७८० ४ २३८ भावह गा १३३-१३४, तथा अनुयोग के
पीठिका नि गा १७१-१७२ वारहदोषकायाकेसामायिकके७८६ ४ २७३ शिक्षा.
बारह द्वार फर्म प्रकृतियों के८०६ ४ ३३६ कर्म भा ५ गा १-१६ वारहनाम ईपत्याग्भारा के ८१० ४ ३५२ सम १२ वारह नाम मान के ७६० ४ २७५ भ.श १२उ ५८ ४४६ चारह पूर्णिमाएं ८००४ ३०२ सूर्य प्रा १० प्रा प्रा ६८ ३८ बारह प्रकारका तप ४७६, २८५, / उत्तय ३०,उव सू १९-२०, (निर्जरा)
४७८ २ ८8 1 ठासू ५ ११.अव द्वा.६ गा २७० वारह प्रकार के आर्य ७८५ ४ २६६ वृ उ पनि.गा ३२६३ बारह बाल मरा ७६८ ४ २६८ भश २ठ १सू ६१ बारह भावना (अनुप्रेक्षा) ८१२४ ३५५ शामा १,२,भावना ज्ञान प्रक
२,प्रव द्वा ६७गा ५७२-५७३। तत्वार्थ अध्या ६ ५
गा १-१६
: हरिभद्रीयावश्यक नियुक्ति गाथा४० 1 में मुभूम और बादत्त चन्चती का सातवी नरक में जाना, मघवा और सनत्कुमार चक्रवर्ती का तीसरे सनत्तुमार देवलोक में उत्तम होना एव शेप माठ चावर्तियों का निद्ध होना बताया है ।