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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, थाठवा भाग विषय १ विनयाचार विनीत के पन्द्रह लक्षण २ विपक्ष पद नाम विपरीत स्वम दर्शन विपर्यय चोल भाग पृष्ठ ५६८ ३६ ८५२ ५ १२५ उत्तउ ११गा १०-१३ ७१६ ३ ३६६ अनुम् १३० ४२१ १ ४४५ भ श १६३ ६ सू. ५७७ १२१ १ ८६ रत्ना परि १, न्यायप्र मध्या. ३ ४ १ २४७ विपाक विचय धर्मध्यान २२०१२०४ विपाकसूत्र की बीस कथाएं६१० ६ २६ विपाक सूत्र के दोनों श्रुत- ७७६ ४२१३ स्कन्धों का संक्षिप्त विषय वर्णन - विपुलमति मन:पर्ययज्ञान १४ १ १२ विपुलमति लब्धि ठा २उ. १ सृ६७१ ५४ ६ २६१ प्रत्र द्वा २७० मा १४६२ प्रवद्वा २७०गा १४६२ ६५४ ६ २६० विमुड पधिलब्धि विभंगज्ञान साकारोपयोग ७८६४२६८ ११ २६ ३१२ विभंगज्ञान सात ५५८ २३०१ ठा ७३ ३ ५४२ विभक्तियाँ ग्राठ ५६५ ३ १०५ सिकारकप्रकरण, अनु सू १२८, ठा ८३ सू६०६ ३४२१ टा १०३ ३सु ७६६ २८३ प्रमाण अधि१श्लो. १६टी पृ १८ वि विमान दस बारह देवलोक७४४ के दस इन्द्रों के विमानों के तीन आधार ११४ १ ८१ ठाउ ३१८० विरसाहार ३५६ १३७१ ठा ४३.१ सू ३६६ गम ३ विराधना की व्याख्या, भेद ८७ १६३ विरुद्ध हेत्वाभाम ७२२ ३ ४१० टा १०३.३.७४३टी विरुद्धोपलब्धि हेतु के भेद ५५५ २ २६६ रत्ना परि. ३८३-६२ १ ज्ञानाचार का एक भेद, ज्ञानदाता गुरु का विनय रखना विनयाचार है । २ विक्षित वस्तु में जो धर्म है उसने विपरीत धर्म बनाने वाला पत्र |
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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