________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग
२११
विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाणा पाँच कारणों से साधु राजा३३८ १ ३४८ ठा ५उ २ सू ४१५ के अन्तःपुर में प्रवेश कर सकता है पाँच क्रिया २६२ १ २७६ । ठा २सू ६०,ठा : सू ४१६, पाँच क्रिया
२६३ १ २७७ ) पन प २२ सू २७६-२८४ पाँच क्रिया
२६४ १ २७६ ] ठा २सू ६०.३ सू ४१६, पाँच क्रिया
२६५ १ २८० [ भाव ह.अ ४प ६१२-६ १३ पाँच क्रिया
२६६ १ २८२ ठासू ६०,४१६,भाव ह भ ४
पृ ६१४,सुय श्रु २ अ २गा १६८ पाँच गति
२७८ १ २५७ ठाउ ३ सृ ४४२ पाँच जाति
२८१ १ २५६ पन०प २३उ २सू २६३,प्रव
द्वा १८७गा.१०६८-११०४ १ पाँच दग्धाक्षर ३८५ १४०६ सरल पिगल पाँच देव
४२२ १४४५ ठा ५स ४० १,भ०श १२ उ ६ पॉच दोप मांडला (ग्रासै- ३३० १ ३३६ उत्त भ २६ गा ३२,पि नि गा पणा) के ।
६३५-६६८,ध अधि ३श्लो
२३१५५,उत्त अ २४गा १२, पॉच धाय (धात्री)
४०८ १ ४३४ भ रा ११३ ११सू ४२६,प्राचा
श्र२चू ३म २४स १७६
४१४ १४४२कर्म भा १गा ११-१२,पन्न०प २३ पाँच निर्ग्रन्थ ३६६ १ ३७६ ठा ५सू ४४५, भ श २५ उ६ पाँच निर्याण मार्ग २८० १ २५६ ठा५३ ३ स ४६ १ पाँच परमेष्ठी २७४ १ २५२ म मंगलाचरण पाँच परिचारणा देवों की ३९८ १ ४२२. पन्न प ३४,ठा ५ स .०२ टी पाँच परिज्ञा ३६२ १ ३७५ ठा ५उ सू.४२०
१ काव्य में विशेष अशुभ तथा दूपित माने जाने वाले अक्षर ।
पाँच निद्रा