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संकेत
पिंनि.
पिंवि.
पीप पुरुषा.
प्र.
प्रतिमा.
प्रमी.
प्रर
ग्रन्थ नाम, भाषा व काल
पिण्डनिर्युक्ति, मूल प्राकृत,
टीका संस्कृत
पिण्डविशुद्धि, मूल- प्राकृत, टीका संस्कृत [ वि स ११५८ ] पीस एगढ परसनेलिटी
पुरुषार्थ दिग्दर्शन (हिन्दी)
प्रमाणनयतत्वालोकालंकार, संस्कृत रत्नाकरावतारिका टीका सहित
प्रतिमाशतक लघुवृत्ति सहित
मूल प्राकृत
प्रमाणमीमांसा, संस्कृत
स्वोपज्ञ वृत्ति सहित
प्रकरण रत्नाकर (चार भाग ) संस्कृत, प्राकृत तथा भाषा के अनेक ग्रन्थो का संग्रह
( ३० )
ग्रन्थकर्त्ता और उसका काल
श्री भद्रवाहस्वामी
टीकाकार - प्राचार्य श्रीमलयगिरि मूल श्रीजिनवादभसूरि
टीकाकार - श्री चन्द्रसूरि
प्रोफेसर जगदीश मित्र श्रीविजय धर्मसूरि
श्रीवादिदेवसूरि (विस ११४३ - १२२६) टीकाकार - रत्नप्रभसूरि (वि १३ वीं शताब्दी) न्यायविशारद न्यायाचार्य श्रीयशोविजयजी (वि १७वीं १८वीं शताब्दी), वृत्तिकार - श्री भावसुरि श्री हेमचन्द्राचार्य
[चि म ११४५- १२२६]
प्रकाशन का स्थान और समय श्री देवचद्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फड बम्बई, वीर स २४४४ आचार्य श्रीमद् विजयदानसूरीश्वरजी जैन ग्रन्थमाला सुरत, वीर स २४६५
लाहोर
अनोपचद नरसिहदास, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला
हेरिसरोड भावनगर, सन् १६२२ हर्षचन्द्र भूराभाई धर्माभ्युदय प्रेस बनारस, वीर सं २४३७
श्री जैन श्रात्मानन्द सभा भावनगर, वीरस २४४१
मोतीलाल लाभाजी १६६ भवानी पेठ पूना,
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वीर सं २४५२
भीमशी माणेक चम्
[विम१६३२१६६८]