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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग
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विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण नरयविभत्ति अध्ययन के १४१ ६ २१६ सूय०५५ उ २ दुसरेउ० की२७गाथाएं नरय विभत्ति अध्ययन के ६४७ ६ २३६ सय ५ ५ उ १ पहले उकी२७ गाथाएं नवतत्त्व
६३३ ३ १७७ नव गा १, ठा उ ३सू ६६५ नव वाड़ शील की ६२८ ३ १७३ समठा Lउ ३ सू ६६३ नवीन उत्पन्न देवनाफेमनुष्य ११० १ ७६ ठा३ उ.३ सू १७७ लोकमाने के तीन कारण नाक के ४ मण्डल और उन५५१ २ ३०७ यो प्रका.५,राज , हठ, में रहने वालीवायु के भेद नागकुमारकेदसअधिपति७३२ ३ ४१८ भ०श ३ उ ८ सू १६६ नाग सुवणे मद ७०३ ३ ३७४ ठा १०उ ३ सू.७१० नाणक की कथा औत्प-६४६६ २७५ न•सू २७ गा ६५टी त्तिकी बुद्धि पर नाम
४२७ २ २६ अनु, सु ७० नाम अनन्तक ४१७ १ ४४१ ठा ५उ. ३ सू ४६२ नाम कर्म
७६० ३ ४४१ याचा अ २उ १ नि.गा1८३ नामकर्म अशुभ भोगने के ८३६ ५ ३३ पन्न०प २३ सू २६२ चौदह प्रकार नामकर्म और उसके वया-५६० ३ ६८ कर्म भा १ गा २३-२७,पन० लीस मूल भेद
प२३ ३ २ सू २६३ नामकर्मकी१४पिंडप्रकृप्ति ५६० ३ ६६ पन०प २३२ २६३-२६४, कर्म के६५उत्तरभेद व व्याख्या
भा० १ गा३३-४३ नामकर्मकीह३,१.३और५९० ३ ७७ कर्म०मा.१ गा.३१व्याख्या ६७ प्रकृतिगाँ